औरत को आईने में यूं.... उलझा दिया गया..... Vnita Kasnia Punjabबखान करके हुस्न का, बहला दिया गया..... ना हक दिया ज़मीन का, न घर कहीं दिया..... गृहस्वामिनी के नाम का, रुतबा दिया गया..... छूती रही जब पांव, परमेश्वर पति को कह..... फिर कैसे इनको घर की, गृहलक्ष्मी बना दिया..... चलती रहे चक्की और जलता रहे चूल्हा..... बस इसलिए औरत को, अन्नपूर्णा बना दिया..... .न बराबर का हक मिले, न चूँ ही कर सकें..... इसलिए इनको पूज्य देवी, दुर्गा बना दिया.... .यह डॉक्टर, इंजीनियर, सैनिक, भी हो गईं..... पर घर के चूल्हों ने उसे, औरत बना दिया..... चाँदी सोने की हथकड़ी, नकेल, बेड़ियां..... कंगन, पांजेब, नथनियां जेवर बना दिया.... व्यभिचारी आदमी, जब रोक ना सका अपनी लार...तब श्रृंगार, साज ,वस्त्र पर, तोहमत लगा दिया..... .खुद नंग धड़ंग आदमी, घूमता है रात दिन..... औरत की टांग क्या दिखी, नंगा बता दिया..... .नारी ने जो ललकारा.... इस दानव प्रवृत्ति को.... जिह्वा निकाल रक्त पिया, तो काली बना दिया..... .नौ माह खून सींच के, बचपन जवां किया.....पर.. बेटों को नाम बाप का... चिपका दिया गया.... .*🙏🏼,

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