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।। जय श्री राम ।।भगवान राम के बारे में कुछ ऐसे तथ्य जो बहुत कम लोग ही जानते है ।1- राम शब्द का वैदिक अर्थ है ‘जिसका अंतर दिव्य रोशनी से भरा हो’।2- भगवान राम के जन्म के लिए जब दशरथ ने यज्ञ करवाया तो वह 60 साल के थे।3- रामायण के हर 1000 श्लोक– गायत्री मंत्र में 24 अक्षर होते हैं और वाल्मीकि रामायण में 24,000 श्लोक हैं। रामायण के हर 1000 श्लोक के बाद आने वाले पहले अक्षर से गायत्री मंत्र बनता है। यह मंत्र इस पवित्र महाकाव्य का सार है। गायत्री मंत्र को सर्वप्रथम ऋग्वेद में उल्लेखित किया गया है।4- रामायण के अनुसार वानर सेना ने 5 दिन में समुद्र के ऊपर पुल बना लिया था।5- भगवान विश्वकर्मा द्वारा भगवान शिव के कहने पर लंका का निर्माण करवाया गया था और रावण के पिता ने भगवान शिव से यह लंका दान में मांग ली थी। इसके बाद अपने भाई कुबेर से युद्ध कर रावण ने लंका पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था।6- रामायण के अनुसार सिर्फ 33 देवी-देवता हैं।7- जब दशरथ जी ने भगवान राम को वनवास के लिए कहा तो उन्हें साथ ही ढेरों धन साथ ले जाने को कहा जिससे उन्हें वनवास में कोई कठिनाई न हो, लेकिन कैकयी ने झउसके लिए मना कर दिया।8- जब विभीषण और सब ने रावण को युद्ध में हथियार डालने को कहा तो रावण ने कहा कि “अगर राम और लक्ष्मण सामान्य इंसान हैं तो वो सीता को जीतकर सारे इंसानों पर राज करेगा और अगर वो भगवान हैं तो वो उनके तीरों से उनके हाथों मरेगा और मोक्ष प्राप्त कर विष्णु में मिल जायेगा” । इससे साबित होता है कि वो कोई पागल राजा नहीं था।9- भगवान राम ने सरयु में जलसमाधि ली थी। जब माँ सीता ने उनकी माँ भूमि देवी से उन्हें वापस अपनी गोद में ले लेने की प्रार्थना की तो वो धरती फट गई और वह उसमें समा गई। लव-कुश ने अपनी माँ को रोकने की कोशिश की। कुश अपनी माँ को दूर जाते ना देख पाया और अपनी माँ के पीछे ही धरती में समा गया। इस सब के बाद भगवान राम के लिए इस इंसानी जीवन की पीड़ा असहनीय हो गई और उन्होंने सीता के वियोग में सीता-सीता पुकारते हुए सरयु में समाधि ले ली।10 - भगवान राम जब सीता को ढूंढ रहे थे उस वक्त सती सीता के रूप मेंं ये जानने के लिए आई कि क्या राम सच मेंं भगवान हैं। इसके बाद जब वह भगवान राम के पास आई तो उन्होंने तुरंत पहचान लिया क्योंकि रामजी अन्तर्यामी थेवनिता कासनियां पंजाब द्वाराजय_सियाराम। 🙏💐🙏

"माथे पर तिलक क्यों लगाते हैं, जानिए इसका वैज्ञानिक कारण"*By वनिता कासनियां पंजाब,*माथे पर तिलक लगाना हिन्दू धर्म की एक पहचान होती है जो माथे के बीचों बीच लगाया जाता है। जब भी कोई शुभ कार्य किया जाता है तो माथे पर तिलक लगाया जाता है जिसमें हल्दी, सिन्दूर, केशर, भस्म और चंदन आदि का इस्तेमाल किया जाता है। माथे पर तिलक लगाने की प्रथा आज से नहीं सदियों से चली आ रही है, युद्ध में जाते समय राजा महाराजा भी तिलक लगाकर ही युद्ध में जाते थे। आज भी हमारे सैनिक जब युद्ध में जाते हैं तो उन्हें तिलक लगा कर उनकी सफलता की कामना की जाती है। जब भी कोई मेहमान घर से प्रस्थान करता है तो उनकी यात्रा मंगलमय हो ऐसी कामना के साथ उन्हें तिलक लगाकर विदा किया जाता है।**भारतीय संस्कृति में माथे पर तिलक लगाना शुभ संकेत माना जाता है लेकिन क्या आपको पता है आखिर माथे पर तिलक लगाते क्यों हैं ? इसके पीछे के कारण क्या है जो ये प्रथा सदियों से चली आ रही है ? आइये हम आपको इसके वैज्ञानिक कारणों के बारे में बताते हैं।**दरअसल हमारे शरीर में 7 सूक्ष्म ऊर्जा केंद्र होते हैं इन्हीं में से एक है आज्ञाचक्र जो माथे के बीच में होता है जहां तिलक लगाया जाता है। इस आज्ञाचक्र से शरीर की प्रमुख तीन नाडि़यां इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना आकर मिलती हैं इसी कारण इसे त्रिवेणी या संगम भी बोला जाता है। आज्ञाचक्र को शरीर का सबसे पूजनीय स्थान माना गया है और इसे गुरु स्थान बोला जाता है क्योंकि यहीं से पूरे शरीर का संचालन होता है और यही हमारी चेतना का मुख्य स्थान भी होता है।ध्यान लगाते समय भी इसी स्थान पर मन को एकाग्र किया जाता है।**साधारणतः माथे पर तिलक लगाने के लिए चन्दन का इस्तेमाल किया जाता है और चन्दन लगाने से मस्तिष्क में शांति और तरावट बनी रहती है साथ ही चन्दन से मस्तिष्क ठंडा रहता है। जब भी दिमाग पर जोर पड़ता है तो हमे सिर दर्द की शिकायत होती है लेकिन चन्दन का तिलक लगाने से हमारे मस्तिष्क को ठंडक मिलती है और सिरदर्द की समस्या से बहुत हद तक निजात मिलती है। इसी कारण कहा जाता है जो लोग सुबह उठकर नहाने के बाद सिर पर चन्दन का तिलक लगाते हैं उन्हें सिरदर्द जैसी समस्या नहीं होती। इसके आलावा तिलक के साथ साथ चावल भी लगाए जाते हैं और चावल लगाने के पीछे ऐसी धार्मिक मान्यता है की चावल लगाकर लक्ष्मी को आकर्षित किया जाता है।**स्त्रियां में अक्सर अपने माथे पर लाल कुमकुम का तिलक लगाने की प्रथा है और इसके पीछे भी एक कारण है। दरअसल लाल रंग ऊर्जा और स्फूर्ति का प्रतीक माना गया है और तिलक लगाने से स्त्रियों का सौंदर्य बढ़ता है। इसके आलावा तिलक को देवी की आराधना से भी जोड़ा गया है और इसे देवी के आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है।*🧺🧺🧺🧺🧺🧺🧺🧺🧺🔮🔮🔮🔮🔮🔮🔮🔮🔮

How to lose weight easily at home. घर में आसानी से वजन कैसे घटाए।By Vnita kasnia punjabदोस्तों आजकल की भाग दौड़ भरी जिंदगी में समय बचाने के चक्कर में हम अपने भोजन में विशेष रूप से ध्यान नहीं दे पाते हैं जिसके चलते हम बाहर होटल या किसी ढाबे से अधिक मात्रा में फास्ट फ़ूड जैसे- बर्गर, मैगी पिज्जा ओर ऐसी हि अन्य चीजों का अधिक मात्रा में सेवन कर लेते हैं जो हमारे स्वास्थ को तो नुकसान पहुँचता हि है और हमारे शरीर के वजन को भी एक दम से बड़ा लेता है जो हमारे शरीर में कई बीमारियों का कारण बनता हैदोस्तों अगर हम समय रहते हि अपने वजन व शरीर में लगी चर्बी को कम नही करते तो आगे चलके हमें डिप्रेसन व हार्टअटैक जैसी अन्य बीमाइयों का शिकार बनना पड़ता है।दोस्तों इसी के चलते आज में आपको बताऊंगा की आप घर में हि आसानी व घरेलू तरीके से अपना वजन कैसे कम कर पाएंगे ।1- सुबह उठ कर सर्वप्रथम गुनगुने पानी का सेवन करें -दोस्तों अगर हम सुबह उठ कर गर्म पानी या गुनगुने पानी का सेवन करते है तो उससे हमारा शरीर डिटोक्स होता है और हमारे शरीर में उपस्थित गंदगी को मूत्र के जरिये बाहर निकाल देता है जिससे हमारे शरीर का खुन भी साफ रहता है जो हमारे शरीर का वजन कम करने में मदत करता है।2- वाकिंग व एक्ससाइज करें।दोस्तों कम समय में अधिक वजन घटाने का यह सबसे सरल व आसान उपाय है जिसमें आपको सुबह व शाम 40 -60 मिनट तक व वाकिंग करनी है और फिर उसके बाद एक्ससाइज करना है जिससे आपको फ्रेश तो महशुश होगा हि और आप स्वस्थ भी रहेंगे और आपका वजन भी इतना ज्यादा घटेगा आपको पता तक नही चलेगा।3- ग्रीन टी का नियमित सेवन करें।दोस्तों आपको अपने वजन को कम करने के लिए नियमित रूप से ग्रीन टी का सेवन करना है जो वजन घटाने के लिए सबसे असरदार व प्रभावी है आपने देखा या सुना हि होगा अक्सर लोग अपना वजन कम करने के लिए ग्रीन टी का सेवन करते हैं जो हमारी थकावट को तो दूर करता हि है और साथ हि इसमें पाए जाने वाले विटाइमिन्स हमारे शरीर में पाए जाने वाले फैट को भी कम करता हैं।4- खाने को चबा चबा कर खाएं।अगर आप खाने को जितना अधिक चबा कर खाएंगे उतने हि कम खाने से आपका पेट भर जाएगा और खाना भी आसानी से पचेगा। जिससे आपको वजन लूज करने के लिए मेहनत भी कम करनी पड़ेगी क्युकी अगर आप ज्यादा खाना खाएंगे तो आपके शरीर को ज्यादा केलोरी प्राप्त होगी और उस कैलरी को बर्न करने के लिए आपको ज्यादा एक्ससाइज करना पड़ेगा ।5- सलाद का सेवन अधिक मात्रा में करें।सलाद के सेवन से हमारे शरीर को भरपुर मात्र में फाइवर मिलता है और सलाद और फल को हमारा पेट आसानी से पचा भी लेता है जिससे हमारा पेट साफ होने में ब्लॉटिंग की समस्या नहीं होती, इसलिए सलाद का सेवन वजन कम करने में बहुत सहायक है।और अधिक जानकारी के लिए लिंक पर क्लिक करें ।धन्यवाद जी 🪴🙏🙏🪴

मुबारक हो तुमको यह शादी तुम्हारी,सदा खुश रहो तुम, ये दुआ है हमारी!azad son and seenu daughter in law को शादी की बहुत बहुत बधाई🌷🎂🌷🎂🌷*****आकाश के तारों में जितनी चमक है, आपकेजीवन में दमक उतनी ही बनी रहे,हर दिन तुम दोनों साथ में मिलकर खुशी मनाओतुम दोनों के जीवन में खुशियां सदा भरी रहे !🌷🎂🌷🎂🌷🎂🌷आसमान के सितारों में है जितनी चमक,तुम्हारे जीवन में दमक उतनी ही बनी रहे,हर दिन तुम दोनो साथ मिलकार खुशी मनाओतुम दोनो के जीवन में खुशियां सदा भारी रहे!🌷🎂🌷🎂🌷🎂🌷*****जीवन की हर पल संतुष्टि दे आपको,दिन का हर लम्हा खुशी दे आपको, जहांगम की हवा छू के भी न गुजरे,ईश्वर ऐसी जिंदगी दे आप दोनों को!🌷🎂🌷🎂🌷🎂🌷जिंदगी का हर पल संतुष्टि दे आपको,दिन का हर लम्हा खुशी दे आपको,जहां गम की हवा छू के भी ना गुजरे,ईश्वर ऐसी जिंदगी दे आप दोनो को!🌷🎂🌷🎂🌷🎂🌷*****सर पर सेहरा, शादी का है दिन कापहनावा है कोट, आज के दिन,सजी धजी घोड़ी, चले ना तेरे बीमा,मुबारक हो तुमको, शादी का यह दिन !🌷🎂🌷🎂🌷🎂🌷सर पर सहरा, शादी का है दिनपहनना है कोट, तुम्हारे आज के दिन,साजी धाजी घोड़ी, चले ना तुम्हारे बिन,मुबारक हो तुमको, शादी का यह दिन!🌷🎂🌷💞🎂💞🌷🎂🌷

गीता के १८ अध्याय श्रीमद्भगवद्ग गीता यह लेख मुख्य रूप से अथवा पूर्णतया एक ही स्रोत पर निर्भर करता है। कृपया इस लेख में उचित संदर्भ डालकर इसे बेहतर बनाने में मदद करें। गीता के १८ अध्याय By वनिता कासनियां पंजाब द्वारा महाभारत युद्ध आरम्भ होने के ठीक पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया वह श्रीमद्भगवद्गीता के नाम से प्रसिद्ध है। यह महाभारत के भीष्मपर्व का अंग है। गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं।[1]आज से (सन 2022) लगभग 1 लाख वर्ष पहले गीता जी का ज्ञान बोला गया था। गीता की गणना प्रस्थानत्रयी में की जाती है, जिसमें उपनिषद् और ब्रह्मसूत्र भी सम्मिलित हैं। अतएव भारतीय परम्परा के अनुसार गीता का स्थान वही है जो उपनिषद् और धर्मसूत्रों का है। उपनिषदों को गौ (गाय) और गीता को उसका दुग्ध कहा गया है। इसका तात्पर्य यह है कि उपनिषदों की जो अध्यात्म विद्या थी, उसको गीता सर्वांश में स्वीकार करती है। उपनिषदों की अनेक विद्याएँ गीता में हैं। जैसे, संसार के स्वरूप के संबंध में अश्वत्थ विद्या, अनादि अजन्मा ब्रह्म के विषय में अव्ययपुरुष विद्या, परा प्रकृति या जीव के विषय में अक्षरपुरुष विद्या और अपरा प्रकृति या भौतिक जगत के विषय में क्षरपुरुष विद्या। इस प्रकार वेदों के ब्रह्मवाद और उपनिषदों के अध्यात्म, इन दोनों की विशिष्ट सामग्री गीता में संनिविष्ट है। उसे ही पुष्पिका के शब्दों में ब्रह्मविद्या कहा गया है।[2] श्रीमद्भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन कुरुक्षेत्र में, जानकारी धर्म अध्याय 18 श्लोक/आयत 700 महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन युद्ध करने से मना करते हैं तब श्री कृष्ण उन्हें उपदेश देते है और कर्म व धर्म के सच्चे ज्ञान से अवगत कराते हैं। श्री कृष्ण के इन्हीं उपदेशों को “भगवत गीता” नामक ग्रंथ में संकलित किया गया है। गीता के १८ अध्याय गीता के १८ अध्यायों में वर्णित विषयों की भी क्रमप्राप्त संगति है। प्रथम अध्याय प्रथम अध्याय का नाम अर्जुनविषादयोग है। वह गीता के उपदेश का विलक्षण नाटकीय रंगमंच प्रस्तुत करता है जिसमें श्रोता और वक्ता दोनों ही कुतूहल शांति के लिए नहीं वरन् जीवन की प्रगाढ़ समस्या के समाधान के लिये प्रवृत्त होते हैं। शौर्य और धैर्य, साहस और बल इन चारों गुणों की प्रभूत मात्रा से अर्जुन का व्यक्तित्व बना था और इन चारों के ऊपर दो गुण और थे एक क्षमा, दूसरी प्रज्ञा। बलप्रधान क्षात्रधर्म से प्राप्त होनेवाली स्थिति में पहुँचकर सहसा अर्जुन के चित्त पर एक दूसरे ही प्रकार के मनोभाव का आक्रमण हुआ, कार्पण्य का। एक विचित्र प्रकार की करुणा उसके मन में भर गई और उसका क्षात्र स्वभाव लुप्त हो गया। जिस कर्तव्य के लिए वह कटिबद्ध हुआ था उससे वह विमुख हो गया। ऊपर से देखने पर तो इस स्थिति के पक्ष में उसके तर्क धर्मयुक्त जान पड़ते हैं, किंतु उसने स्वयं ही उसे कार्पण्य दोष कहा है और यह माना है कि मन की इस कायरता के कारण उसका जन्मसिद्ध स्वभाव उपहत या नष्ट हो गया था। वह निर्णय नहीं कर पा रहा था कि युद्ध करे अथवा वैराग्य ले ले। क्या करें, क्या न करें, कुछ समझ में नहीं आता था। इस मनोभाव की चरम स्थिति में पहुँचकर उसने धनुषबाण एक ओर डाल दिया। कृष्ण ने अर्जुन की वह स्थिति देखकर जान लिया कि अर्जुन का शरीर ठीक है किंतु युद्ध आरंभ होने से पहले ही उस अद्भुत क्षत्रिय का मनोबल टूट चुका है। बिना मन के यह शरीर खड़ा नहीं रह सकता। अतएव कृष्ण के सामने एक गुरु कर्तव्य आ गया। अत: तर्क से, बुद्धि से, ज्ञान से, कर्म की चर्चा से, विश्व के स्वभाव से, उसमें जीवन की स्थिति से, दोनों के नियामक अव्यय पुरुष के परिचय से और उस सर्वोपरि परम सत्तावान ब्रह्म के साक्षात दर्शन से अर्जुन के मन का उद्धार करना, यही उनका लक्ष्य हुआ। इसी तत्वचर्चा का विषय गीता है। पहले अध्याय में सामान्य रीति से भूमिका रूप में अर्जुन ने भगवान से अपनी स्थिति कह दी। प्रथम अध्याय में दोनों सेनाओं का वर्णन किया जाता है। शंख बजाने के पश्चात अर्जुन सेना को देखने के लिए रथ को सेनाओं के मध्य ले जाने के लिए कृष्ण से कहता है। तब मोहयुक्त हो अर्जुन कायरता तथा शोक युक्त वचन कहता है। दूसरा अध्याय दूसरे अध्याय का नाम सांख्ययोग है। इसमें जीवन की दो प्राचीन संमानित परंपराओं का तर्कों द्वारा वर्णन आया है। अर्जुन को उस कृपण स्थिति में रोते देखकर कृष्ण ने उनका ध्यान दिलाया है कि इस प्रकार का क्लैव्य और हृदय की क्षुद्र दुर्बलता अर्जुन जैसे वीर के लिए उचित नहीं। कृष्ण ने अर्जुन की अब तक दी हुई सब युक्तियों को प्रज्ञावाद का झूठा रूप कहा। उनकी युक्ति यह है कि प्रज्ञादर्शन काल, कर्म और स्वभाव से होनेवाले संसार की सब घटनाओं और स्थितियों को अनिवार्य रूप से स्वीकार करता है। जीना और मरना, जन्म लेना और बढ़ना, विषयों का आना और जाना। सुख और दुख का अनुभव, ये तो संसार में होते ही हैं, इसी को प्राचीन आचार्य पर्यायवाद का नाम भी देते थे। काल की चक्रगति इन सब स्थितियों को लाती है और ले जाती है। जीवन के इस स्वभाव को जान लेने पर फिर शोक नहीं होता। यही भगवान का व्यंग्य है कि प्रज्ञा के दृष्टिकोण को मानते हुए भी अर्जुन इस प्रकार के मोह में क्यों पड़ गया है। ऊपर के दृष्टिकोण का एक आवश्यक अंग जीवन की नित्यता और शरीर की अनित्यता था। नित्य जीव के लिए शोक करना उतना ही व्यर्थ है जितना अनित्य शरीर को बचाने की चिंता। ये दोनों अपरिहार्य हैं। जन्म और मृत्यु बारी बारी से होते ही हैं, ऐसा समझकर शोक करना उचित नहीं है। फिर एक दूसरा दृष्टिकोण स्वधर्म का है। जन्म से ही प्रकृति ने सबके लिए एक धर्म नियत कर दिया है। उसमें जीवन का मार्ग, इच्छाओं की परिधि, कर्म की शक्ति सभी कुछ आ जाता है। इससे निकल कर नहीं भागा जा सकता। कोई भागे भी तो प्रकृत्ति उसे फिर खींच लाती है। इस प्रकार काल का परिवर्तन या परिमाण, जीव की नित्यता और अपना स्वधर्म या स्वभाव जिन युक्तियों से भगवान् ने अर्जुन को समझाया है उसे उन्होंने सांख्य की बुद्धि कहा है। इससे आगे अर्जुन के प्रश्न न करने पर भी उन्होंने योगमार्ग की बुद्धि का भी वर्णन किया। यह बुद्धि कर्म या प्रवृत्ति मार्ग के आग्रह की बुद्धि है इसमें कर्म करते हुए कर्म के फल की आसक्ति से अपने को बचाना आवश्यक है। कर्मयोगी के लिए सबसे बड़ा डर यही है कि वह फल की इच्छा के दल दल में फँस जाता है; उससे उसे बचना चाहिए। अर्जुन को संदेह हुआ कि क्या इस प्रकार की बुद्धि प्राप्त करना संभव है। व्यक्ति कर्म करे और फल न चाहे तो उसकी क्या स्थिति होगी, यह एक व्यावहारिक शंका थी। उसने पूछा कि इस प्रकार का दृढ़ प्रज्ञावाला व्यक्ति जीवन का व्यवहार कैसे करता है? आना, जाना, खाना, पीना, कर्म करना, उनमें लिप्त होकर भी निर्लेप कैसे रहा जा सकता है? कृष्ण ने कितने ही प्रकार के बाह्य इंद्रियों की अपेक्षा मन के संयम की व्याख्या की है। काम, क्रोध, भय, राग, द्वेष के द्वारा मन का सौम्यभाव बिगड़ जाता है और इंद्रियाँ वश में नहीं रहतीं। इंद्रियजय ही सबसे बड़ी आत्मजय है। बाहर से कोई विषयों को छोड़ भी दे तो भी भीतर का मन नहीं मानता। विषयों का स्वाद जब मन से जाता है, तभी मन प्रफुल्लित, शांत और सुखी होता है। समुद्र में नदियाँ आकर मिलती हैं पर वह अपनी मर्यादा नहीं छोड़ता। ऐसे ही संसार में रहते हुए, उसके व्यवहारों को स्वीकारते हुए, अनेक कामनाओं का प्रवेश मन में होता रहता है। किंतु उनसे जिसका मन अपनी मर्यादा नहीं खोता उसे ही शांति मिलती हैं। इसे प्राचीन अध्यात्म परिभाषा में गीता में ब्राह्मीस्थिति कहा है। अर्जुन की कायरता के विषय में अर्जुन कृष्ण संवाद सांख्य योग कर्मयोग स्थिर बुद्धि व्यक्ति के गुण तीसरे अध्याय इस प्रकार सांख्य की व्याख्या का उत्तर सुनकर कर्मयोग नामक तीसरे अध्याय में अर्जुन ने इस विषय में और गहरा उतरने के लिए स्पष्ट प्रश्न किया कि सांख्य और योग इन दोनों मार्गों में आप किसे अच्छा समझते हैं और क्यों नहीं यह निश्चित कहते कि मैं इन दोनों में से किसे अपनाऊँ? इसपर कृष्ण ने भी उतनी ही स्पष्टता से उत्तर दिया कि लोक में दो निष्ठाएँ या जीवनदृष्टियाँ हैं-सांख्यवादियों के लिए ज्ञानयोग है और कर्ममार्गियों के लिए कर्मयोग है। यहाँ कोई व्यक्ति कर्म छोड़ ही नहीं सकता। प्रकृति तीनों गुणों के प्रभाव से व्यक्ति को कर्म करने के लिए बाध्य करती है। कर्म से बचनेवालों के प्रति एक बड़ी शंका है, वह यह कि वे ऊपर से तो कर्म छोड़ बैठते हैं पर मन ही मन उसमें डूबे रहते हैं। यह स्थिति असह्य है और इसे कृष्ण ने गीता में मिथ्याचार कहा है। मन में कर्मेद्रियों को रोककर कर्म करना ही सरल मानवीय मार्ग है। कृष्ण ने चुनौती के रूप में यहाँ तक कह दिया कि कर्म के बिना तो खाने के लिए अन्न भी नहीं मिल सकता। फिर कृष्ण ने कर्म के विधान को चक्र के रूप में उपस्थित किया। न केवल सामाजिक धरातल पर भिन्न व्यक्तियों के कर्मचक्र अरों की तरह आपस में पिरोए हुए हैं बल्कि पृथ्वी के मनुष्य और स्वर्ग के देवता दोनों का संबंध भी कर्मचक्र पर आश्रित है। प्रत्यक्ष है कि यहाँ मनुष्य कर्म करते हैं, कृषि करते हैं और दैवी शक्तियाँ वृष्टि का जल भेजती हैं। अन्न और पर्जन्य दोनों कर्म से उत्पन्न होते हैं। एक में मानवीय कर्म, दूसरे में दैवी कर्म। फिर कर्म के पक्ष में लोकसंग्रह की युक्ति दी गई है, अर्थात् कर्म के बिना समाज का ढाँचा खड़ा नहीं रह सकता। जो लोक के नेता हैं, जनक जैसे ज्ञानी हैं, वे भी कर्म में प्रवृत्ति रखते हैं। कृष्ण ने स्वयं अपना ही दृष्टांत देकर कहा कि मैं नारायण का रूप हूँ, मेरे लिए कुछ कर्म शेष नहीं है। फिर भी तंद्रारहित होकर कर्म करता हूँ और अन्य लोग मेरे मार्ग पर चलते हैं। अंतर इतना ही है कि जो मूर्ख हैं वे लिप्त होकर कर्म करते हैं पर ज्ञानी असंग भाव से कर्म करता है। गीता में यहीं एक साभिप्राय शब्द बुद्धिभेद है। अर्थात् जो साधारण समझ के लोग कर्म में लगे हैं उन्हें उस मार्ग से उखाड़ना उचित नहीं, क्योंकि वे ज्ञानवादी बन नहीं सकते, और यदि उनका कर्म भी छूट गया तो वे दोनों ओर से भटक गये नित्य कर्म करने वाले की श्रेष्ठता। यज्ञादि कर्मों की आवश्यकता। अज्ञानी और ज्ञानी के लक्षण। काम के निरोध का विषय। चौथे अध्याय चौथे अध्याय में, जिसका नाम ज्ञान-कर्म-संन्यास-योग है, यह बाताया गया है कि ज्ञान प्राप्त करके कर्म करते हुए भी कर्मसंन्यास का फल किस उपाय से प्राप्त किया जा सकता है। यहीं गीता का वह प्रसिद्ध आश्वासन है कि जब जब धर्म की ग्लानि होती है तब तब मनुष्यों के बीच भगवान का अवतार होता है, अर्थात् भगवान की शक्ति विशेष रूप से मूर्त होती है। यहीं पर एक वाक्य विशेष ध्यान देने योग्य है- क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा (४१२)। ‘कर्म से सिद्धि’-इससे बड़ा प्रभावशाली जय सूत्र गीतादर्शन में नहीं है। किंतु गीतातत्व इस सूत्र में इतना सुधार और करता है कि वह कर्म असंग भाव से अर्थात् फलासक्ति से बचकर करना चाहिए। भगवान बताते हैं कि सबसे पहले मैंने यह ज्ञान भगवान सूर्य को दिया था। सूर्य के पश्चात गुरु परंपरा द्वारा आगे बढ़ा। किन्तु अब यह लुप्तप्राय हो गया है। अब वही ज्ञान मैं तुम्हे बताने जा रहा हूँ। अर्जुन कहते हैं कि आपका तो जन्म हाल में ही हुआ है तो आपने यह सूर्य से कैसे कहा? तब श्री भगवान ने कहा है की तेरे और मेरे अनेक जन्म हुए लेकिन तुम्हे याद नहीं पर मुझे याद है। “ यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥ परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥ श्री कृष्ण कहते हैं की जब जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है तब तब मैं अपने स्वरूप की रचना करता हूँ| ॥४-७॥ साधुओं की रक्षा के लिए, दुष्कर्मियों का विनाश करने के लिए, धर्म की स्थापना के लिए मैं युग युग में मानव के रूप में अवतार लेता हूँ| ॥४-८॥ कर्म, अकर्म और विकर्म का वर्णन। यज्ञोके स्वरूप। ज्ञानयज्ञ का वर्णन। पाँचवे अध्याय पाँचवे अध्याय कर्मसंन्यास योग नामक में फिर वे ही युक्तियाँ और दृढ़ रूप में कहीं गई हैं। इसमें कर्म के साथ जो मन का संबंध है, उसके संस्कार पर या उसे विशुद्ध करने पर विशेष ध्यान दिलाया गया है। यह भी कहा गया है कि ऊँचे धरातल पर पहुँचकर सांख्य और योग में कोई भेद नहीं रह जाता है। किसी एक मार्ग पर ठीक प्रकार से चले तो समान फल प्राप्त होता है। जीवन के जितने कर्म हैं, सबको समर्पण कर देने से व्यक्ति एकदम शांति के ध्रुव बिंदु पर पहुँच जाता है और जल में खिले कमल के समान कर्म रूपी जल से लिप्त नहीं होता। भगवान श्रीकृष्ण इस अध्याय में कर्मयोग और साधु पुरुष का वर्णन करते हैं। तथा बताते हैं कि मैं सृष्टि के हर जीव में समान रूप से रहता हूँ अतः प्राणी को समदर्शी होना चाहिए। विद्याविनयसंपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।। शुनि चैव श्वपाके च पंडिता: समदर्शिन: "ज्ञानी महापुरुष विद्या-विनययुक्त ब्राह्मण में और चाण्डाल में तथा गाय, हाथी एवं कुत्ते में भी समरूप परमात्मा को देखने वाले होते हैं।" छठा अध्याय छठा अध्याय आत्मसंयम योग है जिसका विषय नाम से ही प्रकट है। जितने विषय हैं उन सबसे इंद्रियों का संयम-यही कर्म और ज्ञान का निचोड़ है। सुख में और दुख में मन की समान स्थिति, इसे ही योग कहते हैं। सातवें अध्याय की संज्ञा ज्ञानविज्ञान योग है। ये प्राचीन भारतीय दर्शन की दो परिभाषाएँ हैं। उनमें भी विज्ञान शब्द वैदिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण था। सृष्टि के नानात्व का ज्ञान विज्ञान है और नानात्व से एकत्व की ओर प्रगति ज्ञान है। ये दोनों दृष्टियाँ मानव के लिए उचित हैं। इस प्रसंग में विज्ञान की दृष्टि से अपरा और परा प्रकृति के इन दो रूपों की जो सुनिश्चित व्याख्या यहाँ गीता ने दी है, वह अवश्य ध्यान देने योग्य है। अपरा प्रकृति में आठ तत्व हैं, पंचभूत, मन, बुद्धि और अहंकार। जिस अंड से मानव का जन्म होता है। उसमें ये आठों रहते हैं। किंतु यह प्राकृत सर्ग है अर्थात् यह जड़ है। इसमें ईश्वर की चेष्टा के संपर्क से जो चेतना आती है उसे परा प्रकृति कहते हैं; वही जीव है। आठ तत्वों के साथ मिलकर जीवन नवाँ तत्व हो जाता है। इस अध्याय में भगवान के अनेक रूपों का उल्लेख किया गया है जिनका और विस्तार विभूतियोग नामक दसवें अध्याय में आता है। यहीं विशेष भगवती दृष्टि का भी उल्लेख है जिसका सूत्र-वासुदेव: सर्वमिति, सब वसु या शरीरों में एक ही देवतत्व है, उसी की संज्ञा विष्णु है। किंतु लोक में अपनी अपनी रु चि के अनुसार अनेक नामों और रूपों में उसी एक देवतत्व की उपासना की जाती है। वे सब ठीक हैं। किंतु अच्छा यही है कि बुद्धिमान मनुष्य उस ब्रह्मतत्व को पहचाने जो अध्यात्म विद्या का सर्वोच्च शिखर है। पंचतत्व, मन, बुद्धि भी मैं हूँ| मैं ही संसार की उत्पत्ति करता हूँ और विनाश भी मैं ही करता हूँ। मेरे भक्त चाहे जिस प्रकार भजें परन्तु अंततः मुझे ही प्राप्त होते हैं। मैं योगमाया से अप्रकट रहता हूँ और मुर्ख मुझे केवल साधारण मनुष्य ही समझते हैं। “ यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति। तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्।।7.21।। वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन। भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन।।7.26।। आठवें अध्याय की संज्ञा अक्षर ब्रह्मयोग है। उपनिषदों में अक्षर विद्या का विस्तार हुआ। गीता में उस अक्षरविद्या का सार कह दिया गया है-अक्षर ब्रह्म परमं, अर्थात् परब्रह्म की संज्ञा अक्षर है। मनुष्य, अर्थात् जीव और शरीर की संयुक्त रचना का ही नाम अध्यात्म है। जीवसंयुक्त भौतिक देह की संज्ञा क्षर है और केवल शक्तितत्व की संज्ञा आधिदैवक है। देह के भीतर जीव, ईश्वर तथा भूत ये तीन शक्तियाँ मिलकर जिस प्रकार कार्य करती हैं उसे अधियज्ञ कहते हैं। गीताकार ने दो श्लोकों में (८।३-४) इन छह पारिभाषाओं का स्वरूप बाँध दिया है। गीता के शब्दों में ॐ एकाक्षर ब्रह्म है (८।१३)। नवें अध्याय को राजगुह्ययोग कहा गया है, अर्थात् यह अध्यात्म विद्या विद्याराज्ञी है और यह गुह्य ज्ञान सबमें श्रेष्ठ है। राजा शब्दका एक अर्थ मन भी था। अतएव मन की दिव्य शक्तिमयों को किस प्रकार ब्रह्ममय बनाया जाय, इसकी युक्ति ही राजविद्या है। इस क्षेत्र में ब्रह्मतत्व का निरूपण ही प्रधान है, उसी से व्यक्त जगत का बारंबार निर्माण होता है। वेद का समस्त कर्मकांड यज्ञ, अमृत, और मृत्यु, संत और असंत, और जितने भी देवी देवता है, सबका पर्यवसान ब्रह्म में है। लोक में जो अनेक प्रकार की देवपूजा प्रचलित है, वह भी अपने अपने स्थान में ठीक है, समन्वय की यह दृष्टि भागवत आचार्यों को मान्य थी, वस्तुत: यह उनकी बड़ी शक्ति थी। इसी दृष्टिकोण का विचार या व्याख्या दसवें अध्याय में पाई जाती है। दसवें अध्याय दसवें अध्याय का नाम विभूतियोग है। इसका सार यह है कि लोक में जितने देवता हैं, सब एक ही भगवान, की विभूतियाँ हैं, मनुष्य के समस्त गुण और अवगुण भगवान की शक्ति के ही रूप हैं। बुद्धि से इन छुटभैए देवताओं की व्याख्या चाहे ने हो सके किंतु लोक में तो वह हैं ही। कोई पीपल को पूज रहा है। कोई पहाड़ को कोई नदी या समुद्र को, कोई उनमें रहनेवाले मछली, कछुओं को। यों कितने देवता हैं, इसका कोई अंत नहीं। विश्व के इतिहास में देवताओं की यह भरमार सर्वत्र पाई जाती है। भागवतों ने इनकी सत्ता को स्वीकारते हुए सबको विष्णु का रूप मानकर समन्वय की एक नई दृष्टि प्रदान की। इसी का नाम विभूतियोग है। जो सत्व जीव बलयुक्त अथवा चमत्कारयुक्त है, वह सब भगवान का रूप है। इतना मान लेने से चित्त निर्विरोध स्थिति में पहुँच जाता है। “ सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्। कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम् ॥ ७ ॥ „ ११वें अध्याय का नाम विश्वरूपदर्शन योग है। इसमें अर्जुन ने भगवान का विश्वरूप देखा। विराट रूप का अर्थ है मानवीय धरातल और परिधि के ऊपर जो अनंत विश्व का प्राणवंत रचनाविधान है, उसका साक्षात दर्शन। विष्णु का जो चतुर्भुज रूप है, वह मानवीय धरातल पर सौम्यरूप है। जब अर्जुन ने भगवान का विराट रूप देखा तो उसके मस्तक का विस्फोटन होने लगा। ‘दिशो न जाने न लभे च शर्म’ ये ही घबराहट के वाक्य उनके मुख से निकले और उसने प्रार्थना की कि मानव के लिए जो स्वाभाविक स्थिति ईश्वर ने रखी है, वही पर्याप्त हैं। १२ वें अध्याय का नाम भक्ति योग है। जो जानने योग्य है। जिसको जानकर मनुष्य परमानन्द को प्राप्त हो जाता है अर्थात वो परमात्मा ही सत्य है ।। १३वें अध्याय में एक सीधा विषय क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का विचार है। यह शरीर क्षेत्र है, उसका जाननेवाला जीवात्मा क्षेत्रज्ञ है। १४वें अध्याय का नाम गुणत्रय विभाग योग है। यह विषय समस्त वैदिक, दार्शनिक और पौराणिक तत्वचिंतन का निचोड़ है-सत्व, रज, तम नामक तीन गुण-त्रिको की अनेक व्याख्याएँ हैं। गुणों की साम्यावस्था का नाम प्रधान या प्रकृति है। गुणों के वैषम्य से ही वैकृत सृष्टि का जन्म होता है। अकेला सत्व शांत स्वभाव से निर्मल प्रकाश की तरह स्थिर रहता है और अकेला तम भी जड़वत निश्चेष्ट रहता है। किंतु दोनों के बीच में छाया हुआ रजोगुण उन्हें चेष्टा के धरातल पर खींच लाता है। गति तत्व का नाम ही रजस है। १५वें अध्याय का नाम पुरुषोत्तमयोग है। इसमें विश्व का अश्वत्थ के रूप में वर्णन किया गया है। यह अश्वत्थ रूपी संसार महान विस्तारवाला है। देश और काल में इसका कोई अंत नहीं है। किंतु इसका जो मूल या केंद्र है, जिसे ऊर्ध्व कहते हैं, वह ब्रह्म ही है एक ओर वह परम तेज, जो विश्वरूपी अश्वत्थ को जन्म देता है, सूर्य और चंद्र के रूप में प्रकट है, दूसरी ओर वही एक एक चैतन्य केंद्र में या प्राणि शरीर में आया हुआ है। जैसा गीता में स्पष्ट कहा है-अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रित: (१५.१४)। वैश्वानर या प्राणमयी चेतना से बढ़कर और दूसरा रहस्य नहीं है। नर या पुरुष तीन हैं-क्षर, अक्षर और अव्यय। पंचभूतों का नाम क्षर है, प्राण का नाम अक्षर है और मनस्तत्व या चेतना की संज्ञा अव्यय है। इन्हीं तीन नरों की एकत्र स्थिति से मानवी चेतना का जन्म होता है उसे ही ऋषियों ने वैश्वानर अग्नि कहा है। १६वें अध्याय में देवासुर संपत्ति का विभाग बताया गया है। आरंभ से ही ऋग्देव में सृष्टि की कल्पना दैवी और आसुरी शक्तियों के रूप में की गई है। यह सृष्टि के द्विविरुद्ध रूप की कल्पना है, एक अच्छा और दूसरा बुरा। एक प्रकाश में, दूसरा अंधकार में। एक अमृत, दूसरा मर्त्य। एक सत्य, दूसरा अनृत। १७वें अध्याय की संज्ञा श्रद्धात्रय विभाग योग है। इसका संबंध सत, रज और तम, इन तीन गुणों से ही है, अर्थात् जिसमें जिस गुण का प्रादुर्भाव होता है, उसकी श्रद्धा या जीवन की निष्ठा वैसी ही बन जाती है। यज्ञ, तप, दान, कर्म ये सब तीन प्रकार की श्रद्धा से संचालित होते हैं। यहाँ तक कि आहार भी तीन प्रकार का है। उनके भेद और लक्षण गीता ने यहाँ बताए हैं। १८वें अध्याय की संज्ञा मोक्षसंन्यास योग है। इसमें गीता के समस्त उपदेशों का सार एवं उपसंहार है। यहाँ पुन: बलपूर्वक मानव जीवन के लिए तीन गुणों का महत्व कहा गया है। पृथ्वी के मानवों में और स्वर्ग के देवताओं में कोई भी ऐसा नहीं जो प्रकृति के चलाए हुए इन तीन गुणों से बचा हो। मनुष्य को बहुत देख भागकर चलना आवश्यक है जिससे वह अपनी बुद्धि और वृत्ति को बुराई से बचा सके और क्या कार्य है, क्या अकार्य है, इसको पहचान सके। धर्म और अधर्म को, बंध और मोक्ष को, वृत्ति और निवृत्ति को जो बुद्धि ठीक से पहचनाती है, वही सात्विकी बुद्धि है और वही मानव की सच्ची उपलब्धि है। इस प्रकार भगवान ने जीवन के लिए व्यावहारिक मार्ग का उपदेश देकर अंत में यह कहा है कि मनुष्य को चाहिए कि संसार के सब व्यवहारों का सच्चाई से पालन करते हुए, जो अखंड चैतन्य तत्व है, जिसे ईश्वर कहते हैं, जो प्रत्येक प्राणी के हृद्देश या केंद्र में विराजमान है, उसमें विश्वास रखे, उसका अनुभव करे। वही जीव की सत्ता है, वही चेतना है और वही सर्वोपरि आनंद का स्रोत है। गीता जयंती ब्रह्मपुराण के अनुसार मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का बहुत बड़ा महत्व है। द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन अर्जुन को भगवद् गीता का उपदेश दिया था। इसीलिए यह तिथि गीता जयंती के नाम से भी प्रसिद्ध है। और इस एकादशी को “मोक्षदा एकादशी” कहते है. भगवान ने अर्जुन को निमित्त बनाकर, विश्व के मानव मात्र को गीता के ज्ञान द्वारा जीवनाभिमुख बनाने का चिरन्तन प्रयास किया है।[3] गीता पर भाष्य संस्कृत साहित्य की परम्परा में उन ग्रन्थों को भाष्य (शाब्दिक अर्थ - व्याख्या के योग्य), कहते हैं जो दूसरे ग्रन्थों के अर्थ की वृहद व्याख्या या टीका प्रस्तुत करते हैं। भारतीय दार्शनिक परंपरा में किसी भी नये दर्शन को या किसी दर्शन के नये स्वरूप को जड़ जमाने के लिए जिन तीन ग्रन्थों पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करना पड़ता था (अर्थात् भाष्य लिखकर) उनमें भगवद्गीता भी एक है (अन्य दो हैं- उपनिषद् तथा ब्रह्मसूत्र)। [4] गीता पर अनेक अचार्यों एवं विद्वानों ने टीकाएँ की हैं। संप्रदायों के अनुसार उनकी संक्षिप्त सूची इस प्रकार है : (अ) अद्वैत - शांकराभाष्य, श्रीधरकृत सुबोधिनी, मधुसूदन सरस्वतीकृत गूढ़ार्थदीपिका। (आ) विशिष्टाद्वैत - (१) यामुनाचार्य कृत गीता अर्थसंग्रह, जिसपर वेदांतदेशिककृत गीतार्थ-संग्रह रक्षा टीका है। (२) रामानुजाचार्यकृत गीताभाष्य, जिसपर वेदांतदेशिककृत तात्पर्यचंद्रिका टीका है। (इ) द्वैत - मध्वाचार्य कृत गीताभाष्य, जिसपर जयतीर्थकृत प्रमेयदीपिका टीका है, मध्वाचार्यकृत गीता-तात्पर्य निर्णय। (ई) शुद्धाद्वैत - वल्लभाचार्य कृत तत्वदीपिका, जिसपर पुरुषोत्तमकृत अमृततरंगिणी टीका है। (उ) कश्मीरी टीकाएँ - १. अभिनवगुप्तकृत गीतार्थ संग्रह। २. आनंदवर्धनकृत ज्ञानकर्मसमुच्चय। इनके अतिरिक्त महाराष्ट्र संत ज्ञानदेव या ज्ञानेश्वरकृत भावार्थदीपिका नाम की टीका (१२९०) प्रसिद्ध है जो गीता के ज्ञान को भावात्मक काव्यशैली में प्रकट करती है। महाराष्ट्र मे महानुभाव संप्रदाय के संस्थापक चक्रधर स्वामी इनके महानुभाव तत्वज्ञान पर आधारित मुरलीधर शास्त्री आराध्ये इन्होने रहस्यार्थ चंद्रिका नाम की गीता टीका लिखी है। इसके सीवा महानुभाव संप्रदाय मे और भी 52 गीता टीका उपलब्ध है। वर्तमान युग में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलककृत गीतारहस्य टीका, जो अत्यंत विस्तृत भूमिका तथा विवेचन के साथ पहली बार १९१५ ई। में पूना से प्रकाशित हुई थी, गीता साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। उसने गीता के मूल अर्थों को विद्वानों तक पहुँचाने में ऐसा मोड़ दिया है जो शंकराचार्य के बाद आज तक संभव नहीं हुआ था। वस्तुत: शंकराचार्य का भाष्य गीता का मुख्य अर्थ ज्ञानपरक करता है जबकि तिलक ने गीता को कर्म का प्रतिपादक शस्त्र सिद्ध किया है। गीताभाष्य - आदि शंकराचार्य गीताभाष्य - रामानुज गूढार्थदीपिका टीका - मधुसूदन सरस्वती सुबोधिनी टीका - श्रीधर स्वामी ज्ञानेश्वरी - संत ज्ञानेश्वर (संस्कृत से गीता का मराठी अनुवाद) गीतारहस्य - बालगंगाधर तिलक अनासक्ति योग - महात्मा गांधी Essays on Gita - अरविन्द घोष ईश्वरार्जुन संवाद- परमहंस योगानन्द गीता-प्रवचन - विनोबा भावे गीता तत्व विवेचनी टीका - जयदयाल गोयन्दका भगवदगीता का सार- स्वामी क्रियानन्द गीता साधक संजीवनी (टीका)- स्वामी रामसुखदास गीता हृदय-यति राज दण्डी स्वामी सहजानंद सरस्वती भगवद्गीता पर उपलब्ध सभी भाष्यों में श्री जयदयाल गोयन्दका की तत्व विवेचनी सर्वाधिक लोकप्रिय तथा जनसुलभ है। इसका प्रकाशन गीताप्रेस के द्वारा किया जाता है। आजतक इसकी 10 करोड़ प्रतियां बिक चुकी हैं। गीता नाम के अन्य ग्रन्थ अष्टावक्र गीता अवधूत गीता कपिल गीता श्रीराम गीता श्रुति गीता उद्धव गीता वैष्णव गीता कृषि गीता गुरु। गीता आधुनिक जनजीवन में अर्जुन को गीता उपदेश देते हुए श्री कृष्ण की कांस्य प्रतिमा 'श्रीमद्भगवद्गीता बदलते सामाजिक परिदृश्यों में अपनी महत्ता को बनाए हुए हैं और इसी कारण तकनीकी विकास ने इसकी उपलब्धता को बढ़ाया है, तथा अधिक बोधगम्य बनाने का प्रयास किया है। दूरदर्शन पर प्रसारित धारावाहिक महाभारत में भगवद्गीता विशेष आकर्षण रही, वहीं धारावाहिक कृष्णा (टीवी धारावाहिक) में भगवद्गीता पर अत्यधिक विशद शोध करके उसे कई कड़ियों की एक शृंखला के रूप में दिखाया गया। इसकी एक विशेष बात यह रही कि गीता से संबंधित सामान्य मनुष्य के संदेहों को अर्जुन के प्रश्नों के माध्यम से उत्तरित करने का प्रयास किया गया। इसके अलावा नीतीश भारद्वाज कृत धारावाहिक गीता-रहस्य (धारावाहिक) तो पूर्णतया गीता के ही विभिन्न आयामों पर केंद्रित रहा। इंटरनेट पर भी आज अनेकानेक वेबसाइटें इस विषय पर बहुमाध्यमों के द्वारा विशद जानकारी देती हैं। श्रीमद्भगवद्गीता वर्तमान में धर्म से ज्यादा जीवन के प्रति अपने दार्शनिक दृष्टिकोण को लेकर भारत में ही नहीं विदेशों में भी लोगों का ध्यान अपनी और आकर्षित कर रही है। निष्काम कर्म का गीता का संदेश प्रबंधन गुरुओं को भी लुभा रहा है। विश्व के सभी धर्मों की सबसे प्रसिद्ध पुस्तकों में शामिल है। गीता प्रेस गोरखपुर जैसी धार्मिक साहित्य की पुस्तकों को काफी कम मूल्य पर उपलब्ध कराने वाले प्रकाशन ने भी कई आकार में अर्थ और भाष्य के साथ श्रीमद्भगवद्गीता के प्रकाशन द्वारा इसे आम जनता तक पहुंचाने में काफी योगदान दिया है। भगवद्गीता सन्देश सार गीता का उपदेश अत्यन्त पुरातन योग है। श्री भगवान् कहते हैं इसे मैंने सबसे पहले सूर्य से कहा था। सूर्य ज्ञान का प्रतीक है अतः श्री भगवान् के वचनों का तात्पर्य है कि पृथ्वी उत्पत्ति से पहले भी अनेक स्वरूप अनुसंधान करने वाले भक्तों को यह ज्ञान दे चुका हूँ। यह ईश्वरीय वाणी है जिसमें सम्पूर्ण जीवन का सार है एवं आधार है। मैं कौन हूँ? यह देह क्या है? इस देह के साथ क्या मेरा आदि और अन्त है? देह त्याग के पश्चात् क्या मेरा अस्तित्व रहेगा? यह अस्तित्व कहाँ और किस रूप में होगा? मेरे संसार में आने का क्या कारण है? मेरे देह त्यागने के बाद क्या होगा, कहाँ जाना होगा? किसी भी जिज्ञासु के हृदय में यह बातें निरन्तर घूमती रहती हैं। हम सदा इन बातों के बारे में सोचते हैं और अपने को, अपने स्वरूप को नहीं जान पाते। गीता शास्त्र में इन सभी के प्रश्नों के उत्तर सहज ढंग से श्री भगवान् ने धर्म संवाद के माध्यम से दिये हैं। इस देह को जिसमें 36 तत्व जीवात्मा की उपस्थिति के कारण जुड़कर कार्य करते हैं, क्षेत्र कहा है और जीवात्मा इस क्षेत्र में निवास करता है, वही इस देह का स्वामी है परन्तु एक तीसरा पुरुष भी है, जब वह प्रकट होता है; अधिदैव अर्थात् 36 तत्वों वाले इस देह (क्षेत्र) को और जीवात्मा (क्षेत्रज्ञ) का नाश कर डालता है। यही उत्तम पुरुष ही परम स्थिति और परम सत् है। यही नहीं, देह में स्थित और देह त्यागकर जाते हुए जीवात्मा की गति का यथार्थ वैज्ञानिक एंव तर्कसंगत वर्णन गीता शास्त्र में हुआ है। जीवात्मा नित्य है और आत्मा (उत्तम पुरुष) को जीव भाव की प्राप्ति हुई है। शरीर के मर जाने पर जीवात्मा अपने कर्मानुसार विभिन्न योनियों में विचरण करता है। गीता का प्रारम्भ धर्म शब्द से होता है तथा गीता के अठारहवें अध्याय के अन्त में इसे धर्म संवाद कहा है। धर्म का अर्थ है धारण करने वाला अथवा जिसे धारण किया गया है। धारण करने वाला जो है उसे आत्मा कहा गया है और जिसे धारण किया है वह प्रकृति है। आत्मा इस संसार का बीज अर्थात पिता है और प्रकृति गर्भधारण करने वाली योनि अर्थात माता है। धर्म शब्द का प्रयोग गीता में आत्म स्वभाव एवं जीव स्वभाव के लिए जगह जगह प्रयुक्त हुआ है। इसी परिपेक्ष में धर्म एवं अधर्म को समझना आवश्यक है। आत्मा का स्वभाव धर्म है अथवा कहा जाय धर्म ही आत्मा है। आत्मा का स्वभाव है पूर्ण शुद्ध ज्ञान, ज्ञान ही आनन्द और शान्ति का अक्षय धाम है। इसके विपरीत अज्ञान, अशांति, क्लेश और अधर्म का द्योतक है। आत्मा अक्षय ज्ञान का स्रोत है। ज्ञान शक्ति की विभिन्न मात्रा से क्रिया शक्ति का उदय होता है, प्रकृति का जन्म होता है। प्रकृति के गुण सत्त्व, रज, तम का जन्म होता है। सत्त्व-रज की अधिकता धर्म को जन्म देती है, तम-रज की अधिकता होने पर आसुरी वृत्तियाँ प्रबल होती और धर्म की स्थापना अर्थात गुणों के स्वभाव को स्थापित करने के लिए, सतोगुण की वृद्धि के लिए, अविनाशी ब्राह्मी स्थिति को प्राप्त आत्मा अपने संकल्प से देह धारण कर अवतार गृहण करती है। सम्पूर्ण गीता शास्त्र का निचोड़ है बुद्धि को हमेशा सूक्ष्म करते हुए महाबुद्धि आत्मा में लगाये रक्खो तथा संसार के कर्म अपने स्वभाव के अनुसार सरल रूप से करते रहो। स्वभावगत कर्म करना सरल है और दूसरे के स्वभावगत कर्म को अपनाकर चलना कठिन है क्योंकि प्रत्येक जीव भिन्न भिन्न प्रकृति को लेकर जन्मा है, जीव जिस प्रकृति को लेकर संसार में आया है उसमें सरलता से उसका निर्वाह हो जाता है। श्री भगवान ने सम्पूर्ण गीता शास्त्र में बार-बार आत्मरत, आत्म स्थित होने के लिए कहा है। स्वाभाविक कर्म करते हुए बुद्धि का अनासक्त होना सरल है अतः इसे ही निश्चयात्मक मार्ग माना है। यद्यपि अलग-अलग देखा जाय तो ज्ञान योग, बुद्धि योग, कर्म योग, भक्ति योग आदि का गीता में उपदेश दिया है परन्तु सूक्ष्म दृष्टि से विचार किया जाय तो सभी योग बुद्धि से श्री भगवान को अर्पण करते हुए किये जा सकते हैं इससे अनासक्त योग निष्काम कर्म योग स्वतः सिद्ध हो जाता है। (सन्दर्भ - बसंतेश्वरी भगवदगीता से) आपद्धर्म महाभारत "भगवत गीता: भगवद गीता के सभी अध्याय व श्लोक". हिन्दू लाइव. मूल से 19 नवंबर 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 18 जून 2020. "Geeta Upadesh in Hindi, गीता ज्ञान, Geeta Gyan in Hindi, Geeta Saar in Hindi". नवभारत टाइम्स. मूल से 24 अप्रैल 2020 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-06-30. "जिस गीता पर गांधी को था पूरा भरोसा आखिर आइंस्टीन ने उसे लेकर क्यों जताया अफसोस". Amar Ujala. मूल से 27 जनवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-06-30. वेदान्त, स्वामी विवेकानन्द, रामकृष्ण मठ, नागपुर संदर्भ ग्रन्थ शंकराचार्य : गीताभाष्य; लोकमान्य तिलक : गीता रहस्य; मधुसूदन ओझा : श्रीमद्भगवदगीतायाः विज्ञानभाष्यम, कांडचतुष्टयात्मकम, मोतीलाल शास्त्री: गीताभाष्य भूमिका; गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी : गीता प्रवचन भाष्य। बाहरी कड़ियाँ गीता सुपरसाइट - यहाँ गीता के मूल श्लोक, विभिन्न विद्वानों द्वारा उनके अनुवाद और भावार्थ आदि दिए गए हैं। संस्कृत विकिस्रोत पर श्रीमद्भगवद्गीता श्रीमद् भगवद्गीता - यहाँ पर गीता का संस्कृत में मूल पाठ, एम्पी-३, एम्पी-४, एवीआई एवं अन्य प्रारूपों (फार्मट) में गीता का पाठ उपलब्ध है। गीता का कर्मवाद (भारतीय पक्ष) श्रीमद्भगवद्गीता - श्रीमद् भगवद्गीता संस्कृत, हिंदी एवं इंग्लिश में अनुवाद, लिप्यंतरण एवं अर्थ सहित पढ़ें। विकिस्रोत में इस लेख से संबंधित मूल पाठ उपलब्ध है :गीता के १८ अध्याय

न्यूक्लियर फ्यूजन, जिसे परमाणु संलयन भी कहा जाता है, एक मैन मेड प्रोसेस है. इस प्रक्रिया में #सूर्य की तरह ही #शक्ति प्रदान करने वाली ऊर्जा का निर्माण किया जाता है. बलुवाना न्यूज पंजाब America Nuclear Fusion Reaction: ऊर्जा के क्षेत्र से एक बेहद महत्वपूर्ण खबर सामने आई है. अमेरिका में शोधकर्ताओं ने कथित तौर पर ऊर्जा के असीमित, सुरक्षित और स्वच्छ स्रोत को अनलॉक करने की खोज में एक #सफलता हासिल की है. विशेषज्ञों ने भविष्यवाणी की है कि न्यूक्लियर फ्यूजन में सफलता असीम स्वच्छ ऊर्जा ला सकती है और इससे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में मदद मिल सकती है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, #इतिहास में पहली बार #अमेरिका के कैलिफोर्निया में लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लेबोरेटरी में नेशनल इग्निशन फैसिलिटी में अमेरिकी वैज्ञानिकों ने न्यूक्लियर फ्यूजन रिएक्शन को अंजाम दिया है, जिसके परिणामस्वरूप सूर्य की तरह ही बिल्कुल शुद्ध ऊर्जा का उत्पादन किया गया. 1950 में शुरू हुआ न्यूक्लियर फ्यूजन पर शोध न्यूक्लियर फ्यूजन में भारी तत्व बनाने के लिए हाइड्रोजन जैसे हल्के तत्वों को एक साथ तोड़ना शामिल है. इस प्रक्रिया में ऊर्जा का एक बड़ा विस्फोट होता है. हालांकि, 1950 के दशक में न्यूक्लियर फ्यूजन पर अनुसंधान शुरू होने के बाद से शोधकर्ता एक #सकारात्मक #ऊर्जा लाभ प्रदर्शित करने में असमर्थ रहे हैं. वहीं, अब लगता है कि शोधकर्ताओं ने ताले की चाबी ढूंढ निकाली है. News Reels रिसर्च की पुष्टि होना बाकी फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, जिसकी कैलिफोर्निया में लॉरेंस लिवरमोर नेशनल लेबोरेटरी में राष्ट्रीय प्रज्वलन सुविधा (NIF) को पुष्टि करनी है, शोधकर्ताओं ने केवल 2.1 एमजे (2.1 MJ) का उपयोग करने के बाद 2.5 एमजे (2.5 MJ) ऊर्जा बनाने में कामयाबी हासिल की है. 'यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है' साइंस एंड टेक्नोलॉजी फैसिलिटीज काउंसिल (एसटीएफसी) सेंट्रल लेजर फैसिलिटी (सीएलएफ) प्लाज्मा फिजिक्स ग्रुप के डॉ रॉबी स्कॉट, जिन्होंने इस शोध में योगदान दिया, ने परिणामों को एक 'महत्वपूर्ण उपलब्धि' बताया है. क्या होता है न्यूक्लियर फ्यूजन? न्यूक्लियर फ्यूजन, जिसे परमाणु संलयन भी कहा जाता है, एक मैन मेड प्रोसेस है. इस प्रक्रिया में सूर्य की तरह ही शक्ति प्रदान करने वाली ऊर्जा का निर्माण किया जाता है. न्यूक्लियर फ्यूजन तब होता है, जब दो या दो से अधिक परमाणु एक बड़े परमाणु से जुड़ जाते हैं और भारी मात्रा में गर्म ऊर्जा का निर्माण होता है. न्यूक्लियर फ्यूजन को और अच्छे से समझें बता दें कि अभी परमाणु रिएक्टरों से जो ऊर्जा उत्पन्न की जाती है, उसका इस्तेमाल #दुनिया में बिजली निर्माण के साथ-साथ अलग-अलग ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए होता है. परेशानी यह होती है कि उसमें न्यूक्लियर कचरे का भी निर्माण होता है, जिसे खत्म करना काफी मुश्किल होता है. वहीं दूसरी ओर, #परमाणु संलयन के जरिये मुख्य रूप से ड्यूटेरियम और ट्रिटियम तत्वों का इस्तेमाल किया जाता है और ये दोनों #हाइड्रोजन के समान हैं. आसान भाषा में कहें तो न्यूक्लियर फ्यूजन से किसी तरह का कचरा उत्पन्न नहीं होता है.

Baluwana News punjab: पंजाब में जीएसटी संग्रह में 22.6% की वृद्धि, 6 महीने में पार किया 10 हजार करोड़ का आंकड़ा बलुवाना न्यूज पंजाब मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा Punjab GST: पंजाब के वित्त, योजना, आबकारी और कराधान मंत्री एडवोकेट हरपाल सिंह चीमा ने कहा कि राज्य ने चालू वित्तीय साल के दौरान 10604 करोड़ रुपये जीएसटी के तौर पर वसूले हैं जिससे राज्य की तरफ से जीएसटी लागू होने के बाद पहली बार छह महीनों में 10 हज़ार का आंकड़ा पार किया गया है. यहां जारी एक बयान में वित्त मंत्री ने कहा कि राज्य में चालू वित्तीय साल के दौरान जीएसटी संग्रह में 22.6 % की वृद्धि दर्ज की गई है. उन्होंने कहा कि पिछले वित्तीय साल के पहले छह महीने में 8,650 करोड़ रुपये की जीएसटी संग्रह हुआ थी जबकि मौजूदा साल के दौरान राज्य ने कुल 10604 करोड़ रुपये की जीएसटी संग्रह के साथ 1,954 करोड़ रुपये और कमाए हैं. सितंबर 2022 के जीएसटी के आंकड़ों का खुलासा करते हुये हरपाल सिंह चीमा ने कहा कि राज्य ने 22 % वृद्धि दर्ज की गई है. उन्होंने कहा कि सितंबर 2021 में 1402 रुपये की कलेक्शन के मुकाबले इस साल सितंबर में जीएसटी कलेक्शन 1,710 करोड़ रुपये रही. 20,550 करोड़ रुपये की जीएसटी संग्रह का अनुमान वित्त मंत्री ने कहा कि मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार ने वित्तीय साल 2022-23 के लिए अपने पहले बजट में 20,550 करोड़ रुपये की जीएसटी संग्रह का अनुमान लगाया है. वित्त मंत्री ने कहा कि राज्य ने पहले छह महीनों में 50 % से अधिक की प्राप्ति की है और आने वाले त्योहारों के सीजन के दौरान जीएसटी की संग्रह में अच्छे वृद्धि की उम्मीद है. वित्त मंत्री ने कहा कि राज्य सरकार ने जाली बिलिंग को रोकने के साथ-साथ सभी ख़ामियों को दूर करने के लिए पंजाब गुड्स एंड सर्विसिज टैक्स (संशोधन) बिल 2022 पंजाब विधान सभा में पास किया है, जिससे न सिर्फ़ व्यापारियों को फ़ायदा होगा बल्कि राज्य के राजस्व में भी वृद्धि होगा.

बलुवाना न्यूज पंजाब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ शोक व्यक्त करने पहुंचेंगे अबोहर, सुरक्षा व्यवस्था कड़ीअबोहर, 10 दिसंबर : देश के उपाष्ट्रपति जगदीप धनखड़ रविवार 10 दिसंबर को अबोहर में श्रीगंगानगर रोड पर स्थित डीपीएस स्कूल पहुंचेंगे जिसके चलते प्रशासन द्वारा सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है। चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात है व नाकाबंदी कर वाहनों की चैकिंग की जा रही है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ यहां भाजपा नेत्री विजय लक्ष्मी भादू के पति व कुणाल भादू के पिता रायसिंह भादू के निधन पर शोक व्यक्त करने के लिए उनके निवास स्थान पर आ रहे हैं। रायसिंह भादू की रस्म पगड़ी सोमवार 11 दिसंबर को दिल्ली पब्लिक स्कूल में 12 से 2 बजे रखी गई है।फोटो: 8, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ व सुरक्षा व्यवस्था में जुटे पुलिस कर्मचारी।baluwana news punjabVice President Jagdeep Dhankhar will reach Abohar to express his condolences, security tightenedAbohar, December 10: Vice President of the country Jagdeep Dhankhar on Sunday, December 10, at Sriganganagar road in Abohar.

बलुवाना न्यूज पंजाब 1. वो बेटी, जो एक बड़ी उम्र तक घर के बाहर शौच जाने के लिए अभिशप्त थी.. अब वो भारत की 'राष्ट्रपति' बनने जा रही हैं। 2. वो लड़की, जो पढ़ना सिर्फ इसलिए चाहती थी कि परिवार के लिए रोटी कमा सके.. वो अब भारत की 'राष्ट्रपति' बनने जा रही हैं। 3. वो महिला, जो बिना वेतन के शिक्षक के तौर पर काम कर रही थी.. वो अब भारत की 'राष्ट्रपति' बनने जा रही हैं। 4. वो महिला, जिसे जब ये लगा कि पढ़ने-लिखने के बाद आदिवासी महिलाएं उससे थोड़ा दूर हो गई हैं तो वो खुद सबके घर जा कर 'खाने को दे' कह के बैठने लगीं.. वो अब भारत की 'राष्ट्रपति' बनने जा रही हैं। 5. वो महिला, जिसने अपने पति और दो बेटों की मौत के दर्द को झेला और आखिरी बेटे के मौत के बाद तो ऐसे डिप्रेशन में गईं कि लोग कहने लगे कि अब ये नहीं बच पाएंगी.. वो अब भारत की 'राष्ट्रपति' बनने जा रही हैं। 6. जिस गाँव में कहा जाता था राजनीति बहुत खराब चीज है और महिलाएं को तो इससे बहुत दूर रहना चाहिए, उसी गाँव की महिला अब भारत की 'राष्ट्रपति' बनने जा रही है। 7. वो महिला, जिन्होंने अपना पहला काउंसिल का चुनाव जीतने के बाद जीत का इतना ईमानदार कारण बताया कि 'वो क्लास में अपना सब्जेक्ट ऐसा पढ़ाती थीं कि बच्चों को उस सब्जेक्ट में किसी दूसरे से ट्यूशन लेने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी और उनके 70 नम्बर तक आते थे इसीलिए क्षेत्र के सारे लोग और सभी अभिवावक उन्हें बहुत लगाव करते थे'.. वो महिला अब भारत की 'राष्ट्रपति' बनने जा रही हैं। 8. वो महिला, जो अपनी बातों में मासूमियत को जिन्दा रखते हुए अपनी सबसे बड़ी सफलता इस बात को माना कि 'राजनीति में आने के बाद मुझे वो औरतें भी पहचानने लगी जो पहले नहीं पहचानती थी'.. वो अब भारत की 'राष्ट्रपति' बनने जा रही हैं। 9. वो महिला, जो 2009 में चुनाव हारने के बाद फिर से गाँव में जा कर रहने लगी और जब वापस लौटी तो अपनी आँखों को दान करने की घोषणा की.. वो अब भारत की 'राष्ट्रपति' बनने जा रही हैं। 10. वो महिला, जो ये मानती हैं कि 'Life is not bed of roses. जीवन कठिनाइयों के बीच ही रहेगा, हमें ही आगे बढ़ना होगा। कोई push करके कभी हमें आगे नहीं बढ़ा पायेगा'.. वो अब भारत की #राष्ट्रपति बनने जा रही हैं। दशकों-दशक से ठीक कपड़ों और खाने तक से दूर रहने वाले समुदाय को देश के सबसे बड़े 'भवन' तक पहुँचा कर भारत ने विश्व को फिर से दिखा दिया है कि यहाँ रंग, जाति, भाषा, वेष, धर्म, संप्रदाय का कोई भेद नहीं चलता। जिनके प्रयासों से उनके गाँव से जुड़े अधिकतर गाँवों में आज लड़कियों के स्कूल जाने का प्रतिशत लड़कों से ज्यादा हो गया है, ऐसी #द्रौपदी मुर्मू जी का हार्दिक स्वागत है 🙏🏻 'राष्ट्रपति भवन' अब वास्तविकता में 'कनक भवन' बन रहा है और उसकी गरिमा बड़ रही है 1. That daughter, who was cursed to defecate outside the house till a very old age.. Now she is going to become the 'President' of India. 2. That girl, who wanted to study only because she could earn bread for the family.. she is now from India.