(जीवन का लक्ष्य ).💓💓💓💓💓💓💓💓चक्रवती भरत के जीवन की एक घटना है कि, एक दिन विप्र देव ने उनसे पूछा- महाराज आप वैरागी है तो महल में क्यों रहते हैं? .आप महल में रहते हैं तो वैरागी कैसे? मोह, माया, विकार, वासना के मध्य आप किस तरह के वैरागी है? .क्या आपके मन में कोई मोह, पाप, विकार और वासना के कोई भाव नही आते ? .चक्रवती भरत ने कहा- विप्र देव तुम्हें इसका समाधान मिलेगा लेकिन तुम्हे पहले मेरा एक कार्य करना होगा। .जिज्ञासु ने कहा- कहिए महाराज, आज्ञा दिजिए हम तो आपके सेवक हैं और आपकी आज्ञा का पालन करना हमारा कर्तव्य है। .चक्रवती भरत ने कहा यह पकडो तेल से लबालब भरा कटोरा इसे लेकर तुम्हें मेरे ‘अन्त पूर’ में जाना होगा.. .जहां मेरी अनेक रानीयां है, जो सज-धझ कर तैयार मिलेंगी उन्हें देखकर आओं। और बताओं कि मेरेी सबसे सुंदर रानी कौन सी है?.भरत की इस बात को सुनकर जिज्ञासु बोला.. महाराज आपकी आज्ञा का पालन अभी करता हूं। इसमें कोन सी बड़ी बात है.. .मैंने आज तक आपकी किसी भी रानी को सन्मुख से नहीं देखा ये तो आपकी मुझपे किरपा है! अभी गया और अभी आया। .तब भरत बोले- भाई इतनी जल्दी न करो पहले पूरी बात सुन लो। .तुम्हं ‘अन्त पूर’ में जाना हैं पहली बात, सबसे अच्छी रानी का पता लगाना है दूसरी बात, लबालब तेल भरा कटोरा हाथ में ही रखना तीसरी बात...तुम्हारें पीछे दो सैनिक नंगी तलवारें लेकर चलेंगे और यदि रास्तें में तेल की एक बुंद भी गिर गई तो उसी क्षण यह सैंनिक तुम्हारी गर्दन धड़ से अलग कर देंगे। .विप्र देव चले गये, हाथ में कटोरा हैं और पूरा ध्यान कटोरे पर। एक-एक कदम फूक-फूक कर रख रहा हैं ‘अन्त पूर’ में प्रवेश करता हैं....दोनो तरफ रूप सी रानीयां खडी हैं पूरे महल में मानो सौंदर्य छिडका हुआ है। कही संगीत तो कही नृत्य चल रहा हैं, लेकिन उसका मन कटोरे पर अडिग हैं....चलता गया बडता गया और देखते ही देखते पूरे ‘अन्त पूर’ की परिक्रमा लगाकर चक्रव्रति भरत के पास आ पहूंचा। पसीने से तर-बतर थे। बडी तेजी से हांफ रहे थे.. .चक्रवाती भरत ने पूछा-बताओं मेरी सबसे सुंदर रानी कौनसी है? .जिज्ञासु विप्र देव बोले महाराज आप रानी की बात पूछ रहे हैं कैसी रानी? किसकी रानी? मुझे कोई रानी–वानी नही दिख रही थी। .मुझे तो अपने हाथो में रखा कटोरा और अपनी मौत दिख रही थी। सैनिकों की चमचमाती नंगी तलवारे दिख रही थी। इसके अलावा मैंने और कुछ नहीं देखा। .वत्स यही तुम्हारी जिज्ञासा का समाधान हैं, तुम्हारे सवाल का जवाब हैं। .जैसे तुम्हे अपनी मौंत दिख रही थी रानीयां नही, रानियों का रूप, रंग, सौंदर्य नही , संगीत लहरियां नहीं, मंदिर और विकार नहीं, और इस बिच रूप सी रानीयों को देखकर तुम्हारें मन में कोई पाप विकार नही उठा....वैसे ही हर पल मैं अपनी मुत्यु को देखता हूं। मुझे हर पल मृत्यु की पदचाप सुनाई देती हैं और इसलिए मैं इस संसार की वासनाओं के कीचड से उपर उठकर कमल की तरह खिला रहता हू। .राग रंग में भी वैराग की चादर ओढे रहता हूं। इसी कारण मोह–माया, विकार वासना मुझे प्रभावित नही कर पाती।.कथा सार– ईशवर का कोई कार्य युहीं या व्यर्य में ही नहीं होता। वैसे ही आपका जन्म भी किसी ख़ास मकसद के स्वरूप ही हुआ है। .पर दुनियावीं माया और वासनाओं में आकर हम उस मकसद को नहीं देख पाते। .कथा का मर्म जान कर कौन कौन अपने परिवार समाज, और दुनिया में ये जाग्रति को हमेशा कायम रख पता है कि एक दिन मुझे इस दुनियां से चले जाना है, .मैं सदा यहां नहीं रहने वाला, बहुत ही कम वक्त है मेरे पास, क्या मेरे पास मेरे जीवन का मकसद है? .मानव जीवन का एक ही उद्देश्य है और वो है केवल परमात्मा की प्राप्ति जिसे हम मोक्ष कहते हैं। .पर इस परिवार, समाज, अपनी महत्वकांशाओं और वासनाओं में फंस कर हम अपने जीवन के लक्ष्य को भूल गए हैं, .जागो जागो जागो बाहर निकलो इनसे ये भँवर है बाहर निकलने नहीं देगा। बे सहारा की सेवा करो प्रभु सिमरन करो, नाम सिमरन करो, जग में रह कर जग रहित हो जाओ। प्रभु अपने आप मिल जायेंगे।*बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब 🙏🙏❤️*मानव हो मानव का प्यारा एक दूजे का बनो सहारा.💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓जय जय श्री राधे 💞🙏🏻💞🙏🏻💞

(जीवन का लक्ष्य )
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चक्रवती भरत के जीवन की एक घटना है कि, एक दिन विप्र देव ने उनसे पूछा- महाराज आप वैरागी है तो महल में क्यों रहते हैं?
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आप महल में रहते हैं तो वैरागी कैसे? मोह, माया, विकार, वासना के मध्य आप किस तरह के वैरागी है?
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क्या आपके मन में कोई मोह, पाप, विकार और वासना के कोई भाव नही आते ?
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चक्रवती भरत ने कहा- विप्र देव तुम्हें इसका समाधान मिलेगा लेकिन तुम्हे पहले मेरा एक कार्य करना होगा।
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जिज्ञासु ने कहा- कहिए महाराज, आज्ञा दिजिए हम तो आपके सेवक हैं और आपकी आज्ञा का पालन करना हमारा कर्तव्य है।
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चक्रवती भरत ने कहा यह पकडो तेल से लबालब भरा कटोरा इसे लेकर तुम्हें मेरे ‘अन्त पूर’ में जाना होगा..
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जहां मेरी अनेक रानीयां है, जो सज-धझ कर तैयार मिलेंगी उन्हें देखकर आओं। और बताओं कि मेरेी सबसे सुंदर रानी कौन सी है?
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भरत की इस बात को सुनकर जिज्ञासु बोला.. महाराज आपकी आज्ञा का पालन अभी करता हूं। इसमें कोन सी बड़ी बात है..
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मैंने आज तक आपकी किसी भी रानी को सन्मुख से नहीं देखा ये तो आपकी मुझपे किरपा है! अभी गया और अभी आया।
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तब भरत बोले- भाई इतनी जल्दी न करो पहले पूरी बात सुन लो।
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तुम्हं ‘अन्त पूर’ में जाना हैं पहली बात, सबसे अच्छी रानी का पता लगाना है दूसरी बात, लबालब तेल भरा कटोरा हाथ में ही रखना तीसरी बात..
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तुम्हारें पीछे दो सैनिक नंगी तलवारें लेकर चलेंगे और यदि रास्तें में तेल की एक बुंद भी गिर गई तो उसी क्षण यह सैंनिक तुम्हारी गर्दन धड़ से अलग कर देंगे।
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विप्र देव चले गये, हाथ में कटोरा हैं और पूरा ध्यान कटोरे पर। एक-एक कदम फूक-फूक कर रख रहा हैं ‘अन्त पूर’ में प्रवेश करता हैं...
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दोनो तरफ रूप सी रानीयां खडी हैं पूरे महल में मानो सौंदर्य छिडका हुआ है। कही संगीत तो कही नृत्य चल रहा हैं, लेकिन उसका मन कटोरे पर अडिग हैं...
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चलता गया बडता गया और देखते ही देखते पूरे ‘अन्त पूर’ की परिक्रमा लगाकर चक्रव्रति भरत के पास आ पहूंचा। पसीने से तर-बतर थे। बडी तेजी से हांफ रहे थे..
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चक्रवाती भरत ने पूछा-बताओं मेरी सबसे सुंदर रानी कौनसी है?
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जिज्ञासु विप्र देव बोले महाराज आप रानी की बात पूछ रहे हैं कैसी रानी? किसकी रानी? मुझे कोई रानी–वानी नही दिख रही थी।
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मुझे तो अपने हाथो में रखा कटोरा और अपनी मौत दिख रही थी। सैनिकों की चमचमाती नंगी तलवारे दिख रही थी। इसके अलावा मैंने और कुछ नहीं देखा।
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वत्स यही तुम्हारी जिज्ञासा का समाधान हैं, तुम्हारे सवाल का जवाब हैं।
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जैसे तुम्हे अपनी मौंत दिख रही थी रानीयां नही, रानियों का रूप, रंग, सौंदर्य नही , संगीत लहरियां नहीं, मंदिर और विकार नहीं, और इस बिच रूप सी रानीयों को देखकर तुम्हारें मन में कोई पाप विकार नही उठा...
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वैसे ही हर पल मैं अपनी मुत्यु को देखता हूं। मुझे हर पल मृत्यु की पदचाप सुनाई देती हैं और इसलिए मैं इस संसार की वासनाओं के कीचड से उपर उठकर कमल की तरह खिला रहता हू।
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राग रंग में भी वैराग की चादर ओढे रहता हूं। इसी कारण मोह–माया, विकार वासना मुझे प्रभावित नही कर पाती।
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कथा सार– ईशवर का कोई कार्य युहीं या व्यर्य में ही नहीं होता। वैसे ही आपका जन्म भी किसी ख़ास मकसद के स्वरूप ही हुआ है।
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पर दुनियावीं माया और वासनाओं में आकर हम उस मकसद को नहीं देख पाते।
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कथा का मर्म जान कर कौन कौन अपने परिवार समाज, और दुनिया में ये जाग्रति को हमेशा कायम रख पता है कि एक दिन मुझे इस दुनियां से चले जाना है,
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मैं सदा यहां नहीं रहने वाला, बहुत ही कम वक्त है मेरे पास, क्या मेरे पास मेरे जीवन का मकसद है?
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मानव जीवन का एक ही उद्देश्य है और वो है केवल परमात्मा की प्राप्ति जिसे हम मोक्ष कहते हैं।
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पर इस परिवार, समाज, अपनी महत्वकांशाओं और वासनाओं में फंस कर हम अपने जीवन के लक्ष्य को भूल गए हैं,
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जागो जागो जागो बाहर निकलो इनसे ये भँवर है बाहर निकलने नहीं देगा। बे सहारा की सेवा करो प्रभु सिमरन करो, नाम सिमरन करो, जग में रह कर जग रहित हो जाओ। प्रभु अपने आप मिल जायेंगे।
*बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब 🙏🙏❤️*
मानव हो मानव का प्यारा एक दूजे का बनो सहारा
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जय जय श्री राधे
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