विश्व में मानव जीवन का उद्देश्य और लक्ष्य क्या है ?बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाबक्या आप ईश्वर के बारे में कुछ नई बातें बता सकते हैं जो सभी धर्मों के ग्रंथों से हट कर हों व तर्क संगत हों जिससे पूरे विश्व की जनता को सही मार्ग दर्शन मिले और वे धर्मों से थोड़ा हट कर भी सोचें जो वास्तविक ईश्वर कृपा तथा मानसिक शांति भी दे?नोट : कृपया आदरणीय पाठक इसको समय निकाल कर के, फुरसत के पलों में धैर्य पूर्वक पड़ें। क्योंकि यह एक लंबा लेख है और ऐसे विषय में है, जो एकाग्रता यानी ‘ध्यान ’की मांग करता है। धन्यवाद।✍️ क्या शानदार सवाल है ! एक मानव के अस्तित्व, उद्देश्य और कल्याण से जुड़ा इससे महत्त्वपूर्ण सवाल और क्या हो सकता है।जिसका स्टीक उत्तर किसी पहुंचे हुए संत यां सतगुरु के इलावा किसी के पास नहीं होगा।क्योंकि इस सवाल से तो विज्ञान भी अभी तक अनजान है।पर हम इस पर जवाब देने का प्रयास अवश्य करेंगे।👉 आईए इस महत्वपूर्ण पर बेहद पेचीदा और जटिल सवाल के जवाब पर चर्चा शुरू करते हैं : –एक मानव यां इंसान के जन्म का उद्देश्य मात्र इतना होता है कि वो ईश्वर को जान कर, पहचान कर, उसमे समा जाए यानी मोक्ष को प्राप्त कर ले।किसी भी नदी का, दरिया का पानी अंत समंदर में ही विलीन होता है।पर हम मायावी संसार के प्रभाव में आकर अपना उद्देश्य भूल जाते हैं और अंत समय में दुखी होते हुए और पछतावा करते हुए, इस संसार से विदा लेते हैं।हमे ईश्वर निर्मित एक पूजनीय शरीर मिला है, जिस के द्वारा हम इसका सद उपयोग करके ईश्वर की अनुभूति भी कर सकते है, उसकी सत्ता को समझ भी सकते हैं और ईश्वर को यानी मोक्ष को प्राप्त भी हो सकते है।संसार में किसी भी प्रकार के धार्मिक ग्रंथ और धार्मिक सथल से ज्यादा पूजनीय आपका शरीर है। यानी वो शरीर जो हमारे अनंत ब्रह्माण्ड का ही रूप है। यानी कि जो कुछ भी ब्रह्माण्ड में है, वही हमारे शरीर में भी है।यानी कि हमारे शरीर से अच्छा कोई मंदिर नहीं, कोई गुरुद्वारा नहीं, कोई मस्जिद नहीं और कोई चर्च नहीं।यह बात सत्य है। हालांकि हम इनको मानने में आनाकानी करेंगे ही।यहां तक कि विश्व का कोई भी धार्मिक गृंथ सम्माननीय जरूर है पर पूजनीय नहीं।सम्माननीय इस लिए कि उसमे संतों की वाणी का पवित्र ज्ञान होता है, जो हमारा मार्गदर्शन करता है। पर पूजनीय इस लिए नहीं, क्योंकि है तो जड़ ही।👉 पर आपका शरीर पूजनीय क्यों है ?क्योंकि इस शरीर में ‘आप’ रहते हो, ‘आप’ जो ‘चेतन’ हो, उस ‘आप’ को छोड़कर ब्रह्माण्ड में तो सब जड़ है।आप अपने शरीर को एक दिव्य यान कह सकते हो, जिसके द्वारा आपको अपनी मंजिल तक पहुंचना है।इस शरीर में सिर्फ आप चेतन हो यानी आप ‘चेतना’ हो। यानी के आप एक ‘आत्मा’ हो यां उस आत्मा के एक अंश हो। बात एक ही है।एक पानी का बुलबुला भी पानी ही होता है। इस लिए आप अगर आत्मा के अंश भी हुए तो भी आप एक आत्मा ही हो।विश्व में हर धर्म, संप्रदाय का धार्मिक ग्रंथ भी यह गवाही देता है कि ‘आत्मा ही परमातमा’ है। संत मत भी यही कहता है।यानी कि परमात्मा ही तो ईश्वर है। हम उनके ही तो अंश हैं।पर फिर हमे इसका एहसास क्यों नहीं होता। हम इसकी अनुभूति क्यों नहीं कर पाते ?क्यों हम इसको बाहर ढूंढते फिरते हैं ?क्योंकि हम अशांत हैं, हम बेहोशी में खोए हुए हैं। हम मायावी संसार में रहते, इसे पहचान नहीं पाते।तो इसका हल क्या है ?ईश्वर की अनुभूति केलिए आप को जागृत होना पड़ेगा, सजग होना पड़ेगा।संक्षेप में आप को होश में आना पड़ेगा।👉 होश में कैसे आ सकते हैं ?होश में सजग हो कर, जागृत हो कर होश में आ सकते हैं।होश में ध्यान के द्वारा आ सकते हैं, ध्यान यानी सहज ध्यान। जिसको अंग्रेजी मे मेडिटेशन कहते हैं।आप को 24 घंटे सजग रहने की आदत डालनी होगी। सजग से अर्थ है, पूर्ण ध्यान, पूर्ण एकाग्रता, हर किर्या में, हर कार्य में।यह आसान नहीं है, बहुत मुश्कल है पर हम कर सकते हैं। आप 24 घंटे नहीं कर सकते तो 12 घंटे करें, 12 नहीं कर सकते तो 6 घंटे करें, 6 नहीं कर सकते तो 3 घंटे करें, 3 नहीं कर सकते तो 1 घंटा करें।1 नहीं तो 30 मिनट ही कर लें, पर प्रयास अवश्य करें।यानी कि जिस भी किर्या को यां कार्य को कर रहे हैं, सिर्फ और सिर्फ उस में ही आपका ध्यान होना चाहिए।इस को कुछ उदाहरणों से समझने का प्रयास करते हैं :–कैसे खाएं और पीएं ?जैसे खाना खा रहे हैं तो चपाती के निवाले को कटोरी से मुंह तक लिजाने में ही आपका ध्यान होना चाहिए। फिर उस निवाले को चबा रहे हो तो ध्यान सिर्फ उस निवाले में हो, उसके स्वाद यानी रस पर ही ध्यान हो।पानी पी रहे हो तो, पानी को गले से उतरते हुए महसूस करते हुए पीएं।यानी कि खाना खाने समय दिमाग में ध्यान सिर्फ खाने पर ही हो और कहीं नहीं।तो आप जितना समय खाना खायेंगे, वो आपका ‘ध्यान’ बन जायेगा।कैसे चलें ?आप पैदल चल रहे हैं तो कौन सा कदम आगे है और कौन सा कदम पीछे है, इस पर ध्यान दो। सिर्फ चलने पर ध्यान दो।धीरे चलो, भागो नहीं। कदमों को महसूस करते हुए चलो।इस कारण, आप जितना समय चलोगे, वो आपका ध्यान होगा।कैसे गाड़ी चलाएं ?अगर कार चलाते हो तो आपकी आखें हर समय सड़क के चारों ओर हो। ब्रेक लगा रहे हो तो ध्यान पांव की तरफ, गेयर डाल रहे हो तो ध्यान हाथ की तरफ पर यह सब करते समय भी आपका ध्यान सड़क की तरफ तो रहना ही चाहिए।पर इन सब करते समय आपका ध्यान किसी काम, चिंता यां घर परिवार की तरफ नहीं होना चाहिए। मतलब कि कार चलाते समय, आपका ध्यान सिर्फ कार चलाने में ही रहना चाहिए।इस से दो फायदे होंगे :एक, ऐसे गाड़ी चलाते समय आप के एक्सीडेंट होने के चांसेस भी ना के बराबर होंगे।दूसरा, आप जितने घंटे गाड़ी चलाएंगे, उतने घंटे आप का ‘ध्यान’ हो जायेगा।कैसे सोएं ?आप बिस्तर पर जाते हो, आप आराम से अपनी आंखें बंद करें। यह ना हो के यह पता ही ना चले के कब आंख लगी और आप सो गए।धीरे से आंखे बंद करें, धीरे धीरे शांत मन से नींद में जाएं, यानी पूरी होश में नींद की गहराइयों में जाएं।यह कहना आसान है पर करना उतना ही मुश्कल। पर अगर आप ऐसा करने में कामयाब रहते हैं तो आपकी नींद ही आपका ध्यान बन जायेगी।अगर आप 8 घंटे सोते हैं तो आपका ध्यान 8 घंटे का हो जाएगा।है ना अद्भुत।ऐसे ही और भी कार्य होंगे। वो सब भी ध्यान में जाग्रत हो करे ही करें।अगर आप ऐसा करने में लगातार कामयाब रहते हो तो एक दिन आप पूर्ण होश में आ जाओगे। आप जागृत हो जाओगे यानी होश में आ जाओगे।होश में ही तो अपनी आत्मा के होने का एहसास होता है।यानी खुद के होने का एहसास होता है। जिस को आप भूल चुके होते हो। फिर आप अपने आप को यानी आत्मा को जान जाओगे तो फिर आप परमात्मा यानी ईश्वर को भी जान सकते हो।क्योंकि आत्मा परमात्मा है और परमात्मा ही तो ईश्वर है। आत्मा के एहसास में ही तो परमात्मा यानी ईश्वर की अनुभूति होती है।तो यह सब होगा सहज ध्यान से।आखें बंद करके पालती मारकर लगातार बैठे रहना ही ध्यान नहीं होता।हर समय अवेयर रहना, होश में रहना, जागृत रहना ही ध्यान है। यही शांति है। यही ईश्वर की सच्ची भगति है। यही एक इंसान का सच्चा धर्म है। यही इंसान का निष्काम कर्म है।पर क्या कभी आज तक आप ने ऐसा किया है ?नहीं तो, अवश्य कोशिश करें ।इसके बाद सफर शुरू होता है, ईश्वर और उसकी सत्ता यानी अस्तित्व को जानने का।हमारा ब्रह्माण्ड एक बड़ा रहस्य समेटे हुए है। जिसको विज्ञान भी अभी तक समझ नहीं पाया। शायद हम यां वज्ञान ब्रह्माण्ड को सिर्फ 5% ही जानते हैं। सिर्फ 5%।हमारा ब्रह्माण्ड बहु आयामी है।आयाम यानी डिमेंशन।वेद कहता है कि ब्रह्माण्ड के 64 आयाम है तो पुराण 10 आयाम को मानता है पर विज्ञान तीन आयाम को मानता था पर धन्यवाद करें ज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टाइन का, जिन्होंने चौथे आयाम को खोजा और माना।आज विज्ञान 10 आयाम होने की कल्पना तो करता है पर जानता नहीं है, इस लिए मानता भी नहीं है।पर कुछ मतों अनुसार ब्रह्माण्ड में 7 लोक होते हैं। हमारा शरीर जो ब्रह्माण्ड का ही एक रूप है। इस लिए हमारे शरीर में भी 7 चक्कर होते हैं।जिसको एक योगी अच्छे से जानता है।इसी कारण ब्रह्माण्ड के 7आयाम माने गए हैं, आइए उन पर चर्चा करते हैं।पहला आयाम : एक व्यक्ति जब सिर्फ आगे और पीछे ही गति कर सकता हो तो वो पहले आयाम में रह रहा होता है। इसे ही पहला आयाम कहते हैं।दूसरा आयाम : अगर एक व्यक्ति आगे पीछे और दाएं बाएं भी जा सकता हो तो उसे दूसरा आयाम कहते हैं।तीसरा आयाम : अगर एक व्यक्ति मान लो किसी क्यूब में हो और हर दिशा में आ आ जा सके तो उसे तीसरा आयाम कहते हैं। यानी कि अब तक दुनिया को तीन आयामी माना गया है। जैसे एक 3 डी मूवी होती है, वो तीन आयामी होती है।चौथा आयाम : पर अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा कि जी नहीं, एक चौथा आयाम भी होता है, वो है समय।जिस पर आज भी खोज जारी है। जैसे एक व्यक्ति सभी दिशाओं में जा सकता है तो उन दिशाओं में लगने वाले समय को चौथा आयाम माना गया है।वो समय जो अद्रिश है, महसूस नहीं होता पर होता है।पांचवा आयाम : स्पेस यानी खाली जगह यानी की अंतरिक्ष को पांचवा आयाम माना गया है। यानी कि एक व्यक्ति अगर चौथे आयाम में रह रहा है और कार्य कर रहा है तो वो कार्य कहां कर रहा है ?वो कार्य कर रहा है, स्पेस में यानी अंतरिक्ष की खाली जगह में ही कर रहा है। तो इसे पांचवा आयाम माना गया है।छठा आयाम : इस के बारे अभी विज्ञान अनजान है। कहते हैं कि अगर व्यक्ति छठे आयाम में पहुंच जाए तो वहां समय रुक जाता है। यानी कि आप वहां पर भविष्य से भूतकाल में भी जा सकते हो।सातवां आयाम : कहते हैं कि ब्रह्माण्ड एक नहीं है। यानी एक व्यक्ति जिस ब्रह्मांड में रह रहा है, उसी समय उसका अस्तित्व किसी और ब्रह्माण्ड में भी होगा। यानी कि आप खुद एक से ज्यादा हो सकते हो, अलग अलग ब्रह्माण्ड में। हैं ना बेहद विचित्र !निष्कर्ष :ईश्वर, जिस का अंत आज तक कोई नहीं पा सका। पर मानव जीवन के उद्देश्य के अनुसार हम होश में आकर यां होश में रहकर अपने आप को पहचानकर ईश्वर की अनुभूति अवश्य कर सकते हैं और ईश्वर के इस्तित्व को जान सकते हैं और उसका आनंद ले सकते हैं और मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।एक आम मृत्यु में यहां एक इंसान को होश ही नहीं रहती और उसको उसके कर्मों के अनुसार कोई भी किसी भी योनि में अगला जन्म मिल जाता है।पर वहीं कहते हैं कि अंत समय में भी एक होशपूर्वक व्यक्ति की जब मृत्यु आती है तो मृत्यु उस ज्ञानी इंसान यां व्यक्ति के हाथ में होती है।वो कहां जाना चाहता है, उसका फैसला वो कर सकता है और अपनी मर्जी से वहां जा सकता है। वो चाहे तो यहां फिर से इंसानी जन्म ले सकता है।किसी अन्य लोक में जा सकता है और अपनी इच्छा से मोक्ष को प्राप्त हो सकता है।उम्मीद करते हैं कि आदरणीय पाठकों ने यह पोस्ट बेहद ध्यान से पड़ा होगा और उनका 5–10 मिनट का ध्यान अवश्य घटा होगा।😊बहुत बहुत धन्यवाद। 🙏🙏🙏स्रोत :चित्र गूगल इमेजेस के द्वारा आभार सहित।जानकारी, आपनी जानकारी के आधार पर। जो इंटरनेट की अलग अलग साइट्स और किताबों और धार्मिक ग्रंथों के आधार पर है।

विश्व में मानव जीवन का उद्देश्य और लक्ष्य क्या है ?

नोट : कृपया आदरणीय पाठक इसको समय निकाल कर के, फुरसत के पलों में धैर्य पूर्वक पड़ें। क्योंकि यह एक लंबा लेख है और ऐसे विषय में है, जो एकाग्रता यानी ‘ध्यान ’की मांग करता है। धन्यवाद।


✍️ क्या शानदार सवाल है ! एक मानव के अस्तित्व, उद्देश्य और कल्याण से जुड़ा इससे महत्त्वपूर्ण सवाल और क्या हो सकता है।

जिसका स्टीक उत्तर किसी पहुंचे हुए संत यां सतगुरु के इलावा किसी के पास नहीं होगा।

क्योंकि इस सवाल से तो विज्ञान भी अभी तक अनजान है।

पर हम इस पर जवाब देने का प्रयास अवश्य करेंगे।

👉 आईए इस महत्वपूर्ण पर बेहद पेचीदा और जटिल सवाल के जवाब पर चर्चा शुरू करते हैं : –

एक मानव यां इंसान के जन्म का उद्देश्य मात्र इतना होता है कि वो ईश्वर को जान कर, पहचान कर, उसमे समा जाए यानी मोक्ष को प्राप्त कर ले।

किसी भी नदी का, दरिया का पानी अंत समंदर में ही विलीन होता है।

पर हम मायावी संसार के प्रभाव में आकर अपना उद्देश्य भूल जाते हैं और अंत समय में दुखी होते हुए और पछतावा करते हुए, इस संसार से विदा लेते हैं।

हमे ईश्वर निर्मित एक पूजनीय शरीर मिला है, जिस के द्वारा हम इसका सद उपयोग करके ईश्वर की अनुभूति भी कर सकते है, उसकी सत्ता को समझ भी सकते हैं और ईश्वर को यानी मोक्ष को प्राप्त भी हो सकते है।

संसार में किसी भी प्रकार के धार्मिक ग्रंथ और धार्मिक सथल से ज्यादा पूजनीय आपका शरीर है। यानी वो शरीर जो हमारे अनंत ब्रह्माण्ड का ही रूप है। यानी कि जो कुछ भी ब्रह्माण्ड में है, वही हमारे शरीर में भी है।

यानी कि हमारे शरीर से अच्छा कोई मंदिर नहीं, कोई गुरुद्वारा नहीं, कोई मस्जिद नहीं और कोई चर्च नहीं।

यह बात सत्य है। हालांकि हम इनको मानने में आनाकानी करेंगे ही।

यहां तक कि विश्व का कोई भी धार्मिक गृंथ सम्माननीय जरूर है पर पूजनीय नहीं।

सम्माननीय इस लिए कि उसमे संतों की वाणी का पवित्र ज्ञान होता है, जो हमारा मार्गदर्शन करता है। पर पूजनीय इस लिए नहीं, क्योंकि है तो जड़ ही।

👉 पर आपका शरीर पूजनीय क्यों है ?

क्योंकि इस शरीर में ‘आप’ रहते हो, ‘आप’ जो ‘चेतन’ हो, उस ‘आप’ को छोड़कर ब्रह्माण्ड में तो सब जड़ है।

आप अपने शरीर को एक दिव्य यान कह सकते हो, जिसके द्वारा आपको अपनी मंजिल तक पहुंचना है।

इस शरीर में सिर्फ आप चेतन हो यानी आप ‘चेतना’ हो। यानी के आप एक ‘आत्मा’ हो यां उस आत्मा के एक अंश हो। बात एक ही है।

एक पानी का बुलबुला भी पानी ही होता है। इस लिए आप अगर आत्मा के अंश भी हुए तो भी आप एक आत्मा ही हो।

विश्व में हर धर्म, संप्रदाय का धार्मिक ग्रंथ भी यह गवाही देता है कि ‘आत्मा ही परमातमा’ है। संत मत भी यही कहता है।

यानी कि परमात्मा ही तो ईश्वर है। हम उनके ही तो अंश हैं।

पर फिर हमे इसका एहसास क्यों नहीं होता। हम इसकी अनुभूति क्यों नहीं कर पाते ?

क्यों हम इसको बाहर ढूंढते फिरते हैं ?

क्योंकि हम अशांत हैं, हम बेहोशी में खोए हुए हैं। हम मायावी संसार में रहते, इसे पहचान नहीं पाते।

तो इसका हल क्या है ?

ईश्वर की अनुभूति केलिए आप को जागृत होना पड़ेगा, सजग होना पड़ेगा।

संक्षेप में आप को होश में आना पड़ेगा।

👉 होश में कैसे आ सकते हैं ?

होश में सजग हो कर, जागृत हो कर होश में आ सकते हैं।

होश में ध्यान के द्वारा आ सकते हैं, ध्यान यानी सहज ध्यान। जिसको अंग्रेजी मे मेडिटेशन कहते हैं।

आप को 24 घंटे सजग रहने की आदत डालनी होगी। सजग से अर्थ है, पूर्ण ध्यान, पूर्ण एकाग्रता, हर किर्या में, हर कार्य में।

यह आसान नहीं है, बहुत मुश्कल है पर हम कर सकते हैं। आप 24 घंटे नहीं कर सकते तो 12 घंटे करें, 12 नहीं कर सकते तो 6 घंटे करें, 6 नहीं कर सकते तो 3 घंटे करें, 3 नहीं कर सकते तो 1 घंटा करें।

1 नहीं तो 30 मिनट ही कर लें, पर प्रयास अवश्य करें।

यानी कि जिस भी किर्या को यां कार्य को कर रहे हैं, सिर्फ और सिर्फ उस में ही आपका ध्यान होना चाहिए।

इस को कुछ उदाहरणों से समझने का प्रयास करते हैं :–

कैसे खाएं और पीएं ?

जैसे खाना खा रहे हैं तो चपाती के निवाले को कटोरी से मुंह तक लिजाने में ही आपका ध्यान होना चाहिए। फिर उस निवाले को चबा रहे हो तो ध्यान सिर्फ उस निवाले में हो, उसके स्वाद यानी रस पर ही ध्यान हो।

पानी पी रहे हो तो, पानी को गले से उतरते हुए महसूस करते हुए पीएं।

यानी कि खाना खाने समय दिमाग में ध्यान सिर्फ खाने पर ही हो और कहीं नहीं।

तो आप जितना समय खाना खायेंगे, वो आपका ‘ध्यान’ बन जायेगा।

कैसे चलें ?

आप पैदल चल रहे हैं तो कौन सा कदम आगे है और कौन सा कदम पीछे है, इस पर ध्यान दो। सिर्फ चलने पर ध्यान दो।

धीरे चलो, भागो नहीं। कदमों को महसूस करते हुए चलो।

इस कारण, आप जितना समय चलोगे, वो आपका ध्यान होगा।

कैसे गाड़ी चलाएं ?

अगर कार चलाते हो तो आपकी आखें हर समय सड़क के चारों ओर हो। ब्रेक लगा रहे हो तो ध्यान पांव की तरफ, गेयर डाल रहे हो तो ध्यान हाथ की तरफ पर यह सब करते समय भी आपका ध्यान सड़क की तरफ तो रहना ही चाहिए।

पर इन सब करते समय आपका ध्यान किसी काम, चिंता यां घर परिवार की तरफ नहीं होना चाहिए। मतलब कि कार चलाते समय, आपका ध्यान सिर्फ कार चलाने में ही रहना चाहिए।

इस से दो फायदे होंगे :

एक, ऐसे गाड़ी चलाते समय आप के एक्सीडेंट होने के चांसेस भी ना के बराबर होंगे।

दूसरा, आप जितने घंटे गाड़ी चलाएंगे, उतने घंटे आप का ‘ध्यान’ हो जायेगा।

कैसे सोएं ?

आप बिस्तर पर जाते हो, आप आराम से अपनी आंखें बंद करें। यह ना हो के यह पता ही ना चले के कब आंख लगी और आप सो गए।

धीरे से आंखे बंद करें, धीरे धीरे शांत मन से नींद में जाएं, यानी पूरी होश में नींद की गहराइयों में जाएं।

यह कहना आसान है पर करना उतना ही मुश्कल। पर अगर आप ऐसा करने में कामयाब रहते हैं तो आपकी नींद ही आपका ध्यान बन जायेगी।

अगर आप 8 घंटे सोते हैं तो आपका ध्यान 8 घंटे का हो जाएगा।

है ना अद्भुत।

ऐसे ही और भी कार्य होंगे। वो सब भी ध्यान में जाग्रत हो करे ही करें।

अगर आप ऐसा करने में लगातार कामयाब रहते हो तो एक दिन आप पूर्ण होश में आ जाओगे। आप जागृत हो जाओगे यानी होश में आ जाओगे।

होश में ही तो अपनी आत्मा के होने का एहसास होता है।

यानी खुद के होने का एहसास होता है। जिस को आप भूल चुके होते हो। फिर आप अपने आप को यानी आत्मा को जान जाओगे तो फिर आप परमात्मा यानी ईश्वर को भी जान सकते हो।

क्योंकि आत्मा परमात्मा है और परमात्मा ही तो ईश्वर है। आत्मा के एहसास में ही तो परमात्मा यानी ईश्वर की अनुभूति होती है।

तो यह सब होगा सहज ध्यान से।

आखें बंद करके पालती मारकर लगातार बैठे रहना ही ध्यान नहीं होता।

हर समय अवेयर रहना, होश में रहना, जागृत रहना ही ध्यान है। यही शांति है। यही ईश्वर की सच्ची भगति है। यही एक इंसान का सच्चा धर्म है। यही इंसान का निष्काम कर्म है।

पर क्या कभी आज तक आप ने ऐसा किया है ?

नहीं तो, अवश्य कोशिश करें ।


इसके बाद सफर शुरू होता है, ईश्वर और उसकी सत्ता यानी अस्तित्व को जानने का।

हमारा ब्रह्माण्ड एक बड़ा रहस्य समेटे हुए है। जिसको विज्ञान भी अभी तक समझ नहीं पाया। शायद हम यां वज्ञान ब्रह्माण्ड को सिर्फ 5% ही जानते हैं। सिर्फ 5%।

हमारा ब्रह्माण्ड बहु आयामी है।

आयाम यानी डिमेंशन।

वेद कहता है कि ब्रह्माण्ड के 64 आयाम है तो पुराण 10 आयाम को मानता है पर विज्ञान तीन आयाम को मानता था पर धन्यवाद करें ज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टाइन का, जिन्होंने चौथे आयाम को खोजा और माना।

आज विज्ञान 10 आयाम होने की कल्पना तो करता है पर जानता नहीं है, इस लिए मानता भी नहीं है।

पर कुछ मतों अनुसार ब्रह्माण्ड में 7 लोक होते हैं। हमारा शरीर जो ब्रह्माण्ड का ही एक रूप है। इस लिए हमारे शरीर में भी 7 चक्कर होते हैं।

जिसको एक योगी अच्छे से जानता है।

इसी कारण ब्रह्माण्ड के 7आयाम माने गए हैं, आइए उन पर चर्चा करते हैं।

पहला आयाम : एक व्यक्ति जब सिर्फ आगे और पीछे ही गति कर सकता हो तो वो पहले आयाम में रह रहा होता है। इसे ही पहला आयाम कहते हैं।

दूसरा आयाम : अगर एक व्यक्ति आगे पीछे और दाएं बाएं भी जा सकता हो तो उसे दूसरा आयाम कहते हैं।

तीसरा आयाम : अगर एक व्यक्ति मान लो किसी क्यूब में हो और हर दिशा में आ आ जा सके तो उसे तीसरा आयाम कहते हैं। यानी कि अब तक दुनिया को तीन आयामी माना गया है। जैसे एक 3 डी मूवी होती है, वो तीन आयामी होती है।

चौथा आयाम : पर अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा कि जी नहीं, एक चौथा आयाम भी होता है, वो है समय।

जिस पर आज भी खोज जारी है। जैसे एक व्यक्ति सभी दिशाओं में जा सकता है तो उन दिशाओं में लगने वाले समय को चौथा आयाम माना गया है।

वो समय जो अद्रिश है, महसूस नहीं होता पर होता है।

पांचवा आयाम : स्पेस यानी खाली जगह यानी की अंतरिक्ष को पांचवा आयाम माना गया है। यानी कि एक व्यक्ति अगर चौथे आयाम में रह रहा है और कार्य कर रहा है तो वो कार्य कहां कर रहा है ?

वो कार्य कर रहा है, स्पेस में यानी अंतरिक्ष की खाली जगह में ही कर रहा है। तो इसे पांचवा आयाम माना गया है।

छठा आयाम : इस के बारे अभी विज्ञान अनजान है। कहते हैं कि अगर व्यक्ति छठे आयाम में पहुंच जाए तो वहां समय रुक जाता है। यानी कि आप वहां पर भविष्य से भूतकाल में भी जा सकते हो।

सातवां आयाम : कहते हैं कि ब्रह्माण्ड एक नहीं है। यानी एक व्यक्ति जिस ब्रह्मांड में रह रहा है, उसी समय उसका अस्तित्व किसी और ब्रह्माण्ड में भी होगा। यानी कि आप खुद एक से ज्यादा हो सकते हो, अलग अलग ब्रह्माण्ड में। हैं ना बेहद विचित्र !

निष्कर्ष :

ईश्वर, जिस का अंत आज तक कोई नहीं पा सका। पर मानव जीवन के उद्देश्य के अनुसार हम होश में आकर यां होश में रहकर अपने आप को पहचानकर ईश्वर की अनुभूति अवश्य कर सकते हैं और ईश्वर के इस्तित्व को जान सकते हैं और उसका आनंद ले सकते हैं और मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।

एक आम मृत्यु में यहां एक इंसान को होश ही नहीं रहती और उसको उसके कर्मों के अनुसार कोई भी किसी भी योनि में अगला जन्म मिल जाता है।

पर वहीं कहते हैं कि अंत समय में भी एक होशपूर्वक व्यक्ति की जब मृत्यु आती है तो मृत्यु उस ज्ञानी इंसान यां व्यक्ति के हाथ में होती है।

वो कहां जाना चाहता है, उसका फैसला वो कर सकता है और अपनी मर्जी से वहां जा सकता है। वो चाहे तो यहां फिर से इंसानी जन्म ले सकता है।

किसी अन्य लोक में जा सकता है और अपनी इच्छा से मोक्ष को प्राप्त हो सकता है।



उम्मीद करते हैं कि आदरणीय पाठकों ने यह पोस्ट बेहद ध्यान से पड़ा होगा और उनका 5–10 मिनट का ध्यान अवश्य घटा होगा।😊


बहुत बहुत धन्यवाद। 🙏🙏🙏


स्रोत :

चित्र गूगल इमेजेस के द्वारा आभार सहित।

जानकारी, आपनी जानकारी के आधार पर। जो इंटरनेट की अलग अलग साइट्स और किताबों और धार्मिक ग्रंथों के आधार पर है।

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