संदेश

* मुख्य Today's Main Headlines *By philanthropist Vanitha Kasnia PunjabIn view of the निलंबनKorona epidemic, the UAE extended the suspension of flights from India to 30 June.Banglades due to increasing cases of corona in India

ਗੌਤਮ ਬੁੱਧ ਨੇ ਦਰੱਖਤ ਹੇਠ ਕੀ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਸਨੂੰ ਗਿਆਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਇਆ?ਸਮਾਜ ਸੇਵਕ ਵਨੀਤਾ ਕਸਾਨੀ ਪੰਜਾਬ ਵੱਲੋਂਬੁੱਧ ਨੇ ਦਰੱਖਤ ਹੇਠ ਬੈਠ ਕੇ ਕੀ ਕੀਤਾ? ਜੇ ਮੈਂ ਗਲਤ ਨਹੀਂ ਹਾਂ, ਤੁਹਾਡੇ ਮਨ ਦਾ ਇਕ ਹੋਰ ਸਵਾਲ What did Gautama Buddha do under the tree that he got enlightenment?By social worker Vanita Kasani PunjabWhat did Buddha do by sitting under the tree? If I am not mistaken, ask another question in your mind.

*बुद्ध पूर्णिमा की आपको बहुत सारी शुभकामनाएं 🍒🍒🍒🍒🍒By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🙏🌹🌹*एक पति पत्नी का एक खूबसूरत संवाद...*मैंने एक दिन अपनी पत्नी से पूछा- क्या तुम्हें बुरा नहीं लगता मैं बार-बार तुमको बोल देता हूँ, डाँट देता हूँ फिर भी तुम पति भक्ति में लगी रहती हो जबकि मैं कभी पत्नी भक्त बनने का प्रयास नहीं करता?मैं वेद का विद्यार्थी हूँ और मेरी पत्नी विज्ञान की परन्तु उसकी आध्यात्मिक शक्तियाँ मुझसे कई गुना ज्यादा हैं क्योकि मैं केवल पढता हूँ और वो जीवन में उसका पालन करती है।मेरे प्रश्न पर जरा वो हँसी और गिलास में पानी देते हुए बोली- ये बताइए एक पुत्र यदि माता की भक्ति करता है तो उसे मातृ भक्त कहा जाता है परन्तु माता यदि पुत्र की कितनी भी सेवा करे उसे पुत्र भक्त तो नहीं कहा जा सकता न।मैं सोच रहा था आज पुनः ये मुझे निरुत्तर करेगी। मैंने प्रश्न किया ये बताओ जब जीवन का प्रारम्भ हुआ तो पुरुष और स्त्री समान थे फिर पुरुष बड़ा कैसे हो गया जबकि स्त्री तो शक्ति का स्वरूप होती है?मुस्काते हुए उसने कहा- आपको थोड़ी विज्ञान भी पढ़नी चाहिए थी...मैं झेंप गया उसने कहना प्रारम्भ किया... *दुनिया मात्र दो वस्तु से निर्मित है ऊर्जा और पदार्थ, पुरुष ऊर्जा का प्रतीक है और स्त्री पदार्थ की। पदार्थ को यदि विकसित होना हो तो वह ऊर्जा का आधान करता है, ना की ऊर्जा पदार्थ का।* ठीक इसी प्रकार जब एक स्त्री एक पुरुष का आधान करती है तो शक्ति स्वरूप हो जाती है और आने वाले पीढ़ियों अर्थात् अपने संतानों के लिए प्रथम पूज्या हो जाती है क्योंकि वह पदार्थ और ऊर्जा दोनों की स्वामिनी होती है जबकि पुरुष मात्र ऊर्जा का ही अंश रह जाता है।मैंने पुनः कहा *तब तो तुम मेरी भी पूज्य हो गई न क्योंकि तुम तो ऊर्जा और पदार्थ दोनों की स्वामिनी हो*?अब उसने झेंपते हुए कहा *आप भी ज्ञानी होकर कैसी बात करते हैं आपकी ऊर्जा का अंश मैंने ग्रहण किया और शक्तिशाली हो गई तो क्या उस शक्ति का प्रयोग आप पर ही करूँ ये तो कृतघ्नता हो जाएगी।*मैंने कहा *मैं तो तुम पर शक्ति का प्रयोग करता हूँ फिर तुम क्यों नहीं?*उसका उत्तर सुन मेरे आँखों में आँसू आ गए............उसने कहा..... *जिसके संसर्ग मात्र से मुझमें जीवन उत्पन्न करने की क्षमता आ गई और ईश्वर से भी ऊँचा जो पद आपने मुझे प्रदान किया जिसे माता कहते हैं उसके साथ मैं विद्रोह नहीं कर सकती, फिर मुझे चिढ़ाते हुए उसने कहा कि यदि शक्ति प्रयोग करना भी होगा तो मुझे क्या आवश्यकता मैं तो माता सीता की भाँति लव कुश तैयार कर दूँगी जो आपसे मेरा हिसाब किताब कर लेंगे।**नमन है सभी मातृ शक्तियों को जिन्होंने अपने प्रेम और मर्यादा में समस्त सृष्टि को बाँध रखा है।*ऋणी हूँ मैं अपने मां का जो मुझे पतन के तरफ जाने से सदैव रोक लेती है! 👏👏*नमन है सभी मातृ शक्तियोंको*

2021: आज दिखेगा 'सुपर ब्लड मून', जानिए चंद्र ग्रहण के बुरे प्रभाव से बचाव के लिए क्या करें और क्या नहीं By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब Livehindustan साल का पहला चंद्र ग्रहण 26 मई 2021, दिन बुधवार को लगेगा। यह एक खास खगोलीय घटना होगी। क्योंकि यह सुपर मून, चंद्र ग्रहण और ब्लड मून होगा। साल के पहले पूर्ण चंद्र ग्रहण को ऑस्ट्रेलिया, प्रशांत महासागर, उत्तर और दक्षिण अमेरिका और पूर्वी महासागर में देखा जा सकेगा। भारत की बात करें तो चंद्रमा पूर्वी क्षितिज से नीचे होगा, जिसके कारण देश के कई हिस्सों में ब्लड मून नहीं दिखेगा।जानिए क्या होता है ब्लड मून-सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी के आने की घटना को चंद्र ग्रहण कहते हैं। इस स्थिति में पृथ्वी की छाया चंद्रमा की रोशनी को ढक लेती है। जिसके कारण सूर्य की रोशनी जब पृथ्वी के वायुमंडल से टकराकर चंद्रमा पर पड़ती हैं तो यह ज्यादा चमकीला हो जाता है। जब चंद्रमा पृथ्वी के पास धीरे-धीरे पहुंचता है तो उसका रंग काफी चमकीला यानी गहरे लाल रंग का हो जाता है। इस घटना को ब्लड मून कहा जाता है।चंद्र ग्रहण का समय-बाल वनिता महिला आश्रम संस्थान लाइनपार के ज्योतिर्विद वनिता कासनियां पंजाब ने बताया 26 मई को ग्रहण दोपहर 2.17 बजे से आरंभ होगा और शाम 7.19 बजे तक रहेगा।कहां नजर आएगा साल का पहला चंद्र ग्रहण-पूर्वी एशिया, प्रशांत महासागर, उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका के ज्यादातर हिस्सों में और आस्ट्रेलिया में पूर्ण चंद्र ग्रहण नजर आएगा। जबकि भारत के लोग आंशिक चंद्र ग्रहण का आखिरी भाग देख सकेंगे।ग्रहण के अशुभ प्रभाव से बचाव के लिए क्या करें और क्या नहीं-ग्रहण काल में क्या नहीं करना चाहिए-1. मान्यता है कि ग्रहण के दौरान तेल लगाना, जल पीना, बाल बनाना, कपड़े धोना और ताला खोलने जैसे कार्य नहीं करने चाहिए। 2. कहा जाता है कि ग्रहण काल में भोजन करने वाले मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उसे उतने सालों तक नरक में वास करना पड़ता है।3. मान्यता है कि ग्रहण काल में सोने से व्यक्ति रोगी होता है।4. चंद्र ग्रहण में तीन प्रहर का भोजन करना वर्जित माना जाता है।5. ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल आदि नहीं तोड़ने चाहिए।6. ग्रहण काल में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।चंद्र ग्रहण के दौरान क्या करें-1. ग्रहण शुरू होने से पहले खुद को शुद्ध कर लें। ग्रहण शुरू होने से पहले स्नान आदि कर लेना शुभ माना जाता है।2. ग्रहण काल में अपने इष्ट देव या देवी की पूजा अर्चना करना शुभ होता है।3. चंद्र ग्रहण में दान करना बेहद शुभ माना जाता है। ग्रहण समाप्त होने के बाद घर में गंगा जल का छिड़काव करना चाहिए।4. ग्रहण खत्म होने के बाद एक बार फिर स्नान करना चाहिए। कहते हैं कि ऐसा शुभ फलों की प्राप्ति होती है।5. ग्रहण काल के दौरान खाने-पीने की चीजों में तुलसी की पत्ती डालनी चाहिए।

HIRANYAKASHIPU AND PRAHLADThe depiction of the transformation of the incarnation in the mind and intellect by the story of Hiranyakashipu and Prahlada.By social worker Vanita Kasani PunjabShrimad Bhagwat Mahapu

Very beautiful story .. you will cry with fearYes, please study carefully ..A sadhu Maharaj was narrating the story of Shri Ramayana. People used to come and go with joy. Sadhu Maharaj's rule was before starting the story everyday

Happy Brothers DayPut faith on your brother and faith in God,As you wish, you will find a way out4After the father, who went homeHas taken total responsibility,With sharp intentions

गाय By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब किसी अन्य भाषा में पढ़ें डाउनलोड करें ध्यान रखेंसंपादित करेंगाय एक महत्त्वपूर्ण पालतू पशु है जो संसार में प्रायः सर्वत्र पाई जाती है। इससे उत्तम किस्म का दूध प्राप्त होता है। हिन्दू, गाय को 'माता' (गौमाता) कहते हैं। इसके बछड़े बड़े होकर गाड़ी खींचते हैं एवं खेतों की जुताई करते हैं।भारत में गोपालन एक पवित्र कार्य माना जाता है।भारत में वैदिक काल से ही गाय का महत्व रहा है। आरम्भ में आदान-प्रदान एवं विनिमय आदि के माध्यम के रूप में गाय उपयोग होता था और मनुष्य की समृद्धि की गणना उसकी गोसंख्या से की जाती थी। हिन्दू धार्मिक दृष्टि से भी गाय पवित्र मानी जाती रही है तथा उसकी हत्या महापातक पापों में की जाती है।गोहत्यां ब्रह्महत्यां च करोति ह्यतिदेशिकीम्।यो हि गच्छत्यगम्यां च यः स्त्रीहत्यां करोति च ॥ २३ ॥भिक्षुहत्यां महापापी भ्रूणहत्यां च भारते।कुम्भीपाके वसेत्सोऽपि यावदिन्द्राश्चतुर्दश ॥ २४ ॥ (देवीभागवतपुराणम्)[1]गाय व भैंस में गर्भ से संबन्धित जानकारीसंपादित करेंसम्भोग काल - वर्ष भर, तथा गर्मिओं में अधिकवर्ष में गर्मी के आने का समय - हर 18 से 21 दिन (गर्भ न ठहरने पर) ; 30 से 60 दिन में (व्याने के बाद)गर्मी की अवधि - 20 से 36 घंटे तककृत्रिम गर्भधान व वीर्य डालने का समय - मदकाल आरम्भ होने के 12 से 18 घंटे बादगर्भ जांच करवाने का समय - कृत्रिम गर्भधान का टीका कराने के 60 से 90 दिनों मेंगर्भकाल - गाय 275 से 280 दिन ; भैंस 308 दिनभारतीय गाय ( हमारी माता)संपादित करेंसमुद्रमन्थन के दौरान इस धरती पर दिव्य गाय की उत्पत्ति हुई | भारतीय गोवंश को माता का दर्जा दिया गया है इसलिए उन्हें "गौमाता" कहते है | हमारे शास्त्रों में गाय को पूजनीय बताया गया है इसीलिए हमारी माताएं बहनें रोटी बनाती है तो सबसे पहली रोटी गाय के की होती है गाय का दूध अमृत तुल्य होता है |भगवत पुराण के अनुसार, सागर मन्थन के समय पाँच दैवीय कामधेनु ( नन्दा, सुभद्रा, सुरभि, सुशीला, बहुला) निकलीं। कामधेनु या सुरभि (संस्कृत : कामधुक) ब्रह्मा द्वारा ली गई। दिव्य वैदिक गाय (गौमाता) ऋषि को दी गई ताकि उसके दिव्य अमृत पंचगव्य का उपयोग यज्ञ, आध्यात्मिक अनुष्ठानों और संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए किया जा सके।Индия. Горбатая корова.JPG Индия. Цапля и корова.JPG Wiki Loves Earth 2017 - 004.jpg PyhäLehmäIntiassa.JPG Cow in Mathura.jpg Cattle and Farm.jpg नेल्लोर गाय A sacred Udipi temple Muth bull(24-1-08)Udipi(India).JPG Ghats of Maheshwar 01.jpg Brahma gives cows a boon.jpg Krishna playing the flute to a dancing Radha, two holy cows Wellcome V0045087.jpg Krishna as an infant on Yasoda's lap playing with a cow and Wellcome V0045098.jpgभारतीय गाय की मुख्य २ विशेषताएँ हैं-(१) सुन्दर कूबड़ (HUMP)(२) उनकी पीठ पर और गर्दन के नीचे त्वचा का झुकाव है : गलकंबल (DEWLAP)भारत में गाय की ३० से अधिक नस्लें पाई जाती हैं।[2] रेड सिन्धी, साहिवाल, गिर, देवनी, थारपारकर आदि नस्लें भारत में दुधारू गायों की प्रमुख नस्लें हैं।लोकोपयोगी दृष्टि में भारतीय गाय को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। पहले वर्ग में वे गाएँ आती हैं जो दूध तो खूब देती हैं, लेकिन उनकी पुंसंतान अकर्मण्य अत: कृषि में अनुपयोगी होती है। इस प्रकार की गाएँ दुग्धप्रधान एकांगी नस्ल की हैं। दूसरी गाएँ वे हैं जो दूध कम देती हैं किंतु उनके बछड़े कृषि और गाड़ी खींचने के काम आते हैं। इन्हें वत्सप्रधान एकांगी नस्ल कहते हैं। कुछ गाएँ दूध भी प्रचुर देती हैं और उनके बछड़े भी कर्मठ होते हैं। ऐसी गायों को सर्वांगी नस्ल की गाय कहते हैं। भारत की गोजातियाँ निम्नलिखित हैं:[3]साहीवाल जातिसंपादित करेंसायवाल गाय का मूल स्थान पाकिस्तान में है। इन गायों का सिर चौड़ा उभरा हुआ, सींग छोटी और मोटी, तथा माथा मझोला होता है। भारत में ये राजस्थान के बीकानेर,श्रीगंगानगर, पंजाब में मांटगुमरी जिला और रावी नदी के आसपास लायलपुर, लोधरान, गंजीवार आदि स्थानों में पाई जाती है। ये भारत में कहीं भी रह सकती हैं। एक बार ब्याने पर ये १० महीने तक दूध देती रहती हैं। दूध का परिमाण प्रति दिन १०-20 लीटर प्रतिदिन होता है। इनके दूध में मक्खन का अंश पर्याप्त होता है। इसके दूध में वसा 4 से 6% पाई जाती है।सिंधीसंपादित करेंइनका मुख्य स्थान सिंध का कोहिस्तान क्षेत्र है। बिलोचिस्तान का केलसबेला इलाका भी इनके लिए प्रसिद्ध है। इन गायों का वर्ण बादामी या गेहुँआ, शरी beर लंबा और चमड़ा मोटा होता है। ये दूसरी जलवायु में भी रह सकती हैं तथा इनमें रोगों से लड़ने की अद्भुत शक्ति होती है। संतानोत्पत्ति के बाद ये ३०० दिन के भीतर कम से कम २००० लीटर दूध देती हैं।काँकरेजसंपादित करेंकच्छ की छोटी खाड़ी से दक्षिण-पूर्व का भूभाग, अर्थात् सिंध के दक्षिण-पश्चिम से अहमदाबाद और रधनपुरा तक का प्रदेश, काँकरेज गायों का मूलस्थान है। वैसे ये काठियावाड़, बड़ोदा और सूरत में भी मिलती हैं। ये सर्वांगी जाति की गाए हैं और इनकी माँग विदेशों में भी है। इनका रंग रुपहला भूरा, लोहिया भूरा या काला होता है। टाँगों में काले चिह्न तथा खुरों के ऊपरी भाग काले होते हैं। ये सिर उठाकर लंबे और सम कदम रखती हैं। चलते समय टाँगों को छोड़कर शेष शरीर निष्क्रिय प्रतीत होता है जिससे इनकी चाल अटपटी मालूम पड़ती है। सवाई चाल से प्रसिद्ध गाय है। केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान में गाय पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार कांकरेज गाय किसानों की आमदनी कई गुना बढ़ा सकती है। राजस्थान में इसे सांचोरी गाय के नाम से जानी जाती है ।[4]मालवीसंपादित करेंये गायें दुधारू नहीं होतीं। इनका रंग खाकी होता है तथा गर्दन कुछ काली होती है। अवस्था बढ़ने पर रंग सफेद हो जाता है। ये ग्वालियर के आस-पास पाई जाती हैं।नागौरीसंपादित करेंइनका प्राप्तिस्थान जोधपुर के आस-पास का प्रदेश है। ये गायें भी विशेष दुधारू नहीं होतीं, किंतु ब्याने के बाद बहुत दिनों तक थोड़ा-थोड़ा दूध देती रहती हैं।थारपारकरसंपादित करेंमुख्य लेख: थारपारकर गायये गायें दुधारू होती हैं। इनका रंग खाकी, भूरा, या सफेद होता है। कच्छ, जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर और सिंध का दक्षिणपश्चिमी रेगिस्तान इनका प्राप्तिस्थान है। इनकी खुराक कम होती है। इसका दूध 10 से 16 लीटर प्रतिदिन तक होता है।पवाँरसंपादित करेंपीलीभीत, पूरनपुर तहसील और खीरी इनका प्राप्तिस्थान है। इनका मुँह सँकरा और सींग सीधी तथा लंबी होती है। सींगों की लबाई १२-१८ इंच होती है। इनकी पूँछ लंबी होती है। ये स्वभाव से क्रोधी होती है और दूध कम देती हैं।भगनाड़ीसंपादित करेंनाड़ी नदी का तटवर्ती प्रदेश इनका प्राप्तिस्थान है। ज्वार इनका प्रिय भोजन है। नाड़ी घास और उसकी रोटी बनाकर भी इन्हें खिलाई जाती है। ये गायें दूध खूब देती हैं।दज्जलसंपादित करेंपंजाब के डेरागाजीखाँ जिले में पाई जाती हैं। ये दूध कम देती हैं।गावलावसंपादित करेंदूध साधारण मात्रा में देती है। प्राप्तिस्थान सतपुड़ा की तराई, वर्धा, छिंदवाड़ा, नागपुर, सिवनी तथा बहियर है। इनका रंग सफेद और कद मझोला होता है। ये कान उठाकर चलती हैं।हरियानासंपादित करेंये ८-१२ लीटर दूध प्रतिदिन देती हैं। गायों का रंग सफेद, मोतिया या हल्का भूरा होता हैं। ये ऊँचे कद और गठीले बदन की होती हैं तथा सिर उठाकर चलती हैं। इनका प्राप्तिस्थान रोहतक, हिसार, सिरसा, करनाल, गुडगाँव और जिंद है। भारत की पांच सबसे श्रेष्ठ नस्लो में हरयाणवी नस्ल आती है। यह अद्भुत है।अंगोल या नीलोरसंपादित करेंये गाएँ दुधारू, सुंदर और मंथरगामिनी होती हैं। प्राप्तिस्थान तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, गुंटूर, नीलोर, बपटतला तथा सदनपल्ली है। ये चारा कम खाती हैं।राठीसंपादित करेंइस गाय का मूल मूल स्थान राजस्थान में बीकानेर, श्रीगंगानगर हैं। ये लाल-सफेद चकते वाली,काले-सफेद,लाल, भूरी,काली, आदि कई रंगों की होती है। ये खाती कम और दूध खूब देती हैं। ये प्रतिदिन का 10 से 20 लीटर तक दूध देती है। इस पर पशु विश्वविद्यालय बीकानेर राजस्थान में रिसर्च भी काफी हुआ है। इसकी सबसे बड़ी खासियत, ये अपने आप को भारत के किसी भी कोने में ढाल लेती है।गीर- ये प्रतिदिन 12 लीटर या इससे अधिक दूध देती हैं। इनका मूलस्थान काठियावाड़ का गीर जंगल है। राजस्थान में रैण्डा व अजमेरी के नाम से जाना जाता है[कृपया उद्धरण जोड़ें] केंद्रीय गोवंश अनुसंधान संस्थान में गाय पर शोध करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार गीर गाय किसानों की आमदनी कई गुना बढ़ा सकती है।[4]देवनी - दक्षिण आंध्र प्रदेश और हिंसोल में पाई जाती हैं। ये दूध खूब देती है।नीमाड़ी - नर्मदा नदी की घाटी इनका प्राप्तिस्थान है। ये गाएँ दुधारू होती हैं।अमृतमहल, हल्लीकर, बरगूर, बालमबादी नस्लें मैसूर की वत्सप्रधान, एकांगी गाएँ हैं। कंगायम और कृष्णवल्ली दूध देनेवाली हैं।#गाय के शरीर में सूर्य की गो-किरण शोषित करने की अद्भुत शक्ति होने से उसके दूध, घी, झरण आदि में स्वर्णक्षार पाये जाते हैं जो आरोग्य व प्रसन्नता के लिए ईश्वरीय वरदान हैं। पुण्‍य व स्‍वकल्‍याण चाहनेवाले गृहस्‍थों को गौ-सेवा अवश्‍य करनी चाहिए क्‍योंकि गौ-सेवा से सुख-समृद्धि होती है।गौ-सेवा से धन-सम्‍पत्ति, आरोग्‍य आदि मनुष्‍य-जीवन को सुखकर बनानेवाले सम्‍पूर्ण साधन सहज ही प्राप्‍त हो जाते हैं। मानव #गौ की महिमा को समझकर उससे प्राप्त दूध, दही आदि पंचगव्यों का लाभ ले तथा अपने जीवन को स्वस्थ, सुखी बनाये - इस उद्देश्य से हमारे परम करुणावान ऋषियों-महापुरुषों ने गौ को माता का दर्जा दिया तथा कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन गौ-पूजन की परम्परा स्थापित की। यही मंगल दिवस गोपाष्टमी कहलाता है।बाल वनिता महिला आश्रमगोपाष्‍टमी भारतीय संस्‍कृति का एक महत्‍वपूर्ण पर्व है। मानव–जाति की समृद्धि गौ-वंश की समृद्धि के साथ जुड़ी हुई है। अत: गोपाष्‍टमी के पावन पर्व पर गौ-माता का पूजन-परिक्रमा कर विश्‍वमांगल्‍य की प्रार्थना करनी चाहिए।विदेशी नस्ल की गाय की उत्पतिसंपादित करेंजर्सी और कई विदेशी नस्लों कि “गाय” जिसे अंग्रेजी में "Cow" कहते है , उनकी मूल उत्पत्ति "URUS" नामक जंगली जानवर से हुई है | विदेशी नस्लों कि “गाय” को "Bos TaURUS" नाम से भी जाना जाता है |विदेशी वैज्ञानिकों ने जर्सी और कई विदेशी नस्लों कि “गाय”(Bos TaURUS ) कि मूल उत्पत्ति आनुवंशिक रूप से संशोधित ( जी.एम. / Genetically modified) "URUS नामक जंगली जानवर से कि है ।जर्सी और कई विदेशी नस्लों (Bos TaURUS )आनुवंशिक रूप से संशोधित URUS नामक जंगली जानवर की मूल नस्ल है ।विदेशी गाय की नस्लें बड़ी मात्रा में दूध देती हैं, क्योंकि वे आनुवंशिक रूप से संशोधित (जी.एम. /Genetically modified) जानवर हैं, लेकिन दूध की गुणवत्ता इतनी अच्छी नहीं है |जर्सी और कई विदेशी नस्लों कि “गाय” के मूत्र और गोबर में कोई चिकित्सा गुण नहीं पाया जाता है | एकमात्र उद्देश्य जिसके लिए इस मानव निर्मित जानवर को जी.एम. के माध्यम से बनाया गया था, वह दूध और मांस के लालच को पूरा करना है।प्रमुख देशों में गायों की संख्यासंपादित करेंविश्व में गायों की कुल संख्या १३ खरब (1.3 बिलियन) होने का अनुमान है।[5] नीचे दी गई सारणी में विभिन्न देशों में सन् 2009 में गायों की संख्या दी गई है।[6]जर्सी और विदेशी नस्लों कि गाय URUS नामक जंगली जानवर से पैदा/ उत्पन हुई है | इसलिए इन्हें "Bos TaURUS" के नाम से भी जाना जाता है |जर्सी विदेशी गाय / अभारतीय गायगायों की संख्याक्षेत्र/देश गायों की संख्याभारत 281,700,000ब्राजील 187,087,000चीन 139,721,000यूएसए 96,669,000यूरोपीय संघ 87,650,000अर्जेण्टीना 51,062,000आस्ट्रेलिया 29,202,000मैक्सिको 26,489,000रूस 18,370,000दक्षिण अफ्रीका 14,187,000कनाडा 13,945,000अन्य 49,756,000सन्दर्भसंपादित करें↑ http://shiva.iiit.ac.in/SabdaSaarasvataSarvasvam/index.php/%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A4%95%E0%A4%AE%E0%A5%8D[मृत कड़ियाँ]↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 8 जुलाई 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 मार्च 2014.↑ [ ये हैं भारत की देसी गाय की नस्लें, जिनके बारे में आप शायद ही जानते होंगेhttps://www.gaonconnection.com/animal-husbandry/these-are-indigenous-breeds-of-india-which-you-may-hardly-know-about भारतीय गाय की नस्लें]↑ अ आ "मेरठ: वैज्ञानिकों का दावा- गीर व कांकरेज गाय किसानों की आमदनी कई गुना बढ़ाएगी !". News18 India. 2019-11-04. मूल से 24 दिसंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2019-12-24.↑ Muruvimi, F. and J. Ellis-Jones. 1999. A farming systems approach to improving draft animal power in Sub-Saharan Africa. In: Starkey, P. and P. Kaumbutho. 1999. Meeting the challenges of animal traction. Intermediate Technology Publications, London. pp. 10-19.↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 19 सितंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 अक्तूबर 2013.इन्हें भी देखेंसंपादित करेंपंचगव्यगोमूत्रगोरक्षा आन्दोलनपशुपालनगोकरुणानिधि - स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा रचित लघुग्रन्थ जिसमें गाय का महत्व प्रतिपादित किया गया है।बाहरी कड़ियाँसंपादित करेंभारत के किस राज्य में गाय की कौन सी प्रजातियां पाई जाती हैंदेसी गाय का महत्वगाय में निमोनिया का रोगजर्सी और कई विदेशी नस्लों कि “गायजी.एम. / Genetically modifiedविदेशी गाय की नस्ल - Bos TaURUSLast edited 3 days ago by शरदेंदू पांडेयRELATED PAGESढोरराठी गोवंशगोजातीय नस्लथारपारकर गायपाकिस्तान से पशु की एक प्रजति