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क्या आप एक एनजीओ शुरू करना चाहते हैं ?बाल वनिता महिला आश्रम.

क्यों तिरुपति के भगवान बालाजी को बालाजी कहा जाता है, जबकि हनुमानजी जी को बालाजी कहते हैं और तिरुपति के भगवान बालाजी वास्तव में विष्णुजी हैं, ऐसा क्यों है?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब//🌹🌹🌹🌹🙏🙏🌹🌹🌹🌹✍️

संस्था किसे कहते है (sanstha kise kahte hai)By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब//🌹🌹🌹🌹🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹✍️

NGO FULL FORM IN HINDIBy social worker Vanita Kasani Punjab //4

NGO FULL FORM IN HINDI By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब//🌹🌹🌹🌹🙏🙏🌹🌹🌹🌹✍️

NGO Kya Hai? – NGO Full Form क्या है? अपना NGO Kaise Banaye जानिए पूरी जानकारी।जानिए NGO Kya Hai और NGO Full Form क्या है? पूरी जानकारी By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब//🌹🌹🌹🌹🙏🙏🌹🌹🌹🌹✍️

‎*महारानी जोधाबाई, ‏जो कभी थी ही नहीं, ‏लेकिन बड़ी सफाई से उनका अस्तित्व गढ़ा गया और हम सब झांसे में आ गए* ...जानिए जोधाबाई की सच्चाई.. ‏प्रामाणिक साक्ष्य के साथ.. ‏जब भी कोई हिन्दू राजपूत किसी मुग़ल की गद्दारी की बात करता है तो कुछ मुग़ल प्रेमियों द्वारा उसे जोधाबाई का नाम लेकर चुप कराने की कोशिश की जाती है!बताया जाता है की कैसे जोधा ने अकबर की आधीनता स्वीकार की या उससे विवाह किया! ‏परन्तु अकबर कालीन किसी भी इतिहासकार ने जोधा और अकबर की प्रेम कहानी का कोई वर्णन नही किया है!उन सभी इतिहासकारों ने अकबर की सिर्फ ‎5 ‏बेगम बताई है!1.सलीमा सुल्तान2.मरियम उद ज़मानी3.रज़िया बेगम4.कासिम बानू बेगम5.बीबी दौलत शादअकबर ने खुद अपनी आत्मकथा अकबरनामा में भी, ‏किसी हिन्दू रानी से विवाह का कोई जिक्र नहीं किया।परन्तु हिन्दू राजपूतों को नीचा दिखने के षड्यंत्र के तहत बाद में कुछ इतिहासकारों ने अकबर की मृत्यु के करीब ‎300 ‏साल बाद ‎18 ‏वीं सदी में ‎“मरियम उद ज़मानी”, ‏को जोधा बाई बता कर एक झूठी अफवाह फैलाई!और इसी अफवाह के आधार पर अकबर और जोधा की प्रेम कहानी के झूठे किस्से शुरू किये गए! ‏जबकि खुद अकबरनामा और जहांगीर नामा के अनुसार ऐसा कुछ नही था!18वीं सदी में मरियम को हरखा बाई का नाम देकर हिन्दू बता कर उसके मान सिंह की बेटी होने का झूठ पहचान शुरू किया गया। फिर ‎18वीं सदी के अंत में एक ब्रिटिश लेखक जेम्स टॉड ने अपनी किताब ‎"एनालिसिस एंड एंटटीक्स ऑफ़ राजस्थान" ‏में मरीयम से हरखा बाई बनी इसी रानी को जोधा बाई बताना शुरू कर दिया!और इस तरह ये झूठ आगे जाकर इतना प्रबल हो गया की आज यही झूठ भारत के स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बन गया है और जन जन की जुबान पर ये झूठ सत्य की तरह आ चूका है!और इसी झूठ का सहारा लेकर राजपूतों को निचा दिखाने की कोशिश जाती है! ‏जब भी मैं जोधाबाई और अकबर के विवाह प्रसंग को सुनता या देखता हूं तो मन में कुछ अनुत्तरित सवाल कौंधने लगते हैं!आन,बान और शान के लिए मर मिटने वाले शूरवीरता के लिए पूरे विश्व मे प्रसिद्ध भारतीय क्षत्रिय अपनी अस्मिता से क्या कभी इस तरह का समझौता कर सकते हैं??हजारों की संख्या में एक साथ अग्नि कुंड में जौहर करने वाली क्षत्राणियों में से कोई स्वेच्छा से किसी मुगल से विवाह कर सकती हैं????जोधा और अकबर की प्रेम कहानी पर केंद्रित अनेक फिल्में और टीवी धारावाहिक मेरे मन की टीस को और ज्यादा बढ़ा देते हैं!अब जब यह पीड़ा असहनीय हो गई तो एक दिन इस प्रसंग में इतिहास जानने की जिज्ञासा हुई तो पास के पुस्तकालय से अकबर के दरबारी ‎'अबुल फजल' ‏द्वारा लिखित ‎'अकबरनामा' ‏निकाल कर पढ़ने के लिए ले आया, ‏उत्सुकतावश उसे एक ही बैठक में पूरा पढ़ डाली पूरी किताब पढ़ने के बाद घोर आश्चर्य तब हुआ जब पूरी पुस्तक में जोधाबाई का कहीं कोई उल्लेख ही नही मिला!मेरी आश्चर्य मिश्रित जिज्ञासा को भांपते हुए मेरे मित्र ने एक अन्य ऐतिहासिक ग्रंथ ‎'तुजुक-ए-जहांगिरी' ‏जो जहांगीर की आत्मकथा है उसे दिया! ‏इसमें भी आश्चर्यजनक रूप से जहांगीर ने अपनी मां जोधाबाई का एक भी बार जिक्र नही किया!हां कुछ स्थानों पर हीर कुँवर और हरका बाई का जिक्र जरूर था। अब जोधाबाई के बारे में सभी एतिहासिक दावे झूठे समझ आ रहे थे कुछ और पुस्तकों और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के पश्चात हकीकत सामने आयी कि ‎“जोधा बाई” ‏का पूरे इतिहास में कहीं कोई जिक्र या नाम नहीं है!इस खोजबीन में एक नई बात सामने आई जो बहुत चौकानें वाली है! ‏ईतिहास में दर्ज कुछ तथ्यों के आधार पर पता चला कि आमेर के राजा भारमल को दहेज में ‎'रुकमा' ‏नाम की एक पर्सियन दासी भेंट की गई थी जिसकी एक छोटी पुत्री भी थी!रुकमा की बेटी होने के कारण उस लड़की को ‎'रुकमा-बिट्टी' ‏नाम से बुलाते थे आमेर की महारानी ने रुकमा बिट्टी को ‎'हीर कुँवर' ‏नाम दिया चूँकि हीर कुँवर का लालन पालन राजपूताना में हुआ इसलिए वह राजपूतों के रीति-रिवाजों से भली भांति परिचित थी!राजा भारमल उसे कभी हीर कुँवरनी तो कभी हरका कह कर बुलाते थे। राजा भारमल ने अकबर को बेवकूफ बनाकर अपनी परसियन दासी रुकमा की पुत्री हीर कुँवर का विवाह अकबर से करा दिया जिसे बाद में अकबर ने मरियम-उज-जमानी नाम दिया!चूँकि राजा भारमल ने उसका कन्यादान किया था इसलिये ऐतिहासिक ग्रंथो में हीर कुँवरनी को राजा भारमल की पुत्री बता दिया! ‏जबकि वास्तव में वह कच्छवाह राजकुमारी नही बल्कि दासी-पुत्री थी!राजा भारमल ने यह विवाह एक समझौते की तरह या राजपूती भाषा में कहें तो हल्दी-चन्दन किया था। इस विवाह के विषय मे अरब में बहुत सी किताबों में लिखा है!(“ونحن في شك حول أكبر أو جعل الزواج راجبوت الأميرة في هندوستان آرياس كذبة لمجلس”) ‏हम यकीन नहीं करते इस निकाह पर हमें संदेहइसी तरह ईरान के मल्लिक नेशनल संग्रहालय एन्ड लाइब्रेरी में रखी किताबों में एक भारतीय मुगल शासक का विवाह एक परसियन दासी की पुत्री से करवाए जाने की बात लिखी है!'अकबर-ए-महुरियत' ‏में यह साफ-साफ लिखा है कि ‎(ہم راجپوت شہزادی یا اکبر کے بارے میں شک میں ہیں) ‏हमें इस हिन्दू निकाह पर संदेह है क्योंकि निकाह के वक्त राजभवन में किसी की आखों में आँसू नही थे और ना ही हिन्दू गोद भरई की रस्म हुई थी!सिक्ख धर्म गुरू अर्जुन और गुरू गोविन्द सिंह ने इस विवाह के विषय मे कहा था कि क्षत्रियों ने अब तलवारों और बुद्धि दोनो का इस्तेमाल करना सीख लिया है, ‏मतलब राजपुताना अब तलवारों के साथ-साथ बुद्धि का भी काम लेने लगा है!17वी सदी में जब ‎'परसी' ‏भारत भ्रमण के लिये आये तब उन्होंने अपनी रचना ‎”परसी तित्ता” ‏में लिखा ‎“यह भारतीय राजा एक परसियन वैश्या को सही हरम में भेज रहा है अत: ‏हमारे देव(अहुरा मझदा) ‏इस राजा को स्वर्ग दें"!भारतीय राजाओं के दरबारों में राव और भाटों का विशेष स्थान होता था वे राजा के इतिहास को लिखते थे और विरदावली गाते थे उन्होंने साफ साफ लिखा है-”गढ़ आमेर आयी तुरकान फौज ले ग्याली पसवान कुमारी ‎,राण राज्या राजपूता ले ली इतिहासा पहली बार ले बिन लड़िया जीत! (1563 ‏AD)मतलब आमेर किले में मुगल फौज आती है और एक दासी की पुत्री को ब्याह कर ले जाती है! ‏हे रण के लिये पैदा हुए राजपूतों तुमने इतिहास में ले ली बिना लड़े पहली जीत ‎1563 ‏AD!ये ऐसे कुछ तथ्य हैं जिनसे एक बात समझ आती है कि किसी ने जानबूझकर गौरवशाली क्षत्रिय समाज को नीचा दिखाने के उद्देश्य से ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ की और यह कुप्रयास अभी भी जारी है! ‏By Vnita Kasnia लेकिन अब यह षड़यंत्र अधिक दिन नही चलेगा।‏

यज्ञ वेदी - कुम्भलगढ़ By समाजसेवी वनिता कासनियां दुर्गकुम्भलगढ़ दुर्ग में प्रवेश करते ही दाईं तरफ ऊँची जगती पर दो मंजिला मंदिरनुमा सरंचना बनी हुई है, जो प्रथम दृष्टव्य मंदिर ही प्रतीत होता है किंतु ये विशालकाय संरचना एक यज्ञ वेदी है, जिसका निर्माण महाराणा कुम्भा ने अपने वास्तुशास्त्री मंडन की देखरेख में शास्त्रोक्त रीति से करवाया था और यहीं कुम्भलगढ़ दुर्ग की प्रतिष्ठा का यज्ञ सम्पन्न हुआ था। बाद में महाराणा फतेहसिंह जी ने इसके चारों तरफ चुनाई करवा कर इसे प्रासाद के स्वरुप में बदल दिया, जिससे इसका मूल स्वरुप बदल गया। इतनी विशालकाय वेदी संभवतः हिन्दुस्तान में किसी अन्य दुर्ग में नहीं है। वेदी के ऊपर गुम्बद बना है तथा नीचे चारों तरफ खुला भाग है जो धुंआ निकलने के लिए बनाया गया है। वेदी में प्रवेश हेतु चारों तरफ से प्रवेश मार्ग है तथा वेदी की छत कई स्तम्भों पर अवलम्बित है।

रानी अवन्तीबाई लोधीभारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली प्रथम महिला शहीद वीरांगना थीं। 1857 की क्रांति में रामगढ़ की रानी अवंतीबाई रेवांचल में मुक्ति आंदोलन की सूत्रधार थी। 1857 के मुक्ति आंदोलन में इस राज्य की अहम भूमिका थी, जिससे भारत के इतिहास में एक नई क्रांति आई।2001 के एक डाक टिकट पर अवन्तीबाई का चित्ररानी अवन्तीबाई(16 अगस्त 1831 - 20 मार्च 1858)जन्मस्थल :ग्राम मनकेड़ी, जिला सिवनी, मध्य प्रदेशमृत्युस्थल:देवहारगढ़, मध्य प्रदेशआन्दोलन:भारतीय स्वतंत्रता संग्राम1817 से 1851 तक रामगढ़ राज्य के शासक लक्ष्मण सिंह थे। उनके निधन के बाद विक्रमाजीत सिंह ने राजगद्दी संभाली। उनका विवाह बाल्यावस्था में ही मनकेहणी के जमींदार राव जुझार सिंह की कन्या अवंतीबाई से हुआ। विक्रमाजीत सिंह बचपन से ही वीतरागी प्रवृत्ति के थे अत: राज्य संचालन का काम उनकी पत्नी रानी अवंतीबाई ही करती रहीं। उनके दो पुत्र हुए-अमान सिंह और शेर सिंह। अंग्रेजों ने तब तक भारत के अनेक भागों में अपने पैर जमा लिए थे जिनको उखाड़ने के लिए रानी अवंतीबाई ने क्रांति की शुरुआत की और भारत में पहली महिला क्रांतिकारी रामगढ़ की रानी अवंतीबाई ने अंग्रेजों के विरुद्ध ऐतिहासिक निर्णायक युद्ध किया जो भारत की आजादी में बहुत बड़ा योगदान है जिससे रामगढ़ की रानी अवंतीबाई उनका नाम पूरे भारत मैं अमरशहीद वीरांगना रानी अवंतीबाई के नाम से हैं By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब//

"Badnora State" --------------------------------------------------- ---- The Badnora state is located in the northern latitudes of 24.11 'and 25.23' and the eastern longitudes of 43.56, 30 'and 6.30' in Rajasthan.

Suryavanshi_Sakshatriya_Mahatma_GautamBuddha_Nay_, while stating the seven rules of social ethics for women, said that no society can be defeated by following these rules.1-- Recollection - Ga

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