।। श्रीरामचरितमानस- बालकाण्ड ।। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब चौपाई-देखि रूप मुनि बिरति बिसारी। बड़ी बार लगि रहे निहारी।।लच्छन तासु बिलोकि भुलाने। हृदयँ हरष नहिं प्रगट बखाने।।जो एहि बरइ अमर सोइ होई। समरभूमि तेहि जीत न कोई।।सेवहिं सकल चराचर ताही।बरइ सीलनिधि कन्या जाही।।लच्छन सब बिचारि उर राखे। कछुक बनाइ भूप सन भाषे।।सुता सुलच्छन कहि नृप पाहीं। नारद चले सोच मन माहीं।।करौं जाइ सोइ जतन बिचारी। जेहि प्रकार मोहि बरै कुमारी।।जप तप कछु न होइ तेहि काला। हे बिधि मिलइ कवन बिधि बाला।।भावार्थ-उसके रूप को देखकर मुनि वैराग्य भूल गए और बड़ी देर तक उसकी ओर देखते ही रह गए। उसके लक्षण देखकर मुनि अपने आपको भी भूल गए और हृदय में हर्षित हुए, पर प्रकट रूप में उन लक्षणों को नहीं कहा-(लक्षणों को सोचकर वे मन में कहने लगे कि) जो इसे ब्याहेगा, वह अमर हो जाएगा और रणभूमि में कोई उसे जीत न सकेगा। यह शीलनिधि की कन्या जिसको वरेगी, सब चर-अचर जीव उसकी सेवा करेंगे।सब लक्षणों को विचारकर मुनि ने अपने हृदय में रख लिया और राजा से कुछ अपनी ओर से बनाकर कह दिए। राजा से लड़की के सुलक्षण कहकर नारदजी चल दिए। पर उनके मन में यह चिन्ता थी कि-मैं जाकर सोच-विचारकर अब वही उपाय करूँ, जिससे यह कन्या मुझे ही वरे। इस समय जप-तप से तो कुछ हो नहीं सकता। हे विधाता ! मुझे यह कन्या किस तरह मिलेगी ?दोहा-एहि अवसर चाहिअ परम सोभा रूप बिसाल।जो बिलोकि रीझै कुअँरि तब मेलै जयमाल।।भावार्थ-इस समय तो बड़ी भारी शोभा और विशाल (सुंदर) रूप चाहिए, जिसे देखकर राजकुमारी मुझ पर रीझ जाए और तब जयमाल (मेरे गले में) डाल दे।।। जय जय सियाराम ।।
।। श्रीरामचरितमानस- बालकाण्ड ।।
By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब
चौपाई-
देखि रूप मुनि बिरति बिसारी।
बड़ी बार लगि रहे निहारी।।
लच्छन तासु बिलोकि भुलाने।
हृदयँ हरष नहिं प्रगट बखाने।।
जो एहि बरइ अमर सोइ होई।
समरभूमि तेहि जीत न कोई।।
सेवहिं सकल चराचर ताही।
बरइ सीलनिधि कन्या जाही।।
लच्छन सब बिचारि उर राखे।
कछुक बनाइ भूप सन भाषे।।
सुता सुलच्छन कहि नृप पाहीं।
नारद चले सोच मन माहीं।।
करौं जाइ सोइ जतन बिचारी।
जेहि प्रकार मोहि बरै कुमारी।।
जप तप कछु न होइ तेहि काला।
हे बिधि मिलइ कवन बिधि बाला।।
भावार्थ-
उसके रूप को देखकर मुनि वैराग्य भूल गए और बड़ी देर तक उसकी ओर देखते ही रह गए। उसके लक्षण देखकर मुनि अपने आपको भी भूल गए और हृदय में हर्षित हुए, पर प्रकट रूप में उन लक्षणों को नहीं कहा-
(लक्षणों को सोचकर वे मन में कहने लगे कि) जो इसे ब्याहेगा, वह अमर हो जाएगा और रणभूमि में कोई उसे जीत न सकेगा। यह शीलनिधि की कन्या जिसको वरेगी, सब चर-अचर जीव उसकी सेवा करेंगे।
सब लक्षणों को विचारकर मुनि ने अपने हृदय में रख लिया और राजा से कुछ अपनी ओर से बनाकर कह दिए। राजा से लड़की के सुलक्षण कहकर नारदजी चल दिए। पर उनके मन में यह चिन्ता थी कि-
मैं जाकर सोच-विचारकर अब वही उपाय करूँ, जिससे यह कन्या मुझे ही वरे। इस समय जप-तप से तो कुछ हो नहीं सकता। हे विधाता ! मुझे यह कन्या किस तरह मिलेगी ?
दोहा-
एहि अवसर चाहिअ परम सोभा रूप बिसाल।
जो बिलोकि रीझै कुअँरि तब मेलै जयमाल।।
भावार्थ-
इस समय तो बड़ी भारी शोभा और विशाल (सुंदर) रूप चाहिए, जिसे देखकर राजकुमारी मुझ पर रीझ जाए और तब जयमाल (मेरे गले में) डाल दे।
।। जय जय सियाराम ।।
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