मोक्ष का अनुभव शीघ्र कैसे हो?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबवर्षो बीत गए। युग बीत गए। पर तुम्हारा प्रश्न अभी तक पूरा नही हुआ। यह प्रश्न हर किसी के मन में है। हर व्यक्ति जानना चाहता है।मैं कौन हूँ?बस, इस प्रश्न को लेकर सब इधर उधर घूम रहे है। कोई कहता है आत्मा हूँ, कोई कहता है परमात्मा हूँ लेकिन ये बताओ अनुभव कितने लोग किये?अगर इसी प्रश्न को लेके बैठे रहे तो फिर से जीवन चला जायेगा। फिर से युग बीत जाएंगे। इसलिए अब यह जानना आवश्यक है कि शीघ्र कल्याण कैसे हो?देखो, अब जो विधि मैं साझा करूँगा उससे शीघ्र लाभ होगा। अनुभव होगा। बिना अनुभव की बात नही करेंगे। अनुभव की बात होगी। इतने दिन तुम सोच में थे कि मैं कौन हूँ? लेकिन अब इस प्रश्न को घुमा दो तो जल्दी ही कल्याण हो जाये। शीघ्र ही सब अनुभव हो जाये। इस प्रश्न को "मैं कौन हूँ" कि जगह "मैं कौन नही हूँ" कर दो।इतनी सी बात है। यहाँ निषेध का विज्ञान लग जायेगा। तुम कौन हूँ को ढूंढ रहे हो लेकिन कुछ नही हुआ। अब तुम यह ढूंढो की कौन नही हूँ।तुम पाओगे की तुम शरीर नही हो। तुम पाओगे की तुम मन नही हो। तुम पाओगे की तूम यह भी नही हो। तुम पाओगे की तुम वह भी नही हो। तुम पाओगे की तुम हो ही नही। तुम पाओगे की तुम कुछ नही हो। और जब तुम यह सब जान लोगे की तुम क्या क्या नही हो तो शेष बचा हुआ ही तुम हो। तुमने शरीर का तो अनुभव किया ही है। तुमने मन का अनुभव भी किया ही है। तुमने संसार का अनुभव भी किया है। तो अपने अनुभव को काम में लो। लेकिन तुम तो अनुभव को काम मे लेते ही नही। तुम तो सीधा कहते हो कि मैं आत्मा हूँ। जबकि तुमने भले अनुभव ही नही किया हो। इसलिए अनुभव को काम मे लो। काम मे लो।अब देखो, अनुभव हो जाये तो उसका आदर करो। वैसे भी आपको अनुभव तो हो रखा है। लेकिन आपने आदर नही किया उस अनुभव का।देखो, तुम रात को सोते हो। तुम्हारा अहंकार और मन भी सो जाते है। तुम्हारा शरीर भी सो जाता है। तुम्हारा मस्तिष्क भी सो जाता है। तुम्हे कुछ याद नही रहता। तुम कुछ नही जानते नींद में। तुम तर्क नही कर सकते उस समय। लेकिन तुम सुबह उठकर कहते हो कि रात को बड़ी अच्छी नींद आयी। बड़ी प्यारी नींद आयी।अब मैं यही तो कह रहा हूँ। जब तुम्हारा शरीर सो रहा था, जब तुम्हारा मन और मस्तिष्क सो रहा था तो तुम्हे कैसे पता कि तुम्हे अच्छी नींद आयी?तुम उठकर यह भी तो कह सकते थे कि रात को पता नही कैसी नींद आयी। लेकिन तुम कह रहे हो कि अच्छी नींद आयी। यानी कोई तो था उस समय जो जाग्रत था। जो दृष्टा था। वही कह रहा है कि अच्छी नींद आयी। यह ज्ञान योग में तीन प्रकार के अनुभवों में से एक अनुभव है। इसका पूरा विस्तार लिखूं तो एक मोटी सारी पुस्तक हो जाएगी। अब देखो, यह अनुभव तुम्हे रोज होता है। परन्तु तुमने ध्यान दिया? नही न। तुमने उस अनुभव का आदर किया ही नही। इसलिए तो तुम आगे नही बढ़ते।तुम उस अनुभव का आदर करने लगो तो तुम्हे बहुत से अनुभव का पता लग जायेगा।नींद में तुम शरीर नही थे। तुम मन नही थे। तुम कुछ भी नही थे उस समय। तभी तो तुम्हे दृष्टा का अनुभव हुआ। उसी प्रकार इस मायाजाल में तुम उल्टा कार्य करना शुरू करो।यह मत ढूंढो की मैं कौन हूँ?बल्कि ये जानो की मैं कौन नही हूँ। अगर यह जानना शुरू किया तो तुम पाओगे की न तो शरीर हो तुम, न मन हो। बाकी बचा हुआ हो तुम। और ये बचा हुआ ही आत्मा है।लेकिन तुम्हारी आदत खराब है। तुम सीधे आत्मा पर भागते हो। युग और जीवन दोनो जा रहे है।अब आज से रोज सुबह शाम एक काम करो। 15 मिनट निकालो। सीधा लेट जाओ। अपने शरीर को पूर्ण शिथिल करलो। धीरे धीरे शांत हो जाओ। स्वास ओर ध्यान दो। एक बात और है। तुम्हे अपनी आँखों के हीरे को भी हिलाना नही है। तुम अब धीरे धीरे यह बोलते रहो-मैं शरीर नही हूँ। मैं मन नही हूँ। मैं शरीर नही हूँ।इसे बार बार दोहराओ। दो महीने काफी है। तुम्हे जो अनुभव सालो से नही हो रहा वो अब 60 दिन में हो जाएगा। किसी गुरु की जरूरत नही। प्रकृति से बड़ा गुरु नही है। वह तुम को कई बार अनुभव करा चुकी। मैंने तुम्हारे सारे अनुभव बताना शुरू किए तो फिर से एक और मोटी पुस्तक बन जायेगी। शीघ्र करो।और जानो की मैं कौन नही हूँ?वरना ये जीवन भी चला जाएगा।चित्र स्त्रोत- गूगल5.9 हज़ार बार देखा गया23 अपवोट17 शेयर2 टिप्पणियाँ

वर्षो बीत गए। युग बीत गए। पर तुम्हारा प्रश्न अभी तक पूरा नही हुआ। यह प्रश्न हर किसी के मन में है। हर व्यक्ति जानना चाहता है।

मैं कौन हूँ?

बस, इस प्रश्न को लेकर सब इधर उधर घूम रहे है। कोई कहता है आत्मा हूँ, कोई कहता है परमात्मा हूँ लेकिन ये बताओ अनुभव कितने लोग किये?

अगर इसी प्रश्न को लेके बैठे रहे तो फिर से जीवन चला जायेगा। फिर से युग बीत जाएंगे। इसलिए अब यह जानना आवश्यक है कि शीघ्र कल्याण कैसे हो?

देखो, अब जो विधि मैं साझा करूँगा उससे शीघ्र लाभ होगा। अनुभव होगा। बिना अनुभव की बात नही करेंगे। अनुभव की बात होगी। इतने दिन तुम सोच में थे कि मैं कौन हूँ? लेकिन अब इस प्रश्न को घुमा दो तो जल्दी ही कल्याण हो जाये। शीघ्र ही सब अनुभव हो जाये। इस प्रश्न को "मैं कौन हूँ" कि जगह "मैं कौन नही हूँ" कर दो।

इतनी सी बात है। यहाँ निषेध का विज्ञान लग जायेगा। तुम कौन हूँ को ढूंढ रहे हो लेकिन कुछ नही हुआ। अब तुम यह ढूंढो की कौन नही हूँ।

तुम पाओगे की तुम शरीर नही हो। तुम पाओगे की तुम मन नही हो। तुम पाओगे की तूम यह भी नही हो। तुम पाओगे की तुम वह भी नही हो। तुम पाओगे की तुम हो ही नही। तुम पाओगे की तुम कुछ नही हो। और जब तुम यह सब जान लोगे की तुम क्या क्या नही हो तो शेष बचा हुआ ही तुम हो। तुमने शरीर का तो अनुभव किया ही है। तुमने मन का अनुभव भी किया ही है। तुमने संसार का अनुभव भी किया है। तो अपने अनुभव को काम में लो। लेकिन तुम तो अनुभव को काम मे लेते ही नही। तुम तो सीधा कहते हो कि मैं आत्मा हूँ। जबकि तुमने भले अनुभव ही नही किया हो। इसलिए अनुभव को काम मे लो। काम मे लो।

अब देखो, अनुभव हो जाये तो उसका आदर करो। वैसे भी आपको अनुभव तो हो रखा है। लेकिन आपने आदर नही किया उस अनुभव का।

देखो, तुम रात को सोते हो। तुम्हारा अहंकार और मन भी सो जाते है। तुम्हारा शरीर भी सो जाता है। तुम्हारा मस्तिष्क भी सो जाता है। तुम्हे कुछ याद नही रहता। तुम कुछ नही जानते नींद में। तुम तर्क नही कर सकते उस समय। लेकिन तुम सुबह उठकर कहते हो कि रात को बड़ी अच्छी नींद आयी। बड़ी प्यारी नींद आयी।

अब मैं यही तो कह रहा हूँ। जब तुम्हारा शरीर सो रहा था, जब तुम्हारा मन और मस्तिष्क सो रहा था तो तुम्हे कैसे पता कि तुम्हे अच्छी नींद आयी?

तुम उठकर यह भी तो कह सकते थे कि रात को पता नही कैसी नींद आयी। लेकिन तुम कह रहे हो कि अच्छी नींद आयी। यानी कोई तो था उस समय जो जाग्रत था। जो दृष्टा था। वही कह रहा है कि अच्छी नींद आयी। यह ज्ञान योग में तीन प्रकार के अनुभवों में से एक अनुभव है। इसका पूरा विस्तार लिखूं तो एक मोटी सारी पुस्तक हो जाएगी। अब देखो, यह अनुभव तुम्हे रोज होता है। परन्तु तुमने ध्यान दिया? नही न। तुमने उस अनुभव का आदर किया ही नही। इसलिए तो तुम आगे नही बढ़ते।

तुम उस अनुभव का आदर करने लगो तो तुम्हे बहुत से अनुभव का पता लग जायेगा।

नींद में तुम शरीर नही थे। तुम मन नही थे। तुम कुछ भी नही थे उस समय। तभी तो तुम्हे दृष्टा का अनुभव हुआ। उसी प्रकार इस मायाजाल में तुम उल्टा कार्य करना शुरू करो।

यह मत ढूंढो की मैं कौन हूँ?

बल्कि ये जानो की मैं कौन नही हूँ। अगर यह जानना शुरू किया तो तुम पाओगे की न तो शरीर हो तुम, न मन हो। बाकी बचा हुआ हो तुम। और ये बचा हुआ ही आत्मा है।

लेकिन तुम्हारी आदत खराब है। तुम सीधे आत्मा पर भागते हो। युग और जीवन दोनो जा रहे है।

अब आज से रोज सुबह शाम एक काम करो। 15 मिनट निकालो। सीधा लेट जाओ। अपने शरीर को पूर्ण शिथिल करलो। धीरे धीरे शांत हो जाओ। स्वास ओर ध्यान दो। एक बात और है। तुम्हे अपनी आँखों के हीरे को भी हिलाना नही है। तुम अब धीरे धीरे यह बोलते रहो-

मैं शरीर नही हूँ। मैं मन नही हूँ। मैं शरीर नही हूँ।

इसे बार बार दोहराओ। दो महीने काफी है। तुम्हे जो अनुभव सालो से नही हो रहा वो अब 60 दिन में हो जाएगा। किसी गुरु की जरूरत नही। प्रकृति से बड़ा गुरु नही है। वह तुम को कई बार अनुभव करा चुकी। मैंने तुम्हारे सारे अनुभव बताना शुरू किए तो फिर से एक और मोटी पुस्तक बन जायेगी। शीघ्र करो।

और जानो की मैं कौन नही हूँ?

वरना ये जीवन भी चला जाएगा।

चित्र स्त्रोत- गूगल

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