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कन्याकुमारीBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦कन्याकुमारी भारत के दक्षिणी छोर पर तमिलनाडु राज्य का एक तटीय शहर हैकिसी अन्य भाषा में पढ़ेंडाउनलोड करेंध्यान रखेंसंपादित करेंकन्याकुमारी (Kanyakumari) भारत के तमिल नाडु राज्य के कन्याकुमारी ज़िले में स्थित एक नगर है। यह भारत की मुख्यभूमि का दक्षिणतम नगर है। यहाँ से दक्षिण में हिन्द महासागर, पूर्व में बंगाल की खाड़ी और पश्चिम में अरब सागर है। इनके साथ सटा हुआ तट 71.5 किमी तक विस्तारित है। समुद्र के साथ तिरुवल्लुवर मूर्ति और विवेकानन्द स्मारक शिला खड़े हैं। कन्याकुमारी एक महत्वपूर्ण हिन्दू तीर्थस्थल भी है।[1][2]कन्याकुमारीKanyakumariகன்னியாகுமரிविवेकानंद स्मारक, कन्याकुमारीविवेकानंद स्मारक, कन्याकुमारीकन्याकुमारी की तमिलनाडु के मानचित्र पर अवस्थितिकन्याकुमारीकन्याकुमारीतमिल नाडु में स्थितिनिर्देशांक: 8°05′02″N 77°32′46″E / 8.084°N 77.546°Eदेश भारतप्रान्त तमिल नाडुज़िला कन्याकुमारी ज़िलाजनसंख्या (2011) • कुल 29,761भाषा • प्रचलित तमिलसमय मण्डल भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)पिनकोड 629 702दूरभाष कोड 91-4652 और 91-4651वाहन पंजीकरण TN 74 और TN 75वेबसाइट www.kanyakumari.tn.nic.inविवरणसंपादित करेंकन्याकुमारी हिन्द महासागर, बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर का संगम स्थल है, जहां भिन्न सागर अपने विभिन्न रंगो से मनोरम छटा बिखेरते हैं। भारत के सबसे दक्षिण छोर पर बसा कन्याकुमारी वर्षो से कला, संस्कृति, सभ्यता का प्रतीक रहा है। भारत के पर्यटक स्थल के रूप में भी इस स्थान का अपना ही महत्च है। दूर-दूर फैले समुद्र के विशाल लहरों के बीच यहां का सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा बेहद आकर्षक लगता हैं। समुद्र बीच पर फैले रंग बिरंगी रेत इसकी सुंदरता में चार चांद लगा देता है।इतिहाससंपादित करेंकन्याकुमारी दक्षिण भारत के महान शासकों चोल, चेर, पांड्य के अधीन रहा है। यहां के स्मारकों पर इन शासकों की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। इस जगह का नाम कन्‍याकुमारी पड़ने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने असुर बानासुरन को वरदान दिया था कि कुंवारी कन्या के अलावा किसी के हाथों उसका वध नहीं होगा। प्राचीन काल में भारत पर शासन करने वाले राजा भरत को आठ पुत्री और एक पुत्र था। भरत ने अपना साम्राज्य को नौ बराबर हिस्सों में बांटकर अपनी संतानों को दे दिया। दक्षिण का हिस्सा उसकी पुत्री कुमारी को मिला। कुमारी को शक्ति देवी का अवतार माना जाता था। कुमारी ने दक्षिण भारत के इस हिस्से पर कुशलतापूर्वक शासन किया। उसकी ईच्‍छा थी कि वह शिव से विवाह करें। इसके लिए वह उनकी पूजा करती थी। शिव विवाह के लिए राजी भी हो गए थे और विवाह की तैयारियां होने लगीं थी। लेकिन नारद मुनि चाहते थे कि बानासुरन का कुमारी के हाथों वध हो जाए। इस कारण शिव और देवी कुमारी का विवाह नहीं हो पाया। इस बीच बानासुरन को जब कुमारी की सुंदरता के बारे में पता चला तो उसने कुमारी के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा। कुमारी ने कहा कि यदि वह उसे युद्ध में हरा देगा तो वह उससे विवाह कर लेगी। दोनों के बीच युद्ध हुआ और बानासुरन को मृत्यु की प्राप्ति हुई। कुमारी की याद में ही दक्षिण भारत के इस स्थान को कन्याकुमारी कहा जाता है। माना जाता है कि शिव और कुमारी के विवाह की तैयारी का सामान आगे चलकर रंग बिरंगी रेत में परिवर्तित हो गया।दर्शनीय स्थलसंपादित करेंकन्याकुमारी अम्मन मंदिरसंपादित करेंसागर के मुहाने के दाई ओर स्थित यह एक छोटा सा मंदिर है जो पार्वती को समर्पित है। मंदिर तीनों समुद्रों के संगम स्थल पर बना हुआ है। यहां सागर की लहरों की आवाज स्वर्ग के संगीत की भांति सुनाई देती है। भक्तगण मंदिर में प्रवेश करने से पहले त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाते हैं जो मंदिर के बाई ओर 500 मीटर की दूरी पर है। मंदिर का पूर्वी प्रवेश द्वार को हमेशा बंद करके रखा जाता है क्योंकि मंदिर में स्थापित देवी के आभूषण की रोशनी से समुद्री जहाज इसे लाइटहाउस समझने की भूल कर बैठते है और जहाज को किनारे करने के चक्‍कर में दुर्घटनाग्रस्‍त हो जाते है।गांधी स्मारकसंपादित करेंगाँधी मंडपयह स्मारक राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को समर्पित है। यही पर महात्मा गांधी की चिता की राख रखी हुई है। इस स्मारक की स्थापना 1956 में हुई थी। महात्मा गांधी 1937 में यहां आए थे। उनकी मृत्‍यु के बाद 1948 में कन्याकुमारी में ही उनकी अस्थियां विसर्जित की गई थी। स्मारक को इस प्रकार डिजाइन किया गया है कि महात्मा गांधी के जन्म दिवस पर सूर्य की प्रथम किरणें उस स्थान पर पड़ती हैं जहां महात्मा की राख रखी हुई है।तिरूवल्लुवर मूर्तिसंपादित करें133 फीट ऊंचा संत तिरुवल्लुवर मूर्तितिरुक्कुरुल की रचना करने वाले अमर तमिल कवि तिरूवल्लुवर की यह प्रतिमा पर्यटकों को बहुत लुभाती है। 38 फीट ऊंचे आधार पर बनी यह प्रतिमा 95 फीट की है। इस प्रतिमा की कुल उंचाई 133 फीट है और इसका वजन 2000 टन है। इस प्रतिमा को बनाने में कुल 1283 पत्थर के टुकड़ों का उपयोग किया गया था।विवेकानंद रॉक मेमोरियलसंपादित करेंसमुद्र में बने इस स्थान पर बड़ी संख्या में पर्यटक आते है। इस पवित्र स्थान को विवेकानंद रॉक मेमोरियल कमेटी ने 1970 में स्वामी विवेकानंद के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए बनवाया था। इसी स्थान पर स्वामी विवेकानंद गहन ध्यान लगाया था। इस स्थान को श्रीपद पराई के नाम से भी जाना जाता है। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर कन्याकुमारी ने भी तपस्या की थी। कहा जाता है कि यहां कुमारी देवी के पैरों के निशान मुद्रित हैं। यह स्मारक विश्व प्रसिद्ध है।सुचीन्द्रमसंपादित करेंमुख्य लेख: सुचीन्द्रमयह छोटा-सा गांव कन्याकुमारी से लगभग 12 किमी दूर स्थित है। यहां का थानुमलायन मंदिर काफी प्रसिद्ध है। मंदिर में स्‍थापित हनुमान की छह मीटर की उंची मूर्ति काफी आकर्षक है। मंदिर के मुख्य गर्भगृह में ब्रह्मा, विष्‍णु और महेश जोकि इस ब्रह्मांड के रचयिता समझे जाते है उनकी मूर्ति स्‍थापित है। यहां नौवीं शताब्दी के प्राचीन अभिलेख भी पाए गए हैं। सुचीन्द्रम शक्तिपीठ हिन्दूओं के लिए प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। यह मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य, कन्याकुमारी में स्थित है। माना जाता है कि सुचिंद्रम में ‘सुची’ शब्द संस्कृत से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘शुद्ध’ होना। सुचीन्द्रम शक्ति पीठ को ठाँउमालयन या स्तानुमालय मंदिर भी कहा जाता है।यह मंदिर सात मंजिला है जिसका सफेद गोपुरम काफी दूर से दिखाई देता है। इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में किया गया था। सुचीन्द्रम शक्तिपीठ, मंदिर में बनी हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर का प्रवेश द्वार लगभग 24 फीट उंचा है जिसके दरवाजे पर सुंदर नक्काशी की गई है। यह मंदिर बड़ी संख्या में वैष्णव और सैवियों दोनों को आकर्षित करता है। मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं के लिए लगभग 30 मंदिर है जिसमें पवित्र स्थान में बड़ा लिंगम, आसन्न मंदिर में विष्णु की मूर्ति और उत्तरी गलियारे के पूर्वी छोर पर हनुमान की एक बड़ी मूर्ति है। यह मंदिर हिंदू धर्म के लगभग सभी देवी-देवताओं का प्रतिनिधित्व करता है।मंदिर के मुख्य देवता भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा को एक ही रूप में स्तरनुमल्याम कहा जाता है। स्तरनुमल्याम तीन देवताओं को दर्शाता है जिसमें ‘स्तानु’ का अर्थ ‘शिव’ है, ‘माल’ का अर्थ ‘विष्णु’ है और ‘आयन’ का अर्थ ‘ब्रह्मा’ है। भारत के उन मंदिरों में से एक है जिसमें त्रीमूर्ति व तीनों देवताओं की पूजा एक मंदिर में की जाती है। यह मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर में शक्ति को नारायणी के रूप पूजा जाता है और भैरव को संहार भैरव के रूप में पूजा जाता है। पुराणों के अनुसार जहाँ-जहाँ सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं।पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किये यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिये थे, तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्माण चक्कर लगा रहे थे इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें से सती की ऊपर के दांत इस स्थान पर गिरे थे। पौराणिक कथा के अनुसार देवों के राजा इन्द्र को महर्षि गौतम द्वारा दिये गए अभिशाप से इस स्थान पर मुक्ति मिली थी।सुचीन्द्रम शक्तिपीठ में सभी त्यौहार मनाये जाते है विशेष कर शिवरात्रि, दुर्गा पूजा और नवरात्र के त्यौहार पर विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। लेकिन दो प्रमुख त्यौहार है, जो इस मंदिर का प्रमुख आकर्षण का केन्द्र हैं, ‘सुचंद्रम मर्गली त्यौहार’ और ‘रथ यात्रा’ हैं। इन त्यौहारों के दौरान, कुछ लोग भगवान की पूजा के प्रति सम्मान और समर्पण के रूप में व्रत (भोजन नहीं खाते) रखते हैं। त्यौहार के दिनों में मंदिर को फूलो व लाईट से सजाया जाता है। मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण श्रद्धालुओं के दिल और दिमाग को शांति प्रदान करता है।कन्याकुमारी में घूमने की जगह: विवेकानन्द शिला , विवेकानन्द की मूर्ति एवं विवेकानन्द मठनागराज मंदिरसंपादित करेंकन्याकुमारी से 20 किमी दूर नगरकोल का नागराज मंदिर नाग देव को समर्पित है। यहां भगवान विष्णु और शिव के दो अन्य मंदिर भी हैं। मंदिर का मुख्य द्वार चीन की बुद्ध विहार की कारीगरी की याद दिलाता है।पद्मनाभपुरम महलसंपादित करेंमुख्य लेख: पद्मनाभपुरमपद्मनाभपुरम महल की विशाल हवेलियां त्रावनकोर के राजा द्वारा बनवाया हैं। ये हवेलियां अपनी सुंदरता और भव्यता के लिए जानी जाती हैं। कन्याकुमारी से इनकी दूरी 45 किमी है। यह महल केरल सरकार के पुरातत्व विभाग के अधीन हैं।कोरटालम झरनासंपादित करेंयह झरना 167 मीटर ऊंची है। इस झरने के जल को औषधीय गुणों से युक्त माना जाता है। यह कन्याकुमारी से 137 किमी दूरी पर स्थित है।तिरूचेन्दूरसंपादित करें85 किमी दूर स्थित तिरूचेन्दूर के खूबसूरत मंदिर भगवान सुब्रमण्यम को समर्पित हैं। बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित इस मंदिर को भगवान सुब्रमण्यम के 6 निवासों में से एक माना जाता है।उदयगिरी किलासंपादित करेंकन्याकुमारी से 34 किमी दूर यह किला राजा मरतड वर्मा द्वारा 1729-1758 ई. दौरान बनवाया गया था। इसी किले में राजा के विश्वसनीय यूरोपियन दोस्त जनरल डी लिनोय की समाधि भी है।चित्रदीर्घासंपादित करेंसूर्योदय में विवेकानंद स्मारक और वल्लुवर मूर्ति फ्रान्सिस ज़ेवियर गिरजा सूर्योदय में विवेकानंद स्मारक शिला वट्टकोट्टई फोर्ट से पश्चिमी घाट का दृश्य रात्रि में 133 फुट ऊँची तिरुवल्लुवर मूर्ति पद्मनाभपुरम महल चितराल जैन स्थापत्य मातूर जलवाही (एक्वेडक्ट) तीरपरप्पु जलप्रपात तेंगीपट्टिनम नदीमुख नागराज मंदिर, नागरकोविल उदयगिरि दुर्ग से पहाड़ियों का दृश्य सुचींद्रम मंदिर, नागरकोविल के समीप मुट्टोम गाँव कीरीपरई के वन में जलधारा पेचीपरई बाँध, पृष्ठभूमि में पश्चिमी घाट तीरपरप्पु मंदिर, तीरपरप्पु जलप्रपात के समीप तिरुवट्टार का आदि केशव मंदिर - भीतरी मंदिर 2000 वर्ष से अधिक पुरातन है मुट्टोम तट के पास दृश्य चितराल के पहाड़ी-मंदिर पर कला व तक्षित-शिला पेचीपरई में रबड़ कृषि कन्याकुमारी के समीप मारुतिवाड़ मलई - मान्यता है कि सीता की सहायता करने लंका को जाते हुए हनुमान ने यहाँ पहाड़ धर दिया था कन्याकुमारी के समीप ग्राम-दृश्य वट्टकोट्टई दुर्ग से सागर-दृश्य तीर्थयात्रि कन्याकुमारी में त्रिसागर-मिलन पर स्नान करते हुए नागरकोविल-तिरुवनंतपुरम राजमार्ग के रास्ते में कमल-ताल वट्टकोट्टई दुर्ग के पास काले रेत का बालूतट (बीच) कीरीपरई के समीप वट्टपरई मुट्टोम प्रकाशस्तम्भ (लाइटहाउस), सौ वर्षों से भी पुराना रात्रि में गाँधी मंडपम, कन्याकुमारी कन्याकुमारी के पास कोवलम गाँव तिरुपरप्पु जलप्रपात मुट्टोम तट उदयगिरि दुर्ग में कप्तान दे लान्नोय की कब्र सुनामी स्मारकBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦आवागमनसंपादित करेंवायुमार्ग-नजदीकी एयरपोर्ट तिरूअनंतपुरम है जो कन्याकुमारी से 89 किलोमीटर दूर है। यहां से बस या टैक्सी के माध्यम से कन्याकुमारी पहुंचा जा सकता है। यहां से लक्जरी कार भी किराए पर उपलब्ध हैं।रेलमार्ग-कन्याकुमारी चैन्नई सहित भारत के प्रमुख शहरों से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। चैन्नई से कन्याकुमारी एक्सप्रेस द्वारा यहां जाया जा सकता है।सड़क मार्ग-बस द्वारा कन्याकुमारी जाने के लिए त्रिची, मदुरै, चैन्नई, तिरूअनंतपुरम और तिरूचेन्दूर से नियमित बस सेवाएं हैं। तमिलनाड़ पर्यटन विभाग कन्याकुमारी के लिए सिंगल डे बस टूर की व्यवस्था भी करता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 44 का दक्षिणी छोर यहाँ है और यह उत्तर दिशा में जम्मू और कश्मीर तक जाता है।भ्रमण समयसंपादित करेंसमुद्र के किनारे होने के कारण कन्याकुमारी में साल भर मनोरम वातावरण रहता है। यूं तो पूरा साल कन्याकुमारी जाने लायक होता है लेकिन फिर भी पर्यटन के लिहाज से अक्टूबर से मार्च की अवधि सबसे बेहतर मानी जाती है।खरीददारीसंपादित करेंपर्यटक अक्सर यहां से विभिन्न रंगों के रेत के पैकेट खरीदतें हैं। यहां से सीप और शंख के अलावा प्रवाली शैलभित्ती के टुकड़ों की खरीददारी की जा सकती है। साथ ही केरल शैली की नारियल जटाएं और लकड़ी की हैंडीक्राफ्ट भी खरीदी जा सकती हैं।इन्हें भी देखेंसंपादित करेंकन्याकुमारी ज़िलासन्दर्भसंपादित करें↑ "Lonely Planet South India & Kerala," Isabella Noble et al, Lonely Planet, 2017, ↑ "Tamil Nadu, Human Development Report," Tamil Nadu Government, Berghahn Books, 2003, ISBN Last edited 4 months ago By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦RELATED PAGESकन्याकुमारी जिलातमिलनाडु का जिलानैना देवी मंदिर, हिमाचल प्रदेश By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦मरुंगूरसामग्री CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो।गोपनीयता नीति उपयोग की शर्तेंडेस्कटॉप

भारत में हिन्दू धर्म By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦🌹🙏🙏🌹🥦किसी अन्य भाषा में पढ़ेंध्यान रखेंसंपादित करेंLearn moreयह लेख अंग्रेज़ी भाषा में लिखे लेख का अनुवाद है।यह Vnita Kasnia Punjab द्वारा लिखा गया है जिसे हिन्दी अथवा स्रोत भाषा की सीमित जानकारी है।हिन्दू धर्म भारत का सबसे बड़ा और मूल धार्मिक समूह है और भारत की 79.8% जनसंख्या (96.8 करोड़) इस धर्म की अनुयाई है।[2]भारतीय हिन्दूकुल जनसंख्या८२,७५,७८,८६८ (२००१)[1]भारत की जनसंख्या का ८०.५%बड़ी जनसंख्या वाले क्षेत्रसभी राज्य, केवल पंजाब,जम्मू और कश्मीर, उत्तरपूर्व, लक्षद्वीप को छोड़करभाषाएँ2011 की जनगणना के अनुसार भारतीय राज्यों में हिन्दू धर्म के प्रतिशत (भारतीय भाषाएँ)भारत में वैदिक संस्कृति का उद्गम २००० से १५०० ईसा पूर्व में हुआ था।[3] जिसके फलस्वरूप हिन्दू धर्म को, वैदिक धर्म का क्रमानुयायी माना जाता है, जिसका भारतीय इतिहास पर गहन प्रभाव रहा है। स्वयं इण्डिया नाम भी यूनानी के Ἰνδία (इण्डस) से निकला है, जो स्वयं भी प्राचीन अवेस्ता शब्द हिन्दू से निकला, जो संस्कृत से सिन्धु से निकला, जो इस क्षेत्र में बहने वाली सिन्धु सभ्यता के लिए प्रयुक्त किया गया था। भारत का एक अन्य प्रचलित नाम हिन्दुस्तान है, अर्थात् "हिन्दुओं की भूमि"।इतिहाससंपादित करेंहिन्दू धर्म लगभग 5000 साल से व्यवस्थित विकसित हुआ है और सात चरणों के रूप में देखा जा सकता है। कुछ हिंदुत्व के अधिवक्ताओं का मानना है कि 12,000 साल पहले हिमयुग के अंत तक हिंदू धर्म को अपने संपूर्ण रूप में ऋषियों के लिए प्रकट किया गया था। हिंदुत्व के इतिहास में, पौराणिक कथाएं सिर्फ समय-समय पर इतिहास है, इतिहासकार गणना नहीं कर सकते या नहीं। हाल के दिनों में, हिंदू धर्म को "खुला स्रोत धर्म" के रूप में वर्णित किया गया है, अनोखा है कि इसमें कोई परिभाषित संस्थापक या सिद्धांत नहीं है, और ऐतिहासिक और भौगोलिक वास्तविकताओं के जवाब में इसके विचार लगातार विकसित होते हैं। यह कई सहायक नदियों और शाखाओं के साथ एक नदी के रूप में सबसे अच्छा वर्णित है, हिंदुत्व शाखाओं में से एक है, और वर्तमान में बहुत शक्तिशाली है, कई लोग स्वयं को नदी के रूप में मानते हैं।पहला चरणसंपादित करेंलगभग 5000 साल पहले, कांस्य युग में, जिसे अब सिंधु घाटी सभ्यता कहा जाता है,[4] जो ईंट शहरों की विशेषता है, जो लगभग एक हजार वर्षों से सिंधु नदी घाटी के विशाल क्षेत्र में गंगा के ऊपर तक पहुंचे। समतल। इन शहरों में, हम उन चित्रों के साथ मिट्टी की जवानों को खोजते हैं जो वर्तमान हिंदू प्रकृति की बहुत अधिक हिस्सा हैं जैसे पाइपल वृक्ष, बैल, स्वस्तिका, सात दासी, और एक आदमी जो योग मुद्रा में बैठा है। हम इस चरण के बारे में बहुत कुछ नहीं जानते क्योंकि भाषा को समझने के लिए बना रहता है।दूसरा चरणसंपादित करें3,500 साल पहले, लौह युग में, वैदिक भजनों और अनुष्ठानों से पता चला जा सकता है जिसमें हड़प्पा के विचारों के निशान होते हैं, लेकिन एक स्थाई शहरी जीवन शैली की बजाय एक खानाबदोश और ग्रामीण जीवन शैली के लिए डिजाइन किया गया है। कुछ हिंदुत्व के अधिवक्ताओं पूरी तरह असहमत हैं और जोर देते हैं कि दो चरणों वास्तव में एक हैं। इस चरण में, हमें एक विश्वदृष्टि मिलती है जो भौतिक दुनिया का जश्न मनाती है, जहां ईश्वरों को अनुष्ठानों के साथ पेश किया जाता है, और स्वास्थ्य और धन, समृद्धि और शांति प्रदान करने को कहा जाता है। देवताओं को आमंत्रित करने और उनसे अनुग्रह प्राप्त करने का यह पहलू आज भी जारी है, हालांकि ये रस्में अलग-अलग हैं। वेदों ने सिंधु (अब पंजाब) से अपर गंगा (अब आगरा और वाराणसी) और निचले गंगा (अब पटना) मैदानों में एक क्रमिक फैलाव प्रकट किया है। कुछ हिंदुत्व विद्वान इस तरह के भौगोलिक फैलाव का खंडन करते हैं और उपमहाद्वीप पर जोर देते हैं कि प्राचीन समय से पूरी तरह से विकसित, समरूप, शहरी वैदिक संस्कृति, प्लास्टिक की सर्जरी और यहां तक ​​कि हवाई जहाज जैसे उन्नत प्रौद्योगिकी के लिए।तीसरा चरणसंपादित करेंतीसरे चरण में 2,500 साल पहले उपनिषद के रूप में जाना जाता ग्रंथों के साथ, जहां अनुष्ठानों की तुलना में आत्मनिरीक्षण और ध्यान पर अधिक महत्व दिया गया था, और हम पुनर्जन्म, मठवाद, जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति जैसे विचारों पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं। इस चरण में बौद्ध धर्म और जैन धर्म जैसे शमन (मठवासी) परंपराओं का उदय देखा गया, इसके अनुयायियों ने पाली और प्राकृत में बात की और वेदिक रूप और वैदिक भाषा, संस्कृत का भी खारिज कर दिया। इसमें ब्राह्मण पुजारियों ने भी धर्म-शास्त्रों की रचना के माध्यम से वैदिक विचारों को पुनर्गठित किया, किताबें जो कि शादी के माध्यम से सामाजिक जीवन को विनियमित करने और पारित होने के अनुष्ठान पर ध्यान केंद्रित करती हैं, और लोगों के दायित्वों को उनके पूर्वजों, उनकी जाति और विश्व पर निर्भर करता है। विशाल। कई शिक्षाविद वैदिक विचारों के इस संगठन का वर्णन करने के लिए ब्राह्मणवाद का प्रयोग करते हैं और इसे एक मूल रूप से पितृसत्तात्मक और मागासीवादी बल के रूप में देखते हैं जो समतावादी और शांतिवादी मठों के आदेशों के साथ हिंसक रूप से प्रतिस्पर्धा करते हैं। बौद्ध धर्म और जैन धर्म, वैदिक प्रथाओं और विश्वासों के साथ, उत्तर भारत से दक्षिण भारत तक फैल गया, और अंततः उपमहाद्वीप से मध्य एशिया तक और दक्षिण पूर्व एशिया तक फैल गया। दक्षिण में, तमिल संगम संस्कृति का सामना करना पड़ता था, उस जानकारी के बारे में जो प्रारंभिक कविताओं के संग्रह से आते हैं, जो वैदिक अनुष्ठानों के कुछ ज्ञान और बौद्ध धर्म और जैन धर्म के ज्ञान के साथ बाद में महाकाव्यों का पता चलता है। कुछ हिंदुत्व विद्वानों का कहना है कि कोई अलग तमिल संगम संस्कृति नहीं थी। यह पूरी तरह से विकसित, समरूप, शहरी वैदिक संस्कृति का हिस्सा था, जहां सभी ने संस्कृत को बोला था।चौथा चरणसंपादित करेंचौथे चरण में 2,000 साल पहले शुरू हुए रामायण, महाभारत और पुराण जैसे लेखों का उदय हुआ, जहां कहानियों को घरेलू और विश्व सम्बन्धों की विश्वदृष्टि का समाधान करने के लिए उपयोग किया जाता है और अब परिचित हिंदू विश्वदृष्टि का निर्माण किया जाता है। हमें एक पूरी तरह से विकसित पौराणिक कथाओं के लिए पेश किया जाता है जहां विश्व की कोई शुरुआत नहीं है (अंतदी) या अंत (अनंत), कई आकाश और कई हेल्लो के साथ, क्रिया और प्रतिक्रिया (कर्म) द्वारा नियंत्रित, जहां सभी समाज जन्म और मृत्यु के चक्रों के माध्यम से जाते हैं, बस सभी जीवित प्राणियों की तरह इस चरण में मंदिरों और मंदिर अनुष्ठानों का उदय हुआ। हम मठवासी वेदांतिक आदेशों का उदय भी देखते हैं जो शरीर और सबकुछ संवेदनात्मक, साथ ही जाप तन्त्रिक आदेशों से शरीर को भ्रष्ट करते हैं और शरीर और सभी चीजों की खोज करते हैं। हम पुराने निगामा परम्परा के मिंगलिंग भी देख सकते हैं, जहां दिव्यता को नए अग्मा परम्पारा के साथ निराकार माना जाता है, जहां परमात्मा शिव और उसके पुत्रों, विष्णु और उनके अवतार, और देवी और उसके कई रूपों का रूप लेते हैं। नए आदेशों और परंपराओं के उभरने के साथ, हम जाति प्रणाली (या जाति, एक यूरोपीय शब्द) के समेकन को भी देखते हैं, जो व्यवसायों के आधार पर समुदाय समूह नहीं है, जो अंतरिमारी न होने से खुद को अलग करता है। कई शिक्षाविदों ने जाति को हिंदू धर्म की एक आवश्यक विशेषता के रूप में देखा है जो उच्च जातियों के पक्ष में है, जिस पर आरोप है कि हिंदुत्व अस्वीकार करते हैं। कई हिंदुत्व के विद्वानों का कहना है कि जाति के पास एक वैज्ञानिक और तर्कसंगत आधार है, और उसके पास राजनीति या अर्थशास्त्र के साथ कुछ भी नहीं है।पांचवां चरणसंपादित करेंपांचवां चरण 1,000 वर्ष पुराना है, और यह एक सिद्धांत के रूप में भक्ति का उदय देखा, जहां भक्त भावुक गीतों के माध्यम से देवताओं से जुड़े हुए हैं, जो क्षेत्रीय भाषाओं में बना है, अक्सर मंदिर प्रणाली को दरकिनार करते हैं। यह वह समय था जब एक कठोर जाति के पदानुक्रम ने खुद को दृढ़तापूर्वक लगाया था, जो पवित्रता के सिद्धांत पर आधारित थी और कुछ जातियों को अशुभ और अयोग्य रूप में देखा जा रहा था। उन्हें भी समुदाय से अच्छी तरह से वंचित नहीं किया जा सकता है यह भी वह समय है जब इस्लाम भारत में प्रवेश करता है, शांतिपूर्वक समुद्र के व्यापारियों के माध्यम से दक्षिण में और मध्य एशियाई सरदारों के माध्यम से हिंसक रूप से उत्तर में जाता है, जो बौद्ध मठों और हिंदू मंदिरों को नष्ट करते हैं, जो राजनीतिक सत्ता के केंद्र भी होते हैं और अंततः उनके शासन की स्थापना करते हैं, अक्सर हिंदू राजाओं जैसे उत्तर में राजपूत, पूरब में अहोम्स, मराठों और दक्कन में विजयनगर साम्राज्य का विरोध करते थे। हिंदुत्व ने इस्लाम के आगमन और दिल्ली और डेक्कानी सल्तनतों के उत्थान को देखते हुए, बाद में मुगल शासन को महान हिंदू संस्कृति के अंत के रूप में चिह्नित किया, यह एक विषय है कि मार्क्सवादी इतिहासकारों ने पागल सांप्रदायिक प्रचार किया है। बाद में केवल हिंदू-इस्लामी सहयोग को उजागर किया गया, जो अन्य चरम पर जा रहा है, गैर-मार्क्सवादी इतिहासकारों का तर्क हैछठा चरणसंपादित करेंछठे चरण 300 वर्ष का है जब हिंदू धर्म उपमहाद्वीप में यूरोपीय शक्ति के उदय को उत्तर देते हैं, और ईसाई मिशनरियों के परिणामस्वरूप आगमन और तर्कसंगत वैज्ञानिक व्याख्यान। कुछ हिंदुत्व विद्वान, दोनों के बीच अंतर नहीं करते हैं। इस युग में यूरोपीय विद्वानों ने वैज्ञानिक विधियों और जूदेव-ईसाई लेंस दोनों का उपयोग करके हिंदू धर्म की भावना बनाने की कोशिश की। उनके लिए, एकेश्वरवाद सच्चा धर्म और वैज्ञानिक था; बहुदेववाद मूर्तिपूजक पौराणिक कथाओं था उन्होंने हिंदू जीवन शैली के अनुवाद और दस्तावेजीकरण का एक विशाल अभ्यास शुरू किया। उन्होंने एक पवित्र किताब, एक नबी, और अधिक महत्वपूर्ण बात, एक उद्देश्य की तलाश की। आखिरकार, जटिलता को व्यवस्थित करने के लिए, उन्होंने हिंदू धर्म को ब्राह्मणवाद के रूप में परिभाषित करना शुरू किया, यह बौद्ध धर्म, जैन धर्म और सिख धर्म से भिन्न था। यह ओरिएंटलिस्ट ढांचा विद्यालयों, कॉलेजों और मीडिया के माध्यम से पूर्वी धर्मों की वैश्विक समझ को सूचित करता रहा है।एक तरल मौखिक संस्कृति को 1 9वीं शताब्दी तक तय किया गया था। पश्चिमी तरीकों से पढ़े हुए हिंदुओं ने अपने रिवाज़ और विश्वासों के बारे में पूछे जाने पर उन्हें शर्म की बात और शर्मिंदगी का गहरा असर महसूस किया। कुछ ने औपनिवेशिक देखने के लिए हिंदुत्व को सुधारने का फैसला किया। दूसरों ने हिंदू धर्म के "सच्चे सार" की खोज करने और "बाद में भ्रष्ट" प्रथाओं को खारिज कर दिया। फिर भी दूसरों ने हिंदू धर्म को ही खारिज कर दिया और सभी धर्मों को एक अंधेरे खतरनाक बल के रूप में देखा, जो तर्कसंगतता और वैज्ञानिक रूप से बदल दिया गया। यह इस चरण में है कि हिंदुत्व एक जवाबी शक्ति के रूप में उभरे जो कि उन्होंने यूरोपियन में हिंदुओं की सभी चीजों के अविनाशी और अनुचित मजाक के रूप में देखा और बाद में अमेरिकी और भारतीय विश्वविद्यालयों में चुनौती दी। हिंदुत्व ने मार्क्सवाद और अन्य सभी पश्चिमी प्रवचनों को ईसाई प्रवचन के एक और रूप के रूप में देखा, जो पिछले शताब्दियों में इस्लाम ने मध्य और दक्षिण पूर्व एशिया में जो किया था, वह हिंदू जीवन शैली के सभी निशानों को मिटा देने की मांग कर रहा था।सातवा चरणसंपादित करेंसातवीं चरण, आजादी के बाद, इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता, भले ही यह केवल पिछले 70 वर्षों तक फैला हो, क्योंकि यह धार्मिक आधार पर हिंसक और रक्त-लथपथ विभाजन से शुरू होता है और मुसलमानों के लिए पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान का निर्माण। क्या यह भारत को मूल रूप से एक हिंदू राज्य बना देता है? या क्या यह "भारत के विचार" को प्रेरित करता है जहां सभी लोगों को समान सम्मान मिलता है, चाहे धर्म और जाति का? अलग-अलग लोग अलग-अलग जवाब देंगे। हिंदुत्व ने अल्पसंख्यक अनुशासनात्मकता के रूप में धर्मनिरपेक्षता को देखा, विशिष्ट जातियों के प्रतिवाद के रूप में सकारात्मक भेदभाव को देखते हुए समाजवाद सिर्फ क्रोधित पूंजीवाद, सामाजिक न्याय के सिद्धांतों और पारंपरिक हिंदू परिवार के मूल्यों की धमकी देकर लैंगिक समानता का निर्माण, और समान नागरिक संहिता की अनुपस्थिति के रूप में भारत को विभाजित करने का एक और तरीका। कई बुद्धिजीवियों ने जब उनका तर्क दिया कि हिंदू धर्म और भारत जैसी अवधारणाएं ब्रिटिश की रचना थीं, तो कोई वास्तविक प्राचीन जड़ों के साथ, आम जनता की आस्था को कल्पित कल्पनाओं के विपरीत के रूप में अस्वीकार कर दिया गया था। यह बदतर हो गया जब दुनिया भर के शिक्षाविदों ने जातिवाद के साथ हिंदू धर्म को समझाते हुए इस्लाम को आतंकवाद से जुड़ा, या आतंकवादी मिशनरी गतिविधि के साथ ईसाई धर्म से इनकार कर दिया। बहुत से लोगों ने मार्क्सवाद, उदारवाद और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को बहुसंख्य भारतीयों में विफल कर दिया, जिनमें से ज्यादातर गरीबी गरीबी में रह रहे हैं। उचित या नहीं, पीड़ित महसूस हुआ कि हिंदुत्व को आक्रामक रूप से मर्दाना रुख के बावजूद एक मौका देने का समय था, खासकर जब से यह विकास की भाषा, और आकांक्षाओं की बात करता था।अनुयायीसंपादित करेंभारत की हिंदू आबादी के आँकड़े, भारत के विभिन्न राज्यों (जनगणना 2001) में कुल आबादी के प्रतिशत के रूप में हिंदुओंभारत की जनगणना २०११ के अनुसार भारत की हिंदू आबादी नीचे दी गई है। भारत में एक अरब हिंदुओं में से अनुमान लगाया गया है कि हिंदू( फॉरवर्ड जाति में 26%, अन्य पिछड़ा वर्ग 43%, अनुसूचित जाति (दलित) में 22% और अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) 9% शामिल हैं।)[5] पंजाब (सिख बहुमत), कश्मीर (मुस्लिम बहुमत), उत्तर-पूर्वी भारत और लक्षद्वीप (यूटी) के कुछ हिस्सों के अलावा, अन्य 24 भारतीय राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में हिंदुओं का भारी बहुमत है। पूर्वोत्तर भारत के 8 राज्यों में से, त्रिपुरा, सिक्किम, असम, मणिपुर हिंदू बहुमत हैं जबकि बाकी चारों में अल्पसंख्यक में हिंदू हैं। 1991-2001 की अवधि में मनीपुर में 57% से 52% तक सबसे अधिक कमी आई है, जहां स्वदेशी धर्मम धर्म का पुनरुत्थान हुआ है। 2011 की जनगणना से अधिक विस्तृत आंकड़ों के लिए, इस तालिका को देखें।राज्य हिन्दू कुल हिन्दू %भारत ८२,७५,७८,८६८ १,०२,८६,१०,३२८ ८०.४६%हिमाचल प्रदेश ५८,००,२२२ ६०,७७,९०० ९५.४३%छत्तीसगढ़ १,९७,२९,६७० २,०८,३३,८०३ ९४.७०%उड़ीसा ३,४७,२६,१२९ ३,६८,०४,६६० ९४.३५%दादर और नागर हवेली २,०६,२०३ २,२०,४९० ९३.५२%मध्य प्रदेश ५,५०,०४,६७५ ६,०३,४८,०२३ ९१.१५%दमन और दीव १,४१,९०१ १,५८,२०४ ८९.६९%गुजरात ४,५१,४३,०७४ ५,०६,७१,०१७ ८९.०९%आन्ध्र प्रदेश ६,७८,३६,६५१ ७,६२,१०,००७ ८९.०१%राजस्थान ५,०१,५१,४५२ ५,६५,०७,१८८ ८८.७५%हरियाणा १,८६,५५,९२५ २,११,४४,५६४ ८८.२३%तमिल नाडु ५,४९,८५,०७९ ६,२४,०५,६७९ ८८.११%पाण्डिचेरी ८,४५,४४९ ९,७४,३४५ ८६.७७%त्रिपुरा २७,३९,३१० ३१,९९,२०३ ८५.६२%उत्तराखण्ड ७२,१२,२६० ८४,८९,३४९ ८४.९६%कर्णाटक ४,४३,२१,२७९ ५,२८,५०,५६२ ८३.८६%बिहार ६,९०,७६,९१९ ८,२९,९८,५०९ ८३.२३%दिल्ली १,१३,५८,०४९ १,३८,५०,५०७ ८२.००%उत्तर प्रदेश १३,३९,७९,२६३ १६,६१,९७,९२१ ८०.६१%महाराष्ट्र ७,७८,५९,३८५ ९,६८,७८,६२७ ८०.३७%चण्डीगढ़ ७,०७,९७८ ९,००,६३५ ७८.६१%पश्चिम बंगाल ५,८१,०४,८३५ ८,०१,७६,१९७ ७२.४७%अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह २,४६,५८९ ३,५६,१५२ ६९.२४%झारखण्ड १,८४,७५,६८१ २,६९,४५,८२९ ६८.५७%गोआ ८,८६,५५१ १३,४७,६६८ ६५.७८%असम १,७२,९६,४५५ २,६६,५५,५२८ ६४.८९%सिक्किम ३,२९,५४८ ५,४०,८५१ ६०.९३%केरल १,७८,८३,४४९ ३,१८,४१,३७४ ५६.१६%मणिपुर ९,९६,८९४ २१,६६,७८८ ४६.०१%पंजाब ८९,९७,९४२ २,४३५८,९९९ ३६.९४%अरुणाचल प्रदेश ३,७९,९३५ १०,९७,९६८ ३४.६०%जम्मू और कश्मीर ३०,०५,३४९ १,०१,४३,७०० २९.६३%मेघालय ३,०७,८२२ २३,१८,८२२ १३.२७%नागालैण्ड १,५३,१६२ १९,९०,०३६ ७.७०%लक्षद्वीप २,२२१ ६०,६५० ३.६६%मिज़ोरम ३१,५६२ ८,८८,५७३ ३.५५%इन्हें भी देखेंसंपादित करेंहिन्दू धर्म का इतिहासविश्व में हिन्दू धर्मसन्दर्भसंपादित करें↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 13 नवंबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 अक्तूबर 2010.↑ "India's religions by numbers". मूल से 10 जनवरी 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 26 अक्तूबर 2017.↑ "Is Hinduism the same as Hindutva?". मूल से 9 सितंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 सितंबर 2017.↑ "क्या हड़प्पा की लिपियाँ पढ़ी जा सकती हैं?". मूल से 6 सितंबर 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 सितंबर 2017.↑ Sachar, Rajinder (2006). "Sachar Committee Report (2004–2005)" (PDF). Government of India. पृ॰ 6. मूल (PDF) से 2 अप्रैल 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 September 2008.Last edited 24 days ago By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब:🥦 2401:4900:3B34:FCD:B046:32FE:83D2:78E1RELATED PAGESहिन्दू धर्मधार्मिक धर्महिन्दू धर्म का इतिहासहिन्दू धर्म का आरम्भिक इतिहासभारत में बौद्ध धर्म का पतनसामग्री Vnita Kasnia Punjab CC BY-SA 3.0 के अधीन है जब तक अलग से उल्लेख ना किया गया हो।गोपनीयता नीति उपयोग की शर्तेंडेस्कटॉप