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#मुझे मेरे जन्मदिन पर #Special #महसूस कराने के लिये आप सभी का बहोत बहोत #धन्यवाद ।#Vnita#सुबह जब पलके खोलूं तो लगे #खुशहाल सबनहीं हो कहीं दुख सभी #मुस्कुराहट से मालामाल जब…..न कहीं हो जाति-धर्म का भेद और न तू तू मैं मैं का जालऐ खुदा दे दो ऐसा जन्मदिन जहां #इंसानियत कभी न हो बेहाल……मेरे #जन्मदिन का #तोहफा मांगू मैं जब भगवान सेमेरे #मन में हो न तब कोई मैल मानवता का इमान से……अपने सपनों के पंखों पर #उड़ती जाऊं इस पूरे आसमां में#हिम्मत-हौसलों की बांहे फैलाकर भर लूं उम्मीद इस जहान से…….है आज मेरा जन्मदिवस,खुश हूँ बहुतचाहूं सबकी दुआ,जिसमें #आशीर्वाद हो बहुत।🎂#आप सभी का बहुत बहुत #धन्यवाद व आभार।।🎂सदैव आपके स्नेह,आशीर्वाद व सहयोग की आकांक्षी।🎂#आपकी अपनी 🎂#वनिता_कासनियां_प्रदेशाध्यक्ष_पंजाब🎂#जन्मदिन की बधाई के लिए आप सबका शुक्रिया !🎂 आभार !🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂-------------------------------------------------------------------------🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂 #मेरे_जन्म दिन के अवसर पर आप सभी #मित्रों का🎂 स्नेह आशीष , दुलार और #अपनापन से #ओत_प्रोत🎂 शुभकामनाएं - बधाई सन्देश बड़ी संख्या में प्राप्त हुए है, 🎂 मै बहुत खुशी और आदर के साथ आप सब के प्रति🎂 कृतज्ञता व्यक्त करती हूँ, आशा करती हूँ कि आपका इसी🎂 तरह स्नेह, सहयोग, #मार्गदर्शन और #आशीर्वाद सदैव🎂 मुझे मिलता रहेगा । 🎂#मेरी तरफ से #धन्यवाद की ये #पंक्तियाँ :-🎂बहुत आभार आप सबका,🎂जिनसे मिलता है मार्गदर्शन.🎂न देखा कभी न मिलन हुआ,🎂फिर भी मिला बहुत अपनापन.🎂सोशल मीडिया के भी हम आभारी,🎂जो बने हमारे संपर्क माध्यम.🎂हम उम्र, मित्र और अग्रज🎂मेरे जन्मदिन पर आपने🎂#स्नेहाशीष की कर दी #बारिश🎂भिगो दिया अंतर्मन🎂ऐसे सभी महानुभावो का🎂आभार बहुत और #अभिनन्दन !🎂अंत में दिल से ये और चार लाइन :-🎂🎂#एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है #दोस्तोंये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों🎂यारों ने मेरे वास्ते क्या कुछ नहीं किया🎂#सौ बार शुक्रिया और सौ बार शुक्रिया.....!!🎂जन्मदिन की बधाई के लिए आप सबका #शुक्रिया !🎂 आभार !🎂🎂24 #अगस्त मेरे जन्मदिन के अवसर पर आप सभी मित्रों, स्नेहीजनों, बड़ो का स्नेह आशीष, #दुलार और🎂 अपनापन से ओत-प्रोत शुभकामनाएं, बधाई सन्देश बड़ी🎂 संख्या में प्राप्त हुए है | मै बहुत #खुशी और #आदर🎂 के🎂 साथ आप सब के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ🎂 और🎂 आशा करती हू कि आपका इसी तरह स्नेह,# सहयोग,🎂 मार्गदर्शन और आशीर्वाद सदैव मुझे मिलता रहेगा |🎂🎂खास तौर पर आपके लिए हमारी तरफ से धन्यवाद🎂 की ये🎂 पंक्तियाँ भी #कुबूल कीजिए |🎂बहुत आभार आप सभी का🎂जिनसे मिलता है सही #मार्गदर्शन,🎂न देखा कभी न मिलन हुआ आपसे🎂फिर भी मिला हमे बहुत अपनापन,🎂#फेसबुक और #वाट्सअप #मसेंजार के भी हम🎂 #आभारी🎂जो बने हमारे #मिलन का माध्यम-#Vnita Kasnia Punjab🎂🌹🙏🙏🌹🎂🎂🎂🎂🎂#बाल_वनिता_महिला_आश्रम #संगरिया की #टीम#बे_सहारा #दिलों की #धड़कन #गरीबों के #मसीहा #किसानों के #किसान 72 #कोम को #साथ में लेकर चलने वाले #सच्चे और #ईमानदार हर #इंसान की #हेल्प करने वाले #बाल #वनिता #महिला #आश्रम की #संस्था#Vnita🙏🙏🎉#विधायक #मोदीराज #बीजेपी #कांग्रेस #गुरदीप #सिंह #सहयोग#गुरदीप #किसान#कांग्रेस #वनिता

#दौलत की #भूख ने अपनों को अपना नहीं समझा #गरीबों को #इंसान नहीं समझा अच्छा होता यदि भूख #मदद करने की होती तो हर इंसान #खुशहाल होता। न #नाम बता सका, न #काम बता सका।न #रुआब बता सका,न #अदब बता सका।#इंसान की खाल में आखिर #छिपा है कौन?यह तो खुद इंसान भी ना बता सका।#बाल_वनिता_महिला_आश्रम #संगरिया की #टीम#बे_सहारा #दिलों की #धड़कन #गरीबों के #मसीहा #किसानों के #किसान 72 #कोम को #साथ में लेकर चलने वाले #सच्चे और #ईमानदार हर #इंसान की #हेल्प करने वाले #बाल #वनिता #महिला #आश्रम की #संस्था#Vnita🙏🙏🎉#विधायक #मोदीराज #बीजेपी #कांग्रेस #गुरदीप #सिंह #सहयोग#गुरदीप #किसान#कांग्रेस #वनिता

*#कटी_पतंग हूँ मैं, और #बे_सहारा हूँ*,.*मुझे कहा नहीं किसी ने कि #मैं_तुम्हारा_हूँ...*मेरा भारत, मेरा गर्व आप सभी को 75 वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं!#jaipur #HappyIndependenceDay

।। श्रीरामचरितमानस- बालकाण्ड ।। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब चौपाई-देखि रूप मुनि बिरति बिसारी। बड़ी बार लगि रहे निहारी।।लच्छन तासु बिलोकि भुलाने। हृदयँ हरष नहिं प्रगट बखाने।।जो एहि बरइ अमर सोइ होई। समरभूमि तेहि जीत न कोई।।सेवहिं सकल चराचर ताही।बरइ सीलनिधि कन्या जाही।।लच्छन सब बिचारि उर राखे। कछुक बनाइ भूप सन भाषे।।सुता सुलच्छन कहि नृप पाहीं। नारद चले सोच मन माहीं।।करौं जाइ सोइ जतन बिचारी। जेहि प्रकार मोहि बरै कुमारी।।जप तप कछु न होइ तेहि काला। हे बिधि मिलइ कवन बिधि बाला।।भावार्थ-उसके रूप को देखकर मुनि वैराग्य भूल गए और बड़ी देर तक उसकी ओर देखते ही रह गए। उसके लक्षण देखकर मुनि अपने आपको भी भूल गए और हृदय में हर्षित हुए, पर प्रकट रूप में उन लक्षणों को नहीं कहा-(लक्षणों को सोचकर वे मन में कहने लगे कि) जो इसे ब्याहेगा, वह अमर हो जाएगा और रणभूमि में कोई उसे जीत न सकेगा। यह शीलनिधि की कन्या जिसको वरेगी, सब चर-अचर जीव उसकी सेवा करेंगे।सब लक्षणों को विचारकर मुनि ने अपने हृदय में रख लिया और राजा से कुछ अपनी ओर से बनाकर कह दिए। राजा से लड़की के सुलक्षण कहकर नारदजी चल दिए। पर उनके मन में यह चिन्ता थी कि-मैं जाकर सोच-विचारकर अब वही उपाय करूँ, जिससे यह कन्या मुझे ही वरे। इस समय जप-तप से तो कुछ हो नहीं सकता। हे विधाता ! मुझे यह कन्या किस तरह मिलेगी ?दोहा-एहि अवसर चाहिअ परम सोभा रूप बिसाल।जो बिलोकि रीझै कुअँरि तब मेलै जयमाल।।भावार्थ-इस समय तो बड़ी भारी शोभा और विशाल (सुंदर) रूप चाहिए, जिसे देखकर राजकुमारी मुझ पर रीझ जाए और तब जयमाल (मेरे गले में) डाल दे।।। जय जय सियाराम ।।

श्रीमद्देवीभागवत ( पाँचवा स्कन्ध ) By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब〰️〰️🌼〰️🌼〰️🌼〰️〰️अध्याय 3 ( भाग 1, 2 )॥श्रीभगवत्यै नमः ॥दूत का लौटना और महिषासुर का देवताओं पर आक्रमण करने के लिये दैत्यों को प्रोत्साहन देना...〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️व्यासजी कहते हैं- महाराज! उस अवसरपर दूत की बात सुनकर इन्द्र की क्रोधाग्नि भभक उठी। फिर सँभलकर मुसकराते हुए उन्होंने अपना वक्तव्य दूत के प्रति व्यक्त करना आरम्भ किया। उन्होंने दूत से कहा–'अरे प्रचण्ड मूर्ख! क्या मैं तुझे नहीं जानता, जो तू अभिमान में चूर होकर यों अनाप-शनाप बक रहा है? तेरे स्वामी को यह अभिमान का रोग हो गया है, अतः मैं उसकी चिकित्सा अवश्य करूँगा। फिर ऐसी व्यवस्था की जायगी कि उसकी जड़ ही कट जाय। दूत! तू जा और मैं जो कुछ कहूँ, जाकर अपने स्वामी से कह दे। सदाचारी पुरुष दूतों पर कभी हाथ नहीं उठाते। अतः मैं तुझे छोड़ देता हूँ। उससे कहना- अरे भैंस के बच्चे! यदि तुझे युद्ध करने की इच्छा हो तो अभी सामने आ जा। अरे घोड़ों के दुश्मन! तेरा बल मुझे ज्ञात है। तेरी जड़ आकृति है। घास खाकर तू रहता है । तेरे सींगों का मैं सुदृढ़ धनुष बनाऊँगा। तेरे सींगों में कुछ बल अवश्य है। मैं जानता हूँ, इसी कारण से तुझे अभिमान हो गया है। मैं तेरे उन दोनों सींगों को तोड़कर तेरा बल नष्ट कर दूँगा। नीच महिष! मेरे द्वारा तेरे वे सींग काट लिये जायँगे और तेरा वह सारा बल छीन लिया जायगा, जिसके कारण तू पूर्ण अभिमानी बन बैठा है। सींग से मारने में ही तू कुशल है, न कि मोर्चे पर हथियार चलाने में।'व्यासजी कहते हैं- इस प्रकार इन्द्र के कहने पर वह दूत तुरंत वहाँ से चल दिया। वह मदाभिमानी महिषासुर के पास गया और प्रणाम करके उससे कहने लगा।दूतने कहा- राजन्! देवराज इन्द्र पूर्ण स्वतन्त्र है। उसके पास देवताओं की विशाल सेना है। अपने को वह महान् बलवान् समझता है। आपको तो वह कुछ भी नहीं गिनता। उस मूर्ख की कही हुई बातें मैं किस प्रकार बदलकर आपसे कहूँ; क्योंकि सेवक का कर्तव्य होता कि वह स्वामी के सामने प्रिय सत्य कहे। महाराज! कल्याणकामी दूत को चाहिये कि स्वामी के मुख पर सत्य और प्रिय बोले। परंतु मैं यदि केवल प्रिय ही बोलता हूँ तो वह असत्य होने से आपका कार्य सिद्ध होने में बाधा पड़ेगी और कल्याण कामी दूत को कभी कठोर वचन नहीं कहना चाहिये। अतः मैं वैसी बात कह नहीं सकता। प्रभो! ठीक ही है, शत्रु के मुख से तो विषतुल्य वचन निकलते ही हैं; पर वैसी बातें सेवक के मुख से कैसे निकल सकती हैं? राजन्! इस समय इन्द्र ने जिस प्रकार के घृणित वचन कहे हैं, वैसे वचन मेरी जीभ से कभी नहीं निकल सकते।अध्याय 3 ( भाग 2 )॥श्रीभगवत्यै नमः ॥महिषासुर का देवताओं पर आक्रमण करने के लिये दैत्यों को प्रोत्साहन देना...〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️व्यासजी कहते हैं- दूतकी बात में रहस्य छिपा हुआ था। उसे सुनकर महिषासुर का सर्वांग अत्यन्त क्रोध से तमतमा उठा। उसकी आँखें लाल हो गयीं। वह दैत्यों को बुलाकर उनसे कहने लगा – 'महाभाग दैत्यो! वह देवराज युद्ध करना चाहता है। तुमलोग भली-भाँति बल प्रयोग करके उस नीच शत्रु को परास्त कर दो। मेरे सामने दूसरा कौन शूरवीर कहला सकता है ? इन्द्र-जैसे करोड़ों वीर हों, तब भी कोई परवा नहीं, फिर इस अकेले इन्द्र से मुझे क्या डर है ? आज मैं उसे किसी प्रकार भी जीवित नहीं छोड़गा। जो शान्त रहते हैं, उन्हीं के प्रति वह शूरवीर कहलाता है। क्षीणकाय तपस्वी लोग ही उसे अधिक बलवान् मानते हैं। अप्सराएँ उसकी सहायिका हैं। उन्हीं का बल पाकर वह नीच सदा तपस्या में विघ्न उपस्थित करता रहता है। अवसर पाकर प्रहार कर देना उसका स्वभाव बन गया है। वह बड़ा ही विश्वासघाती है। यह वही छली इन्द्र है, जिसने नमुचि को मार डाला था। पहले तो नमुचि के साथ विवाद छिड़ जाने पर भयभीत होकर संधि करने में राजी हो गया। उसने तरह-तरह की प्रतिज्ञाएँ कर लीं। बाद में कपट करके उसे मार डाला। जालसाज विष्णु तो कपट-शास्त्र का पारंगत विद्वान् ही है। जब इच्छा होती है, नाना प्रकार के रूप धारण कर लेता है। बल भी है और दम्भ करने की सारी कलाएँ भी उसे ज्ञात हैं। दानवो! जिसने सूअर का रूप धारण करके हिरण्याक्ष को तथा नृसिंह का वेष बनाकर हिरण्यकशिपु को मार डाला, उस विष्णु की भी मैं अधीनता नहीं स्वीकार कर सकता। मुझे तो विश्वास ही नहीं होता कि देवताओं में भी कहीं कोई है, जो मेरे सामने ठहर सके। विष्णु अथवा महान् बलशाली इन्द्र मेरा क्या कर सकेंगे ? मैं समरांगण में खड़ा हो जाऊँगा तब शंकर भी मेरा सामना करने में समर्थ नहीं हो सकेंगे। इन्द्र को हराकर स्वर्ग छीन लूँगा। वरुण, यमराज, कुबेर, अग्नि, चन्द्रमा और सूर्य सभी मुझसे परास्त हो जायँगे। अब हम सब दानव ही यज्ञ में भाग पायेंगे। हमें सोम-रस पीने का अधिकार प्राप्त हो जायगा। देवताओं के समाज को कुचलकर मैं दानवों के साथ सुखपूर्वक विचरूँगा । दानवो! मुझे वर मिल चुका है। अतएव देवताओं से मैं बिलकुल नहीं डरता । पुरुषमात्र मुझे मारने में असमर्थ हैं, फिर स्त्री बेचारी क्या कर सकेगी ? शीघ्रगामी दूतो ! तुम्हारा परम कर्तव्य है, पाताल एवं पर्वत आदि विभिन्न स्थानों से प्रधान-प्रधान दानवों को बुला लाओ और उन्हें मेरी सेना के अध्यक्ष बना दो। दानवो! सम्पूर्ण देवताओं को जीतने के लिये अकेला मैं ही पर्याप्त हूँ; फिर भी मेरा गौरव बढ़ जाय - एतदर्थ इस देवासुर संग्राम में निमन्त्रण देकर आप सब लोगों को सम्मिलित करता हूँ। निश्चय ही मैं सींगों और खुरों से देवताओं के प्राण हर लूँगा। वरदान के प्रभाव से मुझे देवताओं का रत्तीभर भी भय नहीं है । देवताओं, दानवों और मानवों से अवध्य होने का वर मुझे प्राप्त है। अतएव आज आपलोग स्वर्गलोक पर विजय प्राप्त करने के लिये तैयार हो जायँ। दैत्यो! स्वर्ग पर अधिकार प्राप्त करके मैं नन्दनवन में विहार करूँगा। मेरे इस उद्योग से तुम्हें भी पारिजात के फूल सूँघने को मिलेंगे। देवांगनाएँ तुम्हारी सेवा करेंगी। कामधेनु गौ का दूध पीने को मिलेगा। अमृत पीकर तुमलोग आनन्द का अनुभव करोगे । दिव्य गन्धर्व नाच और गाकर तुम्हारे चित्त को आह्लादित करेंगे । उर्वशी, मेनका, रम्भा, घृताची, तिलोत्तमा, प्रमद्वरा, महासेना, मिश्रकेशी, मदोत्कटा और विप्रचित्ति प्रभृति अप्सराएँ नाचने एवं गाने में परम प्रवीण हैं। वे अनेक प्रकार की मदिराओं का सेवन करके तुम सब लोगों के चित्त को अत्यन्त प्रसन्न करेंगी; अतः देवताओं के साथ संग्राम करने के लिये स्वर्गलोक में चलना सबको सम्मत हो तो आज ही सभी तैयार हो जायँ। पहले मांगलिक कृत्य कर लेने चाहिये। सबकी सुरक्षा के लिये अपने परम गुरु मुनिवर शुक्राचार्यजी को बुलाकर भलीभाँति उनका स्वागत करें और उन्हें यज्ञ में नियुक्त कर दें।बाल वनिता महिला आश्रमव्यासजी कहते हैं–राजन्! महिषासुर की बुद्धि सदा पापकर्म में रत रहती थी। दैत्यों को उपर्युक्त आदेश देकर वह तुरंत अपने महल में चला गया। उस समय उसके मुखपर प्रसन्नता के चिह्न झलक रहे थे।क्रमश...शेष अगले अंक मेंजय माता जी की〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

#बाल_वनिता_महिला_आश्रम #संगरिया से #द्वारकापुरी #तीर्थ #यात्रा दिनाक 2=8 से 15=8 तकस्पेशल #डील्क्स #वीडियो कोच #बसआपको यह जानकर अति #परश्नता होगी की बाल वनिता #महिला #आश्रम से एक स्पेशल बस द्वारकापुरी तीर्थ के लिए जा रही ह जिसमे निम्न तीर्थ व पवित्र नादियो के दर्शन व स्नान होगे#सलासर, खाटू श्याम जी, #पुस्कर राज नाथ द्वारा एक लिंग महादेव दर्शन, माउंट आबू, अंबा जी माता, का मंदिर अक्सर धाम, #जूनागढ़ गिरनार पर्वत, #सोमनाथ ज्योति लिंग दर्शन भेंट द्वारिका, मूल द्वारिका गोमती द्वारिका #नागेश्वर #ज्योतिर्लिंग दर्शन रुकमणी मंदिर द्वारिका धीस, #गोपी तलाई पोर बंदर सुदामा पूरी राम देवरा कोलायत स्नान व रास्ते में सभी दरसनीक स्थानो के #दर्शन करवाएं जाएंगे

#बाल_वनिता_महिला_आश्रम की टीम 2-8-21 को #द्वारका जी #खाटू #श्याम, #सलाशर, #माउंट #आबू, और बी बहोत सारे धाम 13 दिनों का टूर बोलो बाल #वनिता महिला आश्रम की जय #जय #श्री #राधे #कृष्णा#जय_श्री_राम#संगरिया#Vidhayk

#बाल_वनिता_महिला_आश्रम #खोया है उसने #अपनों को किन #बेदर्द हालातों में।भरपेट खाना खाकर सुकून की नींद लेने वालोंकभी महसूस करके देखो किसी बेसहारा का दर्द बातों में। जो फुटपाथ पर अपनी हर एक रात बितातें हैं,एक हल्की सी आहट से ही जाग जाते हैं।और जब पातें हैं तन्हा खुद को बेबसी की इस जंग में,तो घुटनों से दबा के खाली पेट भूख और ठण्ड दोनों को मिटाते हैं।सेवा से बड़ा कोई #धर्म नहीं,बाँध लो एक डोर इनसे रिश्ते-नातों मेंकभी #महसूस करके देखो किसी #बेसहारा का दर्द बातों में।लगाओ तुम गले उनको,इंतजार छोड़ दो,किसी बेसहारा के लिए थोडा सा प्यार छोड़ दो।फिर देखना उसकी एक #मुस्कुराहट कितनासुकून देती है,खून के रिश्तों से बड़ा,इंसानियत का रिश्ता जोड़ दो।जिन्दगी का मकसद सफल हो जायेगा थाम लो एक मजबूर हाथअपने हाथों में,कभी #महसूस करके देखो किसी बेसहारा का दर्द बातों में।#Vnita#श्रावण मास माहात्म्य - आठवाँ अध्याय श्रावण मास में किए जाने वाले बुध-गुरु व्रत का वर्णनईश्वर बोले – हे सनत्कुमार ! अब मैं समस्त पापों का नाश करने वाले बुध-गुरु व्रत का वर्णन करूँगा जिसे श्रद्धापूर्वक करके मनुष्य परम सिद्धि प्राप्त करता है. ब्रह्मा जी ने चन्द्रमा को ब्राह्मणों के राजा के रूप में अभिषिक्त किया. किसी समय उसने रूप तथा यौवन से संपन्न तारा नामक गुरु पत्नी को देखा. उसकी रूप संपदा से मोहित होकर वह काम के वशीभूत हो गया और उसे उसने अपने घर में रख लिया. इस प्रकार बहुत दिन बीतने पर उसे बुध नामक एक पुत्र हुआ जो बुद्धिमान, सौंदर्यशाली तथा सभी शुभ लक्षणों से युक्त था.गुरु बृहस्पति को ज्ञात हुआ कि तारा, चन्द्रमा के घर में स्थित है तब उन्होंने चन्द्रमा से कहा कि मेरी पत्नी को वापिस कर दो, अनेक तरह से समझाने पर भी जब चन्द्रमा ने तारा को वापिस नहीं दिया तब बृहस्पति ने देवताओं की सभा में जाकर देवराज इंद्र को यह वृत्तांत बतलाया और कहा – हे शक्र ! आप देवताओं के राजा हैं अतः अपनी आज्ञा से आप उसे दिलाएं अन्यथा उस चन्द्रमा के द्वारा किया गया पाप आप को ही निसंदेह लगेगा क्योंकि शास्त्र निर्णय के अनुसार प्रजा के द्वारा किए गए पाप को राजा भोगता है. पुराण में भी ऐसा कहा गया है कि दुर्बल का बल राजा होता है. गुरु का यह वचन सुनकर चन्द्रमा ने कहा – मैं आपकी आज्ञा से तारा को तो दे दूँगा किन्तु इस पुत्र को नहीं दूँगा. शास्त्र के अनुसार विचार करके देवताओं ने उस बुध को चन्द्रमा को दे दिया.इसके बाद गुरु को उदास देखकर देवताओं ने उन दोनों को वर प्रदान किया – हे चंद्र ! अब तुम घर जाओ, यह तुम्हारा भी पुत्र है और बृहस्पति का भी है. यह तुम्हारा पुत्र ग्रहों में प्रतिष्ठित होगा. हे सुराचार्य ! आप यह दुसरा भी शुभ वर ग्रहण कीजिए कि जो बुद्धिमान व्यक्ति आप दोनों – बुध-गुरु – का व्रत मिलाकर करेगा उसकी संपूर्ण सिद्धि होगी, यह सत्य है, इसमें संदेह नहीं. शंकर जी के लिए अत्यंत प्रिय इस श्रावण मास के आने पर जो लोग बुधवार तथा बृहस्पतिवार को पूजन व्रत करेंगे उन्हें सिद्धि प्राप्त होगी.इस व्रत में दही तथा भात का नैवेद्य व्रत सिद्धि में मूल हेतु है. स्थान भेद से आप दोनों की मूर्ति लिखकर पूजन करने से भिन्न-भिन्न फल प्राप्त होता है. यदि कोई हिंडोले के ऊपरी स्थान पर आप दोनों कि मूर्ति लिखकर पूजन करे तो वह सर्वगुणसंपन्न तथा दीर्घायु पुत्र प्राप्त करेगा. यदि मनुष्य कोषागार में मूर्ति को लिखकर पूजन करता है तो उसके कोष बढ़ते हैं और वे कभी क्षय को प्राप्त नहीं होते. इसी प्रकार पाकालय में पूजन करने से पाकवृद्धि और देवालय में पूजन करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है. शय्यागार में लिखकर पूजन करने से स्त्री का वियोग कभी नहीं होता है. धान्यागार में लिखकर पूजन करने से धान्य की वृद्धि होती है. इस प्रकार मनुष्य उन-उन फलों को प्राप्त करता है.इस प्रकार सात वर्ष तक करने के बाद उद्यापन करना चाहिए. उद्यापन से पहले दिन अधिवासन करके रात्रि में जागरण करना चाहिए. सुवर्ण कि प्रतिमा बनाकर विधिपूर्वक सोलह उपचारों से पूजन करने के पश्चात् तिल, घृत, चारु और अपामार्ग तथा अश्वत्थ से युक्त समिधाओं से होम करना चाहिए, अंत में पूर्णाहुति देनी चाहिए. उसके बाद मामा व भांजे को प्रयत्नपूर्वक भोजन कराना चाहिए. इसके बाद ब्राह्मणों को तथा अन्य लोगों को भी भोजन कराना चाहिए. स्वयं भी भोजन करना चाहिए. इस विधि से सात वर्ष तक करने पर मनुष्य सभी मनोरथों को प्राप्त कर लेता है. जो इसे विद्या कि कामना से करता है, वह वेद व शास्त्र के अर्थों को जाने वाला हो जाता है. बुध बुद्धि प्रदान करते हैं और गुरु बृहस्पति गुरुता प्रदान करते हैं.सनत्कुमार बोले – हे भगवन ! आपने जो यह कहा है कि इस अवसर पर मामा तथा भांजे को भोजन करना चाहिए, यदि बताने योग्य हो तो इसका कारण बताइए.ईश्वर बोले – हे सनत्कुमार ! पूर्वकाल में अत्यंत दीन तथा दरिद्र कोई दो ब्राह्मण थे, वे दोनों मामा-भानजे थे. उदार पूर्ति हेतु परिश्रमपूर्वक भ्रमण करते हुए वे दोनों किसी नगर में अन्न माँगने के लिए गए थे. उन्होंने घर-घर में श्रावण मास में प्रत्येक वार को उस वार का व्रत होते हुए देखा किन्तु कहीं भी बुध-गुरु का व्रत नहीं देखा तब उन्होंने बहुत देर तक परस्पर विचार किया कि सभी वारों का व्रत तो सर्वत्र दिखाई पड़ रहा है किन्तु बुध-गुरु का कहीं नहीं अतः चूँकि यह व्रत अनुच्छिष्ट है इसलिए हम दोनों को चाहिए कि इस शुभ व्रत का अनुष्ठान आदरपूर्वक करें. किन्तु हे सनत्कुमार ! इसकी विधि ना जानने के कारण वे दोनों संशय में पड़ गए तब रात्रि में उन्हें स्वप्न में इस व्रत की विधि दृष्टोगोचर हो गई. इसके बाद उन्होंने उसकी विधि के अनुसार व्रत को किया जिससे उन्होंने अपार संपदा प्राप्त की.प्रतिदिन उनकी संपत्ति बढ़ने लगी और सभी लोगों को ज्ञात भी हो गयी. इस प्रकार सात वर्ष तक करके वे पुत्र व पौत्र आदि से संपन्न हो गए. उसके बाद उनके ऊपर प्रसन्न होकर बुध व गुरु प्रकट हुए और उन्होंने उन दोनों को यह वर दिया – आप दोनों ने हम दोनों के निमित्त इस व्रत को प्रवर्तित किया है अतः आज से कोई भी इस शुभ व्रत को करे उसे व्रत की समाप्ति पर मामा तथा भानजे को प्रयत्नपूर्वक भोजन कराना चाहिए. इस व्रत के प्रभाव से उसे सभी कामनाओं की परम सिद्धि हो जाती है और अंत में चंद्र सूर्य पर्यन्त उसका हमारे लोक में वास होता है.|| इस प्रकार श्रीस्कन्द पुराण के अंतर्गत ईश्वर सनत्कुमार संवाद में श्रवण मास माहात्म्य में “बुधगुरुव्रत कथन” नामक आठवाँ अध्याय पूर्ण हुआ ||#Vidhayk #संगरिया

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