संदेश

*🌿🥀🌿🥀🌿🥀🙏👌👌बुद्ध का एक शिष्य था। वह नया-नया दीक्षित हुआ था, उसने संन्यास लिया था। और बुद्ध को उसने कहा, मैं आज कहां भिक्षा मांगने जाऊं?उन्होंने कहा, मेरी एक श्राविका है, वहां चले जाना।वह वहां गया। वह जब भोजन करने को बैठा, तो बहुत हैरान हुआ, रास्ते में इसी भोजन का उसे खयाल आया था। यह भोजन उसे प्रिय था। पर उसने सोचा था कि कौन मुझे देगा? आज कौन मुझे मेरे प्रिय भोजन को देगा? वह कल तक राजकुमार था और जो उसे पसंद था, वह खाता था। लेकिन उस श्राविका के घर वही भोजन देख कर वह बहुत हैरान हो गया। सोचा, संयोग की बात है, वही आज बना होगा। जब वह भोजन कर रहा है, उसे अचानक खयाल आया, भोजन के बाद तो मैं विश्राम करता था रोज। लेकिन आज तो मैं भिखारी हूं। भोजन के बाद वापस जाना होगा। दोत्तीन मील का फासला फिर धूप में तय करना है।वह श्राविका पंखा करती थी, उसने कहा, भंते, अगर भोजन के बाद दो क्षण विश्राम कर लेंगे तो मुझ पर बहुत अनुग्रह होगा।भिक्षु फिर थोड़ा हैरान हुआ कि क्या मेरी बात किसी भांति पहुंच गई! फिर उसने सोचा, संयोग की ही बात होगी कि मैंने भी सोचा और उसने भी उसी वक्त पूछ लिया। चटाई डाल दी गई। वह विश्राम करने लेटा ही था कि उसे खयाल आया, आज न तो अपनी कोई शय्या है, न अपना कोई साया है; अपने पास कुछ भी नहीं।वह श्राविका जाती थी, लौट कर रुक गई, उसने कहा, भंते, शय्या भी किसी की नहीं है, साया भी किसी का नहीं है। चिंता न करें।अब संयोग मान लेना कठिन था। वह उठ कर बैठ गया। उसने कहा, मैं बहुत हैरान हूं! क्या मेरे भाव पढ़ लिए जाते हैं? वह श्राविका हंसने लगी। उसने कहा, बहुत दिन ध्यान का प्रयोग करने से चित्त शांत हो गया। दूसरे के भाव भी थोड़े-बहुत अनुभव में आ जाते हैं। वह एकदम उठ कर खड़ा हो गया। वह एकदम घबड़ा गया और कंपने लगा। उस श्राविका ने कहा, आप घबड़ाते क्यों हैं? कंपते क्यों हैं? क्या हो गया? विश्राम करिए। अभी तो लेटे ही थे।उसने कहा, मुझे जाने दें, आज्ञा दें। उसने आंखें नीचे झुका लीं और वह चोरों की तरह वहां से भागा।श्राविका ने कहा, क्या बात है? क्यों परेशान हैं?फिर उसने लौट कर भी नहीं देखा। उसने बुद्ध को जाकर कहा, उस द्वार पर अब कभी न जाऊंगा।बुद्ध ने कहा, क्या हो गया? भोजन ठीक नहीं था? सम्मान नहीं मिला? कोई भूल-चूक हुई?उसने कहा, भोजन भी मेरे लिए प्रीतिकर जो है, वही था। सम्मान भी बहुत मिला, प्रेम और आदर भी था। लेकिन वहां नहीं जाऊंगा। कृपा करें! वहां जाने की आज्ञा न दें।बुद्ध ने कहा, इतने घबड़ाए क्यों हो? इतने परेशान क्यों हो?उसने कहा, वह श्राविका दूसरे के विचार पढ़ लेती है। और जब मैं आज भोजन कर रहा था, उस सुंदर युवती को देख कर मेरे मन में तो विकार भी उठे थे। वे भी पढ़ लिए गए होंगे। मैं किस मुंह से वहां जाऊं? मैं तो आंखें नीची करके वहां से भागा हूं। वह मुझे भंते कह रही थी, मुझे भिक्षु कह रही थी, मुझे आदर दे रही थी। मेरे प्राण कंप गए। मेरे मन में क्या उठा? और उसने पढ़ लिया होगा। फिर भी मुझे भिक्षु और भंते कह कर आदर दे रही थी! उसने कहा, मुझे क्षमा करें। वहां मैं नहीं जाऊंगा।बुद्ध ने कहा, तुम्हें वहां जान कर भेजा है। यह तुम्हारी साधना का हिस्सा है। वहीं जाना पड़ेगा। रोज वहीं जाना पड़ेगा। जब तक मैं न कहूं या जब तक तुम आकर मुझसे न कहो कि अब मैं वहां जा सकता हूं, तब तक वहीं जाना पड़ेगा। जब तक तुम मुझसे आकर यह न कहो कि अब मैं रोज वहां जा सकता हूं, तब तक वहीं जाना पड़ेगा। वह तुम्हारी साधना का हिस्सा है।उसने कहा, लेकिन मैं कैसे जाऊंगा? किस मुंह को लेकर जाऊंगा? और कल अगर फिर वही विचार उठे तो मैं क्या करूंगा?बुद्ध ने कहा, तुम एक ही काम करना, एक छोटा सा काम करना, और कुछ मत करना, जो भी विचार उठे, उसे देखते हुए जाना। विकार उठे, उसे भी देखना। कोई भाव मन में आए, काम आए, क्रोध आए, कुछ भी आए, उसे देखना, और कुछ मत करना। तुम सचेत रहना भीतर। जैसे कोई अंधकारपूर्ण गृह में एक दीये को जला दे और उस घर की सब चीजें दिखाई पड़ने लगें, ऐसे ही तुम अपने भीतर अपने बोध को जगाए रखना कि तुम्हारे भीतर जो भी चले, वह दिखाई पड़े। वह स्पष्ट दिखाई पड़ता रहे। बस तुम ऐसे जाना।वह भिक्षु गया। उसे जाना पड़ा। भय था, पता नहीं क्या होगा? लेकिन वह अभय होकर लौटा। वह नाचता हुआ लौटा। कल डरा हुआ आया था, आज नाचता हुआ आया। कल आंखें नीचे झुकी थीं, आज आंखें आकाश को देखती थीं। आज उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ते थे, जब वह लौटा। और बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और उसने कहा कि धन्य! क्या हुआ यह? जब मैं सजग था, तो मैंने पाया वहां तो सन्नाटा है। जब मैं उसकी सीढ़ियां चढ़ा, तो मुझे अपनी श्वास भी मालूम पड़ रही थी कि भीतर जा रही है, बाहर जा रही है। मुझे हृदय की धड़कन भी सुनाई पड़ने लगी थी। इतना सन्नाटा था मेरे भीतर। कोई विचार सरकता तो मुझे दिखता। लेकिन कोई सरक नहीं रहा था। मैं एकदम शांत उसकी सीढ़ियां चढ़ा। मेरे पैर उठे तो मुझे मालूम था कि मैंने बायां पैर उठाया और दायां रखा। और मैं भीतर गया और मैं भोजन करने बैठा। यह जीवन में पहली दफा हुआ कि मैं भोजन कर रहा था तो मुझे कौर भी दिखाई पड़ता था। मेरा हाथ का कंपन भी मालूम होता था। श्वास का कंपन भी मुझे स्पर्श और अनुभव हो रहा था। और तब मैं बड़ा हैरान हो गया, मेरे भीतर कुछ भी नहीं था, वहां एकदम सन्नाटा था। वहां कोई विचार नहीं था, कोई विकार नहीं था।बुद्ध ने कहा, जो भीतर सचेत है, जो भीतर जागा हुआ है, जो भीतर होश में है, विकार उसके द्वार पर आने वैसे ही बंद हो जाते हैं, जैसे किसी घर में प्रकाश हो तो उस घर में चोर नहीं आते। जिस घर में प्रकाश हो तो उससे चोर दूर से ही निकल जाते हैं। वैसे ही जिसके मन में बोध हो, जागरण हो, अमूर्च्छा हो, अवेयरनेस हो, उस चित्त के द्वार पर विकार आने बंद हो जाते हैं। वे शून्य हो जाते है! By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🌹 🙏🙏🌹 *संकलित**,

राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्री राम श्रीराम श्रीराम श्रीराम श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम जय श्रीराम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम 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*कुशल व्यवहार आपके* *जीवन का आईना है..* *इसका आप जितना* *अधिक इस्तेमाल करेंगे.* *आपकी चमक उतनी ही* *बढ़ जाएगी...!!* *🙏🌷सुप्रभात🌷🙏*,

*परेशानी आये तो ईमानदार रहें* *धन आ जाये तो सरल रहें* *अधिकार मिलने पर विनम्र रहें* *क्रोध आने पर शांत रहें**यही जीवन का प्रबंधन कहलाता है।* 🙏जय श्री कृष्णा🙏,

✍🏻♏*हर कोई चंदन तो नहीं कि* *जीवन “सुगन्धित” कर सके ...!* *कुछ नीम के पेड़ भी होते हैं ...!!* *जो सुगन्धित तो नहीं करते पर काम बहुत आते है ...!!!* 🌹🙏🏻जय श्री कृष्णा🌹

ज़िन्दगी चार दिन की हैजीने का हुनरकुछ ऐसा अपनायेजो हज़ारों से नफरत नहींलाखों से प्रेम करना सीखाये🙏🏻मंगल प्रभात🙏🏻

*अजीब खेल है उस परमात्मा का* *लिखता भी वही है* *मिटाता भी वही है**भटकाता है राह तो**दिखाता भी वही है* *उलझाता भी वही है* *सुलझाता भी वही है**जिंदगी की मुश्किल घड़ी में**दिखता भी नहीं मगर* *साथ देता भी वही हैं* By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब

श्री राम चरित मानस में अयोध्या कांड 37. श्री राम जी का लक्ष्मण जी को समझाना एवं भरत जी की महिमा कहनासुनि सुर बचन लखन सकुचाने।राम सीयँ सादर सनमाने॥कही तात तुम्ह नीति सुहाई।सब तें कठिन राजमदु भाई॥3॥देववाणी सुनकर लक्ष्मणजी सकुचा गए। श्री रामचंद्रजी और सीताजी ने उनका आदर के साथ सम्मान किया (और कहा-) हे तात! तुमने बड़ी सुंदर नीति कही। हे भाई! राज्य का मद सबसे कठिन मद है॥3॥जो अचवँत नृप मातहिं तेई।नाहिन साधुसभा जेहिं सेई॥सुनहू लखन भल भरत सरीसा।बिधि प्रपंच महँ सुना न दीसा॥4॥जिन्होंने साधुओं की सभा का सेवन (सत्संग) नहीं किया, वे ही राजा राजमद रूपी मदिरा का आचमन करते ही (पीते ही) मतवाले हो जाते हैं। हे लक्ष्मण! सुनो, भरत सरीखा उत्तम पुरुष ब्रह्मा की सृष्टि में न तो कहीं सुना गया है, न देखा ही गया है॥4॥दोहा :भरतहि होइ न राजमदु बिधि हरि हर पद पाइ।कबहुँ कि काँजी सीकरनि छीरसिंधु बिनसाइ॥231॥(अयोध्या के राज्य की तो बात ही क्या है) ब्रह्मा, विष्णु और महादेव का पद पाकर भी भरत को राज्य का मद नहीं होने का! क्या कभी काँजी की बूँदों से क्षीरसमुद्र नष्ट हो सकता (फट सकता) है?॥231॥चौपाई :तिमिरु तरुन तरनिहि मकु गलिई।गगनु मगन मकु मेघहिं मलिई॥गोपद जल बूड़हिं घटजोनी।सहज छमा बरु छाड़ै छोनी॥1॥अन्धकार चाहे तरुण (मध्याह्न के) सूर्य को निगल जाए। आकाश चाहे बादलों में समाकर मलि जाए। गो के खुर इतने जल में अगस्त्यजी डूब जाएँ और पृथ्वी चाहे अपनी स्वाभाविक क्षमा (सहनशीलता) को छोड़ दे॥1॥मसक फूँक मकु मेरु उड़ाई।होइ न नृपमदु भरतहि भाई॥लखन तुम्हार सपथ पितु आना।सुचि सुबंधु नहिं भरत समाना॥2॥मच्छर की फूँक से चाहे सुमेरु उड़ जाए, परन्तु हे भाई! भरत को राजमद कभी नहीं हो सकता। हे लक्ष्मण! मैं तुम्हारी शपथ और पिताजी की सौगंध खाकर कहता हूँ, भरत के समान पवित्र और उत्तम भाई संसार में नहीं है॥2॥सगुनु खीरु अवगुन जलु ताता।मलिइ रचइ परपंचु बिधाता॥भरतु हंस रबिबंस तड़ागा।जनमि कीन्ह गुन दोष बिभागा॥3॥हे तात! गुरु रूपी दूध और अवगुण रूपी जल को मलिाकर विधाता इस दृश्य प्रपंच (जगत्‌) को रचता है, परन्तु भरत ने सूर्यवंश रूपी तालाब में हंस रूप जन्म लेकर गुण और दोष का विभाग कर दिया (दोनों को अलग-अलग कर दिया)॥3॥गहि गुन पय तजि अवगुण बारी।निज जस जगत कीन्हि उजिआरी॥कहत भरत गुन सीलु सुभाऊ।पेम पयोधि मगन रघुराऊ॥4॥गुणरूपी दूध को ग्रहण कर और अवगुण रूपी जल को त्यागकर भरत ने अपने यश से जगत्‌ में उजियाला कर दिया है। भरतजी के गुण, शील और स्वभाव को कहते-कहते श्री रघुनाथजी प्रेमसमुद्र में मग्न हो गए॥4॥दोहा :सुनि रघुबर बानी बिबुध देखि भरत पर हेतु।सकल सराहत राम सो प्रभु को कृपानिकेतु॥232॥श्री रामचंद्रजी की वाणी सुनकर और भरतजी पर उनका प्रेम देखकर समस्त देवता उनकी सराहना करने लगे (और कहने लगे) कि श्री रामचंद्रजी के समान कृपा के धाम प्रभु और कौन है?॥232॥चौपाई :जौं न होत जग जनम भरत को।सकल धरम धुर धरनि धरत को॥कबि कुल अगम भरत गुन गाथा।को जानइ तुम्ह बिनु रघुनाथा॥1॥यदि जगत्‌ में भरत का जन्म न होता, तो पृथ्वी पर संपूर्ण धर्मों की धुरी को कौन धारण करता? By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब हे रघुनाथजी! कविकुल के लिए अगम (उनकी कल्पना से अतीत) भरतजी के गुणों की कथा आपके सिवा और कौन जान सकता है?॥1॥श्री राम चरित मानसजय जय श्री सीता राम जी,

औरत को आईने में यूं.... उलझा दिया गया..... Vnita Kasnia Punjabबखान करके हुस्न का, बहला दिया गया..... ना हक दिया ज़मीन का, न घर कहीं दिया..... गृहस्वामिनी के नाम का, रुतबा दिया गया..... छूती रही जब पांव, परमेश्वर पति को कह..... फिर कैसे इनको घर की, गृहलक्ष्मी बना दिया..... चलती रहे चक्की और जलता रहे चूल्हा..... बस इसलिए औरत को, अन्नपूर्णा बना दिया..... .न बराबर का हक मिले, न चूँ ही कर सकें..... इसलिए इनको पूज्य देवी, दुर्गा बना दिया.... .यह डॉक्टर, इंजीनियर, सैनिक, भी हो गईं..... पर घर के चूल्हों ने उसे, औरत बना दिया..... चाँदी सोने की हथकड़ी, नकेल, बेड़ियां..... कंगन, पांजेब, नथनियां जेवर बना दिया.... व्यभिचारी आदमी, जब रोक ना सका अपनी लार...तब श्रृंगार, साज ,वस्त्र पर, तोहमत लगा दिया..... .खुद नंग धड़ंग आदमी, घूमता है रात दिन..... औरत की टांग क्या दिखी, नंगा बता दिया..... .नारी ने जो ललकारा.... इस दानव प्रवृत्ति को.... जिह्वा निकाल रक्त पिया, तो काली बना दिया..... .नौ माह खून सींच के, बचपन जवां किया.....पर.. बेटों को नाम बाप का... चिपका दिया गया.... .*🙏🏼,

मेरे कान्हा.🌷कभी आकर देख लो..मेरी आँखों मे भी,तेरी तस्वीर के आगे..कोई नजारा ही नहीं,खो गये है तेरे इश्क..मे हम इस कदर कि,तेरे नाम के बिना कही..गुजारा ही नहीं... Vnita kasnia👏👏👏,

॥ हमसे पर्दा करो ना मुरारी By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब॥वृन्दावन के बांके बिहारी, हमसे पर्दा करो ना मुरारी॥वृन्दावन के बांके बिहारी, हमसे पर्दा करो ना मुरारी॥हम तुम्हारे पराये नहीं हैं, गैर के दर पे आये नहीं हैं।हम तुम्हारे पुराने पुजारी, हमसे पर्दा करो ना मुरारी॥हरिदास के राज दुलारे, नन्द यशोदा के आखोँ के तारे।राधा के सावरे गिरिधारी, हमसे पर्दा करो ना मुरारी॥बंद कमरों में कब तक छुपोगे, लाख पर्दों में छुप न सकोगे।तुम हो ग्वाले तो हम हैं व्यापारी, हमसे पर्दा करो ना मुरारी॥ वृन्दावन के बांके बिहारी, हमसे पर्दा करो ना मुरारी॥वृन्दावन के बांके बिहारी, हमसे पर्दा करो ना मुरारी ।। जय श्री राधे कृष्णा ।। श्री राधे 🙏,

ਰਾਜਸਥਾਨ: 21 ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਨਾਗਰਿਕ ਚੋਣਾਂ ਵਿਚ ਕਾਂਗਰਸ ਨੂੰ ਝੰਜੋੜਿਆ, ਦਿੱਗਜ਼ ਕਾਂਗਰਸੀਆਂ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਭਗਵਾਂ ਲਹਿਰਾਇਆ ਗਿਆਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰੀਸ਼ਦ ਦੀਆਂ ਕੁੱਲ 636 ਸੀਟਾਂ ਲਈ ਚੋਣਾਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ ਅਤੇ ਭਾਜਪਾ 323 ਕਾਂਗਰਸ ਨੇ 246 ਸੀਟਾਂ ਜਿੱਤੀਆਂ ਸਨ। ਪੰਚਾਇਤ ਸੰਮਤੀ ਚੋਣਾਂ ਲਈ ਹੁਣ ਤੱਕ ਐਲਾਨੇ ਨਤੀਜਿਆਂ ਤੋਂ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੈ ਕਿ ਕੰਵਲ ਪੇਂਡੂ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਕਾਂਗਰਸ ਦੇ ਪੰਜੇ ਉੱਤੇ ਡਿੱਗ ਰਿਹਾ ਹੈ।By Vnita Kasnia punjabਆਖਰੀ ਵਾਰ ਅਪਡੇਟ ਕੀਤਾ: 09 ਦਸੰਬਰ 2020 ਰਾਜਸਥਾਨ: 21 ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਨਾਗਰਿਕ ਚੋਣਾਂ ਵਿਚ ਕਾਂਗਰਸ ਨੂੰ ਝੰਜੋੜਿਆ, ਦਿੱਗਜ਼ ਕਾਂਗਰਸੀਆਂ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਭਗਵਾਂ ਲਹਿਰਾਇਆ ਗਿਆਜੈਪੁਰ: ਰਾਜਸਥਾਨ ਦੇ 21 ਜ਼ਿਲ੍ਹਿਆਂ ਦੇ ਪੰਚਾਇਤ ਸੰਮਤੀ ਅਤੇ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰੀਸ਼ਦ ਮੈਂਬਰਾਂ ਲਈ ਹੋਈਆਂ ਚੋਣਾਂ ਦੇ ਨਤੀਜਿਆਂ ਨੂੰ ਸੱਤਾਧਾਰੀ ਕਾਂਗਰਸ ਨੂੰ ਵੱਡਾ ਝਟਕਾ ਲੱਗਾ ਹੈ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਚੋਣਾਂ ਦੇ ਨਤੀਜੇ ਨਿਰੰਤਰ ਆ ਰਹੇ ਹਨ ਅਤੇ ਹੁਣ ਤੱਕ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰੀਸ਼ਦ ਮੈਂਬਰਾਂ ਦੇ ਐਲਾਨੇ ਨਤੀਜਿਆਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, ਕੁੱਲ 14 ਜ਼ਿਲ੍ਹਿਆਂ ਵਿੱਚ ਭਾਜਪਾ ਬੋਰਡ ਬਣਾਉਣ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਆ ਗਈ ਹੈ। ਜਦੋਂ ਕਿ ਕਾਂਗਰਸ ਸਿਰਫ ਪੰਜ ਜ਼ਿਲ੍ਹਿਆਂ ਵਿਚ ਬਣੀ ਦਿਖਾਈ ਦੇ ਰਹੀ ਹੈ।ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰੀਸ਼ਦ ਦੀਆਂ ਕੁੱਲ 636 ਸੀਟਾਂ ਲਈ ਚੋਣਾਂ ਹੋਈਆਂ ਸਨ ਅਤੇ ਭਾਜਪਾ 323 ਕਾਂਗਰਸ ਨੇ 246 ਸੀਟਾਂ ਜਿੱਤੀਆਂ ਸਨ। ਪੰਚਾਇਤ ਸੰਮਤੀ ਚੋਣਾਂ ਲਈ ਹੁਣ ਤੱਕ ਐਲਾਨੇ ਨਤੀਜਿਆਂ ਤੋਂ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੈ ਕਿ ਕੰਵਲ ਪੇਂਡੂ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਕਾਂਗਰਸ ਦੇ ਪੰਜੇ ਉੱਤੇ ਡਿੱਗ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਕੁੱਲ 4371 ਸੀਟਾਂ ਵਿਚੋਂ ਭਾਜਪਾ ਨੇ 1836 ਅਤੇ ਕਾਂਗਰਸ ਨੇ 1718 ਸੀਟਾਂ ਜਿੱਤੀਆਂ ਹਨ।ਭਾਰੀ ਤੂਫਾਨਨੇ ਲੁਤੀਆ ਕਾਂਗਰਸ ਦੀ ਗਹਿਲੋਤ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਕਾਂਗਰਸ ਮੰਤਰੀ ਰਘੂ ਸ਼ਰਮਾ, ਸੂਬਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਗੋਵਿੰਦ ਸਿੰਘ ਦੋਤਾਸਰਾ, ਸਾਬਕਾ ਡਿਪਟੀ ਸੀਐਮ ਸਚਿਨ ਪਾਇਲਟ, ਖੇਡ ਮੰਤਰੀ ਅਸ਼ੋਕ ਚੰਦਨਾ ਅਤੇ ਸੀਐਮ ਅਸ਼ੋਕ ਗਹਿਲੋਤ ਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਡਿਪਟੀ ਚੀਫ਼ ਵ੍ਹਿਪ ਮਹਿੰਦਰ ਚੌਧਰੀ ਨੂੰ ਆਪੋ ਆਪਣੇ ਹਲਕਿਆਂ ਵਿੱਚ ਡੁੱਬ ਦਿੱਤਾ। ਕਾਂਗਰਸ ਜਿੱਤ ਨਹੀਂ ਸਕੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਇਲਾਕਿਆਂ ਵਿਚ ਭਾਜਪਾ ਦਾ ਭਗਵਾਂ ਝੰਡਾ ਲਹਿਰਾਇਆ ਗਿਆ। ਸਦੂਲਪੁਰ ਤੋਂ ਵਿਧਾਇਕ ਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਪੂਨੀਆ ਦੀ ਸੱਸ ਅਤੇ ਕਾਂਗਰਸ ਦੀ ਦੇਵਰਾਨੀ ਆਪਣੇ ਹਲਕੇ ਤੋਂ ਪੰਚਾਇਤ ਸੰਮਤੀ ਚੋਣਾਂ ਹਾਰ ਗਏ ਹਨ।ਅਰਜਨ ਰਾਮ ਮੇਘਵਾਲ, ਜੋ ਮੋਦੀ ਸਰਕਾਰ ਵਿਚ ਮੰਤਰੀ ਹਨ, ਉਹ ਖੁਦ ਬੀਕਾਨੇਰ ਤੋਂ ਸੰਸਦ ਮੈਂਬਰ ਹੋ ਸਕਦੇ ਹਨ, ਪਰ ਉਹ ਆਪਣੇ ਬੇਟੇ ਬੀਕਾਨੇਰ ਤੋਂ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪਰਿਸ਼ਦ ਮੈਂਬਰ ਦੀ ਚੋਣ ਹਾਰ ਗਏ ਹਨ। ਸਰਦਾਰਸ਼ਹਿਰ ਤੋਂ ਕਾਂਗਰਸ ਦੇ ਵਿਧਾਇਕ ਭੰਵਰ ਲਾਲ ਸ਼ਰਮਾ ਦੀ ਪਤਨੀ ਮਨੋਹਰੀ ਦੇਵੀ ਨੂੰ ਪੰਚਾਇਤ ਸੰਮਤੀ ਦੇ ਮੈਂਬਰ ਦੀ ਚੋਣ ਵਿੱਚ ਉਸਦੇ ਜੀਜਾ ਸ਼ਿਆਮ ਲਾਲ ਨੇ ਹਰਾਇਆ। ਰਾਜਸਥਾਨ ਵਿਚ ਉਪ-ਚੋਣਾਂ ਅਗਲੇ ਸਾਲ ਤਿੰਨ ਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਸੀਟਾਂ 'ਤੇ ਹੋਣ ਜਾ ਰਹੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਕਾਂਗਰਸ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰੀਸ਼ਦ ਅਤੇ ਪੰਚਾਇਤ ਚੋਣਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਇਸ ਦੀਆਂ ਮੁਸ਼ਕਲਾਂ ਨੂੰ ਵਧਾ ਸਕਦੀ ਹੈ।ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਾਂਗਰਸੀ ਮੰਤਰੀਆਂ ਦਾ ਸਦਮਾਜੈਸਲਮੇਰ, ਬੀਕਾਨੇਰ ਅਤੇ ਬਾੜਮੇਰ ਵਿੱਚ ਕਾਂਗਰਸ ਬੋਰਡ ਦਾ ਗਠਨ ਹੈ, ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਇਨ੍ਹਾਂ ਜ਼ਿਲ੍ਹਿਆਂ ਤੋਂ ਮੰਤਰੀ ਬਣੇ ਮੁਹੰਮਦ ਬੀ ਕਾਲੀ, ਭੰਵਰ ਸਿੰਘ ਭਾਟੀ ਅਤੇ ਅਰਜੁਨ ਲਾਲ ਬਾਮਾਨੀਆ ਦੀ ਇੱਜ਼ਤ ਬਚ ਗਈ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਕੁਰਸੀ ਕਮਜ਼ੋਰ ਸੀ। ਸ ਪਰ ਮੈਡੀਕਲ ਮੰਤਰੀ ਰਘੂ ਸ਼ਰਮਾ ਆਪਣੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਕਾਂਗਰਸ ਬੋਰਡ ਨਾ ਬਣਾ ਕੇ ਕਮਜ਼ੋਰ ਸਾਬਤ ਹੋਏ ਹਨ ਅਜਮੇਰ ਦੇ ਸਹਿਕਾਰੀ ਮੰਤਰੀ ਉਦੈ ਲਾਲ ਅੰਜਨਾ ਚਿਤੋਦ, ਖੇਡ ਮੰਤਰੀ ਅਸ਼ੋਕ ਚੰਦਨਾ ਬੂੰਦੀ, ਸਿੱਖਿਆ ਮੰਤਰੀ ਗੋਵਿੰਦ ਸਿੰਘ ਦੋਤਾਸਰਾ ਸੀਕਰ ਅਤੇ ਜੰਗਲਾਤ ਮੰਤਰੀ ਸੁਖ ਰਾਮ ਵਿਸ਼ਣੋਈ ਜਲੂਰ। ਬਾੜਮੇਰ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪ੍ਰੀਸ਼ਦ ਦੇ ਨਤੀਜਿਆਂ ਵਿੱਚ ਕਾਂਗਰਸ ਅਤੇ ਭਾਜਪਾ ਨੂੰ ਬਰਾਬਰ ਸੀਟਾਂ ਮਿਲੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਇਸ ਕਾਰਨ ਬਾੜਮੇਰ ਤੋਂ ਭਾਜਪਾ ਦੇ ਸੰਸਦ ਮੈਂਬਰ ਅਤੇ ਕੇਂਦਰੀ ਮੰਤਰੀ ਕੈਲਾਸ਼ ਚੌਧਰੀ ਕਮਜ਼ੋਰ ਸਾਬਤ ਹੋਏ ਹਨ,

Winter Diet: शरीर को करना है अंदर से मजबूत तो सर्दियों में गोंद के लड्डू खाना बिल्कुल न भूलें, नोट करें RecipeBy *समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब* Last Modified: Wed, Dec 09 2020. 17:18 gond ladduWinter Special Diet: सर्दियों में खुद को हेल्दी रखने के लिए अक्सर भारतीय परिवारों में बड़े-बुर्जुग गोंद के लड्डू का सेवन करने की सलाह देते हैं। गोंद के लड्डू हल्दी होने के साथ-साथ पौष्टिक गुणों से भी भरपूर होते हैं। इन लड्डूओं का सेवन करने से सर्दियों में होने वाले हड्डियों और मसल्‍स के दर्द को दूर करनेमें मदद मिलती है। तो देर किस बात की आइए जानते हैं कैसे बनाए जाते हैं गोंद के लड्डू। गोंद के लड्डू बनाने के लिए सामग्री--200 ग्राम- आटा-1 कप- गाय का घी -1 कप- पिसी चीनी-1 कप- खाने का गोंद-50 ग्राम- कटे हुए काजू-50 ग्राम- कटे हुए बादाम50 ग्राम- तरबूज के बीजगोंद के लड्डू बनाने की विधि-गोंद के लड्डू बनाने के लिए सबसे पहले गैस पर एक कड़ाही गर्म करकें, उसमें घी डालकर गोंद को मध्यम आंच पर फ्राई कर लें। जब गोंद गोल्डन ब्राउन हो जाए तो गैंस बंद कर दें। गोंद को ठंडा करके उसे मिक्सी में पीसकर अलग रख लें। अब कड़ाही पर घी गर्म करके उसमें आटे को हल्का भूरा होने तक धीमी आंच पर भूनें। लेकिन ध्यान रखें की आटा जलना बिल्कुल नहीं चाहिए। इसके बाद आटे में गोंद, काजू, बादाम और तरबूज के बीज डालकर गैस बंद कर दें। फिर इस मिश्रण को कढ़ाई से बाहर निकालकर ठंडा होने के लिए रखें। अब आटा और गोंद के मिश्रण में पिसी चीनी को मिलाकर उसके गोल-गोल लड्डू बना लें।,