सांस लेने के तन्त्र के काम By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब शरीर के बढ़ने ओर विकास के लिए दूसरे अंगों तक आक्सीजन पहुँचाना और अंगों से जहरीली वायु कार्बनडाइक्साइड को बाहर ले आनानाक से हवा हम लेते हैं नाक उसे थोड़ी गरम और नरम बनाती है|नाक से गला तक आने के बाद नली दो भागों में बंट जाती है- एक बायीं ओर एक दायीये दोनों नलियां आगे छोटी-छोटी नलियों में बंट जाती है|अगर इन नलियों में किसी तरह कि रुकावट होती है तो हमें बहुत तकलीफ होती हैजब किसी नली में छूत लगती है तो ढेर सारा बलगम और कफ तैयार होता हैसांस के साथ ही बलगम, कफ, बिना पचा खाना, पानी भी बाहर निकल जाता है|फेफड़ों कि बनावट हवा अन्दर और बाहर ले जाने वाली नलियों से बनता हैदोनों फेफड़े छाती के अन्दर रहते हैं, उनके बचाव के लिए नलियों के चारों तरफ पसलियां रहती हैं|सांस की नलियों की समस्याएंदमाबाल वनिता महिला आश्रमयह रोग फेफड़ों पर असर डालती हैंदमा के कारण नलियां सिकुड़ जाती हैं, उनमे सूजन भी आ सकती है और मोटा बलगम जमा हो जाता है|इस कारण रोगी को सांस लेने में तकलीफ होती है|दमा का रोगी जब सांस लेता है तो फेफड़े के हंसली और पसली के बीच कि चमड़ी अन्दर कि ओर धंस जाती है|यह जब सांस छोड़ता है तो सीटी कि आवाज निकलती हैफेफड़ों को पूरी हवा न मिलने पर रोगी के नाख़ून और होंठ नीले पड़ जाते हैंदमा ज्यादातर बचपन में ही शुरू हो जाता है, पर यह जिन्दगी भर शरीर में बना रहता हैहालांकि यह रोग छुतहा नहीं है फिर भी यह माता-पिता के दमा होने के बाद बच्चे को भी सम्भावना हो जाती है|कुछ खास चीजों कि खाने या सूंघने से दमा का दौरा शुरू हो जाता है|उपचारअगर घर के अन्दर दमें का दौरा शुरू है तो उसे व्यक्ति को खुले में बाहर ले जाना चाहिएऐसी चीजों को न खाएं न सूंघे जिससे दमा का दौर शुरू हो जाता है|व्यक्ति को पानी और दूसरी तरल चीजें देनी चाहिए इससे बलगम ढीला पड़ता है और जल्दी बाहर निकल जाता है|खौलते पानी का भाप नाक-मुंह से लेने से भी आराम मिलता है|कभी-कभी पेट में कीड़े पड़े रहने से भी दमा का रोग होता है|दमा रोग जिन्दगी भर चलता है, डाक्टर द्वारा दी गयी दवाओं को हमेशा अपने पास रखेंडाक्टर कि सलाह लेते रहेंसांस के नली कि शोथ (ब्रोंकैतिस)सांस लेने वाली नलियों को छूत लगने से यह शोथ होता है|इसमें काफी आवाज वाली खांसी आती है, अक्सरहां बलगम भी निकलता हैबिगड़ने पर रोगी को न्यूमोनिया भी हो सकता है|लक्षणबलगम वाली खांसी साल भर में तीन महीने रहती है, और हर साल आती हैज्यादा खांसी के साथ बुखार भी हो सकता हैबीड़ी, सिगरेट, हुक्का पीने वाले लोगों में यह रोग ज्यादा होती है|उपचारडाक्टर से दिखाकर शोथ दूर करने वाली दवा लें|फेफड़े का फोड़ानालियों में छूत लगने पर फेफड़ों में घाव हो जाता हैघाव के पीब फेफड़े में जमा होती है और व्यक्ति खांस कर उसे बलगम कि तरह निकालता है|यह खतरनाक रोग है, छूत के कारण पूरे फेफड़े पर रोग का असर होता है|लक्षणखांसी के साथ गाढ़ा, पीला, बदबूदार बलगम निकलनातेज बुखार जो दिन में एक बार पसीने के साथ कम हो जातानब्ज तेज चलती हैव्यक्ति काफी बीमार दिखाई देता है|उपचारपेंसिलिन कि सुई, डाक्टर कि राय लेकरबुखार के लिए गोलियांनाक और मुहं से भाप लेंनिमोनियानिमोनिया फेफड़ों का खतरनाक छूत हैयह अक्सरहां खसरा, काली खांसी, फ्लू, दमा रोगों के बाद होता हैबच्चों के लिए यह रोग बहुत ही खतरनाक होता हैअधिक उम्र वालों और एड्स के रोगियों को भी निमुनिया हो सकता हैलक्षणतेज और छोटी-छोटी सांसगले में घरघराहटनाक के नथुने हर सांस के साथ फ़ैल जाते हैंखांसी साथ में खून से सनी बलगमतेज बुखारहोंट या चेहरे पर छालों का निकलनाउपचारडाक्टर से पूछ कर पेंसिलिन के इंजेक्सनबुखार और दरद को कम करने वाली गोलियांकाफी मात्रा में पानी और दूसरे तरल चीजें पीने को देनाफेफड़े का कैंसरयह बीमारी पचास से पैसठ साल के लोगों में होती हैसिगरेट, बीड़ी, हुक्का का सेवन इसका मुख्य कारण हैलक्षणखून भरी खांसीसांस लेने में कठिनाईबुखारउपचारडाक्टरों कि देख-रेख में इलाज एवं दवा का सेवन एवं बताए गए परहेज