क्या वार्महोल सच में होते हैं? By वनिता कासनियां पंजाब वर्महोल एक ऐसा रास्ता है जो दो स्थानों को जोड़ता है। यहां दो जगहों का मतलब कोई नजदीकी जगह नहीं है, उन दोनों जगहों के बीच की दूरी लाखों प्रकाश वर्ष हो। अगर हम वर्महोल को खोजने में सफल हो जाते हैं, तो हम अरबों, खरबों प्रकाश वर्ष की दूरी चंद सेकंड में तय कर सकते हैं। यह सुनकर आपको वर्महोल मजेदार लगा होगा। लेकिन यह तो अभी शुरुआत है, कहा जाता है कि वर्महोल की मदद से हम समय में यात्रा भी कर सकते हैं।वर्महोल को आज तक किसी ने नहीं देखा। वर्महोल सिर्फ एक कल्पना है, जिसकी कल्पना 1935 में दो विज्ञानों ने की थी। उन विज्ञानों के नाम अल्बर्ट आइंस्टीन और नाथ हसन थे। इन दो विज्ञानों ने वर्महोल की कल्पना की।वर्महोल सिर्फ एक कल्पना नहीं है, बल्कि अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी इसे होने का दावा किया है, यह सच है कि आज तक हमें वर्महोल नहीं मिला है। लेकिन उन विज्ञानों ने वर्महोल के बारे में गणितीय समीकरणों की मदद से इसे पूरी दुनिया के सामने रखा था। वर्महोल के बारे में आप केवल फिल्मों के नाट्य रूपांतरण में ही देखेंगे। लेकिन असल जिंदगी में ना तो किसी ने वर्महोल देखा है और ना ही हमने महसूस किया है।उन्होंने बताया कि हम जिस स्पेस में रहते हैं वह एक चादर की तरह है, क्योंकि जब कोई चीज जिसे मास हो वजन हो वो वस्तु उस चादर मे जाते ही अपने मास के अनुसार अपनी जगह जीतना गड्डा उस चादर मे कर लेता है। इस चादर को आइंस्टीन ने इस चादर को स्पेस कहा।जब आइंस्टीन को पता चला कि हम इस चादर में रहते हैं जिसे हमारा ग्रह अपने वजन से उसमे गढहा करता है, तभी आइंस्टीन ने कहा, "क्यों न हम इस चादर को पूरी तरह से मोड़ दें। चादर से मेरा मतलब यहां है, स्पेस के लिए। स्पेस को अगर हम मोड़ते हैं, तो हम पाएगे की स्पेस के दूसरे हिस्से के ग्रह हमारे ऊपर आ जाएँगे , इसके बाद दोनों ग्रहो के गुरुत्वाकर्षण के बल से एक रास्ता तैयार हो जाएगा। ऐसा करने से करोड़ो ऊर्जा वर्ष का रास्ता बोहोत ही कम हो जाएगा और जिससे हम ट्रैवल कर के आसानी से उस ग्रह पर जा सकते है।"चित्र स्रोत:– गूगल

वर्महोल एक ऐसा रास्ता है जो दो स्थानों को जोड़ता है। यहां दो जगहों का मतलब कोई नजदीकी जगह नहीं है, उन दोनों जगहों के बीच की दूरी लाखों प्रकाश वर्ष हो। अगर हम वर्महोल को खोजने में सफल हो जाते हैं, तो हम अरबों, खरबों प्रकाश वर्ष की दूरी चंद सेकंड में तय कर सकते हैं। यह सुनकर आपको वर्महोल मजेदार लगा होगा। लेकिन यह तो अभी शुरुआत है, कहा जाता है कि वर्महोल की मदद से हम समय में यात्रा भी कर सकते हैं।

वर्महोल को आज तक किसी ने नहीं देखा। वर्महोल सिर्फ एक कल्पना है, जिसकी कल्पना 1935 में दो विज्ञानों ने की थी। उन विज्ञानों के नाम अल्बर्ट आइंस्टीन और नाथ हसन थे। इन दो विज्ञानों ने वर्महोल की कल्पना की।

वर्महोल सिर्फ एक कल्पना नहीं है, बल्कि अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी इसे होने का दावा किया है, यह सच है कि आज तक हमें वर्महोल नहीं मिला है। लेकिन उन विज्ञानों ने वर्महोल के बारे में गणितीय समीकरणों की मदद से इसे पूरी दुनिया के सामने रखा था। वर्महोल के बारे में आप केवल फिल्मों के नाट्य रूपांतरण में ही देखेंगे। लेकिन असल जिंदगी में ना तो किसी ने वर्महोल देखा है और ना ही हमने महसूस किया है।

उन्होंने बताया कि हम जिस स्पेस में रहते हैं वह एक चादर की तरह है, क्योंकि जब कोई चीज जिसे मास हो वजन हो वो वस्तु उस चादर मे जाते ही अपने मास के अनुसार अपनी जगह जीतना गड्डा उस चादर मे कर लेता है। इस चादर को आइंस्टीन ने इस चादर को स्पेस कहा।

जब आइंस्टीन को पता चला कि हम इस चादर में रहते हैं जिसे हमारा ग्रह अपने वजन से उसमे गढहा करता है, तभी आइंस्टीन ने कहा, "क्यों न हम इस चादर को पूरी तरह से मोड़ दें। चादर से मेरा मतलब यहां है, स्पेस के लिए। स्पेस को अगर हम मोड़ते हैं, तो हम पाएगे की स्पेस के दूसरे हिस्से के ग्रह हमारे ऊपर आ जाएँगे , इसके बाद दोनों ग्रहो के गुरुत्वाकर्षण के बल से एक रास्ता तैयार हो जाएगा। ऐसा करने से करोड़ो ऊर्जा वर्ष का रास्ता बोहोत ही कम हो जाएगा और जिससे हम ट्रैवल कर के आसानी से उस ग्रह पर जा सकते है।"

चित्र स्रोत:– गूगल

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