संदेश

20 साल पुराना जोड़ का दर्द के कैसे ठीक करें? By वनिता कासनियां पंजाब, जोड़ों में सूजन, दर्द आम दौर पे बुजुर्गों में अधिक पाया जाता है लेकिन आजकल युवाओं, बच्चों में भी यह पाया जा रहा है I पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में इसका प्रमाण ज्यादा होता है Iभारत में करीब १५ प्रतिशत याने लगभग 18 करोड़ लोग आर्थराइटिस याने जोड़ों के दर्द से पीड़ित हैं I एक अध्ययन में पाया गया है कि देश में आर्थराइटिस से जुड़े मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही रही है Iइलाजसंतुलित आहार, जीवनशैली में योग्य बदलाव, वजन नियंत्रित रखना इसके लिए जरूरी है lकुछ आसान उपाय काफी मदत कर सकते है l१. रसोई में पायी जानेवाली मसालों की चीजे दर्द कम करने में असरदार होती है Iमेथी दाना, सौंठ और हल्दी बराबर मात्रा में मिला कर तवे या कढ़ाई में भून कर पीस लें। रोजाना एक चम्मच चूर्ण सुबह-शाम भोजन करने के बाद गर्म पानी के साथ लें।सर्दियों में मेथी के लड्डू बनाकर खाना फायदेमंद है I२. रोज सुबह खाली पेट एक चम्मच मेथी के पिसे दानों में एक ग्राम कलौंजी मिलाकर गुनगुने पानी के साथ लें। दोपहर और रात में खाना खाने के बाद आधा-आधा चम्मच लेने से जोड़ मजबूत होंगे और किसी प्रकार का दर्द नहीं होगा।३. हल्दी को एक अच्छे दर्द निवारक के रूप में जाना जाता है Iयह एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटी ऑक्सीडेंट होने कारण जोड़ों के दर्द, सूजन को कम करने में अत्यंत उपयुक्त है Iआधा चम्मच हल्दी का पाउडर शहद के साथ लेना या एक गिलास गर्म दूध में एक चम्मच हल्दी मिलाकर रोजाना पीना घुटनों के दर्द को कम करने में उपयुक्त है I४. अदरक दर्दनिवारक, एंटी इंफ्लेमेटरी , एंटी ऑक्सीडेंट आदि औषधीय गुणों से युक्त होने के साथ ही रक्त संचार को भी तेज करता है Iपानी में अदरक उबालें और ठंडा करके इसमें शहद मिलाएं। और दिन में ३ बार इस चाय को पिएं।प्रभावित हिस्से की अदरक के तेल से मसाज भी आराम मिलेगा।मसाज और सिकाईघुटने के दर्द और सूजन को कम करने के लिए बाह्य उपचार जैसे मसाज, सिकाई बहोत असरदार होते है Iमालिश से रक्तसंचरण बढ़ता है, मांसपेशियां, टेंडॉन्स रिलैक्स होते है जिससे दर्द कम होने में मदत मिलती है lनारियल, जैतून, सरसों या लहसुन के तेल से जोड़ों की मालिश करें। हल्के हाथों से दबाव देते हुए दर्द वाले हिस्से को मलें।१. कपड़े को गर्म पानी में भिगोकर बनाए पैड से सिंकाई करने से घुटने के दर्द में आराम मिलता है।२. सरसों का तेल घुटने और जोड़ों के दर्द के लिए काफी फायदेमंद है I दो चम्मच सरसों के तेल में ३-४ लहसुन कलियां पीसकर डाले और अच्छे से पका ले I छानकर, गुनगुना रहने पर इस तेल से घुटने की सुबह शाम दो बार मालिश करे Iआयुर्वेद में निर्गुन्डी, गुग्गुलु, शल्लकी, हरिद्रा, गोखरू, त्रिफला, देवदार, दशमूल, आदि औषधीय अपने दर्दनिवारक, वातशामक गुणों के कारण सन्धिवात या आर्थराइटिस में इस्तमाल की जाती है l इनसे बने योगराज गुग्गुलु, पुनर्नवा गुग्गुलु, महारास्नादि काढ़ा, वात विध्वंस रस, महानारायण तेल आदि योग काफी प्रभावी है l लेकिन उचित वैद्यकीय सलाह लेकर ही इनका प्रयोग करे lडॉ वैद्याज का Arthritis Pack, जोड़ों के दर्द, सूजन को कम करने का आयुर्वेदिक और सुरक्षित उपाय है I इसमें संधिवती टेबलेट, रुमॉक्स बाम, निर्गुंडी जॉइंट गार्ड तेल और हर्बोफिट कैप्सूल यह चार औषधीया शामिल है I इसके नियमित उपयोग से दर्द, सूजन कम हो कर घुटनों की समस्याओं में राहत मिलती है lपंचकर्मआयुर्वेद में वर्णित बस्ति चिकित्सा वात दोष के कारण होनेवाले जोड़ों के दर्द जैसे विकारों में उपयुक्त है। इस में औषधि सिद्ध तेल जैसे - सहचर, क्षीरबला तेल या तिल तेल और दशमूल काढ़ा इन का एनीमा दिया जाता है।जानु बस्ती - इस में रोगी को पीठ के बल लेटाकर घुटनों के उपर उड़द दाल के आटे से एक रिंग बनाई जाती है। इस में गुनगुना औषधि तेल डालकर रखा जाता है। तेल ठंडा होने पर दोबारा उसे गर्म तेल से बदल देते है। ३० से ४० मिनट तक इस उपक्रम को किया जाता है।जानु बस्ती से घुटनों का दर्द, जखडन और सूजन कम होकर उन में लचीलापन बढ़ता है। खासकर पुराने दर्द में यह कारगर होता है।आयुर्वेद चिकित्सक से परामर्श ले कर इन का उपयोग करे।औषधियों के साथ भोजन और जीवनशैली में बदलाव भी जरूरी हैभोजन में दालचीनी, जीरा, अदरक और हल्दी का उपयोग ज्यादा से ज्यादा करें। गर्म तासीर वाले इन पदार्थों के सेवन से घुटनों की सूजन और दर्द कम होता है।विभिन्न प्रकार के फल और सब्जियां जो फाइटोन्यूट्रिएंट्स से भरपूर हो और जिनमें विटामिन सी, डी, और ई और सेलेनियम जैसे सूजन से लड़ने वाले एंटी ऑक्सिडेंट शामिल हैं।जोड़ों को गतिविधि बनाए रखने के लिए व्यायाम करना कुछ लोगों में घुटने के दर्द को कम करता है। आर्थराइटिस से पीड़ित लोगों के लिए, पैर

क्या आप मानव शरीर के बारे में कुछ ऐसी बातें बता सकते हैं जिसे सुनकर हम हैरान हो जाए?वनिता कासनियां पंजाब द्वारा आज मैं आपको बताऊंगी 🗣️ मानव शरीर🩸 के बारे में कुछ सच जिसे जानकर आप हैरान🤯 हो जाएंगे 2 मिनट निकालकर इसे जरूर पढ़ें :—हमारा शरीर हर सेकंड 2.5 करोड़ नई कोशिकाएं🦠 बनाता है. साथ ही, हर दिन 200 अरब से ज्यादा रक्त कोशिकाओं🩸 का निर्माण करता है. हर वत्त शरीर में 2500 अरब रक्त कोशिकाएं मौजूद होती हैं. एक बूंद खून में 25 करोड़ कोशिकाएं होती हैं।🤎सारे कैमरे📹 और दूरबीने फेल इंसान की आंख एक करोड़ रंगों में बारीक से बारीक🐞 अंतर पहचान सकती है. फिलहाल दुनिया में ऐसी कोई मशीन नहीं है जो इसका मुकाबला कर सके।💛जबरदस्त फेफडे हमारे फेफड़े हर दिन 20 लाख लीटर हव🌬️ को फिल्टर करते हैं. हमें इस बात की भनक भी नहीं लगती😳. फेफड़ों को अगर खींचा जाए तो यह टेनिस कोर्ट के एक हिस्से को ढंक देंगे।🤎मनुष्य का खून🩸 हर दिन शरीर में 1,92,000KM का सफर करता है.👣 हमारे शरीर में औसतन 5.6 लीटर खून होता है जो हर 20 सेकेंड में एक बार पूरे शरीर में चक्कर काट लेता है।🧡एक स्वस्थ इंसान ❤️ का हृदय हर दिन 1,00,000 बार धड़कता है. साल भर में यह 3 करोड़ से ज्यादा बार धड़क चुका होता है. दिल का पपम्पिंग 🪐 प्रेशर इतना तेज होता है कि वह खून को 30 फुट ऊपर उछाल सकता है।💚यह कुछ मानव🧍 शरीर के बारे में कुछ सच है जो बहुत कम लोग जानते हैं क्या आप पहले इनके बारे में जानते थे।🤔आपको यह मेरी पोस्ट कैसी लगी कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।🗯️💭मैं आशा करती हूं कि आप को यह मेरी पोस्ट पसंद आई होगी।🧡😇अगर आपको यह मेरी पोस्ट पसंद आई है तो इसे अपवोट करना और मुझे फॉलो करना ना भूलें।⬆️💌मेरी पोस्ट को पढ़ने के लिए आपका तहे दिल से धन्यवाद।❤️🙏अगर आप इस डिजिटल युग में घर बैठे (पार्ट टाइम) ऑनलाइन बिजनेस सीखना और करना चाहते हैं तो आप मुझे मेरे व्हाट्सएप पर मैसेज कर सकते हैं:—WhatsApp number:— 9877264170💬💬आपका धन्यवाद।।🙏❤️

4464005860401745

http://vnita48.blogspot.com/2022/09/27092022.html

दुर्गा सप्तशती अध्याय 3 - महिषासुर का वध ऋषि ने कहा: श्रीदुर्गाष्टशती – ऋतुऽध्यायः॥ सेनाहित महिषासुर का वध ध्यानम्॥ उभानु सहस्रान्तिमरुणक्षौमां शिरोमालिका रक्तालिप्तपयोधरं जपवितिंग विद्यामभीतिंवरम्। हस्ताबैजैर्डधतीं त्रिनेत्रविलसद्वक्त्रविन्दश्रियं देविबंधहिमांसुरत्‍नमुकुटां वन्देऽरविन्दस्थताम्॥ "ॐ" ऋषिररुवाच॥1॥ निहण्यमानं समसायिकमवलोक्य महासुरः। कोपाद्ययौ योधूमथाम्बिकाम्॥2॥ स डेवार्षिक वववर्ष समरेसुरः। जन्म मेरुगिरेः श्रृगं तोयवर्षेण तोयदः॥3॥ तस्यच्छित्त्वा ततो देवी ली लयैव शौर्यत:। जघन तुरगां बाणैर्य्यन्तारं चैव वाजिनाम्॥4॥ चिच्छेद च धनुः सदा ध्वजं चातिसमुच्छितम्। विव्या चैव गत्रेशु छिन्नधनवनमासुगमः॥5॥ सच्छिंधन्वाविर, विश्वो हत्सारथिः। अविद्यावत तां देवन खड्ढगचर्मधरोऽसुरः॥6॥ सिंहमहत्य खड्‌स तीक्ष्णधारेण मूर्धनी। आजघन भुजे सव्य देवीमप्यतिवेगवान॥7॥ तस्याः खड्‌‌‌गो भुजं पफल नृपानंदन। ततो ग्राह शूलं स कोपादरुणलोचनः॥8॥ चिचर्चा चतत्तु भद्रकाल्यां महासुरः। जाज्वलमानं तेजोभी रविबिम्बमिवाम्बरात्9॥ डिंडट्वा तडापतच्छलं देवी शूलमञ्चछत। तच्छूलं * शतधा तेन नीतिं स च महासुरः॥ 10॥ हते तस्मिन्महावीर्ये महिषस्य चमूपतौ। आजगाम गजारूढश्चामरस्त्रिदशार्डनः॥11॥ सोपि शक्तिं मुमोचाथ देवस्तम्बिका द्रुतम्। हुंकाराभिहतं भूमौ पात्यामास प्रभामंडल प्रभा12॥ भग्नांं शक्तिं निपतितां दैत्यत्व क्रोधसंमन्वितः। चिचचामरः शूलं बाणैस्तदपि साच्छिनत्13॥ ततः सिंहः समुत्पत्य गजभरेः। बाहु वडनें योधे तेनोचैस्त्रीदाशारिणा॥14॥ वार्यमानौ तसतौ तुम तस्माननमहीं गतौ। युयुधातेऽतिसंरब्धौ प्रहार्तिदारुनैः॥15 ततो वेगत खमुत्पत्य निपत्य च मृगारिणा। करप्रहारेण शिरश्चामरस्य सुकृत्कृतम्॥16 उदग्रश्‍च रणे देव्या शिलावृक्षदिभिरहतः। दन्तमुष्ट देवी क्रुद्धा गदापात चोद्धत्म्। बश्कलं भिंडीपालेन बाणैस्ताम्रं और अंधकम्॥18 द्रुताश्यमुग्रवीर्यं च तक्षव च महाहं। त्रिनेत्र च ईश्वरीय हीरणी॥19॥ बिडालस्ना कायात्पातयामास वै शिरः। दुरधरं दुरमुखं चोभौ शेरोर्निन्ये यमक्षयम् * 20 ॥ और संक्षीयमणे आपके में महिषासुरः। महिषण रूपेण त्रैसयामास तन गनान्21॥ कंशचित्तुण्डप्रहारेण खुरपकेकैस्थपरान्। लाङ्गूलतादितांश्‍चान्यांछृगभ्यां च विदारितान्॥22॥ वे शू कंश्चिपारण्ण दौडने च। निःस्वासपवनेन्या पात्यामास भूतले॥23 निपात्य प्रमाण पत्र कम्यधावत सोसुरः। सिंहं हनतुं महादेव्यः कोप चक्रे ततोऽम्बिका 24 सोपि को पनिमहावीर्यः खुरक्षुण्णमहीतलः। श्रृग्भ्यां पर्वत नंचुंचिक्षेप च नंद च॥25 वेगभ्रमणविक्षुण्णा माही तस्य विशीर्यत। लागुलेनाहतस्चाब्धिः प्लाव्यमास सर्वत:26॥ धुतश्रिङ्गविभच खंडं * खंडं ययुर्घनाः। शतशो निपेटर्नभसोऽचलाः॥27॥ इति क्रोधसमाध्मातमापतं महासुरम्। दन्त्वा साचण्डिका कोपं तद्वादय तदकरोत॥28॥ सा क्षिप्त्वा तस्य वैपं तन प्रशासन महासुरम्। तात्याज महिषं रूपं सोऽपि संबधित महामृधे29॥ ततः सिंहोऽभवित्सुदो येवत्तस्यम्बिका शिरः। छिनत्ति तवत्नरः खड्‌गपाणिरदेखरात॥30॥ त एवाशु पुरुष देवी चिचच्छेद यनः। तं खड्गचर्मणा सरधन ततः सोभूं महाजः॥31॥ करेण च महासिंहं तं चक्षरजराज च। क्रॉफ्टस्तु करं देवी खड्‌ निक्रिंत॥32॥ ततो महासुरो भूयो महिषं वपुरास्थितः। तक्षव क्षोभयामास त्रैलोक्यं सचराचरम्॥33॥ ततः क्रुद्धा जगन्माता चण्डिका पानमुत्तमम्। पहुनिश्चचचैव ज 34॥ नारद चासुरः सोपि बलवीर्यमदोधधामः। वनभ्यां च चिचचचण्डिकां प्रति भूधरं35॥ साच तान प्रहितंस्तेन चूर्ण्यंती शौरतकरायः। उवाच तं मदोधूतमुखरागाकुलाक्षरम्॥36 देवौवाच॥37॥ गर्ज गर्जिन मूढ यात्पिबाम। मया त्वयि हतेऽत्रैव गर्जिष्यन्त्यशु देवताः॥38॥ ऋषिरुवाच॥39॥ अस मुक्त्वा सुप्तपत्य सारुढा तं महासुरम्। पाक्र्य कण्ठे च शू मेनामतादयत्॥40 तततः सोऽपि पदऽऽक्रांतस्त्य निजमोत्तम। अर्धनिष्क्रांत अधीद * देव वीर्येन संवृत:41॥ अर्धनिष्क्रिय एक्यौद्यमानो महासुरः। शीरा महासिना देव्या शिरश्छित्त्वा निपातित: * ॥42॥ ततो हाहाकृतं सर्वं दैत्यिकं नैशट। प्रहर्षं च परंजमुः सकल देवतागण:॥43॥ तुष्टुवुस्तां सुरा देस सहदैत्यैर्महर्षिषिषिभिः। जकुरगन्धर्वपतयो नंत्रुश्‍चाप्सरोगणाः॥ॐ॥44॥ इति श्रीनाम महेत्यापुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्य्य्यशासुरवधो ऋतियोऽध्यायः॥3॥ उवाच 3, श्लोकः 41, इस्म 44, इवाच 3, श्लोकः 217॥ अर्थ – दुर्गा सप्तशती अध्याय 3 1-2. महान असुर सेनापति सिसी को सेना को (देवी द्वारा) जाने पर, क्रोध में अंबिका से बोलने के लिए आगे बढ़ने के लिए। 3. असुर ने युद्ध में देवी पर बाणों की वर्ष की, जैसे मेरु पर्वत के शिखर पर मेघ (वर्षा) ब्रेसा। 4. देवी ने अपने से अपने बाणों की डाई को काटकर अपने ड्राइवर को ड्राइवर को बाणों से मार डाला। 5. ‍ निश्चित करेंगें। 6. धनु चकनाचुर हो गया, रथ सवार हो गया, 7. अपनी धारदार तलवार से अपनी नई नई नई किस्म की नई नई नई नई किस्म के बच्चों के लिए भी। 8. हे राजा, ️ आँखें️ आँखें️ आँखें️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️ 9. शानदार असुर चमकते चमकते चमकते पंखे पर जैसे जैसे, मानो वह आकाश से सूर्य को ही खेलने वाला हो। 10. पालतू जानवर के व्यक्तिगत को बदलने के लिए, डिवाइस ने व्यक्तिगत रूप से डिवाइस को पालतू जानवर को सौर में बदल दिया और स्वयं महान असुर को चकनाचूर। 11. महिषासुर के सेनापति के पास जाने के बाद, हाथी पर चलने वाला, आगे चलने वाला। 12. अपनी भाला भी देवी पर पिच। अंबिका ने ऐसा किया था, वह चमकीला हो गया और जमीन पर चला गया। 13. केमारा ने अपने भाले को फटाफट किया और चिल्लाया, क्रोध से भरकर एक एयरकलाई, और उसे भी अपने बाणोंसे फटाफट किया। 14. सिंह ने कीटाणु के मै के बीच में बैठने की स्थिति में हैं, तो शत्रु से संबंधित हैं। 15. वे तेज से तेज, तेज से तेज। 16. ने फुर्ती से आकाश की ओर ऊलकर नीचे उतरे कामगारों का लड़ाकू सिंह से हैट मार। 17. और उदग्र देवी के द्वारा प्रकाशित, जैओं आदि से युद्ध में, और कराला भी डॉ. 18. क्रुद्ध को डंडे के वार से कुचालक, और बास्कला को एक डार्ट से मारकर और ताम्र और अंधा को बाणों से नष्ट कर दिया। 19. तीन आंखों वाले ठीक करने वाले ने खुद को नियंत्रित किया। 20. अपनी बंदूकधारी से बिडाला के आगे नई दिल्ली, और धुरधरा और धुरमुधा अडिग को बाणों से मृत्यु के खतरे में। 21. जब सेना के वायरस नष्ट हो गए थे, महिषासुर ने अपनी मिसाइलों की सेना को दाग दिया था। 22. कोई अपके खुरसे, कोई भी अपने पूँछोंसे, और कोई अपने ख़ुशियोंके थूथन से। 23. अपनी तेज गति से पृथ्वी पर नीचे, कोई अपनी गड़गड़ाहट और पहिए की गति से, और कुछ अपने जैसे। 24. महिषासुर अपनी सेना को महादेवी के सिंह को मारने के लिए दौड़ा। अंबिका नाराज़ हो। 25. महान वीर महिषासुर ने क्रोधित होकर खुरों से धरातल के अपने चूचुचुर कर, और ए.एस. 26. पहिए के वेग से कुए, पृथ्वी-भ्रंश, और छिए टकरा 27. उसके ; उसकी उतरें। 28. महान असुर को रोमांच से फूला हुआ और अपनी अपने 29. उस पर फँदा फूँका और वह बड़ा असुर कोंडा। इस तरह के बृहद वारिस को एक साथ जोड़ा गया, जो कि आपके वारिसों को पूरा करता है। 30. वह झटपट सिंह बन गया। अंबिका ने (सब सिंह रूप का) सिर काट दिया, तालिका में तीर के लिए एक मनुष्य का रूप धारण किया। 31. देवताओं ने अपने बाणोंसे को फिर वह एक बड़ा बन गया। 32. (हाथ) ने अपने बड़े सिंह को सूंड से ज्योर-जोर से दहाड़ने वाली, आदि जैसे ही वह उतार दिया था। 33. महान असुर ने फिर अपनी भैस की आकृति को फिर से शुरू किया और बैटरी से चलने और चलने वाले लोक से हो। 34. इस समय की माँ चांडिका ने बार-बार पीया, और हँसी, चमकी लाल हो। 35 और असुर भी अपकेपरम और परक्रम से मधोश गरजनेदिया, और सिंगोंसे चंडिका पर पिचे। 36. और उस पर बर्से की अशुद्धि ️ देवी ने कहा: 37-38. 'दहाड़, दहाड़, हे मूर्धन्य, एक पल तक मैं शराब पीता हूं। मेरे पास बजे हैं, सुबह जल्दी ही.' ऋषि ने कहा: 39-40. यह बैठने के लिए और जब असुर के पास जा रही थी, तो पांव से चिल पर अपनी और भाले से बात करती थी। 41. उसे पकड़ना है। (सब वास्तविक रूप में) (भंस) मुंह 42. अपने परिवार के रूप में इस प्रकार से, डाइव्स ने महान असुर, प्रवर से प्रहार से प्रहार किया। 43., असुरों की दुनिया से दूर और देवा की सेना हर्षित हो उठी। 44. स्वर्ग के महान ऋषियों के साथ, ने देवी की स्तुति की। गन्धर्व By Vnita Kasnia Punjab

दुर्गा सप्तशती अध्याय 3 - महिषासुर का वध ऋषि ने कहा: श्रीदुर्गाष्टशती – ऋतुऽध्यायः॥ सेनाहित महिषासुर का वध ध्यानम्॥ उभानु सहस्रान्तिमरुणक्षौमां शिरोमालिका रक्तालिप्तपयोधरं जपवितिंग विद्यामभीतिंवरम्। हस्ताबैजैर्डधतीं त्रिनेत्रविलसद्वक्त्रविन्दश्रियं देविबंधहिमांसुरत्‍नमुकुटां वन्देऽरविन्दस्थताम्॥ "ॐ" ऋषिररुवाच॥1॥ निहण्यमानं समसायिकमवलोक्य महासुरः। कोपाद्ययौ योधूमथाम्बिकाम्॥2॥ स डेवार्षिक वववर्ष समरेसुरः। जन्म मेरुगिरेः श्रृगं तोयवर्षेण तोयदः॥3॥ तस्यच्छित्त्वा ततो देवी ली लयैव शौर्यत:। जघन तुरगां बाणैर्य्यन्तारं चैव वाजिनाम्॥4॥ चिच्छेद च धनुः सदा ध्वजं चातिसमुच्छितम्। विव्या चैव गत्रेशु छिन्नधनवनमासुगमः॥5॥ सच्छिंधन्वाविर, विश्वो हत्सारथिः। अविद्यावत तां देवन खड्ढगचर्मधरोऽसुरः॥6॥ सिंहमहत्य खड्‌स तीक्ष्णधारेण मूर्धनी। आजघन भुजे सव्य देवीमप्यतिवेगवान॥7॥ तस्याः खड्‌‌‌गो भुजं पफल नृपानंदन। ततो ग्राह शूलं स कोपादरुणलोचनः॥8॥ चिचर्चा चतत्तु भद्रकाल्यां महासुरः। जाज्वलमानं तेजोभी रविबिम्बमिवाम्बरात्9॥ डिंडट्वा तडापतच्छलं देवी शूलमञ्चछत। तच्छूलं * शतधा तेन नीतिं स च महासुरः॥ 10॥ हते तस्मिन्महावीर्ये महिषस्य चमूपतौ। आजगाम गजारूढश्चामरस्त्रिदशार्डनः॥11॥ सोपि शक्तिं मुमोचाथ देवस्तम्बिका द्रुतम्। हुंकाराभिहतं भूमौ पात्यामास प्रभामंडल प्रभा12॥ भग्नांं शक्तिं निपतितां दैत्यत्व क्रोधसंमन्वितः। चिचचामरः शूलं बाणैस्तदपि साच्छिनत्13॥ ततः सिंहः समुत्पत्य गजभरेः। बाहु वडनें योधे तेनोचैस्त्रीदाशारिणा॥14॥ वार्यमानौ तसतौ तुम तस्माननमहीं गतौ। युयुधातेऽतिसंरब्धौ प्रहार्तिदारुनैः॥15 ततो वेगत खमुत्पत्य निपत्य च मृगारिणा। करप्रहारेण शिरश्चामरस्य सुकृत्कृतम्॥16 उदग्रश्‍च रणे देव्या शिलावृक्षदिभिरहतः। दन्तमुष्ट देवी क्रुद्धा गदापात चोद्धत्म्। बश्कलं भिंडीपालेन बाणैस्ताम्रं और अंधकम्॥18 द्रुताश्यमुग्रवीर्यं च तक्षव च महाहं। त्रिनेत्र च ईश्वरीय हीरणी॥19॥ बिडालस्ना कायात्पातयामास वै शिरः। दुरधरं दुरमुखं चोभौ शेरोर्निन्ये यमक्षयम् * 20 ॥ और संक्षीयमणे आपके में महिषासुरः। महिषण रूपेण त्रैसयामास तन गनान्21॥ कंशचित्तुण्डप्रहारेण खुरपकेकैस्थपरान्। लाङ्गूलतादितांश्‍चान्यांछृगभ्यां च विदारितान्॥22॥ वे शू कंश्चिपारण्ण दौडने च। निःस्वासपवनेन्या पात्यामास भूतले॥23 निपात्य प्रमाण पत्र कम्यधावत सोसुरः। सिंहं हनतुं महादेव्यः कोप चक्रे ततोऽम्बिका 24 सोपि को पनिमहावीर्यः खुरक्षुण्णमहीतलः। श्रृग्भ्यां पर्वत नंचुंचिक्षेप च नंद च॥25 वेगभ्रमणविक्षुण्णा माही तस्य विशीर्यत। लागुलेनाहतस्चाब्धिः प्लाव्यमास सर्वत:26॥ धुतश्रिङ्गविभच खंडं * खंडं ययुर्घनाः। शतशो निपेटर्नभसोऽचलाः॥27॥ इति क्रोधसमाध्मातमापतं महासुरम्। दन्त्वा साचण्डिका कोपं तद्वादय तदकरोत॥28॥ सा क्षिप्त्वा तस्य वैपं तन प्रशासन महासुरम्। तात्याज महिषं रूपं सोऽपि संबधित महामृधे29॥ ततः सिंहोऽभवित्सुदो येवत्तस्यम्बिका शिरः। छिनत्ति तवत्नरः खड्‌गपाणिरदेखरात॥30॥ त एवाशु पुरुष देवी चिचच्छेद यनः। तं खड्गचर्मणा सरधन ततः सोभूं महाजः॥31॥ करेण च महासिंहं तं चक्षरजराज च। क्रॉफ्टस्तु करं देवी खड्‌ निक्रिंत॥32॥ ततो महासुरो भूयो महिषं वपुरास्थितः। तक्षव क्षोभयामास त्रैलोक्यं सचराचरम्॥33॥ ततः क्रुद्धा जगन्माता चण्डिका पानमुत्तमम्। पहुनिश्चचचैव ज 34॥ नारद चासुरः सोपि बलवीर्यमदोधधामः। वनभ्यां च चिचचचण्डिकां प्रति भूधरं35॥ साच तान प्रहितंस्तेन चूर्ण्यंती शौरतकरायः। उवाच तं मदोधूतमुखरागाकुलाक्षरम्॥36 देवौवाच॥37॥ गर्ज गर्जिन मूढ यात्पिबाम। मया त्वयि हतेऽत्रैव गर्जिष्यन्त्यशु देवताः॥38॥ ऋषिरुवाच॥39॥ अस मुक्त्वा सुप्तपत्य सारुढा तं महासुरम्। पाक्र्य कण्ठे च शू मेनामतादयत्॥40 तततः सोऽपि पदऽऽक्रांतस्त्य निजमोत्तम। अर्धनिष्क्रांत अधीद * देव वीर्येन संवृत:41॥ अर्धनिष्क्रिय एक्यौद्यमानो महासुरः। शीरा महासिना देव्या शिरश्छित्त्वा निपातित: * ॥42॥ ततो हाहाकृतं सर्वं दैत्यिकं नैशट। प्रहर्षं च परंजमुः सकल देवतागण:॥43॥ तुष्टुवुस्तां सुरा देस सहदैत्यैर्महर्षिषिषिभिः। जकुरगन्धर्वपतयो नंत्रुश्‍चाप्सरोगणाः॥ॐ॥44॥ इति श्रीनाम महेत्यापुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्य्य्यशासुरवधो ऋतियोऽध्यायः॥3॥ उवाच 3, श्लोकः 41, इस्म 44, इवाच 3, श्लोकः 217॥ अर्थ – दुर्गा सप्तशती अध्याय 3 1-2. महान असुर सेनापति सिसी को सेना को (देवी द्वारा) जाने पर, क्रोध में अंबिका से बोलने के लिए आगे बढ़ने के लिए। 3. असुर ने युद्ध में देवी पर बाणों की वर्ष की, जैसे मेरु पर्वत के शिखर पर मेघ (वर्षा) ब्रेसा। 4. देवी ने अपने से अपने बाणों की डाई को काटकर अपने ड्राइवर को ड्राइवर को बाणों से मार डाला। 5. ‍ निश्चित करेंगें। 6. धनु चकनाचुर हो गया, रथ सवार हो गया, 7. अपनी धारदार तलवार से अपनी नई नई नई किस्म की नई नई नई नई किस्म के बच्चों के लिए भी। 8. हे राजा, ️ आँखें️ आँखें️ आँखें️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️️ 9. शानदार असुर चमकते चमकते चमकते पंखे पर जैसे जैसे, मानो वह आकाश से सूर्य को ही खेलने वाला हो। 10. पालतू जानवर के व्यक्तिगत को बदलने के लिए, डिवाइस ने व्यक्तिगत रूप से डिवाइस को पालतू जानवर को सौर में बदल दिया और स्वयं महान असुर को चकनाचूर। 11. महिषासुर के सेनापति के पास जाने के बाद, हाथी पर चलने वाला, आगे चलने वाला। 12. अपनी भाला भी देवी पर पिच। अंबिका ने ऐसा किया था, वह चमकीला हो गया और जमीन पर चला गया। 13. केमारा ने अपने भाले को फटाफट किया और चिल्लाया, क्रोध से भरकर एक एयरकलाई, और उसे भी अपने बाणोंसे फटाफट किया। 14. सिंह ने कीटाणु के मै के बीच में बैठने की स्थिति में हैं, तो शत्रु से संबंधित हैं। 15. वे तेज से तेज, तेज से तेज। 16. ने फुर्ती से आकाश की ओर ऊलकर नीचे उतरे कामगारों का लड़ाकू सिंह से हैट मार। 17. और उदग्र देवी के द्वारा प्रकाशित, जैओं आदि से युद्ध में, और कराला भी डॉ. 18. क्रुद्ध को डंडे के वार से कुचालक, और बास्कला को एक डार्ट से मारकर और ताम्र और अंधा को बाणों से नष्ट कर दिया। 19. तीन आंखों वाले ठीक करने वाले ने खुद को नियंत्रित किया। 20. अपनी बंदूकधारी से बिडाला के आगे नई दिल्ली, और धुरधरा और धुरमुधा अडिग को बाणों से मृत्यु के खतरे में। 21. जब सेना के वायरस नष्ट हो गए थे, महिषासुर ने अपनी मिसाइलों की सेना को दाग दिया था। 22. कोई अपके खुरसे, कोई भी अपने पूँछोंसे, और कोई अपने ख़ुशियोंके थूथन से। 23. अपनी तेज गति से पृथ्वी पर नीचे, कोई अपनी गड़गड़ाहट और पहिए की गति से, और कुछ अपने जैसे। 24. महिषासुर अपनी सेना को महादेवी के सिंह को मारने के लिए दौड़ा। अंबिका नाराज़ हो। 25. महान वीर महिषासुर ने क्रोधित होकर खुरों से धरातल के अपने चूचुचुर कर, और ए.एस. 26. पहिए के वेग से कुए, पृथ्वी-भ्रंश, और छिए टकरा 27. उसके ; उसकी उतरें। 28. महान असुर को रोमांच से फूला हुआ और अपनी अपने 29. उस पर फँदा फूँका और वह बड़ा असुर कोंडा। इस तरह के बृहद वारिस को एक साथ जोड़ा गया, जो कि आपके वारिसों को पूरा करता है। 30. वह झटपट सिंह बन गया। अंबिका ने (सब सिंह रूप का) सिर काट दिया, तालिका में तीर के लिए एक मनुष्य का रूप धारण किया। 31. देवताओं ने अपने बाणोंसे को फिर वह एक बड़ा बन गया। 32. (हाथ) ने अपने बड़े सिंह को सूंड से ज्योर-जोर से दहाड़ने वाली, आदि जैसे ही वह उतार दिया था। 33. महान असुर ने फिर अपनी भैस की आकृति को फिर से शुरू किया और बैटरी से चलने और चलने वाले लोक से हो। 34. इस समय की माँ चांडिका ने बार-बार पीया, और हँसी, चमकी लाल हो। 35 और असुर भी अपकेपरम और परक्रम से मधोश गरजनेदिया, और सिंगोंसे चंडिका पर पिचे। 36. और उस पर बर्से की अशुद्धि ️ देवी ने कहा: 37-38. 'दहाड़, दहाड़, हे मूर्धन्य, एक पल तक मैं शराब पीता हूं। मेरे पास बजे हैं, सुबह जल्दी ही.' ऋषि ने कहा: 39-40. यह बैठने के लिए और जब असुर के पास जा रही थी, तो पांव से चिल पर अपनी और भाले से बात करती थी। 41. उसे पकड़ना है। (सब वास्तविक रूप में) (भंस) मुंह 42. अपने परिवार के रूप में इस प्रकार से, डाइव्स ने महान असुर, प्रवर से प्रहार से प्रहार किया। 43., असुरों की दुनिया से दूर और देवा की सेना हर्षित हो उठी। 44. स्वर्ग के महान ऋषियों के साथ, ने देवी की स्तुति की। गन्धर्व By Vnita Kasnia Punjab

🌺🌺🌺🚩🐅🚩🌺🌺🌺तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओसिंह की सवार बनकररंगों की फुहार बनकरपुष्पों की बहार बनकरसुहागन का श्रंगार बनकरतुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओखुशियाँ अपार बनकररिश्तों में प्यार बनकरबच्चों का दुलार बनकरसमाज में संस्कार बनकरतुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओरसोई में प्रसाद बनकर व्यापार में लाभ बनकर घर में आशिर्वाद बनकर मुँह मांगी मुराद बनकर तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओसंसार में उजाला बनकर अमृत रस का प्याला बनकर पारिजात की माला बनकर भूखों का निवाला बनकर तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ*शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी* बनकर *चंद्रघंटा, कूष्माण्डा* बनकर *स्कंदमाता, कात्यायनी* बनकर *कालरात्रि, महागौरी* बनकर *माता सिद्धिदात्री* बनकर तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओतुम्हारे आने से नव-निधियां स्वयं ही चली आएंगी तुम्हारी दास बनकर*तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ*🚩🐅🚩🐅🚩🐅🚩*|| सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके । शरन्ये त्रयम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।।* *🌹🌹शुभनवरात्रि🌹🌹*ooooO( 🌼 ) Ooooo \ ( ( 🌼 ) \ ) ) / ︶ ( /🌹🌹🌹🌹🌹 ︶A=अम्बे. 👣 B=भवानी 👣 C=चामुंडा 👣 D=दुर्गा 👣 E=एकरूपी 👣 F=फरसाधारणी 👣 G=गायत्री 👣 H=हिंगलाज 👣 I=इंद्राणी 👣 J=जगदंबा 👣 K=काली 👣 L=लक्ष्मी 👣 M=महामाया 👣 N=नारायणी 👣 O=ॐकारणी 👣 P=पद्मा👣 Q=कात्यायनी R=रत्नप्रिया 👣 S=शीतला 👣 T=त्रिपुरासुंदरी 👣 U=उमा. 👣 V=वैष्णवी 👣 W=वराही 👣 Y=यति 👣 Z=ज़य्वाना 👣​ll सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके शरण्य त्र्यम्बकेगौरी नारायणी नमस्तुते ll🙏🙏.By वनिता कासनियां पंजाब ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और खूबसूरत सी कहानीया से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇🌺🪴बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम 🪴🌺

ooooO( 🌼 ) Ooooo \ ( ( 🌼 ) \ ) ) / ︶ ( /🌹🌹🌹🌹🌹 ︶A=अम्बे. 👣 B=भवानी 👣 C=चामुंडा 👣 D=दुर्गा 👣 E=एकरूपी 👣 F=फरसाधारणी 👣 G=गायत्री 👣 H=हिंगलाज 👣 I=इंद्राणी 👣 J=जगदंबा 👣 K=काली 👣 L=लक्ष्मी 👣 M=महामाया 👣 N=नारायणी 👣 O=ॐकारणी 👣 P=पद्मा👣 Q=कात्यायनी R=रत्नप्रिया 👣 S=शीतला 👣 T=त्रिपुरासुंदरी 👣 U=उमा. 👣 V=वैष्णवी 👣 W=वराही 👣 Y=यति 👣 Z=ज़य्वाना 👣​ll सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके शरण्य त्र्यम्बकेगौरी नारायणी नमस्तुते ll🙏🙏.By वनिता कासनियां पंजाब ऐसे और पोस्ट देखने के लिए और खूबसूरत सी कहानीया से जुड़ने के लिए क्लिक करें 👇👇🌺🪴बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम 🪴🌺

श्री दुर्गा चालीसा______________नमो नमो दुर्गे सुख करनी।नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥निरंकार है ज्योति तुम्हारी।तिहूं लोक फैली उजियारी॥शशि ललाट मुख महाविशाला।नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥रूप मातु को अधिक सुहावे।दरश करत जन अति सुख पावे॥तुम संसार शक्ति लै कीना।पालन हेतु अन्न धन दीना॥अन्नपूर्णा हुई जग पाला।तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥प्रलयकाल सब नाशन हारी।तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥रूप सरस्वती को तुम धारा।दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।परगट भई फाड़कर खम्बा॥रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।श्री नारायण अंग समाहीं॥क्षीरसिन्धु में करत विलासा।दयासिन्धु दीजै मन आसा॥हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।महिमा अमित न जात बखानी॥मातंगी अरु धूमावति माता।भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥श्री भैरव तारा जग तारिणी।छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥केहरि वाहन सोह भवानी।लांगुर वीर चलत अगवानी॥कर में खप्पर खड्ग विराजै।जाको देख काल डर भाजै॥सोहै अस्त्र और त्रिशूला।जाते उठत शत्रु हिय शूला॥नगरकोट में तुम्हीं विराजत।तिहुंलोक में डंका बाजत॥शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।रक्तबीज शंखन संहारे॥महिषासुर नृप अति अभिमानी।जेहि अघ भार मही अकुलानी॥रूप कराल कालिका धारा।सेन सहित तुम तिहि संहारा॥परी गाढ़ संतन पर जब जब।भई सहाय मातु तुम तब तब॥अमरपुरी अरु बासव लोका।तब महिमा सब रहें अशोका॥ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥प्रेम भक्ति से जो यश गावें।दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥शंकर आचारज तप कीनो।काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥शक्ति रूप का मरम न पायो।शक्ति गई तब मन पछितायो॥शरणागत हुई कीर्ति बखानी।जय जय जय जगदम्ब भवानी॥भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥मोको मातु कष्ट अति घेरो।तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥आशा तृष्णा निपट सतावें।रिपू मुरख मौही डरपावे॥शत्रु नाश कीजै महारानी।सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥करो कृपा हे मातु दयाला।ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।सब सुख भोग परमपद पावै॥देवीदास शरण निज जानी।करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥ By वनिता कासनियां पंजाब

श्री काली चालीसा। श्री काली चालीसा______________॥ दोहा ॥जयकाली कलिमलहरण, महिमा अगम अपार ।महिष मर्दिनी कालिका , देहु अभय अपार ॥॥ चौपाई ॥रि मद मान मिटावन हारी । मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥अष्टभुजी सुखदायक माता । दुष्टदलन जग में विख्याता ॥भाल विशाल मुकुट छवि छाजै । कर में शीश शत्रु का साजै ॥दूजे हाथ लिए मधु प्याला । हाथ तीसरे सोहत भाला ॥चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे । छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे ॥सप्तम करदमकत असि प्यारी । शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥अष्टम कर भक्तन वर दाता । जग मनहरण रूप ये माता ॥भक्तन में अनुरक्त भवानी । निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ॥महशक्ति अति प्रबल पुनीता । तू ही काली तू ही सीता ॥पतित तारिणी हे जग पालक । कल्याणी पापी कुल घालक ॥शेष सुरेश न पावत पारा । गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥तुम समान दाता नहिं दूजा । विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥रूप भयंकर जब तुम धारा । दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥नाम अनेकन मात तुम्हारे । भक्तजनों के संकट टारे ॥कलि के कष्ट कलेशन हरनी । भव भय मोचन मंगल करनी ॥महिमा अगम वेद यश गावैं । नारद शारद पार न पावैं ॥भू पर भार बढ्यौ जब भारी । तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥आदि अनादि अभय वरदाता । विश्वविदित भव संकट त्राता ॥कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा । उसको सदा अभय वर दीन्हा ॥ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा । काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥कलुआ भैंरों संग तुम्हारे । अरि हित रूप भयानक धारे ॥सेवक लांगुर रहत अगारी । चौसठ जोगन आज्ञाकारी ॥त्रेता में रघुवर हित आई । दशकंधर की सैन नसाई ॥खेला रण का खेल निराला । भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥रौद्र रूप लखि दानव भागे । कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥तब ऐसौ तामस चढ़ आयो । स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥ये बालक लखि शंकर आए । राह रोक चरनन में धाए ॥तब मुख जीभ निकर जो आई । यही रूप प्रचलित है माई ॥बाढ्यो महिषासुर मद भारी । पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥करूण पुकार सुनी भक्तन की । पीर मिटावन हित जन-जन की ॥तब प्रगटी निज सैन समेता । नाम पड़ा मां महिष विजेता ॥शुंभ निशुंभ हने छन माहीं । तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥मान मथनहारी खल दल के । सदा सहायक भक्त विकल के ॥दीन विहीन करैं नित सेवा । पावैं मनवांछित फल मेवा ॥संकट में जो सुमिरन करहीं । उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥प्रेम सहित जो कीरति गावैं । भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ॥काली चालीसा जो पढ़हीं । स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा । केहि कारण मां कियौ विलम्बा ॥करहु मातु भक्तन रखवाली । जयति जयति काली कंकाली ॥सेवक दीन अनाथ अनारी । भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ॥By वनिता कासनियां पंजाब॥ दोहा ॥प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ ।तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ ॥

महान समाज सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर जी ने जीवन पर्यन्त सामाजिक कुरीतियों को ध्वस्त कर शिक्षा के माध्यम से समाज के उत्थान एवं नारी सशक्तिकरण के लिए संघर्ष किया। बंगाल पुनर्जागरण में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।आज उनकी जयंती पर उन्हें कोटिश: नमन।वनिता कासनियां पंजाब द्वाराমহান সমাজ সংস্কারক ঈশ্বরচন্দ্র বিদ্যাসাগর সমগ্র জীবন শিক্ষার মাধ্যমে কুসংস্কার মুক্ত সমাজ গড়তে এবং নারী ক্ষমতায়নের জন্য নিরলস সংগ্রাম চালিয়ে গেছেন। বঙ্গ নবজাগরণে তাঁর অবদান অনস্বীকার্য।আজ এই মহান মনীষীর জন্মবার্ষিকীতে জানাই সশ্রদ্ধ প্রণাম।

मां दुर्गा देवीBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब किसी अन्य भाषा में पढ़ें डाउनलोड करें ध्यान रखें संपादित करें दुर्गा मां शक्ति हिन्दुओं की प्रमुख देवी हैं जिन्हें देवी मां, शक्ति मां और जग्दम्बा और आदि नामों से भी जाना जाता हैं । शाक्त सम्प्रदाय  की वह मुख्य देवी हैं जिनकी तुलना परम ब्रह्म से की जाती है। दुर्गा को आदि शक्ति, प्रधान प्रकृति, गुणवती योगमाया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकार रहित बताया गया है। वह अंधकार व अज्ञानता रुपी राक्षसों से रक्षा करने वाली तथा कल्याणकारी हैं। उनके बारे में मान्यता है कि वे शान्ति, समृद्धि तथा धर्म पर आघात करने वाली राक्षसी शक्तियों का विनाश करतीं हैं।[3] दुर्गाशक्ति / विजयदुर्गा के महुषासुरमर्दिनी रूप का चित्रदेवनागरीदुर्गासंबंधशक्ति अवतारमंत्रॐ दुर्गा देव्यै नमःॐ एं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥ ॐ ह्री दुं दुर्गाय नमःअस्त्रत्रिशूल, चक्र,गदा, धनुष,शंख, तलवार,कमल, तीर, अभयहस्त , परशु, रस्सी , पाश , भाला , ढाल , डमरू , खप्पर , अग्निकटोरीजीवनसाथीशिवसवारीसिंहदुर्गा पूजा का पांडाल, 2011 दुर्गा का निरूपण सिंह पर सवार एक देवी के रूप में की जाती है। दुर्गा देवी आठ भुजाओं से युक्त हैं जिन सभी में कोई न कोई शस्त्रास्त्र होते है। उन्होने महिषासुर नामक असुर का वध किया। महिषासुर (= महिष + असुर = भैंसा जैसा असुर) करतीं हैं। हिन्दू ग्रन्थों में वे शिव की पत्नी दुर्गा के रूप में वर्णित हैं। जिन ज्योतिर्लिंगों में देवी दुर्गा की स्थापना रहती है उनको सिद्धपीठ कहते है। वहाँ किये गए सभी संकल्प पूर्ण होते है। माता का दुर्गा देवी नाम दुर्गम नाम के महान दैत्य का वध करने के कारण पड़ा। माता ने शताक्षी स्वरूप धारण किया और उसके बाद शाकंभरी देवी के नाम से विख्यात हुई शाकंभरी देवी ने ही दुर्गमासुर का वध किया। जिसके कारण वे समस्त ब्रह्मांड में दुर्गा देवी के नाम से भी विख्यात हो गई। माता के देश में अनेकों मंदिर हैं कहीं पर महिषासुरमर्दिनि शक्तिपीठ तो कहीं पर कामाख्या देवी। यही देवी कोलकाता में महाकाली के नाम से विख्यात और सहारनपुर के प्राचीन शक्तिपीठ मे शाकम्भरी देवी के रूप में ये ही पूजी जाती हैं। हिन्दुओं के शक्ति साम्प्रदाय में भगवती दुर्गा को ही दुनिया की पराशक्ति और सर्वोच्च देवता माना जाता है (शाक्त साम्प्रदाय ईश्वर को देवी के रूप में मानता है)। वेदों में तो दुर्गा का व्यापाक उल्लेख है, किन्तु उपनिषद में देवी "उमा हैमवती" (उमा, हिमालय की पुत्री) का वर्णन है। पुराण में दुर्गा को आदिशक्ति माना गया है। दुर्गा असल में शिव की पत्नी आदिशक्ति का एक रूप हैं, शिव की उस पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकाररहित बताया गया है। एकांकी (केंद्रित) होने पर भी वह माया शक्ति संयोगवश अनेक हो जाती है। उस आदि शक्ति देवी ने ही सावित्री(ब्रह्मा जी की पहली पत्नी), लक्ष्मी, और पार्वती(सती) के रूप में जन्म लिया और उसने ब्रह्मा, विष्णु और महेश से विवाह किया था। तीन रूप होकर भी दुर्गा (आदि शक्ति) एक ही है। देवी दुर्गा के स्वयं कई रूप हैं (सावित्री, लक्ष्मी एव पार्वती से अलग)। मुख्य रूप उनका "गौरी" है, अर्थात शान्तमय, सुन्दर और गोरा रूप। उनका सबसे भयानक रूप "काली" है, अर्थात काला रूप। विभिन्न रूपों में दुर्गा भारत और नेपाल के कई मन्दिरों और तीर्थस्थानों में पूजी जाती हैं।भगवती दुर्गा की सवारी शेर है। मार्कण्डेय पुराण में ब्रहदेव ने मनुष्‍य जाति की रक्षा के लिए एक परम गुप्‍त, परम उपयोगी और मनुष्‍य का कल्‍याणकारी देवी कवच एवं व देवी सुक्‍त बताया है और कहा है कि जो मनुष्‍य इन उपायों को करेगा, वह इस संसार में सुख भोग कर अन्‍त समय में बैकुण्‍ठ को जाएगा। ब्रहदेव ने कहा कि जो मनुष्‍य दुर्गा सप्तशती का पाठ करेगा उसे सुख मिलेगा। भगवत पुराण के अनुसार माँ जगदम्‍बा का अवतरण श्रेष्‍ठ पुरूषो की रक्षा के लिए हुआ है। जबकि श्रीं मद देवीभागवत के अनुसार वेदों और पुराणों कि रक्षा के और दुष्‍टों के दलन के लिए माँ जगदंबा का अवतरण हुआ है। इसी तरह से ऋगवेद के अनुसार माँ दुर्गा ही आदि-शक्ति है, उन्‍ही से सारे विश्‍व का संचालन होता है और उनके अलावा और कोई अविनाशी नही है। इसीलिए नवरात्रि के दौरान नव दुर्गा के नौ रूपों का ध्‍यान, उपासना व आराधना की जाती है तथा नवरात्रि के प्रत्‍येक दिन मां दुर्गा के एक-एक शक्ति रूप का पूजन किया जाता है। दुर्गा के 108 नामसंपादित करेंदुर्गा सप्तशती के अनुसार इनके 108 नाम बताये गये हैं। 1. सती : अग्नि में जल कर भी जीवित होने वाली 2. साध्वी : आशावादी 3. भवप्रीता : भगवान् शिव पर प्रीति रखने वाली 4. भवानी : ब्रह्मांड की निवास 5. भवमोचनी : संसार बंधनों से मुक्त करने वाली 6. आर्या : देवी 7. दुर्गा : अपराजेय 8. जया : विजयी 9. आद्या : शुरूआत की वास्तविकता 10. त्रिनेत्र : तीन आँखों वाली 11. शूलधारिणी : शूल धारण करने वाली 12. पिनाकधारिणी : शिव का त्रिशूल धारण करने वाली 13. चित्रा : सुरम्य, सुन्दर 14. चंद्रघण्टा : प्रचण्ड स्वर से घण्टा नाद करने वाली, घंटे की आवाज निकालने वाली 15. महातपा : भारी तपस्या करने वाली 16. मन : मनन- शक्ति 17. बुद्धि : सर्वज्ञाता 18. अहंकारा : अभिमान करने वाली 19. चित्तरूपा : वह जो सोच की अवस्था में है 20. चिता : मृत्युशय्या 21. चिति : चेतना 22. सर्वमन्त्रमयी : सभी मंत्रों का ज्ञान रखने वाली 23. सत्ता : सत्-स्वरूपा, जो सब से ऊपर है 24. सत्यानन्दस्वरूपिणी : अनन्त आनंद का रूप 25. अनन्ता : जिनके स्वरूप का कहीं अन्त नहीं 26. भाविनी : सबको उत्पन्न करने वाली, खूबसूरत औरत 27. भाव्या : भावना एवं ध्यान करने योग्य 28. भव्या : कल्याणरूपा, भव्यता के साथ 29. अभव्या : जिससे बढ़कर भव्य कुछ नहीं 30. सदागति : हमेशा गति में, मोक्ष दान 31. शाम्भवी : शिवप्रिया, शंभू की पत्नी 32. देवमाता : देवगण की माता 33. चिन्ता : चिन्ता 34. रत्नप्रिया : गहने से प्यार 35. सर्वविद्या : ज्ञान का निवास 36. दक्षकन्या : दक्ष की बेटी 37. दक्षयज्ञविनाशिनी : दक्ष के यज्ञ को रोकने वाली 38. अपर्णा : तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली 39. अनेकवर्णा : अनेक रंगों वाली 40. पाटला : लाल रंग वाली 41. पाटलावती : गुलाब के फूल या लाल परिधान या फूल धारण करने वाली 42. पट्टाम्बरपरीधाना : रेशमी वस्त्र पहनने वाली 43. कलामंजीरारंजिनी : पायल को धारण करके प्रसन्न रहने वाली 44. अमेय : जिसकी कोई सीमा नहीं 45. विक्रमा : असीम पराक्रमी 46. क्रूरा : दैत्यों के प्रति कठोर 47. सुन्दरी : सुंदर रूप वाली 48. सुरसुन्दरी : अत्यंत सुंदर 49. वनदुर्गा : जंगलों की देवी, बनशंकरी अथवा शाकम्भरी 50. मातंगी : मतंगा की देवी 51. मातंगमुनिपूजिता : बाबा मतंगा द्वारा पूजनीय 52. ब्राह्मी : भगवान ब्रह्मा की शक्ति 53. माहेश्वरी : प्रभु शिव की शक्ति 54. इंद्री : इन्द्र की शक्ति 55. कौमारी : किशोरी 56. वैष्णवी : अजेय 57. चामुण्डा : चंड और मुंड का नाश करने वाली 58. वाराही : वराह पर सवार होने वाली 59. लक्ष्मी : सौभाग्य की देवी 60. पुरुषाकृति : वह जो पुरुष धारण कर ले 61. विमिलौत्त्कार्शिनी : आनन्द प्रदान करने वाली 62. ज्ञाना : ज्ञान से भरी हुई 63. क्रिया : हर कार्य में होने वाली 64. नित्या : अनन्त 65. बुद्धिदा : ज्ञान देने वाली 66. बहुला : विभिन्न रूपों वाली 67. बहुलप्रेमा : सर्व प्रिय 68. सर्ववाहनवाहना : सभी वाहन पर विराजमान होने वाली 69. निशुम्भशुम्भहननी : शुम्भ, निशुम्भ का वध करने वाली 70. महिषासुरमर्दिनि : महिषासुर का वध करने वाली 71. मधुकैटभहंत्री : मधु व कैटभ का नाश करने वाली 72. चण्डमुण्ड विनाशिनि : चंड और मुंड का नाश करने वाली 73. सर्वासुरविनाशा : सभी राक्षसों का नाश करने वाली 74. सर्वदानवघातिनी : संहार के लिए शक्ति रखने वाली 75. सर्वशास्त्रमयी : सभी सिद्धांतों में निपुण 76. सत्या : सच्चाई 77. सर्वास्त्रधारिणी : सभी हथियारों धारण करने वाली 78. अनेकशस्त्रहस्ता : हाथों में कई हथियार धारण करने वाली 79. अनेकास्त्रधारिणी : अनेक हथियारों को धारण करने वाली 80. कुमारी : सुंदर किशोरी 81. एककन्या : कन्या 82. कैशोरी : जवान लड़की 83. युवती : नारी 84. यति : तपस्वी 85. अप्रौढा : जो कभी पुराना ना हो 86. प्रौढा : जो पुराना है 87. वृद्धमाता : शिथिल 88. बलप्रदा : शक्ति देने वाली 89. महोदरी : ब्रह्मांड को संभालने वाली 90. मुक्तकेशी : खुले बाल वाली 91. घोररूपा : एक भयंकर दृष्टिकोण वाली 92. महाबला : अपार शक्ति वाली 93. अग्निज्वाला : मार्मिक आग की तरह 94. रौद्रमुखी : विध्वंसक रुद्र की तरह भयंकर चेहरा 95. कालरात्रि : काले रंग वाली 96. तपस्विनी : तपस्या में लगे हुए 97. नारायणी : भगवान नारायण की विनाशकारी रूप 98. भद्रकाली : काली का भयंकर रूप 99. विष्णुमाया : भगवान विष्णु का जादू 100. जलोदरी : ब्रह्मांड में निवास करने वाली 101. शिवदूती : भगवान शिव की राजदूत 102. करली : हिंसक 103. अनन्ता : विनाश रहित 104. परमेश्वरी : प्रथम देवी 105. कात्यायनी : ऋषि कात्यायन द्वारा पूजनीय 106. सावित्री : सूर्य की बेटी 107. प्रत्यक्षा : वास्तविक 108. ब्रह्मवादिनी : वर्तमान में हर जगह वास करने वाली सती दुर्गा जी एक नाम है। दक्ष ने अपने यज्ञ में सभी देवताओं को आमंत्रित किया , लेकिन शिव और सती को आमंत्रण नहीं दिया। इससे क्रुद्ध होकर, अपमान का प्रतिकार करने के लिए इन्होंने उग्रचंडी के रूप में अपने पिता के यज्ञ का विध्वंस किया था। इनके हाथों की संख्या १८ मानी जाती है। आश्विन महीने में कृष्णपक्ष की नवमी दिन शाक्तमतावलंबी विशेष रूप से उग्रचंडी की पूजा करते हैं। दीर्घादुर्गा पूजा में स्थापित दुर्गा प्रतिम

आज रविवार है, भगवान सूर्यनारायण का दिन है, आज हम इन्हीं की महिमा का गुणगान करेगें!!!!!!!! By वनिता कासनियां पंजाब वैदिक और पौराणिक आख्यानों के अनुसार भगवान श्री सूर्य समस्त जीव-जगत के आत्मस्वरूप हैं। ये ही अखिल सृष्टि के आदि कारण हैं। इन्हीं से सब की उत्पत्ति हुई है।पौराणिक सन्दर्भ में सूर्यदेव की उत्पत्ति के अनेक प्रसंग प्राप्त होते हैं। यद्यपि उनमें वर्णित घटनाक्रमों में अन्तर है, किन्तु कई प्रसंग परस्पर मिलते-जुलते हैं। सर्वाधिक प्रचलित मान्यता के अनुसार भगवान सूर्य महर्षि कश्यप के पुत्र हैं। वे महर्षि कश्यप की पत्नी अदिति के गर्भ से उत्पन्न हुए। अदिति के पुत्र होने के कारण ही उनका एक नाम आदित्य हुआ। पैतृक नाम के आधार पर वे काश्यप प्रसिद्ध हुए। संक्षेप में यह कथा इस प्रकार है- एक बार दैत्य-दानवों ने मिलकर देवताओं को पराजित कर दिया। देवता घोर संकट में पड़कर इधर-उधर भटकने लगे। देव-माता अदिति इस हार से दु:खी होकर भगवान सूर्य की उपासना करने लगीं। भगवान सूर्य प्रसन्न होकर अदिति के समक्ष प्रकट हुए। उन्होंने अदिति से कहा- देवि! तुम चिन्ता का त्याग कर दो। मैं तुम्हारी इच्छा पूर्ण करूँगा तथा अपने हज़ारवें अंश से तुम्हारे उदर से प्रकट होकर तेरे पुत्रों की रक्षा करूँगा।' इतना कहकर भगवान सूर्य अन्तर्धान हो गये।कुछ समय के उपरान्त देवी अदिति गर्भवती हुईं। संतान के प्रति मोह और मंगल-कामना से अदिति अनेक प्रकार के व्रत-उपवास करने लगीं। महर्षि कश्यप ने कहा- 'अदिति! तुम गर्भवती हो, तुम्हें अपने शरीर को सुखी और पुष्ट रखना चाहिये, परन्तु यह तुम्हारा कैसा विवेक है कि तुम व्रत-उपवास के द्वारा अपने गर्भाण्ड को ही नष्ट करने पर तुली हो। अदिति ने कहा- 'स्वामी! आप चिन्ता न करें। मेरा गर्भ साक्षात सूर्य शक्ति का प्रसाद है। यह सदा अविनाशी है।' समय आने पर अदिति के गर्भ से भगवान सूर्य का प्राकट्य हुआ और बाद में वे देवताओं के नायक बने। उन्होंने देवशत्रु असुरों का संहार किया।भगवान सूर्य के परिवार की विस्तृत कथा भविष्य पुराण, मत्स्य पुराण, पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण, मार्कण्डेय पुराण तथा साम्बपुराण में वर्णित है।ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि देवगणों का बिना साधना एवं भगवत्कृपा के प्रत्यक्ष दर्शन होना सम्भव नहीं है। शास्त्र के आज्ञानुसार केवल भावना के द्वारा ही ध्यान और समाधि में उनका अनुभव हो पाता है, किन्तु भगवान सूर्य नित्य सबको प्रत्यक्ष दर्शन देते हैं। इसलिये प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य की नित्य उपासना करनी चाहिये।वैदिक सूक्तों, पुराणों तथा आगमादि ग्रन्थों में भगवान सूर्य की नित्य आराधना का निर्देश है। मन्त्र महोदधि तथा विद्यार्णव में भगवान सूर्य के दो प्रकार के मन्त्र मिलते हैं। प्रथम मन्त्र- ॐ घृणि सूर्य आदित्य ॐ तथा द्वितीय मन्त्र- ॐ ह्रीं घृणि सूर्य आदित्य: श्रीं ह्रीं मह्यं लक्ष्मीं प्रयच्छ है।भगवान सूर्य के अर्ध्यदान की विशेष महत्ता है। प्रतिदिन प्रात:काल रक्तचन्दनादि से मण्डल बनाकर तथा ताम्रपात्र में जल, लाल चन्दन, चावल, रक्तपुष्प और कुशादि रखकर सूर्यमन्त्र का जप करते हुए भगवान सूर्य को अर्ध्य देना चाहिये। सूर्यार्घ्य का मन्त्र ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते। अनुकम्पय माँ भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर है। अर्ध्यदान से प्रसन्न होकर भगवान सूर्य आयु, आरोग्य, धन-धान्य, यश, विद्या, सौभाग्य, मुक्ति- सब कुछ प्रदान करते हैं।भगवान विराट के नेत्र से जिनकी अभिव्यक्ति है, जो लोक लोचन के अधिदेवता हैं, जो उपासना करने पर समस्त रोगों, नेत्र दोषों, ग्रह पीड़ाओं को दूर करके उपासक की सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करते हैं, अनादि काल से भारतीय कर्मनिष्ठ द्विजादि जिन्हें प्रतिदिन अपनी अर्ध्यांजलि निवेदित करते हैं, जो समस्त सचराचर जगत के जीवनदाता और सम्पूर्ण प्राणियों के आराध्य हैं, उन ज्योतिघन, जीवन, उष्णता और ज्ञान के स्वरूप भगवान सूर्यनारायण को हमारा शतश: प्रणिपात।दृश्य सूर्यमण्डल उनका एक स्थूल निवास है। विश्व में कोटि-कोटि सूर्य मण्डल हैं। विज्ञान आकाशगंगा के प्रत्येक तारक को सूर्य कहता है। हमारे गगन की आकाशगंगा के पीछे कितने ही नीहारिका मण्डल हैं। सब आकाशगंगा हैं। सब सूर्यों से जगमगाती हैं। कोई नहीं जानता, उनकी संख्या कितनी है। उन सब सूर्यों के अधिष्ठाता भगवान नारायण ही हैं। श्री सूर्यनारायण की आराधना इसी रूप में आराधक करते हैं।महर्षि कश्यप लोक पिता हैं। उनकी पत्नी देवमाता अदिति के गर्भ से भगवान विराट के नेत्रों से व्यक्त सूर्यदेव जगत में प्रकट हुए। सूर्य मण्डल का दृश्य रूप भौतिक जगत में उनकी देह है। विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से उनका परिणय हुआ। संज्ञा के दो पुत्र और एक कन्या हुई- श्राद्धदेव वैवस्वतमनु और यमराज तथा यमुना जी। संज्ञा भगवान सूर्य के तेज़ को सहन नहीं कर पाती थी। उसने अपनी छाया उनके पास छोड़ दी और स्वयं घोड़ी का रूप धारण करके तप करने लगी। उस छाया से शनैश्चर, सावर्णि मनु और तपती नामक कन्या हुई। भगवान सूर्य ने जब संज्ञा को तप करते देखा तो उसे तुष्ट करके अपने यहाँ ले आये। संज्ञा के बड़वा (घोड़ी) रूप से अश्विनीकुमार हुए। त्रेता में कपिराज सुग्रीव और द्वापर में महारथी कर्ण भगवान सूर्य के अंश से ही उत्पन्न हुए।पक्षिराज गरुड़ के बड़े भाई विनता नन्दन अरुण जी भगवान सूर्य के रथ को हाँकते हैं। रथ में सात उज्ज्वल घोड़े जुते हैं। अहर्निश यह रथ पूर्ण वेग से चलता रहता है।सौर सिद्धान्त भी वस्तुत: सूर्य को गतिशील मानता है। विज्ञान के महान् विद्वान अभी परस्पर इस सम्बन्ध में सहमत नहीं हैं। उनका अन्वेषण चल रहा है। नित्य नये सिद्धान्त वहाँ बनते जा रहे हैं।भगवान सूर्य अपने रथ पर आसीन अविश्रान्त भाव से मेरू की प्रदक्षिणा करते रहते हैं। उन्हीं के द्वारा दिन, रात्रि, मास, ऋतु, अयन, वर्ष आदि का विभाग होता है। वही दिशाओं के भी विभाजक हैं।भगवान सूर्य की उपासना बारह महीनों में बारह नामों से होती है। उस समय उनके पार्षद भी परिवर्तित हो जाते हैं। इन पार्षदों में ऋषि, अप्सराएँ, गन्धर्व, राक्षस, भल्ल और नाग हैं।ऋषि रथ से आगे चलते हुए भगवान की स्तुति करते हैं।गन्धर्व गान करते हैं।अप्सराएँ नाचती हैं।राक्षस रथ को पीछे से ठेलते हैं।भल्ल रथयोजक बनते हैं औरनाग रथ को ले चलते हैं।सन्ध्या भगवान आदित्य की ही उपासना है और वह द्विजाति मात्र का अनिवार्य कर्तव्य है।भगवान सूर्य साक्षात नारायण हैं। उन श्रुति धाम ने वाजि (अश्व)-रूप धारण करके महर्षि याज्ञवल्क्य को शुक्ल यजुर्वेद का उपदेश किया।श्री हनुमान जी के विद्या गुरु भी वही हैं।भारत में रविवार का व्रत ख़ूब प्रख्यात है। अनेक आर्त उससे सफलकाम होते हैं।सूर्य को मानव/अवतार/देवता मानते हुए उसका जन्म अदिति (प्रकृति) से हुआ माना गया है।सूर्य की दो पत्नियाँ अर्थात सहचरी बतायी गयीं हैं।संज्ञा( चेतना या ऊर्जा) औरछाया ।छाया की कोख़ से शनि का जन्म हुआ। गुणों में पिता से विपरीत धर्म-कर्त्तव्य वाला होने के कारण शनि पिता सूर्य के साथ मनमुटाव जैसा व्यवहार करता बताया गया है, परंतु सूर्य पुत्र के अवगुणों को तो कुदृष्टि से देखता है पर पुत्र के साथ तट्स्थ बना रहता है।श्रीमद्भागवतपुराण में सूर्य के विषय में विस्तार से वर्णन किया गया है। सूर्य की स्थिति बतायी है -'अंडमध्यगतः सूर्यो द्यावाभूम्योर्यदन्तरम।सूर्याण्डगोलयोर्मध्ये कोट्यः स्युः पञ्चविंशतिः॥'स्वर्ग और पृथ्वी के बीच में जो ब्रह्माण्ड का केंद्र है वहीं सूर्य की स्थिति है।'मृतेऽण्ड एष एतस्मिन यद भूत्ततो मार्तण्ड इति व्यपदेशः।हिरण्यगर्भ इति यद्धिरण्याण्डसमुद्भवः।इस अचेतन में विराजने के कारण इसे 'मार्तण्ड' भी कहा जाता है। यह ज्योतिर्मय(हिरण्यमय) ब्रह्मांड से प्रकट हुए हैं इसलिए इन्हें 'हिरण्यगर्भा' भी कहते हैं। सूर्य ही दिशा, आकाश, द्युलोक (अंतरिक्ष) भूलोक, स्वर्ग और मोक्ष के प्रदेश , नरक, और रसातल और अन्य भागों के विभागों का कारण है। सूर्य ही समस्त देवता, तिर्यक, मनुष्य, सरीसृप और लता-वृक्षादि समस्त जीव समूहों के आत्मा और नेत्रेन्द्रियके अधिष्ठाता हैं, अर्थात सूर्य से ही जीवन है।