संदेश

IPC में धाराओ का मतलब .....धारा 307 = हत्या की कोशिश धारा 302 =हत्या का दंडधारा 376 = बलात्कारधारा 395 = डकैतीधारा 377= अप्राकृतिक कृत्यधारा 396= डकैती के दौरान हत्याधारा 120= षडयंत्र रचनाधारा 365= अपहरणधारा 201= सबूत मिटानाधारा 34= सामान आशयधारा 412= छीनाझपटीधारा 378= चोरीधारा 141=विधिविरुद्ध जमावधारा 191= मिथ्यासाक्ष्य देनाधारा 300= हत्या करनाधारा 309= आत्महत्या की कोशिशधारा 310= ठगी करनाधारा 312= गर्भपात करनाधारा 351= हमला करनाधारा 354= स्त्री लज्जाभंगधारा 362= अपहरणधारा 415= छल करनाधारा 445= गृहभेदंनधारा 494= पति/पत्नी के जीवनकाल में पुनःविवाह0धारा 499= मानहानिधारा 511= आजीवन कारावास से दंडनीय अपराधों को करने के प्रयत्न के लिए दंड। हमारेे देश में कानूनन कुछ ऐसी हकीक़तें है, जिसकी जानकारी हमारे पास नहीं होने के कारण हम अपने अधिकार से मेहरूम रह जाते है।तो चलिए ऐसे ही कुछ *5 रोचक फैक्ट्स* की जानकारी आपको देते है, जो जीवन में कभी भी उपयोगी हो सकती है.👁‍🗨 *1. शाम के वक्त महिलाओं की गिरफ्तारी नहीं हो सकती*-कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर, सेक्शन 46 के तहत शाम 6 बजे के बाद और सुबह 6 के पहले भारतीय पुलिस किसी भी महिला को गिरफ्तार नहीं कर सकती, फिर चाहे गुनाह कितना भी संगीन क्यों ना हो. अगर पुलिस ऐसा करते हुए पाई जाती है तो गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ शिकायत (मामला) दर्ज की जा सकती है. इससे उस पुलिस अधिकारी की नौकरी खतरे में आ सकती है.👁‍🗨 *2. सिलेंडर फटने से जान-माल के नुकसान पर 40 लाख रूपये तक का बीमा कवर क्लेम कर सकते है*-पब्लिक लायबिलिटी पॉलिसी के तहत अगर किसी कारण आपके घर में सिलेंडर फट जाता है और आपको जान-माल का नुकसान झेलना पड़ता है तो आप तुरंत गैस कंपनी से बीमा कवर क्लेम कर सकते है. आपको बता दे कि गैस कंपनी से 40 लाख रूपये तक का बीमा क्लेम कराया जा सकता है. अगर कंपनी आपका क्लेम देने से मना करती है या टालती है तो इसकी शिकायत की जा सकती है. दोषी पाये जाने पर गैस कंपनी का लायसेंस रद्द हो सकता है.👁‍🗨 *3. कोई भी हॉटेल चाहे वो 5 स्टार ही क्यों ना हो… आप फ्री में पानी पी सकते है और वाश रूम इस्तमाल कर सकते है*-इंडियन सीरीज एक्ट, 1887 के अनुसार आप देश के किसी भी हॉटेल में जाकर पानी मांगकर पी सकते है और उस हॉटल का वाश रूम भी इस्तमाल कर सकते है. हॉटेल छोटा हो या 5 स्टार, वो आपको रोक नही सकते. अगर हॉटेल का मालिक या कोई कर्मचारी आपको पानी पिलाने से या वाश रूम इस्तमाल करने से रोकता है तो आप उन पर कारवाई कर सकते है. आपकी शिकायत से उस हॉटेल का लायसेंस रद्द हो सकता है.👁‍🗨 *4. गर्भवती महिलाओं को नौकरी से नहीं निकाला जा सकता*-मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961 के मुताबिक़ गर्भवती महिलाओं को अचानक नौकरी से नहीं निकाला जा सकता. मालिक को पहले तीन महीने की नोटिस देनी होगी और प्रेगनेंसी के दौरान लगने वाले खर्चे का कुछ हिस्सा देना होगा. अगर वो ऐसा नहीं करता है तो उसके खिलाफ सरकारी रोज़गार संघटना में शिकायत कराई जा सकती है. इस शिकायत से कंपनी बंद हो सकती है या कंपनी को जुर्माना भरना पड़ सकता है.👁‍🗨 *5. पुलिस अफसर आपकी शिकायत लिखने से मना नहीं कर सकता*-आईपीसी के सेक्शन 166ए के अनुसार कोई भी पुलिस अधिकारी आपकी कोई भी शिकायत दर्ज करने से इंकार नही कर सकता. अगर वो ऐसा करता है तो उसके खिलाफ वरिष्ठ पुलिस दफ्तर में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. अगर वो पुलिस अफसर दोषी पाया जाता है तो उसे कम से कम 6 महीने से लेकर 1 साल तक की जेल हो सकती है या फिर उसे अपनी नौकरी गवानी पड़ सकती है.#समाजसेवी_वनिता_कासनिया*🌹🌹🙏🙏🌹🌹*🚩 #राम_राम_जी_*इन रोचक फैक्ट्स को हमने आपके लिए ढूंढ निकाला है.ये वो रोचक फैक्ट्स है, जो हमारे देश के कानून के अंतर्गत आते तो है पर हम इनसे अंजान है. हमारी कोशिश होगी कि हम आगे भी ऐसी बहोत सी रोचक बाते आपके समक्ष रखे, जो आपके जीवन

(जीवन का लक्ष्य ).💓💓💓💓💓💓💓💓चक्रवती भरत के जीवन की एक घटना है कि, एक दिन विप्र देव ने उनसे पूछा- महाराज आप वैरागी है तो महल में क्यों रहते हैं? .आप महल में रहते हैं तो वैरागी कैसे? मोह, माया, विकार, वासना के मध्य आप किस तरह के वैरागी है? .क्या आपके मन में कोई मोह, पाप, विकार और वासना के कोई भाव नही आते ? .चक्रवती भरत ने कहा- विप्र देव तुम्हें इसका समाधान मिलेगा लेकिन तुम्हे पहले मेरा एक कार्य करना होगा। .जिज्ञासु ने कहा- कहिए महाराज, आज्ञा दिजिए हम तो आपके सेवक हैं और आपकी आज्ञा का पालन करना हमारा कर्तव्य है। .चक्रवती भरत ने कहा यह पकडो तेल से लबालब भरा कटोरा इसे लेकर तुम्हें मेरे ‘अन्त पूर’ में जाना होगा.. .जहां मेरी अनेक रानीयां है, जो सज-धझ कर तैयार मिलेंगी उन्हें देखकर आओं। और बताओं कि मेरेी सबसे सुंदर रानी कौन सी है?.भरत की इस बात को सुनकर जिज्ञासु बोला.. महाराज आपकी आज्ञा का पालन अभी करता हूं। इसमें कोन सी बड़ी बात है.. .मैंने आज तक आपकी किसी भी रानी को सन्मुख से नहीं देखा ये तो आपकी मुझपे किरपा है! अभी गया और अभी आया। .तब भरत बोले- भाई इतनी जल्दी न करो पहले पूरी बात सुन लो। .तुम्हं ‘अन्त पूर’ में जाना हैं पहली बात, सबसे अच्छी रानी का पता लगाना है दूसरी बात, लबालब तेल भरा कटोरा हाथ में ही रखना तीसरी बात...तुम्हारें पीछे दो सैनिक नंगी तलवारें लेकर चलेंगे और यदि रास्तें में तेल की एक बुंद भी गिर गई तो उसी क्षण यह सैंनिक तुम्हारी गर्दन धड़ से अलग कर देंगे। .विप्र देव चले गये, हाथ में कटोरा हैं और पूरा ध्यान कटोरे पर। एक-एक कदम फूक-फूक कर रख रहा हैं ‘अन्त पूर’ में प्रवेश करता हैं....दोनो तरफ रूप सी रानीयां खडी हैं पूरे महल में मानो सौंदर्य छिडका हुआ है। कही संगीत तो कही नृत्य चल रहा हैं, लेकिन उसका मन कटोरे पर अडिग हैं....चलता गया बडता गया और देखते ही देखते पूरे ‘अन्त पूर’ की परिक्रमा लगाकर चक्रव्रति भरत के पास आ पहूंचा। पसीने से तर-बतर थे। बडी तेजी से हांफ रहे थे.. .चक्रवाती भरत ने पूछा-बताओं मेरी सबसे सुंदर रानी कौनसी है? .जिज्ञासु विप्र देव बोले महाराज आप रानी की बात पूछ रहे हैं कैसी रानी? किसकी रानी? मुझे कोई रानी–वानी नही दिख रही थी। .मुझे तो अपने हाथो में रखा कटोरा और अपनी मौत दिख रही थी। सैनिकों की चमचमाती नंगी तलवारे दिख रही थी। इसके अलावा मैंने और कुछ नहीं देखा। .वत्स यही तुम्हारी जिज्ञासा का समाधान हैं, तुम्हारे सवाल का जवाब हैं। .जैसे तुम्हे अपनी मौंत दिख रही थी रानीयां नही, रानियों का रूप, रंग, सौंदर्य नही , संगीत लहरियां नहीं, मंदिर और विकार नहीं, और इस बिच रूप सी रानीयों को देखकर तुम्हारें मन में कोई पाप विकार नही उठा....वैसे ही हर पल मैं अपनी मुत्यु को देखता हूं। मुझे हर पल मृत्यु की पदचाप सुनाई देती हैं और इसलिए मैं इस संसार की वासनाओं के कीचड से उपर उठकर कमल की तरह खिला रहता हू। .राग रंग में भी वैराग की चादर ओढे रहता हूं। इसी कारण मोह–माया, विकार वासना मुझे प्रभावित नही कर पाती।.कथा सार– ईशवर का कोई कार्य युहीं या व्यर्य में ही नहीं होता। वैसे ही आपका जन्म भी किसी ख़ास मकसद के स्वरूप ही हुआ है। .पर दुनियावीं माया और वासनाओं में आकर हम उस मकसद को नहीं देख पाते। .कथा का मर्म जान कर कौन कौन अपने परिवार समाज, और दुनिया में ये जाग्रति को हमेशा कायम रख पता है कि एक दिन मुझे इस दुनियां से चले जाना है, .मैं सदा यहां नहीं रहने वाला, बहुत ही कम वक्त है मेरे पास, क्या मेरे पास मेरे जीवन का मकसद है? .मानव जीवन का एक ही उद्देश्य है और वो है केवल परमात्मा की प्राप्ति जिसे हम मोक्ष कहते हैं। .पर इस परिवार, समाज, अपनी महत्वकांशाओं और वासनाओं में फंस कर हम अपने जीवन के लक्ष्य को भूल गए हैं, .जागो जागो जागो बाहर निकलो इनसे ये भँवर है बाहर निकलने नहीं देगा। बे सहारा की सेवा करो प्रभु सिमरन करो, नाम सिमरन करो, जग में रह कर जग रहित हो जाओ। प्रभु अपने आप मिल जायेंगे।*बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब 🙏🙏❤️*मानव हो मानव का प्यारा एक दूजे का बनो सहारा.💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓💓जय जय श्री राधे 💞🙏🏻💞🙏🏻💞

विश्व में मानव जीवन का उद्देश्य और लक्ष्य क्या है ?बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाबक्या आप ईश्वर के बारे में कुछ नई बातें बता सकते हैं जो सभी धर्मों के ग्रंथों से हट कर हों व तर्क संगत हों जिससे पूरे विश्व की जनता को सही मार्ग दर्शन मिले और वे धर्मों से थोड़ा हट कर भी सोचें जो वास्तविक ईश्वर कृपा तथा मानसिक शांति भी दे?नोट : कृपया आदरणीय पाठक इसको समय निकाल कर के, फुरसत के पलों में धैर्य पूर्वक पड़ें। क्योंकि यह एक लंबा लेख है और ऐसे विषय में है, जो एकाग्रता यानी ‘ध्यान ’की मांग करता है। धन्यवाद।✍️ क्या शानदार सवाल है ! एक मानव के अस्तित्व, उद्देश्य और कल्याण से जुड़ा इससे महत्त्वपूर्ण सवाल और क्या हो सकता है।जिसका स्टीक उत्तर किसी पहुंचे हुए संत यां सतगुरु के इलावा किसी के पास नहीं होगा।क्योंकि इस सवाल से तो विज्ञान भी अभी तक अनजान है।पर हम इस पर जवाब देने का प्रयास अवश्य करेंगे।👉 आईए इस महत्वपूर्ण पर बेहद पेचीदा और जटिल सवाल के जवाब पर चर्चा शुरू करते हैं : –एक मानव यां इंसान के जन्म का उद्देश्य मात्र इतना होता है कि वो ईश्वर को जान कर, पहचान कर, उसमे समा जाए यानी मोक्ष को प्राप्त कर ले।किसी भी नदी का, दरिया का पानी अंत समंदर में ही विलीन होता है।पर हम मायावी संसार के प्रभाव में आकर अपना उद्देश्य भूल जाते हैं और अंत समय में दुखी होते हुए और पछतावा करते हुए, इस संसार से विदा लेते हैं।हमे ईश्वर निर्मित एक पूजनीय शरीर मिला है, जिस के द्वारा हम इसका सद उपयोग करके ईश्वर की अनुभूति भी कर सकते है, उसकी सत्ता को समझ भी सकते हैं और ईश्वर को यानी मोक्ष को प्राप्त भी हो सकते है।संसार में किसी भी प्रकार के धार्मिक ग्रंथ और धार्मिक सथल से ज्यादा पूजनीय आपका शरीर है। यानी वो शरीर जो हमारे अनंत ब्रह्माण्ड का ही रूप है। यानी कि जो कुछ भी ब्रह्माण्ड में है, वही हमारे शरीर में भी है।यानी कि हमारे शरीर से अच्छा कोई मंदिर नहीं, कोई गुरुद्वारा नहीं, कोई मस्जिद नहीं और कोई चर्च नहीं।यह बात सत्य है। हालांकि हम इनको मानने में आनाकानी करेंगे ही।यहां तक कि विश्व का कोई भी धार्मिक गृंथ सम्माननीय जरूर है पर पूजनीय नहीं।सम्माननीय इस लिए कि उसमे संतों की वाणी का पवित्र ज्ञान होता है, जो हमारा मार्गदर्शन करता है। पर पूजनीय इस लिए नहीं, क्योंकि है तो जड़ ही।👉 पर आपका शरीर पूजनीय क्यों है ?क्योंकि इस शरीर में ‘आप’ रहते हो, ‘आप’ जो ‘चेतन’ हो, उस ‘आप’ को छोड़कर ब्रह्माण्ड में तो सब जड़ है।आप अपने शरीर को एक दिव्य यान कह सकते हो, जिसके द्वारा आपको अपनी मंजिल तक पहुंचना है।इस शरीर में सिर्फ आप चेतन हो यानी आप ‘चेतना’ हो। यानी के आप एक ‘आत्मा’ हो यां उस आत्मा के एक अंश हो। बात एक ही है।एक पानी का बुलबुला भी पानी ही होता है। इस लिए आप अगर आत्मा के अंश भी हुए तो भी आप एक आत्मा ही हो।विश्व में हर धर्म, संप्रदाय का धार्मिक ग्रंथ भी यह गवाही देता है कि ‘आत्मा ही परमातमा’ है। संत मत भी यही कहता है।यानी कि परमात्मा ही तो ईश्वर है। हम उनके ही तो अंश हैं।पर फिर हमे इसका एहसास क्यों नहीं होता। हम इसकी अनुभूति क्यों नहीं कर पाते ?क्यों हम इसको बाहर ढूंढते फिरते हैं ?क्योंकि हम अशांत हैं, हम बेहोशी में खोए हुए हैं। हम मायावी संसार में रहते, इसे पहचान नहीं पाते।तो इसका हल क्या है ?ईश्वर की अनुभूति केलिए आप को जागृत होना पड़ेगा, सजग होना पड़ेगा।संक्षेप में आप को होश में आना पड़ेगा।👉 होश में कैसे आ सकते हैं ?होश में सजग हो कर, जागृत हो कर होश में आ सकते हैं।होश में ध्यान के द्वारा आ सकते हैं, ध्यान यानी सहज ध्यान। जिसको अंग्रेजी मे मेडिटेशन कहते हैं।आप को 24 घंटे सजग रहने की आदत डालनी होगी। सजग से अर्थ है, पूर्ण ध्यान, पूर्ण एकाग्रता, हर किर्या में, हर कार्य में।यह आसान नहीं है, बहुत मुश्कल है पर हम कर सकते हैं। आप 24 घंटे नहीं कर सकते तो 12 घंटे करें, 12 नहीं कर सकते तो 6 घंटे करें, 6 नहीं कर सकते तो 3 घंटे करें, 3 नहीं कर सकते तो 1 घंटा करें।1 नहीं तो 30 मिनट ही कर लें, पर प्रयास अवश्य करें।यानी कि जिस भी किर्या को यां कार्य को कर रहे हैं, सिर्फ और सिर्फ उस में ही आपका ध्यान होना चाहिए।इस को कुछ उदाहरणों से समझने का प्रयास करते हैं :–कैसे खाएं और पीएं ?जैसे खाना खा रहे हैं तो चपाती के निवाले को कटोरी से मुंह तक लिजाने में ही आपका ध्यान होना चाहिए। फिर उस निवाले को चबा रहे हो तो ध्यान सिर्फ उस निवाले में हो, उसके स्वाद यानी रस पर ही ध्यान हो।पानी पी रहे हो तो, पानी को गले से उतरते हुए महसूस करते हुए पीएं।यानी कि खाना खाने समय दिमाग में ध्यान सिर्फ खाने पर ही हो और कहीं नहीं।तो आप जितना समय खाना खायेंगे, वो आपका ‘ध्यान’ बन जायेगा।कैसे चलें ?आप पैदल चल रहे हैं तो कौन सा कदम आगे है और कौन सा कदम पीछे है, इस पर ध्यान दो। सिर्फ चलने पर ध्यान दो।धीरे चलो, भागो नहीं। कदमों को महसूस करते हुए चलो।इस कारण, आप जितना समय चलोगे, वो आपका ध्यान होगा।कैसे गाड़ी चलाएं ?अगर कार चलाते हो तो आपकी आखें हर समय सड़क के चारों ओर हो। ब्रेक लगा रहे हो तो ध्यान पांव की तरफ, गेयर डाल रहे हो तो ध्यान हाथ की तरफ पर यह सब करते समय भी आपका ध्यान सड़क की तरफ तो रहना ही चाहिए।पर इन सब करते समय आपका ध्यान किसी काम, चिंता यां घर परिवार की तरफ नहीं होना चाहिए। मतलब कि कार चलाते समय, आपका ध्यान सिर्फ कार चलाने में ही रहना चाहिए।इस से दो फायदे होंगे :एक, ऐसे गाड़ी चलाते समय आप के एक्सीडेंट होने के चांसेस भी ना के बराबर होंगे।दूसरा, आप जितने घंटे गाड़ी चलाएंगे, उतने घंटे आप का ‘ध्यान’ हो जायेगा।कैसे सोएं ?आप बिस्तर पर जाते हो, आप आराम से अपनी आंखें बंद करें। यह ना हो के यह पता ही ना चले के कब आंख लगी और आप सो गए।धीरे से आंखे बंद करें, धीरे धीरे शांत मन से नींद में जाएं, यानी पूरी होश में नींद की गहराइयों में जाएं।यह कहना आसान है पर करना उतना ही मुश्कल। पर अगर आप ऐसा करने में कामयाब रहते हैं तो आपकी नींद ही आपका ध्यान बन जायेगी।अगर आप 8 घंटे सोते हैं तो आपका ध्यान 8 घंटे का हो जाएगा।है ना अद्भुत।ऐसे ही और भी कार्य होंगे। वो सब भी ध्यान में जाग्रत हो करे ही करें।अगर आप ऐसा करने में लगातार कामयाब रहते हो तो एक दिन आप पूर्ण होश में आ जाओगे। आप जागृत हो जाओगे यानी होश में आ जाओगे।होश में ही तो अपनी आत्मा के होने का एहसास होता है।यानी खुद के होने का एहसास होता है। जिस को आप भूल चुके होते हो। फिर आप अपने आप को यानी आत्मा को जान जाओगे तो फिर आप परमात्मा यानी ईश्वर को भी जान सकते हो।क्योंकि आत्मा परमात्मा है और परमात्मा ही तो ईश्वर है। आत्मा के एहसास में ही तो परमात्मा यानी ईश्वर की अनुभूति होती है।तो यह सब होगा सहज ध्यान से।आखें बंद करके पालती मारकर लगातार बैठे रहना ही ध्यान नहीं होता।हर समय अवेयर रहना, होश में रहना, जागृत रहना ही ध्यान है। यही शांति है। यही ईश्वर की सच्ची भगति है। यही एक इंसान का सच्चा धर्म है। यही इंसान का निष्काम कर्म है।पर क्या कभी आज तक आप ने ऐसा किया है ?नहीं तो, अवश्य कोशिश करें ।इसके बाद सफर शुरू होता है, ईश्वर और उसकी सत्ता यानी अस्तित्व को जानने का।हमारा ब्रह्माण्ड एक बड़ा रहस्य समेटे हुए है। जिसको विज्ञान भी अभी तक समझ नहीं पाया। शायद हम यां वज्ञान ब्रह्माण्ड को सिर्फ 5% ही जानते हैं। सिर्फ 5%।हमारा ब्रह्माण्ड बहु आयामी है।आयाम यानी डिमेंशन।वेद कहता है कि ब्रह्माण्ड के 64 आयाम है तो पुराण 10 आयाम को मानता है पर विज्ञान तीन आयाम को मानता था पर धन्यवाद करें ज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टाइन का, जिन्होंने चौथे आयाम को खोजा और माना।आज विज्ञान 10 आयाम होने की कल्पना तो करता है पर जानता नहीं है, इस लिए मानता भी नहीं है।पर कुछ मतों अनुसार ब्रह्माण्ड में 7 लोक होते हैं। हमारा शरीर जो ब्रह्माण्ड का ही एक रूप है। इस लिए हमारे शरीर में भी 7 चक्कर होते हैं।जिसको एक योगी अच्छे से जानता है।इसी कारण ब्रह्माण्ड के 7आयाम माने गए हैं, आइए उन पर चर्चा करते हैं।पहला आयाम : एक व्यक्ति जब सिर्फ आगे और पीछे ही गति कर सकता हो तो वो पहले आयाम में रह रहा होता है। इसे ही पहला आयाम कहते हैं।दूसरा आयाम : अगर एक व्यक्ति आगे पीछे और दाएं बाएं भी जा सकता हो तो उसे दूसरा आयाम कहते हैं।तीसरा आयाम : अगर एक व्यक्ति मान लो किसी क्यूब में हो और हर दिशा में आ आ जा सके तो उसे तीसरा आयाम कहते हैं। यानी कि अब तक दुनिया को तीन आयामी माना गया है। जैसे एक 3 डी मूवी होती है, वो तीन आयामी होती है।चौथा आयाम : पर अल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा कि जी नहीं, एक चौथा आयाम भी होता है, वो है समय।जिस पर आज भी खोज जारी है। जैसे एक व्यक्ति सभी दिशाओं में जा सकता है तो उन दिशाओं में लगने वाले समय को चौथा आयाम माना गया है।वो समय जो अद्रिश है, महसूस नहीं होता पर होता है।पांचवा आयाम : स्पेस यानी खाली जगह यानी की अंतरिक्ष को पांचवा आयाम माना गया है। यानी कि एक व्यक्ति अगर चौथे आयाम में रह रहा है और कार्य कर रहा है तो वो कार्य कहां कर रहा है ?वो कार्य कर रहा है, स्पेस में यानी अंतरिक्ष की खाली जगह में ही कर रहा है। तो इसे पांचवा आयाम माना गया है।छठा आयाम : इस के बारे अभी विज्ञान अनजान है। कहते हैं कि अगर व्यक्ति छठे आयाम में पहुंच जाए तो वहां समय रुक जाता है। यानी कि आप वहां पर भविष्य से भूतकाल में भी जा सकते हो।सातवां आयाम : कहते हैं कि ब्रह्माण्ड एक नहीं है। यानी एक व्यक्ति जिस ब्रह्मांड में रह रहा है, उसी समय उसका अस्तित्व किसी और ब्रह्माण्ड में भी होगा। यानी कि आप खुद एक से ज्यादा हो सकते हो, अलग अलग ब्रह्माण्ड में। हैं ना बेहद विचित्र !निष्कर्ष :ईश्वर, जिस का अंत आज तक कोई नहीं पा सका। पर मानव जीवन के उद्देश्य के अनुसार हम होश में आकर यां होश में रहकर अपने आप को पहचानकर ईश्वर की अनुभूति अवश्य कर सकते हैं और ईश्वर के इस्तित्व को जान सकते हैं और उसका आनंद ले सकते हैं और मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।एक आम मृत्यु में यहां एक इंसान को होश ही नहीं रहती और उसको उसके कर्मों के अनुसार कोई भी किसी भी योनि में अगला जन्म मिल जाता है।पर वहीं कहते हैं कि अंत समय में भी एक होशपूर्वक व्यक्ति की जब मृत्यु आती है तो मृत्यु उस ज्ञानी इंसान यां व्यक्ति के हाथ में होती है।वो कहां जाना चाहता है, उसका फैसला वो कर सकता है और अपनी मर्जी से वहां जा सकता है। वो चाहे तो यहां फिर से इंसानी जन्म ले सकता है।किसी अन्य लोक में जा सकता है और अपनी इच्छा से मोक्ष को प्राप्त हो सकता है।उम्मीद करते हैं कि आदरणीय पाठकों ने यह पोस्ट बेहद ध्यान से पड़ा होगा और उनका 5–10 मिनट का ध्यान अवश्य घटा होगा।😊बहुत बहुत धन्यवाद। 🙏🙏🙏स्रोत :चित्र गूगल इमेजेस के द्वारा आभार सहित।जानकारी, आपनी जानकारी के आधार पर। जो इंटरनेट की अलग अलग साइट्स और किताबों और धार्मिक ग्रंथों के आधार पर है।

*बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम संगरिया राजस्थान वार्ड नं 12 से*6 साल का लड़का कृष गुम *ज्यादा से ज्यादा शेयर करो जी जो मेरा कृष बेटा मिल जाए जी🙏🙏*

बल्लुआना व अबोहर विधानसभा क्षेत्र में शांतिपूर्वक हुई मतगणनापुलिस प्रशासन ने किए थे कड़े सुरक्षा प्रबंधअबोहर, 10 मार्च (वनिता कासनियां पंजाब): अबोहर व बल्लुआना विधानसभा क्षेत्र में पुलिस प्रशासन के कड़े सुरक्षा प्रबंधों के चलते मतगणना शांतिपूर्वक सम्पन्न हुई। पुलिस प्रशासन द्वारा मतगणना केंद्रों पर सुरक्षा के कड़े प्रबंध किये गये थे। एसडीएम अमित गुप्ता ने सभी स्टाफ व उम्मीदवारों को शांतिपूर्वक मतगणना में सहयोग करने पर आभार व्यक्त किया। एडीसी विक्रमजीत सिंह शेरगिल, पुलिस प्रभारी अबोहर हल्का अबोहर इंचार्ज एसपी क्राईम एंड वूमैन मैडम नवनीत कौर सिद्धू, व भारी संख्या में पुलिस बल तैनात था। डीएसपी बल्लुआना अवतार सिंह, डीएसपी संदीप सिंह, नगर थाना के प्रभारी गुरचरण सिंह, नगर थाना 2 के प्रभारी इंस्पैक्टर लेखराज, थाना खुईयांसरवर के प्रभारी मैडम राजवीर कौर, थाना सदर के प्रभारी मैडम इंद्रजीत कौर, थाना बहाववाला के प्रभारी मैडम मनप्रीत कौर, सीआईए स्टाफ 2 के प्रभारी जालंधर सिंह ने सुरक्षा के कड़े प्रबंध किये गये थे। इसके अलावा महिला पुलिस व बीएसएफ की भी तैनाती की गई थी।फोटो:5, जानकारी देते एसडीएम व सुरक्षा प्रबंधों में जुटा पुलिस प्रशासन--बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब (वनिता कासनियां पंजाब द्वारा)क्राईम रिपोर्टर, kullar, जिला फाजिल्का (पंजाब)हर प्रकार की खबरें, विज्ञापन, जन्मदिन, सालगिरह, शोक बेदखली, बेदखली बहाल करवाने, कोर्ट नोटिस संदेश प्रकाशित करवाने के लिए सम्पर्क करें

आज #मंगलवार है, आज हम सब मिलकर रामभक्त पवनकुमार हनुमानजी महाराज की भक्ति करेंगे, आज हम आपको बतायेगें कि #हनुमानजी अजर अमर यानी चिरंजीवी कैसे हुए?????#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती वनिता #कासनियां #पंजाब #संगरिया #राजस्थानआठ महामानवों को पृथ्वी पर #चिरंजीवी माना जाता है- अश्वत्थामा, बलि, व्यासजी, हनुमानजी, विभीषण, परशुरामजी, कृपाचार्य और महामृत्युंजय मंत्र के रचयिता मार्कंडेय जी। हनुमानजी के चिरंजीवि होने की कथा संक्षेप में सुनाता हूं। आप यदि इस रहस्य को समझना चाहते हैं तो पूरे भाव से और पूरे धैर्य से पढ़ें-कथा को कभी रामचरितमानस की चौपाइयों और रामायण के उद्धरणों के साथ विस्तार से भी सुनाऊंगा उसमें आपको ज्यादा आनंद आएगा। हनुमानजी सीताजी को खोजते-खोजते अशोक वाटिका पहुंच गए। विभीषणजी से उन्हें लंका के बारे में संक्षिप्त परिचय प्राप्त हो ही चुका था।पवनसुत ने भगवान श्रीराम द्वारा दी हुई मुद्रिका चुपके से गिराई। रामचरित मानस को देखें तो हनुमानजी के अशोक वाटिका में पहुंचने के प्रसंग से ठीक पहले का प्रसंग है रावण के वहां अपनी रानियों और सेविकाओं के साथ आने का। वह माता सीता को तरह-तरह का प्रलोभन देता है उन्हें पटरानी बनाने की बात कहता है और समस्त रानियों को उनकी सेवा में तैनात कर देने की बात कहता है।परंतु सीताजी प्रभावित नहीं होतीं तो वह उन्हें डराने का दुस्साहस करता है. चंद्रमा के समान तेज प्रकाशवान चंद्रहास खड़ग निकालकर माता को डराता है और उन्हें एक मास का समय देता है विचार का, उसके बाद वह या तो उनके साथ बलपूर्वक विवाह करेगा अन्यथा वध कर देगा।#माता #सीता सशंकित है कुछ भयभीत भी. संकट के समय में भयभीत होना सहज स्वभाव है. तभी हनुमानजी वहां पहुंचे हैं. वृक्ष पर छुपकर बैठे हैं और उचित समय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।हनुमानजी के साथ तीन उलझनें हैं- पहला तो माता सीता बहुत भयभीत हैं इसलिए यदि वह अचानक वहां पहुंच जाएं तो उन्हें देखकर माता और भयाक्रांत हो जाएंगी। हनुमानजी तो स्वयं को सेवक के भाव से देखते थे। सेवक अपने स्वामी के आदेश से आया है वह भी उसकी प्राणप्रिया की सुध लेने। जिसकी सुध लेने आया है उसे भयभीत कैसे कर दें।दूसरी उलझन, हनुमानजी के समक्ष एक उलझन है कि माता के समक्ष प्रथम बार जा रहा हूं. वानरकुल को ऐसे ही अशिष्ट माना जाता है. कहीं माता मेरे किसी आचरण को अशिष्टता या उदंडता न समझ लें. अगर आज के तौर-तरीके में कहूं तो उनके समक्ष भी वही उलझन है जो हमारे समक्ष होती है- तो क्या सर्वथा उचित व्यवहार, संबोधन आदि होगा. यह सब सोच रहे हैं।तीसरी उलझन, मैं किस भाषा का प्रयोग करूं अपनी बात कहने के लिए. रावण को उन्होंने उत्तम संस्कृत भाषा का प्रयोग करते सुना है. तो यदि वह भी संस्कृत भाषा बोलते हैं तो कहीं उन्हें भी रावण का भेजा हुआ कोई मायावी समझकर माता क्रोध में चिल्लाने लगें और रक्षकों की नींद खुल जाए. किष्किंधा की बोली का प्रयोग करूं तो माता के लिए यह अपिरिचत लगेगा. बहुत विचार करने पर वह अयोध्या की भाषा का प्रयोग करते हैं। संवाद बहुत काम करता है. जब ऋष्यमूक पर उनकी भेंट श्रीराम-लक्ष्मणजी से हुई थी तो वह एक ब्राह्मण का वेष धरकर पहुंचे थे और उत्तम संस्कृत भाषा का प्रयोग कर रहे थे तब श्रीराम ने कहा था कि इनकी वाणी में जितनी मिठास है उतनी ही सुंदर शैली, उतना ही उच्चकोटि का व्याकरण प्रयोग. ऐसे व्यक्ति यदि जिस राजा के मंत्री हों वह राजा कभी दुखी हो ही नहीं सकता।तो हनुमानजी ने मुद्रिका गिराई और माता की प्रतिक्रिया को बड़े गहराई से देखा. *तब देखी मुद्रिका मनोहर। राम नाम अंकित अति सुंदर।।चकित चितव मुदरी पहिचानी। हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी॥तब उन्होंने राम-नाम से अंकित अत्यंत सुंदर एवं मनोहर श्रीरामजी की अँगूठी देखी. अँगूठी को पहचानकर सीताजी आश्चर्यचकित होकर उसे देखने लगीं और हर्ष तथा विषाद से हृदय में अकुला उठीं. माता विभोर हैं, चकित हैं कि ये कहां से आई।यदि रामनाम के रस में डूबते हैं या रामनाम रसधारा की महिमा का आनंद लेना है तो इन तीन चौपाइयों के लिए आप तुलसीबाबा को उनकी भक्ति को देखते हुए श्रीहनुमानजी के समकक्ष रामभक्त मान लेंगे।जीति को सकइ अजय रघुराई। माया तें असि रचि नहिं जाई॥सीता मन बिचार कर नाना। मधुर बचन बोलेउ हनुमाना॥सीताजी विचारने लगीं- श्री रघुनाथजी तो सर्वथा अजेय हैं, उन्हें कौन जीत सकता है? और माया से ऐसी अँंगूठी बनाई ही नहीं जा सकती. सीताजी मन में अनेक प्रकार के विचार कर रही थीं. इसी समय हनुमान्‌जी मधुर वचन बोले-रामचंद्र गुन बरनैं लागा। सुनतहिं सीता कर दुख भागा॥लागीं सुनैं श्रवन मन लाई। आदिहु तें सब कथा सुनाई॥वे श्री रामचंद्रजी के गुणों का वर्णन करने लगे, (जिनके) सुनते ही सीताजी का दुःख भाग गया. वे कान और मन लगाकर उन्हें सुनने लगीं. हनुमान्‌जी ने आदि से लेकर अब तक की सारी कथा कह सुनाई।हनुमानजी को इसीलिए तो मैं कम्युनिकेशन का मास्टर कहता हूं. कम्युनिकेशन में सिर्फ यही मायने नहीं रखता कि कैसे अपनी बात रखकर किसी को प्रभावित किया जाए बल्कि किस स्थिति में किसके साथ किस प्रकार का आचरण करें. सीताजी पीड़ी में हैं, आत्मनाश तक के भाव से ग्रसिंत हो रही हैं उसी समय हनुमानजी उन्हें आनंदित करते हैं, उनके मुख पर मुस्कान ला देते हैं. आप ही निर्णय़ करें क्या हनुमानजी से बेहतर कम्युनिकेशन का कोई उदाहरण मिलता है।श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई। कही सो प्रगट होति किन भाई॥तब हनुमंत निकट चलि गयऊ। फिरि बैठीं मन बिसमय भयऊ ।।(सीताजी बोलीं-) जिसने कानों के लिए अमृत रूप यह सुंदर कथा कही, वह हे भाई! प्रकट क्यों नहीं होता? तब हनुमान्‌जी पास चले गए. उन्हें देखकर सीताजी फिरकर (मुख फेरकर) बैठ गईं? उनके मन में आश्चर्य हुआ।अब देखिए अपने चातुर्य, अपनी बुद्धि का कैसा सुंदर परिचय हनुमानजी देते हैं. इस दोहे को पढ़ते तो मेरे रोंगटे हर्ष से खड़े हो जाते हैं।रामदूत मैं मातु जानकी। सत्य सपथ करुनानिधान की॥यह मुद्रिका मातु मैं आनी। दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी॥(हनुमान्‌जी ने कहा-) हे माता जानकी मैं श्री रामजी का दूत हूँ. करुणानिधान के सत्यशपथ के साथ कहता हूँ- हे माता! यह अँगूठी मैं ही लाया हूँ. श्री रामजी ने मुझे आपके लिए यह सहिदानी (निशानी या पहिचान) दी है।कह माता सीता ने उसे तत्काल पहचान लिया. वैसे तो सुग्रीव ने हर दिशा में दूत भेजे थे पर प्रभु श्रीराम जानते थे कि उनकी प्राणप्रिया के पास पहुंचेंगे तो बस हनुमानजी. सीताजी उस समय क्या सोचेंगी वह भी प्रभु जानते थे. इसलिए उन्होंने हनुमानजी को पति-पत्नी के बीच का Code भी बता दिया था. दो अतिशय प्रिय व्यक्तियों के बीच एक कोड होता है, विश्वास का कोड ताकि कभी कहीं कोई मायावी अपनी माया फैलाए तो उससे परख सकें. मैंने सुना है पति-पत्नी के बीच भी कोड होता है।तो वह कोड क्या है जिसके कारण सीताजी को एक सेकेंड नहीं लगा यह निर्णय करने में कि यह वानर मायाजीव नहीं रामदूत हैं।हनुमानजी ने कहा- अतिशय प्रिय करूणानिधान की. करूणानिधान संसार में सिर्फ माता सीता ही श्रीराम को एकांत में कहती थीं. उसके अलावा और कोई नहीं. माता ने जब यह सुना तो उन्हें पूर्ण विश्वास हो गया कि यह कोई मायावी वानर नहीं श्रीराम का सेवक ही है।माता ने अपने नाथ का कुशलक्षेम पूछा. हनुमानजी ने उनकी विरह वेदना बताई कि हे माता आपके विरह में प्रभु इतने दुर्बल हो गए हैं कि जो मुद्रिका मैं लेकर आया हूं वह अब उनकी उंगलियों में नहीं आते बल्कि कंकण यानी कंगन की तरह पहनने योग्य हो गए हैं।इस प्रसंग को संक्षेप में छोड़ रहा हूं क्योंकि यह इतना सरस है कि इस पर ही लिखूं तो एक पोस्ट कम पड़ जाए. पोस्ट लंबी हो जाए तो प्रेमीजन पढ़ते नहीं तो इसे अभी विराम देता हूं। फिर कभी लिखा जाएगा कि कैसे प्रभु की अंगूठी भगवान के लिए कलाई में धारण करने योग्य कंगन जैसी हो गई है।हनुमानजी ने प्रभु का संदेश माता को दिया। माता का कुशलक्षेम पूछा. माता से आज्ञा लेकर वाटिका के फल खाए. हनुमानजी ने फल इसलिए खाए क्योंकि माता को आशंका थी कि हनुमानजी जैसे वानरों के सहयोग से क्या प्रभु रावण को जीत सकेंगे।माता पूछती हैं कि क्या सारे वानर तुम्हारे ही जैसे हैं. तो हनुमानजी कहते हैं कुछ मेरे से छोटे भी हैं. तो माता को शंका होती है कि फिर कैसे होगा? हनुमानजी ज्ञानियों के बीच अग्रगण्य हैं यानी ज्ञानीजनों में भी श्रेष्ठ हैं और कम्युनिकेशन के मास्टर तो हैं ही.लका पार करके वह अपने सामर्थ्य शक्ति का परिचय दे चुके हैं. अपनी बातों से माता को प्रभावितकर वाकशक्ति को सिद्ध कर चुके हैं अब उन्हें अपने मित्रों-साथियों की शक्ति का भीतो परिचय देना है।इसके साथ-साथ रामदूत हनुमानजी को शत्रु के मन में श्रीराम की शक्ति का प्रदर्शन कर एक चेतावनी भी देनी थी. राक्षसों के मन में प्रभु का भय न पैदा करें, ऐसा कैसे संभव था?हनुमानजी ने फल खाने के बहाने वाटिका में इतना उत्पात मचाया कि रावण ने अपने परमवीर पुत्र अक्षय कुमार को हनुमानजी को पकड़ने भेजा।#रावण का अजेय पुत्र अक्षय कुमार बजरंग बली के हाथों मारा गया. अक्षय जैसे वीर का वध एक वानर ने कर दिया, यह सोचकर रावण घबरा गया।उसने #इंद्रजीत को हनुमानजी को पकड़ने भेजा. इंद्रजीत को भी हनुमानजी ने नाकों चने चबवा दिए. हारकर उसने पवनसुत पर ब्रह्मास्त्र चलाया. ब्रह्मास्त्र का मान रखने को हनुमानजी अल्प मूर्च्छा में आए तो नागपाश में इंद्रजीत ने उन्हें बांध लिया।हनुमानजी को रावण के दरबार में लाया गया. एक झटके में ही उन्होंने खुद को मुक्त कर लिया।रावण ने इंद्रजीत को हनुमानजी का वध करने को कहा लेकिन विभीषण ने समझाया कि दूत का वध करना पाप है. बौखलाए रावण ने अंगभंग की सजा सुनाई. हनुमानजी की पूंछ में आग लगाने की सजा मिली।राक्षसों ने बजरंग बली की पूंछ में कपड़ा और तेल लपेटकर पूरी लंका में घुमाया. इस प्रकार हनुमानजी ने पूरी लंका देख ली. सीताजी को भी सूचना मिली कि रावण हनुमानजी की पूंछ में आग लगाने वाला है. इससे वह बहुत व्यथित हुईं।माता ने अग्निदेव की प्रार्थना की. अग्निदेव प्रकट हुए तो माता ने कहा- अग्निदेव यदि मैं सच्ची पतिव्रता हूं तो आप मेरे पुत्र हनुमान को अपने तेज से पीड़ित मत कीजिएगा।अग्निदेव ने कहा- ऐसा ही होगा माता. आप चिंता न करें. आपने जिसे पुत्र माना है वह श्रीराम का कार्य करने आए हैं. उनके कार्य में बाधा हो ही नहीं सकती।हनुमानजी ने पूरी लंका का निरीक्षण कर लिया उसके बाद घूम-घूमकर पूरी लंका जला दी. माता की कृपा से पूंछ में आग लगने के बावजूद हनुमानजी की पूंछ नहीं जली. हनुमानजी ने लंका में दो घर छोड़ दिए।एक घर विभीषण का, क्योंकि वह रामभक्त थे. दूसरा कुंभकर्ण का. जब वह कुंभकर्ण के महल पहुंचे तो कुंभकर्ण गहरी नींद में सो रहा था।उसकी पत्नी ने हनुमानजी से विनती की कि उसके पति गहरी निद्रा में सो रहे हैं. वह इस अपराध में सम्मिलित ही नहीं हैं. श्रीराम तो न्यायप्रिय हैं. किसी को अकारण दंड नहीं देते।उसने कहा कि सीताहरण में उसके पति की सहमति ही नहीं हैं क्योंकि वह तो सो रहे हैं. उन्हें कुछ भी ज्ञात नहीं. हनुमानजी ने उसका महल भी नहीं जलाया।पवनसुत तसल्ली से पूरी लंका जला फिर भी अग्नि अभी शेष थी. पूंछ की आग बुझाने के लिए पवनसुत समुद्र में गए. आग बुझाते समय उन्हें अचानक बड़ा पछतावा हुआ. उन्हें लगा कि मैंने पूरी लंका जला दी कहीं अनर्थ तो नहीं हो गया।उन्हें आशंका हुई कि सारी लंका तो जला डाली, कहीं ऐसा तो नहीं कि उससे आग वन में चली गई हो और माता सीता भी कहीं जल गई हों।बजरंग बली के मन में भय हुआ कि जिसकी सूचना लेने आए थे, कहीं उसका अनिष्ट तो नहीं कर दिया।उन्हें इस बात ध्यान ही न रहा कि जिसकी आज्ञा से अग्नि ने उनकी पूंछ न जलाई, वह भला स्वयं सीताजी को क्या जलाएंगे!भोले-भाले मन वाले बजरंग बली फिर तुरंत भागे लंका माता की सुधि लेने. हालांकि उनके मन में यह ख्याल यह भी आ रहा है कि सीताजी पर अग्नि का भला क्या प्रभाव होगा परंतु माता ने उन्हें पुत्र कहकर संबोधित किया था।इसलिए उस समय उनके मन में पुत्ररूप वाला भाव आ रहा था. संकटकाल में मन के कोमल भाव सबसे ज्यादा पुष्ट हो जाते हैं. परिजनों के लिए पीडा उभरती है इससे हनुमानजी भी मोहित हो गए हैं।बजरंग बली धर्मसंकट में हैं कि माता के सम्मुख जाएं भी तो जाएं कैसे? आखिर क्या बहाना बनाया जाए।वह यह कैसे कहेंगे कि मैं यह देखने आया हूं कि आप तो लंका की आग में भस्म नहीं हुई. अग्नि श्रीराम से बैर मोलने की हिम्मत कर नहीं सकते।इस धुन में खोए पवनसुत फिर से अशोक वाटिका पहुंचे और कहा कि आपसे आज्ञा लेने आया हूं।माता तो अंतर्यामी ठहरीं. हनुमानजी को सकुशल देखकर वह बड़ी प्रसन्न हुईं, सब समझ गईं. सर्वप्रथम उन्होंने अग्निदेव का आभार व्यक्त किया।अब हनुमानजी पुत्र के भाव से आए हैं और माता ने पढ़ लिया है तो वह भी अब देवी नहीं एक माता की भांति सोच रही हैं. हर माता अपने पुत्र को चिरंजीवि और अमर ही कर देना चाहती है. माता सीता भी उसी भाव में हैं।हनुमानजी को कुशल देखकर इतनी प्रसन्न हुईं कि उन्होंने बजरंग बली को अमर होने का वरदान दे दिया. माता के इसी वरदान से हनुमानजी अमर हो गए थे. इंद्र ने पहले ही उन्हें बाल्यकाल में इच्छानुसार जीवनत्याग का वरदान दिया ही था परंतु माता ने तो अशोक वाटिका में अमर ही कर दिया।हनुमान वापस क्यों आए हैं माता यह बात समझ गईं थी पर रामदूत उनके सहारे बने थे, इसलिए पुत्र को झेंप हों यह भी उचित नहीं. इसलिए माता ने कहा- पुत्र हनुमान तुमने मेरे मन की बात समझ ली. मेरी इच्छा थी कि लंका से विदा होने से पहले तुम मेरे पास एक बार और आकर मिलो।हनुमानजी गदगद हो गए. उन्होंने कहा- आपसे मुझे मेरी अपनी जननी माता अंजना जैसा प्रेम मिला है. माता पुत्र होने के नाते तो मेरा कर्तव्य है कि माता के संकट को तत्काल दूर करना. मैं तो अभी आपको अपने साथ लेकर चल सकता हूं लेकिन जिसने प्रभु को पीड़ा दी है, उसे दंड भी प्रभु ही देंगे।इसलिए मैं प्रभु #श्रीराम के साथ आउंगा और #अत्याचारी का अंत कर आपको कौशलपुरी लेकर जाउंगा। हनुमानजी ने आशीर्वाद लिया और उन्हें वचन दिया कि एक माह के भीतर वह #प्रभु के साथ आकर #रावण का नाशकर उन्हें ले जाएंगे. इस प्रकार हनुमानजी अमर हुए।जय #सियाराम जय जय हनुमान जी

🌹शुभ राञी 🌹हाल यह है कि खुद को क्या करना है वो पता... नही मगरदूसरे को क्या करना है चाहिएउसकी सलाह है मेरे पासहीरा परखना भले न आता हैपर इंसान का पीड़ा परखनाआता है हमे दुखी इंसान के साथआप अपना फर्ज निभा इयेआपका हक आपको स्वयम भगवान दिलाएगाआपके पास मौजूद तीन महासक्ति आज भी हैपहला प्रेम पार्थना और माफ करना कभी नही भूलना चाहिएआपको पल पल इन तीन बातो को याद रखना चाहिएजय श्री राधे राधेशुभ राञी💗*बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब* 🌹कि और से 💗🙏🙏💗

संदीप जाखड़ ने जताया वोटरों का आभारविकास कार्यों में नहीं आने दी जायेगी कोई रूकावटअबोहर, 10 मार्च (वनिता कासनियां पंजाब): अबोहर में कांग्रेस प्रत्याशी चौ. संदीप जाखड़ ने अपनी जीत के बाद सभी वोटरों का आभार जताया। उन्होंने पंजाब में आप की सरकार बनने पर आप नेताओं को बधाई दी और कहा कि उन्हें उम्मीद है कि आप पार्टी ने जो वायदे किये हैं उसपर खरी उतरेगी। उन्होंने कहा कि अबोहर में चल रहे विकास कार्यों में किसी प्रकार की रूकावट नहीं आने दी जायेगी। इसके अलावा अबोहर में चल रहे सफाई अभियान में निरंतर जारी रहेगा। संदीप जाखड़ ने कहा कि वह अबोहर की आभा को बहाल करने का हर संभव प्रयास करेंगे। इस मौके पर गुरजंट सिंह जंटा की टीम, लोकेश शर्मा, प्रिंस सोनू, विनय, अशोक शर्मा, अमन सिडाना, अतिंद्र पाल तिन्ना, कवि मदान, फायनांसर यूनियन के प्रधान रिंकू चुघ, दविंद्र सिंह, वार्ड नं. 23, गुरदीप सिंह, ओमप्रकाश, पार्षद पुनीत अरोड़ा, पार्षद अनिल कुमार, विनय कुमार, पार्षद भीष्म धूडिय़ा, अमल अजीमगढ़, प्रवीण रूबी, मोनू आर्य, शलील, विनय कुमार एमसी, पार्षद रिची, पार्षद मेहरचंद तनेजा, विनोद कुमार पप्पू, नरेश गोयल, गुरजंट सिंह जंटा वार्ड नं. 10, सुभाष नगर अबोहर, लक्की कामरेड, मोहनलाल ठठई, संजय जाखड़, डा. राजिन्द्र गिरधर, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मंगत राय बठला, कमल खुराना, पुनीत अरोड़ा सोनू, विकास सिंगला, डॉ सतीश नरूला, संदीप गोदारा, सचिन सेतिया, राजू बत्रा, कर्नल एसपीआर गाबा, नीरज सहगल, चीमा खुब्बन, मनीराम आडवाणी, धर्मवीर मलकट, प्रेम चुघ, दर्शी ग्रोवर, अतिन्दरपाल तिन्ना, रूबी परुथी, डॉ मुकेश, अमित सिंगला रुचि, नीरज सचदेवा, वेद प्रकाश अल्लाह, नीरज गोदारा, पार्षद राजाराम, पार्षद छिंदा, अनिल सियाग, वार्ड नं. 2 के पार्षद निर्मलजीत सिंह रिची, चंदर बांसल, विनय कुमार, अजय शर्मा, नरेंद्र वर्मा, राजेश बागड़ी, आकाशदीप अरोड़ा, समाज सेवी राकेश कलानी, सत्यनारायण सिंगला, मैट्रो कालोनी के प्रधान पृथ्वी राज, प्रवीण कुमार फौजी, बलदेव शर्मा उर्फ बिट्टु कैटरिंग वाले, शरमणप्रीत सिंह, बार एसोसिएशन के पूर्व प्रधान आर.एस. फोर, प्रिंस कुमार, गौरव कम्बोज, अमित चौधरी, बंटी, गुुलशन बघला, अजय गुप्ता, राजिंद्र गगनेजा, अनिल शर्मा, सुरेश, कमलेश, सुशील गर्ग जॉनी खत्री, विक्की, हरप्रीत सिंह बहल, सुरिंद्र सिंह बहल लारा रोहिला, समाज सेवी नरेश खुराना, रिंकू चुघ व उनकी धर्मपत्नी पूजा चुघ के अलावा पुष्पा कांटीवाल, सरिता अबरोल, नमिता सेतिया, दया धमीजा, रेणू चौधरी, रेणू बाला ने संदीप जाखड़ विजयी होने पर को बधाई दी। इस मौके पर महिलाओं ने संदीप जाखड़ की जीत पर जश्र मनाया ओर डांस किया।फोटो:4, मौके पर मौजूद महिलाएं व सम्बोधित करते संदीप जाखड़

अपने ध्यान से मष्तिष्क की शक्ति कैसे बढ़ती है? बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब · फॉलो कर रहे हैं ध्यान साधक सबसे पहले जवाब दिया गया: ध्यान से मष्तिष्क की शक्ति कैसे बढ़ती है ?ध्यान मस्तिष्क के लिए व्यायाम का कार्य करता है। ध्यान साधना के दौरान विचारों की गति को शुन्यता के स्तर तक पहुँचाने का अभ्यास किया जाता है। इस अभ्यास के दौरान विचार उत्पन्न होने की गति बहुत कम होने लगती है। जिससे मस्तिष्क शाँत होने लगता है। जिससे मस्तिष्क की कोशिकाओं की क्षति का क्रम नियंत्रित होने में मदद मिलती है।इसके अतिरिक्त ध्यान से पहले प्राणायाम करने के दौरान बाएं नासिका छिद्र से श्वाँस लेने पर दाहिना मस्तिष्क सक्रीय होता है और दाहिने नासिका छिद्र से श्वांस लेने पर बायाँ मस्तिष्क सक्रीय होता है। इस प्रकार निरंतर ध्यान का अभ्यास करने से व्यक्ति में रचनात्मक और तार्किक दोनों प्रकार की मानसिक शक्तियों का विकास हो जाता है।इस बात के प्रमाण का मेरा अनुभव यहाँ शेयर कर रही हूँ - ध्यान साधना के लगभग चार महीने पुरे हुए होंगे। मैं अपने प्रतिदिन के नियमानुसार सुबह रात में भिगाए हुए बादाम के छिलके उतार रही थी। तभी मेरा ध्यान गया कि मैं बादाम के छिलके बाएँ हाथ से उतार रही हूँ। तब मुझे एहसास हुआ कि मैं बायें और दाहिने दोनों हाथों से कार्य सामान क्षमता से करने मैं समर्थ हो गयी हूँ। ध्यान करने से पहले मुझे बाएं हाथ से कार्य करने में विशेष ध्यान देना पड़ता था।हार्वर्ड के शोधकर्ताओं ने मैसाचुसेट्स जनरल अस्पताल (एमजीएच) के शोध में सत्यापित किया है कि "प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट ध्यान के नियमित अभ्यास से मस्तिष्क संरचना के हिप्पोकैम्पस में ग्रे मैटर वाले आकार में वृद्धि होती है।" जो कि भावनाओं को नियंत्रित करने, यदादाश्त बढ़ाने और सीखने की क्षमता, सजगता और एकाग्रता बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होता है।शोधकर्ताओं ने लगातार आठ सप्ताह तक ध्यान का अभ्यास करने के बाद टीम के सभी सदस्यों के मस्तिष्क का एमआरआई ( Magnetic resonance imaging) करवाने पर पाया कि ध्यान करने से पहले के मुकाबले ध्यान करने के बाद उनके मस्तिष्क की संरचना के हिप्पोकैम्पस में ग्रे मैटर वाले आकार में वृद्धि हो चुकी है। ध्यान से मस्तिष्क की शक्ति बढ़ने का प्रमाण प्रस्तुत करने वाले शोध का लिंक [1]चित्र स्तोत्र गूगल

*।। तुम नजर में हो ।।*बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब*एक दिन सुबह सुबह दरवाजे की घंटी बजी, मैं उठकर आया दरवाजा खोला तो देखा एक आकर्षक कद काठी का व्यक्ति चेहरे पे प्यारी सी मुस्कान लिए खड़ा है...*मैंने कहा:- "जी कहिए.."तो बोला:- "अच्छा जी, आज.. जी कहियेरोज़ तो एक ही गुहार लगाते थे , प्रभु सुनिए, प्रभु सुनिये.....आज, जी कहिये वाह..!मैंने आँख मसलते हुए कहा:-माफ कीजीये भाई साहब!मैंने पहचाना नही आपकोतो कहने लगे:- भाई साहब नही, मैं वो हूँ जिसने तुम्हे साहेब बनाया हैअरे ईश्वर हूँ... ईश्वरतुम हमेशा कहते थे, नज़र मे बसे हो पर नज़र नही आते, लो आ गया..!अब आज पूरा दिन तुम्हारे साथ ही रहूँगा*मैंने चिढ़ते हुए कहा:- ये क्या मजाक है!!!*अरे मजाक नही है, सच है, सिर्फ तुम्हे ही नज़र आऊंगातुम्हारे सिवा कोई देख-सुन नही पायेगा मुझेकुछ कहता इसके पहले पीछे से माँ आ गयी...ये अकेला ख़ड़ा खड़ा क्या कर रहा है यहाँ... चाय तैयार है, चल आजा अंदर...अब उनकी बातों पे थोड़ा बहुत यकीन होने लगा था, और मन में थोड़ा सा डर भी था..मैं जाकर सोफे पे बैठा ही था, तो बगल में वो आकर बैठ गएचाय आते ही जैसे ही पहला घूँट पियागुस्से से चिल्लाया:- यार... ये चीनी कम नही डाल सकते हो क्या आपइतना कहते है, ध्यान आया अगर ये सचमुच में ईश्वर है तो इन्हें कतई पसंद नही आयेगा कोई अपनी माँ पे गुस्सा करेअपने मन को शांत किया और समझा भी दिया कि भाई "तुम नज़र मे हो आज" ज़रा ध्यान सेबस फिर में जहाँ जहाँ वो मेरे पीछे पीछे पूरे घर मेथोड़ी देर बाद नहाने के लिये जैसे ही में बाथरूम की तरफ चला, तो उन्होंने भी कदम बढा दिए..मैंने कहा:- प्रभु यहाँ तो बख्श दो!!खैर नहाकर, तैयार होकर मे पूजा घर में गया, यकीनन पहली बार तन्मयता से प्रभु को रिझाया क्योंकि आज अपनी ईमानदारी जो साबित करनी थी..फिर आफिस के लिए घर से निकला, अपनी कार मे बैठा, तो देखा बगल वाली सीट पे महाशय पहले ही बैठे हुए है सफर शुरू हुआ तभी एक फ़ोन आया, और फ़ोन उठाने ही वाला था कि ध्यान आया "तुम नज़र मे हो" ।कार को साइड मे रोका, फ़ोन पे बात की और बात करते करते कहने ही वाला था कि "इस काम के ऊपर के पैसे लगेंगे" पर ये तो गलत था, पाप था तो प्रभु के सामने कैसे कहता तो एकाएक ही मुँह से निकल गया "आप आ जाइये आपका काम हो जाएगा आज"फिर उस दिन आफिस मे ना स्टाफ पे गुस्सा किया, ना किसी कर्मचारी से बहस की 100-50 गालियाँ तो रोज़ अनावश्यक निकल ही जाती थी मुँह से, पर उस दिन सारी गालियाँ "कोई बात नही ITS OK"मे तब्दील हो गयी..वो पहला दिन था जबक्रोध, घमंड, किसी की बुराई, लालच, अपशब्द, बेईमानी, झूठ ये सब मेरी दिनचर्या का हिस्सा नही बनेशाम को आफिस से निकला,कार मे बैठा तो बगल में बैठे ईश्वर को बोल ही दिया "प्रभु सीट बेल्ट लगालो, कुछ नियम तो आप भी निभाओ...उनके चेहरे पे संतोष भरी मुस्कान थीघर पर रात्रि भोजन जब परोसा गया तब शायद पहली बार मेरे मुख से निकला"प्रभु पहले आप लीजिये"और उन्होंने भी मुस्कुराते हुए निवाला मुँह मे रखाभोजन के बाद माँ बोली:- "पहली बार खाने में कोई कमी नही निकाली आज तूने, क्या बात है सूरज पश्चिम से निकला क्या आज"मैंने कहाँ "माँ आज सूर्योदय मन मे हुआ है..."रोज़ मैं महज खाना खाता था, आज प्रसाद ग्रहण किया है माँ, और प्रसाद मे कोई कमी नही होतीथोड़ी देर टहलने के बाद अपने कमरे मे गया, शांत मन और शांत दिमाग के साथ तकिये पे अपना सिर रखा तो उन्होंने प्यार से सिर पे हाथ फिराया और कहा:-"आज तुम्हे नींद के लिए किसी संगीत, किसी दवा और किसी किताब के सहारे की ज़रुरत नही है"*गहरी नींद गालों पे थपकी से उठा:**"कब तक सोएगा, जाग जा अब"**माँ की आवाज़ थी **सपना था शायद, हाँ सपना ही था**पर नीँद से जगा गया**अब समझ आ गया उसका इशारा**"तुम नज़र मे हो"*🙏🙏