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मेष – एलर्जी आज थोड़ी समस्या खड़ी कर सकती हैएलर्जी या सर्दी-खांसी के कारण आज सेहत पर ध्यान देने की जरूरत हो सकती है। अच्छा महसूस करने के लिए भाप लेना शुरू करें। नौकरी वाले लोगों को नए टीम के सदस्यों के साथ काम करने का मौका मिल सकता है। आज आप किसी प्रकार के रिसर्च में भी शामिल हो सकती हैं, जो आपके कार्यो में आपकी मदद करेगा। आज परिवार के सदस्य भी अपने जीवन में व्यस्त हो सकते हैं। आप काम से जुड़े मुद्दों पर परिवार के किसी बड़े सदस्य से सलाह लेने का प्रयास कर सकती हैं। आपका सामाजिक जीवन भी स्थिर बना रहेगा।लव टिप – काम में देरी पार्टनर से गलतफहमी का कारण बन सकती है। अपने पार्टनर से बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं रखेंएक्टिविटि टिप – स्वीमिंग करें या लंबा समय पानी में बिताएंकार्य के लिए शुभ रंग – गहरा गुलाबीप्यार के लिए शुभ रंग – पीलाकर्म टिप – समस्याओं को ज्यादा नहीं बढ़ाएंवृषभ – अत्यधिक काम समस्या खड़ी कर सकता हैअधूरी नींद और लंबे समय तक काम करने के कारण स्वास्थ्य संवेदनशील हो सकता है। नौकरी करने वालों के लिए आज नए प्रोजेक्ट्स या नई नौकरी पर स्पष्टता आने की संभावना हो सकती है। आज फाइनेंस स्थिर रहेगा साथ ही आप अपनों का ख्याल भी रख पाएंगी। पारिवारिक जीवन अस्थिर रहेगा, क्योंकि हो सकता है कि आपका कोई अपना आपकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरे। सामाजिक जीवन पीछे छूट सकता है, क्योंकि आप घर पर समय बिताना चाहेंगी और अच्छी नींद लेना चाहेंगी।लव टिप – अपने पार्टनर के साथ मतभेद नहीं रखेंएक्टिविटि टिप – अपना मनपसंद भोजन पकाने से आपको बेहतर महसूस करने में मदद मिल सकती हैकाम के लिए शुभ रंग – मौवप्यार के लिए शुभ रंग – गहरा हराकर्म टिप – अतीत को जाने देंमिथुन – आज काम और सेहत स्थिर बने रहेंगेआज स्वास्थ्य स्थिर बना रहेगा। लेकिन संचार से जुड़ी किसी समस्या के कारण काम स्थिर हो सकता है। कुछ मीटिंग्स के लिए आपको लोगों के साथ आगे-पीछे होना पड़ सकता है। लेकिन आखिर में सभी चीजें ठीक होती जाएंगी। पारिवारिक ड्रामा चलता रहेगा और आप किसी के द्वारा की गई टिप्पणियों से प्रभावित हो सकती हैं। खुद को शांत रखने के लिए किसी दोस्त से बात करें।लव टिप – आज पार्टनर सपोर्टिव रहेगा और आपको तनाव को दूर करने के लिए समय और स्पेस देगाएक्टिविटि टिप – गहरी सांस लेने या जप करने से आपको शांत होने में मदद मिलेगीकार्य के लिए शुभ रंग – ऑफ-व्हाइटप्यार के लिए शुभ रंग – कालाकर्म टिप – खुद पर भरोसा बनाएं रखेंकर्क – काम पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करेंस्वास्थ्य स्थिर बना रहेगा लेकिन काम पर किसी आलोचना के प्रति आप संवेदनशील हो सकती हैं। आपको काम पर ध्यान देने के साथ लोगों को स्पेस देने की आवश्यकता है। उल्टा रिएक्शन करने से चीजें और ज्यादा खराब हो सकती हैं। पारिवारिक जीवन स्थिर बना रहेगा और आप परिवार के साथ क्वालिटी टाइम बिता पाएंगी। आज कुछ सामाजिक योजनाएं आपका मनोरंजन कर सकती हैं। दोस्त आपको बेहतर तरीके से समझेंगे और आपके विजन पर ध्यान भी देंगे।लव टिप – आज पार्टनर आपकी सेहत को लेकर चिंतित हो सकता हैएक्टिविटि टिप – मेडिटेटिव संगीत सुनने में समय व्यतीत करेंकार्य के लिए शुभ रंग – पीलाप्यार के लिए शुभ रंग – सफेदकर्म टिप – लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देंसिंह – अपने पारिवारिक जीवन को स्थिर बनाएं रखेंकमर के निचले हिस्से की समस्या के कारण स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत हो सकती है। खुद को ज्यादा जोर नहीं डाले। आज काम में व्यस्तता आने की संभावना है। पुराने क्लाइंट से ज्यादा काम मिलने की संभावना भी है। काम पर दूसरों के फैसलों को नज़रअंदाज करने की गलती नहीं करें। फिर भले ही आप उनसे सहमत नहीं हों। परिवार के सदस्यों के बीच मनमुटाव होने के कारण आपका पारिवारिक जीवन अस्थिर हो सकता है। आज सामाजिक जीवन आपकी शाम व्यस्त रख सकते हैं।लव टिप – आज पार्टनर चिड़चिड़ा होने के कारण तनाव में हो सकता हैएक्टिविटि टिप – कोई खेल खेलना शुरू करेंकार्य के लिए शुभ रंग – गहरा गुलाबीप्यार के लिए शुभ रंग – हल्का हराकर्म टिप – अतित को जाने देंकन्या – अत्यधिक तनाव परेशानी खड़ी कर सकता हैब्लड प्रेशर में उतार-चढ़ाव होने के कारण सेहत पर ध्यान देने की आवश्यकता हो सकती है। ज्यादा तनाव लेने से परहेज करें। आज काम पर दिन स्थिर रहेगा, लेकिन मीटिंग्स में देरी होने की संभावना भी है। इससे आपको तैयारी करने के साथ योजना बनाने का पर्याप्त समय मिल पाएगा। अतीत से किसी मतभेद के कारण पारिवारिक जीवन तनावपूर्ण हो सकता है। कोई आपके चीजों को छुपाने की कोशिश करेगा, जो मतभेद का कारण बन सकता है। आज सामाजिक जीवन भी पीछे छुट्ने की संभावना है।लव टिप – पार्टनर आज आपको बेहतर महसूस कराने की कोशिश करेगाएक्टिविटि टिप – अपने कमरे को व्यवस्थित करके रखेंकार्य के लिए शुभ रंग – हल्का हराप्यार के लिए शुभ रंग – गहरा नीलाकर्म टिप – एक अच्छी श्रोता बनेंतुला – आज सेहत पर खास ध्यान देने की कोशिश करेंसिर दर्द और आंखों से जुड़ी समस्याओं के कारण सेहत पर ध्यान देने की जरूरत हो सकती है। काम स्थिर बना रहेगा, लेकिन सहकर्मियों के साथ सहनशील बनी रहें। क्योंकि सिर्फ उनके काम करने का तरीका अलग हो सकता है। अगर आप सम्मान पाना चाहती हैं, तो उनके फैसलों का सम्मान करने की कोशिश करें। आज परिवार के किसी सदस्य के भावनात्मक स्वास्थ्य पर ध्यान देने की जरूरत हो सकती है। क्योंकि उनके जीवन में चल रहे तनाव के कारण वे परेशान हो सकती हैं। आपका कोई पुराना दोस्त आपसे संपर्क करने की कोशिश कर सकता है।लव टिप – पार्टनर आज आपकी बहुत ज्यादा केयर कर सकता हैएक्टिविटी टिप – प्रकृति के बीच समय बिताएंकार्य के लिए शुभ रंग – हल्का हराप्यार के लिए शुभ रंग – लैवेंडरकर्म टिप – अधिक गंभीर बनी रहेंवृश्चिक – मानसिक तनाव परेशानी का कारण बन सकता हैआज आपका काम और सेहत स्थिर बने रहेंगे, लेकिन मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के कारण आपको ध्यान केंद्रित करने में समस्या हो सकती है। आज आपको गंभीर होने की आवश्यकता है, लेकिन कोई शारीरिक कदम उठाने की कोशिश नहीं करें। पुराने ग्राहक अधूरे कार्यो को पूरा करने के लिए आप पर दबाव बना सकते हैं। आपके परिवार के सदस्य आपसे नाराज हो सकते हैं। सामाजिक जीवन स्थिर बना रहेगा। आपका कोई दोस्त व्यापार के नए विचारों पर बातचीत करने के लिए आ सकता है।लव टिप – पार्टनर सपोर्टिव बना रहेगा और आपको स्पेस देने की कोशिश करेगाएक्टिविटि टिप – अपने मूड को बेहतर करने के लिए अच्छी फिल्में देखना शुरू करेंकार्य के लिए शुभ रंग – ऑफ-व्हाइटप्यार के लिए शुभ रंग – लालकर्म टिप – मूडी बनने से परहेज करेंधनु – बाहर के खाने से परहेज करने की कोशिश करेंपेट से जुड़ी समस्याओं के कारण सेहत पर ध्यान देने की आवश्यकता हो सकती है। इसलिए बाहर के खाने से परहेज रखें। आज काम में व्यस्तता हो सकती है। आपको रुके हुए कार्यो को पूरा करने पर ध्यान देना होगा। इससे बचने के बजाय अधिक गंभीर बनने का प्रयास करें। काम पर अटका हुआ धन दिन के दूसरे भाग में देरी का कारण बन सकता है। परिवार के किसी बड़े सदस्य का स्वास्थ्य संवेदनशील हो सकता है। उनके साथ समय बिताएं, क्योंकि वे भावनात्मक रूप से कमजोर महसूस कर रहे होंगे।लव टिप – पार्टनर पर गुस्सा करने से परहेज करेंएक्टिविटि टिप – काम के बाद नमक के पानी से स्नान करेंकार्य के लिए शुभ रंग – गहरा नीलाप्यार के लिए शुभ रंग – सफेदकर्म टिप – अधिक फ्लेक्सिबल बनी रहेंमकर – सोच समझकर ही कोई फैसला करेंआज काम स्थिर बना रहेगा, लेकिन मानसिक रूप से अस्वस्थ होने के कारण आपको ध्यान केंद्रित करने में समस्या होगी। आपको गंभीर होने की जरूरत भी है, लेकिन आज कोई शारीरिक कदम नहीं उठाएं। आपके परिवार के सदस्य घरेलू काम से जुड़े किसी कार्य के लिए आपको परेशान कर सकते हैं। सहनशील बनकर इसे पूरा करें या इसे किसी ऐसे व्यक्ति को सौंपें जो इसे संभाल सके। आज आपका सामाजिक जीवन स्थिर बना रहेगा। आप दूसरे के दोस्तों से फोन के जरिए जुड़ सकती हैं।लव टिप – पार्टनर रिलेशनशिप पर स्पष्टता पाने के लिए आपके साथ चर्चा करना चाहेगाएक्टिविटि टिप – अपनी भावनाओं पर काम करते हुए अकेले समय बिताएंकार्य के लिए शुभ रंग – हल्का गुलाबीप्यार के लिए शुभ रंग – सफेदकर्म टिप – खुद पर भरोसा बनाएं रखेंकुंभ – आज कोई शारीरिक गतिविधि करना बेहतर होगास्वास्थ्य स्थिर बना रहेगा। आपको किसी शारीरिक गतिविधि पर ध्यान देने की जरूरत होगी। काम पर आपको किसी पेपर वर्क पर ध्यान देने की आवश्यकता हो सकती है। आज दिन के दूसरे भाग में सहकर्मियों से अच्छी खबर मिलने की संभावना भी है। व्यवसाय वालों को अपनी टीम का विस्तार करने की जरूरत हो सकती है। परिवार के सदस्य आपको समझेंगे और स्पेस देने की कोशिश करेंगे। आज आपका सामाजिक जीवन स्थिर भी स्थिर बना रहेगा।लव टिप – पार्टनर अपने काम को लेकर तनाव में रहेगा और अपनी समस्या आपसे शेयर भी करेगाएक्टिविटि टिप – अपनी रचनात्मक ऊर्जा पर काम करना शुरू करेंकार्य के लिए शुभ रंग – ऑफ-व्हाइटप्यार के लिए शुभ रंग – समुद्री हराकर्म टिप – अपने फैसलों के लिए अनुमोदन नहीं लेंमीन – आज नींद में समस्या होने की संभावना हैनींद में समस्या होने की संभावना है। लेकिन काम के तनाव के कारण इमोशनल ईटिंग नहीं करें। काम स्थिर बना रहेगा। आज एक सामान्य दिन होगा जहां आपको अधूरे कार्यों पर ध्यान देने की जरूरत होगी। सहकर्मी अपनी जिम्मेदारीयों में व्यस्त रहेंगे जिससे आप आसानी से अपने कार्यो पर ध्यान दे पाएंगी। परिवार के सदस्य सहायक बने रहेंगे और आपको स्पेस देने की कोशिश करेंगे। आज आपका सामाजिक जीवन भी पीछे छूट सकता है, क्योंकि आपको अपने पार्टनर के साथ क्वालिटी टाइम बिताने की जरूरत होगी।लव टिप – पार्टनर के साथ मनमुटाव को समय से सुलझाने की कोशिश करेंएक्टिविटी टिप – काम से पहले नमक के पानी से नहाएंकार्य के लिए शुभ रंग – सफेदप्यार के लिए शुभ रंग – मौवकर्म टिप – अपनी रचनात्मक ऊर्जा पर काम करें#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम .सभी देशवासियों को लोक आस्था एवं सूर्य उपासना के महापर्व छठ पूजा की हार्दिक बधाई। भगवान सूर्य देव की ऊर्जा एवं मां छठ की असीम कृपा से हम सभी का जीवन ज्योतिर्मय रहें तथा चहुंओर खुशहाली एवं समृद्धि का वास हो। लोक आस्था के महापर्व 'छठ' की हार्दिक शुभकामनाएं।भारतीय संस्कृति और प्रकृति के मध्य प्रगाढ़ संबंध को प्रदर्शित करता यह महापर्व सभी के जीवन में ऊर्जा व उत्साह का नव संचार करे, इस अवसर पर प्रकृति संरक्षण-संवर्धन के प्रति सजगता से सतत कार्य करते रहने का संकल्प लें।जय छठी मईया॥🙏#chhathpuja#वनिता #कासनियां #पंजाब 🌷🙏🙏🌷

आईजानते हैं #सूर्य को किस विधि से दें अर्घ्य.#बलुवाना #न्यूज #पंजाबChhath Puja 2022 Sandhya Arghya: छठ की छटा पूरे देश में छाई हुई है. आज छठ पर्व का दूसरा दिन खरना कहलाता है. इसमें व्रती मीठा भोजन करते हैं. #महिलाएं शाम को गुड़ की खीर और चावल खाने के बाद व्रत शुरू करती हैं. 36 घंटे का निर्जला व्रत खरना के बाद शुरू हो जाता है. इसके बाद सूर्य को पहला अर्घ्य 30 अक्टूबर 2022 को दिया जाएगा.इस दिन #संध्या काल में अस्तगामी सूर्य यानी की डूबते #सूरज को जल चढ़ाया जाता है. मान्यता है कि सूर्य को सही विधि और नियम से जल चढ़ाया जाए तो किस्मत सूरज के समान चमक उठती है. आइए जानते हैं छठ पूजा में शाम के समय सूर्य को पहला अर्घ्य किस विधि से दें.छठ पूजा 2022 सूर्य अर्घ्य मुहूर्त (Chhath Puja 2022 Sandhya Arghya Muhurat)कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि यानी की 30 अक्टूबर 2022 पर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. फिर 31 अक्टूबर 2022 को उदयीमान सूर्य यानी उगते सूरज को व्रती जल चढ़ाकर अपना व्रत पूरा करेंगे.#कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि प्रारंभ: 30 अक्टूबर 2022, सुबह 05:49कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि समाप्त: 31 अक्टूबर 2022, सुबह 03:27सूर्योदय का समय - सुबह 06.35 (30 अक्टूबर 2022)सूर्योस्त का समय- सायं 5:38 (30 अक्टूबर 2022)छठ पूजा 2022 मुहूर्त#ब्रह्म मुहूर्त - सुबह 04:53 - सुबह 05:44अभिजित मुहूर्त- सुबह 11:48- दोपहर 12:33गोधूलि मुहूर्त - शाम 05:46 - शाम 06:11 छठ पूजा 2022 शुभ योग (Chhath Puja 2022 Sandhya Arghya Shubh yoga)छठ पर्व में तीसरा दिन बहुत #महत्वपूर्ण होता है इसमें डूबते सूर्य को अर्घ्य देने वाले दिन कई शुभ योग का संयोग बन रहा है जिसके प्रभाव से व्रती को #अक्षय #पुण्य की प्राप्ति होगी इस दिन रवि, सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है. रवि योग में सूर्य की #पूजा करने से जीवन में मान-सम्मान में वृद्धि होती है, बल, बुद्धि, धन का वरदान प्राप्त होता है.रवि योग - 30 #अक्टूबर 2022, 7.26 - 31 अक्टूबर 2022, 05.48सर्वार्थ सिद्धि योग - सुबह 06.35 - सुबह 07.26 (30 अक्टूबर 2022)छठ पूजा 2022 अस्तगामी सूर्य अर्घ्य विधि (Chhath Puja Sandhya Arghya Vidhi)#छठ पूजा के एक दिन पहले से ही #रात में व्रत की शुरुआत हो जाती है. इस पर्व में तीसरे दिन यानी कि सूर्य षष्ठी पर प्रात: काल स्नान कर नियमित रूप से सूर्य देव की पूजा करें.व्रत का संकल्प लेते वक्त ये मंत्र बोलें - 'ॐ अद्य अमुक #गोत्रो अमुक नामाहं मम सर्व #पापनक्षयपूर्वक शरीरारोग्यार्थ श्री #सूर्यनारायणदेवप्रसन्नार्थ श्री सूर्यषष्ठीव्रत करिष्ये'इस दिन शाम को #व्रती को सूती साड़ी और पुरुष धोती पहनते हैं. इस दिन छठ पूजा के टोकरी में पूजन सामग्री रखकर सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.शाम को #सूर्यास्त के समय नदी या तालाब में खड़े होकर स्नान करें. फिर #गेहूं के आटे और #गुड़, #शक्कर से बने ठेकुए और चावल से बने भुसबा, गन्ना, नारियल, सुथनी, शकरकंदी, लाल सिंदूर, केला, नाशपाती, शहद, पान, बड़ा नींबू, सुपारी, कैराव, कपूर, मिठाई, चंदन, हल्दी, सेब, फल-फूल बांस से बनी डलिया या सूप में सजा लें.अब बांस के सूप में #दीपक #प्रज्वलित करें, तांबे के लौटे में जल लेकर उसमें लाल चंदन, लाल पुष्प, अक्षत, गंगजाल डालें और पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दें. जल चढ़ाते वक्त पानी की धारा बनाकर अर्घ्य दें.सूर्य देव और #छठी मईया से #मनोकामना पूर्ती की प्रार्थना करें और फिर पानी में ही तीन बार परिक्रमा लगाएं.#Vnita🌷🙏🙏🌷सूर्य को अर्घ्य देने के मंत्रऊँ ऐही सूर्यदेव सहस्त्रांशो तेजो राशि जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहणार्ध्य दिवाकर:।।ऊँ सूर्याय नम:, ऊँ #आदित्याय नम:, ऊँ नमो भास्कराय नम:। अर्घ्य समर्पयामि।।

दर्शनशास्त्र के अनुसारभारतीय आस्तिक दर्शनशास्त्र के मत में शब्द के नित्य होने से उसका अर्थ के साथ स्वयम्भू-जैसा सम्बन्ध होता है। वेद में शब्द को नित्य समझने पर वेद को अपौरुषेय (ईश्वरप्रणीत) माना गया है। निरूक्तकार भी इसका प्रतिपादन करते हैं। आस्तिक दर्शन ने शब्द को सर्वश्रेष्ठ प्रमाण मान्य किया है। इस विषय में मीमांसा- दर्शन तथा न्याय-दर्शन के मत भिन्न-भिन्न हैं। जैमिनीय मीमांसक, कुमारिल आदि मीमांसक, आधुनिक मीमांसक तथा सांख्यवादियों के मत में वेद अपौरुषेय, नित्य एवं स्वत:प्रमाण हैं। मीमांसक वेद को स्वयम्भू मानते हैं। उनका कहना है कि वेद की निर्मिति का प्रयत्न किसी व्यक्ति-विशेष का अथवा ईश्वर का नहीं है। नैयायिक ऐसा समझते हैं कि वेद तो ईश्वरप्रोक्त है। मीमांसक कहते हैं कि भ्रम, प्रमाद, दुराग्रह इत्यादि दोषयुक्त होने के कारण मनुष्य के द्वारा वेद-जैसे निर्दोष महान ग्रन्थरत्न की रचना शक्य ही नहीं है। अत: वेद अपौरुषेय ही है। इससे आगे जाकर नैयायिक ऐसा प्रतिपादन करते हैं कि ईश्वर ने जैसे सृष्टि की, वैसे ही वेद का निर्माण किया; ऐसा मानना उचित ही है।श्रुति के मतानुसार वेद तो महाभूतों का नि:श्वास (यस्य नि:श्वतिसं वेदा...) है। श्वास-प्रश्वास स्वत: आविर्भूत होते हैं, अत: उनके लिये मनुष्य के प्रयत्न की अथवा बुद्धि की अपेक्षा नहीं होती। उस महाभूत का नि:श्वासरूप वेद तो अदृष्टवशात अबुद्धिपूर्वक स्वयं आविर्भूत होता है।वेद नित्य-शब्द की संहृति होने से नित्य है और किसी भी प्रकार से उत्पाद्य नहीं है; अत: स्वत: आविर्भूत वेद किसी भी पुरुष से रचा हुआ न होने के कारण अपौरुषेय (ईश्वरप्रणीत) सिद्ध होता है। इन सभी विचारों को दर्शन शास्त्र में अपौरुषेयवाद कहा गया है।अवैदिक दर्शन को नास्तिक दर्शन भी कहते हैं, क्योंकि वह वेद को प्रमाण नहीं मानता, अपौरुषेय स्वीकार नहीं करता। उसका कहना है कि इहलोक (जगत) ही आत्मा का क्रीडास्थल है, परलोक (स्वर्ग) नाम की कोई वस्तु नहीं है, 'काम एवैक: पुरुषार्थ:'- काम ही मानव-जीवन का एकमात्र पुरुषार्थ होता है, 'मरणमेवापवर्ग:'- मरण (मृत्यु) माने ही मोक्ष (मुक्ति) है, 'प्रत्यक्षमेव प्रमाणम्'- जो प्रत्यक्ष है वही प्रमाण है (अनुमान प्रमाण नहीं है)। धर्म ही नहीं है, अत: अधर्म नहीं है; स्वर्ग-नरक नहीं हैं। 'न परमेश्वरोऽपि कश्चित्'- परमेश्वर –जैसा भी कोई नहीं है, 'न धर्म: न मोक्ष:'- न तो धर्म है न मोक्ष है। अत: जब तक शरीर में प्राण है, तब तक सुख प्राप्त करते हैं- इस विषय में नास्तिक चार्वाक-दर्शन स्पष्ट कहता है-यावज्जीवं सुखं जीवेदृणं कृत्वा घृतं पिबेत्।भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुत:॥[17]चार्वाक-दर्शन शब्द में 'चर्व' का अर्थ है-खाना। इस 'चर्व' पद से ही 'खाने-पीने और मौज' करने का संदेश देने वाले इस दर्शन का नाम 'चार्वाक-दर्शन' पड़ा है। 'गुणरत्न' ने इसकी व्याख्या इस प्रकार से की है- परमेश्वर, वेद, पुण्य-पाप, स्वर्ग-नरक, आत्मा, मुक्ति इत्यादि का जिसने 'चर्वण' (नामशेष) कर दिया है, वह 'चार्वाक-दर्शन' है। इस मत के लोगों का लक्ष्य स्वमतस्थापन की अपेक्षा परमतखण्डन के प्रति अधिक रहने से उनको 'वैतंडिक' कहा गया है। वे लोग वेदप्रामाण्य मानते ही नहीं।1.जगत,2.जीव,3.ईश्वर और4.मोक्ष- ये ही चार प्रमुख प्रतिपाद्य विषय सभी दर्शनों के होते हैं।आचार्य श्रीहरिभद्र ने 'षड्दर्शन-समुच्चय' नाम का अपने ग्रन्थ में1.न्याय,2.वैशेषिक,3.सांख्य,4.योग,5.मीमांसा और6.वेदान्त- इन छ: को वैदिक दर्शन (आस्तिक-दर्शन) तथा7.चार्वाक,8.बौद्ध और9.जैन-इन तीन को 'अवैदिक दर्शन' (नास्तिक-दर्शन) कहा है और उन सब पर विस्तृत विचार प्रस्तुत किया है। वेद को प्रमाण मानने वाले आस्तिक और न मानने वाले नास्तिक हैं, इस दृष्टि से उपर्युक्त न्याय-वैशेषिकादि षड्दर्शन को आस्तिक और चार्वाकादि दर्शन को नास्तिक कहा गया है।मनु स्मृति में वेद ही By वनिता कासनियां पंजाबमनुस्मृति कहती है- 'श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेय:'[6] 'आदिसृष्टिमारभ्याद्यपर्यन्तं ब्रह्मादिभि: सर्वा: सत्यविद्या: श्रूयन्ते सा श्रुति:॥'[7] वेदकालीन महातपा सत्पुरुषों ने समाधि में जो महाज्ञान प्राप्त किया और जिसे जगत के आध्यात्मिक अभ्युदय के लिये प्रकट भी किया, उस महाज्ञान को 'श्रुति' कहते हैं।श्रुति के दो विभाग हैं-1.वैदिक और2.तान्त्रिक- 'श्रुतिश्च द्विविधा वैदिकी तान्त्रिकी च।'मुख्य तन्त्र तीन माने गये हैं-1.महानिर्वाण-तन्त्र,2.नारदपाञ्चरात्र-तन्त्र और3.कुलार्णव-तन्त्र।वेद के भी दो विभाग हैं-1.मन्त्र विभाग और2.ब्राह्मण विभाग- 'वेदो हि मन्त्रब्राह्मणभेदेन द्विविध:।'वेद के मन्त्र विभाग को संहिता भी कहते हैं। संहितापरक विवेचन को 'आरण्यक' एवं संहितापरक भाष्य को 'ब्राह्मणग्रन्थ' कहते हैं। वेदों के ब्राह्मणविभाग में' आरण्यक' और 'उपनिषद'- का भी समावेश है। ब्राह्मणविभाग में 'आरण्यक' और 'उपनिषद'- का भी समावेश है। ब्राह्मणग्रन्थों की संख्या 13 है, जैसे ऋग्वेद के 2, यजुर्वेद के 2, सामवेद के 8 और अथर्ववेद के 1 ।मुख्य ब्राह्मणग्रन्थ पाँच हैं-ऋग्वेद का आवरण1.ऐतरेय ब्राह्मण,2.तैत्तिरीय ब्राह्मण,3.तलवकार ब्राह्मण,4.शतपथ ब्राह्मण और5.ताण्डय ब्राह्मण।उपनिषदों की संख्या वैसे तो 108 हैं, परंतु मुख्य 12 माने गये हैं, जैसे-1.ईश,2.केन,3.कठ,4.प्रश्न,5.मुण्डक,6.माण्डूक्य,7.तैत्तिरीय,8.ऐतरेय,9.छान्दोग्य,10.बृहदारण्यक,11.कौषीतकि और12.श्वेताश्वतर। दर्शन शास्त्र के अनुसारभारतीय आस्तिक दर्शनशास्त्र के मत में शब्द के नित्य होने से उसका अर्थ के साथ स्वयम्भू-जैसा सम्बन्ध होता है। वेद में शब्द को नित्य समझने पर वेद को अपौरुषेय (ईश्वरप्रणीत) माना गया है। निरूक्तकार भी इसका प्रतिपादन करते हैं। आस्तिक दर्शन ने शब्द को सर्वश्रेष्ठ प्रमाण मान्य किया है। इस विषय में मीमांसा- दर्शन तथा न्याय-दर्शन के मत भिन्न-भिन्न हैं। जैमिनीय मीमांसक, कुमारिल आदि मीमांसक, आधुनिक मीमांसक तथा सांख्यवादियों के मत में वेद अपौरुषेय, नित्य एवं स्वत:प्रमाण हैं। मीमांसक वेद को स्वयम्भू मानते हैं। उनका कहना है कि वेद की निर्मिति का प्रयत्न किसी व्यक्ति-विशेष का अथवा ईश्वर का नहीं है। नैयायिक ऐसा समझते हैं कि वेद तो ईश्वरप्रोक्त है। मीमांसक कहते हैं कि भ्रम, प्रमाद, दुराग्रह इत्यादि दोषयुक्त होने के कारण मनुष्य के द्वारा वेद-जैसे निर्दोष महान ग्रन्थरत्न की रचना शक्य ही नहीं है। अत: वेद अपौरुषेय ही है। इससे आगे जाकर नैयायिक ऐसा प्रतिपादन करते हैं कि ईश्वर ने जैसे सृष्टि की, वैसे ही वेद का निर्माण किया; ऐसा मानना उचित ही है।श्रुति के मतानुसार वेद तो महाभूतों का नि:श्वास (यस्य नि:श्वतिसं वेदा...) है। श्वास-प्रश्वास स्वत: आविर्भूत होते हैं, अत: उनके लिये मनुष्य के प्रयत्न की अथवा बुद्धि की अपेक्षा नहीं होती। उस महाभूत का नि:श्वासरूप वेद तो अदृष्टवशात अबुद्धिपूर्वक स्वयं आविर्भूत होता है।वेद नित्य-शब्द की संहृति होने से नित्य है और किसी भी प्रकार से उत्पाद्य नहीं है; अत: स्वत: आविर्भूत वेद किसी भी पुरुष से रचा हुआ न होने के कारण अपौरुषेय (ईश्वरप्रणीत) सिद्ध होता है। इन सभी विचारों को दर्शन शास्त्र में अपौरुषेयवाद कहा गया है।अवैदिक दर्शन को नास्तिक दर्शन भी कहते हैं, क्योंकि वह वेद को प्रमाण नहीं मानता, अपौरुषेय स्वीकार नहीं करता। उसका कहना है कि इहलोक (जगत) ही आत्मा का क्रीडास्थल है, परलोक (स्वर्ग) नाम की कोई वस्तु नहीं है, 'काम एवैक: पुरुषार्थ:'- काम ही मानव-जीवन का एकमात्र पुरुषार्थ होता है, 'मरणमेवापवर्ग:'- मरण (मृत्यु) माने ही मोक्ष (मुक्ति) है, 'प्रत्यक्षमेव प्रमाणम्'- जो प्रत्यक्ष है वही प्रमाण है (अनुमान प्रमाण नहीं है)। धर्म ही नहीं है, अत: अधर्म नहीं है; स्वर्ग-नरक नहीं हैं। 'न परमेश्वरोऽपि कश्चित्'- परमेश्वर –जैसा भी कोई नहीं है, 'न धर्म: न मोक्ष:'- न तो धर्म है न मोक्ष है। अत: जब तक शरीर में प्राण है, तब तक सुख प्राप्त करते हैं- इस विषय में नास्तिक चार्वाक-दर्शन स्पष्ट कहता है-यावज्जीवं सुखं जीवेदृणं कृत्वा घृतं पिबेत्।भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुत:॥[17]चार्वाक-दर्शन शब्द में 'चर्व' का अर्थ है-खाना। इस 'चर्व' पद से ही 'खाने-पीने और मौज' करने का संदेश देने वाले इस दर्शन का नाम 'चार्वाक-दर्शन' पड़ा है। 'गुणरत्न' ने इसकी व्याख्या इस प्रकार से की है- परमेश्वर, वेद, पुण्य-पाप, स्वर्ग-नरक, आत्मा, मुक्ति इत्यादि का जिसने 'चर्वण' (नामशेष) कर दिया है, वह 'चार्वाक-दर्शन' है। इस मत के लोगों का लक्ष्य स्वमतस्थापन की अपेक्षा परमतखण्डन के प्रति अधिक रहने से उनको 'वैतंडिक' कहा गया है। वे लोग वेदप्रामाण्य मानते ही नहीं।1.जगत,2.जीव,3.ईश्वर और4.मोक्ष- ये ही चार प्रमुख प्रतिपाद्य विषय सभी दर्शनों के होते हैं।आचार्य श्रीहरिभद्र ने 'षड्दर्शन-समुच्चय' नाम का अपने ग्रन्थ में1.न्याय,2.वैशेषिक,3.सांख्य,4.योग,5.मीमांसा और6.वेदान्त- इन छ: को वैदिक दर्शन (आस्तिक-दर्शन) तथा7.चार्वाक,8.बौद्ध और9.जैन-इन तीन को 'अवैदिक दर्शन' (नास्तिक-दर्शन) कहा है और उन सब पर विस्तृत विचार प्रस्तुत किया है। वेद को प्रमाण मानने वाले आस्तिक और न मानने वाले नास्तिक हैं, इस दृष्टि से उपर्युक्त न्याय-वैशेषिकादि षड्दर्शन को आस्तिक और चार्वाकादि दर्शन को नास्तिक कहा गया है।By वनिता कासनियां पंजाब

वेद वाड्मय-परिचय एवं अपौरु षेयवाद'सनातन धर्म' एवं 'भारतीय संस्कृति' का मूल आधार स्तम्भ विश्व का अति प्राचीन और सर्वप्रथम वाड्मय 'वेद' माना गया है। मानव जाति के लौकिक (सांसारिक) तथा पारमार्थिक अभ्युदय-हेतु प्राकट्य होने से वेद को अनादि एवं नित्य कहा गया है। अति प्राचीनकालीन महा तपा, पुण्यपुञ्ज ऋषियों के पवित्रतम अन्त:करण में वेद के दर्शन हुए थे, अत: उसका 'वेद' नाम प्राप्त हुआ। ब्रह्म का स्वरूप 'सत-चित-आनन्द' होने से ब्रह्म को वेद का पर्यायवाची शब्द कहा गया है। इसीलिये वेद लौकिक एवं अलौकिक ज्ञान का साधन है। 'तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये0'- तात्पर्य यह कि कल्प के प्रारम्भ में आदि कवि ब्रह्मा के हृदय में वेद का प्राकट्य हुआ।सुप्रसिद्ध वेदभाष्यकार महान पण्डित सायणाचार्य अपने वेदभाष्य में लिखते हैं किवनिता कासनियां पंजाब 'इष्टप्राप्त्यनिष्टपरिहारयोरलौकिकमुपायं यो ग्रन्थो वेदयति स वेद:'[1]निरूक्त कहता है कि 'विदन्ति जानन्ति विद्यन्ते भवन्ति0' [2]'आर्यविद्या-सुधाकर' नामक ग्रन्थ में कहा गया है कि— वेदो नाम वेद्यन्ते ज्ञाप्यन्ते धर्मार्थकाममोक्षा अनेनेति व्युत्पत्त्या चतुर्वर्गज्ञानसाधनभूतो ग्रन्थविशेष:॥ [3]'कामन्दकीय नीति' भी कहती है- 'आत्मानमन्विच्छ0।' 'यस्तं वेद स वेदवित्॥' [4] कहने का तात्पर्य यह है कि आत्मज्ञान का ही पर्याय वेद है।सूची1 वेदवाड्मय-परिचय एवं अपौरुषेयवाद2 मनुस्मृति में वेद ही श्रुति3 वेद ईश्वरीय या मानवनिर्मित4 दर्शनशास्त्र के अनुसार5 दर्शनशास्त्र का मूल मन्त्र6 वेद के प्रकार7 टीका टिप्पणी और संदर्भ8 संबंधित लेखवनिता भगवती बतलाती है कि 'अनन्ता वै वेदा:॥' वेद का अर्थ है ज्ञान। ज्ञान अनन्त है, अत: वेद भी अनन्त हैं। तथापि मुण्डकोपनिषद की मान्यता है कि वेद चार हैं- 'ऋग्वेदो यजुर्वेद: सामवेदो ऽथर्ववेद:॥'[5]इन वेदों के चार उपवेद इस प्रकार हैं—By वनिता कासनियां पंजाब द्वाराआयुर्वेदो धनुर्वेदो गान्धर्वश्र्चेति ते त्रय:।स्थापत्यवेदमपरमुपवेदश्र्चतुर्विध:॥उपवेदों के कर्ताओं में1.आयुर्वेद के कर्ता धन्वन्तरि,2.धनुर्वेद के कर्ता विश्वामित्र,3.गान्धर्ववेद के कर्ता नारद मुनि और4.स्थापत्यवेद के कर्ता विश्वकर्मा हैं।

मनु स्मृति में वेद ही By वनिता कासनियां पंजाबमनुस्मृति कहती है- 'श्रुतिस्तु वेदो विज्ञेय:'[6] 'आदिसृष्टिमारभ्याद्यपर्यन्तं ब्रह्मादिभि: सर्वा: सत्यविद्या: श्रूयन्ते सा श्रुति:॥'[7] वेदकालीन महातपा सत्पुरुषों ने समाधि में जो महाज्ञान प्राप्त किया और जिसे जगत के आध्यात्मिक अभ्युदय के लिये प्रकट भी किया, उस महाज्ञान को 'श्रुति' कहते हैं।श्रुति के दो विभाग हैं-1.वैदिक और2.तान्त्रिक- 'श्रुतिश्च द्विविधा वैदिकी तान्त्रिकी च।'मुख्य तन्त्र तीन माने गये हैं-1.महानिर्वाण-तन्त्र,2.नारदपाञ्चरात्र-तन्त्र और3.कुलार्णव-तन्त्र।वेद के भी दो विभाग हैं-1.मन्त्र विभाग और2.ब्राह्मण विभाग- 'वेदो हि मन्त्रब्राह्मणभेदेन द्विविध:।'वेद के मन्त्र विभाग को संहिता भी कहते हैं। संहितापरक विवेचन को 'आरण्यक' एवं संहितापरक भाष्य को 'ब्राह्मणग्रन्थ' कहते हैं। वेदों के ब्राह्मणविभाग में' आरण्यक' और 'उपनिषद'- का भी समावेश है। ब्राह्मणविभाग में 'आरण्यक' और 'उपनिषद'- का भी समावेश है। ब्राह्मणग्रन्थों की संख्या 13 है, जैसे ऋग्वेद के 2, यजुर्वेद के 2, सामवेद के 8 और अथर्ववेद के 1 ।मुख्य ब्राह्मणग्रन्थ पाँच हैं-ऋग्वेद का आवरण1.ऐतरेय ब्राह्मण,2.तैत्तिरीय ब्राह्मण,3.तलवकार ब्राह्मण,4.शतपथ ब्राह्मण और5.ताण्डय ब्राह्मण।उपनिषदों की संख्या वैसे तो 108 हैं, परंतु मुख्य 12 माने गये हैं, जैसे-1.ईश,2.केन,3.कठ,4.प्रश्न,5.मुण्डक,6.माण्डूक्य,7.तैत्तिरीय,8.ऐतरेय,9.छान्दोग्य,10.बृहदारण्यक,11.कौषीतकि और12.श्वेताश्वतर।

वेद वाड्मय-परिचय एवं अपौरु षेयवाद'सनातन धर्म' एवं 'भारतीय संस्कृति' का मूल आधार स्तम्भ विश्व का अति प्राचीन और सर्वप्रथम वाड्मय 'वेद' माना गया है। मानव जाति के लौकिक (सांसारिक) तथा पारमार्थिक अभ्युदय-हेतु प्राकट्य होने से वेद को अनादि एवं नित्य कहा गया है। अति प्राचीनकालीन महा तपा, पुण्यपुञ्ज ऋषियों के पवित्रतम अन्त:करण में वेद के दर्शन हुए थे, अत: उसका 'वेद' नाम प्राप्त हुआ। ब्रह्म का स्वरूप 'सत-चित-आनन्द' होने से ब्रह्म को वेद का पर्यायवाची शब्द कहा गया है। इसीलिये वेद लौकिक एवं अलौकिक ज्ञान का साधन है। 'तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये0'- तात्पर्य यह कि कल्प के प्रारम्भ में आदि कवि ब्रह्मा के हृदय में वेद का प्राकट्य हुआ।सुप्रसिद्ध वेदभाष्यकार महान पण्डित सायणाचार्य अपने वेदभाष्य में लिखते हैं किवनिता कासनियां पंजाब 'इष्टप्राप्त्यनिष्टपरिहारयोरलौकिकमुपायं यो ग्रन्थो वेदयति स वेद:'[1]निरूक्त कहता है कि 'विदन्ति जानन्ति विद्यन्ते भवन्ति0' [2]'आर्यविद्या-सुधाकर' नामक ग्रन्थ में कहा गया है कि— वेदो नाम वेद्यन्ते ज्ञाप्यन्ते धर्मार्थकाममोक्षा अनेनेति व्युत्पत्त्या चतुर्वर्गज्ञानसाधनभूतो ग्रन्थविशेष:॥ [3]'कामन्दकीय नीति' भी कहती है- 'आत्मानमन्विच्छ0।' 'यस्तं वेद स वेदवित्॥' [4] कहने का तात्पर्य यह है कि आत्मज्ञान का ही पर्याय वेद है।सूची1 वेदवाड्मय-परिचय एवं अपौरुषेयवाद2 मनुस्मृति में वेद ही श्रुति3 वेद ईश्वरीय या मानवनिर्मित4 दर्शनशास्त्र के अनुसार5 दर्शनशास्त्र का मूल मन्त्र6 वेद के प्रकार7 टीका टिप्पणी और संदर्भ8 संबंधित लेखवनिता भगवती बतलाती है कि 'अनन्ता वै वेदा:॥' वेद का अर्थ है ज्ञान। ज्ञान अनन्त है, अत: वेद भी अनन्त हैं। तथापि मुण्डकोपनिषद की मान्यता है कि वेद चार हैं- 'ऋग्वेदो यजुर्वेद: सामवेदो ऽथर्ववेद:॥'[5]इन वेदों के चार उपवेद इस प्रकार हैं—By वनिता कासनियां पंजाब द्वाराआयुर्वेदो धनुर्वेदो गान्धर्वश्र्चेति ते त्रय:।स्थापत्यवेदमपरमुपवेदश्र्चतुर्विध:॥उपवेदों के कर्ताओं में1.आयुर्वेद के कर्ता धन्वन्तरि,2.धनुर्वेद के कर्ता विश्वामित्र,3.गान्धर्ववेद के कर्ता नारद मुनि और4.स्थापत्यवेद के कर्ता विश्वकर्मा हैं।

🌹🙏#छठ_पूजा 🙏🌹〰️〰️🌼〰️〰️🌷बाल वनिता महिला आश्रम🌷कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के तुरंत बाद मनाए जाने वाले इस चार दिवसिए व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। इसी कारण इस व्रत का नाम करण छठ व्रत हो गया। छठ पर्व षष्ठी तिथि का अपभ्रंश है।#सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। इस पर्व को वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। #पारिवारिक #सुख-स्मृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। छठ पर्व में सूर्य और छठी मैया की पूजा 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️छठ पूजा में सूर्य देव की पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देने वाले देवता है, जो पृथ्वी पर सभी प्राणियों के जीवन का आधार हैं। सूर्य देव के साथ-साथ छठ पर छठी मैया की पूजा का भी विधान है। सूर्य और छठी मैया का संबंध भाई बहन का है। मूलप्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने के कारण इनका नाम षष्ठी पड़ा। वह कार्तिकेय की पत्नी भी हैं। षष्ठी देवी देवताओं की देवसेना भी कही जाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने की थी। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो षष्ठी के दिन विशेष खगोलिय परिवर्तन होता है। तब सूर्य की पराबैगनी किरणें असामान्य रूप से एकत्र होती हैं और इनके कुप्रभावों से बचने के लिए सूर्य की ऊषा और प्रत्यूषा के रहते जल में खड़े रहकर छठ व्रत किया जाता है।पौराणिक मान्यता के अनुसार छठी मैया या षष्ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं।शास्त्रों में षष्ठी देवी को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी कहा गया है। पुराणों में इन्हें माँ कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि पर होती है। षष्ठी देवी को ही बिहार-झारखंड में स्थानीय भाषा में छठ मैया कहा गया है।छठ पर्व परंपरा〰️〰️〰️〰️〰️यह पर्व चार दिनों तक चलता है। भैया दूज के तीसरे दिन से यह आरंभ होता है। पहले दिन सैंधा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। अगले दिन से उपवास आरंभ होता है। इस दिन रात में खीर बनती है। व्रतधारी रात में यह प्रसाद लेते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं। इस पूजा में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है; लहसून, प्याज वर्ज्य है। जिन घरों में यह पूजा होती है, वहां भक्तिगीत गाए जाते हैं। आजकल कुछ नई रीतियां भी आरंभ हो गई हैं, जैसे पंडाल और सूर्य देवता की मूर्ति की स्थापना करना। उसपर भी रोषनाई पर काफी खर्च होता है और सुबह के अर्घ्य के उपरांत आयोजनकर्ता माईक पर चिल्लाकर प्रसाद मांगते हैं। पटाखे भी जलाए जाते हैं। कहीं-कहीं पर तो ऑर्केस्ट्रा का भी आयोजन होता है; परंतु साथ ही साथ दूध, फल, उदबत्ती भी बांटी जाती है। पूजा की तैयारी के लिए लोग मिलकर पूरे रास्ते की सफाई करते हैं।छठ व्रत 〰️〰️〰️छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह प्रायः महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन भी कहा जाता है। चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है। भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रती फर्श पर एक कंबल या चादर के सहारे ही रात बिताई जाती है। इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं। पर व्रती ऐसे कपड़े पहनते हैं, जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की होती है। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं। ‘शुरू करने के बाद छठ पर्व को सालोंसाल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए। घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है।’ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। पुत्र की चाहत रखने वाली और पुत्र की कुशलता के लिए सामान्य तौर पर महिलाएं यह व्रत रखती हैं। किंतु पुरुष भी यह व्रत पूरी निष्ठा से रखते हैं।छठ पूजा विधि〰️〰️〰️〰️〰️छठ पूजा से पहले निम्न सामग्री जुटा लें और फिर सूर्य देव को विधि विधान से अर्घ्य दें।👉 बांस की 3 बड़ी टोकरी, बांस या पीतल के बने 3 सूप, थाली, दूध और ग्लास।👉 चावल, लाल सिंदूर, दीपक, नारियल, हल्दी, गन्ना, सुथनी, सब्जी और शकरकंदी।👉 नाशपती, बड़ा नींबू, शहद, पान, साबुत सुपारी, कैराव, कपूर, चंदन और मिठाई।👉 प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पुड़ी, सूजी का हलवा, चावल के बने लड्डू लें।सूर्य को अर्घ्य देने की विधि👉 बांस की टोकरी में उपरोक्त सामग्री रखें। सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखें और सूप में ही दीपक जलाएँ। फिर नदी में उतरकर सूर्य देव को अर्घ्य दें।पहला दिन नहाय खाय 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाइ कर उसे पवित्र बना लिया जाता है। इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है।दूसरे दिन लोहंडा और खरना 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।तीसरे दिन संध्या अर्घ्य 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया साँचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है।शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठव्रती एक नीयत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले का दृश्य बन जाता है।चौथा दिन उषा अर्घ्य 〰️〰️〰️〰️〰️〰️चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। व्रती वहीं पुनः इक्ट्ठा होते हैं जहाँ उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। अंत में व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं।छठ पूजा का पौराणिक महत्त्व〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️छठ पूजा की परंपरा और उसके महत्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक और लोक कथाएँ प्रचलित हैं।रामायण की मान्यता〰️〰️〰️〰️〰️〰️एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशिर्वाद प्राप्त किया था।महाभारत की मान्यता〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रोपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।पुराणों की मान्यता〰️〰️〰️〰️〰️〰️एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।छठ गीत 〰️〰️〰️लोकपर्व छठ के विभिन्न अवसरों पर जैसे प्रसाद बनाते समय, खरना के समय, अर्घ्य देने के लिए जाते हुए, अर्घ्य दान के समय और घाट से घर लौटते समय अनेकों सुमधुर और भक्ति भाव से पूर्ण लोकगीत गाए जाते हैं। गीत〰️〰️'केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मे़ड़रायकाँच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए'सेविले चरन तोहार हे छठी मइया। महिमा तोहर अपार।उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर।निंदिया के मातल सुरुज अँखियो न खोले हे।चार कोना के पोखरवाहम करेली छठ बरतिया से उनखे लागी।इस गीत में एक ऐसे ही तोते का जिक्र है जो केले के ऐसे ही एक गुच्छे के पास मंडरा रहा है। तोते को डराया जाता है कि अगर तुम इस पर चोंच मारोगे तो तुम्हारी शिकायत भगवान सूर्य से कर दी जाएगी जो तुम्हें माफ नही करेंगे। पर फिर भी तोता केले को जूठा कर देता है और सूर्य के कोप का भागी बनता है। पर उसकी भार्या सुगनी अब क्या करे बेचारी? कैसे सहे इस वियोग को ? अब तो ना देव या सूर्य कोई उसकी सहायता नहीं कर सकते आखिर पूजा की पवित्रता जो नष्ट की है उसने।केरवा जे फरेला घवद से ओह पर सुगा मेड़रायउ जे खबरी जनइबो अदिक (सूरज) से सुगा देले जुठियाएउ जे मरबो रे सुगवा धनुक से सुगा गिरे मुरझायउ जे सुगनी जे रोए ले वियोग से आदित होइ ना सहाय देव होइ ना सहायकाँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकति जाय... बहँगी लचकति जाय... बात जे पुछेलें बटोहिया बहँगी केकरा के जाय ? बहँगी केकरा के जाय ? तू त आन्हर हउवे रे बटोहिया, बहँगी छठी माई के जाय... बहँगी छठी माई के जाय... काँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकति जाय... बहँगी लचकति जाय... केरवा जे फरेला घवध से ओह पर सुगा मेंड़राय... ओह पर सुगा मेंड़राय... खबरि जनइबो अदित से सुगा देलें जूठियाय सुगा देलें जूठियाय... ऊ जे मरबो रे सुगवा धनुष से सुगा गिरे मुरझाय... सुगा गिरे मुरझाय... केरवा जे फरेला घवध से ओह पर सुगा मेंड़राय... ओह पर सुगा मेंड़राय... पटना के घाट पर नरियर नरियर किनबे जरूर... नरियर किनबो जरूर... हाजीपुर से केरवा मँगाई के अरघ देबे जरूर... अरघ देबे जरुर... आदित मनायेब छठ परबिया बर मँगबे जरूर... बर मँगबे जरूर... पटना के घाट पर नरियर नरियर किनबे जरूर... नरियर किनबो जरूर... पाँच पुतर अन धन लछमी, लछमी मँगबे जरूर... लछमी मँगबे जरूर... पान #सुपारी कचवनिया छठ पूजबे जरूर... #छठ पूजबे जरूर... हियरा के करबो रे कंचन वर मँगबे जरूर... वर मँगबे जरूर... पाँच पुतर अन धन लछमी, लछमी मँगबे जरूर... लछमी मँगबे जरूर... पुआ पकवान कचवनिया सूपवा भरबे जरूर... सूपवा भरबे जरूर... फर फूल भरबे दउरिया सेनूरा टिकबे जरूर... सेनूरा टिकबे जरुर... उहवें जे बाड़ी छठि मईया आदित रिझबे जरूर... आदित रिझबे जरूर... काँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकति जाय... बहँगी लचकति जाय... बात जे पुछेलें बटोहिया बहँगी केकरा के जाय ? बहँगी केकरा के जाय ? तू त आन्हर हउवे रे बटोहिया, बहँगी छठी माई के जाय... बहँगी छठी माई के जाय..छठ पूजा अर्घ्य मन्त्र समय〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ॐ सूर्य देवं नमस्ते स्तु गृहाणं करूणा करं।अर्घ्यं च फ़लं संयुक्त गन्ध माल्याक्षतै युतम् ।।पहला दिन〰️〰️〰️28 अक्टूबर - नहाय-खाय👉 दिन शुक्रवार को छठ पूजा का प्रथम दिन है। ऋषिकेश में इस दिन सूर्योदय: 06:30 एवं सूर्यास्त: शाम 5:26 पर होगा। इस दिन से छठ पूजा का पर्व प्रारंभ हो जाता है।दूसरा दिन〰️〰️〰️29 अक्टूबर - खरना👉 शनिवार को छठ पूजा का दूसरा दिन है। इसदिन सूर्योदय से सूर्यास्त लेकर सूर्यास्त तक अन्न और जल दोनों का त्याग करके उपवास किया जाता है। इस दिन सूर्योदय: 06:31 औऱ सूर्यास्त: शाम 05:35 पर ही होगा । दूसरे दिन के अंत में खीर और रोटी का प्रसाद बनाया जाता है। इसे व्रत करने वाले से लेकर परिवार के सभी लोगों में बांटा जाता है। रात में चांद को जल भी दिया जाता है।तीसरा दिन〰️〰️〰️〰️तीसरे दिन 30 अक्टूबर #रविवार को संध्या समय में सूर्य देवता को पहला अर्घ्य दिया जाता है। इसदिन भी पूरे दिन का उपवास किया जाता है। इस दिन सूर्योदय: 06:32 सूर्यास्त: शाम 05:34 पर होगा। तीसरे दिन शाम को सूर्यास्त से पहले सूर्य देवता को छठ पूजा का पहला अर्घ्य दिया जाता है।चौथा दिन〰️〰️〰️यह छठ पूजा का अंतिम दिना होता है। 31 अक्टूबर, सोमवार की सुबह सूर्य देवता को अर्घ्य दिया जाएगा। यह छठ पूजा का दूसरा अर्घ्य होता है जिसके बाद 36 घंटे के लंबे #उपवास का समापन हो जाता है। इस दिन सूर्योदय: 06:33 तथा सूर्यास्त: 05:34 पर होगा।

🌹🙏#छठ_पूजा 🙏🌹〰️〰️🌼〰️〰️🌷बाल वनिता महिला आश्रम🌷कार्तिक मास की अमावस्या को दीवाली मनाने के तुरंत बाद मनाए जाने वाले इस चार दिवसिए व्रत की सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है। इसी कारण इस व्रत का नाम करण छठ व्रत हो गया। छठ पर्व षष्ठी तिथि का अपभ्रंश है।#सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है। इस पर्व को वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ पर्व को चैती छठ व कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी पर मनाए जाने वाले पर्व को कार्तिकी छठ कहा जाता है। #पारिवारिक #सुख-स्मृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। छठ पर्व में सूर्य और छठी मैया की पूजा 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️छठ पूजा में सूर्य देव की पूजा की जाती है और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देने वाले देवता है, जो पृथ्वी पर सभी प्राणियों के जीवन का आधार हैं। सूर्य देव के साथ-साथ छठ पर छठी मैया की पूजा का भी विधान है। सूर्य और छठी मैया का संबंध भाई बहन का है। मूलप्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने के कारण इनका नाम षष्ठी पड़ा। वह कार्तिकेय की पत्नी भी हैं। षष्ठी देवी देवताओं की देवसेना भी कही जाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने की थी। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो षष्ठी के दिन विशेष खगोलिय परिवर्तन होता है। तब सूर्य की पराबैगनी किरणें असामान्य रूप से एकत्र होती हैं और इनके कुप्रभावों से बचने के लिए सूर्य की ऊषा और प्रत्यूषा के रहते जल में खड़े रहकर छठ व्रत किया जाता है।पौराणिक मान्यता के अनुसार छठी मैया या षष्ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्हें दीर्घायु प्रदान करती हैं।शास्त्रों में षष्ठी देवी को ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी कहा गया है। पुराणों में इन्हें माँ कात्यायनी भी कहा गया है, जिनकी पूजा नवरात्रि में षष्ठी तिथि पर होती है। षष्ठी देवी को ही बिहार-झारखंड में स्थानीय भाषा में छठ मैया कहा गया है।छठ पर्व परंपरा〰️〰️〰️〰️〰️यह पर्व चार दिनों तक चलता है। भैया दूज के तीसरे दिन से यह आरंभ होता है। पहले दिन सैंधा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दू की सब्जी प्रसाद के रूप में ली जाती है। अगले दिन से उपवास आरंभ होता है। इस दिन रात में खीर बनती है। व्रतधारी रात में यह प्रसाद लेते हैं। तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते हैं। अंतिम दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य चढ़ाते हैं। इस पूजा में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है; लहसून, प्याज वर्ज्य है। जिन घरों में यह पूजा होती है, वहां भक्तिगीत गाए जाते हैं। आजकल कुछ नई रीतियां भी आरंभ हो गई हैं, जैसे पंडाल और सूर्य देवता की मूर्ति की स्थापना करना। उसपर भी रोषनाई पर काफी खर्च होता है और सुबह के अर्घ्य के उपरांत आयोजनकर्ता माईक पर चिल्लाकर प्रसाद मांगते हैं। पटाखे भी जलाए जाते हैं। कहीं-कहीं पर तो ऑर्केस्ट्रा का भी आयोजन होता है; परंतु साथ ही साथ दूध, फल, उदबत्ती भी बांटी जाती है। पूजा की तैयारी के लिए लोग मिलकर पूरे रास्ते की सफाई करते हैं।छठ व्रत 〰️〰️〰️छठ उत्सव के केंद्र में छठ व्रत है जो एक कठिन तपस्या की तरह है। यह प्रायः महिलाओं द्वारा किया जाता है किंतु कुछ पुरुष भी यह व्रत रखते हैं। व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन भी कहा जाता है। चार दिनों के इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है। भोजन के साथ ही सुखद शैय्या का भी त्याग किया जाता है। पर्व के लिए बनाए गए कमरे में व्रती फर्श पर एक कंबल या चादर के सहारे ही रात बिताई जाती है। इस उत्सव में शामिल होने वाले लोग नए कपड़े पहनते हैं। पर व्रती ऐसे कपड़े पहनते हैं, जिनमें किसी प्रकार की सिलाई नहीं की होती है। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनकर छठ करते हैं। ‘शुरू करने के बाद छठ पर्व को सालोंसाल तब तक करना होता है, जब तक कि अगली पीढ़ी की किसी विवाहित महिला को इसके लिए तैयार न कर लिया जाए। घर में किसी की मृत्यु हो जाने पर यह पर्व नहीं मनाया जाता है।’ऐसी मान्यता है कि छठ पर्व पर व्रत करने वाली महिलाओं को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। पुत्र की चाहत रखने वाली और पुत्र की कुशलता के लिए सामान्य तौर पर महिलाएं यह व्रत रखती हैं। किंतु पुरुष भी यह व्रत पूरी निष्ठा से रखते हैं।छठ पूजा विधि〰️〰️〰️〰️〰️छठ पूजा से पहले निम्न सामग्री जुटा लें और फिर सूर्य देव को विधि विधान से अर्घ्य दें।👉 बांस की 3 बड़ी टोकरी, बांस या पीतल के बने 3 सूप, थाली, दूध और ग्लास।👉 चावल, लाल सिंदूर, दीपक, नारियल, हल्दी, गन्ना, सुथनी, सब्जी और शकरकंदी।👉 नाशपती, बड़ा नींबू, शहद, पान, साबुत सुपारी, कैराव, कपूर, चंदन और मिठाई।👉 प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पुड़ी, सूजी का हलवा, चावल के बने लड्डू लें।सूर्य को अर्घ्य देने की विधि👉 बांस की टोकरी में उपरोक्त सामग्री रखें। सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा प्रसाद सूप में रखें और सूप में ही दीपक जलाएँ। फिर नदी में उतरकर सूर्य देव को अर्घ्य दें।पहला दिन नहाय खाय 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है। सबसे पहले घर की सफाइ कर उसे पवित्र बना लिया जाता है। इसके पश्चात छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की शुरुआत करते हैं। घर के सभी सदस्य व्रती के भोजनोपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं। भोजन के रूप में कद्दू-दाल और चावल ग्रहण किया जाता है। यह दाल चने की होती है।दूसरे दिन लोहंडा और खरना 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिन भर का उपवास रखने के बाद शाम को भोजन करते हैं। इसे ‘खरना’ कहा जाता है। खरना का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है। प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुए चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिट्ठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है। इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है।तीसरे दिन संध्या अर्घ्य 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ, जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू, जिसे लड़ुआ भी कहा जाता है, बनाते हैं। इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया साँचा और फल भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है।शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बाँस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं। सभी छठव्रती एक नीयत तालाब या नदी किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य दिया जाता है तथा छठी मैया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है। इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले का दृश्य बन जाता है।चौथा दिन उषा अर्घ्य 〰️〰️〰️〰️〰️〰️चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है। व्रती वहीं पुनः इक्ट्ठा होते हैं जहाँ उन्होंने शाम को अर्घ्य दिया था। पुनः पिछले शाम की प्रक्रिया की पुनरावृत्ति होती है। अंत में व्रति कच्चे दूध का शरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं।छठ पूजा का पौराणिक महत्त्व〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️छठ पूजा की परंपरा और उसके महत्व का प्रतिपादन करने वाली अनेक पौराणिक और लोक कथाएँ प्रचलित हैं।रामायण की मान्यता〰️〰️〰️〰️〰️〰️एक मान्यता के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को भगवान राम और माता सीता ने उपवास किया और सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को सूर्योदय के समय पुनः अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशिर्वाद प्राप्त किया था।महाभारत की मान्यता〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️एक अन्य मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य का परम भक्त था। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में ख़ड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देता था। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बना था। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही पद्धति प्रचलित है।कुछ कथाओं में पांडवों की पत्नी द्रोपदी द्वारा भी सूर्य की पूजा करने का उल्लेख है। वे अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थीं।पुराणों की मान्यता〰️〰️〰️〰️〰️〰️एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद को कोई संतान नहीं थी, तब महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इसके प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ परंतु वह मृत पैदा हुआ। प्रियवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। राजन तुम मेरा पूजन करो तथा और लोगों को भी प्रेरित करो। राजा ने पुत्र इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। यह पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी।छठ गीत 〰️〰️〰️लोकपर्व छठ के विभिन्न अवसरों पर जैसे प्रसाद बनाते समय, खरना के समय, अर्घ्य देने के लिए जाते हुए, अर्घ्य दान के समय और घाट से घर लौटते समय अनेकों सुमधुर और भक्ति भाव से पूर्ण लोकगीत गाए जाते हैं। गीत〰️〰️'केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मे़ड़रायकाँच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए'सेविले चरन तोहार हे छठी मइया। महिमा तोहर अपार।उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर।निंदिया के मातल सुरुज अँखियो न खोले हे।चार कोना के पोखरवाहम करेली छठ बरतिया से उनखे लागी।इस गीत में एक ऐसे ही तोते का जिक्र है जो केले के ऐसे ही एक गुच्छे के पास मंडरा रहा है। तोते को डराया जाता है कि अगर तुम इस पर चोंच मारोगे तो तुम्हारी शिकायत भगवान सूर्य से कर दी जाएगी जो तुम्हें माफ नही करेंगे। पर फिर भी तोता केले को जूठा कर देता है और सूर्य के कोप का भागी बनता है। पर उसकी भार्या सुगनी अब क्या करे बेचारी? कैसे सहे इस वियोग को ? अब तो ना देव या सूर्य कोई उसकी सहायता नहीं कर सकते आखिर पूजा की पवित्रता जो नष्ट की है उसने।केरवा जे फरेला घवद से ओह पर सुगा मेड़रायउ जे खबरी जनइबो अदिक (सूरज) से सुगा देले जुठियाएउ जे मरबो रे सुगवा धनुक से सुगा गिरे मुरझायउ जे सुगनी जे रोए ले वियोग से आदित होइ ना सहाय देव होइ ना सहायकाँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकति जाय... बहँगी लचकति जाय... बात जे पुछेलें बटोहिया बहँगी केकरा के जाय ? बहँगी केकरा के जाय ? तू त आन्हर हउवे रे बटोहिया, बहँगी छठी माई के जाय... बहँगी छठी माई के जाय... काँच ही बाँस 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जाय... बहँगी लचकति जाय... बात जे पुछेलें बटोहिया बहँगी केकरा के जाय ? बहँगी केकरा के जाय ? तू त आन्हर हउवे रे बटोहिया, बहँगी छठी माई के जाय... बहँगी छठी माई के जाय..छठ पूजा अर्घ्य मन्त्र समय〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ॐ सूर्य देवं नमस्ते स्तु गृहाणं करूणा करं।अर्घ्यं च फ़लं संयुक्त गन्ध माल्याक्षतै युतम् ।।पहला दिन〰️〰️〰️28 अक्टूबर - नहाय-खाय👉 दिन शुक्रवार को छठ पूजा का प्रथम दिन है। ऋषिकेश में इस दिन सूर्योदय: 06:30 एवं सूर्यास्त: शाम 5:26 पर होगा। इस दिन से छठ पूजा का पर्व प्रारंभ हो जाता है।दूसरा दिन〰️〰️〰️29 अक्टूबर - खरना👉 शनिवार को छठ पूजा का दूसरा दिन है। इसदिन सूर्योदय से सूर्यास्त लेकर सूर्यास्त तक अन्न और जल दोनों का त्याग करके उपवास किया जाता है। इस दिन सूर्योदय: 06:31 औऱ सूर्यास्त: शाम 05:35 पर ही होगा । दूसरे दिन के अंत में खीर और रोटी का प्रसाद बनाया जाता है। इसे व्रत करने वाले से लेकर परिवार के सभी लोगों में बांटा जाता है। रात में चांद को जल भी दिया जाता है।तीसरा दिन〰️〰️〰️〰️तीसरे दिन 30 अक्टूबर #रविवार को संध्या समय में सूर्य देवता को पहला अर्घ्य दिया जाता है। इसदिन भी पूरे दिन का उपवास किया जाता है। इस दिन सूर्योदय: 06:32 सूर्यास्त: शाम 05:34 पर होगा। तीसरे दिन शाम को सूर्यास्त से पहले सूर्य देवता को छठ पूजा का पहला अर्घ्य दिया जाता है।चौथा दिन〰️〰️〰️यह छठ पूजा का अंतिम दिना होता है। 31 अक्टूबर, सोमवार की सुबह सूर्य देवता को अर्घ्य दिया जाएगा। यह छठ पूजा का दूसरा अर्घ्य होता है जिसके बाद 36 घंटे के लंबे #उपवास का समापन हो जाता है। इस दिन सूर्योदय: 06:33 तथा सूर्यास्त: 05:34 पर होगा।

Rishi Sunak बेशुमार संपत्ति के हैं मालिक, राजनीति में आने से पहले करते थे ये काम बलुवाना न्यूज पंजाब भारतीय मूल के ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री आवास 10-डाउनिंग स्ट्रीट में पहुंचने वाले हैं. उन्हें ब्रिटेन का अगला प्रधानमंत्री चुन लिया गया है. अपनी सियासत के अलावा सुनक अपनी संपत्ति को लेकर भी काफी चर्चा में रहे हैं. उनकी पत्नी अक्षता मूर्ति यूरोप की सबसे धनी महिलाओं में शामिल हैंअपनी संपत्ति की वजह से भी सुर्खियों में रहते हैं ऋषि सुनकअपनी संपत्ति की वजह से भी सुर्खियों में रहते हैं ऋषि सुनकभारतीय मूल के ऋषि सुनक (Rishi Sunak) ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चुने गए हैं. वो पहले भारतवंशी हैं, जो ब्रिटेन में प्रधानमंत्री का पद संभालेंगे. सुनक राजनीति की अलावा अपनी संपत्ति को लेकर भी सुर्खियों में रहे हैं. सुनक की शादी इंफोसिस के सह-संस्थापक एन आर नारायणन मूर्ति की बेटी अक्षता मूर्ति से हुई है. इस साल संडे टाइम्स की रिच लिस्ट में सुनक यूके के सबसे धनी 250 लोगों की सूची में 222वां स्थान पर थे. रिपोर्ट में, ऋषि सुनक और उनकी पत्नी अक्षता मूर्ति की 730 मिलियन पाउंड बताई गई थी. संपत्ति की वैल्यूसुनक को हाउस ऑफ कॉमन्स में सबसे अमीर व्यक्ति कहा जाता है. सुनक और अक्षता मूर्ति के पास 15 मिलियन पाउंड की अचल संपत्ति है. सुनक और मूर्ति के पास चार घर हैं. दो लंदन में, एक यॉर्कशायर में और एक घर लॉस एंजिल्स में है. केंसिंग्टन में पांच बेडरूम वाले घर की कीमत अकेले 7 मिलियन पाउंड बताई जाती है. इस चार मंजिले घर में एक गार्डन भी है.लंदन के ओल्ड ब्रॉम्प्टन रोड पर एक दोनों का दूसरा घर है. यॉर्कशायर में दंपति के पास एक ग्रेड- II लिस्टेड जॉर्जियाई हवेली है. यह 12 एकड़ में फैली है और इसमें एक सजावटी झील भी है. इसके अलावा कैलिफोर्निया में एक पेंटहाउस भी है.ऋषि सुनक और अक्षता मूर्तिकितनी मिलेगी सैलरी?चांसलर के रूप में सुनक का सरकारी वेतन 1,51,649 पाउंड था. हालांकि, प्रधानमंत्री बनने की बाद उनकी सैलरी बढ़ जाएगी. रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री का कुल वेतन 161,401 पाउंड है. यह प्रधानमंत्री और एक सांसद की सैलरी को मिलाकर है. इस तरह प्रधानमंत्री को 79,496 पाउंड की रकम वेतन के रूप में मिलता है. वहीं, बाकी की राशि एक सांसद के रूप में उन्हें मिलती है.वनिता कासनियां #पंजाब द्वाराराजनीति में आने से पहले क्या करते थे सुनकराजनीति में आने से पहले सुनक 2001 से 2004 तक निवेश बैंक, गोल्डमैन सैक्स के विश्लेषक थे और बाद में दो हेज फंडों में हिस्सेदार भी रहे. हालांकि, उनकी संपत्ति का अधिकांश हिस्सा अक्षता मूर्ति से शादी के बाद का है. अक्षता के पास इंफोसिस में 690 मिलियन पाउंड की 0.93 फीसदी हिस्सेदारी है.भारत से कैसा कनेक्शन?ऋषि सुनक का जन्म 12 मई 1980 को ब्रिटेन के साउथम्पैटन में हुआ था. ऋषि के पिता डॉक्टर और मां एक दवाखाना चलाती थीं. ऋषि सुनक के दादा-दादी का जन्म पंजाब प्रांत (ब्रिटिश इंडिया) में हुआ था, जबकि ऋषि सुनक के पिता का जन्म केन्या तो उनकी मां का जन्म तंजानिया में हुआ था. इतिहास में यह पहला मौका है, जब कोई भारतीय मूल का व्यक्ति ब्रिटेन में पीएम का पद संभालेगा.

गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक।विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।।गौ रक्षा व पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक पर्व गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट महोत्सव की आपको हार्दिक बधाई। ठाकुर जी महाराज का आशीर्वाद सदैव हम सभी पर बना रहे। #goverdhanpoojaसत्कर्म करते समय क्यों दी जाती है दक्षिणा महालक्ष्मी का कलावतार हैं ‘दक्षिणा’ : - देवी ‘दक्षिणा’ महालक्ष्मीजी के दाहिने कन्धे (अंश) से प्रकट हुई हैं इसलिए दक्षिणा कहलाती हैं। ये कमला (लक्ष्मी) की कलावतार व भगवान विष्णु की शक्तिस्वरूपा हैं। दक्षिणा को शुभा, शुद्धिदा, शुद्धिरूपा व सुशीला–इन नामों से भी जाना जाता है। ये उपासक को सभी यज्ञों, सत्कर्मों का फल प्रदान करती हैं।गोलोक में भगवान श्रीकृष्ण को अत्यन्त प्रिय सुशीला नाम की एक गोपी थी जो विद्या, रूप, गुण व आचार में लक्ष्मी के समान थी। वह श्रीराधा की प्रधान सखी थी। भगवान श्रीकृष्ण का उससे विशेष स्नेह था। श्रीराधाजी को यह बात पसन्द न थी और उन्होंने भगवान की लीला को समझे बिना ही सुशीला को गोलोक से बाहर कर दिया।गोलोक से च्युत हो जाने पर सुशीला कठिन तप करने लगी और उस कठिन तप के प्रभाव से वे विष्णुप्रिया महालक्ष्मी के शरीर में प्रवेश कर गयीं। भगवान की लीला से देवताओं को यज्ञ का फल मिलना बंद हो गया। घबराए हुए सभी देवता ब्रह्माजी के पास गए। ब्रह्माजी ने भगवान विष्णु का ध्यान किया। भगवान विष्णु ने अपनी प्रिया महालक्ष्मी के विग्रह से एक अलौकिक देवी ‘मर्त्यलक्ष्मी’ को प्रकट कर उसको दक्षिणा’ नाम दिया और ब्रह्माजी को सौंप दिया।ब्रह्माजी ने यज्ञपुरुष के साथ दक्षिणा का विवाह कर दिया। देवी दक्षिणा के ‘फल’ नाम का पुत्र हुआ। इस प्रकार भगवान यज्ञ अपनी पत्नी दक्षिणा व पुत्र फल से सम्पन्न होने पर कर्मों का फल प्रदान करने लगे। इससे देवताओं को यज्ञ का फल मिलने लगा। इसीलिए शास्त्रों में दक्षिणा के बिना यज्ञ करने का निषेध है। दक्षिणा की कृपा के बिना प्राणियों के सभी कर्म निष्फल हो जाते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश व अन्य देवता भी दक्षिणाहीन कर्मों का फल देने में असमर्थ रहते हैं।बिना दक्षिणा के किया गया सत्कर्म राजा बलि के पेट में चला जाता है। पूर्वकाल में राजा बलि ने तीन पग भूमि के रूप में त्रिलोकी का अपना राज्य जब भगवान वामन को दान कर दिया तब भगवान वामन ने बलि के भोजन (आहार) के लिए दक्षिणाहीन कर्म उसे अर्पण कर दिया। श्रद्धाहीन व्यक्तियों द्वारा श्राद्ध में दी गयी वस्तु को भी बलि भोजन रूप में ग्रहण करते हैं।मनुष्य को सत्कर्म करने के बाद तुरन्त दक्षिणा देनी चाहिए तभी कर्म का तत्काल फल प्राप्त होता है। यदि जानबूझकर या अज्ञान से धार्मिक कार्य समाप्त हो जाने पर ब्राह्मण को दक्षिणा नहीं दी जाती, तो दक्षिणा की संख्या बढ़ती जाती है, साथ ही सारा कर्म भी निष्फल हो जाता है। संकल्प की हुई दक्षिणा न देने से (ब्राह्मण के अधिकार का धन रखने से) मनुष्य रोगी व दरिद्र हो जाता है व उससे लक्ष्मी, देवता व पितर तीनों ही रुष्ट हो जाते हैं।शास्त्रों में दक्षिणा के बहुत ही अनूठे उदाहरण देखने को मिलते हैं |श्रीकृष्ण और बलराम दोनों भाईयों ने गुरु सान्दीपनि के आश्रम में रहकर 64 दिनों के अल्पसमय में सम्पूर्ण शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा पूरी करने के पश्चात श्रीकृष्ण और बलराम ने गुरु सान्दीपनि से गुरुदक्षिणा माँगने की प्रार्थना की। अगस्त्यमुनि की तरह अनेक विद्याओं के समुद्र को एक ही सांस में सोख लेने की श्रीकृष्ण की अद्भुत शक्ति देखकर गुरुजी भी ताड़ गए और उन्होंने कसकर गुरु दक्षिणा मांगने का विचार किया। ऋषि ने अपनी पत्नी को कुछ मांगने को कहा। गुरुपत्नी ने श्रीकृष्ण से गुरुदक्षिणा के रूप में अकालमृत्यु को प्राप्त हुए अपने पुत्र को वापिस ला देने की बात कही।सारी सृष्टि के रचयिता विष्णुरूपी भगवान श्रीकृष्ण अपनी गुरुमाता के दुःख को कैसे देख सकते थे? उन्होंने गुरुपुत्र को पुनर्जीवन का वरदान दिया। दोनों भाई प्रभासक्षेत्र में गये। उन्हें पता चला कि शंखासुर नामक राक्षस गुरुपुत्र को ले गया है, जो समुद्र के नीचे पवित्र शंख में रहता है, जिसे ‘पांचजन्य’ कहते हैं। दोनों भाइयों ने राक्षस का वध कर ‘पांचजन्य’ में चारों ओर ऋषिपुत्र को खोजा। ऋषिपुत्र को उसमें न पाकर वे शंख लेकर यम के पास पहुँचे और उसे बजाने लगे।यम ने दोनों भ्राताओं की पूजा करते हुए कहा–’हे सर्वव्यापी भगवान, अपनी लीला के कारण आप मानवस्वरूप में हैं। मैं आप दोनों के लिए क्या कर सकता हूँ?’श्रीकृष्ण ने यमराज से कहा–’मेरे गुरुपुत्र को मुझे सौंप दीजिये, जो अपने कर्मों के कारण यहाँ लाया गया था।’ इस प्रकार श्रीकृष्ण ने अपने गुरु को उनका जीवित पुत्र सौंपा और अपनी गुरुदक्षिणा पूर्ण की।गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरुदक्षिणा में दाहिने हाथ का अंगूठा मांगा। दाहिने हाथ का अंगूठा न रहे तो बाण चलाया ही कैसे जा सकता है? एकलव्य की वर्षों की अभिलाषा, परिश्रम व अभ्यास–सब व्यर्थ हुआ जा रहा था, किंतु एकलव्य के मुख पर खेद की एक रेखा तक नहीं आयी। उस वीर गुरुभक्त बालक ने बायें हाथ में छुरा लिया और तुरंत अपने दाहिने हाथ का अंगूठा काटकर गुरुदेव के सामने धर दिया।भरे कण्ठ से द्रोणाचार्य ने कहा–’पुत्र! सृष्टि में धनुर्विद्या के अनेकों महान ज्ञाता हुए हैं और होंगे, किंतु मैं आशीर्वाद देता हूँ कि तुम्हारे इस भव्य त्याग और गुरुभक्ति का यश सदा अमर रहेगा।’प्राचीन भारत में गुरु और शिष्य का ऐसा पवित्र और समर्पित रिश्ता था।#Vnita#brahampuriwalebaba #alwarwalebabakijai #palamwalebaba #rabriwalebaba #alwarwalebaba #baba

गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक।विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।।गौ रक्षा व पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक पर्व गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट महोत्सव की आपको हार्दिक बधाई। ठाकुर जी महाराज का आशीर्वाद सदैव हम सभी पर बना रहे। #goverdhanpoojaसत्कर्म करते समय क्यों दी जाती है दक्षिणा महालक्ष्मी का कलावतार हैं ‘दक्षिणा’ : - देवी ‘दक्षिणा’ महालक्ष्मीजी के दाहिने कन्धे (अंश) से प्रकट हुई हैं इसलिए दक्षिणा कहलाती हैं। ये कमला (लक्ष्मी) की कलावतार व भगवान विष्णु की शक्तिस्वरूपा हैं। दक्षिणा को शुभा, शुद्धिदा, शुद्धिरूपा व सुशीला–इन नामों से भी जाना जाता है। ये उपासक को सभी यज्ञों, सत्कर्मों का फल प्रदान करती हैं।गोलोक में भगवान श्रीकृष्ण को अत्यन्त प्रिय सुशीला नाम की एक गोपी थी जो विद्या, रूप, गुण व आचार में लक्ष्मी के समान थी। वह श्रीराधा की प्रधान सखी थी। भगवान श्रीकृष्ण का उससे विशेष स्नेह था। श्रीराधाजी को यह बात पसन्द न थी और उन्होंने भगवान की लीला को समझे बिना ही सुशीला को गोलोक से बाहर कर दिया।गोलोक से च्युत हो जाने पर सुशीला कठिन तप करने लगी और उस कठिन तप के प्रभाव से वे विष्णुप्रिया महालक्ष्मी के शरीर में प्रवेश कर गयीं। भगवान की लीला से देवताओं को यज्ञ का फल मिलना बंद हो गया। घबराए हुए सभी देवता ब्रह्माजी के पास गए। ब्रह्माजी ने भगवान विष्णु का ध्यान किया। भगवान विष्णु ने अपनी प्रिया महालक्ष्मी के विग्रह से एक अलौकिक देवी ‘मर्त्यलक्ष्मी’ को प्रकट कर उसको दक्षिणा’ नाम दिया और ब्रह्माजी को सौंप दिया।ब्रह्माजी ने यज्ञपुरुष के साथ दक्षिणा का विवाह कर दिया। देवी दक्षिणा के ‘फल’ नाम का पुत्र हुआ। इस प्रकार भगवान यज्ञ अपनी पत्नी दक्षिणा व पुत्र फल से सम्पन्न होने पर कर्मों का फल प्रदान करने लगे। इससे देवताओं को यज्ञ का फल मिलने लगा। इसीलिए शास्त्रों में दक्षिणा के बिना यज्ञ करने का निषेध है। दक्षिणा की कृपा के बिना प्राणियों के सभी कर्म निष्फल हो जाते हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश व अन्य देवता भी दक्षिणाहीन कर्मों का फल देने में असमर्थ रहते हैं।बिना दक्षिणा के किया गया सत्कर्म राजा बलि के पेट में चला जाता है। पूर्वकाल में राजा बलि ने तीन पग भूमि के रूप में त्रिलोकी का अपना राज्य जब भगवान वामन को दान कर दिया तब भगवान वामन ने बलि के भोजन (आहार) के लिए दक्षिणाहीन कर्म उसे अर्पण कर दिया। श्रद्धाहीन व्यक्तियों द्वारा श्राद्ध में दी गयी वस्तु को भी बलि भोजन रूप में ग्रहण करते हैं।मनुष्य को सत्कर्म करने के बाद तुरन्त दक्षिणा देनी चाहिए तभी कर्म का तत्काल फल प्राप्त होता है। यदि जानबूझकर या अज्ञान से धार्मिक कार्य समाप्त हो जाने पर ब्राह्मण को दक्षिणा नहीं दी जाती, तो दक्षिणा की संख्या बढ़ती जाती है, साथ ही सारा कर्म भी निष्फल हो जाता है। संकल्प की हुई दक्षिणा न देने से (ब्राह्मण के अधिकार का धन रखने से) मनुष्य रोगी व दरिद्र हो जाता है व उससे लक्ष्मी, देवता व पितर तीनों ही रुष्ट हो जाते हैं।शास्त्रों में दक्षिणा के बहुत ही अनूठे उदाहरण देखने को मिलते हैं |श्रीकृष्ण और बलराम दोनों भाईयों ने गुरु सान्दीपनि के आश्रम में रहकर 64 दिनों के अल्पसमय में सम्पूर्ण शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा पूरी करने के पश्चात श्रीकृष्ण और बलराम ने गुरु सान्दीपनि से गुरुदक्षिणा माँगने की प्रार्थना की। अगस्त्यमुनि की तरह अनेक विद्याओं के समुद्र को एक ही सांस में सोख लेने की श्रीकृष्ण की अद्भुत शक्ति देखकर गुरुजी भी ताड़ गए और उन्होंने कसकर गुरु दक्षिणा मांगने का विचार किया। ऋषि ने अपनी पत्नी को कुछ मांगने को कहा। गुरुपत्नी ने श्रीकृष्ण से गुरुदक्षिणा के रूप में अकालमृत्यु को प्राप्त हुए अपने पुत्र को वापिस ला देने की बात कही।सारी सृष्टि के रचयिता विष्णुरूपी भगवान श्रीकृष्ण अपनी गुरुमाता के दुःख को कैसे देख सकते थे? उन्होंने गुरुपुत्र को पुनर्जीवन का वरदान दिया। दोनों भाई प्रभासक्षेत्र में गये। उन्हें पता चला कि शंखासुर नामक राक्षस गुरुपुत्र को ले गया है, जो समुद्र के नीचे पवित्र शंख में रहता है, जिसे ‘पांचजन्य’ कहते हैं। दोनों भाइयों ने राक्षस का वध कर ‘पांचजन्य’ में चारों ओर ऋषिपुत्र को खोजा। ऋषिपुत्र को उसमें न पाकर वे शंख लेकर यम के पास पहुँचे और उसे बजाने लगे।यम ने दोनों भ्राताओं की पूजा करते हुए कहा–’हे सर्वव्यापी भगवान, अपनी लीला के कारण आप मानवस्वरूप में हैं। मैं आप दोनों के लिए क्या कर सकता हूँ?’श्रीकृष्ण ने यमराज से कहा–’मेरे गुरुपुत्र को मुझे सौंप दीजिये, जो अपने कर्मों के कारण यहाँ लाया गया था।’ इस प्रकार श्रीकृष्ण ने अपने गुरु को उनका जीवित पुत्र सौंपा और अपनी गुरुदक्षिणा पूर्ण की।गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरुदक्षिणा में दाहिने हाथ का अंगूठा मांगा। दाहिने हाथ का अंगूठा न रहे तो बाण चलाया ही कैसे जा सकता है? एकलव्य की वर्षों की अभिलाषा, परिश्रम व अभ्यास–सब व्यर्थ हुआ जा रहा था, किंतु एकलव्य के मुख पर खेद की एक रेखा तक नहीं आयी। उस वीर गुरुभक्त बालक ने बायें हाथ में छुरा लिया और तुरंत अपने दाहिने हाथ का अंगूठा काटकर गुरुदेव के सामने धर दिया।भरे कण्ठ से द्रोणाचार्य ने कहा–’पुत्र! सृष्टि में धनुर्विद्या के अनेकों महान ज्ञाता हुए हैं और होंगे, किंतु मैं आशीर्वाद देता हूँ कि तुम्हारे इस भव्य त्याग और गुरुभक्ति का यश सदा अमर रहेगा।’प्राचीन भारत में गुरु और शिष्य का ऐसा पवित्र और समर्पित रिश्ता था।#Vnita#brahampuriwalebaba #alwarwalebabakijai #palamwalebaba #rabriwalebaba #alwarwalebaba #baba

अपने दिमाग को कैसे बढ़ाएं ? दिमाग को अधिक विकसित करने के कूछ तरीके 1- अपनी खोपड़ी में से कभी भी भूलकर सफेद बालों को नही उखाड़ना चाहिए। वनिता कासनियां पंजाब द्वारा Note- अपनी खोपड़ी में से बाल इसलिए नही उखाड़ने चाहिए क्योंकि जब हम अपनी खोपड़ी में से बालों को उखाड़ते हैं तो दिमाग की नशे सिकुड़ जाती है।जो कि हमारे दिमाग के लिए अच्छा नहीं है। 2- दिन में 4 या 5 बार अपने दूसरे हाथ से लिखने की कोशिश करें। Note-; दिन में अपने दूसरे हाथ से लिखने की कोशिश इसलिए करें, जब हम अपने दूसरे हाथ से लिखेंगे तो उस समय हमारे दिमाग के पास अलग सकेंत जाएगा क्योंकि यह काम हमारी दिनचर्या से अलग है तो दिमाग को इस कार्य को समझने के लिए ओर नेरोसेल्स विकसित करने पड़ेंगे जो हमारे दिमाग के लिए बहुत ही अच्छा है। 3- पूरे दिन में एक या दो घंटे किताब को उलटी करके जरूर पढ़ें। Note-; इस तकनीक को अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भी अपनाते हैं। दिन में एक दो घंटे किताब को उलटी करके की कोशिश जरूर करें, जब हम किताब को उलटी करके पढ़ते हैं तो हमारी एकाग्रता में बहुत तेज विकास होता है। क्योकि उलटी करके पढ़ने के दौरान नए नेरोसेल्स बनने की प्रक्रिया थोड़ी अधिक होती है। 4- रात को नींद पूरी ले। Note-; जो अपने दिमाग से अपनी क्षमता से ज्यादा काम लेते हैं।वो लोग पढ़े लिखे अनपढ़ होते है।क्योंकि वो यह नही जानते हैं कि दिमाग अच्छी तरह से याद जब ही कर पायेगा जब दिमाग को भोजन पूरा मिलेगा।और दिमाग का भोजन होता है।लगभग 7 घण्टे की अच्छी नींद। 5- किताब को बार बार याद करने से अच्छा है।उसको समझ लेना। Note -; इस बात को आप जानते हैं कि याद किया गया। exam में अच्छे अंक तो ला सकते हैं। लेकिन कॉलेज के आपको अपने मन पसंद जॉब नहीं मिल पाएगी। इसलिए विषयों को याद करने की अपेक्षा उनको समझकर याद करो। 6-; दो घंटे लगातार काम करने के बाद,10 मिनट का आराम जरूर ले। Note-; दो घंटे काम करने के बाद या पढ़ने के बाद 15 मिंनट आराम बहुत जरूरी होता है।आप यह कभी भी मत समझना कि 15 मिंनट आराम की बेकार गयी। आराम करने से आपका दिमाग अधिक बड़ेंगा। क्योकिं आराम के दौरान किये गए काम को समझकर ओर अच्छी तरह से काम करेंगा। 7- ; जब दिमाग में अधिक विचार आ रहे हो तो उस समय नही पढ़े।कुछ समय बाद पढ़े। Note-; जिस समय दिमाग में विचार आ रहे हो उस समय नही पढ़े अगर समय आप पढ़ते हो तो उस समय की पढ़ाई बेकार जाएगी।क्योकिं जो आपने पढ़ा है दिमाग उस जानकारी को एकत्रित नही कर पायेगा।फिर आपकी मेहनत बेकार चली जाएगी। क्योंकि उस समय में आपका दिमाग अन्य विचारों में busy था। 8- कार्य कितना भी कठिन हो उस सरल समझकर हल करों। Note-;; मन के हारे हार जाते हैं।मन के जीते जीत जाते हैं।काम कितना भी बड़ा हो उसे सरल समझकर हल करें।ऐसा करने से आपका दिमाग सही तरीके से किसी भी काम मे फैसला ले सकता है। pic from गूगल 9- आज का काम आज ही समाप्त करों। Note-; अगर आप आज के कार्य को आज ही नही समाप्त करते होतो आपका दिमाग आलसी हो सकता है।अगर आपका दिमाग…………..ओर अधिक पढ़े। बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम