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1977 में डीज़ल का का रेट लगभग 1रु 50 पैसे था जोकि गेंहू का लगभग 3 रुपये किलो था । 📌🔜1 किलो गेंहू में 2 लीटर डीज़ल आराम से आ जाता था । और आज 104 रुपये लीटर डीजल है और गेंहू 16 से 18 रुपये किलो हैं यानी कि किसान आज 6 किलो गेंहू देकर 1 लीटर डीजल ला सकते हैं 🔜बोलो किसान का भला कैसे हो सकता हैं ?? 👍किसान की आय दुगुनी कैसे होगी ❓ ⭕किसान आत्महत्या क्यों कर रहे हैं इसलिए फसल की कीमत कम ⭕किसान_पुत्र #किसान को कब मिलेगा लाभकारी मूल्य #भारत का संविधान-भाग- 4(राज्य की नीति के निदेशक तत्व) #अनुच्छेद -39, राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्व- राज्य अपनी नीति का, विशिष्टतया, इस प्रकार संचालन करेगा कि सुनिश्चित रूप से- (ख) समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियन्त्रण इस प्रकार बंटा हो जिससे सामूहिक हित का सर्वोच्च रूप से साधन हो ; (ग) आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार चले जिससे धन और उत्पादन-साधनों का सर्वसाधारण के लिए अहितकारी संकेन्द्रण न हो ; #भारत का संविधान-भाग 4(राज्य की नीति के निदेशक तत्व) #अनुच्छेद -48,कृषि और पशुपालन का संगठन- राज्य,कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों में संगठित करेगा और #विशिष्टतया गायों और बछडों तथा अन्य #दुधारू और वाहक पशुओं की नस्लों के परिरक्षण और सुधार के लिए और उनके वध का प्रतिषेध करने के लिए कदम उठायेगा । By वनिता कासनियां पंजाब [{#भारत का संविधान, #अनुच्छेद-48 (राज्य)} को निर्देश देता है कि वह #कृषि को वैज्ञानिक प्रणालियों पर संगठित करेगा]

क्या आप जानते हैं कि भूत प्रेत भी आपका खाना खाते हैं ?By वनिता कासनियां पंजाबआज मैं इस विषय में आपको कुछ गंभीर बातें बताऊंगा। एक ऐसा सत्य बताऊंगा, जो आज तक लोगों को नहीं पता।जैसा कि हम सब जानते हैं, भूत प्रेत वो आत्माएं होती हैं, जिन्होंने अपना शरीर खो दिया है और जो इस पृथ्वी लोक पर भटक रही हैं। ये वो अभागी आत्माएं हैं, जिनके लिए न मुक्ति का द्वार खुला है और न ही इन्हें कोई नया जन्म मिला है। इन्हें नहीं पता ये कहाँ जाएं, क्या करें। ये बस हम इंसानों की दुनिया में रह रही हैं, इसी इंतजार में कि किसी दिन इनका भी वक्त आएगा, जब इन्हें इस प्रेत योनि से छुटकारा मिलेगा। पर तब तक हम इंसानों को जीते देख, खाते देख, पीते देख, मौज करते देख उनका भी मन तड़प उठता है। कुछ ऐसी इच्छाएं होती हैं, जो शरीर के नष्ट हो जाने के बाद भी बनी रहती हैं जैसे भोजन करने की इच्छा, भोग विलास की इच्छा, सेक्स करने की इच्छा, किसी प्रियजन से मोह रखने की इच्छा और ये इच्छाएं आत्मा के अंदर होती हैं, इसमें शरीर का कोई लेना देना नहीं है। हालांकि शरीर ही एक माध्यम है जिसके द्वारा हम इन इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं, जैसे भोजन की इच्छा शरीर द्वारा ही पूरी की जा सकती है। विलास की, काम की इच्छा भी शरीर के द्वारा ही पूरी की जा सकती है और अगर आप किसी को चाहते हैं, किसी से प्यार करते हैं, किसी के प्रति का आपका मोह है चाहे आपका बेटा है, चाहे बेटी, चाहे पति है, चाहे पत्नी है तो आप शारीरिक रूप से ही उसके साथ रह कर, उसको प्यार दे कर, अपना मोह और अपना प्यार प्रदर्शित कर सकते हैं। पर एक प्रेत या एक आत्मा क्या करे ! उसके पास तो शरीर है ही नहीं ! इसीलिए वो उन इच्छाओं को पूरा करने के लिए शरीर का सहारा लेती हैं। हम जैसे इंसानों का सहारा लेती हैं, जिनके पास शरीर है। सबसे ज्यादा जो एक यूँ कह लीजिए, एक कॉमन चीज है, वो है पेट की भूख। इंसानों को इसलिए होती है क्योंकि उनके पास शरीर है। उनका शरीर भोजन माँगता है, चलने के लिए। पर जो उस भोजन का स्वाद है, वो इन आत्माओं को मरणोपरांत भी याद रहता है, शरीर नष्ट हो जाने के बाद भी याद रहता है। जो इन्होंने कभी भोगा था, जब ये कभी जिंदा थे। यूँ कह लीजिए जिंदा तो ये हमेशा ही हैं, जब कभी इनके पास शरीर था। अब क्योंकि उस भोजन का स्वाद ये नहीं ले पा रहे इसलिए अक्सर काफी आत्माओं का एक ही जो है अभिलाषा रह जाती है, वो ये होती है कि हम उस भोजन की अनुभूति दुबारा करें और इसको दुबारा करने के लिए वो किसी न किसी इंसान के चिपकती हैं।अक्सर हम लोग जब खाना खाते हैं, किसी भी तरीके का भोजन करते हैं तो हम सोचते हैं कि हम अकेले हैं पर ऐसा नहीं है। ऐसा भी हो सकता है हमारे साथ कोई आत्मा बैठी हो। हम कहीं रेस्टोरेंट में खाना खा रहे हैं, कहीं बाहर सड़क पर खाना खा रहे हैं, कोई रोल बनवा लिया, कोई भी फास्ट फूड ले लिया, बर्गर ले लिया और हम उसे खाते हुए जा रहे हैं। हम किसी भी जगह पर हैं, वहाँ पर कोई भी आत्मा बैठी हो सकती है क्योंकि हमारे को भगवान ने ये चक्षु नहीं दिए कि हम ये देख सकें कि कहाँ पर कौन है। हम उस ब्रह्मांड के पार नहीं देख सकते क्योंकि हमारे पास वो चक्षु ही नहीं हैं। इसलिए हमें नहीं पता लगता। पर असल में, हकीकत में हर वक्त, हर जगह कोई न कोई प्रेत, कोई न कोई आत्मा विचरण कर रही है, बैठी है, घूम रही है और जब आप भोजन खाते हो तो उनकी सीधा दृष्टि आपके भोजन पर जाती है, आप पर जाती है कि आप कितना सुख भोग रहे हो ! क्या बढ़िया भोग ले रहे हो ! क्या स्वाद का मजा ले रहे हो और वो इतने अभागे हैं कि इस स्वाद से वंचित हैं। तो इसीलिए वो इंसान के शरीर में प्रवेश करके उस भोजन का आनंद लेती हैं।अक्सर ऐसा हुआ है कि आपको भूख नहीं है तब भी आप ज्यादा खा रहे हैं। आप दो रोटी खाते हैं पर अचानक से आप तीन रोटी, चार रोटी खाने लग गए। आपको ये महसूस हो रहा कि आपके पेट में जगह नहीं है पर फिर भी आपका अपने ऊपर ही कोई कंट्रोल नहीं है और आप एक के बाद एक रोटियाँ खाते जा रहे हैं। ये एक ऐसी अवस्था है जो बताती है कि जो दो रोटी के ऊपर की जो भूख है, वो आपकी नहीं किसी और की है और वो अपनी इस भूख मिटाने के लिए आपके शरीर का इस्तेमाल कर रहा है। आपके ऊपर अपना कब्जा जमा रहा है, उस रोटी को खाने के लिए, उस भोजन को खाने के लिए।अक्सर ऐसा होता है हम ज्यादा से ज्यादा खाना खा लेते हैं। हालांकि हमारा मन नहीं था और बाद में हमारी तबियत भी खराब होती है। हम कहते हैं यार क्यों खा लिया, पता नहीं क्यों खा लिया ? मन नहीं था, तब भी खा लिया ! क्योंकि वो मन किसी और का था।और दूसरी बात कई दफा ऐसा भी होता है कि हमें कोई चीज आज तक नहीं पसंद थी खाने की। अचानक वो पसंद आने लगे। उसका स्वाद इतना अच्छा लगने लगे कि हम यही हैरान हो जाएं कि आज तक हमें ये चीज हमें बेकार लगती थी, खाते नहीं थे और अब हम कैसे खा रहे हैं ? तो वो स्वाद उस आत्मा को पसंद है जो उस इंसान के शरीर में है, जिसके द्वारा वो उस भोजन का भोग ले रही है। अब इसमें दो बातें हो सकती हैं। जरूरी नहीं कि हर बार किसी आत्मा का ही काम हो। आपकी खुद की शारीरिक एक ये अनुभूति भी हो सकती है। पर मैक्सिमम केसेज में ये किसी न किसी प्रेत या आत्मा का काम होता है। जो अपनी इच्छा आपके द्वारा पूरी करती है और फिर निकल जाती है।अक्सर बहुत से मानव हैं, बहुत से लोग हैं जिनके शरीर में कोई न कोई आत्मा प्रवेश करके भोजन कर रही है और उन्हें ये बात नहीं पता क्योंकि वो प्रेत या वो आत्मा वो बात उजागर होने ही नहीं देते। उनका लक्ष्य सिर्फ उस भोजन को खाना होता है, जो इंसान खा रहा है। कुछ आत्मा इतनी ताकतवर हो जाती हैं कि उन्हें शरीर में लगातार रहने की भी जरूरत नहीं पड़ती किसी के। वो एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश आसानी से कर लेती हैं, सिर्फ अपने अलग अलग अनुभूतियों को, अलग अलग चीजों को भोगने के लिए, जो वो पहले भोगा करती थीं।कुछ लोग इतने अभागे होते हैं कि उनके शरीर में एक बार अगर किसी प्रेत ने प्रवेश किया, ये देख कर कि वो बंदा भोजन खा रहा है या मीठा खा कर आया है तो उस स्वाद को फील करने के लिए। तो वो प्रेत उसी शरीर में रह जाता है और उस शरीर को घर बना लेता है क्योंकि वो ये सोचता है कि आज ये इतना बढ़िया भोजन कर रहा है और इसके शरीर में आकर मैंने स्वाद को लिया। अगर मैं इसके शरीर में रहने लगे जाता हूँ तो मुझे तो रोज ऐसे तरीके के भोजन और पकवान खाने को मिलेंगे।तो इसमें बहुत चीजें हैं। आप इन चीजों से न बच सकते हैं, न इससे पार जा सकते हैं। बस आप कुछ ऐसे छोटे उपाय कर सकते हैं, जिससे आपके साथ ये न हो क्योंकि अगर ये आप साथ हो रहा है तो भी आपको पता नहीं चलेगा और अगर आपके साथ नहीं हो रहा तो भी आपको पता नहीं चलेगा। ये चीज ऐसी है जिसको पता लगा पाना बहुत मुश्किल है। ये तभी पता लगती है जब आपके शरीर में बैठा प्रेत इतना पुराना हो जाता है कि वो फिर उसके बाद ठसक से अपना कब्जा जमाने के बाद आपको ये बताने की कोशिश करता है, ये दिखाने लगता है कि ये शरीर अब उसका है और तब तक पता नहीं कितने साल निकल जाते हैं, इंसान सोच भी नहीं सकता।तो कैसे इस चीज को रोका जाए ? कैसे किसी भी प्रेत या भूत को रोका जाए कि वो आपका भोजन न खाए। जब भी आप भोजन करते हैं, चाहे आप घर में भोजन कर रहे, चाहे आप बाहर भोजन कर रहे हैं, भोजन का थोड़ा सा टुकड़ा (जो भी आप खा रहे हैं) निकाल कर एक कोने में रख दें। जिससे आपने उस आत्मा के, उस प्रेत के निमित्त का भोजन पहले ही निकाल दिया और साथ ही भोजन का थोड़ा सा टुकड़ा भगवान के चरणों में रख दें। भगवान से प्रार्थना करें भोजन करने से पहले कि हे ईश्वर मैं पनाह में आ कर इस भोजन को ग्रहण कर रहा हूँ और ये भोजन मैं आपको अर्पण करता हूँ। आप स्वयं इस भोजन को कर रहे हैं। जिस भी देव को आप मानते हैं। सिर्फ ये एक छोटी सी प्रार्थना कर लेने से और छोटा सा टुकड़ा उस भोजन में से निकाल देने से ही आपका काम बन जाएगा और उसमें छोटा सा टुकड़ा अगर आप किसी जानवर को डाल दें तो वो और भी उत्तम है।ये छोटा सा उपाय आपको बहुत सी चीजों से बचाएगा। नजर दोष से भी बचाएगा क्योंकि अक्सर अगर कोई प्रेत नहीं देख रहा या कोई प्रेत आपका खाना नहीं खा रहा तो लोग जो आपको देख रहे, उनकी नजर लग जाती है। उस नजर को भी ये उपाय काटता है। जब एक बार आप ईश्वर को शामिल कर लेते हैं किसी भी अपने कार्य में तो फिर आपकी जीत ही जीत होती है। आपको कोई हरा नहीं सकता। आपको कोई मात नहीं दे सकता। आपका कोई बुरा नहीं कर सकता क्योंकि स्वयं आपने वो भोजन ईश्वर को अर्पण कर दिया और ईश्वर स्वयं वो भोजन कर रहे हैं और आप उनकी सत्ता में भोजन कर रहे हो। उनकी पनाह में भोजन कर रहे हो। ईश्वर से ऊपर तो कोई है ही नहीं।कभी भी आप भोजन करें थोड़ा सा टुकड़ा निकाल दें और अपने ईश्वर को याद करें। अगर आप कोई ऐसी जगह पर भोजन कर रहे हैं जहाँ पर आपको वाकई लगता है कि जगह सुनसान है या डरावनी है या जगह ऐसी है जहाँ पर कोई न कोई ऐसी चीज हो सकती है तो आप थोड़ा सा गंगाजल ले कर अपने खाने में मिला कर उस भोजन को कर सकते हैं। तो ये कुछ ऐसी चीजें हैं, अगर आप अपने जिंदगी में इसको उतार लें तो काफी बड़ी परेशानीयों से बच सकते हैं।चित्र स्त्रोत : गुगल Do you know that ghosts also eat your food? By Vnita Kasnia Punjb Today I will tell you some serious things about this subject. I will tell such a truth, which till date people do not kas we all knownow.abन है।रा

छाना थेपड़ी और छाछ राबड़ी फेर याद दीरानी है, होकड़ो आव होकड़ों आव बा रीत फेर चलानी है, By वनिता कासनियां पंजाब गर्व हूं केव आपना टाबरिया के मेह ठेठ बागड़ी हां इसी मान्यता मावड़ी न दिरानी है बागड़ी दिवस गी मोकली मोकली बधाई #बागड़ी_पर_गर्व_करो_शर्म नही #जय_ #बागड़ी 🙏 जय श्री कृष्ण जय श्री हरि 🙏 भगवान् कृष्ण ने जब देह छोड़ा तो उनका अंतिम संस्कार किया गया , उनका सारा शरीर तो पांच तत्त्व में मिल गया लेकिन उनका हृदय बिलकुल सामान्य एक जिन्दा आदमी की तरह धड़क रहा था और वो बिलकुल सुरक्षित था , उनका हृदय आज तक सुरक्षित है जो भगवान् जगन्नाथ की काठ की मूर्ति के अंदर रहता है और उसी तरह धड़कता है , ये बात बहुत कम लोगो को पता है महाप्रभु का महा रहस्य सोने की झाड़ू से होती है सफाई...... महाप्रभु जगन्नाथ(श्री कृष्ण) को कलियुग का भगवान भी कहते है.... पुरी(उड़ीसा) में जग्गनाथ स्वामी अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ निवास करते है... मगर रहस्य ऐसे है कि आजतक कोई न जान पाया हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ती को बदला जाता है,उस समय पूरे पुरी शहर में ब्लैकआउट किया जाता है यानी पूरे शहर की लाइट बंद की जाती है। लाइट बंद होने के बाद मंदिर परिसर को crpf की सेना चारो तरफ से घेर लेती है...उस समय कोई भी मंदिर में नही जा सकता... मंदिर के अंदर घना अंधेरा रहता है...पुजारी की आँखों मे पट्टी बंधी होती है...पुजारी के हाथ मे दस्ताने होते है..वो पुरानी मूर्ती से "ब्रह्म पदार्थ" निकालता है और नई मूर्ती में डाल देता है...ये ब्रह्म पदार्थ क्या है आजतक किसी को नही पता...इसे आजतक किसी ने नही देखा. ..हज़ारो सालो से ये एक मूर्ती से दूसरी मूर्ती में ट्रांसफर किया जा रहा है... ये एक अलौकिक पदार्थ है जिसको छूने मात्र से किसी इंसान के जिस्म के चिथड़े उड़ जाए... इस ब्रह्म पदार्थ का संबंध भगवान श्री कृष्ण से है...मगर ये क्या है ,कोई नही जानता... ये पूरी प्रक्रिया हर 12 साल में एक बार होती है...उस समय सुरक्षा बहुत ज्यादा होती है... मगर आजतक कोई भी पुजारी ये नही बता पाया की महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ती में आखिर ऐसा क्या है ??? कुछ पुजारियों का कहना है कि जब हमने उसे हाथमे लिया तो खरगोश जैसा उछल रहा था...आंखों में पट्टी थी...हाथ मे दस्ताने थे तो हम सिर्फ महसूस कर पाए... आज भी हर साल जगन्नाथ यात्रा के उपलक्ष्य में सोने की झाड़ू से पुरी के राजा खुद झाड़ू लगाने आते है... भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती, जबकि आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देंगी आपने ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे-उड़ते देखे होंगे, लेकिन जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता। झंडा हमेशा हवा की उल्टी दिशामे लहराता है दिन में किसी भी समय भगवान जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती। भगवान जगन्नाथ मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदला जाता है, ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा इसी तरह भगवान जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है, जो हर दिशा से देखने पर आपके मुंह आपकी तरफ दीखता है। भगवान जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, जिसे लकड़ी की आग से ही पकाया जाता है, इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है। भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता, लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि जैसे ही मंदिर के पट बंद होते हैं वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है। ये सब बड़े आश्चर्य की बात हैं.. 🚩 जय श्री जगन्नाथ 🚩 🙏🙏

छाना थेपड़ी और छाछ राबड़ी फेर याद दीरानी है, होकड़ो आव होकड़ों आव बा रीत फेर चलानी है,Byवनिता कासनियां पंजाबगर्व हूं केव आपना टाबरिया के मेह ठेठ बागड़ी हां इसी मान्यता मावड़ी न दिरानी है बागड़ी दिवस गी मोकली मोकली बधाई #बागड़ी #बागड़ी_पर_गर्व_करो_शर्म नही#जय_बागड़ी🙏 जय श्री कृष्ण जय श्री हरि 🙏भगवान् कृष्ण ने जब देह छोड़ा तो उनका अंतिम संस्कार किया गया , उनका सारा शरीर तो पांच तत्त्व में मिल गया लेकिन उनका हृदय बिलकुल सामान्य एक जिन्दा आदमी की तरह धड़क रहा था और वो बिलकुल सुरक्षित था , उनका हृदय आज तक सुरक्षित है जो भगवान् जगन्नाथ की काठ की मूर्ति के अंदर रहता है और उसी तरह धड़कता है , ये बात बहुत कम लोगो को पता हैमहाप्रभु का महा रहस्यसोने की झाड़ू से होती है सफाई......महाप्रभु जगन्नाथ(श्री कृष्ण) को कलियुग का भगवान भी कहते है.... पुरी(उड़ीसा) में जग्गनाथ स्वामी अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ निवास करते है... मगर रहस्य ऐसे है कि आजतक कोई न जान पायाहर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ती को बदला जाता है,उस समय पूरे पुरी शहर में ब्लैकआउट किया जाता है यानी पूरे शहर की लाइट बंद की जाती है। लाइट बंद होने के बाद मंदिर परिसर को crpf की सेना चारो तरफ से घेर लेती है...उस समय कोई भी मंदिर में नही जा सकता...मंदिर के अंदर घना अंधेरा रहता है...पुजारी की आँखों मे पट्टी बंधी होती है...पुजारी के हाथ मे दस्ताने होते है..वो पुरानी मूर्ती से "ब्रह्म पदार्थ" निकालता है और नई मूर्ती में डाल देता है...ये ब्रह्म पदार्थ क्या है आजतक किसी को नही पता...इसे आजतक किसी ने नही देखा. ..हज़ारो सालो से ये एक मूर्ती से दूसरी मूर्ती में ट्रांसफर किया जा रहा है...ये एक अलौकिक पदार्थ है जिसको छूने मात्र से किसी इंसान के जिस्म के चिथड़े उड़ जाए... इस ब्रह्म पदार्थ का संबंध भगवान श्री कृष्ण से है...मगर ये क्या है ,कोई नही जानता... ये पूरी प्रक्रिया हर 12 साल में एक बार होती है...उस समय सुरक्षा बहुत ज्यादा होती है... मगर आजतक कोई भी पुजारी ये नही बता पाया की महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ती में आखिर ऐसा क्या है ??? कुछ पुजारियों का कहना है कि जब हमने उसे हाथमे लिया तो खरगोश जैसा उछल रहा था...आंखों में पट्टी थी...हाथ मे दस्ताने थे तो हम सिर्फ महसूस कर पाए...आज भी हर साल जगन्नाथ यात्रा के उपलक्ष्य में सोने की झाड़ू से पुरी के राजा खुद झाड़ू लगाने आते है...भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती, जबकि आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देंगीआपने ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे-उड़ते देखे होंगे, लेकिन जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता। झंडा हमेशा हवा की उल्टी दिशामे लहराता हैदिन में किसी भी समय भगवान जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती।भगवान जगन्नाथ मंदिर के 45 मंजिला शिखर पर स्थित झंडे को रोज बदला जाता है, ऐसी मान्यता है कि अगर एक दिन भी झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगाइसी तरह भगवान जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है, जो हर दिशा से देखने पर आपके मुंह आपकी तरफ दीखता है।भगवान जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, जिसे लकड़ी की आग से ही पकाया जाता है, इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है।भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता, लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि जैसे ही मंदिर के पट बंद होते हैं वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है।ये सब बड़े आश्चर्य की बात हैं.. 🚩 जय श्री जगन्नाथ 🚩 🙏🙏

#बागड़ी #जाट #जमींदार #घराणा #किसान :- हांडी का #दूध व मलाई , हांडी की छाछ व बिलोनी और मटके का पानी का स्वाद ही न्यारा है ,👌👌जिसने पिया है वोही जाने इस देसी खान पान के फायदे ❤ जय #पंजाब #हरियाणा कितना भी बाहर शहर में #रेस्टोरेंट कैफे में #पिज़्ज़ा #बर्गर #खालो गांव में मां के हाथ का देसी खाने जैसे #स्वादिष्ट नहीं होंगे।#गांव में मां के हाथ का देसी खाने के आगे सब खाने #फीके है।💝🤗 बुजुर्ग लोग इसलिए ताकतवर है 70 साल की उम्र में भी खेती कर रहे हैं 💪 सब्जी में नहीं समझते थे सुबह और दोपहर को दूध दही घी और शाम को गेहूं की थूली में छाछ डालकर खाने में ली🙏❤️ जय जय राजस्थान जय जवान जय किसान#किसान के #खेतों में बहुत सारे #मतीरे होते हैं उसको ईकटा करते हैं और उसके बाद में उसके अंदर का जो गिर होता है उसको निकाल कर फेंक देते हैं और उसके के अंदर बीज होता है वह मार्केट में बिकता है 😥 लेकिन कई लोगों को खाने को नहीं मिलता और हमारे यहां खेतों में बीज निकालते निकालते थक जाते हैं 👉 मतीरा लगभग एक महीना खराब नहीं होता मतीरा_खाने_से_पेशाब_की_तकलीफ_या_पेट_के_अंदर_जलन_पानी_की_कमी_ऐसे_कई_फायदे_होते_हैं छाना थेपड़ी और छाछ राबड़ी फेर याद दीरानी है, होकड़ो आव होकड़ों आव बा रीत फेर चलानी है,गर्व हूं केव आपना टाबरिया के मेह ठेठ बागड़ी हां इसी मान्यता मावड़ी न दिरानी है बागड़ी दिवस गी मोकली मोकली बधाई #बागड़ी #बागड़ी_पर_गर्व_करो_शर्म नही#जय_बागड़ीवनिता कासनियां पंजाब द्वारा#सदुपयोग किसी #गांव में #धर्मदास नामक एक #महाकंजूस व्यक्ति रहता था जिसके सन्दर्भ में सभी यही कहते थे कि धर्मदास बातें तो बहुत अच्छी-अच्छी करता है मगर है एकदम महाकंजूस, #मक्खीचूस। गांव और आसपास के लोग जानते थे कि चाय की बात तो अलग है वह किसी को एक घूंट #पानी तक के लिए नहीं पूछता था।साधु-संतों और भिखारियों को देखकर तो उसके प्राण ही सूख जाते थे कि कहीं कोई कुछ मांग न बैठे। उसके पास धन-दौलत की कोई कमी न थी ; उसके पुरखे इतना कमाकर रख गए थे कि जीवन में उसे किसी बात की कमी महसूस हो ही न सकती थी।एक दिन उसके दरवाजे पर #एक_महात्मा आये और उन्होंने धर्मदास से सिर्फ एक #रोटी मांगी।पहले तो धर्मदास ने महात्मा को कुछ भी देने से मना कर दिया लेकिन महात्मा वहीं खड़ा रहा तो वह #आधी_रोटी देने लगा। धर्मदास द्वारा आधी रोटी देता देखकर महात्मा ने कहा- "अब तो मैं एक रोटी, नहीं पेट भरकर खाना खाऊंगा।" महात्मा की बढ़ती मांग देखकर बिफर उठा धर्मदास-"मैंने आपको आधी रोटी दी, आपने नहीं ली।अब मैं आपको कुछ नहीं दूंगा।" कहकर धर्मदास ने घर का दरवाजा बंद कर लिया।महात्मा रातभर चुपचाप भूखा-प्यासा धर्मदास के #दरवाजे पर खड़ा रहा।सुबह धर्मदास ने महात्मा को अपने दरवाजे पर खड़ा देखा तो सोचा कि अगर मैंने इसे भरपेट खाना नहीं खिलाया और यह भूख-प्यास से यहीं पर मर गया तो व्यर्थ में ही साधु की हत्या का दोषी बनकर मेरी बदनामी होगी।यह सब सोचकर धर्मदास ने महात्मा से कहा-"बाबा, तुम भी क्या याद करोगे, आओ पेट भरकर खाना खा लो।"महात्मा भी सम्भवतः धर्मदास की परीक्षा लेकर उसे सबक सिखाने के उद्देश्य से ही आए थे। धर्मदास की बात सुनकर महात्मा ने कहा- "अब मुझे खाना नहीं खाना, मुझे तो एक #कुआं खुदवा दो।"महात्मा की बात सुनकर झुंझलाकर धर्मदास बोल पड़ा- "लो महाराज, अब कुआं बीच में कहां से आ गया?"धर्मदास ने कुआं खुदवाने से साफ इन्कार कर दिया तो साधु महाराज अगले दिन फिर रातभर चुपचाप भूखे-प्यासे धर्मदास के दरवाजे पर खड़े रहे।सुबह जब धर्मदास ने महात्मा को भूखा-प्यासा अपने दरवाजे पर ही खड़ा पाया तो सोचा कि अगर मैने कुआं नहीं खुदवाया तो यह महात्मा इस बार जरूर भूखा-प्यास मर जायेगा ; और मैं कलंक का भागी बन जाऊंगा।'काफी सोच- विचार कर धर्मदास ने महात्मा से हाथ जोड़कर कहा- "बाबा, मैं तुम्हारे लिए एक कुआं खुदवा देता हूं और इससे आगे अब कुछ मत बोलना।"नहीं, एक नहीं अब तो दो कुएं खुदवाने पड़ेंगे।" बिना एक पल की देरी किए महात्मा ने कह ही दिया।धर्मदास कंजूस जरूर था बेवकूफ नहीं। उसने सोचा कि यदि मैंने दो कुएं खुदवाने से मनाकर दिया तो यह चार कुएं खुदवाने की बात करने लगेगा इसलिए धर्मदास ने चुपचाप दो कुएं खुदवाने में ही अपनी भलाई समझी।कुएं खुदकर तैयार हुए तो उनमें पानी भरने लगा। जब कुओं में पानी भर गया तो महात्मा ने धर्मदास से कहा- " इन दो कुओं में से एक कुआं तुम्हारा है और एक मेरा।मैं कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहा हूं, लेकिन ध्यान रहे मेरे कुएं में से तुम्हें एक बूंद पानी भी नहीं निकालना है।साथ ही अपने कुएं में से सब गांव वालों को रोज पानी निकालने देना है।मैं वापस आकर अपने कुएं से पानी पीकर प्यास बुझाऊंगा।"धर्मदास ने महात्मा वाले कुएं के मुंह पर एक मजबूत ढक्कन लगवा दिया।सब गांव वाले रोज धर्मदास वाले कुएं से पानी भरने लगे। लोग खूब पानी निकालते पर कुएं में पानी कम न होता।शुद्ध शीतल जल पाकर गांव वाले निहाल हो गये और महात्मा जी का गुणगान करने लगे।एक वर्ष के बाद महात्मा पुनः उस गांव में आये और धर्मदास से कहा कि उसका कुआं खोल दिया जाये।धर्मदास ने कुएं का ढक्कन हटवा दिया।लोग लोग यह देखकर हैरान रह गये कि महात्मा जी वाले कुएं में एक बूंद भी पानी नहीं था।महात्मा ने कहा- "कुएं से कितना भी पानी क्यों न निकाला जाए वह कभी खत्म नहीं होता अपितु बढ़ता जाता है।कुएं का पानी न निकालने पर कुआं सूख जाता है इसका स्पष्ट प्रमाण तुम्हारे सामने है और यदि किसी कारण से कुएं का पानी न निकालने पर पानी नहीं भी सुखेगा तो वह सड़ अवश्य जायेगा और किसी काम में नहीं आयेगा।"महात्मा ने आगे कहा-"कुएं के पानी की तरह ही धन-दौलत की भी तीन गतियां होती हैं- उपयोग, दुर्पयोग और नाश।धन-दौलत का जितना इस्तेमाल करोगे वह उतना ही बढ़ती जायेगी।धन-दौलत का इस्तेमाल न करने पर कुएं के पानी की तरह वह निरर्थक पड़ी रहेगी।अतः अर्जित धन-दौलत का समय रहते सदुपयोग करना अनिवार्य है। इसी प्रकार ज्ञान की भी यही स्थिति है।धन-दौलत से दूसरों की सहायता करने की तरह ही ज्ञान भी बांटते चलो।"कुछ पल ठहर कर महात्मा ने आगे कहना आरम्भ किया- "हमारा समाज जितना अधिक ज्ञानवान, जितना अधिक शिक्षित व सुसंस्कृत होगा उतनी ही देश में सुख- शांति और समृध्दि आयेगी फिर ज्ञान बांटने वाले अथवा शिक्षा का प्रचार-प्रसार करने वाले का भी कुएं के जल की तरह ही कुछ नहीं घटेगा अपितु बढ़ता ही जाएगा।"धर्मदास को अब पूर्णतः #ज्ञान मिल चुका था तो उसने महात्मा जी के समक्ष नतमस्तक होते हुए कहा- ‘हां गुरुजी, आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं और मैं अब इसे समझ चुका हूं और #सदुपयोग का #अर्थ #महिमा और #महत्व समझ गया हूं।मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है।"इस एक घटना ने धर्मदास को सही ज्ञान और सही दिशा प्रदान कर दी थी।🏹🔱🏹दशरथनंदन श्री राम की जय🏹🔱🏹💢🔥☀️जय श्री सीताराम ☀️🔥💢🔴‼️🔴पवनपुत्र हनुमान की जय🔴‼️🔴#जय_किसान_ #जय_जवान 🙏🙏❤️

"शहीद-ए-आज़म सरदार भगत सिंह चालीसा":देशभक्ति के भगवान को फूल कुमार मलिक का सम्पर्ण:जय भगत सिंह, देशभक्ति के सागर,जय सरदारा, तिहुँ लोक उजागर!किसान-पुत्त, अतुलित बल धामा,विद्यावती पुत्र, बंगे पिंड जामा!महाबीर बिक्रम बसन्त-रंगी,कायरता उखाड़, वीरता के संगी!किसान कर्म, विराज खटकड़-कलां का,सर पर पगड़ी, मूछें जबर सा!हाथ इंकलाब और बसन्ती ध्वज विराजे,काँधे फटका किसान का साजे!संधू सुवन किशन सिंह नन्दन,तेज प्रताप महाजंग वन्दन!विद्यवान गुनी अति चातुर,देश काज करिबे को आतुर!सरदारी चरित्र पढ़िबे को रसिया,लेनिन-सराबा-खालसा मन बसिया!रूप बदल धरि, केश कटावा,अंग्रेजन को चकमा दे जावा!इंकलाबी रूप धरि, सांडर्स संहारे,धरती-माँ के काज सँवारे!बनाये बम, असेंबली बजाए,पर प्राण किसी के ना जाए!भारत किन्हीं बहुत बड़ाई,तुम मम प्रिये आमजन सहाई!सहस मुल्क तुम्हरो यश गावे,ऐसा-कही माँ कण्ठ लगावे!संकाधिक मजदूर-मुनीसा,किसान-जवान सहित महीसा!तुम उपकार लाजपत कीन्हा,मार सांडर्स सम्मान बचीना!तुम्हरो मन्त्र गांधी माना,अंग्रेज भये सब जग जाना!67 रोज भूख हड़ताल ठानूँ,अंग्रेजन को झुका के मानूँ!धरती-माँ मेहर, मन माही,फांसी झूल गए, अचरज नाहीं!दुर्गम काज जगत के जीते,भगता तुम गजब के चीते!देशभक्ति द्वारे तुम उजयारे,जुमला से ना हुए गुजारे!आपका तेज सम्हारो आपही,तीनों लोक ना दूजा कोई!भूत-पिशाच निकट नाही आवे,जो भगत सिंह नाम सुनावे!नासे रोग हरे सब पीड़ा,जपत निरन्तर भगत सिंह बीरा!पंगुता से भगत सिंह छुडावे,गाम-गौत-गुहांड जो पुगावे!चारों युग प्रताप तुम्हारा,है प्रसिद्ध जगत उजियारा!किसान-मजदूर के तुम रखवारे,मंडी-फ़ंडी निकन्दन, अजीत दुलारे!देशभक्ति रसायन, तुम्हारे पासा,सदा रहो देशभक्ति के बाहसा!संकट कटे-मिटे सब पीड़ा,जो सुमरै भगत सिंह शेरा!जय जय जय भगत सिंह शाही,अवतारों फिर, बन नई राही!जो यह पढ़े भगत सिंह चालीसा,होये निर्भय सखी दुर्गा भाभी-सा,फुल्ले-भगत सदा भली तेरा,कीजे सरदार हृदय में डेरा!वनिता कासनियां पंजाब द्वारादेशभक्ति के भगवान (God of patriotism) शहीद-ए-आज़म सरदार भगत सिंह उनकी जन्म जयंती पर कोटि-कोटि नमन!

दुर्गा सप्तशती अध्याय 4 - देवी स्तुतिइंद्रादि देवी की स्तुति :सप्तशती एक शक्तिशाली महिला है जो महीसुर दुर्गा दुर्गा की जीत का है। सप्तशती को देवी महात्म्यम, चण्डी पाठ (चण्डीपाठः) के नाम से भी जाना जाता है और मूवी 700 श्लोक हैं, जो टाइपो में टाइप किए गए हैं।By वनिता कासनियां पंजाब दुर्गा सप्तशती का पाठ "देवी स्तुति" पर बेसिंग। दुर्गा सप्तशती अध्याय 4 - देवी स्तुतिइंद्रादि देवी की स्तुति :ऋषि ने कहाध्यानम्॥ॐ कालाभ्राभां क्षक्षैरिरिकुलभयदां मौलिबंधेन्दुलाइनंशड्खं चक्रं कृपाणं त्रिशिखमपि करैरुद्वन्तिं त्रिनेत्रम्।सिंहस्कंधाधिरुढां त्रिभुवनमखिलं तेजसापुरयनं ध्यायेद दुर्गांजयाख्यां त्रिदशपरिवृतां से विटां सिद्धिकामैः॥"ॐ" ऋषिरुवाच*॥1॥शक्रदयः सुरगण निहतेऽतिवीर्येतस्मिन्दुरात्मनि सुरारे च देव्या।तं तुष्टुवः प्रान्तिनम्रशिरंसा वाग्भि:प्रहर्ष पुलकोद्गमचारुशः:॥2॥देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्ती निश्चयशेशदेवगणशक्तिमूर्ति।ताम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यंभक्त्य नता: सोम विद्या धातु शुभनि सा नः3॥प्रभावतुलं चन्तो ब्रह्महरश न समयं बलं।सचण्डिकाखिलजगत्परिपालनयनाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥4॥या श्रीः स्वयं सुस्वरं प्रतिष्ठानेश्वरी लक्ष्मीःप्नाथ्रधनं कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः।सतं कुलजनप्रभवस्य लज्जा तं त्वां नताःस्मोम परिपाल देवि वम्॥5॥किं वर्ण्यम तव रूपमचिन्त्यमेतत्किं चातिवीर्यमसुरक्षय भूरि।किंवेषु चरितानि तवाद्भुतानिसर्वेषु देवसुरदेवगणदिकेषु॥6जाने: शुक्लजगतं त्रिगुणा दोषैरोज्ञायसे हरिहरादिभिरप्यपारा।सर्वश्रयाखिलमिदं जगदंशभूत-माव्याकृता हि परमा प्रकृतिस्त्वमाद्या॥7यशः द्रसुरता समुदीरणेनतृप्तिं प्रयाति सकलेषु महेषु देवि।स्वाहासि वै पितृगणस्य च पतिहेतु-रुचार्यसे त्वमत त्वच जनैः स्वधा च॥8॥याममुक्तिहेतुरविचिन्त्यमहाव्रत धातु*-मभ्यस्यसे सुन्नतेंद्र तत्वत्वसाराय:।मोक्षार्थिभिरमुनिभिरस्तसमस्तदोषै-सर्वविद्यासि सा भगवती परमा हि देवि॥9॥शब्दात्मिका सुविमलर्ग्यजुषां निधान-मुद्गीरम्यपद्यपाठं च साम्नाम्।देवी भगवती भवत्र अनुसंवेद सर्वजगतंपरमार्तिहंत्री॥ 10॥मेधासि देवि विद्याखिलविज्ञानसारा दुर्गासीदुर्ग भवसागरनौरस्गा।श्रीः वधभारीहृदयकृताधिवासगौरी त्वमेव शशिमौलिकृत प्रतिष्ठान॥11॥षत्सशासमलं ईचेंद्र-बिंबुनकारि कनकोटमकान्तिकान्तम्।अत्यद्भुतं प्रहृत्त्मात्तरुषा जुरांविलोक्य सहसा महिषासुर 12॥दन्त्वा टी देवि कुपितं भ्रुकुटीकराल-मुद्यच्छिकसदृष्टावि यन्न सद्यः।प्राणानमुमोच महिषस्तदतिव चित्रंकैर्जीव्यते हि कुपितंतकदर्शन॥13॥देवि प्रसीद परमा भवति सद्गुणितसि कोपावती कुलानि।विज्ञातमेतदधुनैव यदस्तमेत-ननीतं बलं सुविपुलं महिषासुरस्य॥14॥ते सम्पादित जनपदीषु धना तेषांयशांसि न च सीदति धर्मवर्गः।धन्यस्तइव निभृतात्मजभृत्यदारा येषां सदाभौदयदा भवती प्रसन्ना॥15॥धर्माणी देवि सकल विनियमन कर्म्मा-ण्यतादृष्टा मंत्र सुकृती करोति।स्वर्गं प्रयाति चट्टो भवतिप्रसाद-ल्लोकत्रये:पि फलदा ननु देवी तेन॥16दुरगे स्मृता हरसि भीतिमशेषजंतोःस्वस्थैः स्मृता मृत्युमतिव शुभं ददासि।रिद्र्यदुःखभयदारिणी का त्वदन्यासर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता॥17॥एभिर्हतैर्जगदुपैति सुखं त नामावते कुरवातुनरक चिराय पापम्।संग्रामृत्युमधिम्य दिवं प्रयान्तुमत्वेति नंमहितां विनिहंसि देवी॥18॥दयत्वैव किं न भवति प्रकरोति भस्मसर्वसुरनरिषु यत्प्रह्नशी शस्त्रम्।लोकन प्रयान्तु रिपवोऽपि हि शस्त्रपूता इत्थं मतिर्भवति तेशवपि तेतिसाध्वी॥19॥खड्‌ढप्रभा दृविस्फुरणैस्ततोःः शूला ग्राकान्तिनिव शुशोऽसुरानाम्।यन्नागता एकमिश्रणमंशुमदिन्दुखंड- संयुक्तां तव विलोक्यतां तदेत्20दुर्वृत्तांतशमनं तव देवि शीलं रूपंतक्षतदविचिन्त्यम तुलमन्यैः।यं च हंत्रिक हृतपराक्रमणंवैरीश्वपि वीर देवदेव दयानत्वयेत्थम्॥21॥केनोपमा भवतु तेस्य परक्रमस्यरूपं च शत्रुभय कार्यतिहारी कुत्र।चित्त कृपाणसमाधिष्ठुरता चटा त्वय्येव देविर्दे भुवनत्रयेऽपि॥22॥त्रैलोक्यमेतदखिलं रिपुनाशनेंत्रतं त्वया समरमूर्धन तेऽपिहत्व।नीता दिवं रिपुगणा भयमप्यपास्त- मस्माकममुनमदसुररिभंहेलो॥23॥शू पाहि नो देवि पाहि खड्‌ चम्बिके।घण्टास्वनेन नः पाहि कड़कज्यानिःस्वनेन च॥24प्राच्यं रक्ष पृथ्वी दक्षिणपूर्वी।भ्रामणेनात्मशूलस्य उत्तर स्यां तथेश्वरी॥25सौम्यानि यानि रूपाणी त्रैलोक्ये विश्वरंती ते।या चानत्यार्थघोरणि तै स्थिर स्थस्थस्थ भुवम्॥26॥खड्गशूलगदादीन यानि चास्त्राणी तेऽम्बिके।करपल्लवसङ्‌गीनिस्वस्मान रक्षा सर्व॥27॥ऋषिरुवाच॥28॥और स्तुता सुरदिव्यैः कुसुमयर्नन्दभैः।अर्चिता जगतां धात्री और गन्धानुलेपनै:॥29॥भक्त्य द्रैस्त्रैदशेर्दीव्यैर्धूपैस्तु* धूप।प्रहृदय सुमुखीदेवौवाच॥31॥व्र तंतुं त्रिदशाः सर्वे यदस्मिथतोऽभिवाञ्छितम्*॥32॥देवा उचुः॥33॥भगवत्य कृतं सर्वं न किंचिदविश्यते॥34॥यदयं निह: शत्रुसमाकं महिषासुरः।कक्रति वरो द्वैतत्ववादमं हिम्वरि॥35॥दृश्मृतास्तोष्यत्यमलैन॥36तस्य प्रदर्शनविभयर्धनदारादिसम्पदाम्।परिवृद्धयेस्स्मत्प्रसनाथत्वं भवेथाः सर्वदाम्बिके॥37ऋषिरुवाच॥38॥इति प्रसादी देवैर्जगतोऽर्थे और आत्मानुः।तत्तत्वा भद्रकाली भभूतान्ता नृप॥39॥इत्यतकथं भूप सम्पादित भूता सा जन्माष्टमी।देवी देव जीव जगत्पुनश्च गौरीशात* समुद्भूता जन्माष्टमी।वधाय दुभाषिया और शनिभंभयो:॥4रशोक च लोकानां देवानामुपकारिणी।तच्छृणुष्व मयाऽऽख्यातं जन्माष्टमी तेह्रीं 42॥इति श्रीनामिकापुराणे सावर्णारे देवीहात्म्य्येशक्रदिस्तुतिर चतुष्कोणीयऽध्यायः॥4॥उवाच 5, अर्धशलोकौः 2, शहोकाः 35,इवांस 42, इवमादित:259॥अर्थ – दुर्गा सप्तशती अध्याय 4 ऋषि ने कहा: जैसे ही सबसे शक्तिशाली शक्तिशाली महिषासुर सेना और दुश्मन के दुश्मन की सेना ने दुश्मन की मौत की, तो इंद्र और देवों के यजमानों ने वारिस के रूप में, देवता के वारिस थे, और भविष्य के लिए दुश्मन के दुश्मन थे। हर्ष और उल्लास के साथ।' उस अंबिका को, जो सभी देवों और ऋषियों द्वारा प्रकाशित किया गया है और स्थिति और क्षमता से इस विश्व को बचाती है और जो सभी देवों के यजमानों की हर शक्ति का वर्तन है, हम धाकड़ में झरझरते हैं। शुभ शुभ संदेश!''भगवान, ब्रह्मा और हारा को पूरी तरह से नियंत्रित करने के लिए पूरी तरह से लागू होता है।''हे देवी, हम आपके भविष्य के लिए हैं, जो हमेशा के लिए खुश रहें, और हमेशा के लिए स्वस्थ हों, स्वस्थ के दिलों में बुद्धि, स्वस्थ के दिल में, और उच्च- मूल के दिलों में स्थिर। आप ग्रह की रक्षा करें!''आप जो kanair हैं, जिनसे आप आप r प rigraumauth हैं, वे वे वे वे वे वे वे में देश देश में में में में में में में में में में में में देश देश देश देश देश देश देश देश देश देश देश देश देश देश देश देश देश देश देश देश देश देश देश देश देश देश देश देश देश वे वास्तव में लेखा और लेखा अधिकारी हैं।''आपकी कृपा से, हेदेवी, धन्य व्यक्ति' सभी धर्मों को अत्यंत सतर्क से सुरक्षित है और इस प्रकार स्वर्ग के मार्ग को प्राप्त है। हे देवी, क्या आप नासाफर हैं?'जब एक काम में मदद करने के लिए, आपको हर व्यक्ति को यह काम करने में मदद करेगा। . हे गरीबी, दर्द और भय को दूर करने वाला, आप किसी भी व्यक्ति की देखभाल करने वाले व्यक्ति के लिए सहायक होते हैं?'इस प्रकार देवों की पवित्रता की स्तुति की, नंदन में हिले आकाशीय पुष्प से और अगुण से उनकी पूजा की जाएगी; और आँकड़ों ने सभी ने ______________________ को। बोल में सौम्य रूप से सभी प्रकार की आज्ञाएँ से बात की।देवी ने कहा: 'हे देवों, तुम सब कोचुन लो, जो तुम हो। (स्तोत्रों से टेस्ट में मैं बहुत ही स्वादिष्ट हूँ)'यह भी कहा: 'जब से दुश्मन, इस महिषासुर, को भगवती (अर्थात आप) ने लिखा है, कुछ भी करना चाहिए। हे बेग की प्रतिभा, और जो भी नश्वर (मनुष्य) इन भजनों के साथ आपकी कृपा, आप भी, धन, धन, और जीवन के साथ-साथ अन्य भाग्य में वृद्धि। और अच्छी, हे अंबिका!'ऋषि ने कहा: 'ऐसे लेखक, विश्व के लिए और अपने स्वयं के लेखक के रूप में प्रकाशित होने वाली पत्रिका, भद्रकाली ने कहा, 'ऐसे ही' और वे दृष्टि वाले थे। इस प्रकार, हे भगवान के शरीर से किस रूप में, हे भगवान के शरीर से किस तरह से।'' और कैसे, देवों की शक्ति की उपकार और चिह्न के रूप में, वह असुरों के साथ-साथ शुभं और निशुंभ के वध के लिए और विश्व की रक्षा के लिए गौरी के रूप में प्रकट होगा, जैसा कि मैं एक हूं । जैसे ही मैं आपसे अनुरोध करता हूं।'सावर्णी, मैनुणु की समय के समय मार्के-पुराणों में डाइव-महात्म्य का 'देवी स्तुति' का '