*🌹 श्री राधे 🌹* वनिता पंजाब *बात बराबरी:* महिलाए पंच सरपंच बनती है, लेकिन जिम्मेदारी उनके पति , देवर ,भाई , या पिता संभालते है, ऐसे मर्दों को लगता है की महिलाओ को राजनीति के काम काज की समझ होती ही नही, वनिता कासनियां पंजाब इस व्यवस्था ने नए पद का सृजन कर दिया खासकर *सरपंच पति*" ये पद खुद ब खुद व्यव्स्था पर हावी होकर उन तमाम महिलाओ को और सरकार की अच्छी सोच को ठेंगा दिखाता है ,मानो कह रहा हो कुछ भी कर लो राज तो मर्द ही करेगा,, कोई भी महिला *सरपंच* होती है पंचायत ,जनपद और जिला पंचायतों में उसका प्रतिनिधित्व *सरपंच पति* ही करता है और यह प्रशासनिक व्यवस्था में उन तमाम घूसखोर सरकारी कर्मचारी अधिकारियों के सामने बेखौफ होता है , *सरपंच पति* धड़ल्ले से सरकारी दस्तावेजों पर अपनी पत्नी के *हस्ताक्षर* करता है , ऐसे यह बहुत विचारणीय प्रश्न है की आखिर फिर महिला पद को आरक्षित करना और महिलाओं को समानता के अधिकार में लाने का क्या ओचित्य रह जाता है , *महिला सरपंच* को ही पंचायत , जनपद और जिला पंचायतों की मीटिंगों में शामिल होने को अनिर्वार्य करना चाहिए न की *सरपंच पति* को पंचायती राज में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जो चुना हुआ *सरपंच* अपना अधिकार किसी पंच पति को दे सके ,यह अधिकार चाहे तो पंचायत की मीटिंग में जनपद के आधिकारिक सहमति से से *उपसरपंच* को ही मिल सकते है वो भी अगर सरपंच किसी कारणवश पंचायत के काम काज में भाग लेने में असमर्थ हो किसी भी पंचायत में अगर ऐसा होता है तो उसकी शिकायत संबंधित जनपद , अनुविभागीय अधिकारी , पुलिस थाना पर मय सबूत के कर सकते है ,, *🌹 श्री राधे 🌹* वनिता पंजाब *मानसिकता जो विकृत है आज भी जिंदा है* : पीने के पानी का संकट तो देखा जाय तो सब तरफ है, हम जितने प्रयास करते है वे दो तीन साल बाद वापस बौने साबित होते है लेकिन महाराष्ट्र का एक गांव है *"डेगनमल"* जहां महिलाएं पानी लाती है दूर दराज से और यहां के पुरुष कई *शादियां* कर लेते है सिर्फ पानी लाने के लिए ये वो महिलाएं होती है *विधवा तलाक शुदा उम्रदराज अविवाहित* ,ग्रामीण बोली में इन्हे *"पानीवाली"* बाई कहा जाता है ,जिन्हे *रोटी* तो मिलती है लेकिन *संतान* पैदा करने का *अधिकार* नहीं , क्योंकि अगर वे ऐसा करेगी तो पानी कौन लायेगा ,यानी पानी बड़ा मुद्दा है लेकिन इसे घरेलू मुद्दा बना दिया ,राजनीति का नही ,,, ऐसे समाज में हम *माहिलाओ* को *50% आरक्षण* दे रहे है जो *ठेंगा* दिखा रहा है,, भारतीय राजनीत में पुरुष आज भी महिलाओं को पिछलगु ही समझता है उनको कभी भी *जिम्मेदारी* नहीं देता ,जो महिलाएं कुछ हद तक अच्छे ओहदों पर पहुंच जाती है तो यह अपवाद हो होता है , मेरा मानना है की आज भी पुरुष अपनी खिसकती *पुरुष प्रधान* समाज के अस्तित्व से चिंतित है और *असुरक्षित* महसूस करता है ,हम सिर्फ कहने भर को समानता का पुरजोर समर्थन करते है ,लेकिन सच यही है की हम सच्चे मन से कभी नही चाहते ,, *महेश्वर विधानसभा* में अगर हम देखे तो कांग्रेस की और से पुरे 75 सालो में देखे तो सिर्फ *सुश्री विजय लक्ष्मी साधो* के अलावा कोई भी महिला आज तक ऊपर नही उठ सकी ,, बीजेपी की तो बात ही छोड़ दो , बीजेपी में पुरुष ही इतने आतुर है की महिला प्रतिनिधित्व की बात आते ही *उनके सीने पर सांप लौटने* लग जाए ,, महिला मोर्चा बनाने भर से कोई काम नही चलता , काम जिम्मेदारी से होता है , जब तक महिलाओं को जिम्मेदारियां नही मिलेगी वे अपनी कुशलता को साबित नही कर पाएगी, महिलाओं के बारे में दोनो राष्ट्रीय पार्टियां न्याय नहीं कर सकी ,*सुश्री विजय लक्ष्मी साधो* ने अपने अलावा किसी को आगे नही बड़ने दिया ,, तो यह भी कह सकते है *सिरमौर* पद पर विराजित होने वाली महिलाएं भी दूसरी महिलाओं को आगे बड़ाने में खुद को *असुरक्षित* महसूस करती है, *🌹 जय श्री राम 🌹* 🌹 श्री राधे 🌹 वनिता पंजाब केंद्र सरकार और राज्य सरकार के सयुक्त प्रोग्राम के अंतर्गत *पशुधन संवर्धन* पर एक अहम योजना केंद्र और राज्य सरकारों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों के किसान और खेतिहर मजदूरों के लिए लाई जा सकती है ,जिससे ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा मिलेगा साथ में ग्रामीण बेरोजगारी भी कम होगी, ग्रामीण लोगो की आय बडेगी गावो से शहरों की और लोगो का पलायन भी रुकेगा, साथ में *पशुधन संवर्धन* से *जैविक खाद* की उत्पादकता भी बड़ेगी सहकारिता के माध्यम से हर गांव में जैविक खाद निर्माण का प्लांट भी डाला जा सकता है जिससे लोगो की रासायनिक खादों पर निर्भरता कम होगी ऐसे भी *यूरिया डीएपी* जैसे खादों पर सरकार प्रतिबंध लगाने की और सोच रही है या तो इसकी सीमित मात्रा में उत्पादन को मंजूरी देगी , *पशुधन संवर्धन* से ग्रामीण क्षेत्र में *दूध घी छाछ मट्ठा पनीर दही* के पैकेजिंग व्यापार को बड़ावा मिलेगा जिससे ग्रामीण भारत *समृद्ध भारत* की और आगे बडेगा , ,देश में ग्रामीण क्षेत्रों में लोगो का *पशु पालन* की और कम होते ग्रामीण व्यवसाय को बड़ाने पर जोर देने के लिए ,, सरकार पशुपालन पर *सब्सिडी* को बड़ाने की बजाय ब्याज रहित तीन साल का *ग्रामीण पशुधन संवर्धन* लोन जैसी योजना लाकर लोगो को इस और आकर्षित कर सकती है , सरकार किसानों और खेतिहर मजदूरों को ग्रामीण क्षेत्र में *पशुधन संवर्धन एंड फूड प्रोसेसिंग* जैसी स्टार्टअप कंपनी का निर्माण करके अपनी योजना को धरातल पर उतार सकती है , इसके लिए हमारे जनप्रतिनिधि सांसद विधायक पूर्व विधायक सांसद, संगठन प्रतिनिधियों से आग्रह है सरकार को ऐसी योजनाओं के बारे में अवगत कराए और ग्रामीण भारत को समृद्ध भारत बनने में मदद करे , किसानों की खेती से बड़ती निराशा को हम ऐसी योजनाओं के माध्यम से फिर से उत्साहवर्धन कर सकते है , जिससे कृषि आय पर भी अप्रत्याशित वृद्धि हो सकती है ,,, 🌹 जय श्री राम 🌹
*🌹 श्री राधे 🌹* वनिता पंजाब *बात बराबरी:* महिलाए पंच सरपंच बनती है, लेकिन जिम्मेदारी उनके पति , देवर ,भाई , या पिता संभालते है, ऐसे मर्दों को लगता है की महिलाओ को राजनीति के काम काज की समझ होती ही नही, वनिता कासनियां पंजाब इस व्यवस्था ने नए पद का सृजन कर दिया खासकर *सरपंच पति*" ये पद खुद ब खुद व्यव्स्था पर हावी होकर उन तमाम महिलाओ को और सरकार की अच्छी सोच को ठेंगा दिखाता है ,मानो कह रहा हो कुछ भी कर लो राज तो मर्द ही करेगा,, कोई भी महिला *सरपंच* होती है पंचायत ,जनपद और जिला पंचायतों में उसका प्रतिनिधित्व *सरपंच पति* ही करता है और यह प्रशासनिक व्यवस्था में उन तमाम घूसखोर सरकारी कर्मचारी अधिकारियों के सामने बेखौफ होता है , *सरपंच पति* धड़ल्ले से सरकारी दस्तावेजों पर अपनी पत्नी के *हस्ताक्षर* करता है , ऐसे यह बहुत विचारणीय प्रश्न है की आखिर फिर महिला पद को आरक्षित करना और महिलाओं को समानता के अधिकार में लाने का क्या ओचित्य रह जाता है , *महिला सरपंच* को ही पंचायत , जनपद और जिला पंचायतों की मीटिंगों में शामिल होने को अनिर्वार्य करना चाहिए न की *सरपंच पति* को पंचायती राज में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जो चुना हुआ *सरपंच* अपना अधिकार किसी पंच पति को दे सके ,यह अधिकार चाहे तो पंचायत की मीटिंग में जनपद के आधिकारिक सहमति से से *उपसरपंच* को ही मिल सकते है वो भी अगर सरपंच किसी कारणवश पंचायत के काम काज में भाग लेने में असमर्थ हो किसी भी पंचायत में अगर ऐसा होता है तो उसकी शिकायत संबंधित जनपद , अनुविभागीय अधिकारी , पुलिस थाना पर मय सबूत के कर सकते है ,, *🌹 श्री राधे 🌹* वनिता पंजाब *मानसिकता जो विकृत है आज भी जिंदा है* : पीने के पानी का संकट तो देखा जाय तो सब तरफ है, हम जितने प्रयास करते है वे दो तीन साल बाद वापस बौने साबित होते है लेकिन महाराष्ट्र का एक गांव है *"डेगनमल"* जहां महिलाएं पानी लाती है दूर दराज से और यहां के पुरुष कई *शादियां* कर लेते है सिर्फ पानी लाने के लिए ये वो महिलाएं होती है *विधवा तलाक शुदा उम्रदराज अविवाहित* ,ग्रामीण बोली में इन्हे *"पानीवाली"* बाई कहा जाता है ,जिन्हे *रोटी* तो मिलती है लेकिन *संतान* पैदा करने का *अधिकार* नहीं , क्योंकि अगर वे ऐसा करेगी तो पानी कौन लायेगा ,यानी पानी बड़ा मुद्दा है लेकिन इसे घरेलू मुद्दा बना दिया ,राजनीति का नही ,,, ऐसे समाज में हम *माहिलाओ* को *50% आरक्षण* दे रहे है जो *ठेंगा* दिखा रहा है,, भारतीय राजनीत में पुरुष आज भी महिलाओं को पिछलगु ही समझता है उनको कभी भी *जिम्मेदारी* नहीं देता ,जो महिलाएं कुछ हद तक अच्छे ओहदों पर पहुंच जाती है तो यह अपवाद हो होता है , मेरा मानना है की आज भी पुरुष अपनी खिसकती *पुरुष प्रधान* समाज के अस्तित्व से चिंतित है और *असुरक्षित* महसूस करता है ,हम सिर्फ कहने भर को समानता का पुरजोर समर्थन करते है ,लेकिन सच यही है की हम सच्चे मन से कभी नही चाहते ,, *महेश्वर विधानसभा* में अगर हम देखे तो कांग्रेस की और से पुरे 75 सालो में देखे तो सिर्फ *सुश्री विजय लक्ष्मी साधो* के अलावा कोई भी महिला आज तक ऊपर नही उठ सकी ,, बीजेपी की तो बात ही छोड़ दो , बीजेपी में पुरुष ही इतने आतुर है की महिला प्रतिनिधित्व की बात आते ही *उनके सीने पर सांप लौटने* लग जाए ,, महिला मोर्चा बनाने भर से कोई काम नही चलता , काम जिम्मेदारी से होता है , जब तक महिलाओं को जिम्मेदारियां नही मिलेगी वे अपनी कुशलता को साबित नही कर पाएगी, महिलाओं के बारे में दोनो राष्ट्रीय पार्टियां न्याय नहीं कर सकी ,*सुश्री विजय लक्ष्मी साधो* ने अपने अलावा किसी को आगे नही बड़ने दिया ,, तो यह भी कह सकते है *सिरमौर* पद पर विराजित होने वाली महिलाएं भी दूसरी महिलाओं को आगे बड़ाने में खुद को *असुरक्षित* महसूस करती है, *🌹 जय श्री राम 🌹* 🌹 श्री राधे 🌹 वनिता पंजाब केंद्र सरकार और राज्य सरकार के सयुक्त प्रोग्राम के अंतर्गत *पशुधन संवर्धन* पर एक अहम योजना केंद्र और राज्य सरकारों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों के किसान और खेतिहर मजदूरों के लिए लाई जा सकती है ,जिससे ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा मिलेगा साथ में ग्रामीण बेरोजगारी भी कम होगी, ग्रामीण लोगो की आय बडेगी गावो से शहरों की और लोगो का पलायन भी रुकेगा, साथ में *पशुधन संवर्धन* से *जैविक खाद* की उत्पादकता भी बड़ेगी सहकारिता के माध्यम से हर गांव में जैविक खाद निर्माण का प्लांट भी डाला जा सकता है जिससे लोगो की रासायनिक खादों पर निर्भरता कम होगी ऐसे भी *यूरिया डीएपी* जैसे खादों पर सरकार प्रतिबंध लगाने की और सोच रही है या तो इसकी सीमित मात्रा में उत्पादन को मंजूरी देगी , *पशुधन संवर्धन* से ग्रामीण क्षेत्र में *दूध घी छाछ मट्ठा पनीर दही* के पैकेजिंग व्यापार को बड़ावा मिलेगा जिससे ग्रामीण भारत *समृद्ध भारत* की और आगे बडेगा , ,देश में ग्रामीण क्षेत्रों में लोगो का *पशु पालन* की और कम होते ग्रामीण व्यवसाय को बड़ाने पर जोर देने के लिए ,, सरकार पशुपालन पर *सब्सिडी* को बड़ाने की बजाय ब्याज रहित तीन साल का *ग्रामीण पशुधन संवर्धन* लोन जैसी योजना लाकर लोगो को इस और आकर्षित कर सकती है , सरकार किसानों और खेतिहर मजदूरों को ग्रामीण क्षेत्र में *पशुधन संवर्धन एंड फूड प्रोसेसिंग* जैसी स्टार्टअप कंपनी का निर्माण करके अपनी योजना को धरातल पर उतार सकती है , इसके लिए हमारे जनप्रतिनिधि सांसद विधायक पूर्व विधायक सांसद, संगठन प्रतिनिधियों से आग्रह है सरकार को ऐसी योजनाओं के बारे में अवगत कराए और ग्रामीण भारत को समृद्ध भारत बनने में मदद करे , किसानों की खेती से बड़ती निराशा को हम ऐसी योजनाओं के माध्यम से फिर से उत्साहवर्धन कर सकते है , जिससे कृषि आय पर भी अप्रत्याशित वृद्धि हो सकती है ,,, 🌹 जय श्री राम 🌹