समयचक्र क्या है? इसका कैसे निर्माण होता है? यह कैसे चलता है? By Vnita Kasnia Punjab कैसे सौर्य मंडल आकाशगंगा में घूमता है I इसके बारे में अन्य प्रश्नों में विस्तार से विवरण दे चुका हुँ I अभी हम समयचक्र को समझने के लिए पहले इनके सार देख लेते हैं I युग क्या है? युग अस्ल में कालचक्र का यज्ञ कुंड होता है I जिसमें आत्मा की आहुति के रुप में आती है और सभी सुर-असुर तीनों द्वारों से अपने प्रभाव डालते हैं और जितने ज्यादा से ज्यादा अपनी तरफ लाने का प्रयास करते हैं I साथ ही बाकी दूसरे लोक/नक्षत्र के देव अपना-अपना योगदान देते हैं I जब आकाशगंगा में पृथ्वी सौर्य मंडल में युग बदलती है, तो वह कैसे करती है? जब सौर्य मंडल में स्वर्ग की तरफ से पृथ्वी पर दबाव आता हैI तब पृथ्वी नीचे की तरफ खिसकती है और सूर्य के थोड़े नजदीक पहुँच जाती हैं I जिससे युगों में मनुष्य सभ्यताएं और फिर युगों में चरण बनते हैं I जब चार चरण पूर्ण होते हैं तब युग बदल जाता है I चित्र 1 :— लाल रंग का अंडाकार - स्वर्ग है I बैंगनी रंग का अंडाकार - नक्षत्र के लोक है I भूरा रंग का अंडाकार - असुर लोक का प्रतिबिंब है (जो दैत्यों के राजा बलि की तरफ से आते हैं)। पीला रंग का गोला सूर्य है, नीले रंग का गोला चंद्रमा है और हरे रंग का अंडाकार पृथ्वी है I पृथ्वी से तीनों लोक चार युगों के अनुसार इनकी दूरी होती है I चित्र 1 में जब सभ्यता की शुरुआत होती है, तब चंद्रमा के मार्ग से उस नक्षत्र के द्वारा देवी-देवता, प्रजापति के पुत्र और नीचे से असुर मृत्युलोक में संप्रदायों का निर्माण और पालन-पषण करते हैं I सूर्य के मार्ग से इंद्र मृत्युलोक धर्म को सशक्त करते हैं I नीचे से असुर राहु मार्ग से मृत्युलोक में विचारों द्वारा प्रभाव डालते हैं I फिर इन्हीं तीनों के द्वारा रचे युगानुसार मनुष्य सभ्यताएं चलती है I फिर हर महाद्वीप पर मनुष्य सभ्यताओं का निर्माण होता है I जो द्वीप जिस नक्षत्र के लोक की तरफ होता है I वे सभ्यता का निर्माण कर मनुष्य सभ्यता को चलाते हैं I जब मनुष्य सभ्यता खत्म होती है, युग का चरण खत्म होता है या युग खत्म होता है I तब देवराज इंद्र (स्वर्ग) धर्मानुसार पृथ्वी को सूर्य की तरफ धकेलते है I आप नीचे दिए हुए चित्र से समझ सकते हैं I चित्र 2:— पीला रंग सूर्य है I हरा रंग पृथ्वी है I बड़ा और बाहरी चक्र सत्ययुग है और सबसे नीचे और छोटा चक्र कलियुग है I जब सौर्य मंडल आकाशगंगा में भ्रमण करता है I ऊपर शिशुमार चक्र के आधार पर देवराज इंद्र (स्वर्ग) द्वारा धकेला जाता है I प्राण वायु के माध्यम से I तब एक समयचक्र का निर्माण होता है, क्योंकि ऊपर नक्षत्र और नीचे असुर लोक भी घूम रहे होते हैं I तब उनके प्राणवायु के प्रभाव से सौर्य मंडल ऊपर-नीचे घूमता है I चलिए अब समझते हैं कि यहाँ समयचक्र कैसे निर्माण होता है I नीचे दिए दोनों चित्र से समझते हैंI जो "Reversing Mechanism" — यूट्यूब से लिए हैI सम्पूर्ण आकाशगंगा एक यांत्रिक अंडे जैसा है I सौर मंडल, स्वर्ग, नक्षत्र और असुर लोक कुछ इस तरह चलते हैं — चित्र 3 :— हरा रंग को असुर लोक कह सकते हैं I बैंगनी रंग नक्षत्र के लोक कह सकते हैं I बड़ा लाल रंग को पृथ्वी/सौर्य मंडल कह सकते हैं I नारंगी रंग का पंखा आप सूर्य समझ सकते हैं I इस सौर्य मंडल को संतुलन बनाए रखने के लिए पीला हैंडल को स्वर्ग (देवराज इंद्र) कह सकते हैं I जब सौर्य मंडल (पंखा) नक्षत्र (बैंगनी) के समीप होता है (चित्र 3) I तो इसकी दिशा सीधी तरफ होती है I वही सौर्य मंडल (पंखा) असुर लोक (हरे रंग) के समीप होता है (चित्र 4)I तब पंखे की घूमने की दिशा उल्टी तरफ हो जाती है I चित्र 4 :— हरा रंग को असुर लोक कह सकते हैं I बैंगनी रंग नक्षत्र के लोक कह सकते हैं I बड़ा लाल रंग को पृथ्वी/सौर्य मंडल कह सकते हैं I नारंगी रंग का पंखा आप सूर्य समझ सकते हैं I इस सौर्य मंडल को संतुलन बनाए रखने के लिए पीला हैंडल को स्वर्ग (देवराज इंद्र) कह सकते हैं I चित्र 5 — सौर्य मंडल में समयचक्र, जो नक्षत्र और असुर लोकों के बीच चलता हैI अब इस समयचक्र को थोड़ा विस्तार से देखते हैं, इस चित्र 6 में — चित्र 6 इस चक्र को दो छोटी काली रेखाओं से आधा किया है I जो बिल्कुल ऊपर-नीचे बनी है I अब इस समयचक्र को 12,000 मनुष्य वर्ष में बाँट दिया है I ऊपर से जब नीचे दाईं ओर से नीचे की तरफ चलते हैं, तब हरे रंग की रेखा तक को सत्ययुग कह सकते हैं, फिर हरे रंग की रेखा से नीली रेखा तक को त्रेतायुग कह सकते हैं I फिर नीली रेखा से भूरे रंग की रेखा तक को द्वापरयुग कहते हैं I और अंत में भूरे रंग की रेखा से नीचे काले रंग की रेखा तक कलियुग कह सकते हैं I इस चक्र में नीचे आते-आते 12,000 मनुष्य वर्ष हो जाते हैं I फिर ठीक 12,000 वर्ष इसी के उल्टी दिशा में चलते हैं I अर्थात कलियुग, द्वापरयुग, त्रेतायुग और अंत में सत्ययुग I चित्र 5 में देखेंगे कि नीचे असुर लोक है, इसलिए दूसरा आधा समयचक्र सत्ययुग से न शुरु होकरI यह कलियुग से शुरु होता हैI और एक उल्टी दिशा से ऊपर की ओर जाता हैI इसका कारण अधर्म होता हैI नीचे के समयचक्र में असुरों का प्रभाव रहता हैI ऊपर के समयचक्र में देवताओं का, इसलिए ऊपर का समयचक्र में सत्ययुग बड़े हिस्से में होता है I नोट:— यदि आप युक्तेश्वर महाराज के युगचक्र को देखेंगे तो आपको वह यही समयचक्र मिलेगा I अब यूट्यूब के लिंक में आपने पंखे को सीधे और उल्टी दिशा में चलते देखा होगा I जो चित्र 3 और चित्र 4 में दिखाया है I यह दिशा हमारे सौर्य मंडल के सभी ग्रहो और सूर्य के कोर का घूमना होता है I (कोई एक चक्र में दो बार, कोई 3–4 चक्र में एक बार अपनी दिशा बदलता है I) परंतु मृत्युलोक में इस चक्र के हिसाब से दिशा परिवर्तन थोड़े अलग समय पर दिखता है I आप चित्र 6 में देखेंगे तो ज्ञात होगा कि दो लाल रंग की रेखा है, इस समयचक्र में I यह इस दिव्य चक्र के उत्तरायण और दक्षिणायन है I जब सूर्य नीचे की तरफ चलते हैं, तब ऊपर की लाल रेखा को उत्तरायण कहते हैं I जब सूर्य ऊपर की तरफ चलते हैं, तब नीचे की लाल रेखा को दक्षिणायन कहते हैं I इस कालचक्र में सूर्य के आधार पर सौर्य मंडल चलता है I इस ऊपर-नीचे घूमने की वज़ह से सौर्य मंडल में थोड़ा बदलाव आता है I क्यूँकी यह सूर्य के आधार पर दिव्य चक्र बनता है I इसलिए यहाँ सूर्य की स्थिति ऊपर नीचे होती है, पृथ्वी के अनुसार I चित्र 7 :— पीला रंग सूर्य है I हरा रंग पृथ्वी है I बड़ा और बाहरी चक्र सत्ययुग है और सबसे नीचे और छोटा चक्र कलियुग है I सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन की तरफ जाते हुए I चित्र 8 :— सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की तरफ जाते हुए I जब सूर्य की दिशा बदलती है I तब सूर्य ऊपर की तरफ उठता है, तब यही युग चक्र में थोड़ा बदलाव आता है I नोट:— ये बदलाव थोड़े ही ऊपर नीचे होते हैं सूर्य के अनुपात में। परंतु मृत्युलोक में इसके कारण बहुत बड़ा बदलाव आते हैं I उदाहरण के लिए सूर्य और पृथ्वी के कोर की गति में बदलाव और उनकी दिशा बदलना I यह हर 12,000 साल में होते हैं I मेरे अनुमान के अनुसार इन अयन में बदलाव इस तरह होते हैं कि दिशाएं बदलती है, परंतु व्यक्ति को चित्र 7 जैसे ही परिस्थिति महसूस होती है I (physically change is there in all objects but logically it's remain same as all directions are also change) प्रश्न उठता है कि, जिस तरह यूट्यूब में "reversal mechanism" में गियर के संपर्क में आते ही पंखे की दिशा बदलती है I ठीक वैसे ही सौर्य मंडल में अयन के बदलाव ठीक ऊपर-नीचे क्यूँ नहीं होते हैं, चित्र 6 में? इसका कारण है कि पूरा आकाशगंगा प्राणवायु की तेज प्रवाह के द्वारा अती वेग गति से चलते है I बदलाव ऊपर-नीचे पहुँचने पर शुरु होने लगते हैं I परंतु प्रत्यक्ष रूप से कुछ सौ साल बाद ये दिशा में बदलाव दिखते हैं I इसलिए इस कालचक्र में लाल रंग की रेखा अलग से दिखाई है जब उन लोकों के प्रभाव में आने वाले युग बदल जाते हैं I इन्हीं अयन में बदलावों के कारण इस मृत्युलोक में प्रलय जैसे भयानक हालत बनते हैं I तब करोड़ो की जनसंख्या मात्र कुछ हजारों में बचती है I नोट:— पृथ्वी और सूर्य की दिशा जब बदलती है, तब चित्र 7 से चित्र 8 होती है I परंतु हमे मृत्युलोक में बदलावों के बाद पुनः चित्र 7 की तरह ही दिखेगा I जिस तरह युक्तेश्वर महाराज के अनुसार यह युगचक्र बनता है । परंतु यहाँ हम समयचक्र कह रहे हैं, ऐसा क्यूँ? कालचक्र और समयचक्र, इन दोनों में क्या फर्क होता है? चित्र 9 :— युक्तेश्वर महाराज युगचक्र I कालचक्र:— चक्र का आधार प्राण होता है, तब हम उस चक्र को कालचक्र कहते हैं I प्राणवायु सदा ब्रह्माण्ड में बहती है, जिसे लिंग रुप में सभी पुराणों में पढ़ते व जानते हैंI इसी प्राणवायु में सदा त्रिदेवों - ब्रह्मा, विष्णु, शिव वास होता है I जिसे शिव अपने ईश्वरीय रुप में प्राणवायु को चलाते हैं I जब यही प्राणवायु आकाशगंगा में आती है, तब इन्द्र, प्रजापति, अग्नि और ब्रहस्पति इन चारों द्वारा इसे चलाया जाता है I जिसे आप स्वस्तिक के रुप में पूजते है I (इस स्वस्तिक के बारे में विस्तार से अन्य प्रश्न में वर्णन किया है) कालचक्र में युग हमेशा यज्ञ कुंड की तरह बनते हैं I समयचक्र:— जब कालचक्र के आधार पर प्राणशक्ति द्वारा चक्र बनता है, तब उसे समयचक्र कहते हैं। समयचक्र हमेशा शक्ति के आधार पर देवता-असुर अपने योगदान देते हैं I देवता धर्मी होते हैं और इनके बदलाव धीमे और लम्बे समय तक होते हैI वहीं असुर अधर्मी तथा बली और जल्दी करने वाले होते हैंI इसलिए उनका बदलाव बहुत जल्दी और कम समय का होता है I इसलिए जब मृत्युलोक असुर लोकों की तरफ होता है, तब मनुष्य समाज विवेकहीन, दैव में अविश्वास, शरीर सुख ही प्रथम है, दरिद्रता, क्रूरता, वेश्यावृति, छल, आदिI जब मृत्युलोक ऊपर की तरफ जाता है- तब ऊर्जा, बुद्धी का विकास, ज्ञान-विज्ञान, अविष्कार, अध्यात्म, खोज, आदि I ये विकास हमेशा युगानुसार ही होता है I और समयचक्र हमेशा युग हमेशा चक्र के रुप में चलते हैं I ब्रह्माण्ड में शक्ति/प्रकृत्ति हमेशा दोनों सुर-असुर को धर्मानुसार अपना-अपना योगदान देने का मौका देती है I ये दोनों हमेशा एक-दूसरे के विपरीत होते हैं I परंतु ये एक चक्र में बंधे होते हैं I क्यूंकि ये शक्ति/प्रकृत्ति के आधार पर कर्म करते हैं I इसलिए इनके प्रभाव सदा समयचक्र में बंध के चलते है I यह आप ब्रह्माण्ड के हर कण में देख सकते हैं I एक बच्चा भी माँ के गर्भ में अपनी दिशा बदलता है I जिसकी वज़ह बच्चे के शरीर का विकास होता है (यह शरीर सदा प्रकृत्ति के आधीन रहता है) I यह परमाणु, क्वांटम, जैविक, आदि जो आप विज्ञान देख रहे हैं I वे सभी इसी शक्ति/प्रकृत्ति द्वारा प्राप्त और भोग भूमि पर उपजने वाले संप्रदाय तथा संप्रदाय का ज्ञान, विज्ञान भी प्रकृत्ति के आधार पर ही होते हैं I इनमें धर्म के आधार पर 4 अवस्थाएं बनती है, जिसकी वज़ह से इनका घटना-बढ़ना होता है I ऐसे समयचक्र ब्रह्माण्ड में अनंत बनते हैं I जब भी किसी घटनाक्रम का निर्माण होता है, तब ये सुर-असुर इसी समयचक्र से उसे बढ़ाते हैं। इसलिए युक्तेश्वर महाराज के युगचक्र को समयचक्र कहेंगे I देवराज इंद्र द्वारा स्वर्ग के माध्यम से पृथ्वी को हल्का सा दबाया जाता है I जिससे युगों का निर्माण होता हैI ऐसा कहीं वर्णन है, क्या? यह मेरा व्यक्तिगत अभ्यास से ज्ञात हुआ है I परंतु इसमें एक कथा का वर्णन है कि जब इस मन्वंतर में दैत्यों के राजा बलि, देवराज इंद्र को परास्त करते हैं I तब उस चतुर्युग में मृत्युलोक में सभी युग सत्ययुग के समान व्यतीत हुए थे I कलियुग तब आए थे, तब उन्होंने देखा मृत्युलोक में धर्म अपने चारों चरणों पर खड़ा है I तब सब जानकार वापस सुतल लोक चले गए थे I इसलिए अभी तक गणना के हिसाब से 27 कलियुग बीत चुके है, परंतु कलियुग मृत्युलोक में 26 बार ही आए हैं I इस कथा सार में पता चलता है कि उस चतुर्युग में स्वर्ग से पृथ्वी की तरफ दबाव नहीं आया था I जिससे मृत्युलोक एक स्थिर होने के कारण युग चक्र में अस्थिरता आ गई थी I यह दबाव कैसे किया जाता है, यह सिर्फ देवता ही जानते हैं I तो क्या अभी जो प्रलय के हालात हो रहे हैं, तो इसके लिए इस चक्र में होने वाले अयन में बदलाव ही कारण है? जी हाँ! परंतु इस बार के प्रलय का कारण यह इकलौता कारण नहीं है I इस समय कलियुग की प्रथम सभ्यता का अंत होने वाला है I समयचक्र में अयन बदल रहा है I (जो आप न्यूज में पृथ्वी के कोर के बारे में पड़ते व सुनते होंगे I और सूर्य में भी बड़े बदलाव दिख रहे हैं I) मन्वंतर का कालचक्र भी मध्य पहुँच गया है I इसलिए सम्पूर्ण आकाशगंगा का भी पोल रिवर्सल हो रहा है I (इसलिए आप उल्का पिंड की घटना में बढ़ोतरी देख रहे हैं और देवता-असुर भी पृथ्वी पर आ सकते हैं I धर्मयुद्ध और चुने हुए मनुष्यों को बचाने के लिए I क्यूँकी इस बार के प्रलय में पृथ्वी पूरी जल के समुद्र में डूब जाएगी I तब कृष्ण पुनः सृष्टि का निर्माण कर कलियुग की द्वितीय मनुष्य सभ्यता को बढ़ायेंगे I) जब आकाशगंगा हर छण अति वेग गति से घूमती है I तब यह समयचक्र युगानुसार कैसे चलता है? यदि आप इसके मार्ग की कल्पना करेंगे तो ज्ञात होगा कि यह कुछ ऐसे परिपत्र रुप में लेता है, जिसे आप नीचे चित्र 10 और चित्र 11 में देख सकते हैं — चित्र 10 :— कुछ इस तरह से समयचक्र चलता रहता है - परिपत्र (circular) रुप में I चित्र 11:— यदि आप कमल को ऊपर से देखेंगे तो समयचक्र इन तीनों लोकों में कुछ ऐसा चक्र लगाता है I जिसमें कमल के फूल की बीच की कोंपले कलियुग में समय चक्र का निर्माण करती है I इससे बाहर की द्वापरयुग में, फिर त्रेतायुग में और अंत में बाहरी सतयुग की होती हैं I **ऊँ तत् सत्** 🌹🙏🙏🪴बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम 🪴🙏🙏🌹

कैसे सौर्य मंडल आकाशगंगा में घूमता है I इसके बारे में अन्य प्रश्नों में विस्तार से विवरण दे चुका हुँ I अभी हम समयचक्र को समझने के लिए पहले इनके सार देख लेते हैं I

युग क्या है?

युग अस्ल में कालचक्र का यज्ञ कुंड होता है I जिसमें आत्मा की आहुति के रुप में आती है और सभी सुर-असुर तीनों द्वारों से अपने प्रभाव डालते हैं और जितने ज्यादा से ज्यादा अपनी तरफ लाने का प्रयास करते हैं I साथ ही बाकी दूसरे लोक/नक्षत्र के देव अपना-अपना योगदान देते हैं I

जब आकाशगंगा में पृथ्वी सौर्य मंडल में युग बदलती है, तो वह कैसे करती है?

जब सौर्य मंडल में स्वर्ग की तरफ से पृथ्वी पर दबाव आता हैI तब पृथ्वी नीचे की तरफ खिसकती है और सूर्य के थोड़े नजदीक पहुँच जाती हैं I जिससे युगों में मनुष्य सभ्यताएं और फिर युगों में चरण बनते हैं I जब चार चरण पूर्ण होते हैं तब युग बदल जाता है I

चित्र 1 :— लाल रंग का अंडाकार - स्वर्ग है I बैंगनी रंग का अंडाकार - नक्षत्र के लोक है I भूरा रंग का अंडाकार - असुर लोक का प्रतिबिंब है (जो दैत्यों के राजा बलि की तरफ से आते हैं)। पीला रंग का गोला सूर्य है, नीले रंग का गोला चंद्रमा है और हरे रंग का अंडाकार पृथ्वी है I पृथ्वी से तीनों लोक चार युगों के अनुसार इनकी दूरी होती है I

चित्र 1 में जब सभ्यता की शुरुआत होती है, तब चंद्रमा के मार्ग से उस नक्षत्र के द्वारा देवी-देवता, प्रजापति के पुत्र और नीचे से असुर मृत्युलोक में संप्रदायों का निर्माण और पालन-पषण करते हैं I सूर्य के मार्ग से इंद्र मृत्युलोक धर्म को सशक्त करते हैं I नीचे से असुर राहु मार्ग से मृत्युलोक में विचारों द्वारा प्रभाव डालते हैं I फिर इन्हीं तीनों के द्वारा रचे युगानुसार मनुष्य सभ्यताएं चलती है I

फिर हर महाद्वीप पर मनुष्य सभ्यताओं का निर्माण होता है I जो द्वीप जिस नक्षत्र के लोक की तरफ होता है I वे सभ्यता का निर्माण कर मनुष्य सभ्यता को चलाते हैं I

जब मनुष्य सभ्यता खत्म होती है, युग का चरण खत्म होता है या युग खत्म होता है I तब देवराज इंद्र (स्वर्ग) धर्मानुसार पृथ्वी को सूर्य की तरफ धकेलते है I आप नीचे दिए हुए चित्र से समझ सकते हैं I

चित्र 2:— पीला रंग सूर्य है I हरा रंग पृथ्वी है I बड़ा और बाहरी चक्र सत्ययुग है और सबसे नीचे और छोटा चक्र कलियुग है I

जब सौर्य मंडल आकाशगंगा में भ्रमण करता है I ऊपर शिशुमार चक्र के आधार पर देवराज इंद्र (स्वर्ग) द्वारा धकेला जाता है I प्राण वायु के माध्यम से I तब एक समयचक्र का निर्माण होता है, क्योंकि ऊपर नक्षत्र और नीचे असुर लोक भी घूम रहे होते हैं I तब उनके प्राणवायु के प्रभाव से सौर्य मंडल ऊपर-नीचे घूमता है I

चलिए अब समझते हैं कि यहाँ समयचक्र कैसे निर्माण होता है I नीचे दिए दोनों चित्र से समझते हैंI जो "Reversing Mechanism" — यूट्यूब से लिए हैI

सम्पूर्ण आकाशगंगा एक यांत्रिक अंडे जैसा है I सौर मंडल, स्वर्ग, नक्षत्र और असुर लोक कुछ इस तरह चलते हैं —

चित्र 3 :— हरा रंग को असुर लोक कह सकते हैं I बैंगनी रंग नक्षत्र के लोक कह सकते हैं I बड़ा लाल रंग को पृथ्वी/सौर्य मंडल कह सकते हैं I नारंगी रंग का पंखा आप सूर्य समझ सकते हैं I इस सौर्य मंडल को संतुलन बनाए रखने के लिए पीला हैंडल को स्वर्ग (देवराज इंद्र) कह सकते हैं I

जब सौर्य मंडल (पंखा) नक्षत्र (बैंगनी) के समीप होता है (चित्र 3) I तो इसकी दिशा सीधी तरफ होती है I वही सौर्य मंडल (पंखा) असुर लोक (हरे रंग) के समीप होता है (चित्र 4)I तब पंखे की घूमने की दिशा उल्टी तरफ हो जाती है I

चित्र 4 :— हरा रंग को असुर लोक कह सकते हैं I बैंगनी रंग नक्षत्र के लोक कह सकते हैं I बड़ा लाल रंग को पृथ्वी/सौर्य मंडल कह सकते हैं I नारंगी रंग का पंखा आप सूर्य समझ सकते हैं I इस सौर्य मंडल को संतुलन बनाए रखने के लिए पीला हैंडल को स्वर्ग (देवराज इंद्र) कह सकते हैं I

चित्र 5 — सौर्य मंडल में समयचक्र, जो नक्षत्र और असुर लोकों के बीच चलता हैI

अब इस समयचक्र को थोड़ा विस्तार से देखते हैं, इस चित्र 6 में —

चित्र 6

इस चक्र को दो छोटी काली रेखाओं से आधा किया है I जो बिल्कुल ऊपर-नीचे बनी है I अब इस समयचक्र को 12,000 मनुष्य वर्ष में बाँट दिया है I ऊपर से जब नीचे दाईं ओर से नीचे की तरफ चलते हैं, तब हरे रंग की रेखा तक को सत्ययुग कह सकते हैं, फिर हरे रंग की रेखा से नीली रेखा तक को त्रेतायुग कह सकते हैं I फिर नीली रेखा से भूरे रंग की रेखा तक को द्वापरयुग कहते हैं I और अंत में भूरे रंग की रेखा से नीचे काले रंग की रेखा तक कलियुग कह सकते हैं I इस चक्र में नीचे आते-आते 12,000 मनुष्य वर्ष हो जाते हैं I फिर ठीक 12,000 वर्ष इसी के उल्टी दिशा में चलते हैं I अर्थात कलियुग, द्वापरयुग, त्रेतायुग और अंत में सत्ययुग I

चित्र 5 में देखेंगे कि नीचे असुर लोक है, इसलिए दूसरा आधा समयचक्र सत्ययुग से न शुरु होकरI यह कलियुग से शुरु होता हैI और एक उल्टी दिशा से ऊपर की ओर जाता हैI इसका कारण अधर्म होता हैI नीचे के समयचक्र में असुरों का प्रभाव रहता हैI ऊपर के समयचक्र में देवताओं का, इसलिए ऊपर का समयचक्र में सत्ययुग बड़े हिस्से में होता है I

नोट:— यदि आप युक्तेश्वर महाराज के युगचक्र को देखेंगे तो आपको वह यही समयचक्र मिलेगा I

अब यूट्यूब के लिंक में आपने पंखे को सीधे और उल्टी दिशा में चलते देखा होगा I जो चित्र 3 और चित्र 4 में दिखाया है I यह दिशा हमारे सौर्य मंडल के सभी ग्रहो और सूर्य के कोर का घूमना होता है I (कोई एक चक्र में दो बार, कोई 3–4 चक्र में एक बार अपनी दिशा बदलता है I) परंतु मृत्युलोक में इस चक्र के हिसाब से दिशा परिवर्तन थोड़े अलग समय पर दिखता है I आप चित्र 6 में देखेंगे तो ज्ञात होगा कि दो लाल रंग की रेखा है, इस समयचक्र में I यह इस दिव्य चक्र के उत्तरायण और दक्षिणायन है I जब सूर्य नीचे की तरफ चलते हैं, तब ऊपर की लाल रेखा को उत्तरायण कहते हैं I जब सूर्य ऊपर की तरफ चलते हैं, तब नीचे की लाल रेखा को दक्षिणायन कहते हैं I इस कालचक्र में सूर्य के आधार पर सौर्य मंडल चलता है I

इस ऊपर-नीचे घूमने की वज़ह से सौर्य मंडल में थोड़ा बदलाव आता है I क्यूँकी यह सूर्य के आधार पर दिव्य चक्र बनता है I इसलिए यहाँ सूर्य की स्थिति ऊपर नीचे होती है, पृथ्वी के अनुसार I

चित्र 7 :— पीला रंग सूर्य है I हरा रंग पृथ्वी है I बड़ा और बाहरी चक्र सत्ययुग है और सबसे नीचे और छोटा चक्र कलियुग है I सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन की तरफ जाते हुए I

चित्र 8 :— सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की तरफ जाते हुए I

जब सूर्य की दिशा बदलती है I तब सूर्य ऊपर की तरफ उठता है, तब यही युग चक्र में थोड़ा बदलाव आता है I

नोट:— ये बदलाव थोड़े ही ऊपर नीचे होते हैं सूर्य के अनुपात में। परंतु मृत्युलोक में इसके कारण बहुत बड़ा बदलाव आते हैं I उदाहरण के लिए सूर्य और पृथ्वी के कोर की गति में बदलाव और उनकी दिशा बदलना I यह हर 12,000 साल में होते हैं I

मेरे अनुमान के अनुसार इन अयन में बदलाव इस तरह होते हैं कि दिशाएं बदलती है, परंतु व्यक्ति को चित्र 7 जैसे ही परिस्थिति महसूस होती है I (physically change is there in all objects but logically it's remain same as all directions are also change)


प्रश्न उठता है कि, जिस तरह यूट्यूब में "reversal mechanism" में गियर के संपर्क में आते ही पंखे की दिशा बदलती है I ठीक वैसे ही सौर्य मंडल में अयन के बदलाव ठीक ऊपर-नीचे क्यूँ नहीं होते हैं, चित्र 6 में?

इसका कारण है कि पूरा आकाशगंगा प्राणवायु की तेज प्रवाह के द्वारा अती वेग गति से चलते है I बदलाव ऊपर-नीचे पहुँचने पर शुरु होने लगते हैं I परंतु प्रत्यक्ष रूप से कुछ सौ साल बाद ये दिशा में बदलाव दिखते हैं I इसलिए इस कालचक्र में लाल रंग की रेखा अलग से दिखाई है जब उन लोकों के प्रभाव में आने वाले युग बदल जाते हैं I

इन्हीं अयन में बदलावों के कारण इस मृत्युलोक में प्रलय जैसे भयानक हालत बनते हैं I तब करोड़ो की जनसंख्या मात्र कुछ हजारों में बचती है I

नोट:— पृथ्वी और सूर्य की दिशा जब बदलती है, तब चित्र 7 से चित्र 8 होती है I परंतु हमे मृत्युलोक में बदलावों के बाद पुनः चित्र 7 की तरह ही दिखेगा I

जिस तरह युक्तेश्वर महाराज के अनुसार यह युगचक्र बनता है । परंतु यहाँ हम समयचक्र कह रहे हैं, ऐसा क्यूँ? कालचक्र और समयचक्र, इन दोनों में क्या फर्क होता है?

चित्र 9 :— युक्तेश्वर महाराज युगचक्र I

कालचक्र:— चक्र का आधार प्राण होता है, तब हम उस चक्र को कालचक्र कहते हैं I प्राणवायु सदा ब्रह्माण्ड में बहती है, जिसे लिंग रुप में सभी पुराणों में पढ़ते व जानते हैंI इसी प्राणवायु में सदा त्रिदेवों - ब्रह्मा, विष्णु, शिव वास होता है I जिसे शिव अपने ईश्वरीय रुप में प्राणवायु को चलाते हैं I जब यही प्राणवायु आकाशगंगा में आती है, तब इन्द्र, प्रजापति, अग्नि और ब्रहस्पति इन चारों द्वारा इसे चलाया जाता है I जिसे आप स्वस्तिक के रुप में पूजते है I (इस स्वस्तिक के बारे में विस्तार से अन्य प्रश्न में वर्णन किया है) कालचक्र में युग हमेशा यज्ञ कुंड की तरह बनते हैं I

समयचक्र:— जब कालचक्र के आधार पर प्राणशक्ति द्वारा चक्र बनता है, तब उसे समयचक्र कहते हैं। समयचक्र हमेशा शक्ति के आधार पर देवता-असुर अपने योगदान देते हैं I देवता धर्मी होते हैं और इनके बदलाव धीमे और लम्बे समय तक होते हैI वहीं असुर अधर्मी तथा बली और जल्दी करने वाले होते हैंI इसलिए उनका बदलाव बहुत जल्दी और कम समय का होता है I इसलिए जब मृत्युलोक असुर लोकों की तरफ होता है, तब मनुष्य समाज विवेकहीन, दैव में अविश्वास, शरीर सुख ही प्रथम है, दरिद्रता, क्रूरता, वेश्यावृति, छल, आदिI जब मृत्युलोक ऊपर की तरफ जाता है- तब ऊर्जा, बुद्धी का विकास, ज्ञान-विज्ञान, अविष्कार, अध्यात्म, खोज, आदि I ये विकास हमेशा युगानुसार ही होता है I और समयचक्र हमेशा युग हमेशा चक्र के रुप में चलते हैं I

ब्रह्माण्ड में शक्ति/प्रकृत्ति हमेशा दोनों सुर-असुर को धर्मानुसार अपना-अपना योगदान देने का मौका देती है I ये दोनों हमेशा एक-दूसरे के विपरीत होते हैं I परंतु ये एक चक्र में बंधे होते हैं I क्यूंकि ये शक्ति/प्रकृत्ति के आधार पर कर्म करते हैं I इसलिए इनके प्रभाव सदा समयचक्र में बंध के चलते है I यह आप ब्रह्माण्ड के हर कण में देख सकते हैं I एक बच्चा भी माँ के गर्भ में अपनी दिशा बदलता है I जिसकी वज़ह बच्चे के शरीर का विकास होता है (यह शरीर सदा प्रकृत्ति के आधीन रहता है) I यह परमाणु, क्वांटम, जैविक, आदि जो आप विज्ञान देख रहे हैं I वे सभी इसी शक्ति/प्रकृत्ति द्वारा प्राप्त और भोग भूमि पर उपजने वाले संप्रदाय तथा संप्रदाय का ज्ञान, विज्ञान भी प्रकृत्ति के आधार पर ही होते हैं I

इनमें धर्म के आधार पर 4 अवस्थाएं बनती है, जिसकी वज़ह से इनका घटना-बढ़ना होता है I ऐसे समयचक्र ब्रह्माण्ड में अनंत बनते हैं I जब भी किसी घटनाक्रम का निर्माण होता है, तब ये सुर-असुर इसी समयचक्र से उसे बढ़ाते हैं।

इसलिए युक्तेश्वर महाराज के युगचक्र को समयचक्र कहेंगे I

देवराज इंद्र द्वारा स्वर्ग के माध्यम से पृथ्वी को हल्का सा दबाया जाता है I जिससे युगों का निर्माण होता हैI ऐसा कहीं वर्णन है, क्या?

यह मेरा व्यक्तिगत अभ्यास से ज्ञात हुआ है I परंतु इसमें एक कथा का वर्णन है कि जब इस मन्वंतर में दैत्यों के राजा बलि, देवराज इंद्र को परास्त करते हैं I तब उस चतुर्युग में मृत्युलोक में सभी युग सत्ययुग के समान व्यतीत हुए थे I कलियुग तब आए थे, तब उन्होंने देखा मृत्युलोक में धर्म अपने चारों चरणों पर खड़ा है I तब सब जानकार वापस सुतल लोक चले गए थे I इसलिए अभी तक गणना के हिसाब से 27 कलियुग बीत चुके है, परंतु कलियुग मृत्युलोक में 26 बार ही आए हैं I

इस कथा सार में पता चलता है कि उस चतुर्युग में स्वर्ग से पृथ्वी की तरफ दबाव नहीं आया था I जिससे मृत्युलोक एक स्थिर होने के कारण युग चक्र में अस्थिरता आ गई थी I यह दबाव कैसे किया जाता है, यह सिर्फ देवता ही जानते हैं I

तो क्या अभी जो प्रलय के हालात हो रहे हैं, तो इसके लिए इस चक्र में होने वाले अयन में बदलाव ही कारण है?

जी हाँ! परंतु इस बार के प्रलय का कारण यह इकलौता कारण नहीं है I इस समय

  1. कलियुग की प्रथम सभ्यता का अंत होने वाला है I
  2. समयचक्र में अयन बदल रहा है I (जो आप न्यूज में पृथ्वी के कोर के बारे में पड़ते व सुनते होंगे I और सूर्य में भी बड़े बदलाव दिख रहे हैं I)
  3. मन्वंतर का कालचक्र भी मध्य पहुँच गया है I इसलिए सम्पूर्ण आकाशगंगा का भी पोल रिवर्सल हो रहा है I (इसलिए आप उल्का पिंड की घटना में बढ़ोतरी देख रहे हैं और देवता-असुर भी पृथ्वी पर आ सकते हैं I धर्मयुद्ध और चुने हुए मनुष्यों को बचाने के लिए I क्यूँकी इस बार के प्रलय में पृथ्वी पूरी जल के समुद्र में डूब जाएगी I तब कृष्ण पुनः सृष्टि का निर्माण कर कलियुग की द्वितीय मनुष्य सभ्यता को बढ़ायेंगे I)

जब आकाशगंगा हर छण अति वेग गति से घूमती है I तब यह समयचक्र युगानुसार कैसे चलता है?

यदि आप इसके मार्ग की कल्पना करेंगे तो ज्ञात होगा कि यह कुछ ऐसे परिपत्र रुप में लेता है, जिसे आप नीचे चित्र 10 और चित्र 11 में देख सकते हैं —

चित्र 10 :— कुछ इस तरह से समयचक्र चलता रहता है - परिपत्र (circular) रुप में I

चित्र 11:— यदि आप कमल को ऊपर से देखेंगे तो समयचक्र इन तीनों लोकों में कुछ ऐसा चक्र लगाता है I जिसमें कमल के फूल की बीच की कोंपले कलियुग में समय चक्र का निर्माण करती है I इससे बाहर की द्वापरयुग में, फिर त्रेतायुग में और अंत में बाहरी सतयुग की होती हैं I

**ऊँ तत् सत्**


🌹🙏🙏🪴बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम 🪴🙏🙏🌹

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