Bal Vanitha Mahila Ashram (Part I) The Unfailing Art of Becoming WealthyWho doesn't want to be rich? There will be hardly anyone who says, "I don't want to be rich!" It is an absolute truth that money has a lot of value in today's era.
धनवान बनने की अमोघ कला बाल वनिता महिला आश्रम (भाग प्रथम)
धनवान बनना कौन नहीं चाहता? शायद ही कोई होगा जो यह कहे, “मै धनवान नहीं बनना चाहता!” यह एक परम सत्य है आज के जमाने में धन की बहुत ही कीमत होती है। धन कैसे भी कमाया ही किन्तु धनवान इंसान के सब आगे पीछे घूमते है। लोग धनवान की इज़्ज़त करते है। लोग धनवान को बड़े इंसान और सम्मान कि दृष्टि से देखते है। धनवान को समाज में बहुत नामना मिलती है। गरीब को कोई नहीं पूछता। फिर चाहे वह कितना भी ईमानदार क्यो ना हो। धनवान की बोलबाला होती रहती है। धन देखते ही आंखो में चमक आ जाती है। किसी अस्पताल में पड़ा बीमार इंसान भी अगर धन मिल जाए तो वह उठ खड़ा होता है। यह है धन की ताकत। धन अर्थात लक्ष्मी। लक्ष्मी के बिना इंसान आज एक कदम नहीं चल सकता। तो लक्ष्मी क्या है और कैसे कमाई जा सकती है इस विषय में हम इस लेखमाला को प्रारंभ करते है। यहां पर दिए गए सारे विचार मेरे स्वयं के है किसी भी व्यक्ति से कोई भी संबंध नहीं रखता है और अगर होता भी है तो वह केवल एक संयोग ही होगा।
एक महात्मा आए हुए थे हमारे सिटी में। मैं उनसे मिलने गया। ऐसे ही औपचारिक मुलाकात थी। वहां पर जा कर देखा तो जो लोग दान देने के लिए रूपए रखते थे तो वह बोलते थे, “वापस ले लो बेटा या फिर उस पेटी में डालो। मैं पैसे का त्याग कर चुका हूं। हाथ तक नहीं लगाता।” मैं चौंक गया इस बात से! तो जिज्ञासावश पूछ लिया, “महाराज कितने साल से हाथ नहीं लगाते?” तो उन्होंने बताया वह पिछले सोलह साल से पैसे को हाथ नहीं लगाते। उन्होंने पैसों का त्याग किया है यह बताया। तो मेंने स्वाभाविक ही पूछ लिया, “महाराज, बुरा मत मानना किन्तु यह बात मुझे हज़म नहीं हुई।” तो वह बोले यह सत्य है। तो मेंने भी पूछा कि वह खाना खाते है? कपड़े पहनते है? तो उन्होंने उसका स्वीकार किया कि वह केवल रोटी और सब्जी खाते है। तब मैंने पूछा, “महाराज यह खाने के लिए जो अन्न आता है वह कैसे आता है? यह लक्ष्मी ही तो है! तब ढकने के लिए कपड़े पहनते हो वह भी धन याने लक्ष्मी ही तो है! यहां तक कि आप जो पानी भी पीते हो वह भी लक्ष्मी है क्योंकि पानी नल से आता है और नल के लिए टैक्स लगता है। यह गौण टैक्स याने इंडायरेक्ट टैक्स है जो लक्ष्मी है। आप पैरों में चप्पल या खड़ाऊ पहनते हो वह भी किसी ने तो बनाई है उसकी मजदूरी के रुपयो से बनी है। यह अलग बात है कि शायद उस मजदूर ने पैसा नहीं लिया हो किन्तु है तो लक्ष्मी ही!” बस यहां तक बोला और वह महाराज मुझे देखते रह गए। बोले इस विषय में बाद में आराम से बात करेंगे। ऐसे कह कर टाल दिया।
यह एक काला सच है! जो हम कई बार देखते है। आज इस दुनिया में कोई ऐसा नहीं है जो बगैर लक्ष्मी के रह पाए। तो यह ढोंग क्यो? सीधा स्वीकार करने में क्या बुराई है कि हां हमें लक्ष्मी की आवश्यकता है। उसमें कोई बुराई नहीं है। लक्ष्मी का अनादर कर के उसके प्रति ढोंग कर के आप लक्ष्मी का अपमान ही कर रहे हो। ऐसा नहीं है कि लक्ष्मी केवल रुपया या डॉलर में ही है! लक्ष्मी के कई रूप होते है। आप भोजन करते हो वह भी लक्ष्मी है। अब आप कहोगे हम तो किसान है खुद ही उगाते है तो कैसे लक्ष्मी हुई तो यहां पर बता देना आवश्यक है कि आपने जब फसल बोई थी तब बीज लगे थे। खाद, पानी, पेस्टिसाइड्स इत्यादि कई चीजे लगी होगी वह सब रुपया से ही मिलती है तो कैसे वह लक्ष्मी नहीं हुआ? लक्ष्मी के कई प्रकार होने के बावजूद हम लोग उन्हें पहचानने में असमर्थ हो जाते हैं। आप अस्पताल में भर्ती हुए किसी बीमारी के कारण और सरकारी अस्पताल में दवाई चल रही है जो मुफ्त में मिलती है तो यह मत सोचना कि वह लक्ष्मी नहीं है वह भी लक्ष्मी है क्योंकि आपके लिए पैसा नहीं लगा किंतु सरकार ने तो लगाया है तो हुई ना लक्ष्मी?
प्रथम सूत्र है आप लक्ष्मी का सम्मान करेंगे; अब लक्ष्मी कैसे कमाई जा सकती है उसके बारे में बात करते हैं। सबसे प्रथम तो यह मान लेना और जान लेना अत्यंत आवश्यक है की लक्ष्मी के बगैर कोई भी इंसान आज जीवित नहीं रह पाएगा। हमें अगर किसी चीज से छुटकारा पाना हो मुक्त हो ना हो तो उसे जान लेना काफी होता है जो की जान लेने से वह अपने आप छूट जाता है। पहले तो यह मान लो और जान लो कि लक्ष्मी के बगैर एक कदम आगे नहीं बढ़ सकते हम। अगर यह जान लिया तो आप कभी भी लक्ष्मी का अपमान नहीं करोगे। इसलिए आवश्यक है कि जो हम पाना चाहते हैं उसके प्रति आदर होना अनिवार्य है। अगर आप उनका आदर नहीं करोगे तो वह भी आपका आधार नहीं करेगा इसलिए आपको लक्ष्मी को प्राप्त करने से पहले लक्ष्मी के प्रति अत्यंत आदर सम्मान एवं इज्जत होनी जरूरी है। यह था पहला सूत्र उसको समझने के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करता हूं।
मनुभाई को अपने पुत्र से बहुत नफरत हो गई थी। कारण था उसको झूठ बोलने की आदत थी। बस इसी कारण से वह अपने बेटे पर यकीन नहीं करते थे। एक दिन अचानक उसके बेटे को व्यवसाय में बहुत फायदा हुआ और उसने अपने पिताजी को आ कर बताया किन्तु वह मनु भाई नहीं माने। माने भी तो कैसे? एक सम्मान जो था अपने पुत्र के प्रति वह उतर गया था। इसीलिए उस पर यकीन नहीं कर पाए थे। किन्तु वही किस्सा यशोदा का सुने। वह अपने पुत्र कन्हैया से बहुत प्रेम करती थी। कोई भी आए और कह दे कि आपके कान्हा ने माखन चुरा लिया यह कर दिया वह कर दिया तो कभी भी किसी की बात पर यकीन नहीं करती थी। मानुभाई को अपने पुत्र के प्रति सम्मान नहीं था तो यकीन नहीं कर पाते थे जब की कान्हा के प्रति यशोदा का विश्वास और सम्मान बरकरार था तो कान्हा की बात को यशोदा तुरंत मान लेती थी। ठीक वैसा ही है लक्ष्मी का। अगर आप उस पर यकीन नहीं रखते, अगर विश्वास नहीं रखते और सम्मान नहीं करते तो आपको उस प्राप्त करने का विचार त्याग देना चाहिए। क्योंकि लक्ष्मी कभी भी अपके पास स्थिर नहीं रहेगी। हाथ में नहीं रहेगी। हम कई लोगो को देखते है अक्सर बोलते है लक्ष्मी चंचल है हाथ में टिकती ही नहीं! किन्तु लक्ष्मी चंचन तभी बनती है जब आप उस पर विश्वास नहीं करते। तब चंचल बनती है जब आपका सम्मान लक्ष्मी के प्रति कम हो गया हो। यह बातें सर्वप्रथम आत्ममंथन करें और अगर आपको लगता है कि लक्ष्मी आपके साथ चंचलता दिखा रही है तो फौरन अपने स्वभाव को बदलने की आवश्यकता है अन्यथा आप लक्ष्मी को प्राप्त नहीं कर पाओगे। यह था पहला सूत्र लक्ष्मी को पाने का!
By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब
आज से प्रारंभ हुई लेखमाला का प्रथम भाग आपको कैसा लगा यह नीचे कॉमेंट में अवश्य बताए। लाइक और शेयर करना ना भूले। दूसरा भाग कल प्रकाशित होगा। धन्यवाद्।
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