क्यों तिरुपति के भगवान बालाजी को बालाजी कहा जाता है, जबकि हनुमानजी जी को बालाजी कहते हैं और तिरुपति के भगवान बालाजी वास्तव में विष्णुजी हैं, ऐसा क्यों है?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब//🌹🌹🌹🌹🙏🙏🌹🌹🌹🌹✍️


यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार प्रभु वेंकटेश्वर (Venkateswara) या बालाजी (Balaji) को समर्पित है. ऐसा माना जाता है कि प्रभु विष्णु ने कुछ समय के लिए स्वामी पुष्करणी नामक तालाब के किनारे निवास किया था. यह तालाब तिरुमाला के पास स्थित है.

पौराणिक कथा के अनुसार, जब असुर और देवताओं ने सागर मंथन किया , तब कालकूट विष के अलावा चौदह रत्‍‌न निकले थे. इन रत्‍‌नों में से एक देवी लक्ष्मी भी थीं. लक्ष्मी के भव्य रूप और आकर्षण के फलस्वरूप सारे देवता, दैत्य और मनुष्य उनसे विवाह करने हेतु लालायित थे, किन्तु देवी लक्ष्मी को उन सबमें कोई न कोई कमी लगी. अत: उन्होंने समीप निरपेक्ष भाव से खड़े हुए विष्णुजी के गले में वरमाला पहना दी. विष्णु जी ने लक्ष्मी जी को अपने वक्ष पर स्थान दिया.

यह रहस्यपूर्ण है कि विष्णुजी ने लक्ष्मीजी को अपने ह्वदय में स्थान क्यों नहीं दिया? महादेव शिवजी की जिस प्रकार पत्‍‌नी अथवा अर्धाग्नि पार्वती हैं, किन्तु उन्होंने अपने ह्वदयरूपी मानसरोवर में राजहंस राम को बसा रखा था उसी समानांतर आधार पर विष्णु के ह्वदय में संसार के पालन हेतु उत्तरदायित्व छिपा था. उस उत्तरदायित्व में कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं हो इसलिए संभवतया लक्ष्मीजी का निवास वक्षस्थल बना.

विष्णुजी शेष शय्या पर लेटे हुए थे और उनकी दृष्टि भृगु पर नहीं जा पाई। भृगु ऋषि ने आवेश में आकर विष्णु जी के वक्ष पर ठोकर मार दी। अपेक्षा के विपरीत विष्णु जी ने अत्यंत विनम्र होकर उनका पांव पक़ड लिया और नम्र वचन बोले- हे ऋषिवर! आपके कोमल पांव में चोट तो नहीं आई? विष्णुजी के व्यवहार से प्रसन्न भृगु ऋषि ने यज्ञफल का सर्वाधिक उपयुक्त पात्र विष्णुजी को घोषित किया। उस घटना की साक्षी विष्णुजी की पत्‍‌नी लक्ष्मीजी अत्यंतअंतत: विष्णुजी ने लक्ष्मी को ढूंढते हुए धरती पर श्रीनिवास के नाम से जन्म लिया और संयोग से लक्ष्मी ने भी पद्मावती के रूप में जन्म लिया।

घटनाचक्र ने उन दोनों का अंतत: परस्पर विवाह करवा दिया। सब देवताओं ने इस विवाह में भाग लिया और भृगु ऋषि ने आकर एक ओर लक्ष्मीजी से क्षमा मांगी तो साथ ही उन दोनों को आशीर्वाद प्रदान किया। क्रुद्व हो गई कि विष्णुजी का वक्ष स्थान तो उनका निवास स्थान है और वहां धरतीवासी भृगु को ठोकर लगाने का किसने अधिकार दिया? उन्हें विष्णुजी पर भी क्रोध आया कि उन्होंने भृगु को दंडित करने की अपेक्षा उनसे उल्टी क्षमा क्यों मांगी? परिणामस्वरूप लक्ष्मीजी विष्णुजी को त्याग कर चली गई। विष्णुजी ने उन्हें बहुत ढूंढा किन्तु वे नहीं मिलीं।अंतत: विष्णुजी ने लक्ष्मी को ढूंढते हुए धरती पर श्रीनिवास के नाम से जन्म लिया और संयोग से लक्ष्मी ने भी पद्मावती के रूप में जन्म लिया। घटनाचक्र ने उन दोनों का अंतत: परस्पर विवाह करवा दिया। सब देवताओं ने इस विवाह में भाग लिया और भृगु ऋषि ने आकर एक ओर लक्ष्मीजी से क्षमा मांगी तो साथ ही उन दोनों को आशीर्वाद प्रदान किया।

लक्ष्मीजी ने भृगु ऋषि को क्षमा कर दिया किन्तु इस विवाह के अवसर पर एक अनहोनी घटना हुई। विवाह के उपलक्ष्य में लक्ष्मीजी को भेंट करने हेतु विष्णुजी ने कुबेर से धन उधार लिया जिसे वे कलियुग के समापन तक ब्याज सहित चुका देंगे। ऐसी मानता है कि जब भी कोई भक्त तिरूपति बालाजी के दर्शनार्थ जाकर कुछ चढ़ाता है तो वह न केवल अपनी श्रद्धा भक्ति अथवा आर्त प्रार्थना प्रस्तुत करता है अपितु भगवान विष्णु के ऊपर कुबेर के ऋण को चुकाने में सहायता भी करता है। अत: विष्णुजी अपने ऐसे भक्त को खाली हाथ वापस नहीं जाने देते हैं।

जिस नगर में यह मंदिर बना है उसका नाम तिरूपति है और नगर की जिस पहाड़ी पर मंदिर बना है उसे तिरूमला (श्री+मलय) कहते हैं। तिरूमला को वैंकट पहाड़ी अथवा शेषांचलम भी कहा जाता है। यह पहड़ी सर्पाकार प्रतीत होती हैं जिसके सात चोटियां हैं जो आदि शेष के फनों की प्रतीक मानी जाती हैं। इन सात चोटियों के नाम क्रमश: शेषाद्रि, नीलाद्रि, गरू़डाद्रि, अंजनाद्रि, वृषभाद्रि, नारायणाद्रि और वैंकटाद्रि हैं।


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