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सात सुख मानव के हैं? By वनिता कासनियां पंजाब ? 1. पहला सुख निरोगी काया अर्थात हमारे शरीर में किसी भी प्रकार का कोई भी रोग नहीं होना चाहिए कोई बीमारी नहीं होनी चाहिए कोई कष्ट नहीं होना चाहिए किसी भी प्रकार की पीड़ा से मुक्त शरीर ही पहला सुख है। 2. दूसरा सुख घर में माया अर्थात जीवन जीने के लिए, दान पुण्य करने के लिए, और आनंद से जीवन व्यतीत करने के लिए हमारे घर में पर्याप्त माया हो।माया अर्थात धन होना चाहिए। 3. तीसरा सुख पुत्र आज्ञाकारी यदि किसी के पास अपार धन-दौलत हो रूप हो गुण हो ऐश्वर्या हो इज्जत हो लेकिन यदि उसका पुत्र उसकी ही आज्ञा नहीं मानता है तो वे तमाम सुख सुविधाएं उसके लिए नर्क के समान है पुत्र का आज्ञाकारी होना अति आवश्यक है। 4. चौथा सुख सुलक्षणा नारी सभी प्रकार के सुख सुविधाएं होते हुए रूप सौंदर्य होते हुए विभिन्न प्रकार के विलासिता के साधन होते हुए भी यदि पत्नी अच्छे लक्षणों वाली नहीं है तो जीवन में सुख नहीं हो सकता इसलिए एक पत्नी का सुलक्षणा होना अति आवश्यक है। 5. पांचवा सुख राज में पाया अर्थात यदि घर में मुख्य पुरुष के सरकारी नौकरी हो या वह राज्य कार्यों से जुड़ा हुआ हो राज्य से उसको आमदनी प्राप्त होती हो और राजकाज आसानी से हो जाते हो। 6. छठा सुख पड़ोसी "भाया" अर्थात हमारे पड़ोस में रहने वाले लोग इस प्रकार के होने चाहिए कि हमारे विचार उनसे मिलते हो और उनके विचार हमसे मिलते हैं वह हमारे साथ हमेशा अच्छा सोचते हो और हमारे सुख-दुख में सहयोगी होने चाहिए अन्यथा यदि सभी प्रकार की सुख सुविधाएं होने के बावजूद भी यदि पड़ोसी कुटिल है और हमारी हानि करने वाला है तो वह भी एक प्रकार का दुख है इसलिए पड़ोसी का अच्छा होना सुख माना गया है। 7. सातवा सुख मात पिता का साया जिस व्यक्ति के माता और पिता जीवित होते हैं वह व्यक्ति सभी सुखों को पा लेता है माता पिता की सेवा करने का अवसर प्राप्त होता है और माता-पिता का आशीर्वाद हमेशा बना रहता है तो माता-पिता का जीवित रहना भी एक प्रकार का सुख है। 8. आठवां सुख पुत्री का साया वैसे तो सुख सात ही प्रकार के माने गए हैं किंतु घर में पुत्री का होना आठवां सुख माना गया है इसलिए घर में यदि पुत्री हो और उपरोक्त सभी सुख उपलब्ध हो तो ये आठों सुख माने गए हैं।

गणेशजी के आशीर्वाद से सुखमय दांपत्यजीवन के साथ-साथ बाहर घूमने- फिरने और मनभावन भोजन मिलने का योग है। आयात निर्यात के साथ जुड़े व्यापारियों को धंधा में लाभ और सफलता मिलेगी। आपकी खोई हुई वस्तु वापस मिलने की संभावना है। प्रिय व्यक्ति के साथ प्रेम का सुखद अनुभव प्राप्त कर सकेंगे। प्रवास आर्थिक लाभ और वाहन सुख की संभावना है। वाद-विवाद से दूर रहना हितकर है। वृषभ गणेशजी की दृष्टि से आपका आज का दिन शुभफलदायक साबित होगा। निर्धारित कार्य सफलतापूर्वक पूरे होंगे। अधूरे कार्य पूरे होंगे। शारीरिक, मानसिक स्वस्थता बनी रहेगी। आर्थिक लाभ होगा। ननिहाल पक्ष की ओर से आनंदपूर्ण समाचार मिलेंगे। बीमारी में राहत महसूस होगी। नौकरी पेशावाले वर्ग को नौकरी में लाभ होगा। सहकर्मियों का सहयोग मिलेगा। मिथुन गणेशजी कहते हैं कि आज संतानों और जीवनसाथी के स्वास्थ्य के सम्बंध में चिंता होगी। वाद-विवाद या चर्चाओं में गहरे न उतरना हित में रहेगा। आत्म सम्मान को ठेस पहुँचेगी तथा स्त्री मित्रों द्वारा खर्च या नुकसान होने की संभावना है। पेट सम्बंधी बीमारियों से तकलीफ होगी। नए कार्य की शुरुआत और प्रवास न करने के लिए गणेशजी कहते हैं। कर्क शारीरिक- मानसिक अस्वस्थता का अनुभव होगा। छाती में दर्द या किसी विकार से परिवार में अशांति निर्मित होगी। स्त्री पात्र के साथ मनमुटाव और तकरार होने की संभावना है। सार्वजनिक रूप से मानहानि होने से दुःख अनुभव करेंगे। समय से भोजन नहीं मिलेगा। अनिद्रा के शिकार होंगे। धन खर्च तथा अपयश मिलने का योग है। सिंह कार्य सफलता और प्रतिस्पर्धियों पर विजय का नशा आपके दिलोदिमाग पर छाया रहेगा, जिससे अब प्रसन्नता अनुभव करेंगे। भाई- बहनों के साथ मिलकर घर पर कोई आयोजन करेंगे। मित्रों, स्नेहीजनों के साथ यात्रा करने का योग है। स्वास्थ्य बना रहेगा। आर्थिक लाभ, प्रियजनों की मुलाकात से खुशी होगी। शांत चित्त से नए कार्यों को आरंभ कर सकेंगे। अचानक भाग्य वृद्धि का अवसर गणेशजी देखते हैं। कन्या परिवार में आज आनंद का वातावरण रहेगा। वाणी की मधुरता और न्यायप्रिय व्यवहार से आप लोकप्रियता प्राप्त करेंगे। आर्थिक लाभ होने की संभावना है। मिष्टान्न भोजन मिलेगा। विद्यार्थियों के विद्याध्ययन के लिए अनुकूल समय है। मौज-शौक के साधनों के पीछे खर्च होगा। अनैतिक प्रवृत्तियों से दूर रहने की गणेशजी सलाह देते हैं। तुला अपनी कला- कारीगरी को बाहर लाने के लिए सुनहरे अवसर न खोने के लिए गणेशजी कहते हैं। आपकी रचनात्मक और कलात्मक शक्ति अधिक निखरेगी। शारीरिक, मानसिक स्वस्थता बनी रहेगी। मनोरंजन की प्रवृत्तियों में दोस्तों तथा परिवारजनों के साथ भाग लेंगे। आर्थिक लाभ होगा। सुंदर भोजन वस्त्र और वाहन सुख की प्राप्ति होगी। प्रिय व्यक्ति की मुलाकात तथा कार्य सफलता का योग है। दांपत्यजीवन में विशेष मधुरता रहेगी। वृश्चिक गणेशजी कहते हैं कि आनंद-प्रमोद, मनोरंजन के पीछे धन का व्यय होगा। मानसिक चिंता एवं शारीरिक कष्ट के कारण आप परेशान रहेंगे। दुर्घटना या शल्य चिकित्सा से संभलकर रहिएगा। बातचीत में किसी के साथ गलतफहमी न हो इसका विशेष ध्यान रखिएगा। स्वभाव में कुछ उग्रता रहेगी, इसलिए झगडे से दूर रहें। सम्बंधियो के साथ कोई कुप्रसंग की संभावना है। मानहानि या धनहानि की संभावना है। अदालती कार्यों में संभलकर रहिएगा। असंयमित व्यवहार परेशानी में डाल सकता है। धन आर्थिक, सामाजिक और पारिवारिक दृष्टि से आपके लिए आज का दिन लाभदायी है ऐसा गणेशजी कहते हैं। गृहस्थजीवन का संपूर्ण आनंद आप प्राप्त कर पाएँगे। प्रेम कि सुखद अनुभूति होगी। मित्रों के साथ किसी रमणीय स्थल पर घूमने जा सकते हैं। जीवनसाथी की खोज करनेवालों के लिए विवाह योग हैं। पुत्र और पत्नी की ओर से आप को कुछ लाभ मिलेगा। आय में वृद्धि तथा व्यापार में लाभ मिलने का दिन है। स्त्री मित्रों से लाभ होगा। आज अच्छे भोजन का योग है, ऐसा गणेशजी कहते हैं। मकर गणेशजी कहते हैं कि आप का दिन संघर्षमय रहेगा। आज के दिन आग, पानी या वाहन सम्बंधित दुर्घटना से सावधान रहें। व्यापार के कारण व्यग्रता होगी। व्यापार के लिए यात्रा करने से लाभ होगा। उच्च अधिकारी प्रसन्न रहेंगे। नौकरी में पदोन्नति होगी। संतान की पढाई के संबंध में आपको संतोष का अनुभव होगा। गृहस्थजीवन आनंदपूर्वक बीतेगा। धन, मान, सम्मान मिलेगा। सगे संबंधी एवं मित्रो से लाभ होगा। कुंभ गणेशजी बताते हैं कि आपका दिन मिश्र फलदायी होगा। आप का स्वास्थ्य नरम-गरम रहेगा। फिर भी मानसिक शांति प्राप्त कर पाएँगे। कार्य करने का उत्साह मंद होगा। अधिकारियों से संभलकर चलना हितकर है। खर्च नाहक ही अधिक होगा। आनंद-प्रमोद, घूमने-फिरने के पीछे धन का व्यय होगा। प्रवास एवं पर्यटन की संभावना है। विदेश से समाचार मिलेंगे। संतान की चिंता सताएगी। प्रतिस्पर्धियों के साथ किसी गहन चर्चा में न उतरने की गणेशजी सलाह देते हैं। मीन गणेशजी का कहना है कि आप का दिन मध्यम फलदायी होगा। अधिक परिश्रमवाले कार्य अभी टालिएगा। मानसिक, शारीरिक परिश्रम अधिक होगा। आकस्मिक धनलाभ के योग हैं। व्यापारीवर्ग को पुरानी उगाही का धन मिल सकता है। स्वास्थ्य के विषय में संभालिएगा। अधिक खर्च न हो इसका ध्यान रखिए। अनैतिक कामवृत्ति पर संयम रखिएगा। ईश्वरभक्ति और आध्यात्मिक विचारों का पालन करें।

योगाबांझपन से छुटकारा पाने के लिए योग Yoga for infertility male femaleBy वनिता कासनियां पंजाब !!निरंतर प्रयास और मेडिकल ट्रीटमेंट के बावजूद कई दंपत्ति सफलतापूर्वक गर्भधारण नहीं पाते हैं . बांझपन की समस्या सिर्फ महिला को ही नहीं , बल्कि पुरुषों को भी होती है . विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार , भारत में 4 % से 17 % दंपत्ति प्राथमिक इनफर्टिलिटी से पीड़ित हैं . इनफर्टिलिटी प्रजनन प्रणाली को प्रभावित करती है . 12 महीने या उससे अधिक नियमित रूप से असुरक्षित संभोग के बाद भी अगर कोई दंपत्ति माता - पिता बनने में असफल रहते हैं , तो उसे इनफर्टाइल माना जाता है . ऐसे में योग बहुत फायदेमंद साबित हो सकता है .प्रजनन क्षमता बढ़ाने में योग कैसे फायदेमंद है ?योगासन शरीर में लचीलापन बढ़ाता है और शरीर को फिट रखता है . प्राणायाम , ऑक्सीजन में सुधार करने , तनाव और चिंता को कम करने में मदद करता है . योग क्रियाएं शरीर को डिटॉक्सीफाई करती है और सिस्टम को शुद्ध करती है . साथ ही योग के जरिए तनाव भी दूर होता है . ये सभी प्रजनन क्षमता को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक हैं .महिला व पुरुष की फर्टिलिटी बूस्ट करने वाले योगासनयहां हम उन योगासनों के बारे में बता रहे हैं , जिन्हें करने से महिला व पुरुष की प्रजनन क्षमता कुछ हद तक बेहतर हो सकती हैपश्चिमोत्तानासनपश्चिमोत्तानासन पीठ के निचले हिस्से , कूल्हों और हैमस्ट्रिंग की मांसपेशियों को फैलाता है और मजबूत करता है . यह पेट से जुड़ी सभी मांसपेशियों व पाचन तंत्र की कार्यप्रणाली को बेहतर करता है . साथ ही पेट की चर्बी को नियंत्रित रखता है . यह योगासन अंडाशय और प्रजनन प्रणाली को सक्रिय करने में भी मदद करता है .आसन कुंभक आसनपुरुषों के लिए फायदेमंद हो सकता है . यह आसन प्लैंक पोज का ही एक रूपांतर है , जो एब्स को टोन करने और पेट की चर्बी को जलाने में मदद कर सकता है . यह शुक्राणुओं की गुणवत्ता को बढ़ाकर पुरुष की प्रजनन क्षमता को बेहतर बनाने में भी मदद कर सकता है .सुप्त वज्रासनसुप्त वज्रासन महिलाओं के पोश्चर , कूल्हों , जांघ के आंतरिक हिस्सों और कमर की मांसपेशियों को मजबूत करता है . यह प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम , पेट में ऐंठन , सूजन और तनाव को दूर करने में मदद करता है . ये सभी समस्याएं इनफर्टिलिटी का कारण बन सकती हैं .धनुरासनधनुरासन पीठ , एब्स , हाथ और जांघ की मांसपेशियों के लिए फायदेमंद है . यह ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ाता है , जिससे शुक्राणुओं की संख्या में वृद्धि हो सकती है .हस्तपादासनहस्तपादासन हाथों को मजबूत करता है और शरीर को लचीला बनाता है . यह एब्डोमिनल एरिया को तनाव मुक्त करने में मदद करता है . महिलाओं में इनफर्टिलिटी की समस्या को दूर करने के लिए ये आसन लाभकारी साबित हो सकता है .हलासनहलासन आसन समग्र स्वास्थ्य को लाभ पहुंचा सकता है और पुरुषों में शुक्राणु गतिशीलता व शुक्राणुओं की संख्या में सुधार ला सकता है. पर्यंकासनइस आसन को करने से जांघों की मांसपेशियों को मजबूती मिलती है और ये महिलाओं के पेल्विक एरिया के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है .सर्वांगासनसर्वांगासन या ' शोल्डर स्टैंड ' थायराइड का इलाज करने में मदद करता है . यह तनाव से भी राहत देता है और इनफर्टिलिटी के इलाज के लिए अधिक प्रभावी आसनों में से एक है , क्योंकि यह सीधे थायरॉयड को संतुलित करता है . थायराइड - उत्तेजक हार्मोन कई स्वास्थ्य जटिलताओं को जन्म दे सकता है और गर्भधारण करने की क्षमता को बाधित कर सकता है . थायराइड की स्थिति महिलाओं में इनफर्टिलिटी के प्रमुख कारणों में से एक है .अनुलोम -विलोम अनुलोम - विलोम क्रियाएं बहुत प्रचलित और कई तरह से लोगों को लाभ पहुंचाती हैं . ये नकारात्मक भावनाओं , तनाव से छुटकारा पाकर नाड़ियों को डिटॉक्स करने में मदद करती हैं और तंत्रिका तंत्र को लाभ पहुंचाती हैं . इनसे इनफर्टिलिटी से छुटकारा पाने में मदद मिल सकतीयोगाभ्यास किसी भी व्यक्ति के सामान्य स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हो सकता है . यह भी माना जाता है कि यह पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या व गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करता है . वहीं , महिलाओं में अंडाशय और प्रजनन प्रणाली को सक्रिय करने में भी मदद करता है . अगर आप पहली बार ये आसन कर रहे हैं , तो बेहतर होगा कि किसी एक्सपर्ट की देखरेख में ही करें .

PM Kisan: यदि आपको भी नहीं मिले पीएम किसान के पैसे तो जल्द ही करे ये काम, अभी है आखिरी मौका By PM Kisan सम्मान निधि योजना PM Kisan प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत किसानों को हर साल 06 हजार रुपये की आर्थिक सहायता मिलती है। यह पैसा चार महीने में किसानों के खाते में 2-2 लाख रुपये की तीन किश्तों में पहुंचाया जाता है। अब तक 12 कोटा किसानों के खाते में ट्रांसफर किया जा चुका है। लेकिन कुछ पात्र किसानों की ऐसी शिकायतें भी आई हैं, जो 12 कोटे से वंचित रह गए हैं, तो इसके पीछे का कारण यह हो सकता है कि आपसे कोई गलती हुई होगी, इसलिए आपका 12 कोटा अटका हुआ है। कृपया हमें बताएं कि इन त्रुटियों को कैसे जांचें और ठीक करें ताकि 12वीं किस्त आपके खाते में जा सके।यह भी पढ़े Bank Strike : जल्द ही निपटा लें अपने बैंक से जुड़े सभी काम, देशभर में होगी हड़ताल, ATM सेवाएं भी होंगी प्रभावितऐसे चेक करें एररसबसे पहले उनकी आधिकारिक वेबसाइट pmkisan.gov.in पर जाएं।अब होप पेज पर दायीं तरफ “Farmer Corner” ऑप्शन पर क्लिक करें।इस सेक्शन में “Beneficiary Status” वाले सेक्शन पर क्लिक करें।अब पीएम किसान खाता संख्या या पंजीकृत मोबाइल फोन नंबर में से किसी भी विकल्प का चयन करें।पूरा विवरण दर्ज करने के बाद, “डेटा प्राप्त करें” पर क्लिक करें।इसके बाद आपको स्क्रीन पर अपना पूरा स्टेटस दिखाई देगा।यहां आप अपना आधार नंबर, बैंक खाता आदि चेक कर सकते हैं। यह जांचने के लिए कि आपने जो जानकारी भरी है वह सही है।कृपया ध्यान दें कि यदि आपने पीएम किसान योजना पंजीकरण करते समय गलत जानकारी भरी है, तो पैसा आपके खाते में नहीं पहुंचेगा। यदि आप पीएम किसान योजना के प्राप्तकर्ताओं की सूची देखना चाहते हैं, तो आप उसकी आधिकारिक वेबसाइट पर विवरण दर्ज करके उसका नाम सत्यापित कर सकते हैं।PM Kisan: यदि आपको भी नहीं मिले पीएम किसान के पैसे तो जल्द ही करे ये काम, अभी है आखिरी मौकाऐसे लें मददअगर आप पीएम किसान सम्मान निधि के पात्र किसान हैं। लेकिन आपने पंजीकरण करते समय गलत जानकारी दर्ज की है, तो आप उसकी आधिकारिक मेल आईडी-pmkisan-ict@gov.in पर संपर्क कर सकते हैं। इसके अलावा हेल्पलाइन नंबर 155261 या 1800115526 या 011-23381092 पर संपर्क कर सकते हैं। यहां पीएम किसान सम्मान निधि योजना से जुड़े सभी मुद्दों का समाधान किया जाएगा।

गणेश जी को सबसे पहले क्यों पूजा जाता है? By वनिता कासनियां पंजाबगणेश जी की कहानीगणेश जी की पूजा हर किसी बड़े काम के पहले की जाती है । चाहे दुकान का उद्द्घाटन हो, नामकरण संस्कार हो या गर्भाधान संस्कार सबसे पहले गणेश जी को ही पूजा जाता है । हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता हैं लेकिन गणेश जी को ही सबसे पहले क्यों पूजा जाता है ? इससे सम्बंधित क्या पौराणिक कथा है आपको बताएँगे आज, बने रहिये अंत तक हमारे साथ ।गणेश जी को सभी देवी देवताओं में प्रधान क्यों माना जाता है?आपको बताते हैं यह पौराणिक कथा, एक बार की बात है 33 करोड़ देवी देवताओं में प्रतिस्पर्धा हुयी जिसमे जीतने वाले देव को किसी भी शुभ काम के पहले पूजा जायेगा । प्रतिस्पर्धा के अनुसार जो भी देवी देवता ब्रम्हांड के तीन चक्कर लगाकर सबसे पहले वापिस आएगा उसे ही अधिपति माना जायेगा । देवताओं के लिए ब्रम्हांड के तीन चक्कर लगाना कोई कठिन काम नहीं है ।परन्तु इस प्रतिस्पर्धा में एक मोड़ था, इस दौड़ में हिस्सा ले रहे हर देवी देवता की भेंट नारद जी से हो जाती थी । अब नारद मुनि को देखकर उनको प्रणाम करना ही पड़ता था । नारद जी परम वैष्णव हैं इसलिए वो प्रणाम करने वाले सभी देवी देवताओं को हरि कथा सुनाते थे । हरि कथा सुनने वाले देवी देवता दौड़ में जीत नहीं सकते थे इसलिए कुछ देवी देवता नारद जी को प्रणाम किये बिना ही निकल जाते थे।गणेश जी को जब इस दौड़ का पता चला तो उन्होंने भी अपने पिता से इसमें भाग लेने के बारे में पूछा और उनको इस दौड़ में हिस्सा लेने की अनुमति मिल गयी । गणेश जी के वाहन थे चूहा जबकि अन्य देवी देवताओं के वाहन गति में तेज और हवा में उड़ने वाले थे । अन्य देवी देवता नारद जी को प्रणाम किये बिना ही आगे बड़ जाते थे परन्तु गजानन ने नारद जी को प्रणाम किया और उनसे हरि कथा भी सुनी । नारद जी ने चेतावनी दी कि अगर वो हरि कथा सुनेंगे तो प्रतिस्पर्धा जीत नहीं पाएंगे लेकिन गजानन ने हरि कथा सुनने का फैसला किया ।नारद जी ने बताया एक रहस्यहरि कथा खत्म हो जाने के बाद नारद जी ने पूछा यह दौड़ किस लिए? तब गणेश जी ने बताया कि सबसे पहले ब्रम्हांड की तीन चक्कर लगाने वाले देव को देवताओं में अधिपति का खिताब मिलेगा और उसे हर किसी सुभ काम में सबसे पहले पूजा जायेगा । तब नारद जी ने गजानन को ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बारे में बताया । नारद जी ने कहा कि ब्रम्हांड के स्रोत है भगवान और यदि गणेश जी भगवान के तीन चकार लगा लें तो वे इस प्रतिस्पर्धा को जीत जायेंगे ।नारद जी ने बताया कि भगवान के नाम में और भगवान में कोई अंतर नहीं है । गजानन ने ऐसा ही किया और राम नाम अपनी सूंढ़ में लिखकर उसके तीन चक्कर लगा लिए । इस तरह करने के बाद नारद जी ने आशीर्वाद दिया कि गणेश दौड़ में जीत चुके हैं । गजानन ने आशीर्वाद लेकर दौड़ना शुरू कर दिया । जब उन्होंने पीछे देखा तो पता चला कि वे सभी देवी देवताओं के आगे थे । कुछ समय में गणेश जी यह प्रतिस्पर्धा जीत गए और गणेश जी को अधिपति कहा गया ।जब आप जय गणेश देवा आरती गाते हैं तो उसमे गणेश जी को अन्य कई नामों से बुलाते हैं । आपको यह जानकार हैरानी होगी कि गजानन के नामों के पीछे भी पौराणिक कथाएं मौजूद हैं । चलिए आपको बताते हैं कि गणेश जी को एकदन्त, गजानन या मंगल मूर्ती क्यों कहते हैं?गणेश जी के अन्य नामअन्य नामों से भी गणेश जी को बुलाया जाता है जैसे कि गणपति अर्थात जो शिव जी के गणों में सबसे प्रधान हैं । इनका एक नाम है गजानन यानि इनके मस्तक पर हाथी का सर लगा हुआ है । एक नाम है विनायक जिसका अर्थ है ये ज्ञान के भण्डार हैं । एक नाम है एकदन्त यानि इनके पास एक ही दांत है जो बड़ा विशेष है । आपको पता होगा गजानन ने महाभारत लिखने में भी योगदान दिया है । उन्होंने अपने इसी एक दांत से महाभारत ग्रन्थ को लिखा था ।एकदन्त का एक दांत किसने तोड़ा?एक बार की बात है परशुराम जी शिव जी से मिलने गए । गणेश जी ने कहा कि पिता जी अभी विश्राम कर रहे हैं इसलिए आप प्रवेश नहीं कर सकते । यदि आप परशुराम जी के यश से तो भली भांति परिचित नहीं हैं तो यह जान लीजिये कि उन्होंने पृथ्वी को 21 बार छत्रियों से वीहीन कर दिया था । परशुराम जी को रोकने वाला तीनो लोकों में कोई नहीं था जब वो छात्रिओं को मारने निकलते थे । गजानन की आयु उस समय काफी कम थी । एक बालक के द्वारा परशुराम जी का रोका जाना मूर्खता था और इसलिए परशुराम ने गणेश जी का एक दांत तोड़ दिया और वे एकदन्त कहलाये ।यह भी पड़ें – बेटी को घर की लक्ष्मी क्यों कहा जाता है?गणेश जी का सिर किसने काटा?गणेश जी आज्ञा पालन में निपुण थे । एक बार की बात है कि गणेश जी ने अपनी माँ की आज्ञा का पालन करने के चक्कर में शिव जी से ही युद्ध कर लिया । दरसल गणेश जी को माता पारवती ने आदेश दिया था कि किसी को भी अंदर मत आने देना । जब शिव जी ने अंदर जाने की कोशिस की तो बालक गणेश ने उन्हें रोका । शिव जी ने बताया कि वो गणेश जी के पिता हैं और इसलिए उन्हें अंदर जाने से नहीं रोका जाना चाहिए । गणेश जी नहीं माने और शिव ने उनका सर काट दिया । यह देखकर माँ पारवती विलाप करने लगीं और शिव जी ने एक हाथी का सिर गणेश जी को लगवा दिया । तभी से उनको गजानन कहा जाता है ।मित्रो उम्मीद करते हैं आजकी कहानी आपको पसंद आयी होगी । इसे शेयर करें और हमारा व्हाट्सप्प ग्रुप ज्वाइन करें । ग्रुप ज्वाइन करने के लिए यहाँ क्लिक करें – Join Whatsapp । फिर मिलते हैं एक और पौराणिक कहानी के साथ ।

करवा चौथ पर महिलायें सोलह श्रृंगार करती है, वह 16 श्रंगार की कौन से होते है? By वनिता कासनियां पंजाब महिलाएं केवल करवा चौथ पर ही 16 श्रृंगार नहीं करती। भारत में महालक्ष्मी व्रत, दीपावली, विवाह आयोजन ओर शुभ मंगल कार्यों के दौरान भी 16 श्रंगार करती हैं।स्त्री जातक, स्त्री सुबोधनी, हरिवंश पुराण, श्रंगार शतक आदि पुस्तकों में स्त्री के सौभाग्य का प्रतीक सोलह श्रंगारों की चर्चा की गई है।स्त्रियों के 16 श्रृंगार एवं उसका महत्व हिन्दू महिलाओं के लिए 16 श्रृंगार का विशेष महत्व हैस्त्री के 16 श्रंगार 16 कला, ॐकार की 16 मात्रा ओर षोड़स मातृका का प्रतीक हैं।स्त्रियों के 16 श्रृंगार कौन से हैंविवाह के बाद स्त्री इन सभी चीजों को अनिवार्य रूप से धारण करती है। हर एक चीज का अलग महत्व है।हर स्त्री चाहती थी की वे सज धज कर सुन्दर लगे। यह उनके रूप को ओर भी अधिक सौन्दर्यवान बना देता है।श्रंगार से पूर्व महिलाएं हल्दी, केशर आदि का उबटन लगाकर शरीर की शुद्धि करती हैं।प्राचीन जाल में रानी, अमिरिन की पत्नियां कुंकुमादि तेल से शरीर की मालिश करती थीं।पहला श्रृंगार: बिंदीसंस्कृत भाषा के बिंदु शब्द से बिंदी की उत्पत्ति हुई है। भवों के बीच रंग या कुमकुम से लगाई जाने वाली भगवान शिव के तीसरे नेत्र का प्रतीक मानी जाती है।सुहागिन स्त्रियां कुमकुम या सिंदूर से अपने ललाट पर लाल बिंदी लगाना जरूरी समझती हैं। इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।दूसरा श्रृंगार: सिंदूरसिंदूर उत्तर भारत में लगभग सभी प्रांतों में सिंदूर को स्त्रियों का सुहाग चिन्ह माना जाता है और विवाह के अवसर पर पति अपनी पत्नी के मांग में सिंदूर भर कर जीवन भर उसका साथ निभाने का वचन देता है।तीसरा श्रृंगार: काजलकाजल आँखों का श्रृंगार है. इससे आँखों की सुन्दरता तो बढ़ती ही है, काजल दुल्हन और उसके परिवार को लोगों की बरी नजर से भी बचाता है।चौथा श्रृंगार: मेहंदीमेहंदी के बिना सुहागन का श्रृंगार अधूरा माना जाता है। शादी के वक्त दुल्हन और शादी में शामिल होने वाली परिवार की सुहागिन स्त्रियां अपने पैरों और हाथों में मेहंदी रचाती है।ऐसा माना जाता है कि नववधू के हाथों में मेहंदी जितनी गाढ़ी रचती है, उसका पति उसे उतना ही ज्यादा प्यार करता है ।पांचवां श्रृंगार:शादी का जोड़ा उत्तर भारत में आम तौर से शादी के वक्त दुल्हन को जरी के काम से सुसज्जित शादी का लाल जोड़ा (घाघरा, चोली और ओढ़नी) पहनाया जाता है।पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार में फेरों के वक्त दुल्हन को पीले और लाल रंग की साड़ी पहनाई जाती है। इसी तरह महाराष्ट्र में हरा रंग शुभ माना जाता है और वहां शादी के वक्त दुल्हन हरे रंग की साड़ी मराठी शैली में बांधती हैं।छठा श्रृंगार: गजरादुल्हन के जूड़े में जब तक सुगंधित फूलों का गजरा न लगा हो तब तक उसका श्रृंगार फीका सा लगता है।दक्षिण भारत में तो सुहागिन स्त्रियां प्रतिदिन अपने बालों में हरसिंगार के फूलों का गजरा लगाती है।सातवां श्रृंगार : मांगटीका मांग के बीचों-बीच पहना जाने वाला यह स्वर्ण आभूषण सिंदूर के साथ मिलकर वधू की सुंदरता में चार चांद लगा देता है। ऐसी मान्यता है कि नववधू को मांग टीका सिर के ठीक बीचों-बीच इसलिए पहनाया जाता है कि वह शादी के बाद हमेशा अपने जीवन में सही और सीधे रास्ते पर चले और वह बिना किसी पक्षपात के सही निर्णय ले सके।आठवां श्रृंगारः नथनाक की नथ विवाह के अवसर पर पवित्र अग्नि में चारों ओर सात फेरे लेने के बाद देवी पार्वती के सम्मान में नववधू को नथ पहनाई जाती है।कहते हैं कि सुहागिन स्त्री के नथ पहनने से पति के स्वास्थ्य और धन-धान्य में वृद्धि होती है।उत्तर भारतीय स्त्रियां आमतौर पर नाक के बायीं ओर ही आभूषण पहनती है, जबकि दक्षिण भारत में नाक के दोनों ओर नाक के बीच के हिस्से में भी छोटी-सी नोज रिंग पहनी जाती है, जिसे बुलाक कहा जाता है। नथ आकार में काफी बड़ी होती है इसे हमेशा पहने रहना असुविधाजनक होता है, इसलिए सुहागन स्त्रियां इसे शादी-व्याह और तीज-त्यौहार जैसे खास अवसरों पर ही पहनती हैं, लेकिन सुहागिन स्त्रियों के लिए नाक में आभूषण पहनना अनिर्वाय माना जाता है। इसलिए आम तौर पर स्त्रियां नाक में छोटी नोजपिन पहनती हैं, जो देखने में लौंग की आकार का होता है। इसलिए इसे लौंग भी कहा जाता है।नौवां श्रृंगारः कर्णफूलकान में पहने जाने वाला यह आभूषण कई तरह की सुंदर आकृतियों में होता है, जिसे चेन के सहारे जुड़े में बांधा जाता है। विवाह के बाद स्त्रियों का कानों मे कणफूल (ईयरिंग्स) पहनना जरूरी समझा जाता है। इसके पीछे ऐसी मान्यता है कि विवाह के बाद बहू को दूसरों की, खासतौर से पति और ससुराल वालों की बुराई करने और सुनने से दूर रहना चाहिए।दसवां श्रृंगारः हारगले में पहना जाने वाला सोने या मोतियों का हार पति के प्रति सुहागन स्त्री के वचनवद्धता का प्रतीक माना जाता है।हार पहनने के पीछे स्वास्थ्यगत कारण हैं। गले और इसके आस-पास के क्षेत्रों में कुछ दबाव बिंदु ऐसे होते हैं जिनसे शरीर के कई हिस्सों को लाभ पहुंचता है। इसी हार को सौंदर्य का रूप दे दिया गया है और श्रृंगार का अभिन्न अंग बना दिया है।दक्षिण और पश्चिम भारत के कुछ प्रांतों में वर द्वारा वधू के गले में मंगल सूत्र पहनाने की रस्म की वही अहमियत है।ग्यारहवां श्रृंगार: बाजूबंदकड़े के सामान आकृति वाला यह आभूषण सोने या चांदी का होता है। यह बाहों में पूरी तरह कसा जाता है। इसलिए इसे बाजूबंद कहा जाता है।पहले सुहागिन स्त्रियों को हमेशा बाजूबंद पहने रहना अनिवार्य माना जाता था और यह सांप की आकृति में होता था। ऐसी मान्यता है कि स्त्रियों को बाजूबंद पहनने से परिवार के धन की रक्षा होती और बुराई पर अच्छाई की जीत होती है।बारहवां श्रृंगार: कंगन और चूड़ियांसोने का कंगन अठारहवीं सदी के प्रारंभिक वर्षों से ही सुहाग का प्रतीक माना जाता रहा है।हिंदू परिवारों में सदियों से यह परंपरा चली आ रही है कि सास अपनी बड़ी बहू को मुंह दिखाई रस्म में सुख और सौभाग्यवती बने रहने का आशीर्वाद के साथ वही कंगन देती थी, जो पहली बार ससुराल आने पर उसे उसकी सास ने उसे दिये थे। इस तरह खानदान की पुरानी धरोहर को सास द्वारा बहू को सौंपने की परंपरा का निर्वाह पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।पंजाब में स्त्रियां कंगननुमा डिजाइन का एक विशेष पारंपरिक आभूषण पहनती है, जिसे लहसुन की पहुंची कहा जाता है।सोने से बनी इस पहुंची में लहसुन की कलियां और जौ के दानों जैसे आकृतियां बनी होती है। हिंदू धर्म में मगरमच्छ, हांथी, सांप, मोर जैसी जीवों का विशेष स्थान दिया गया है।उत्तर भारत में ज्यादातर स्त्रियां ऐसे पशुओं के मुखाकृति वाले खुले मुंह के कड़े पहनती हैं, जिनके दोनों सिरे एक-दूसरे से जुड़े होते हैं।पारंपरिक रूप से ऐसा माना जात है कि सुहागिन स्त्रियों की कलाइयां चूड़ियों से भरी हानी चाहिए। यहां तक की सुहागन स्त्रियां चूड़ियां बदलते समय भी अपनी कलाई में साड़ी का पल्लू कलाई में लपेट लेती हैं ताकि उनकी कलाई एक पल को भी सूनी न रहे। ये चूड़ियां आमतौर पर कांच, लाख और हांथी दांत से बनी होती है। इन चूड़ियों के रंगों का भी विशेष महत्व है।नवविवाहिता के हाथों में सजी लाल रंग की चूड़ियां इस बात का प्रतीक होती हैं कि विवाह के बाद वह पूरी तरह खुश और संतुष्ट है। हरा रंग शादी के बाद उसके परिवार के समद्धि का हरा रंग शादी के बाद उसके परिवार के समृद्धि का प्रतीक है।होली के अवसर पर पीली या बंसती रंग की चूड़ियां पहनी जाती है, तो सावन में तीज के मौके पर हरी और धानी चूड़ियां पहनने का रीवाज सदियों से चला आ रहा है। विभिन्न राज्यों में विवाह के मौके पर अलग-अलग रंगों की चूड़ियां पहनने की प्रथा है।तेरहवां श्रृंगार : अंगूठीशादी के पहले मंगनी या सगाई के रस्म में वर-वधू द्वारा एक-दूसरे को अंगूठी को सदियों से पति-पत्नी के आपसी प्यार और विश्वास का प्रतीक माना जाता रहा है।चौदहवां श्रृंगार: कमरबंदकमरबंद कमर में पहना जाने वाला आभूषण है, जिसे स्त्रियां विवाह के बाद पहनती हैं, इससे उनकी छरहरी काया और भी आकर्षक दिखाई पड़ती है।सोने या चांदी से बने इस आभूषण के साथ बारीक घुंघरुओं वाली आकर्षक की रिंग लगी होती है, जिसमें नववधू चाबियों का गुच्छा अपनी कमर में लटकाकर रखती है।कमरबंद इस बात का प्रतीक है कि सुहागन अब अपने घर की स्वामिनी है।पंद्रहवाँ श्रृंगारः बिछुवा पैरों के अंगूठे में रिंग की तरह पहने जाने वाले इस आभूषण को अरसी या अंगूठा कह जाता है। पारंपरिक रूप से पहने जाने वाले इस आभूषण में छोटा सा शीशा लगा होता है, पुराने जमाने में संयुक्त परिवारों में नववधू सबके सामने पति के सामने देखने में भी सरमाती थी। इसलिए वह नजरें झुकाकर चुपचाप आसपास खड़े पति की सूरत को इसी शीशे में निहारा करती थी पैरों के अंगूठे और छोटी अंगुली को छोड़कर बीच की तीन अंगुलियों में चांदी का विछुआ पहना जाता है। शादी में फेरों के वक्त लड़की जब सिलबट्टे पर पेर रखती है, तो उसकी भाभी उसके पैरों में बिछुआ पहनाती है। यह रस्म इस बात का प्रतीक है कि दुल्हन शादी के बाद आने वाली सभी समस्याओं का हिम्मत के साथ मुकाबला करेगी।सोलहवां श्रृंगार: पायलपैरों में पहने जाने वाले इस आभूषण की सुमधुर ध्वनि से घर के हर सदस्य को नववधू की आहट का संकेत मिलता है।पुराने जमाने में पायल की झंकार से घर के बुजुर्ग पुरुष सदस्यों को मालूम हो जाता था कि बहू आ रही है और वे उसके रास्ते से हट जाते थे।पायल के संबंध में एक और रोचक बात यह है कि पहले छोटी उम्र में ही लडिकियों की शादी होती थी और कई बार जब नववधू को माता-पिता की याद आती थी तो वह चुपके से अपने मायके भाग जाती थी। इसलिए नववधू के पैरों में ढेर सारी मंघरुओं वाली पाजेब पहनाई जाती थी।पैरों में ढेर सारी घुंघरुओं वाली पाजेब पहनाई जाती थी ताकि जब वह घर से भागने लगे तो उसकी आहट से मालूम हो जाए कि वह कहां जा रही है।पैरों में पहने जाने वाले आभूषण हमेशा सिर्फ चांदी से ही बने होते हैं। हिंदू धर्म में सोना को पवित्र धातु का स्थान प्राप्त है, जिससे बने मुकुट देवी-देवता धारण करते हैं और ऐसी मान्यता है कि पैरों में सोना पहनने से धन की देवीलक्ष्मी का अपमान होता है।वनिता पंजाब साभार

10 Symptoms of Lung Cancer फेफड़े के कैंसर के 10 लक्षण ? By वनिता कासनियां पंजाब:- अधिकांश लोगों के लिए कैंसर का विचार बहुत डरावना है और संयुक्त राज्य अमेरिका में पुरुषों और महिलाओं दोनों के सभी कैंसर में फेफड़ों का कैंसर नंबर एक हत्यारा है। धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर के लिए नंबर एक कारण के रूप में जाना जाता है, लेकिन निश्चित रूप से किसी को इसे प्राप्त करने के लिए धूम्रपान करने वाला होना जरूरी नहीं है। अमेरिका में प्रति वर्ष लगभग 160,000 मौतों के लिए फेफड़े का कैंसर जिम्मेदार है, अधिकांश कैंसर की तरह, जीवित रहने के लिए बाधाओं को बढ़ाने की कुंजी प्रारंभिक पहचान है, जो अन्य प्रकार के कैंसर की तुलना में फेफड़ों के कैंसर के साथ मुश्किल हो सकती है। फेफड़ों के कैंसर के निम्नलिखित लक्षण हैं जिन्हें नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए।खाँसीफेफड़ों के कैंसर के शुरुआती लक्षणों में से एक लगातार खांसी है जो समय के साथ खराब हो सकती है। कभी-कभी खांसी नींद में बाधा उत्पन्न कर सकती है और खांसी के समान हो सकती है जो एलर्जी या ब्रोंकाइटिस से उत्पन्न होती है। कुछ लोगों के लिए इस प्रकार की खांसी को यह सोचकर खारिज करना आसान है कि यह जल्द ही गुजर जाएगी, लेकिन कुछ हफ्तों से अधिक समय तक बनी रहने वाली खांसी का मूल्यांकन डॉक्टर द्वारा किया जाना चाहिए।छाती में दर्दफेफड़ों के कैंसर के लिए छाती क्षेत्र में दर्द होना आम बात है जो खांसी या सांस लेने से खराब हो सकता है। यद्यपि फेफड़े स्वयं दर्द को महसूस करने में सक्षम नहीं हैं, फेफड़ों के आसपास के क्षेत्र फेफड़ों के कैंसर के कारण सूजन के अधीन होते हैं और वास्तव में ऐसा महसूस हो सकता है कि फेफड़े दर्द कर रहे हैं। फेफड़ों के कैंसर के ट्यूमर के लिए आसपास के ऊतकों पर दबाव डालना भी संभव है जो दर्द पैदा कर सकते हैं।गाला बैठनाफेफड़ों का कैंसर भी आवाज कर्कश होने का कारण बन सकता है। यह भी संभव है कि फेफड़ों के कैंसर के कारण किसी व्यक्ति की आवाज काफ़ी गहरी हो।खूनी खाँसीहालांकि फेफड़ों के कैंसर के कारण होने वाली खांसी अक्सर अनुत्पादक या सूखी होती है, अन्य मामलों में खांसने से खून या खूनी कफ के निशान दिखाई दे सकते हैं। कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपको क्या लगता है कि आपके पास है, यदि आपका पहले से ही एक डॉक्टर द्वारा मूल्यांकन नहीं किया गया है, तो खांसी खून आना हमेशा चिंता का कारण होता है और इसे जल्द से जल्द डॉक्टर द्वारा संबोधित किया जाना चाहिए।सांस लेने में कठिनाईअपनी सांस को पकड़ने में कठिनाई होना फेफड़ों के कैंसर का एक और लक्षण है। जिन गतिविधियों को आप बिना किसी समस्या के कर सकते थे, वे आपको ऐसा महसूस करा सकती हैं कि आपकी सांस को पकड़ना मुश्किल है। यहां तक कि जब आप अपने आप को परिश्रम नहीं कर रहे होते हैं तब भी सांस फूलना महसूस करना संभव है।वजन घटनाअस्पष्टीकृत वजन घटना फेफड़ों के कैंसर का एक और लक्षण है और आमतौर पर भूख की कमी के साथ भी होता है। यह अक्सर कुछ रसायनों की रिहाई होती है जो फेफड़ों के कैंसर से ट्रिगर होते हैं जो चयापचय को बढ़ा सकते हैं और वजन घटाने में परिणाम कर सकते हैं।कंधे का दर्दयह थोड़ा आश्चर्यचकित करने वाला हो सकता है क्योंकि हम आमतौर पर फेफड़ों की समस्याओं को कंधे से नहीं जोड़ते हैं। फेफड़े के कैंसर से जुड़ा कंधे का दर्द चिंता का कारण है, क्योंकि यह संकेत दे सकता है कि कैंसर अन्य क्षेत्रों में फैल गया है, लेकिन ज्यादातर समय यह फेफड़ों में ट्यूमर के कारण होता है जो फेफड़ों के पास स्थित फ्रेनिक तंत्रिका पर दबाव डालता है। कभी-कभी फेफड़े के कैंसर से जुड़ा कंधे का दर्द भी शूटिंग दर्द का कारण बनता है जो बांह के नीचे जाता है।थकानबार-बार थकान या कमजोरी महसूस होना फेफड़ों के कैंसर का एक और संकेत हो सकता है। मेटाबॉलिज्म में होने वाले बदलाव जो अक्सर कैंसर के कारण होते हैं, थकान का कारण बन सकते हैं – थका हुआ महसूस होना जो पर्याप्त आराम करने पर भी दूर नहीं होता है।लगातार संक्रमणनिमोनिया या ब्रोंकाइटिस जैसे फेफड़ों का संक्रमण जो दूर हो जाता है और लौटता रहता है, फेफड़ों के कैंसर की उपस्थिति का संकेत दे सकता है। नए शोध से संकेत मिलता है कि जिन लोगों को अपने जीवन में किसी समय निमोनिया हुआ है, उनमें फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।घरघराहटफेफड़ों के कैंसर के कारण अचानक घरघराहट हो सकती है। यह एक और लक्षण है जिस पर हमेशा डॉक्टर से चर्चा की जानी चाहिए क्योंकि घरघराहट कई स्वास्थ्य समस्याओं के कारण हो सकती है जिन्हें संबोधित किया जाना चाहिए, जैसे अस्थमा और अन्य फेफड़ों के विकार।

🚩🪴गीता ज्ञान🪴🚩शकुनी का सबसे बड़ा रहस्य जो महाभारत युद्ध का मुख्य कारण बना By वनिता कासनियां पंजाब शकुनीकुछ लोग शकुनी को कौरवो का हित चाहने वाला मानते हैं परन्तु आज आप जानेंगे कि वह शकुनी ही था जिसने दोनों पक्षों को महाभारत के युद्ध में मरने के लिए झोंका था । वो शकुनी था जिसने कुरुवंश के विनाश की सपथ ली थी । वो शकुनी था जिसने पांडवों और कौरवों दोनों के ही साथ विश्वासघात किया । आखिर क्यों रची उसने कुरुवंश को ध्वस्त करने की साजिश और किस तरह दिया उसने अपनी साजिश को अंजाम । सारा कुछ आपको बताऊंगी बस बने रहिये अंत तक गीता ज्ञानके साथ ।मित्रो वैसे तो महाभारत युद्ध के लिए कई पात्रों को जिम्मेदार माना जाता है परंतु अधिकतर लोग कौरवों के मामा शकुनी को इस भयानक युद्ध के लिए उत्तरदायी मानते हैं । ये तो हम सभी जानते हैं कि मामा शकुनी बहुत ही बड़ा षड़यत्रकारी, क्रूर, कुटिल बुद्धि और चौसर खेलने में माहिर था ।शास्त्रों की मानें तो महाभारत काल में चौसर यानी द्युतक्रीड़ा में शकुनी को कोई भी नहीं हरा सकता था । लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर उसके चौरस के पासों में ऐसा क्या था जिससे वह खेल में अजय माना जाता था?शकुनी कुरुवंश का विनाश क्यों करना चाहता था?शकुनी का वह सपना जो कभी पूरा नहीं हुआधर्मग्रंथों में वर्णित एक कथा के अनुसार शकुनी और उसका परिवार गांधारी से बहुत ज्यादा प्रेम करता था । वह उसे दुनिया की सारी खुशियां देना चाहता था । गांधारी शिव जी की भक्त भी थी । उनकी साधना से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें सौ पुत्रों का वरदान दिया था ।इस बात का पता चलते ही भीष्म पितामह ने नेत्रहीन धृतराष्ट्र के लिए राजा सुबाला से गांधारी का हाथ मांग लिया परंतु वह इस बात से क्रोधित हो गया । उसने अपने पिता से गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से ना करने की मांग की । किंतु भीष्म पितामह के बल से डरकर राजा सुबाला अपनी पुत्री गांधारी का विवाह अंधे धृतराष्ट्र से करने को तैयार हो गए ।जिसके बाद शकुनी ने मन ही मन कुरुवंश से इसका बदला लेने की ठान ली । मित्रो आपको बता दूँ कि धृतराष्ट से पहले गांधारी का विवाह एक बकरे से हुआ था । दरअसल जब राजा सुबाला ने पंडितों की सलाह पर गांधारी का विवाह सबसे पहले एक बकरे से करवा दिया ताकि बकरे की मृत्यु के बाद उसका दोष ख़त्म हो जाएगा और बाद में गांधारी का विवाह किसी राजा से करवा देंगे ।यह भी पड़ें – अप्सरा के साथ ऋषि ने क्यों किया एक हजार सालों तक भोग विलास?शकुनी को उन पापों की सजा मिली जो उसने कभी किए ही नहीं थेफिर कुछ समय बाद गांधारी का विवाह धृतराष्ट्र से हो गया । उधर विवाह के कुछ दिनों बाद जब धृतराष्ट्र को इस घटना के बारे में पता चला तो उन्हें लगा कि गांधार नरेश ने धोखे से एक विधवा का विवाह मेरे साथ करा दिया है । जिसके बाद धृतराष्ट्र ने राजा सुबाला, उनकी पत्नी और उनके पुत्रों को जेल में डाल दिया ।सुबाल के कई पुत्र थे जिनमें शकुनी सबसे छोटा और बुद्धिमान था । जेल में लोगों को चावल के एक एक दाने खाने के लिए दिए जाते थे । गांधार नरेश सुबाला को लगा कि यदि हम सभी चावल के एक एक दाने खाएँगे तो एक दिन सभीअवश्य ही मर जाएँगे । इस से अच्छा है कि वे लोग अपने हिस्से के दाने भी शकुनी को दे दें ताकि वह जीवित रहे ।जब सभी जेल में थे तब उनके पिता ने शकुनी को चौसर में रूचि देखते हुए और मरने से पहले उससे कहा कि तुम मेरे मरने के बाद मेरी हड्डियों से पासा बनाना । इसमें मेरा दर्द और आक्रोश होगा जो तुम्हें चौसर में कभी नहीं हारने देगा । ये पासे हमेशा तुम्हारी आज्ञा मानेंगे ।अपने पिता की मृत्यु के बाद शकुनी ने उनकी कुछ हड्डियां अपने पास रख ली थी । ऐसा भी कहा जाता है कि पासो में उसके पिता की आत्मा वास कर गई थी, जिसकी वजह से वह पासे शकुनी की ही बात मानते थे ।शकुनी चाहता था अपने परिवार की मौत का बदलाराजा सुबाल के आखिरी दिनों में धृतराष्ट्र ने उसकी अंतिम इच्छा पूछी तो उसने अपने पुत्र शकुनी को आजाद करने को कहा जिसके उपरांत शकुनी आजाद हो गया । बंदीग्रह से बाहर आने के बाद शकुनी अपने लक्ष्य को भूल न जाये इसलिए बंदीग्रह के लोगों ने उसकी एक टांग तोड़ दी । इसी वजह से शकुनी लंगड़ाकर चलता था ।आजाद होने के बाद उसने धृतराष्ट्र से अपने सभी भाइयों और माता पिता के साथ हुए अन्याय का प्रतिशोध लेने के लिए प्रतिज्ञा ली तथा अपनी कुटिल बुद्धि का प्रयोग कर उन्हें महाभारत जैसे भयानक युद्ध में झोंक दिया । अभी तक आपने जाना कि शकुनी के पासो का रहस्य क्या था । अब आपको बताते हैं कि उसने कहाँ इनका इस्तेमाल किया था ।शकुनी ने अपने मंसूबों को किस तरह अंजाम दियाशकुनी जुआ खेलने में पारंगत था । उसने कौरवों में भी जुए के प्रति मोह जगा दिया था । उस की इस चाल मे कारण केवल पांडवों का ही नहीं बल्कि कौरवों का भी भयंकर अंत छुपा था क्योंकि शकुनी ने कौरव कुल के नाश की प्रतिज्ञा ली थी और उसके लिए उसने दुर्योधन को अपना पहला मोहरा बना लिया था ।वह हर समय केवल मौके की तलाश में रहता था जिसके चलते कौरवों और पांडवों के मध्य भयंकर युद्ध छिड़ा और कौरव मारे जाए । जब युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का युवराज घोषित किया गया तब शकुनी ने ही लाक्षाग्रह का षड्यंत्र रचा और सभी पांडवों को लाक्षागृह में जिंदा जलाकर मार डालने का प्रयास किया ।वो किसी भी तरह से दुर्योधन को हस्तिनापुर का राजा बनते देखना चाहता था ताकि उसका दुर्योधन पर मानसिक आधिपत् रहे और वह मूर्ख दुर्योधन की मदद से भीष्म पितामह और कुरुवंश का नाश कर सके ।शकुनी ने ही पांडवों के प्रति दुर्योधन के मन मे वैर जगाया और उसे सत्ता को लेकर लोभी बना दिया । शकुनी अपने पासे से छह अंक लाने में उस्ताद था इसलिए वह छह अंक ही कहता था । हालांकि दोस्तों शकुनी के प्रतिशोध की कहानी का वर्णन वेदव्यास द्वारा लिखे गए महाभारत में नहीं मिलता है ।उसने दुर्योधन के अपमान का फायदा उठायाबहुत से विद्वानों का मानना है कि शकुनी मायाजाल और सम्मोहन की मदद से पासो को अपने पक्ष में पलट देता था । जब पासे फेके जाते थे तो कई बार उनके निर्णय पांडवों के पक्ष में होते थे ताकि पांडव भ्रम में रहे कि पासे सही है ।शकुनी के कारण ही महाराज धृतराष्ट्र की ओर से पांडवो व कौरवों में होने वाले मतभेद के बाद पांडवों को एक बंजर क्षेत्र सौंपा गया था लेकिन पांडवों ने अपनी मेहनत से उसे इंद्रप्रस्थ में बदल दिया । युधिष्ठिर द्वारा किए गए राजसूय यज्ञ के समय दुर्योधन को यह नगरी देखने का मौका मिला ।महल में प्रवेश करने के बाद, दुर्योधन ने इस जल की भूमि को एक विशाल कक्ष समझकर कदम रखा और इस पानी में गिर गया। यह तमाशा देखकर पांडवों की पत्नी द्रौपदी उस पर हंस पड़ी और कहा कि अंधे का पुत्र अंधा था। यह सुनकर दुर्योधन क्रोधित हो गया।दुर्योधन के मन में चल रही बदले की इस भावना को शकुनी ने बढ़ावा दे दिया और इसी का फायदा उठाते हुए उसने पासो का खेल चौसर खेलने की योजना बनाई । उसने दुर्योधन से कहा के तुम इस खेल में जीतकर बदला ले सकते हो । खेल के जरिए पांडवों को हराने के लिए शकुनी ने बड़े प्रेम भाव से सभी पांडु पुत्रों को आमंत्रित किया और फिर शुरू हुआ दुर्योधन वा युधिष्टर के बीच चौसर खेलने का खेल ।पासो के जरिये रखी महाभारत की नीवशकुनी की चौसर की महारत अथवा उसका पासों पर स्वामित्व ऐसा था कि वह जो चाहता था वे अंक पासों पर आ जाते थे और उसकी उंगलियों के घुमाव पर ही पासों के अंक पूर्वनिर्धारित थे । खेल की शुरुआत में पांडवों का उत्साह बढाने के लिए शकुनी ने आरंभ की कुछ पारियों की जीत युधिष्टर के पक्ष में जाने दी ताकि पांडवों में खेल के प्रति उत्साह बढ़ जाए ।जिसके बाद धीरे धीरे खेल के उत्साह में युधिष्टर अपनी सारी दौलत और साम्राज्य जुए में हार गए । अंत में हुआ ये कि शकुनी ने युधिष्ठिर को सब कुछ एक शर्त पर वापस लौटा देने का वादा किया कि यदि वे अपनी पत्नी को दाव पर लगाए । मजबूर होकर युधिष्टर ने शकुनी की बात मान ली और अंत में पांडव यह पारी भी हार गए । इस खेल में द्रौपदी का अपमान कुरुक्षेत्र के महायुद्ध का कारण बना ।इसी तरह की ढेर सारी धार्मिक और ज्ञानवर्धक पोस्ट पड़ते रहने के लिए यहाँ क्लिक करें और व्हाट्सप्प, ग्रुप ज्वाइन करें ।शकुनी अपनी सपथ पूरी होते नहीं देख पाया क्यूंकि महाभारत के युद्ध में वह पहले ही मार दिया गयामहाभारत जैसे भयानक युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार करने में शकुनि ने अहम भूमिका निभाई थी। इसलिए वह सबसे पहले स्वर्ग पहुंचा, क्योंकि उसने अपने परिवार पर किए गए अपने अत्याचारों का बदला लिया और उसी युद्ध में खुद शहीद हो गया ।पोस्ट पसंद आयी हो तो इसे शेयर जरूर करें । दोस्तो जब हमे परीक्षा मे कोई उत्तर नहीं आता तो हम उत्तर को स्वयं रच लेते हैं । अगर परीक्षा मे हमे उत्तर की एक लाइन भी सही से याद रह जाती है तो हम उस लाइन के सहारे पूरा पन्ना भर देते हैं । ठीक इसी तरह शास्त्र का ज्ञान अगर आप ने थोड़ा बहुत भी पढ़ रखा है तो आपके मुश्किल वक्त मे यह आपके काम जरूर आएगा ।इसलिए हम आपसे निवेदन करते हैं कि इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और परोपकार के इस सुअवसर का लाभ लें । इसके साथ ही मुझे इजाजत दें, हमेसा की तरह अंत तक बने रहने के लिए शुक्रिया ।