****सांप कितना जहरीला होता है*****
सांपो के बारे में हमारे आस पास बहुत ही ज्यादा अंधविश्वास भरा पड़ा है,आज मैं आपको उन सभी अंधविश्वासों का पर्दाफाश करके सच्चाई से रूबरू कराऊंगा।ये अंधविश्वास इतनी गहराई तक लोगों के मन में बैठ गया है कि इसके चलते प्रतिदिन अनेकों लोग अपनी जान गंवा बैठते है।इस पोस्ट में सांपो से जुड़ी पूरी जानकारी है, ये पांच मिनट पढ़ा गया पोस्ट किसी की जान बचा सकता है।
सबसे पहले ये जानते हैं कि सांप कितना जहरीला होता है? वैज्ञानिक रिसर्च में सामने आया है कि लगभग 4000 सांपो की प्रजातियों में मात्र 10 सांप ही ऐसे होते हैं जिनका जहर मनुष्य के लिए जानलेवा होता है, डरिए मत ये दस सांप भी इतने जहरीले नहीं होते हैं कि काटने के तुरन्त बाद इन्सान मर जाय। दुनिया का कोई सांप इतना विषैला नहीं होता है कि उसके काटने के तुरन्त बाद इंसान मर जाय,बेहोशी की हालत तक पहुंचते पहुंचते आधे से एक घंटा लग जाता है यदि एक घंटे के अंदर अस्पताल जाकर एन्टीवेनम ले लें;तो जान बच जाती है।
भारत में सांप काटने से ज्यादा मौत इसलिए होती है क्योंकि यहाँ के लोग समय रहते झाड़फूंक और होम्योपैथिक दवा पिलाने के चक्कर में पड़ जाते हैं;झाड़फूंक, तंत्र-मंत्र के जाल में बिल्कुल नहीं पड़ना चाहिए। यदि जहरीले सांप ने काटा है काटे हुए स्थान पर दो दांत स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं।भारत में कोबरा, रसेल वाइपर और करैत जैसे जहरीले सांप पाये जाते हैं। ध्यान रहे सांप कितना भी जहरीला हो तुरन्त मौत नहीं होती है ये बात जान लें, बचने का पूरा मौका रहता है।
ये अफवाह फैलाना बंद करें कि हरसांप के काटने से मौत होती है।इसलिए व्यर्थ डरने से बचें,आधे से ज्यादा लोगों की मौत सांप काटने से नहीं बल्कि डरने से हो जाती है; इस डर से तभी बचा जा सकता है जब सच और झूठ का ठीक ठीक ज्ञान हो। डर और चिन्ता की वजह से शरीर में ऐसे विपरीत हार्मोन्स रिलीज होने लगते हैं जो कि जहर की तरह काम करते हैं फिर इंसान की मौत हो जाती है ।
अब जानते हैं कि सांप काटता क्यों है? सांप तभी काटता है जब उसे अपनी जान खतरे में महसूस होता है,जब उसे दबाया,पकड़ा या छेड़ा जाता है तभी काटता है अन्यथा उसके बगल लेट जाइये फिर भी नहीं छुएगा बशर्ते दबाव न पड़े उसपर। जाहिर सी बात है कि जिसे भी अपनी जान खतरे में महसूस होगा वो बचाव के लिए कुछ न कुछ करेगा फिर चाहे वो सांप हो या कोई अन्य जन्तु। कहीं भी अंधेरे में, झाड़ी में, या कोई ऐसी जगह जो स्पष्ट न दिखाई वहां जाना नहीं चाहिए,और न ही वहां हाथ,पैर लगाना चाहिए।किसी भी पुरानी चीज को हटाने के लिए डंडे या चिमटा का प्रयोग करना चाहिए;हाथ लगाकर हटाने से खतरा हो सकता है।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि दुनिया का सबसे डरने वाला जीव भी सांप ही है;संयोगवश उसका सामना मनुष्य से हो जाता है वो चाहता नहीं कि सामने आये। यह जीव इंसानी बस्तियों में चूहों या मेढकों के खाने के चक्कर में घुस जाता है।इसलिए जहाँ चूहे और मेंढक होते हैं ये संभावना है कि वहाँ सांप भी आ जाये। ये चूहे के बिलों में घुसकर उनका शिकार करते हैं; सांप हमारे पर्यावरण का अभिन्न मित्र है।इनकी संख्या दिनों दिन कम होती जा रही है क्योंकि जंगल कटते जा रहे हैं जितना ज्यादा जंगल की कटाई होगी उतना ही ज्यादा ये जीव हमारे घरों में आयेंगे इसलिए जंगल,पेड़, पौधों को बचाना बहुत जरूरी है तभी सांप भी बचे रहेंगे अन्यथा एक वक्त ऐसा आयेगा कि ये जीव धरती से विलुप्त हो जायेगा।
सांप दूध नहीं पीता है क्योंकि उसके शरीर में हड्डियाँ नहीं पाई जाती हैं,दूध वही जीव पचा सकता है जिसके शरीर में हड्डियाँ हों;दूध पचाने वाला एंजाइम सांप के अंदर नहीं पाया जाता है यदि जबरदस्ती उसे दूध पिलाया जाय तो उसकी हालत खराब हो सकती है।
बीन बजाने से सांप नाचता नहीं है क्योंकि सांप के कान नहीं होते हैं।जो सपेरा सांप को घुमाता दिखाता है वो बीन के इधर उधर घुमाने के कारण होता है; सांप बीन का अनुसरण करता है उसकी आवाज का नहीं। अगर सपेरा बीन बजाकर सिर्फ बैठा रहे और बीन को इधर उधर न घुमाये तो सांप भी नहीं घूमेगा। ये जीव सुन नहीं सकते हैं, इंसानों का आभास ये सूंघकर और कंपन सुनकर करते हैं।
सांप के पुच्छ मारने से कुछ नहीं होता है कोई सड़न नहीं पैदा होती है,नाग को मारने से नागिन बदला लेती है ये भी अफवाह है ऐसा कुछ नहीं होता है। वो जीव हैं इंसान नहीं उनका जीवन अपना पेट भरने में ही गुजरता है दुश्मनी निभाने में नहीं;इन अफवाहों से दूर रहें फिर भी जहाँ तक हो सके इन्हें मारना नहीं चाहिए;बचाने का भरसक प्रयास करना चाहिए ।यदि आपने पोस्ट पूरा पढ़ा है तो बहुत बहुत धन्यवाद~ बाल वनिता महिला आश्रम -
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[English translation]
****How poisonous is a snake*****
There is a lot of superstition around us about snakes, today I will expose you to the truth by exposing all those superstitions. This superstition is so deeply ingrained in people's mind that due to this many people lose their lives every day. Let's sit. This post contains complete information related to snakes, this five minute read post can save someone's life.
First of all, do you know how venomous a snake is? Scientific research has revealed that out of about 4000 snake species, there are only 10 snakes whose venom is fatal to humans, do not be afraid, even these ten snakes are not so poisonous that humans die immediately after bite. No snake in the world is so venomous that a person dies immediately after its bite, it takes half an hour to reach the state of unconsciousness, if within an hour go to the hospital and take antivenom; Then life is saved.
In India, there are more deaths due to snake bites because people here fall in the trap of sweeping and giving homeopathic medicines in time; One should not fall in the trap of sweeping, tantra-mantra. If a poisonous snake has bitten, two teeth are clearly visible at the bite site. Poisonous snakes like Cobra, Russell's Viper and Krait are found in India. Keep in mind that no matter how poisonous the snake is, there is no instant death, know this thing, there is a full chance of survival.
Stop spreading this rumor that every snake bite causes death. So avoid fear in vain, more than half of the people die not because of snake bite but because of fear; This fear can be avoided only when there is accurate knowledge of truth and falsehood. Due to fear and worry, such opposite hormones are released in the body which act like poison and then the person dies.
Now do you know why snakes bite? A snake bites only when it feels that its life is in danger, it bites only when it is pressed, caught or teased, otherwise lie down next to it and still will not touch it unless pressure is applied on it. It is obvious that whoever feels that his life is in danger, he will do something for the rescue, whether it is a snake or any other animal. One should not go anywhere in the dark, in the bush, or any such place which is not clearly visible, nor should one put hands, feet there. To remove any old thing, stick or tongs should be used; Removal by hand may be at risk.
You will be surprised to know that the most feared creature in the world is also a snake; by chance he encounters a human, he does not want to come in front. This creature enters human settlements in the trap of eating rats or frogs. Therefore, where there are rats and frogs, there is a possibility that snakes also come there. They hunt rats by burrowing into their burrows; Snakes are an integral friend of our environment. Their number is decreasing day by day because the forests are getting cut, the more the forest is cut, the more these creatures will come to our homes, so it is very important to save the forest, trees, plants. Snakes will also survive otherwise a time will come that these creatures will become extinct from the earth.
The snake does not drink milk because bones are not found in its body, milk can be digested by an organism that has bones; The enzyme that digests milk is not found inside the snake If it is forcefully fed milk, its condition can worsen. is.
The snake does not dance by playing the lute because the snake does not have ears. The snake charmer who shows the snake moving is due to the bean moving here and there; The snake follows the bean, not his voice. If the snake charmer just sits after playing the bean and does not move the bean here and there, then the snake will not move. These creatures cannot hear, they make sense of humans by smelling and hearing vibrations.
Nothing happens by killing a snake's tail, no rot is created, by killing a snake, the serpent takes revenge, this is also a rumor, nothing like this happens. They are creatures, not humans, their lives are spent only in filling their stomach, not in maintaining enmity; Stay away from these rumors, yet they should not be killed as far as possible; Try your best to save. If you have read the post completely, then a lot Many thanks~
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क्या भूत होते हैं या नहीं?do ghosts exists or not?
****क्या भूत होते हैं***
यह विषय हमेशा से ही मानव इतिहास का बड़ा ही रोचक रहा है इस पर अनेको बार बहस छिड़ चुकी है,परन्तु लोग अभीतक यह सवाल पूछते हैं कि क्या भूत होते हैं? मेरा इस पर क्या रिसर्च है आज इसका मैं पर्दाफाश करूंगा,मेरी ये कोशिश है कि आपको इस अंधविश्वास के दलदल से निकाल पाऊं, ताकि आप सुखी,निडर जीवन जी सकें।
आप सबको पता होगा कि भूत का अर्थ होता है बीता हुआ, जो बीत चुका है उसी को भूत कहते हैं।भूत के बारे में लोगों का कई प्रकार का मत है कुछ लोग भूत के अस्तित्व से साफ इंकार करते हैं, तो दूसरी तरफ कुछ लोग पक्का मानते हैं कि भूतों का अस्तित्व है; वहीं तीसरी तरफ कुछ लोग भूत को एक ऊर्जा की तरह मानते हैं इनमें पैरानार्मल इन्वेस्टिगेटर लोग आते हैं।जो इन्फ्रारेड वायस को सुनकर भूतों के अस्तित्व पर मुहर लगाते हैं।
इन भूतों से डराने में सबसे बड़ी भूमिका यदि किसी की है तो वो है हारर फिल्मों, सीरियलों और कहानियों की। जब भी कोई इंसान भूत का नाम सुनता है या मन में कल्पना करता है तो वही टीवी वाला भूत नजर के सामने आ जाता है;कभी कभी ये डर इतना हावी हो जाता है कि व्यक्ति डर कर बेहोश हो जाता है यहां तक कि कुछ मामलों कई लोगों की जान भी जा चुकी है।यह कुछ नहीं सिर्फ दिमाग की फिजूल कल्पना का नतीजा है। हमारा दिमाग बहुत शक्तिशाली है वैज्ञानिक रिसर्च में ये सामने आया है कि जब कोई इंसान अंधेरे में या वैसे ही काफी एकाग्र होकर अपनी कल्पनाशक्ति से जो चित्र दिमाग में बनाता है वही सामने दिखाई पड़ने लगता है,भूत से डरने वालों के साथ यही होता है।अर्थात यहाँ से ये बात समझ आती है कि मनुष्य की कल्पनाशक्ति इतनी प्रबल है कि वो अंधेरे में भूत जैसा चेहरा प्रकट कर सकती है।
जो लोग जवानी में ही किसी दुर्घटनावश या बीमारी से मर जाते हैं बताया जाता है कि वो भूत बनकर डराते हैं ऐसा मैंने कई लोगों से सुना है जबकि सच्चाई ये है कि जवान लोग अपने जीवन में काफी सक्रिय रहते हैं;इनका समाज में अपने आस पास के लोगों के पास आना जाना और मिलना जुलना लगा रहता है।इस दशा में अगर अचानक वो इंसान मर जाता है तो उसकी यादें जल्दी नहीं मिटती हैं लोगों का शरीर उन्हें महसूस करता है; खासकर घर परिवार वालों और पास पड़ोस वालों को,उसका याद आना या स्वप्न स्वाभाविक है जो कि हमेशा लोगों से मिलता जुलता था। बस इतने को लोग कहते हैं कि वो भूत बनकर आया था और मुझे डरा रहा था, फिर पंडित,ओझा,तांत्रिक,झाडझफूंक, तंत्र, मंत्र, ताबीज का खेल शुरू होता है। इसी अंधविश्वास के चक्कर में धन, समय की पर्याप्त बर्बादी होती है।महिलाओं के साथ यौन शोषण की घटनाएँ भी सामने आती हैं।बताया जाता है कि बूढ़े लोग मरते हैं तो वो भूत, प्रेत नहीं बनते हैं जबकि इसका सच ये है कि बूढ़े लोग कम सक्रिय होने की वजह से लोगों की नजर से दूर रहते हैं इस वजह से उनका जाना किसी को डरावना नहीं लगता।
ताबीज,तंत्र से कुछ नहीं होता बस जो लोग झूठ से डरे थे उन्हें ये भरोसा दिला दिया जाता है कि अब किसी प्रेत का साया तुम पर नहीं आयेगा; बस ये ताबीज गले में लटका लो। जबकि सच्चाई ये है कि भूत,प्रेत जैसा कोई साया था ही नहीं, जो चीज था ही नहीं उससे बचाने का तरीका बताते हैं ये तांत्रिक,मौलवी,ओझा जैसे धूर्त और पाखंडी लोग।
अंततः यही कहूंगा कि भूत, प्रेत, जिन्न, चुड़ैल जैसी कोई चीज नहीं होती है।जिसने भी इनको देखने का दावा किया है वो अधूरी बात करता है न तो उसके पास कोई सबूत होता है कि साबित कर दे, वो बढ़ा चढ़ाकर इसलिए झूठ को फैलाता है ताकि उसपर सबका ध्यानाकर्षण हो,उसे प्रसिद्धि मिले। कुछ तो लोगों को डराकर मजा लेने के लिए बताते हैं कि मैंने भूत देखा है; ध्यान रखिए अफवाहें बहुत तेज फैलती हैं सच बहुत देरी से पहुंचता है। क्योंकि अफवाहें मजेदार,रोचक,डरावनी,रोंगटे खड़े करने वाली होती हैं इसलिए लोग ध्यान से सुनते हैं और यकीन कर लेते हैं।
जब सच सामने आता है तो सारा चमत्कार बिल्कुल साधारण लगने लगता है क्योंकि कोई चीज तभी तक मजेदार और कौतूहल पैदा करती है जब तक वो परदे में रहती है; जैसी ही पर्दा खुल जाता है सारा कौतूहल चन्द मिनटों में खत्म हो जाता है।
'शंका ही भूत है' ये कहावत ऐसे ही प्रसिध्द नहीं है इसमें सच्चाई है आज इसी बात को वैज्ञानिकों ने भी साबित किया है।इस पोस्ट का उद्देश्य अंधविश्वास को खत्म करके लोगों के अन्दर जागरूकता का संचार करना है; भूतों के बारे में आपको क्या लगता है कमेंट करके जरूर बतायें ~ बाल वनिता महिला आश्रम
पढ़ने के लिए धन्यवाद,,
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[English translation]
****What are ghosts***
This topic has always been very interesting in human history, it has been debated many times, but people still ask this question, are there ghosts? What is my research on this, today I will expose it, it is my effort to get you out of this superstition quagmire, so that you can live a happy, fearless life.
You all will know that the meaning of ghost is past, that which has passed is called ghost. People have many types of opinion about ghost, some people clearly deny the existence of ghost, on the other hand some people firmly believe that ghosts exist; On the other hand, some people consider ghosts as an energy, in which paranormal investigators come. Those who listen to the infrared voice and stamp the existence of ghosts.
If anyone has the biggest role in scaring these ghosts, it is that of horror films, serials and stories. Whenever a person hears the name of a ghost or imagines it in the mind, the same TV ghost comes in front of sight; Sometimes this fear becomes so dominant that the person becomes unconscious due to fear, even in some cases many People's lives have also been lost. This is nothing but the result of the fuzzy imagination of the mind. Our brain is very powerful, it has come to the fore in scientific research that when a person becomes very concentrated in the dark or similarly, the picture that he creates in the mind with his imagination, the same thing happens to those who are afraid of ghosts. That is, from here it is understood that the imagination of man is so strong that it can reveal a face like a ghost in the dark.
People who die in their youth due to some accident or disease, it is said that they scare as ghosts, I have heard this from many people, while the truth is that young people are very active in their life; People keep coming and going and meeting. In this condition, if that person dies suddenly, then his memories do not fade away quickly; people's body feels them; Especially for family members and close neighbors, it is natural to remember or dream of him which was always similar to the people. Just so many people say that he had come as a ghost and was scaring me, then the game of pandit, exorcist, tantrik, flicker, tantra, mantra, amulet starts. In this superstition, there is a substantial waste of money, time. Incidents of sexual abuse with women also come to the fore. It is said that when old people die, they do not become ghosts, whereas its truth is that old people Due to being less active, they stay away from the eyes of the people, because of this no one finds their departure scary.
Nothing happens with amulets, tantras, only those who were afraid of lies are assured that now the shadow of any ghost will not come on you; Just hang this amulet around your neck. Whereas the truth is that there was no shadow like ghost, phantom, these sly and hypocritical people like tantrik, cleric, exorcist, tell how to save from what was not there.
Ultimately I will say that there is no such thing as a ghost, a phantom, a jinn, a witch. Whoever claims to have seen them talks incompletely, neither does he have any evidence to prove it, that is why he exaggerates the lie. Spreads so that everyone's attention is on him, he gets fame. Some people tell people to have fun by intimidating that I have seen a ghost; Remember, rumors spread very fast, the truth reaches very late. Because rumors are funny, interesting, scary, goosebumps, people listen carefully and believe them.
When the truth comes out, the whole miracle seems quite ordinary because something creates fun and curiosity as long as it remains on the screen; As soon as the curtain is opened, all the curiosity ends in a few minutes.
This proverb 'doubt is ghost' is not as famous as this, it has truth in it. Today, scientists have proved the same thing. The purpose of this post is to spread awareness among people by eliminating superstition; What do you think about ghosts, do tell by commenting
वनिता कासनियां पंजाब
thanks for reading,
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गुरुवार, 24 जून 2021
स्वर्ग-नरक क्या है? what is heaven and hell?
-----स्वर्ग नरक क्या है-----
धार्मिक लोगों के जहन में यह धारणा अभी तक बनी हुई है।उन्हें लगता है कि स्वर्ग और नरक जैसा भी कुछ है जहां उन्हें अपने बुरे कर्मों की सजा और अच्छे कर्मों का इनाम मिलता है। आज इस बारे में पड़ताल करेंगे कि आखिर स्वर्ग-नरक क्या है? यह धारणा लोगों के बीच में क्यों और कैसे आई?
शुरूआत में जब इंसान आदिम(जंगली) अवस्था से निकलकर सामाजिक प्राणी बना तो इंसानों के झुंड में अच्छे लोगों के साथ-साथ कुछ जिद्दी,गुंडे,निर्दयी टाइप के दरिंदे भी थे जो कि दूसरों को कष्ट पहुंचाकर और प्रताड़ित करके उनका हक छीनते थे।हालांकि उस समय कानून, प्रशासन जैसा कोई नियंत्रण स्थापित नहीं था।इस वजह से अपराधी मनबढ़,स्वतंत्र और निडर होकर अपराध करते थे।इन अपराधिक गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए नरक का डर दिखाना शुरू किया गया। जैसा जघन्य अपराध वैसा ही भयंकर नरक बताया गया,ताकि अपराधियों के मन में खौफ हो और वो अपराध करना बन्द कर दें। इस तरह नरक की धारणा समय के साथ लोगों के बीच दृढ़ हो गयी।
जो लोग नेक,अच्छा कार्य कर रहे थे उनको प्रोत्साहित करने के लिए स्वर्ग का लालच दिया गया ताकि वो अपना स्वभाव न बदलें;परोपकार और भलाई का काम जीवनपर्यन्त करते रहें।
स्वर्ग की धारणा लोगों के बीच में आने का एक कारण और है।जो लोग अपना यह जीवन दुखों और कष्ट से गुजार रहे थे या यूं कहें कि जो लोग अपना जीवन कष्टमय बना लिये थे। उन्हें यह प्रलोभन दिया गया कि आपको यहाँ से जाने के बाद स्वर्ग मिलेगा जहां आप अपनी मनपसंद चीजेँ, खाना, पहनना, घूमना, सेक्स करना, शराब आदि सभी भौतिक सुख का आनंद सदैव उठायेंगे।वहाँ किसी भी प्रकार के दुख और समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा।ऐसा इसलिए किया गया ताकि वह इंसान जो ठीक से जी नहीं सका वो शांति और चैन से मर सके। इसके पीछे दूसरा कारण था 'अपना धंधा चमकाना' पाखंडी और धूर्त स्वर्ग दिलाने के नाम पर अपना पेट भरने लगे;इस तरह इस धारणा को पीढ़ी दर पीढ़ी लगातार आगे बढ़ाया गया।यह काल्पनिक धारणा और धंधा जनमानस के बीच अभी स्थापित है।
मेरा मानना ये है कि जो लोग वास्तव में अच्छे हैं वो बिना स्वर्ग के प्रलोभन के दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करते हैं। दरहकीकत वही लोग अच्छे हैं जो बगैर इनाम की परवाह किये दूसरों के साथ अच्छा, नेक और परोपकार का कार्य करते हैं। वहीं दूसरी तरफ अपराधियों की बात करें तो उन्हें नरक का भय तो बिल्कुल भी नहीं है।जो डर है भी तो वो कानून का डर है जिसकी वजह से अपराध पर पूरा तो नहीं पर काफी हद तक नियंत्रण है।आप वैसे ही कल्पना कीजिए कि जब स्वर्ग नरक का डर लोगों में होता तो कानून बनाने की जरूरत ही क्यों पड़ती? ये तरीका वर्तमान समय में सिर्फ ठगने, लूटने का जरिया बनकर रह चुका है।वास्तविकता के धरातल पर जीने वाले लोग स्वर्ग,नरक की इन कल्पनाओं से बाहर आ चुके हैं। अब आपकी बारी है,ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं स्वर्ग और नरक के बारे में आपको क्या लगता है कमेंट करके जरूर बतायें वनिता कासनियां पंजाब
पढ़ने के लिए धन्यवाद,
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{English translation}
----------what is heaven hell------------
This belief remains in the mind of religious people till now. They think that there is something like heaven and hell where they get punishment for their bad deeds and reward for good deeds. Today we will investigate about what is heaven and hell? Why and how did this notion come among the people?
In the beginning, when humans came out of the primitive (wild) state and became a social animal, there were good people in the herd of human beings along with some stubborn, hooligans, ruthless type of rogues who snatched their rights by harassing and harassing others. However, at that time no control like law, administration was established. Because of this the criminals used to commit crimes without fear, fear and fear. To control these criminal activities, fear of hell was started to be shown. As a heinous crime, the same terrible hell was told, so that the criminals should have fear and stop committing the crime. In this way the notion of hell became firm among the people over time.
Heaven was tempted to encourage those who were doing righteous, good deeds so that they would not change their nature; continue to do charity and good deeds throughout their lives.
The concept of heaven is another reason to come among the people. Those who were passing their life through sorrows and troubles or rather those who had made their life difficult. They were tempted that after leaving here you will get heaven where you will always enjoy all the material pleasures of your choice, eating, wearing, walking, having sex, alcohol etc. There will not be any kind of suffering and problem. This was done so that the person who could not live properly could die peacefully and peacefully. The second reason behind this was 'to shine your business' hypocrites and rascals started filling their stomach in the name of getting heaven; In this way this notion was continuously carried forward from generation to generation. This imaginary notion and business is still established among the public.
I believe that people who are really good treat others well without being tempted by heaven. Only those people are good who do good, noble and benevolent work with others without caring about the reward. On the other hand, when we talk about criminals, they have no fear of hell at all. Whatever fear is there, it is fear of law, due to which crime is not completely controlled but to a great extent. Imagine in the same way that when If people were afraid of heaven and hell, then why would there be a need to make laws? In the present time, this method has remained only as a means of cheating, robbing. People living on the surface of reality have come out of these fantasies of heaven and hell. Now it's your turn, this is my personal opinion, what do you think about heaven and hell, please tell by commenting~ Saurabh
thanks for reading,
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गुरुवार, 3 जून 2021
नास्तिक बनने के दस फायदे।Ten benefit of becoming an atheist.
ज्यादातर धार्मिकों का ये सवाल रहता है कि वो नास्तिक क्यों बनें? नास्तिक होने से क्या फायदा है।आज इस लेख में मैं नास्तिक होने के फायदे के बारे में आपको बताऊंगा-
1.आत्मनिर्भर जीवन:- ईश्वर ,अल्लाह ,गाड और किस्मत,भाग्य,नसीब के जंजाल से छुटकारा मिल जाता है।खुद पर तथा अपने कर्म,बाहुबल पर भरोसा करना आ जाता है।
2.भूत ,प्रेत,चुड़ैल,जिन्न से छुटकारा:- नास्तिक बनने के कुछ दिनों बाद आपको भूत प्रेत जिन्न शैतान आदि से बिल्कुल छुटकारा मिल जाता है।ये याद कराने पर याद आता है कि भूत,प्रेत,जिन्न भी होते हैं।भूत पकड़ने का डर समाप्त हो जाता है रात में कहीं भी आओ जाओ कोई डर नहीं रहता।
3.नजर टोने,टोटके,तंत्र ,मंत्र,चमत्कार से छुटकारा:- नास्तिक बनने के बाद से नजर,टोना,टोटका,तंत्र,मंत्र का प्रभाव होना समाप्त हो जाता है।अब आप बेफिक्र होकर बिना डरे कहीं भी आ जा सकते हैं।खाने पीने में भी आप मजे से खा पी सकते हैं।
4.पूजा,पाठ,आरती,यज्ञ,हवन,से छुटकारा:- नास्तिक बनने के बाद आप इन फिजूल के कामों को करने से बच जाते हैं और यही समय आप अपने आप को बेहतरीन बनाने में,जीवन को मस्ती से बिताने में लगा देते हैं।
5. ग्रह,नक्षत्र,शनि,राहु,केतु से छुटकारा:- नास्तिक बनने के बाद आप पर शनि,राहु,केतु ग्रहों के घातक प्रभाव से बच जाते हैं और आपका ढेर सारा पैसा और समय बच जाता है।
6. फालतू की परम्पराओं,प्रथाओं,रूढ़िवादियों से छुटकारा :- नास्तिक बनने के बाद आप वही करेंगे जो अच्छा और जरूरी हो,दूसरों के कहने पर या समाज के प्रभाव में आकर पाखंड करना नास्तिकता की श्रेणी में नहीं आता है।
7. पर्याप्त धन,समय, और ऊर्जा की बचत:- नास्तिक बनकर आप अपना काफी पैसा,समय और ऊर्जा बचा लेते हैं; यह आपके जीवन को बेहतर और खुशहाल बनाने में लगा देते हैं।
8.जीवन जीने की भरपूर आजादी:- नास्तिक बनने के बाद आप अपने जीवन को पूरी आजादी,उल्लास और हर्ष के साथ जी पाते हैं,क्योंकि अब आप सभी मानसिक गुलामी को छोड़ चुके होते हैं। तंत्र ,मंत्र,नजर,टोना,टोटका,काला जादू,भूत,प्रेत,जिन्न,राहु,केतु,शनि, आदि बलाओं से मुक्त निडर होकर जीने लगते हैं।
9. आस पास की घटनाओं को जानने की सही समझ विकसित होना:- नास्तिक बनने के बाद आप वैज्ञानिक तरीके से सोचना शुरू कर देते हैं,किसी भी घटना का असली कारण क्या है ये जानने का स्वभाव आ जाता है।सूर्यग्रहण,चन्द्रग्रहण जैसी वैज्ञानिक घटनाओं को जानना शुरू कर देते हैं।कुल मिलाकर कहें तो आप सत्य तक पहुंचने की कोशिश करते हैं।
10. बाबाओं,तांत्रिकों,पंडित,मौलवी,फकीर से छुटकारा:- नास्तिक बनने के बाद आप ढोंगी बाबाओं,तांत्रिकों और पंडित,पुजारियों के जंजाल से मुक्त हो जाते हैं।आये दिन खबर आती रहती है कि 'फला बाबा लड़कियों के यौन शोषण के जुर्म में गिरफ्तार' ये सच है ।लगभग 99% बाबा महिलाओं का शोषण करने,धन कमाने की लालच में आकर ये पाखंड का धन्धा शुरू कर देते हैं।आस्थावान और मानसिक गुलाम पुरूष महिला इनके पाखंड का शिकार बन जाते हैं।
नास्तिक बनने के और भी फायदे हैं इसे पढ़ने के लिए हमारे ब्लाग के और पोस्ट देखें।
धन्यवाद,,
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[English translation]
The question of most religious people remains that why should they become an atheist? What is the benefit of being an atheist. Today in this article I will tell you about the benefits of being an atheist-
1. Self-reliant life: - One gets rid of God, Allah, Gad and the chains of luck, fortune, luck. It comes to rely on oneself and one's own karma, muscle power.
2. Get rid of ghosts, phantoms, witches, jinns:- After a few days of becoming an atheist, you get absolutely rid of ghosts, ghosts, jinn, devil etc. On remembering this, you remember that there are ghosts, ghosts, jinns too. Ghosts The fear of being caught ends, come anywhere in the night and there is no fear.
3. Get rid of sorcery, tricks, tantra, mantra, miracle:- After becoming an atheist, the effect of sight, sorcery, trick, tantra, mantra ceases to exist. Now you can come anywhere without any fear. You can eat and drink with pleasure even while eating and drinking.
4. Worship, recitation, aarti, yajna, havan, get rid of:- After becoming an atheist, you are saved from doing these useless things and this time you spend in making yourself the best, spending life with fun Huh.
5. Get rid of planets, constellations, Saturn, Rahu, Ketu:- After becoming an atheist, you are saved from the harmful effects of planets Saturn, Rahu, Ketu and you save a lot of money and time.
6. Get rid of unnecessary traditions, customs, orthodoxy: - After becoming an atheist, you will do what is good and necessary, doing hypocrisy at the behest of others or coming under the influence of society does not come under the category of atheism.
7. Save enough money, time, and energy:- By becoming an atheist you save yourself a lot of money, time and energy; They invest in making your life better and happier.
8. Full freedom to live life:- After becoming an atheist, you are able to live your life with complete freedom, gaiety and joy, because now you have left all mental slavery. Tantra, Mantra, Eye, Sorcery, Toka, Black magic, Ghost, Phantom, Jinn, Rahu, Ketu, Shani, etc. start living fearlessly.
9. Developing the right understanding of knowing the events around:- After becoming an atheist, you start thinking in a scientific way, the nature of knowing what is the real reason of any event comes. Scientists like solar eclipse, lunar eclipse Let's start knowing the events. On the whole, you try to reach the truth.
10. Get rid of Babas, Tantriks, Pandits, Maulvi, Mystics:- After becoming an atheist, you are freed from the web of hypocritical Babas, Tantriks and Pandits, Priests. The news keeps coming every day that 'Fala Baba sexually abuses girls' Arrested in the crime of 'This is true. About 99% Baba, in the greed of exploiting women, earning money, they start the business of hypocrisy. Faithful and mental slave men and women become victims of their hypocrisy.
To read more benefits of becoming an atheist, visit our blog.
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शुक्रवार, 28 मई 2021
किस्मत क्या है? What is luck?
----------किस्मत क्या है-----------
धार्मिक बहसंख्यकों को लगता है कि जो कुछ भी अच्छा या बुरा होता है उसके पीछे ईश्वर का हाथ है अर्थात् किसी सर्वशक्तिमान सत्ता के द्वारा पहले से ही यह तय हो चुका है कि अमुक इंसान के साथ क्या होगा? आज के लेख में हम विस्तार से इसकी पड़ताल करेंगे कि आखिर ये किस्मत,भाग्य,नसीब क्या है? और यह कैसे काम करता है।
मजे की बात तो ये है कि ये किस्मत वाली अवधारणा वहीं काम करती है जहां व्यक्ति प्रयासरत रहता है। इसका उदाहरण लेते हैं -- एक लड़का जो सरकारी नौकरी पाने के लिए खूब पढ़ाई करता है,एक दिन वह नौकरी पा जाता है। तो वो लोग जो पढ़े थे और असफल रहे ;उनकी नजरों में वो किस्मतवाला माना जायेगा। उसने कितनी मेहनत और संघर्ष से वह मुकाम हासिल किया,ये शायद वही बेहतर तरीके से जानता है बाकी लोग तो सिर्फ अंदाजा लगाते हैं। हमारे यहाँ बच्चों को बचपन से इस तरह से ब्रेनवाश किया जाता है कि वो हर चीज में भगवान और किस्मत घुसेड़ने लगते हैं, खुद 16 घंटे मेहनत करते हैं और पास होने पर भगवान और किस्मत का शुक्रिया अदा करते हैं।किस्मत और भगवान का करिश्मा तब माना जाएगा जब कोई बच्चा बिना पढ़े सिर्फ भगवान में और किस्मत पर श्रद्धा रखकर पास हो जाये; क्या ऐसा संभव है? यदि नहीं, तो फिर किस्मत और भगवान का क्या प्रयोजन है। जब सारा कुछ खुद के बाहुबल और संघर्ष के बलबूते मिलने वाला है तो किस्मत और भगवान का क्या मतलब निकला।
अपनी कमजोरियों और असफलताओं का दर्द खुद को न झेलना पड़े बस इसी फायदे के चलते सारा दोष किस्मत पर मढ़ दिया जाता है। ऐसा बताने से सामने वाले से सहानुभूति मिल जाती है और ऐसा मालूम होता है मानो घाव पर मरहम लग गया है। ये सहानुभूति पाने की आदत एक दिन इंसान को बर्बाद कर देती है, क्योंकि असफल लोग दुनिया में कमी खोजते हैं और सफल लोग अपनी कमी को स्वीकार कर सुधार करते हैं। यदि कोई व्यक्ति बिना किस्मत का सहारा लिये सही दिशा में कार्य करता है तब भी परिणाम अच्छा आयेगा, जबकि बिना कार्य किये किस्मत का सहारा लेके बैठा रहे तो कुछ भी बदलाव नहीं होने वाला है। कार्य,संघर्ष और प्रयास करते रहने से ही सफलता मिलती है किस्मत से नहीं।मैनें कहीं चार लाइने पढ़ी थी कि "किस्मत हाथ की लकीरों में नहीं, बल्कि माथे के पसीने में होती है" 'हाथ की लकीरों के सहारे बैठने से कुछ हाथ नहीं आने वाला है'।जब अपने बाजुओं पर से यकीन उठ जाता है तभी भगवान और किस्मत नजर आता है'।
मेहनत,प्रयास और संघर्ष करने वाले के साथ दो परिणाम होता है पहला या तो असफलता मिलेगी, दूसरा या तो सफलता मिलेगी।जबकि किस्मत के सहारे बैठने वाले का परिणाम पहले से तय है कि उसे असफलता ही मिलेगी। सफलता का रास्ता असफलता की सीढ़ी से चलकर मिलता है क्योंकि असफलता से सीख मिलती है तथा ये समझ आता है कि गलती कहाँ हुई; फिर उन्हीं गलतियों को सुधार लिया जाता है। पहली बात ये कि- किस्मत जैसी कोई चीज नहीं होती है यानि कि पहले से कुछ भी तय नहीं है कि क्या-२ होगा। फिर भी जिनको लगता है कि किस्मत है तो उनसे गुजारिश है कि अच्छा और किस्मतवाला बनने का सिर्फ एक ही रास्ता है वो है - लगन, संघर्ष, प्रयास और मेहनत; लगे रहिए और तब तक न रूकिए जब तक सफलता न मिल जाए।ढाई अच्छर के भाग्य, तीन अछर के नसीब और साढे़ तीन अक्षर के किस्मत पर चार अक्षर का मेहनत भारी पड़ता है। ऐसी ही जानकारी भरे लेख पढ़ने के लिए हमारे ब्लाग पर विजिट करें।
धन्यवाद,,
साभार:- वनिता कासनियां पंजाब पाठक 'स्वतंत्र
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[English translation]
--------- What is Luck ----------
Religious majorities feel that whatever is good or bad is the hand of God, that is, it has already been decided by an almighty authority that what will happen to such a human being? In today's article, we will examine in detail what is this fate, luck, luck? And how does it work. The interesting thing is that this fortunate concept works only where the person is trying. Let's take an example of this - a boy who studies a lot to get a government job, one day he gets a job. So those people who studied and failed will be considered lucky in their eyes. With the hard work and struggle he achieved, he probably knows it better only the rest of the people only guess. Our children here are brainwashed from childhood in such a way that they start infusing God and luck in everything, working themselves for 16 hours and thanking God and luck when they pass. Kismet and God's charisma It will be considered when a child passes away without studying, only with reverence in God and luck; Is it possible? If not, then what is the purpose of luck and God. When Sara is going to get something of her own strength and struggle then what is the meaning of luck and God. You do not have to bear the pain of your weaknesses and failures, because of this benefit, all the blame is put on luck. By telling this one gets sympathy from the front and it seems as if the wound has been healed. This habit of seeking sympathy ruins a human being one day, because unsuccessful people discover a deficiency in the world and successful people improve by accepting their deficiency. If a person works in the right direction without resorting to luck, then the result will be good, while sitting without resorting to luck without working, nothing is going to change. Success comes only by working, striving and trying, not by luck. I had read somewhere four lines that "luck is not in the lines of the hand, but in the sweat of the forehead" It is about to come '. When you lose faith in your arms, then only God and luck are seen' There are two results with hard work, effort and struggle. First one will either fail, second one will get success. While the result of the person sitting on luck is predetermined that he will get failure. The path to success is found by walking down the ladder of failure because failure leads to learning and understanding where the mistake occurred; Those same mistakes are then rectified. The first thing is that there is no such thing as luck, that is, nothing is decided in advance that what will happen. Still, those who feel that if there is luck, then there is only one way to ask that there is only one way to become good and lucky - passion, struggle, effort and hard work; Keep going and do not stop until success is achieved. The hard work of four letters is more than the fate of good, three luck and three and a half letters. To read articles filled with similar information, visit our blog.
Thank you,,
Credits:- Vnita kasnia Pathak 'The Independent'
पर मई 28, 2021 कोई टिप्पणी नहीं:
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लेबल: किस्मत, भाग्य, kismat kya hai
गुरुवार, 20 मई 2021
लड़कियां छोटे कपड़े क्यों पहनती हैं?Why do girls wear short dresses?
लड़कियां छोटे कपड़े क्यों पहनती हैं?
--------- लड़कियां छोटे कपड़े क्यों पहनती हैं?--------
यह समाज में चर्चित ज्वलन्त मुद्दा है, भारतीय संस्कृति के ठेकेदार आये दिन लड़कियों के पहनावे पर सवाल उठाते रहते हैं।घर की महिलाएं क्या पहनें इसको पहले से ही निर्धारित कर चुके हैं। आइये जानते हैं कि लड़कियां छोटे कपड़े या जींस क्यों पहनती हैं।
हर किसी का ये सपना होता है कि वह अपनी खूबसूरती को सबके सामने दिखा सके, फिर चाहे वो कोई पुरूष हो या महिला; ठीक ठाक बाडी वाले पुरूष अक्सर टीशर्ट पहनते हैं ताकि लोग उनका मजबूत सुडौल हाथ और कंधा देख सकें। इसी प्रकार लड़कियों के मन में भी ये उत्सुकता होती है कि वो खुद को इस प्रकार दिखायें ताकि लोग आकर्षित हों, और उनकी खूबसूरती को देख सकें।इसी वजह से लड़कियां छोटे कपड़े पहनती हैं; इसमें कोई बुराई वाली बात नहीं है।
दूसरी वजह ये है कि ये छोटे कपड़े बहुत आरामदायक होते हैं, खासकर गर्मियों में इन कपड़ों को पहनकर महिलाएं अपने आपको हल्का और स्वतंत्र महसूस करती हैं। साड़ी, सूट और बुर्का पहनकर रहना बहुत मुश्किल है क्योंकि ये कपड़े पूरे शरीर को ढक लेते हैं; जिससे चलने फिरने, घूमने में असुविधा होती है। संस्कृति,परम्परा और इज्जत का नाम देकर महिलाओं की आजादी छीनकर उनका शोषण किया जाता है।
तीसरी वजह ये है कि अब हर पल दुनिया में बदलाव हो रहा है,जब से शोशल मीडिया जैसे फेसबुक, व्हाट्स अप, यूट्यूब, टिकटाक, इंस्टाग्राम का चलन बढ़ा है तभी से ये जागरूकता दुनिया के हर कोने तक पहुंच सका है। ध्यान रखिए दुनिया हमेशा एक ही पहनावे, रहन-सहन, खान-पान नहीं हो सकता है हमेशा कुछ न कुछ बदलाव और नयापन आना स्वाभाविक है। यह ठीक उसी प्रकार है जैसे स्मार्ट फोन में हर महीने नये नये फीचर अपडेट होते हैं, इतना ही नहीं हर इलेक्ट्रॉनिक उपकरण और गैजेट का माडल आये दिन अपडेट होता रहता है। ठीक इसी प्रकार इंसानों के पहनावे में अपडेट होना स्वाभाविक है,यही नियति है;क्योंकि परिवर्तन ही संसार का सार्वकालिक नियम है। इंसान अपना रहन सहन अपडेट कर लिया,पहले गुफाओं फिर झोपड़ियों और अब पक्के मकानो में रहता है। खानपान अपडेट हुआ, पहले इंसान पेड़ की पत्तियों,फलों और जड़ों को खाता था फिर धीरे-२ अनाज उगाकर खाने लगा; इस प्रकार परिवर्तन हमेशा होता आया है और आगे भी आने वाले समय में आता रहेगा।इस परिवर्तन को स्वीकारिए,नकारिए मत। हमें उम्मीद है कि आपको समझ आ गया होगा कि लड़कियां छोटे कपड़े क्यों पहनती हैं। छोटे कपड़े से रेप भावना को बढ़ावा नहीं मिलता, क्योंकि सभी विकसित देशों जैसे अमेरिका, न्यूजीलैंड,इग्लैंड,फ्रांस आदि देशों में लड़कियां सार्वजनिक स्थानों पर बिकिनी और छोटे कपड़े पहनकर घूमती हैं;जबकि वहाँ रेप प्रतिशत नाममात्र है।बलात्कार करने के पीछे छोटे कपड़ें नहीं बल्कि अन्य कई बातें उत्तरदायी हैं इस पर मैनें एक लेख लिखा है इसे आप हमारे ब्लाग पर पढ़ सकते हैं।
धन्यवाद,,
लेखक~बाल वनिता महिला आश्रम पाठक 'स्वतंत्र'
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[English translation]
Why do girls wear short dresses?
--------- Why do we wear short clothes? --------
This is a burning issue in the society, the contractors of Indian culture keep on questioning the dress of girls every day. The women of the house have already determined what to wear. Let us know why girls wear short dresses or jeans. Everyone has a dream that he can show his beauty in front of everyone, whether he is a man or a woman; Fine-bodied men often wear t-shirts so that people can see their strong and handsome shoulders and shoulders. Similarly, there is an eagerness in the minds of girls to show themselves in such a way that people are attracted, and can see their beauty. This is why girls wear short dresses; There is nothing wrong with this. The second reason is that these short dresses are very comfortable, especially in summer, women feel light and independent by wearing these clothes. Wearing saris, suits and burqas is very difficult because these clothes cover the entire body; Which causes discomfort in walking, walking. Women are exploited by stripping them of their freedom by naming culture, tradition and respect. The third reason is that now the world is changing every moment, ever since the trend of social media like Facebook, Whats Up, YouTube, Ticketak, Instagram has increased, since then this awareness has reached every corner of the world. Keep in mind that the world cannot always be the same dress, way of life, food and food, it is always natural to have some change and newness. This is just as new features are updated every month in smart phones, not only that the model of every electronic device and gadget gets updated every day. In the same way, it is natural for humans to be updated in the dress, this is the destiny; because change is the everlasting rule of the world. Humans updated their standard of living, first lived in caves, then in huts and now in pucca houses. Catering was updated, first humans used to eat the leaves, fruits and roots of the tree, then slowly grew 2 grains and started eating; In this way, the change has always been and will continue to come in the future. Accept this change, do not deny it. We hope you have understood why girls wear short dresses. Short clothing does not encourage rape, as girls in all developed countries such as America, New Zealand, England, France, etc. roam around in public places wearing bikinis and short dresses; while there is a nominal rape percentage. But many other things are responsible, I have written an article on it, you can read it by visiting our blog.
Thank you,,
Author ~ Vnita Pathak 'Independent'
पर मई 20, 2021 कोई टिप्पणी नहीं:
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मंगलवार, 18 मई 2021
शिक्षा व्यवस्था कैसा होना चाहिए?What should the education system be like?
--------हमारी शिक्षा व्यवस्था कैसी होनी चाहिए--------
आये दिन हर कोई भारत की बदहाली के पीछे शिक्षा व्यवस्था को दोषी बता रहा है, आज हम इसके विवेचना करेंगे कि क्या वास्तव में हमारी शिक्षा प्रणाली इतनी खराब है? दूसरा सवाल कि क्या शिक्षा सिर्फ नैतिक होनी चाहिए या रोजगारपरक? आइये जानते हैं।
किसी देश की बदहाली और खुशहाली में शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान है।वास्तव में शिक्षा मानवजाति के शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक और आर्थिक सर्वांगीण विकास करने वाली होनी चाहिए।किसी एक उद्देश्य को पूरा करने वाली शिक्षा अपूर्ण मानी जायेगी, क्योंकि यही एक ऐसी व्यवस्था है जिसका लाभ सिर्फ मानव ले सकता है। शिक्षा को बेहतर ढंग से सिर्फ इंसान ही ग्रहण कर सकता है,क्योंकि इंसान भाषा के माध्यम से अपने मन की बातों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष माध्यम से दूसरों तक लिखकर या बोलकर पहुंचा सकता है।
हमारे देश में दी जाने वाली शिक्षा अंग्रेजों की दी हुई प्रणाली पर आधारित है, जो कि सैकड़ों सालों से एक ही ढर्रे पर चल रही है इसमें कुछ खास बदलाव होता हुआ नहीं दिखाई पड़ रहा है ।ये रट्टामार शिक्षा प्रणाली बच्चों का कुछ भला नहीं कर सकती,ध्यान रहे कि हम इंसान हैं रोबोट नहीं। मेरा मानना है कि शुरूआती शिक्षा जो कि प्राथमिक और जूनियर स्तर पर दी जाती है उसे इसी ढंग से देना चाहिए जैसा कि दिया जा रहा है,क्योंकि आठवीं कक्षा तक बालक मुख्य रूप से हिंदी, अंग्रेज़ी और स्थानीय भाषाओं का ज्ञान ही प्राप्त कर पाता है। यदि तीक्ष्ण बुद्धि,लगन वाला बच्चा है तो वो पांचवी तक पहुंचते-२ इन भाषाओं को जान जाता है,फिर भी मैने सभी बच्चों का औसत लिया है इसलिए जूनियर स्तर तक ठीक रहेगा।
बच्चों की शुरूआती शिक्षा शारीरिक, नैतिक, मानसिक विकास को ध्यान में रखते हुए दी जानी चाहिए; जो कि हमारे देश में चल रही है। समस्या इस बात की है कि यही रट्टामार शिक्षा मैट्रिक और माध्यमिक कक्षाओं में भी दी जा रही है,जिसका कोई फायदा नहीं है। भारत में पढ़ा हुआ बच्चा 12वीं पास तो कर लेता है,किन्तु उसे ऐसी शिक्षा नहीं दी जाती कि वह अपनी आजीविका भी चला सके,अपना जेब खर्च निकाल सके।आप खुद सोचिए कि जो बच्चा 18 साल का हो रहा है उसे इतना तो कौशल होना ही चाहिए ताकि वह आगे अपना खर्च वहन कर सके। यहीं पर हमारी शिक्षा प्रणाली असफल साबित हुई है।
केवल भाषा और संस्कार सीख लेने से जीवन नहीं चलता, जीवन चलाने के लिए तकनीकी कौशल होना बेहद जरूरी है। आठवीं कक्षा के बाद बच्चों को औपचारिक शिक्षा के साथ-२ किसी भी तकनीक या ऐसे कौशल की शिक्षा जरूर देना चाहिए ताकि वह बालक या बालिका 18 वर्ष की आयु तक स्वावलंबी और स्वरोजगार परक बन सके। इसके लिए सिर्फ इतना करना है कि सिलेबस के साथ-२ तकनीकी शिक्षा को भी अनिवार्य कर दिया जाय, बच्चे को सिर्फ एक घंटा तकनीकी कौशल का ज्ञान अनिवार्य कर देना चाहिए ताकि भविष्य में उसे नौकरी के लिए दर-दर ठोकरें न खाना पड़े।
सवाल ये उठता है कि हमारी तकनीकी इंडस्ट्री किसी पढ़े लिखे नये अकुशल कैंडिडेट को नौकरी पर क्यों रखे? जो शिक्षा हमें दी जाती है उसका कहीं भी कोई उपयोग नहीं है। इसीलिए मेरा मानना है कि किताबी ज्ञान के साथ-२ तकनीकी कौशल की शिक्षा अनिवार्य कर देना चाहिए। तकनीकी कौशल से मेरा मतलब ऐसे ज्ञान से है जो किसी यंत्र या उपकरण को बनाना या चलाना सिखाता है।खराब कम्प्यूटर को बनाना और बने हुए कम्प्यूटर को चलाना या आपरेट करना ये दोनों बातें तकनीकी कौशल से सम्बन्धित है। अगर मैं अपनी पूरी बात को एक लाइन में समाप्त करूं तो ये है--
" शिक्षा प्रणाली ऐसी होना चाहिए जो मनुष्य का शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक और आर्थिक विकास करे"
आइये मैं इसको विस्तार से समझा देता हूं,अन्यथा बुद्धिमान लोग इसका भी गलत अर्थ निकालने में पीछे नहीं रहेंगे:--
शारीरिक शिक्षा :- शारीरिक शिक्षा का मतलब ऐसे ज्ञान से है जो शरीर को विकसित करने के लिए दिया जाना चाहिए,इसमें पी. टी. व्यायाम, योगा और ध्यान सम्मिलित है
मानसिक शिक्षा:- मानसिक शिक्षा का तात्पर्य ऐसे ज्ञान से है जो तर्कशक्ति को बढ़ा सके, निर्णय लेने की क्षमता, सही गलत को परखने की क्षमता बढा़ सके।
चारित्रिक शिक्षा:- चारित्रिक शिक्षा का तात्पर्य पर्सनैलिटी डेवलपमेंट से है,इसके अन्तर्गत बेहतर बोलने की कला, बैठने की कला, चलने की कला और समझाने की कला का विकास करना सम्मिलित है।
आर्थिक शिक्षा:- आर्थिक शिक्षा का तात्पर्य ऐसे ज्ञान और कौशल से है जो व्यक्ति को कमाने योग्य बना सके,इसके अन्तर्गत आधुनिक तकनीकी कौशल का ज्ञान देना शामिल है।
शिक्षा व्यवस्था के बारे में आपके क्या विचार हैं कमेंट में जरूर बतायें।
धन्यवाद,,
लेखक~ वनिता कासनियां पंजाब पाठक 'स्वतंत्र'
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[English translation]
------- What should be our education system --------
Everyday, everyone is blaming the education system behind India's plight, today we will discuss whether our education system is really so bad? The second question is, should education only be ethical or employable? Let's know
Education is a major contributor to the poor and prosperity of a country. In fact, education should be for the physical, mental, character and economic all round development of mankind. An education that fulfills one purpose will be considered incomplete, because such a system Which only humans can take advantage of. Only humans can accept education better, because a person can reach the words of his mind by writing and speaking to others through direct and indirect means through language.
The education imparted in our country is based on the system given by the British, which has been on the same pattern for hundreds of years, it does not seem to be changing much. These Rattamar education system does not do any good to the children. It is possible to remember that we are humans and not robots. I believe that the initial education which is imparted at the primary and junior level should be given in the same manner as it is being given, because till the eighth grade the child is mainly able to acquire knowledge of Hindi, English and local languages. . If he is a child with sharp intellect and passion, then he knows 2 languages by the time he reaches fifth, yet I have taken the average of all the children, so it will be fine till the junior level.
Early education of children should be given keeping in mind the physical, moral, mental development; Which is going on in our country. The problem is that this Rattamar education is being imparted in Matric and Secondary classes also, which is of no use. A child studying in India can pass 12th, but he is not given such an education that he can earn his living, take out his pocket money. Think yourself that a child who is 18 years old should have so much skill. It should be so that he can bear his expenses further. It is here that our education system has proved to be unsuccessful.
Life does not work only by learning language and culture, it is very important to have technical skills to run life. After the eighth grade, children should be given formal education along with 2 any technique or such skill so that the child or girl can become self-reliant and self-employed till the age of 18 years. For this, all that has to be done is to make 2 technical education compulsory along with syllabus, the child should make the knowledge of technical skills compulsory for only one hour so that in future, he will not have to stumble at any rate for the job.
The question arises that why should our technical industry hire a newly educated unskilled candidate? The education we are given has no use anywhere. That is why I believe that education of 2 technical skills along with book knowledge should be made compulsory. By technical skills, I mean knowledge that teaches how to make or operate an instrument or equipment. Making a bad computer and operating or operating a built-in computer are both related to technical skills. If I finish my whole thing in one line, then this is--
"The education system should be such that the physical, mental, character and economic development of man"
Let me explain it in detail, otherwise intelligent people will not be left behind to interpret it wrongly: -
Physical education: - Physical education means knowledge that should be given to develop the body, it includes PT exercise, yoga and meditation.
Mental education: - Mental education refers to such knowledge that can increase the reasoning, the ability to make decisions, the ability to test right and wrong.
Character education: - Character education means personality development, it includes the development of better speaking art, seating art, walking art and explaining art.
Economic education: - Economic education refers to the knowledge and skills that can make a person earnable, this includes giving knowledge of modern technical skills.
What do you think about the education system, please tell in the comment.
Thank you,,
Author वनिता कासनियां पंजाब Pathak 'Independent'
पर मई 18, 2021 कोई टिप्पणी नहीं:
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लेबल: शिक्षा व्यवस्था, Education system
मंगलवार, 11 मई 2021
डर से कैसे बचें?How to avoid fear?
------------डर से कैसे बचे-----------
एक कहावत है ना कि जब मनुष्य डरना बंद कर देता है तभी से वह जीना शुरू कर देता है। ये बात बिल्कुल सही है, असली जीवन तभी शुरू होता है जब डर का साया दिमाग से हट जाता है। वास्तव में डर का वजूद दिमाग के अलावा कहीं नहीं होता है, डर सिर्फ मनुष्य की बुरी कल्पनाओं का परिणाम है। आज हम डर से बचने के विषय में जानेंगे,और अपनी समझ को विकसित करके डर का सामना करना सीखेंगे।
डर तब लगता है जब मनुष्य को असुरक्षित महसूस होता है,हालांकि डर मनुष्य को खतरों से बचाता है परन्तु यही डर कभी कभी मनुष्य के जीवन की आजादी का कत्ल कर देता है।परिस्थितियों के अनुसार डर होना स्वाभाविक है,यह डर कुछ समय बाद समाप्त हो जाता है। इससे कोई नुकसान नहीं होता है।
डर कई प्रकार का होता है,इसमें से कुछ प्रमुख डर निम्न प्रकार के हैं :-
1.बीमारी का डर
2.असफलता का डर
3.मौत का डर
4.गरीब होने का डर
5.दुर्घटना का डर
6.बुढ़ापे का डर
ये प्रमुख डर हैं इनमें से पहला 'बीमारी का डर' है।महामारी के इस दौर में हर कोई बीमारी, या मौत के डर से जूझ रहा है। जो सुरक्षित है उसे बीमार होने का डर है और जो बीमार है उसे मौत का डर है। बीमारी का खतरनाक प्रभाव तभी पड़ता है जब भावनाएं नकारात्मक होती हैं, नकारात्मकता से बड़ी कोई बीमारी नहीं होती है। जब मनुष्य बीमारी से डरने लगता है तो बगैर किसी समस्या के वो खुद को बीमार महसूस करने लगता है।मनुष्य का मन और कल्पनाएँ उसे कुछ भी महसूस करा सकती हैं फिर चाहे वो बुरा अनुभव हो या अच्छा अनुभव।
मनुष्य के अन्दर एक ऐसी क्षमता है जो उसे सभी जानवरों से अलग करता है,वो है कल्पना करने की क्षमता और ठीक तरीके से याद करने की क्षमता।मनुष्य के अलावा धरती पर कोई और प्राणी इतने जीवन्त तरीके से कल्पना नहीं कर सकता हालांकि जानवरों और पक्षियों में बहुत थोड़ी याददाश्त होती है।
कल्पना के सहारे ही मनुष्य चांद तक पहुंच सका है इसके अलावा जितनी भी बड़ी से बड़ी खोजें हुई हैं फिर चाहे वो विद्युत बल्ब हो या हवाई जहाज हो सब शुरूआत में मानव मस्तिष्क में उपजी हैं तत्पश्चात धरातल पर उसका निर्माण हुआ है।इसी कल्पनाशक्ति के सहारे लोग न जाने कहाँ से कहाँ तक पहुंच गये हैं, जितने भी अमीर बने हैं सभी पहले कल्पना के सहारे बने हैं फिर हकीकत में वहाँ पहुंचे हैं, कहने का तात्पर्य है कि कल्पनाशक्ति मनुष्य के लिए बहुत अच्छी चीज है परन्तु रूकिए यही कल्पनाशक्ति ही डर को जन्म देती है।डर मनुष्य का शत्रु है जो कि कल्पना से जन्म लेता है।
जब मनुष्य कल्पना के सहारे अपनी पहचान ऐसी चीजों से बना लेता है जो कि वह नहीं है, यहीं से डरने की प्रक्रिया शुरू होती है। उदाहरण के लिए मान लीजिए किसी व्यक्ति को कोरोना नहीं हुआ है और वो खुद को संक्रमित मान रहा है अर्थात् वह अपनी पहचान ऐसी काल्पनिक चीज से बना रहा है जो कि वह नहीं है बस यहीं से डर की शुरुआत होती है।डर की सबसे बड़ी खास बात ये है कि इससे बचने के लिए खुद को कठोर समझने वालों को यह और ज्यादा भीषण तरीके से पीछा करती है।
अब सवाल ये आता है कि आखिर डर से कैसे बचा जाय तो इसका जवाब है स्वीकार करके, सामना करके। मान लीजिए किसी कोई सोचता है कि उसे कोरोना है तो सोचने से कुछ नहीं होता, समस्या तो तब शुरू होती है जब उस बात को मानकर डरना शुरू कर दिया जाय, क्योंकि डर की वजह से शरीर में जहर फैलता है।ऐसे हार्मोन स्रावित होते हैं जो मनुष्य को दु:खी और चिन्तित कर देते हैं। डर से चिन्ता का जन्म होता है उसके बाद शरीर में ऐसे जहर हार्मोन रिलीज होते हैं जो मनुष्य को मृत्यु की ओर ले जाते हैं। नकारात्मक विचार आने पर सिर्फ इतना करना है कि उसे सिर्फ एक विचार मानकर छोड़ देना है, किसी काल्पनिक समस्या को मन में पहले से ही सोच लेने से डर का जन्म होता है।समस्या जब आएगी तब उसका सामना किया जाएगा,पहले से सोचकर उस समस्या के न होने पर भी समस्या का अनुभव होना शुरू हो जाएगा।यदि किसी को वास्तव में बीमारी हो जाती है तो क्या वह खाली बैठेगा? जी नहीं,वो तुरन्त दौड़भाग करके उसका इलाज खोजेगा और करेगा।इसलिए यदि कोई नकारात्मक काल्पनिक विचार आता है तो उसे त्यों ही छोड़ना न्यायोचित है क्योंकि ऐसे विचारों का जन्म लेना स्वाभाविक है।समस्या तब है जब उस विचार के पल्ले पड़कर अपनी समय और ऊर्जा व्यर्थ किया जाय।
नकारात्मक काल्पनिक विचारों से बचने का दूसरा रास्ता है कि खुद को व्यस्त रखा जाय,इतना व्यस्त कि कभी भटककर भी ध्यान कहीं और न जाए। जब अपने जीवन में कोई लक्ष्य होता है तो व्यक्ति स्वयमेव मन लगाकर उसे हासिल करने में लग जाता है।इससे मन में ऊर्जा, उत्साह बना रहता है।जिसके जीवन का कोई निश्चित उद्देश्य नहीं होता है वही डर के जाल में उलझा हुआ घुट घुटकर जीता है,तो आज ही अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारित कीजिए और लग जाइये उसे पूरा करने में।अगले भाग में अलग-२ प्रकार के डर से बचने के उपाय के बारे में चर्चा किया जाएगा।
~धन्यवाद
लेखक: वनिता कासनियां पंजाब पाठक 'स्वतंत्र'
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[English translation]
------------ How to avoid fear -----------
There is a saying that when a person stops being afraid, then he starts living. This is absolutely true, real life begins only when the shadow of fear is removed from the mind. In fact, fear does not exist anywhere other than the mind, fear is just the result of evil fantasies of human beings. Today we will learn about avoiding fear, and will learn to face fear by developing our understanding.
Fear is felt when man feels insecure, although fear protects man from dangers, but this fear sometimes kills the freedom of human life. It is natural to have fear according to circumstances, this fear ends after some time. it happens. It does not cause any harm.
There are many types of fear, some of the major fears are as follows: -
1. Fear of sickness
2. Fear of failure
3. Fear of death
4. Fear of being poor
5. Fear of accident
6. Fear of Aging
These are the major fears, the first of which is 'fear of disease'. In this era of epidemic everyone is struggling with the fear of disease, or death. The one who is safe has the fear of getting sick and the one who is sick has the fear of death. Illness has a dangerous effect only when emotions are negative, there is no greater illness than negativity. When a person starts getting scared of illness, he starts feeling ill without any problem. The mind and imagination of a man can make him feel anything, whether it is a bad experience or a good experience.
There is a capacity inside man that sets him apart from all animals, that is the ability to imagine and remember correctly. No other creature on earth other than human can imagine in such a living way though animals and Birds have very little memory.
With the help of imagination, man has reached the moon, apart from this, all the biggest discoveries have been made, whether it is an electric bulb or an airplane, all have stems in the human mind in the beginning, then it has been built on the ground. People do not know from where they have reached, all the people who have become rich are first made with the help of imagination and then have reached there in reality, to say that imagination is a very good thing for human beings, but stop this imagination only for fear. The child is an enemy of man who is born with imagination.
When a person builds his identity with things that he is not, with the help of imagination, it is from here that the process of fear begins. For example, suppose a person does not have a corona and is treating himself as infected, that is, he is making his identity with something imaginary that he is not, it is only from here that fear begins. The thing is that to avoid this, those who consider themselves as hard-hearted pursues it in a more gruesome manner.
Now the question comes that how to avoid fear, the answer is by accepting, confronting it. Suppose someone thinks that he has a corona, then thinking does not happen, the problem starts when the fear is started by believing that because fear spreads poison in the body. Such hormones are secreted. Those who make a man sad and worried. Anxiety is born out of fear, after that, such poison hormones are released in the body that lead a human to death. All that has to be done when a negative thought comes, is to leave it just as an idea, fear is born out of thinking of an imaginary problem in advance. When the problem comes, it will be faced, thinking before that problem. In spite of not being there, the problem will start to be experienced. If someone actually gets sick, will he sit empty? No, he will immediately run and find a cure for it. So if any negative imaginary idea comes, then it is justified to leave it as such thoughts are natural to be born. Be wasted
The other way to avoid negative imaginary thoughts is to keep yourself busy, so busy that even if you go astray, meditation does not go anywhere else. When there is a goal in your life, then the person automatically starts to achieve it by putting his mind in it, it keeps the energy, enthusiasm in the mind, which has no definite purpose in life, the same, trapped in the trap of fear, won by suffocating the knee. If it is, then set the goal of your life today and get engaged in accomplishing it. In the next part, there will be a discussion on how to avoid different types of fear.
~ Thank you
Author: वनिता Pathak 'Independent'
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सोमवार, 26 अप्रैल 2021
नास्तिकता का उद्देश्य।Object of atheism.
--------------------नास्तिकता का उद्देश्य----------------------
नास्तिकता का उद्देश्य इंसानी जीवन को आसान एवं खुशहाल बनाना है ये ऐसी जीवनशैली है जो सत्य एवं वैज्ञानिकता के धरातल पर आश्रित है। समाज में फैले जाति-पाति, छुआछूत, अंधविश्वास, पाखंड, धार्मिक नफरत, गरीबी, शोषण को कम या समाप्त करने हेतु नास्तिकता बहुत आवश्यक है लोगों में वैज्ञानिक विचार का प्रसार करके उन्हें आधुनिक विज्ञान एवं तकनीक का उपयोग करके जीवन आसान बनाकर जीने के लिए प्रेरित करना ही नास्तिकता का उद्देश्य है।
नास्तिक एक ऐसी दुनिया का निर्माण करना चाहता है जिसमें धर्म,जातीय नफरत, अंधविश्वास और पाखंड का कोई स्थान नहीं है दरअसल नास्तिक ही दुनिया को कुछ नया दे सकता है क्योंकि आस्तिक तो भगवान और भाग्य के भरोसे बैठे हैं यदि कोई भी इंसान जो कि भाग्य और भगवान के भरोसे न होकर अपने पुरूषार्थ पर यकीन करता है तो वह भी नास्तिक की श्रेणी में रखा जा सकता है। समाज में व्याप्त कुप्रथाओं, झूठ के आधार पर टिकी परम्पराओं एवं अंधविश्वासों को मिटाकर वैज्ञानिक समझ को विकसित करके खुशहाल मानव जीवन का निर्माण करना ही नास्तिकता का उद्देश्य है।
पूजा-पाखंड, जप-तप, ताबीज, हवन, तंत्र-मंत्र के द्वारा सिर्फ और सिर्फ जनता का मानसिक, आर्थिक एवं शारीरिक शोषण किया जाता है।ओझाओं,मौलवियों एवं पुजारियों द्वारा इस कदर भयभीत कर दिया जाता है कि बेचारा सबकुछ अर्पण कर देता है। आये दिन अखबार में ये खबर छपती रहती है कि 'अंधविश्वास ने ली कईयों की जान', 'झाड़फूंक वाले बाबा ने किया युवती का शोषण' इस तरीके की सैकड़ों घटनाएँ प्रतिदिन घटती रहती हैं इसका सिर्फ एक मुख्य कारण है वो है अंधविश्वास। जो जितना बड़ा आस्तिक होता है वो उतना ही बड़ा अंधविश्वासी होता है। पंडित, बाबा और मौलवियों द्वारा इनका जमकर शोषण किया जाता है ।अंधविश्वास और पाखंड के इस दलदल से मुक्ति पाने का सिर्फ एक ही मार्ग है वो है नास्तिक बन जाना। नास्तिक होना आज के मानव की जरूरत है इससे न सिर्फ मानवजाति बल्कि प्रकृति,वातावरण एवं धरती के लिए भी लाभदायक है।
नास्तिक वो होता है जो न्यायपूर्ण एवं तर्कसंगत रूप से किसी भी कार्य को करता है न कि भीड़ को देखकर।
भीड़ को देखकर काम करने वाला तार्किक एवं सही नहीं हो सकता क्योंकि उसमें खुद की बुद्धि का उपयोग करना अपराध माना जाता है ऐसा ही हमारा समाज और सामाजिक संस्थाएं चाहती हैं कि लोग उनके द्वारा बनाये गये प्रथाओं, दकियानूसी परम्पराओं, रिवाजों में फिट बैठें। जो ऐसा नहीं करता उससे ये लोग दूर होने लगते हैं उसे अपराधी घोषित कर देते हैं।
वजह चाहे जो भी हो किसी भी पुराने सिस्टम को समाप्त करके नयी व्यवस्था ईजाद करने में थोड़ी कठिनाई होती है। शुरुआत में परिवर्तन लाने के लिए किसी एक को अकेले ही चलना पड़ता है फिर धीरे-२ लोग जुड़ते जाते हैं,कारवां बनता जाता है।
यदि एक अंधविश्वासी पूरे गांव को झूठ के जाल में फंसा सकता है तो एक पढ़ा लिखा भी अपने ज्ञान से पूरे समाज को शिक्षित एवं जागरूक कर सकता है।
वास्तव में लोग अपनी कमियों और असफलताओं के दोषारोपण के लिए किसी माध्यम की तलाश करते हैं ताकि सारा इल्जाम अपने ऊपर न लेना पड़े, बस इसी जरूरत के लिए उन्होंने ईश्वर,अल्लाह और गॉड का सहारा ले रखा है।
क्यों सफल नहीं हुए? भाग्य ने साथ नहीं दिया। भाग्य के विषय में एक बात बड़ी दिलचस्प लगती है कि खुद को छोड़कर लगता है कि सबका भाग्य बहुत बढ़िया है यही बात अगला भी सोचता है जिसे आप बहुत खुशनसीब समझ रहे हैं। नास्तिक बनकर इंसान अपने पुरूषार्थ, आत्मविश्वास को पहचानकर बड़े से बड़ा लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। नास्तिकता हर मोड़ पर मनुष्य को मजबूती प्रदान करती है।
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-------------------- Object of Atheism ----------------------
The aim of atheism is to make human life easier and happier, it is such a lifestyle which is dependent on the ground of truth and scientism. Atheism is very important to reduce or eliminate caste-caste, untouchability, superstition, hypocrisy, religious hatred, poverty, exploitation in the society by spreading scientific ideas among people and making them easy to live using modern science and technology. Motivating is the aim of atheism.
An atheist wants to create a world in which religion, ethnic hatred, superstition and hypocrisy have no place. Actually an atheist can give something new to the world because the believer is sitting on God and destiny if any human being who destiny And if he trusts his efforts without trusting in God, then he too can be placed in the category of an atheist. The purpose of atheism is to create a happy human life by developing scientific understanding by eradicating the traditions and superstitions based on lies, false practices prevalent in the society.
The mental, economic and physical exploitation of the public is done by worship and hypocrisy, chanting, amulet, havan, tantra-mantra only and only. gives. On a daily basis, the news is published in the newspaper that 'Superstition took the lives of many', 'Babel of Baba exploited the girl'. Hundreds of incidents of this manner keep happening daily, the only main reason for this is that superstition. The more a believer is, the more superstitious he is. They are heavily exploited by Pandits, Baba and Maulvis. The only way to get rid of this morass of superstition and hypocrisy is to become an atheist. Being an atheist is the need of today's human being, it is beneficial not only for mankind but also for nature, environment and earth.
An atheist is one who does any work judiciously and rationally and not by looking at the crowd.
Seeing the crowd, one cannot be logical and right, because it is considered a crime to use one's own intelligence, in this way our society and social organizations want people to fit into the practices, orthodox traditions, customs they have created. Those who do not do this, they start getting away from them and declare them as criminals.
Whatever the reason, there is some difficulty in devising a new system by dismantling any old system. In the beginning, one has to walk alone to bring change, then gradually 2 people join, and the caravan is formed.
If a superstitious can trap the entire village in a web of lies, then a literate can also educate and educate the whole society with his knowledge.
In fact, people seek some means to accuse them of their shortcomings and failures so that they do not have to take the blame on themselves, for this need they have resorted to God, Allah and God.
Why not succeed? Luck did not support it. One thing about luck seems very interesting that except for yourself, it seems that everyone's luck is very good, that is the next thing that you are thinking very lucky. By becoming an atheist, a person can achieve his biggest goal by recognizing his masculinity, self-confidence. Atheism strengthens humans at every turn.
पर अप्रैल 26, 2021 कोई टिप्पणी नहीं:
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छद्म या नकली नास्तिकता।Fake atheism.
---------------छद्म या नकली नास्तिकता--------------------
ऐसे नास्तिक ज्यादातर दलित समुदाय से बने अम्बेडकरवादी होते हैं। हिन्दू धर्म की व्यवस्था के अनुसार इन्हें अछूत समझा जाता है कई मन्दिरों में इनके जाने की अनुमति नहीं दी जाती है धार्मिक ऐसा मानते हैं कि दलितों के प्रवेश करने से मंदिर और धार्मिक स्थल अपवित्र हो जाता है, इसीलिए ऐसी जगहों पर दलितों का प्रवेश वर्जित है।
दलित अम्बेडकरवादी इसी बात से गुस्सा होकर नास्तिक होने का ढिंढोरा पीटता है क्योंकि उसे हिन्दू धर्म में उचित स्थान और सम्मान नहीं मिला। नास्तिक बनने की ये वजह सही नहीं है, इस तरह नास्तिक बनना बिल्कुल छद्म और नकली है। वास्तव में नास्तिक बनने का कोई बाहरी कारण और परिस्थितयाँ जिम्मेदार नहीं होती हैं क्योंकि ये मस्तिष्क की तार्किक और वैज्ञानिक दशा का परिणाम है कि कोई व्यक्ति नास्तिक बन जाता है।
दलित नास्तिक इसलिए बनता है ताकि वो हिन्दू धर्म में आस्था रखने वाले धार्मिकों को जला सके, उन्हें ये एहसास करा सके कि हमें आपके धर्म और ईश्वर की कोई जरूरत नहीं है जबकि असल बात तो ये है कि अगर इसी दलित(अम्बेडकरवादी) को हिन्दू धर्म में पूजने और रहने की आजादी मिलती, तब ये नास्तिक नहीं बनते। ऐसे नास्तिक पूर्णतया नकली हैं इनका काम सिर्फ नास्तिकता को बदनाम करना है। यही वजह है कि जब कोई इंसान जो कि ब्राह्मण,क्षत्रिय और वैश्य समुदाय से नास्तिक बनता है तो किसी को भी यकीन नहीं होता कि ये ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य वर्ग से है उसे तुरन्त यही लगता है कि ये दलित(अम्बेडकरवादी) वर्ग से है।क्योंकि दलित अम्बेडकरवादियों ने नास्तिकता को बदनाम कर रखा है इतना ही नहीं इन लोगों ने डा० भीमराव अम्बेडकर को पूजना भी शुरू कर दिया है उनकी आरती,व्रत,प्रार्थना करना भी शुरू किया जा चुका है;धार्मिक गुलामी का फन्दा वही है सिर्फ खूंटा बदल दिया गया है। इन लोगों ने डा० अम्बेडकर को भगवान का दर्जा दे दिया है;नास्तिकता का तात्पर्य निष्पक्षता पूर्वक सच को साथ लेकर चलने से है।नास्तिकता ही वास्तविकता और सत्य के धरातल पर जी जाने वाली जीवनशैली है।
सिर्फ ईश्वर का अस्तित्व इंकार कर देना ही नास्तिकता नहीं है, अपितु सत्य, ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता, तार्किकता एवं वैज्ञानिकता के साथ जीवन जीना ही नास्तिकता है।
बौध्द धर्म वाले भी खुद को नास्तिक बोलते हैं और खुद को बुद्ध की मूर्ति के सामने भीख, और दया साचना करते हुए दिखाई पड़ते हैं। ये लोग बुद्ध को अपना भगवान मान बैठे हैं कुछ लोग तो इनके नाम से यज्ञ-हवन, पूजा-पाठ, व्रत कथा भी बहुत मन लगाकर करते हैं।स्वर्ग-नरक, परलोक-पुनर्जन्म की काल्पनिक गप्पों पर इनका भरोसा रहता है दरअसल ये लोग भी नकली नास्तिक हैं और सिर्फ नास्तिकता को बदनाम कर रहे हैं।
नास्तिकता सभी प्रकार की अतार्किक, निरूद्देश्य, फालतू, झूठ के बलबूते अपनायी जाने वाली निराधार और बेबुनियाद प्रथाओं के कैद से मुक्त, स्वतंत्र जीवनशैली है। किसी भी धार्मिक गुलामी, निराधार कर्मकाण्डों को अपनाकर जीना नास्तिकता नहीं है।
वास्तव में नास्तिकता कोई नियम कानून नहीं है बल्कि यह सभी नियमों-कानूनों को छोड़कर अपनायी जाने वाली प्राकृतिक, स्वच्छन्द जीवनशैली है। नास्तिकों के लिए निराधार, बेबुनियाद, झूठ, काल्पनिक, अतार्किक बातों का कोई स्थान नहीं है।
नास्तिक जातिवादी भेदभाव एवं धार्मिक बंधनों से पूर्णतया आजाद होता है,निष्पक्ष होना इनका विशेष स्वभाव होता है। नकली नास्तिकों का ये गुण होता है कि ये जिस जाति से निकल कर आते हैं उसी के पक्ष में रहते हैं; एक तरफ खुद को जाति,नस्ल के भेदभाव से अलग बताते हैं तो दूसरी तरफ उसी जाति की पैरवी करते हैं।
अम्बेडकरवादी नास्तिक ठीक ऐसे ही होते हैं ये जिस जाति,से निकलते हैं उसी के लिए दिनभर लड़ते रहते हैं।इनकी जाति का कोई दलित खास उपल्ब्धि हासिल कर ले तो ये गर्व से गली-२ बखान करते नहीं थकते, ऐसा करना गलत नहीं है परन्तु यह गलत तब दिखाई पड़ता है जब कोई सवर्ण या ओबीसी जाति का कोइ लड़का कोई खास उपलब्धि हासिल करता है तब ये चुप रहते हैं, क्यों भाई! एक तरफ तो आप खुद को जाति धर्म से मुक्त खुद को नास्तिक घोषित कर रहे हो और दूसरी तरफ ये पक्षपात कर रहे हो।नास्तिक पूर्णतया निष्पक्ष एवं जातिगत धार्मिक भेदभाव से मुक्त होता है।नास्तिक वही बात करता है जो तर्कपूर्ण, न्यायसंगत और निष्पक्ष होता है। नास्तिकता का उद्देश्य संपूर्ण मानवजाति को धार्मिक एवं नस्लीय नफरत से दूर करके एकता के सूत्र में बांधना है इंसान का इंसान के प्रति दया, करूणा, प्रेम बढ़ाकर एवं आपसी नफरत ,भेदभाव मिटाकर एकता के सूत्र में बांधना ही नास्तिकता का परम उद्देश्य है।
ऐसे नकली,बहुरूपिये नास्तिक देश और समाज के लिए घातक हैं सिर्फ कहने और ढिंढोरा पीटने भर से कोई नास्तिक नहीं बन जाता ;नास्तिकता का ये उद्देश्य बिल्कुल भी नहीं है कि निरंकुश होकर दूसरों के साथ बुरा व्यवहार किया जाय। इसका उद्देश्य है- कि सबकुछ जानते हुए भी कानून के दायरे में रहकर स्वतंत्रता पूर्वक अपना जीवन यापन किया जाय।
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--------------- Pseudo or fake atheism --------------------
Such atheists are mostly Ambedkarites made up of the Dalit community. According to the system of Hindu religion, they are considered untouchable, they are not allowed in many temples. Religious believe that entering the Dalits pollutes the temple and religious places, hence the entry of Dalits in such places is forbidden. .
The Dalit Ambedkarite is angry with this and proclaims himself to be an atheist because he did not get proper place and honor in Hinduism. This reason for becoming an atheist is not correct, thus becoming an atheist is absolutely false and fake. In fact, no external reason and circumstances are responsible for becoming an atheist because it is a result of the logical and scientific condition of the brain that a person becomes an atheist.
Dalit becomes an atheist so that he can burn the religions who believe in Hinduism, to make them realize that we do not need your religion and God, whereas the real thing is that if this Dalit (Ambedkarite) is called Hinduism I do not become an atheist when I get freedom to worship and live. Such atheists are completely fake, their job is only to discredit atheism. This is the reason that when a person who becomes an atheist from the Brahmin, Kshatriya and Vaishya community, no one is convinced that he is from the Brahmin, Kshatriya or Vaishya class, he immediately thinks that he is from the Dalit (Ambedkarite) class Because not only have the Dalit Ambedkarists discredited atheism, these people have also started worshiping Dr. Bhimrao Ambedkar. His aarti, fasting, prayer has also started; the loop of religious slavery is the same. Has been given. These people have given Dr. Ambedkar the status of God; Atheism means impartially carrying on the truth. Atheism itself is a lifestyle living on the ground of reality and truth.
Denying the existence of God is not just atheism, but it is atheism to live life with truth, honesty, dutifulness, rationality and scientificness.
Even Buddhists call themselves atheists and see themselves begging in front of the Buddha statue, and showing compassion. These people consider Buddha to be their god, some people also do Yagna-Havan, Puja-recitation, fasting story in their name and they have a lot of faith. They trust the imaginary gossips of heaven and hell, reincarnation and reincarnation. Are also fake atheists and are just defaming atheism.
Atheism is a free, independent lifestyle free from the imprisonment of all kinds of irrational, aimless, useless, baseless and baseless practices. It is not atheism to live by adopting any religious slavery, baseless rituals.
In fact, atheism is not a law of law, rather it is a natural, free lifestyle followed by all rules and laws. For atheists there is no place for baseless, baseless, false, imaginary, irrational things.
Atheists are completely free from casteist discrimination and religious bonds, they have a special nature to be fair. Fake atheists have the quality that they live in favor of the caste they come from; On the one hand, they differentiate themselves from caste and race discrimination, on the other hand they advocate the same caste.
Ambedkarite atheists are just like this, they continue to fight for the same caste, from which they come out. If a Dalit of their caste gets a special achievement, then they do not get tired of proudly talking alley-2, but it is not wrong to do so. This appears wrong when a boy of any caste or OBC caste achieves a special achievement, then they remain silent, why brother! On the one hand, you are declaring yourself free from casteism and you are atheist, on the other hand, the atheist is completely impartial and free of caste-based religious discrimination. The atheist does the same thing which is fair, just and fair. is. The purpose of atheism is to remove the entire human race from religious and racial hatred and tie it in the thread of unity. By tying human kindness, compassion, love towards human beings and mutual hatred and discrimination, tying them to the thread of unity is the ultimate aim of atheism.
Such fake, polymorphic atheists are fatal to the country and society, just by saying and banging, one does not become an atheist; it is not at all the purpose of atheism to misbehave and be rude to others. Its purpose is that, knowing everything, living within the scope of law and living independently.
पर अप्रैल 26, 2021 कोई टिप्पणी नहीं:
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नास्तिकता और हमारा संविधान।Atheism and our constitution.
-----------नास्तिकता और हमारा संविधान----------------
हमारा देश भारत धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है यहाँ पर लोग धार्मिक स्वतंत्रता का भरपूर लाभ उठा सकते हैं कहने का तात्पर्य है कि यहाँ के लोग किसी भी धर्म को मानकर जियें इसके लिए कोई रोकटोक नहीं है इसके अलावा कोई भी व्यक्ति अपना धर्म छोड़ दूसरे के धर्म का अनुसरण करें तो भी कोई समस्या नहीं है इतना ही नहीं यहाँ पर कोई भी किसी व्यक्ति को धार्मिक होने के लिए बलपूर्वक बाध्य नहीं कर सकता है।
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 25 से 28 धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करता है जो कि इस प्रकार है-
अनुच्छेद 25-- अपने मन से किसी भी धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता, कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को मान सकता है और उसका प्रचार-प्रसार कर सकता है।
अनुच्छेद 26--धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता, कोई भी व्यक्ति अपने धर्म के लिए संस्थाओं की स्थापना व पोषण करने की, विधि सम्मत धन अर्जन, स्वामित्व व प्रशासन का अधिकार है।
अनुच्छेद 27--राज्य किसी भी व्यक्ति को ऐसे कर देने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है, जिसकी आय किसी विशेष धर्म अथवा धार्मिक संप्रदाय की उन्नति या पोषण में व्यय करने के लिए विशेष रूप से निश्चित कर दी गयी है।
अनुच्छेद 28---राज्य विधि से पूर्णतः पोषित किसी शिक्षा संस्था में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी ऐसे शिक्षण संस्थान अपने विद्यार्थियों को किसी धार्मिक अनुष्ठान में भाग लेने या किसी धर्म उपदेश को बलपूर्वक सुनने के लिए बाध्य नहीं कर सकते। धार्मिक कट्टरता और पाखंड के इस दौर में मुंबई उच्च न्यायालय का फैसला स्वागत योग्य है कि सरकार किसी भी व्यक्ति को बाध्य नहीं कर सकती कि वह किसी सरकारी फार्म या शपथपत्र में अपना धर्म घोषित करे। अगर वह लिखता है कि 'कोई धर्म नहीं' यानी धर्म में उसका विश्वास नहीं है तो इसे स्वीकार करना होगा, यही उसका धर्म है। हर व्यक्ति का यह मौलिक अधिकार है कि वह किसी खास धर्म में विश्वास रखे या न रखे, उसका अनुपालन करे या न करे या धर्मशास्त्र में उसकी आस्था न हो।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश है जिसका अपना कोई सरकारी तौर पर घोषित धर्म नहीं है अत: सरकार धार्मिक स्वतंत्रता के संविधान प्रदत्त अधिकार के उपयोग से किसी को नहीं रोक सकती, चाहे वह किसी खास धर्म में रहने या छोड़ने का सवाल हो या किसी भी धर्म में विश्वास न रखने का प्रश्न हो।
देश में ऐसा एक भी कानून नहीं है जो लोगों को किसी न किसी धर्म में विश्वास रखने को मजबूर करता हो।
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---------- Atheism and our Constitution ----------------
Our country India is a secular nation, here people can take full advantage of religious freedom, to say that people here live any religion, there is no restriction for this, apart from this, no person can leave his religion and other religion. Even if you follow, there is no problem. Not only this, no one can force anyone to be religious here.
Articles 25 to 28 in the Indian constitution provide religious freedom which is as follows-
Article 25 - Freedom to follow, conduct and propagate any religion with one's own mind, any person can believe and propagate any religion.
Article 26 - Freedom to manage religious affairs, any person has the right to establish and nurture institutions for his religion, right to acquire money, ownership and administration.
Article 27 - The state cannot compel any person to pay such tax, whose income has been specially fixed for spending in the promotion or nurture of a particular religion or religious sect.
Article 28 --- Religious education will not be given in an education institution fully funded by state law. Such educational institutions cannot compel their students to participate in any religious ritual or listen to any religious preaching force. In this era of religious fanaticism and hypocrisy, the decision of the Mumbai High Court is welcome that the government cannot compel anyone to declare their religion in any government form or affidavit. If he writes that 'there is no religion', that is, he does not believe in religion, then it has to be accepted, that is his religion. It is the fundamental right of every person to believe or not to believe in a particular religion, to follow or not to adhere to it or to have no faith in theology.
India is a secular democratic country which has no officially declared religion of its own, so the government cannot stop anyone from exercising the constitutionally given right to religious freedom, whether it is a question of living or leaving a particular religion or any religion. There is a question of not believing in it.
There is not a single law in the country that forces people to believe in some religion.
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