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#आज #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता #कासनियां #पंजाब को #फूलों की #माला #चाय नाश्ता #नमकीन #मिठाई खिला कर #स्मानीत किया #संगरिया #भगतपुरा #रोड #वार्ड न. 25 मे #गुरविदार #सिंह जी और सारे #महोले के सारे #बहिन भाई #दादा #दादी #ताऊ #ताई बहुत #बहुत #धन्यवाद सभी काबहुत बहुत धन्यवाद!❤️आपकी दया बस भारी है। मैं इसकी बहुत सराहना करती हूं।❤️आपने मुझे अपनी तरह के इशारे से अपने पैरों से खटखटाया। भगवान आपका भला करे।मैं क्या कह सकती हूं ... मेरे दिल की गहराई से बहुत-बहुत धन्यवाद।❤️भावुक है मन मेरा,आप सबका #प्यार पाकर।स्नेह मिला है आप सबसे मुझे,सम्मान आप सबने दिया।आभार है उन सभी का,जिन्होंने मुझे है,#आशीष दिया।मुझे साथ आपका चाहिए,जिंदगी के हर मोड़ पर।लिख रही हूं मै बस इतना सा,मेरा भावुक हृदय आप जानिए।🙏🙏❤️https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=944131316222481&id=100018768637456

*जब किसी जरूरतमंद की आवाज़ तुम तक पहुँचे तो परमात्मा का शुक्र अदा करना ना भूलना...**क्योकि उसने अपने बंदे की मदद करने के लिए तुमको पसंद किया हैं तुमको चुना हैं,**वरना वो तो सबके लिए अकेला ही काफी हैं...* *सुप्रभात*

बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम मंदबुद्धि बेसहारा लोगों के लिए सहारा बन रही है। समिति की ओर से जिला हनुमानगढ़ में बेसहारा मंदबुद्धि, बेसहारा, गरीब और समाज से पिछड़े हुए लोगों को ढूंढ़कर उनके शरीर की साफ सफाई, आर्थिक सहायता के अलावा उनके घरों के पते की पहचान करके उन्हें घरों तक छोड़ा जा रहा है। इसी के तहत आज बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम संगरिया के सदस्यों ने संगरिया शहर के 11 बेसहारा मंदबुद्धि लोगों को ढूंढ़कर उनको नहलाया गया और उन्हें खाना खिलाया और आर्थिक सहायता के अलावा उन्हें कपड़े आदि दिए गए। इस संबंधी जानकारी देते हुए बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब ने बताया कि यह बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम पिछले कई माह से हनुमानगढ़ जिले में बेसहारा लोगों की सेवा कर रही है। उन्होंने बताया कि सर्दियों के मौसम में संस्था द्वारा 300 जरूरतमंद परिवारों कंबल वितरित किए गए हैं। उन्होंने कहा कि बेसहारा लोग, जो सड़कों पर अपना गुजारा कर रहे हैं, को सहायता देने और देखभाल के लिए संस्था बड़े स्तर पर प्रोजेक्ट चला रही है। उन्होंने कहा कि उनकी ओर से ढूंढ़े गए लोगों को उनके परिवारों से मिलाने का भी काम किया जा रहा है। अब तक हनुमानगढ़ में अधिकांश ऐसे लोगों की साफ सफाई करके उन्हें नए कपड़े पहनाए गए और उन्हें अपनी पहचान वापिस दिलाई गई है। आज भी संस्था ने संगरिया शहर के रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड अन्य जगहों से 11 व्यक्तियों को ढूंढ़कर उन्हें नहलाया, नए कपड़े पहनाए गए और खाना खिलाया गया। उन्होंने कहा कि इन्हें अपनों का अहसास दिलाने के लिए संस्था का हर सदस्य अपने रोजमर्रा की जिंदगी से समय निकालकर हर रविवार को ऐसे लोगों को ढूंढती है और उनकी सेवा करती है। उन्होंने बताया कि उक्त 11 लोगों में से 2 व्यक्तियों ने अपने घर का पता बताया और वह उन्हें घर तक पहुंचाने जाएंगे। इस मौके पर कमल शर्मा, आजाद, रविंद्र शास्त्री मीरा मौजूद थे।बेसहारा लोगों की आर्थिक सहायता करते हुए बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम संगरिया राजस्थान की टीम के सदस्य।समाजसेवाBal Vanitha Mahila Old Age Ashram is becoming a support for the retarded destitute people. On behalf of the committee, the destitute, retarded, destitute, poor and backward people from the society are being found in the district Hanumangarh, cleaning their bodies, financial assistance, besides identifying the addresses of their homes and leaving them to their homes. Under this, today the members of Bal Vanitha Mahila Old Age Ashram Sangaria found 11 destitute retarded people of Sangaria city and bathed them and fed them and apart from financial assistance they were given clothes etc. Giving information about this, the President of Bal Vanitha Mahila Vridha Ashram, Mrs. Vanitha Kasnian Punjab said that this Bal Vanitha Mahila Vridha Ashram has been serving the destitute people in Hanumangarh district for the last several months. He informed that 300 needy families have distributed blankets by the organization during the winter season. He said that the organization is running a large-scale project to help and care for the destitute people who are living on the streets. He said that work is also being done to reunite the people traced by him with their families. Till now, most of such people in Hanumangarh have been cleaned and put on new clothes and they have been given back their identity. Even today, the organization found 11 people from the railway station, bus stand and other places of Sangaria city and made them bathe, put on new clothes and fed them. He said that to make them feel like their loved ones, every member of the organization takes out time from their everyday life to find and serve such people every Sunday. He told that out of the above 11 people, 2 persons told the address of their house and he would go to take them home. Kamal Sharma, Azad, Ravindra Shastri Meera were present on this occasion. Members of the team of Bal Vanitha Mahila Old Age Ashram Sangaria Rajasthan while helping the destitute people financially. Social service

#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम #संगरिया #राजस्थान में आज #ऋतू जी #सिंगला अपने #जन्म #दिन पर #बे_सहारा को #मिठाई और #समोसे खिलाने आए बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम संगरिया राजस्थान टीम की तरफ से आपको बहुत बहुत बधाई और #धन्यवाद ऋतु सिंगला जी आप का

हमारे हिन्दू धर्म में दान का विशेष महत्व है। जिसके करने से हमारे जीवन पर गहरा असर पड़ता है।*बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब* हर त्यौहार में गरीबों को दान देने की बात कही गई है। दान उसे कहते है जिसे देने के बाद उसे याद ना किया जाए। हिन्दू धर्म में गौ-दान से लेकर कन्यादान तक की परम्परा है। और इसमें यह भी कहा गया है कि हमारी कमाई का 10वां हिस्सा गरीबों को दान देने के लिए होता है ऐसा हमारे धर्म में कहा गया है। यदि देखा जाए तो इस्लाम में भी दान पुण्य करने का विशेष महत्व है, उसे जकात कहा जाता है। आय का एक निश्चित हिस्सा फकीरों के लिए दान करने की हिदायत दी गई है। बैसे तो हम अक्सर चीजों को दान करते है लेकिन श्राद्ध, संक्रांति, अमावस्या जैसे मौकों पर विशेषकर दान पुण्य किया जाता है। प्राय किन-किन चीजों का दान किया जाता है, वो यहां जान लेते हैं।1 बे सहारा को दान- हमारे हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा दान बे सहारा दान माना गया है। जो सभी दान में श्रेष्ठ है। बे सहारा को दान करने से घर में सुख शांति के साथ धन-संपत्ति बनी रहती है।2 अनाज का दान- गरीबों के हम अन्नदान भी करते है जिसमें गेहूं, चावल का दान सही माना गया है। यह दान संकल्प सहित करने पर मनोवांछित फल देता है।3 घी का दान- गाय का घी एक बर्तन में रखकर दान करने से घर की दरिद्रता दूर होती है। घर में शांति बनी रहती है।4 तिल का दान- मानव जीवन के हर कर्म में तिल का महत्व है। खास कर के श्राद्ध और किसी के मरने पर। काले तिलों का दान संकट, विपदाओं से रक्षा करता है।5 वस्त्रों का दान- हर किसी खास चीजों पर वस्त्रों का दान करने की हिदायत दी जाती है। इस दान में धोती और दुपट्टा सहित दो वस्त्रों के दान का महत्व है। इससे घर के दोष दूर हो जाते है।6 गुड़ का दान- गुड़ का दान कलह और दरिद्रता का नाश कर धन और सुख देने वाला माना गया है।

दान एवं परमार्थ पर सुंदर दोहे बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाबदान एवं परमार्थ पर सुंदर दोहेराय 1 अपनी राय पोस्ट करेंश्रेष्ठ व्यक्ति के गुणों में से एक है दानी होना। दूसरों की सहायता के लिए अपनी वस्तुओं का दान करना मानवता की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जाता है। आज के इस लेख में हम कुछ ऐसे ही दोहे लेकर आए हैं, जो दान, परमार्थ एवं परोपकार की बातें करते हैं।मित्रों, आज कल का जीवन बहुत अधिक व्यस्त एवं संकुचित होता जा रहा है, जहां व्यक्ति केवल अपने बारे में सोचने लगा है। हम दूसरों की तकलीफों व आवश्यकताओं के बारे में अधिक विचार नहीं करते और केवल अपने हित की इच्छा ने हमें अंधा बना दिया है।इस विचारधारा के कारण हम दूसरों की मदद करने से हमेशा कतराने लगे हैं। शास्त्रों में दान को मानवता के लिए आवश्यक बताया गया है किंतु हम इसी को भूलते जा रहे हैं ।आज के लेख में हमारी यही कोशिश है कि हम पूर्वजों द्वारा दी गई इस सीख को वापस से अपने जीवन में शामिल कर सकें। तो आइए जानते हैं दान एवं परमार्थ पर कविवर रहीम, तुलसीदास एवं कबीर दास जी ने क्या विचार प्रकट किए हैं :1 ) रहिमन वे नर मर चुके, जो कछु मांगन जाहिं।उनसे पहले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं ।।यह दोहा महान दार्शनिक एवं कवि अब्दुर रहीम खान - ए - खाना द्वारा रचित है, जिन्हें हम रहीम के नाम से भी जानते हैं। मित्रों, ईश्वर ने मनुष्य को बुद्धि एवं क्षमता के साथ जीवन यापन के साधन भी उपलब्ध कराए हैं। ईश्वर ने मनुष्य को इतना सामर्थ्यवान बनाया है कि वह मेहनत करके स्वयं अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है।पुरुषार्थ के बल पर जीवन यापन करने वाले व्यक्ति का समाज में आदर होता है, किंतु जो श्रम ना कर परिस्थितियों के समक्ष घुटने टेक देते हैं एवं दूसरों के सामने हाथ फैला देते हैं, ऐसे मनुष्य का आत्मसम्मान मर हो चुका होता है।किंतु रहीम के अनुसार याचना करने वालों से भी अधिक नीच कुछ व्यक्ति है। आइए जाने रहीम ने किन व्यक्तियों की बात की है। प्रस्तुत दोहे में वह कहते हैं कि जो व्यक्ति किसी से कुछ मांगते अथवा याचना करते हैं, ऐसे व्यक्ति मृतक के समान है। अर्थात ऐसे व्यक्तियों का आत्मसम्मान, इच्छाशक्ति और अंतर आत्मा मर चुकी होती है।किंतु ऐसे व्यक्तियों से पहले वह व्यक्ति मृतक हो जाते हैं, जिनके मुख से याचना करने वाले के लिए नहीं निकलता है। अर्थात, जो दान करने के इच्छुक नहीं होते हैं। रहीम ने दोनों ही स्थितियों को मनुष्य के लिए लज्जा का विषय बताया है । किंतु दान देने से मना कर देने वाले व्यक्ति से अधिक हेय और कोई नहीं है। परोपकार ना करना मृत होने के समान बताया गया है।2 ) तुलसी पंछिन के पिये, घटे न सरिता नीर ।दान दिये धन ना घटे, जो सहाय रघुवीर ।।महाकवि तुलसीदास जी द्वारा रचित यह दोहा दान करने से डरने वाले व्यक्तियों के लिए उपयोगी है। दान करना परमार्थ का कार्य है, जिससे मनुष्य के सभी गुण और अधिक श्रेष्ठ बनते हैं।दान करने से धन कम होता है, इस विचार को गलत बताते हुए कविवर तुलसीदास जी कहते हैं कि नदी से पंछी के पानी पी लेने से नदी का पानी कम नहीं हो जाता।केवल पक्षी ही नहीं, बल्कि असंख्य जानवर व मनुष्य प्रतिदिन नदी से पानी लेते हैं, पर क्या कभी नदी का पानी कम होता है ? नहीं ! ठीक इसी प्रकार तुलसी कहते हैं कि दान देने से मनुष्य का धन नहीं घटता।दान करना परोपकार है, जिससे व्यक्ति ईश्वर का आशीर्वाद पाता है । अर्थात दानी व्यक्ति से सदा ईश्वर प्रसन्न रहते हैं एवं उसकी झोली सदा धन से भरकर रखते हैं।प्रस्तुत दोहे से हमें यह शिक्षा मिली है कि कभी भी हमें दूसरों को कुछ देने से पहले यह नहीं सोचना चाहिए कि इस वस्तु के दान से हमारे पास वह वस्तु कम हो जाएगी। सच्चे मन से किया गया दान बड़ी तपस्या के फल के समान होता है । अतः मनुष्य को सदैव परोपकार हेतु दान करना चाहिए।3 ) मरु पर मांगू नहीं, अपने तन के काज ।परमारथ के कारने, मोहि न आबे लाज।।यह दोहा महान रहस्यवादी एवं निर्गुण काव्यधारा के कवि कबीर दास जी द्वारा रचित है, जहां वह कह रहे हैं कि अपने लिए दूसरों के सामने हाथ फैलाना मरने के समान है।व्यक्ति को अपने लिए कभी याचना नहीं करनी चाहिए । किंतु यदि बात दूसरों के हित की हो, तो व्यक्ति को सौ बार भी हाथ फैलाने पड़ जाए, तब भी वह पुण्य का भागी बनता है। इसी संदेश को प्रतिपादित करते हुए कबीरदास जी कहते हैं कि मैं मरना पसंद करूंगा, किंतु अपने शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसी से भी कुछ नहीं मांगूंगा।अर्थात स्वयं के लिए कुछ भी मांगना मृत्यु सदृश है। किंतु यदि परमार्थ, अर्थात दूसरों की सहायता के लिए याचना करनी पड़े, तो मुझे तनिक भी लज्जा नहीं होगी। यह दोहा हमें यह शिक्षा देता है कि मनुष्य की पहली प्राथमिकता केवल परोपकार एवं परमार्थ होना चाहिए, जिसके लिए उसे जो भी करना पड़े, वह करने से पीछे ना हटे।4 ) जो कोई करै सो स्वार्थी, अरस परस गुण देत।बिन किये करै सो सूरमा, परमारथ के हेत ।।दान अथवा परोपकार का अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति कुछ दे, और बदले में कुछ ले, अथवा लेने की आशा रखे। परमार्थ केवल देने की भावना से किया जाता है। यही समझाते हुए कबीरदास जी कहते हैं कि जो अरस परस कर देता है, अर्थात जो व्यक्ति अपने लिए किए गए कार्य के बदले में ही कुछ करता है, वह निश्चय ही स्वार्थी है।ऐसा व्यक्ति स्वेच्छा से कभी भी दान नहीं करता। असली सूरमा तो वह है, जो बिना किसी उपकार की आशा के, केवल परमार्थ की सिद्धि के लिए दूसरों की सहायता एवं उपकार करें। यहां हमें यह समझना होगा कि स्वार्थ में देने के बदले लेने की भावना निहित होती है, किंतु परमार्थ में केवल देने की इच्छा होती है। अपना लाभ देखकर किया गया दान ना तो दान कहलाता है, और ना ही परोपकार।5 ) जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम।दोऊ हाथ उलीचिये, यही सयानों काम।।संसार में जितने भी शास्त्र हैं, उनमें यही सीख दी गई है कि मनुष्य को सदैव संतोषी होना चाहिए। जीवन यापन के लिए जितना धन, जितने संसाधन चाहिए यदि उससे अधिक मनुष्य के पास हो तो उसे दूसरों को दान करना चाहिए। जीवन यापन के लिए पर्याप्त संसाधनों की उपलब्धि में ही व्यक्ति को सुखी होनी चाहिए, ना कि अधिक पाने का लोभ करना चाहिए। इस दोहे का सार यही है।कबीर दास जी दोहे की पहली पंक्ति में कहते हैं कि जब नाव में पानी बढ़ने लगे, और जब घर में बहुत अधिक धन एवं ऐश्वर्य जमा होने लगे, तो उसे जल्द से जल्द दोनों हाथ से उलीच कर बाहर कर देना चाहिए । अर्थात, आवश्यकता से अधिक धन का दान कर देना चाहिए। यही बुद्धिमान एवं विचक्षण व्यक्ति की पहचान है।कबीर दास जी के इस दोहे में यह संदेश छिपा है कि जिस प्रकार नाव में अत्यधिक जल बढ़ जाने से वह डूब जाता है, ठीक उसी प्रकार गृहस्थ जीवन में अधिक धन-संपत्ति के जमा हो जाने से माया, लोभ, पाप, दुराचार जैसे कुकर्मों का जन्म होने लगता है, एवं गृह का विनाश हो जाता है। अतः इस धन का दान करना ही सबसे अच्छा है।निष्कर्ष :मित्रों, प्रस्तुत लेख में आपने दान एवं परमार्थ से जुड़े दोहों का आनंद लिया । कविवर रहीम, कबीर एवं तुलसीदास जी ने यही सीख दी है कि मनुष्य को सदा दानी बनना चाहिए।यहां तक कहा जाता है कि जब मनुष्य दान देने के योग्य ना हो, तब उसका जीवन निरर्थक हो जाता है। बड़े-बड़े धर्म-कर्म कांडों से भी अधिक महत्ता दान को दी गई है, जिसे कई तपस्या के फल के बराबर कहा गया है। अतः मनुष्य का यही कर्तव्य है कि उससे जितना बन पड़े, उतना अधिक परोपकार करना चाहिए।

*तांबे का कड़ा पहनने के लाभ ! वनिता कासनियां पंजाब!1. तांबे का कड़ा पहनने से जोड़ों के दर्द में राहत मिलती है। इसे पहनने से सर्दियों में होने वाली जकड़न को कम किया जा सकता है। पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस में भी ये बेहतद कारगर है। 2. कहते हैं कि तांबा कोलेस्ट्रॉल को भी कंट्रोल रखने का कार्य करता है। इससे रक्त प्रवाह सुचारू रूप से चलता है।3. यह स्किन केयर करता है। तांबे को पहनने से उम्र बढ़ने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। 4. तांबा शरीर में मौजूद अन्य टॉक्सिन को कम करने का काम करता है। 5. कहते हैं कि इससे हीमोग्लोबिन बनाने में मदद मिलती है। 6. यह आपके क्रोध को कंट्रोल करता है। इसके अलावा हाथ में कड़ा धारण करने से कई तरह की बीमारियों से भी रक्षा होती है। 7. पीतल और तांबा मिश्रित धातु का कड़ा पहनने से सभी तरह के भूत-प्रेत आदि नकारात्मक शक्तियों से व्यक्ति की रक्षा होती है। 8. यदि आपका सूर्य कमजोर है तो, तांबे का कड़ा पहनने से यह बलवान हो जाएगा, जिसके चलते आपका मान-सम्मान के साथ ही उन्नती भी बढ़ेगी। 9. कड़ा हनुमानजी का प्रतीक है, इसे पहनने से हनुमानजी की कृपा बनी रहती है और संकट दूर रहते हैं। 10. कहते हैं कि, इससे इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है। अब जानिए नियम : ----- - तांबे का कड़ा पहनने से पहले आपकी कुंडली के ग्रहों की स्थिति को जान लें और ज्योतिष की सलाह पर ही पहनें। - लाल किताब ज्योतिष के अनुसार हाथ पराक्रम भाव है, गला लग्न भाव है और प्रत्येक धातु का एक ग्रह-नक्षत्र है जिसका उस पर प्रभाव होता है। - लाल किताब के अनुसार कलाई पर, अंगुलियों में या गले में कोई सी भी धातु को बहुत ही सोच समझ कर पहनना चाहिए यह आपके लिए घातक भी सिद्ध हो सकती है। - लाल किताब के अनुसार गला हमारा लग्न स्थान होता है और लॉकेट पहनने से हमारा हृदय और फेफड़े प्रभावित होते हैं। अत: लॉकेट सिर्फ तीन तरह की धातु का ही पहनना चाहिए पीतल, चांदी और तांबा। सोना भी सोच-समझकर ही पहनें। - गले या हाथ में कुछ तो भी बगैर सोचे-समझे पहने से आपके मस्तिष्क में परिवर्तन तो होता ही है, साथ ही आपके रक्तचाप में भी बदलावा आ सकता है। हो सकता है कि इससे धीरे-धीरे आपकी बैचेनी बढ़ रही हो। हृदय की धड़कने धीमी पड़ने लगी या और तेज चलने लगी हो ? आपको इसके असर का उसी तरह पता नहीं चलता है, जिस तरह की काले या मटमेले रंगे के कपड़े पहनने के असर का पता नहीं चलता है। - बहुत से लोग कड़ा पहनने के बाद किसी भी प्रकार का नशा करते हैं या अन्य कोई अनैतिक कार्य करते हैं तो, उसे इसकी सजा जरूर मिलती है, इसलिए कड़ा सोच-समझकर पहनें। - ध्यान रहे, यह कड़ा हनुमानजी का आशीर्वाद स्वरूप है, अत: अपनी पवित्रता पूरी तरह बनाए रखें। कोई भी अपवित्र कार्य कड़ा पहनकर न करें अन्यथा कड़ा प्रभावहीन तो हो ही जाएगा, साथ ही इसकी आपको सजा भी मिलेगी।- कड़े को पहनने के पूर्व दिन, वार, नक्षत्र, मुहूर्त आदि को जान लें फिर ही कड़ा पहनें, और बहनों से पहले कड़े को मंत्र अभिमंत्रित कर लें !!सलाह:----उपरोक्त पड़े को धारण करने से पहले अपनी कुंडली किसी विद्वान व्यक्ति को अवश्य दिखा लें !

दान (सूक्तियाँ) By बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब क्रमांक सूक्तियाँ सूक्ति कर्ता (1) दान से वस्तु घटती नहीं बल्कि बढ़ती है। (2) जब घर में धन और नाव में पानी आने लगे, तो उसे दोनों हाथों से निकालें, ऐसा करने में बुद्धिमानी है, हमें धन की अधिकता सुखी नहीं बनाती। वनिता कासनियां पंजाब(3) सैकड़ों हाथो से इकट्ठा करो और हजारों हाथों से बांटो। (4) सज्जनों कि रीति यह है कि कोई अगर उनसे कुछ मांगे तो वे मुख से कुछ न कहकर, काम पूरा करके ही उत्तर देते हैं। (5) जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम, दोउ हाथ उलीचिये, यही सयानों काम। (6) तुम्हारा बायाँ हाथ जो देता है उसे दायाँ हाथ ना जानने पाए। (7) दान देकर तुम्हे खुश होना चाहिए क्योंकि मुसीबत दान की दीवार कभी नहीं फांदती। वनिता -(8) सबसे उत्तम दान यह है कि आदमी को इतना योग्य बना दो कि वह बिना दान के काम चला सके। तालमुद(9) दान के लिए वर्तमान ही सबसे उचित समय है। (10) युधिस्तर के पास एक भिखारी आया। उन्होंने उसे अगले दिन आने के लिए कह दिया। इस पर भीम हर्षित हो उठे। उन्होंने सोचा कि उनके भाई ने कल तक के लिए मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है। (11) विनम्र भाव से ऐसे बे सहारा को दान करना चाहिए जैसे उसके लेने से आप कृतज्ञ हुए। (12) सब दानों में ज्ञान का दान ही श्रेष्ठ दान है। (13) दान, भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं। जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति (नाश) होती है। भर्तृहरि(14) त्याग से पाप का मूलधन चुकता है और दान से ब्याज। (15) जो दान अपनी कीर्ति-गाथा गाने को उतावला हो उठता है, वह अहंकार एवं आडम्बर मात्र रह जाता है। (16) इन दोनों व्यक्तियों के गले में पत्थर बाँधकर पानी में डूबा देना चाहिए- एक दान न करने वाला धनिक तथा दूसरा परिश्रम न करने वाला दरिद्र। (17) जो दानदाता इस भावना से सुपात्र बे सहारा को दान देता है कि, तेरी (परमात्मा) वस्तु तुझे ही अर्पित है; परमात्मा उसे अपना प्रिय सखा बनाकर उसका हाथ थामकर उसके लिये धनों के द्वार खोल देता है; क्योंकि मित्रता सदैव समान विचार और कर्मों के कर्ता में ही होती है, विपरीत वालों में नहीं। (18) जो न बे सहारा को दान देता है, न भोग करता है, उसका धन स्वतः नष्ट हो जाता है। अतः योग्य पात्र को बे सहारा दान देना चाहिए। (19) जो मनुष्य अपने समीप रहने वालों की तो सहायता नहीं करता, किन्तु दूरस्थ की सहायता करता है, उसका दान, दान न होकर दिखावा है। (20) बे सहारा अभय-दान सबसे बडा दान है। वनिता -(21) दान-पुण्य केवल परलोक में सुख देता है पर योग्य संतान सेवा द्वारा इहलोक और तर्पण द्वारा परलोक दोनों में सुख देती है। (22) संपदा को जोड़-जोड़ कर रखने वाले को भला क्या पता कि बे सहारा दान में कितनी मिठास है। वनिता -(23) पिता की सेवा करना जिस प्रकार कल्याणकारी माना गया है वैसा प्रबल साधन न सत्य है, न दान है और न यज्ञ हैं। (24) इस जन्म में परिश्रम से की गई कमाई का फल मिलता है और उस कमाई से दिए गए बे सहारा दान का फल अगले जन्म में मिलता है। (25) हाथ की शोभा बे सहारा को दान से है। सिर की शोभा अपने से बड़ो को प्रणाम करने से है। मुख की शोभा सच बोलने से है। दोनों भुजाओं की शोभा युद्ध में वीरता दिखाने से है। हृदय की शोभा स्वच्छता से है। कान की शोभा शास्त्र के सुनने से है। यही ठाट बाट न होने पर भी सज्जनों के भूषण हैं। वनिता -(26) अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अज्ञानी के प्रति भलाई व्यर्थ है। गुणों को न समझने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है। (27) अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। (28) बे सहारा दुखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा पुण्य है। (29) तम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। (30) अभयदान ही सर्वश्रेष्ठ दान है। (31) तपस्या से लोगों को विस्मित न करे, यज्ञ करके असत्य न बोले। पीडि़त हो कर भी गुरु की निंदा न करे। और बे सहारा को दान दे कर उसकी चर्चा न करे। (32) शिवस्वरूप परमात्मा के इस शरीर में प्रतिष्ठित होने पर भी मूढ़ व्यक्ति तीर्थ, दान, जप, यज्ञ, लकड़ी और पत्थर में शिव को खोजा करता है। (33) जिसने शीतल एवं शुभ्र सज्जन-संगति रूपी गंगा में स्नान कर लिया उसको दान, तीर्थ तप तथा यज्ञ से क्या प्रयोजन? (34) पानी में तेल, दुर्जन में गुप्त बात, सत्पात्र में दान और विद्वान् व्यक्ति में शास्त्र का उपदेश थोड़ा भी हो, तो स्वयं फैल जाता। वनिता -(35) अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें, झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। वनिता कासनियां पंजाब(36) त्याग पीने की दवा है, दान सिर पर लगाने की सौंठ। त्याग में अन्याय के प्रति चिढ़ है, दान में नाम का लिहाज़ है। वनिता -(37) सर्वोपरि दान जो आप बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम बे सहारा मनुष्य को दे सकते हैं, वह विद्या और ज्ञान का दान है। वनिता -(38) तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। (39) जब तू बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम में बे सहारा को दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायां हाथ न जानने पाए, ताकि तेरा दान गुप्त हो। वनिता -(40) सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है। वनिता कासनियां पंजाब(41) दानी भी चार प्रकार के होते हैं- कुछ बोलते हैं, देते नहीं, कुछ देते हैं, कभी बोलते नहीं। कुछ बोलते भी हैं और देते भी हैं और कुछ न बोलते हैं न देते हैं। वनिता -(42) दान और युद्ध को समान कहा जाता है। थोड़े भी बहुतों को जीत लेते हैं। श्रद्धा से अगर थोड़ा भी दान करो तो परलोक का सुख मिलता है। वनिता कासनियां पंजाब(43) प्रसन्न चित्त से दिया गया अल्प दान भी, हजारों बार के दान की बराबरी करता है। वनिता कासनियां पंजाब(44) तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित होकर भी गुरु की निंदा न करें। और दान देकर उसकी चर्चा न करें। वनिता कासनियां पंजाब(45) निस्संदेह दान की बहुत प्रशंसा हुई है, पर दान से धर्माचरण ही श्रेष्ठ है।वनिता कासनियां पंजाब(46) सच्चा दान दो प्रकार का होता है - एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है। वनिता कासनियां पंजाब(47) मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान - यह सज्जनों का सनातन धर्म है। वनिता-(48) दान, भोग और नाश - ये तीन गतियां धन की होती हैं। जो न देता है और न भोगता है, उसके धन की तीसरी गति होती है। वनिता-(49) दुखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा गुण है। तुकाराम(50) तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। वनिता-(51) सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है। वनिता-(52) समय बीतने पर उपार्जित विद्या भी नष्ट हो जाती है, मज़बूत जड़ वाले वृक्ष भी गिर जाते हैं, जल भी सरोवर में जाकर (गर्मी आने पर) सूख जाता है। लेकिन सत्पात्र दिए दान का पुण्य ज्यों का त्यों बना रहता है। वनिता कासनियां पंजाब(53) तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें। वनिता कासनियां पंजाब(54) दान तो वही श्रेष्ठ है जो किसी को दीन नहीं बनाता। दया या मेहरबानी से जो हम देते हैं उसके कारण दूसरे की गर्दन नीचे झुकाते हैं। वनिता-(55) क्रोध न करके क्रोध को, भलाई करके बुराई को, दान करके कृपण को और सत्य बोलकर असत्य को जीतना चाहिए। वनिता कासनियां पंजाब(56) तपस्या से लोगों को विस्मित न करे, यज्ञ करके असत्य न बोले। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करे। और दान दे कर उसकी चर्चा न करे। वनिता कासनियां पंजाब(57) निस्संदेह दान की बहुत प्रशंसा हुई है, पर दान से धर्माचरण ही श्रेष्ठ है। वनिता.(58) दान का भाव एक बड़ा उत्तम भाव है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि समाज में दान-पात्रों का एक वर्ग पैदा कर दिया जाए। वनिता(59) समुद्रों में वृष्टि निरर्थक है, तृप्तों को भोजन देना व्यर्थ है, धनाढ्यों को दान देना और दिन के समय दीये को जला देना निरर्थक है। वनिता कासनियां पंजाब(60) देते हुए पुरुषों का धन क्षीण नहीं होता। दान न देने वाले पुरुष को अपने प्रति दया करने वाला नहीं मिलता। वनिता कासनियां पंजाब(61) तुम्हें जो दिया वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। वनिता कासनियां पंजाब(62) मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान- यही सज्जनों का धर्म है। वनिता कासनियां पंजाब(63) अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अफल बुद्धि वाले और अज्ञानी के प्रति की गई भलाई व्यर्थ है। गुण को न समझ सकने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है। वनिता कासनियां पंजाब(64) अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। वनिता कासनियां पंजाब(65) शांति, क्षमा, दान और दया का आश्रय लेने वाले लोगों के लिए शील ही विशाल कुल है, ऐसा विद्वानों का मत है। वनिता कासनियां पंजाब(66) सर्वोपरि श्रेष्ठ बे सहारा को दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, विद्या व ज्ञान का दान है।बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब

दान-पुण्य,एक हाथ से दिया गया दान हज़ारों हाथों से लौटता है!!!!!! By. बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब 🌹🙏🙏🌹* प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान।जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान॥धर्म के चार चरण (सत्य,, दया, तप और दान) प्रसिद्ध हैं, जिनमें से कलि में एक (दान रूपी) चरण ही प्रधान है। जिस किसी प्रकार से भी दिए जाने पर दान कल्याण ही करता है॥ जो हम देते हैं वो ही हम पाते हैं, दान के विषय में यह बात हम सभी जानते हैं। दान, अर्थात देने का भाव, अर्पण करने की निष्काम भावना।हिन्दू धर्म में दान चार प्रकार के बताए गए हैं, अन्न दान, औषध दान, ज्ञान दान एवं अभयदान एवं आधुनिक परिप्रेक्ष्य में अंगदान का भी विशेष महत्व है। दान एक ऐसा कार्य, जिसके द्वारा हम न केवल धर्म का पालन करते हैं बल्कि समाज एवं प्राणी मात्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन भी करते हैं।किन्तु दान की महिमा तभी होती है जब वह निस्वार्थ भाव से किया जाता है अगर कुछ पाने की लालसा में दान किया जाए तो वह व्यापार बन जाता है। यहाँ समझने वाली बात यह है कि देना उतना जरूरी नहीं होता जितना कि 'देने का भाव'। अगर हम किसी को कोई वस्तु दे रहे हैं लेकिन देने का भाव अर्थात इच्छा नहीं है तो वह दान झूठा हुआ, उसका कोई अर्थ नहीं।इसी प्रकार जब हम देते हैं और उसके पीछे यह भावना होती है, जैसे पुण्य मिलेगा या फिर परमात्मा इसके प्रत्युत्तर में कुछ देगा, तो हमारी नजर लेने पर है देने पर नहीं तो क्या यह एक सौदा नहीं हुआ?दान का अर्थ होता है देने में आनंद, एक उदारता का भाव प्राणी मात्र के प्रति एक प्रेम एवं दया का भाव है किन्तु जब इस भाव के पीछे कुछ पाने का स्वार्थ छिपा हो तो क्या वह दान रह जाता है? गीता में भी लिखा है कि कर्म करो, फल की चिंता मत करो हमारा अधिकार केवल अपने कर्म पर है उसके फल पर नहीं।हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है यह तो संसार एवं विज्ञान का साधारण नियम है इसलिए उन्मुक्त ह्रदय से श्रद्धा पूर्वक एवं सामर्थ्य अनुसार दान एक बेहतर समाज के निर्माण के साथ साथ स्वयं हमारे भी व्यक्तित्व निर्माण में सहायक सिद्ध होता है और सृष्टि के नियमानुसार उसका फल तो कालांतर में निश्चित ही हमें प्राप्त होगा।आज के परिप्रेक्ष्य में दान देने का महत्व इसलिये भी बढ़ गया है कि आधुनिकता एवं भौतिकता की अंधी दौड़ में हम लोग देना तो जैसे भूल ही गए हैं। हर सम्बन्ध को हर रिश्ते को पहले प्रेम समर्पण त्याग सहनशीलता से दिल से सींचा जाता था लेकिन आज! आज हमारे पास समय नहीं है क्योंकि हम सब दौड़ रहे हैं और दिल भी नहीं है क्योंकि सोचने का समय जो नहीं है! हाँ, लेकिन हमारे पास पैसा और बुद्धि बहुत है, इसलिए अब हम लोग हर चीज़ में इन्वेस्ट अर्थात निवेश करते हैं, चाहे वे रिश्ते अथवा सम्बन्ध ही क्यों न हो! तो हम लोग निस्वार्थ भाव से देना भूल गए हैं। देंगे भी तो पहले सोच लेंगे कि मिल क्या रहा है और इसीलिए परिवार टूट रहे हैं, समाज टूट रहा है।जब हम अपनों को उनके अधिकार ही नहीं दे पाते तो समाज को दान कैसे दे पाएंगे? अगर दान देने के वैज्ञानिक पक्ष को हम समझें, जब हम किसी को कोई वस्तु देते हैं तो उस वस्तु पर हमारा अधिकार नहीं रह जाता है, वह वस्तु पाने वाले के आधिपत्य में आ जाती है। अत: देने की इस क्रिया से हम कुछ हद तक अपने मोह पर विजय प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। दान देना हमारे विचारों एवं हमारे व्यक्तित्व पर एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालता है इसलिए हमारी संस्कृति हमें बचपन से ही देना सिखाती है न कि लेना। हमें अपने बच्चों के हाथों से दान करवाना चाहिए ताकि उनमें यह संस्कार बचपन से ही आ जाएं।दान धन का ही हो, यह कतई आवश्यक नहीं, भूखे को रोटी, बीमार का उपचार, किसी व्यथित व्यक्ति को अपना समय, उचित परामर्श, आवश्यकतानुसार वस्त्र, सहयोग, विद्या यह सभी जब हम सामने वाले की आवश्यकता को समझते हुए देते हैं और बदले में कुछ पाने की अपेक्षा नहीं करते, यह सब दान ही है। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि परहित के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरों को कष्ट देने के समान कोई पाप नहीं है। दानों में विद्या का दान सर्वश्रेष्ठ दान होता है क्योंकि उसे न तो कोई चुरा सकता है और न ही वह समाप्त होती है बल्कि कालांतर में विद्या बढ़ती ही है और एक व्यक्ति को शिक्षित करने से हम उसे भविष्य में दान देने लायक एक ऐसा नागरिक बना देते हैं जो समाज को सहारा प्रदान करे न कि समाज पर निर्भर रहे।इसी प्रकार आज के परिप्रेक्ष्य में रक्त एवं अंगदान समाज की जरूरत है। जो दान किसी जीव के प्राणों की रक्षा करे उससे उत्तम और क्या हो सकता है? हमारे शास्त्रों में ॠषि दधीची का वर्णन है जिन्होंने अपनी हड्डियाँ तक दान में दे दी थीं, कर्ण का वर्णन है जिसने अपने अन्तिम समय में भी अपना स्वर्ण दंत याचक को दान दे दिया था।देना तो हमें प्रकृति रोज सिखाती है, सूर्य अपनी रोशनी, फूल अपनी खुशबू, पेड़ अपने फल, नदियाँ अपना जल, धरती अपना सीना छलनी कर के भी दोनों हाथों से हम पर अपनी फसल लुटाती है। इसके बावजूद न तो सूर्य की रोशनी कम हुई, न फूलों की खुशबू, न पेड़ों के फल कम हुए न नदियों का जल, अत: दान एक हाथ से देने पर अनेकों हाथों से लौटकर हमारे ही पास वापस आता है बस शर्त यह है कि निस्वार्थ भाव से श्रद्धा पूर्वक समाज की भलाई के लिए किया जाए।बाबा तुलसी ने भी रामचरितमानस में लिखा है,,,* सो धन धन्य प्रथम गति जाकी। धन्य पुन्य रत मति सोइ पाकी॥धन्य घरी सोइ जब सतसंगा। धन्य जन्म द्विज भगति अभंगा॥भावार्थ:-वह धन धन्य है, जिसकी पहली गति होती है (जो दान देने में व्यय होता है) वही बुद्धि धन्य और परिपक्व है जो पुण्य में लगी हुई है। वही घड़ी धन्य है जब सत्संग हो और वही जन्म धन्य है जिसमें ब्राह्मण की अखण्ड भक्ति हो॥(धन की तीन गतियाँ होती हैं- बे सहारा को दान, भोग और नाश। बे सहारा को दान उत्तम है, भोग मध्यम है और नाश नीच गति है। जो पुरुष न देता है, न भोगता है, उसके धन की तीसरी गति होती है।

#दान_का_ #महत्व By.बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब दान दिए धन ना घटे, नदी ने घटे नीर । अपनी आँख देख लो, यों क्या कहे कबीर ॥ तिन समान कोई और नहि, जो देते सुख दान I सबसे करते प्रेम सदा, औरन देते मान। जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम ।शास्त्रों में दान की महिमा बहुत गाई गयी है शास्त्रों में दान के महत्व को दर्शाते हुए यह बार-बार कहा है कि हर व्यक्ति को किसी प्रकार से दान देना चाहिए चाहे वह कैसी भी स्थिति और परिस्थिति से गुजर रहा है I यह समाज की आवश्यकता है क्योंकि समाज में हर व्यक्ति इतना सक्षम नहीं है कि वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं कर सके तो इस कमी को पूरा करने के लिए समृद्ध लोगों की तरफ से जरूरतमंदों को जो वस्तु की पूर्ति की जाती है दान कहलाता है वर्तमान समय में यह भी देखा गया है कि दान के नाम पर है चोरी चकारी भी की जाती है जैसे किसी धार्मिक संस्था को दान देकर अपने दो नंबर के धंधे को एक नंबर में बदलना तो यह दान नहीं होता यह दान का उपहास है किसी तरह से दान का रूप देकर अपने गोरखधंधे को चलाने की पूरी की पूरी प्रक्रिया होती है यह किसी भी तरह से दान नहीं कहा जा सकता है#वेद ( #बृहनदारनकोउपनिषद)शास्त्रों में उल्लेख आता है कि एक बार ब्रह्मा जी के पास उनके सभी पुत्र अर्थात देवता मनुष्य और राक्षस उनके पास गए और परम पिता ब्रह्मा जी से निवेदन किया कि ब्रह्मा जी आप हमें उपदेश करें उनकी बातों को सुनकर ब्रह्मा जी ने अपने पुत्रों को कहा द द द तीन बार शब्द का उल्लेख किया और कहा की क्या तुम तीन ये बाते समझ गए तो वे बोले हां समझ गए तो उनसे पूछा गया की क्या समझे I इन तीनों शब्दों के माध्यम से कर्तव्यों का बोध कराया गया है#देवतादेवताओं की यह कहा गया की तुम लोग दिन रात विषय भोगों में ही लिप्त रहते हैं और अपनी कर्तव्यों का निर्वाह भली-भांति नहीं करते हो तुमको अपनी इंद्रियों का दमन करना चाहिए तो ब्रह्मा जी ने देवताओं को दमन करने का यह आदेश दिया कि वे अपनी इंद्रियों पर संयम रखते हुए उनका दमन करें यह संदेश देवताओं के लिए दिया गया था#मनुष्यमनुष्य तुम लोग लोग संसार में आए हो अपने कर्तव्यों और कर्मों को करने के लिए तो तुम्हार यह कर्तव्य बनता है कि तुम अपने द्वारा की गई कमाई का एक हिस्सा दान में संसार की भलाई में लगाओ यह भलाई आप संसार में गरीब मनुष्यों की सहायता करके जरूरतमंदों की सहायता करके पशु पक्षियों की सहायता करके और इसी प्रकार संसार की भलाई में आपको अपनी कमाई का एक हिस्सा दान करना है तो ब्रह्माजी ने मनुष्यों को आदेश दिया कि वह संसार में दान को महत्व दें#राक्षसराक्षस तुम लोग संसार में बहुत ही हिंसात्मक होते हो और लोगों को बेवजह तंग करते हो खून खराबा करते हो लोगों को बिना ही कारण के प्रताड़ित करते हो इसलिए तुम लोग को राक्षस बोलते हैं तुम्हारे अंदर मनुष्य वाला और देव वाला कोई भी गुण नहीं होता है तो तुम लोगों को संसार में रहते हुए दया का भाव अपने अंदर लगाना चाहिए तो परमपिता ब्रह्मा जी ने राक्षसों का आदेश दिया अपने जीवन में दया को स्थान दे Iयही पर यह भी कहा गया की जब मेघ गर्जना होती है तो उसमे द द द की आवाज होती है तो ये मेघ गर्जना यही सन्देश देती है की आप तीनों जन आपने कर्तव्यों को निर्वाह करो और विशेष रूप से मनुष्यों दान करोदान दिए धन ना घटे, नदी ने घटे नीर । अपनी आँख देख लो, यों क्या कहे कबीर ॥ तिन समान कोई और नहि, जो देते सुख दान I सबसे करते प्रेम सदा, औरन देते मान। जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम । #रामचरितमानसतुलसी दस जी ने रामचरितमानस में दान को बहुत ही महत्व दिया हैप्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान। जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान॥103 ख॥#भाव - धर्म के चार चरण होते है जैसे सत्य, दया, तप और दान, जिसमे से कलयुग में दान ही प्रधान है जिस भी प्रकार से दीजिये दान कराई कल्याण, दान देना महा कल्याणकारी होता है कल्याण करने वाला होता है दान देने से शारीरिक और मानसिक विकास होता है इसलिए दान दिया जाना चाहिएसो धन धन्य प्रथम गति जाकी।तुलसीदास जी ने एक अन्य दोहे में दान के महत्व को बताते हुए यह बताया है कि दान के तीन प्रयोग होते हैं उन तीनों प्रयोगों (दान, भोग और संचय ) में से जो पहला होता है वहीं कल्याणकारी है वही धन्य है कोटिन्ह बाजिमेध प्रभु कीन्हे। दान अनेक द्विजन्ह कहँ दीन्हे॥रामचंद्र जी दान दिया करते थे कई अश्वमेध यग्य किये और ब्राह्मणों को दान दिए#श्री_भगवत_गीता (17 अध्याय)श्री कृष्ण भगवान ने गीता के अंदर दान के महत्व को उजागर करते हुए उसको तीनों गुणों के आधार पर विभाजित किया है क्योंकि तीन प्रकार की मनुष्य की प्रवृतियां हुआ करती हैं जिन्हें गुण कहा जाता है सात्विक राजसिक तामसिक भी कह सकते हैं ।दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे। देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्‌॥ऐसा दान जो हमारा दान देना कर्तव्य है इस कर्तव्य को समझते हुए दिया जाता है और जिसके प्रति दान दिया जाता है उससे उसके बदले में कुछ भी पाने की आशा ना हो और देश काल पात्र को देखते हुए जो दान दिया जाता है वह सात्विक दान है अर्थात मुझे दान देना है यह मेरा कर्तव्य है क्योंकि धर्म की के अनुरूप है और देश काल और पात्र को देना है इसका मतलब स्थान से है कहीं पर भोजन की व्यवस्था उपलब्ध है वहां पर भंडारा करना इस में नहीं आता है जैसे किसी मार्केट में आजकल आप देखते हैं कि सारे खाने की सुविधाएं उपलब्ध होती है लोग भंडारा करने लगते है, पात्र का मतलब यह होता है कि किसको दान दिया जा रहा है वह कौन है उसकी क्या आवश्यकताएं I कोई भिखारी है कोई पशु पक्षी है या ब्राह्मण है तो उसी के अनुसार उसको दान दिया जाना चाहिएयत्तु प्रत्युपकारार्थं फलमुद्दिश्य वा पुनः। दीयते च परिक्लिष्टं तद्दानं राजसं स्मृतम्‌॥राजस दान में सात्विक दान के विपरीत होता है इसमें दान देने वाला उपकार की दृष्टि से दान देता है और उस दान के बदले में कुछ पाना चाहता है और ऐसा दान जिसे देने वाले को कष्ट भी होता है दुर्गा पूजा के समय में, ट्रकों/बसों/रिक्शा वालों को रोकें, उन से जोर जबरदस्ती करके पर्चे कटवाते हैं तो वह दान देने वाले दान देने के इच्छुक तो नहीं होते प्रथम दृष्टया पर वह दान देते हैं क्योंकि वह समझते हैं कि दुर्गा मां को जायेगा लेकिन उसको देने में उनको कष्ट होता है क्योंकि वह अपनी कमाई के अनुसार जो दान देना चाहते हैं वह नहीं दे पाते हैं I ऐसा दान जो स्वार्थ पूर्ति के लिए दिया जाए जिसे देने वाला किसी उद्देश्य के कारण दान करें वह दान राजस है जैसे कि मैं परीक्षा में पास हो जाऊं मेरी अच्छी नौकरी लग जाए मुझे अच्छी लुगाई मिल जाए मेरी लॉटरी लग जाए मेरा यह काम बन जाए मेरा वह काम बन जाए मैं विदेश चला जाऊं इत्यादिअदेशकाले यद्दानमपात्रेभ्यश्च दीयते। असत्कृतमवज्ञातं तत्तामसमुदाहृतम्‌॥तामसिक दान तो वह बहुत ही घनघोर होता है घृणित होता है इसमें उपरोक्त बातों के विपरीत में सारे अवगुण होते हैं जैसे यह किसी ने देश और काल को और पात्र को देखकर नहीं दिया जाता और इस दान में कोई ना तो सत्यता होती है और ना ही इसमें कोई आज्ञा होती है तो ऐसे दान को तामसी दान कहा जाता है जिसमें धर्म को ध्यान में न रखते हुए दान देकर केवल और केवल दूसरे की बुराई के लिए जो दान दिया जाता है वह इस में आता हैदानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्‌॥ 16/01 गीता16 अध्याय के पहले श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने देवी गुणों की चर्चा करिए तो उस देवी गुणों की चर्चा में एक शब्द उन्होंने बोला है दानम अर्थात दान करना एक दैविक गुण है#कबीर_जी के दोहेदान दिए धन ना घटे, नदी ने घटे नीर ।अपनी आँख देख लो, यों क्या कहे कबीर ॥कबीर जी कह रहे हैं कि दान देने से कुछ भी नहीं घटता है यह ऐसे ही होता है जैसे नदी से निकाला गया पानी तो सभी को दान अवश्य करना चाहिएतिन समान कोई और नहि, जो देते सुख दान I सबसे करते प्रेम सदा, औरन देते मान।उस मनुष्य के समान कोई नहीं है जो दूसरों को सुख का दान करते हैं। जो सबसे सर्वदा प्रेम करते हैं और दूसरों को सम्मान देते हैं। दुसरो को किसी भी प्रकार से सुख का दान देना भी दान है कबीर जी ने दान की परिभाषा को विस्तृत कर दिया हैजो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम । दोऊ हाथ उलीचिये, यही सयानों काम ।।कबीर जी कह रहे हैं जैसे नाव चला रहे हो और उसमें कई छेद हो जाए और नाव के अन्दर पानी बढ़ने लगे तो फिर उसी प्रकार से घर में जब धन-संपत्ति यश की वृद्धि होने लगे तो अपने दोनों हाथों का उपयोग करिए और जल्दी से नाव में से जल को निकालना शुरू कर दीजिए और घर में से जो आपके धन आया है उसको दान देना शुरू कर दीजिए तो शांति भी आनी शुरू हो जाएगी यही सयानो का कार्य है#रहीम_जीदेनहार कोई और है भेजत सो दिन रात I लोग भरम हम पै धरै याते नीचे नैन ।रहीम जी कहते है की दान तो मैं भी करता हूँ परन्तु जो दान देता हूँ उसका विधान तो पहले ही ईश्वर कर देता है और लोग समझते हैं की मैं दान दे रहा हूँ ये ईश्वर की कृपा है इसी लिए मेरे नेत्र नीचे को झुक जाते है (रहीम जी की ये विशेषता थी की वो जब दान देते थे आखे नीचे झुका लेते थे)#धर्मदान के बारे में धर्म शास्त्रों में यह भी उल्लेख किया गया है कि किसी भी व्यक्ति को अपनी कमाई का कम से कम दसवां हिस्सा दान में जरूरी देना चाहिए यदि वह अपने महीने के वेतन में ₹ 100 लेकर आता तो कम से कम ₹10 का दान से करना चाहिए I दान देने का मतलब यह नहीं होता कि आप दान धन ही दें दान के लिए किसी विशेष परस्थिति की आवश्यकता नहीं होती है💥दान देने के कई प्रकार हो सकते हैं जैसे किबाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम में बे सहारा के भोजन चाय कपड़े रसोई गैस सिलेंडर दवाई जो बी इच्छा से➖अच्छी अच्छी पुस्तकों का दान विधार्थियों को देकर दान कर सकते हैं➖पक्षियों /चिड़िया/कबूतर इत्यादि को अनाज देकर दान दिया जा सकता है➖आप अपनी छत पर बाजरा और पानी की व्यवस्था बनाकर भी दान कर सकते हैं,➖जब आप खाने का कोई सामान कहीं पर रखें खुले में या पशुओं को खाने के लिए तो उस बगैर एक बात और ध्यान में रखें की जो जानवर है उसको पॉलिथीन खोली नहीं आती है और वह अनजाने में खाने वाली वस्तु के साथ उस पॉलिथीन को भी खा सकता है तो क्यों ना आप कुछ ऐसी व्यवस्था बनाएं जिससे कि वह जो खाने वाला पदार्थ है वह तो उसके अंदर चला जाए अथवा उसे खा सकें परंतु पॉलिथीन ना खाए I यह भी दान का एक सुंदर प्रकार है➖स्वस्थ विचारों का दान देना और गंदे सन्देश को न देना अथवा उनकों रोक लेना➖रक्त दान - जरुरत मंदों के लिए रक्त को दान दिया जा सकता है➖काया दान - मृत्यु के बाद, medical विधार्थियों के लिए देह का दान भी दिया जा सकता है➖नेत्र दान - मृत्यु के बाद,आप अपने नेत्रों को जब इस दुनिया से जाये तो उनकों दान दे सकते है➖अंगो का दान - मृत्यु के बाद, आप अपने शरीर के अंगो का दान भी दे सकते हैइत्यादी विभिन्न प्रकार के दान देना और बदले में कुछ भी आस न करना ही दान देना है💥जरा सोचिए💥तो अब यह_ #सोचिए की आपने पिछले 1 महीने या साल भर के दौरान आप ने कितना दान किया है कितने बार जरुरत मंदों को को ₹1 ₹2 ₹3 या ₹4 या ₹5 या ₹4 या ₹7 या ₹10 सो रूपया हजार रुपया कितने का दान किया है महीने में कितनी बार पक्षियों के लिए पानी डाला है और पशुओं के लिए पानी दिया है आपने 1 महीने में कितनी बार बे सहारा गरीबों को भोजन दिया है कपड़े का दान दिया है आपने कितनी बार विद्यार्थियों के लिए मुफ्त में पढ़ने लिखने का सामान दिया है आपने कितनी बार लोगों को धार्मिक स्थान के लिए प्रोत्साहित किया है क्या आपने कुछ इनमें से किया है नहीं किया है तो क्यों नहीं किया है क्या आपको नहीं करना चाहिए । बस इसी प्रश्न के साथ यह लेख समाप्त करते हैं।(बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम संगरिया राजस्थान)[बे सहारा को दान करने हेतु संपर्क करे,]9877264170 (call/whatsapp)बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम 🙏🙏

#संगीता जी #तनेजा ,💞 निवासी - #संगरिया से अपनी #शादी की #सालगिरह पर बाल वनिता #महिला वृद्ध #आश्रम में #समोसे💞 कचोरी #गुलाबजामुन चाय नाश्ता #केक कटवाकर व #बेसहारा💞 #माताओं-बहनों को एक समय का भोजन डांस #भजन #कीर्तन 💞 करवाकर बड़ी ही #धूमधाम से अपनी शादी की सालगिरह मनाई💞 बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम संगरिया #राजस्थान की #अध्यक्ष #श्रीमती वनिता #कासनियां #पंजाब को बहुत ही तह #दिल से #स्मानित किया #फूलों की #माला #पहनाकर बे सहारा माता पिता #बहिनों को गर्म कंबल #स्वेटर #दान किया#खुदा की फुरसत में एक पल आया होगा,💞जब उसने आप जैसे प्यारे इंसान को बनाया होगा,💞न जाने कौनसी दुआ कबूल हुई हमारी,💞जो उसने आपको हमसे मिलाया होगा💞,!!हैप्पी एनिवर्सरी संगीता जी!!💞🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂आप दोनों की जोड़ी कभी ना टूटे,💞खुदा करे आप एक दूसरे से कभी न रूठे,💕यूंही एक होकर आप ये ज़िन्दगी बिताएं की,💕आप दोनों से खुशियों के एक पल भी न छूटे।🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂मुबारक हो आपको नई यह जिंदगी,💞खुशियों से भरी रहे आपकी जिंदगी,💞गम का साया कभी आप पर न आए,💞दुआ है यह हमारी आप सदा यूँ ही मुस्कुराएं …💞सालगिरह मुबराक!!🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂💞🙏🙏💞

*सुनीता जी छाबरा ने आज अपने जन्म दिन पर बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम में आ कर सभी बे सहारा को भोजन केक समोसे चोक लेट खिलाई बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम टीम की तरफ से जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं आप हमेशा स्वस्थ रहें खुश रहें और ऐसे ही समाज में सेवा करते रहें हम आपको सलूट करते हैं कि**आप बाल वनिता महिला वृद्ध अनाथ आश्रम में जो बेसहरा माताओं और भाइयों और बहनों की सेवा कर रहे हैं आपका दिल की गहराई से बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं आप यूं ही अपने पथ पर समाज के हित में कार्य करते रहें आपको दिल की गहराई से कलजे की कोर से जन्मदिन की हार्दिक* *शुभकामनाएँ*🙏🙏❤️🎂🎂🍨🍨🍚*बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब**अपनों ने ठुकराया,* *तो गैरों ने अपना लिया,* *डूबती हुई कश्ती को,* *साहिल से मिला दिया,**मानव की सेवा सबसे बड़ा धर्म है। मानव की आत्मा ही परमात्मा है। *और मानव मात्र की सेवा करने से ही सच्चे सुख की प्राप्ति होती है। हम मनुष्य से मानव ही बन जाएं और अपने झगड़ों को भुला दें, यही सच्चा धर्म होगा।*

**🌹दीपावली पर यह प्रयोग, बदल देगा भाग्य की रेखायें हैं व साधक के भाग्य की रेखा बदलने वाली रात्रियाँ हैं । अधिक से अधिक जप करके इन रात्रियों का लाभ उठाना चाहिए ।**🌹2. "दीपावली की रात्रि जप करने योग्य लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र"**दिवाली की रात कुबेर भगवान ने लक्ष्मी जी की आराधना की थी जिससे वे धनाढ्यपतियों के भी धनाढ्य कुबेर भंडारी के नाम से प्रसिद्ध हुए, ऐसा इस काल का महत्व है । रात्रि को दीया जलाकर इस सरल मंत्र का यथाशक्ति जप करें :**"ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं कमलवासिन्यै स्वाहा"**🌹3. "लक्ष्मी प्राप्ति हेतु गुरुदेव के श्रीचित्र पर विशेष तिलक"**दीपावली के दिन लौंग और इलायची को जलाकर राख कर दें और उससे गुरुदेव (श्रीचित्र) को तिलक करें । ऐसा करने से लक्ष्मी प्राप्ति में मदद मिलती है और काम-धंधे में बरकत आती है।**🌹4. "सुख-सम्पत्ति की वृद्धि के लिए दो विशेष दीपक"**दीपावली के दिन घर के मुख्य दरवाजे के दायीं और बायीं ओर गेहूँ की छोटी-छोटी ढेरी लगाकर उसपर दो दीपक जला दें । हो सके तो वें रात भर जलते रहें , इससे आपके घर में सुख-सम्पत्ति की वृद्धि होगी । दीपावली की रात मंदिर में रातभर घी का दीया जलता रहे सूर्योदय तक, तो बड़ा शुभ माना जाता है।**🌹5. "आनंद व् प्रसन्नतावर्धक नारियल-खीर प्रयोग"**दीपावली की रात्रि को थोड़ी खीर कटोरी में डालकर और नारियल लेकर घूमना और मन में 'लक्ष्मी-नारायण' जप करना ; खीर ऐसी जगह रखना जहां किसीका पैर ना पड़े और गाय, कौए आदि खा जाएँ । नारियल अपने घर के मुख्य दरवाजे पर फोड़ देना और उसकी प्रसादी बाँटना । इससे घर में आनंद और सुख-शांति रहेगी ।**🌹6. "परिवार की तीनों तापों से रक्षा के लिए - कपूर"**दीपावली के दिन चाँदी की कटोरी में अगर कपूर को जलाएँ, तो परिवार में तीनों तापों से रक्षा होती है ।**🌹7. "प्रसन्नता एवं रोगप्रतिकारक शक्ति-वर्धक - तोरण"**पहले के जमाने में गाँवों में दीपावली के दिनों में नीम और अशोक वृक्ष के पत्तों के तोरण (बंदनवार) बंधते थे । अशोक और नीम के पत्तों में रोगप्रतिकारक शक्ति होती है । उस तोरण के नीचे से गुजरकर जाने से वर्षभर रोगप्रतिकारक शक्ति बनी रहती है । वर्ष के प्रथम दिन आप भी अपने घरों में तोरण बाँधकर इसका लाभ उठाएं ।**🌹8. "लक्ष्मी प्राप्ति हेतु तुलसी के निकट जलाएँ दीपक"**दीपावली की सँध्या को तुलसी जी के निकट दीया जलाएँ , इससे लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने में मदद मिलती है ।**🌹9."बाजारू मिठाईयों , कुरकुरे आदि से सावधान!"**मिठाईयों में शुद्ध बेसन व शुद्ध चीजों की बनी मिठाई शगुन समझकर थोड़ी बहुत खा लें लेकिन रसगुल्ले , मावा , पनीर से बनी मिठाईयाँ दूर से ही त्याग दें । मावा , रसगुल्ला व बर्फी किडनी , हृदय , नाड़ीतंत्र एवं पाचनतंत्र को नुकसान पहुँचाते-पहुँचाते असमय बुढ़ापा और बुढ़ापे में ऑपरेशनों का शिकार बना देते हैं । कुरकुरे आदि नमकीन में कुरकुरापन बढ़ाने के लिए बेसन के बदले चावल का आटा मिलाया जाता है, जो आँतों के लिए बहुत हानिकारक है ।**🌹10. "कच्चे आलू से करें पटाखों से जलने पर ईलाज"**दीपावली के दिनों में पटाखे , दीये आदि से या अन्य दिनों में अग्नि से शरीर का कोई अंग जल जाए तो जले हुए स्थान पर तुरंत कच्चे आलू का रस लगाना व उसके चिप्स पीड़ित स्थान पर रखना पर्याप्त है । उससे न फोड़ा होगा, न मवाद बनेगा, न ही मलहम या अन्य औषधि की आवश्यकता होगी ।**🌹11. "अशोक एवं पीपल वृक्ष के नीचे जलाएँ दीपक"**दीपावली की शाम को अशोक वृक्ष के नीचे घी का दीया जलाएँ, तो बहुत शुभ माना जाता है । हर अमावस्या को (और दिवाली को भी) पीपल के पेड़ के नीचे दीया जलाने से पितृ और देवता प्रसन्न होते हैं और अच्छी आत्माएँ घर में जन्म लेती हैं ।**🌹12. "बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती का पूजन"**दीपावली की रात्रि को लक्ष्मी-गणेश पूजन के साथ बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती जी का भी पूजन किया जाता है, जिससे लक्ष्मी के साथ-साथ आपको विद्या भी मिले । विद्या भी केवल पेट भरने की विद्या नहीं, वरन वह विद्या जिससे आपके जीवन में मुक्ति के पुष्प महकें ।**🌹13. "निरंतर आने वाले कष्टों के निवारण के लिए हवन"**घर में कोई न कोई कष्ट हमेशा रहता हो तो डरें नहीं, हर अमावस्या को (दिवाली को भी) घर के लोग घी, चावल, काले तिल, जौ, गुड़, कपूर, गूगल, चंदन-चूर - इन आठ चीजों का मिश्रण बनाकर गाय के गोबर के कंडे पर 'स्थान देवताभ्यो नमः , ग्राम देवताभ्यो नमः , कुल देवताभ्यो नमः' मंत्रों की 5-5 आहुतियाँ दें । इससे स्वास्थ्य ठीक होगा और पीपल काटने का दोष हो या किसी देवता का दोष हो , दुःस्वप्न , पितृदोष आदि कुछ हो गया हो तो रक्षा होती है ।**🌹14 ."दीपावली के दिन अवश्य करें - सत्संग श्रवण"**दीपावली, जन्म-दिवस और नूतन-वर्ष के दिन प्रयत्न-पूर्वक सत्संग सुनना चाहिए । विशेष लाभ होता है ।**🌹15. "गरीबों की दुआएँ...दुर्भाग्य को बदलें सौभाग्य में"**दिवाली के दिनों में बे सहारा आश्रम में गरीब बच्चों और बुजर्गो और महिलाओं को एक-एक टुकड़ा मिठाई का बाँटकर आएँगे तो बे सहारा की दुआ निकलेगी, वो दुआएँ अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल देंगी ।*

दीपावली बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम मां लक्ष्मी का जन्म दिन, भगवान राम का अयोध्या आगमन 14 वर्ष के वनवास के बाद, राजा बलि को पाताल का राज् किसी अन्य भाषा में पढ़ें डाउन लोड करें ध्यान रखेंसं पादित करें यह लेख आज का आलेख के लिए निर्वाचित हुआ है। अधिक जानकारी हेतु क्लिक करें।दीपावली (संस्कृत : दीपावलिः = दीप + अवलिः = दीपकों की पंक्ति, या पंक्ति में रखे हुए दीपक) शरद ऋतु (उत्तरी गोलार्द्ध) में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन सनातन त्यौहार है।[2][3] दीपावली कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है दीपावली भारत के सबसे बड़े और सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। दीपावली दीपों का त्योहार है। आध्यात्मिक रूप से यह 'अन्धकार पर प्रकाश की विजय' को दर्शाता है।[4][5][6] दीपावलीThe Rangoli of Lights.jpgरंगीन पाउडर का प्रयोग कर रंगोली सजाना दीपावली में काफी प्रसिद्ध हैअन्य नामदीपावलीअनुयायीहिन्दू, सिख, जैन और बौद्ध [1]उद्देश्यधार्मिक निष्ठा, उत्सवउत्सवदिया जलना, घर की सजावट, खरीददारी, आतिशबाज़ी, पूजा, उपहार, दावत और मिठाइयाँआरम्भधनतेरस, दीपावली से दो दिन पहलेसमापनभैया दूज, दीपावली के दो दिन बादतिथिकार्तिक माह की अमावस्यासमान पर्वकाली पूजा, दीपावली (जैन), बंदी छोड़ दिवसभारतवर्ष में मनाए जाने वाले सभी त्यौहारों में दीपावली का सामाजिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। इसे दीपोत्सव भी कहते हैं। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात (हे भगवान!) मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाइए। यह उपनिषदों की आज्ञा है। इसे सिख, बौद्ध तथा जैन धर्म के लोग भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष दिवस के रूप में मनाते हैं[7][8] तथा सिख समुदाय इसे बन्दी छोड़ दिवस के रूप में मनाता है।माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे।[9] अयोध्यावासियों का हृदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है। दीपावली यही चरितार्थ करती है- असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय। दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ-सुथरा कर सजाते हैं। बाजारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाजार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं।दीपावली के दिन नेपाल, भारत,[10] श्रीलंका, म्यांमार, मारीशस, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, सूरीनाम, मलेशिया, सिंगापुर, फिजी, पाकिस्तान और ऑस्ट्रेलिया की बाहरी सीमा पर क्रिसमस द्वीप पर एक सरकारी अवकाश होता है।दीपावली उत्सवDeepawali-festival.jpgनर्क चतुर्दशी की रात्रि पर घर के अंदर दिये से की गयी सजावटGlowing Swayambhu (3005358416).jpgदीपावली(तिहार) के लिये रोशन एक नेपाली मन्दिरDiwali fireworks and lighting celebrations India 2012.jpgअमृतसर में दीपावली उत्सवFireworks Diwali Chennai India November 2013 b.jpgदीपावली की रात में चेन्नई के ऊपर आतिशबाज़ीGanga At Nibi Gaharwar.jpgग्रामीण उत्सव – गंगा नदी में तैरता दियाSweets Mithai for Diwali and other Festivals of India.jpgदीपावली "मिठाई"दीपावली नज़ारों, आवाज़ों, कला, और स्वाद का त्योहार है। जिसमें प्रांतानुसार भिन्नता पायी जाती है।शब्द उत्पत्ति दीपावली शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों 'दीप' अर्थात 'दिया' व 'आवली' अर्थात 'लाइन' या 'श्रृंखला' के मिश्रण से हुई है। कुछ लोग "दीपावली" तो कुछ "दिपावली" ; वही कुछ लोग "दिवाली" तो कुछ लोग "दीवाली" का प्रयोग करते है । यहाँ यह जान लेना जरूरी है कि प्रत्येक शुद्ध शब्द का प्रयोग उसके अर्थ पर निर्भर करता है । शुद्ध शब्द "दीपावली" है , जो 'दीप'(दीपक) और 'आवली'(पंक्ति) से मिलकर बना है । जिसका अर्थ है 'दीपों की पंक्ति' । 'दीप' से 'दीपक' शब्द की रचना होती है । 'दिवाली' शब्द का प्रयोग भी गलत है क्योंकि उपयुक्त शब्द 'दीवाली' है । 'दिवाली' का तो इससे भिन्न अर्थ है ।जिस पट्टे/पट्टी को किसी यंत्र से खींचकर खराद सान आदि चलाये जाते है ,उसे दिवाली कहते है इसका स्थानिक प्रयोग दिवारी है और 'दिपाली'-'दीपालि' भी । दीपावली का बिगड़ा हुआ रूप 'दीवाली' है दिवाली नहीं; परंतु विशुद्ध एवं उपयुक्त शब्द दीपावली है । इसके उत्सव में घरों के द्वारों, घरों व मंदिरों पर लाखों प्रकाशकों को प्रज्वलित किया जाता है। दीपावली जिसे दिवाली भी कहते हैं उसे अन्य भाषाओं में अलग-अलग नामों से पुकार जाता है जैसे : 'दीपावली' (उड़िया), दीपाबॉली'(बंगाली), 'दीपावली' (असमी, कन्नड़, मलयालम:ദീപാവലി, तमिल:தீபாவளி और तेलुगू), 'दिवाली' (गुजराती:દિવાળી, हिन्दी, दिवाली, मराठी:दिवाळी, कोंकणी:दिवाळी,पंजाबी), 'दियारी' (सिंधी:दियारी‎), और 'तिहार' (नेपाली) मारवाड़ी में दियाळी।[11] इतिहासभारत में प्राचीन काल से दीपावली को विक्रम संवत के कार्तिक माह में गर्मी की फसल के बाद के एक त्योहार के रूप में दर्शाया गया। पद्म पुराण और स्कन्द पुराण में दीपावली का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि ये ग्रन्थ पहली सहस्त्राब्दी के दूसरे भाग में किन्हीं केंद्रीय पाठ को विस्तृत कर लिखे गए थे। दीये (दीपक) को स्कन्द पुराण में सूर्य के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है, सूर्य जो जीवन के लिए प्रकाश और ऊर्जा का लौकिक दाता है और जो हिन्दू कैलंडर अनुसार कार्तिक माह में अपनी स्तिथि बदलता है।[12][13] कुछ क्षेत्रों में हिन्दू दीपावली को यम और नचिकेता की कथा के साथ भी जोड़ते हैं।[14] नचिकेता की कथा जो सही बनाम गलत, ज्ञान बनाम अज्ञान, सच्चा धन बनाम क्षणिक धन आदि के बारे में बताती है; पहली सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व उपनिषद में लिखित है।[15]दिपावली का इतिहास रामायण से भी जुड़ा हुआ है, ऐसा माना जाता है कि श्री राम चन्द्र जी ने माता सीता को रावण की कैद से छुटवाया था, तथा फिर माता सीता की अग्नि परीक्षा लेकर 14 वर्ष का वनवास व्यतीत कर अयोध्या वापस लोटे थे। जिसके उपलक्ष्य में अयोध्या वासियों ने दीप जलाए थे, तभी से दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है। लेकिन आपको यह जानकर बहुत हैरानी होगी की अयोध्या में केवल 2 वर्ष ही दिपावली मनायी गई थी।[16]७वीं शताब्दी के संस्कृत नाटक नागनंद में राजा हर्ष ने इसे दीपप्रतिपादुत्सवः कहा है जिसमें दीये जलाये जाते थे और नव वर-बधू को उपहार दिए जाते थे।[17][18] 9 वीं शताब्दी में राजशेखर ने काव्यमीमांसा में इसे दीपमालिका कहा है जिसमें घरों की पुताई की जाती थी और तेल के दीयों से रात में घरों, सड़कों और बाजारों सजाया जाता था।[17] फारसी यात्री और इतिहासकार अल बेरुनी, ने भारत पर अपने ११ वीं सदी के संस्मरण में, दीपावली को कार्तिक महीने में नये चंद्रमा के दिन पर हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला त्यौहार कहा है।[19]महत्त्वदीपावली नेपाल और भारत में सबसे सुखद छुट्टियों में से एक है। लोग अपने घरों को साफ कर उन्हें उत्सव के लिए सजाते हैं। नेपालियों के लिए यह त्योहार इसलिए महान है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है।[20]दीपावली नेपाल और भारत में सबसे बड़े शॉपिंग सीजन में से एक है; इस दौरान लोग कारें और सोने के गहने आदि महंगी वस्तुएँ तथा स्वयं और अपने परिवारों के लिए कपड़े, उपहार, उपकरण, रसोई के बर्तन आदि खरीदते हैं।[21] लोगों अपने परिवार के सदस्यों और दोस्तों को उपहार स्वरुप आम तौर पर मिठाइयाँ व सूखे मेवे देते हैं। इस दिन बच्चे अपने माता-पिता और बड़ों से अच्छाई और बुराई या प्रकाश और अंधेरे के बीच लड़ाई के बारे में प्राचीन कहानियों, कथाओं, मिथकों के बारे में सुनते हैं। इस दौरान लड़कियाँ और महिलाएँ खरीदारी के लिए जाती हैं और फर्श, दरवाजे के पास और रास्तों पर रंगोली और अन्य रचनात्मक पैटर्न बनाती हैं। युवा और वयस्क आतिशबाजी और प्रकाश व्यवस्था में एक दूसरे की सहायता करते हैं।[22][23]क्षेत्रीय आधार पर प्रथाओं और रीति-रिवाजों में बदलाव पाया जाता है। धन और समृद्धि की देवी - लक्ष्मी या एक से अधिक देवताओं की पूजा की जाती है। दीपावली की रात को, आतिशबाजी आसमान को रोशन कर देती है। बाद में, परिवार के सदस्य और आमंत्रित मित्रगण भोजन और मिठायों के साथ रात को दीपावली मनाते हैं।[22][23]आध्यात्मिक महत्त्वदीपावली को विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं, कहानियों या मिथकों को चिह्नित करने के लिए हिंदू, जैन और सिखों द्वारा मनायी जाती है लेकिन वे सब बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय के दर्शाते हैं।[4][24]हिन्दुओं के योग, वेदान्त, और सांख्य दर्शन में यह विश्वास है कि इस भौतिक शरीर और मन से परे वहां कुछ है जो शुद्ध, अनन्त, और शाश्वत है जिसे आत्मन् या आत्मा कहा गया है। दीपावली, आध्यात्मिक अन्धकार पर आन्तरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का उत्सव है।[25][26][27][28]हिंदू धर्मदीपावली धन की देवी लक्ष्मी के सम्मान में मनाई जाती हैदीपावली का धार्मिक महत्व हिंदू दर्शन, क्षेत्रीय मिथकों, किंवदंतियों, और मान्यताओं पर निर्भर करता है।प्राचीन हिंदू ग्रन्थ रामायण में बताया गया है कि, कई लोग दीपावली को 14 साल के वनवास पश्चात भगवान राम व पत्नी सीता और उनके भाई लक्ष्मण की वापसी के सम्मान के रूप में मानते हैं।[29] अन्य प्राचीन हिन्दू महाकाव्य महाभारत अनुसार कुछ दीपावली को 12 वर्षों के वनवास व 1 वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडवों की वापसी के प्रतीक रूप में मानते हैं। कई हिंदु दीपावली को भगवान विष्णु की पत्नी तथा उत्सव, धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी से जुड़ा हुआ मानते हैं। दीपावली का पांच दिवसीय महोत्सव देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकिक सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से शुरू होता है। दीपावली की रात वह दिन है जब लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे शादी की।[12][30] लक्ष्मी के साथ-साथ भक्त बाधाओं को दूर करने के प्रतीक गणेश; संगीत, साहित्य की प्रतीक सरस्वती; और धन प्रबंधक कुबेर को प्रसाद अर्पित करते हैं[12] कुछ दीपावली को विष्णु की वैकुण्ठ में वापसी के दिन के रूप में मनाते है। मान्यता है कि इस दिन लक्ष्मी प्रसन्न रहती हैं और जो लोग उस दिन उनकी पूजा करते है वे आगे के वर्ष के दौरान मानसिक, शारीरिक दुखों से दूर सुखी रहते हैं। [31]भारत के पूर्वी क्षेत्र उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में हिन्दू लक्ष्मी की जगह काली की पूजा करते हैं, और इस त्योहार को काली पूजा कहते हैं।[32][33] मथुरा और उत्तर मध्य क्षेत्रों में इसे भगवान कृष्ण से जुड़ा मानते हैं। अन्य क्षेत्रों में, गोवर्धन पूजा (या अन्नकूट) की दावत में कृष्ण के लिए 56 या 108 विभिन्न व्यंजनों का भोग लगाया जाता है और सांझे रूप से स्थानीय समुदाय द्वारा मनाया जाता है।भारत के कुछ पश्चिम और उत्तरी भागों में दीपावली का त्योहार एक नये हिन्दू वर्ष की शुरुआत का प्रतीक हैं।दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियाँ हैं। राम भक्तों के अनुसार दीपावली वाले दिन अयोध्या के राजा राम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। उनके लौटने कि खुशी में आज भी लोग यह पर्व मनाते है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था।[34][35][36] इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था[36] तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए।जैनमुख्य लेख: दीपावली (जैन)जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर, महावीर स्वामी को इस दिन मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।[36] इसी दिन उनके प्रथम शिष्य, गौतम गणधर को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ था।जैन समाज द्वारा दीपावली, महावीर स्वामी के निर्वाण दिवस के रूप में मनाई जाती है। महावीर स्वामी (वर्तमान अवसर्पिणी काल के अंतिम तीर्थंकर) को इसी दिन (कार्तिक अमावस्या) को मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। इसी दिन संध्याकाल में उनके प्रथम शिष्य गौतम गणधर को केवल ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः अन्य सम्प्रदायों से जैन दीपावली की पूजन विधि पूर्णतः भिन्न है।सिखसिक्खों के लिए भी दीपावली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था।[36] और इसके अलावा 1619 में दीपावली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था।ऐतिहासिक महत्व पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले ली। महर्षि दयानन्द ने भारतीय संस्कृति के महान जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। दीन-ए-इलाही के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल में दौलतखाने के सामने 40 गज ऊँचे बाँस पर एक बड़ा आकाश दीप दीपावली के दिन लटकाया जाता था। बादशाह जहाँगीर भी दीपावली धूमधाम से मनाते थे। मुगल वंश के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर दीपावली को त्योहार के रूप में मनाते थे और इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में वे भाग लेते थे। शाह आलम द्वितीय के समय में समूचे शाही महल को दीपों से सजाया जाता था एवं लालकिले में आयोजित कार्यक्रमों में हिन्दू-मुसलमान दोनों भाग लेते थे।आर्थिक महत्वदीपावली का त्यौहार भारत में एक प्रमुख खरीदारी की अवधि का प्रतीक है। उपभोक्ता खरीद और आर्थिक गतिविधियों के संदर्भ में दीपावली, पश्चिम में क्रिसमस के बराबर है। यह पर्व नए कपड़े, घर के सामान, उपहार, सोने और अन्य बड़ी ख़रीददारी का समय होता है। इस त्योहार पर खर्च और ख़रीद को शुभ माना जाता है क्योंकि लक्ष्मी को, धन, समृद्धि, और निवेश की देवी माना जाता है।[37][38] दीवाली भारत में सोने और गहने की ख़रीद का सबसे बड़ा सीज़न है।[39][40] मिठाई, 'कैंडी' और आतिशबाजी की ख़रीद भी इस दौरान अपने चरम सीमा पर रहती है। प्रत्येक वर्ष दीपावली के दौरान पांच हज़ार करोड़ रुपए के पटाखों आदि की खपत होती है।[41]संसार के अन्य भागों मेंदीपावली को विशेष रूप से हिंदू, जैन और सिख समुदाय के साथ विशेष रूप से दुनिया भर में मनाया जाता है। ये, श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फिजी, मॉरीशस, केन्या, तंजानिया, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो, नीदरलैंड, कनाडा, ब्रिटेन शामिल संयुक्त अरब अमीरात, और संयुक्त राज्य अमेरिका। भारतीय संस्कृति की समझ और भारतीय मूल के लोगों के वैश्विक प्रवास के कारण दीपावली मनाने वाले देशों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। कुछ देशों में यह भारतीय प्रवासियों द्वारा मुख्य रूप से मनाया जाता है, अन्य दूसरे स्थानों में यह सामान्य स्थानीय संस्कृति का हिस्सा बनता जा रहा है। इन देशों में अधिकांशतः दीपावली को कुछ मामूली बदलाव के साथ इस लेख में वर्णित रूप में उसी तर्ज पर मनाया जाता है पर कुछ महत्वपूर्ण विविधताएँ उल्लेख के लायक हैं।एशियानेपालनेपाल में, कई जानवरों को दीवाली उत्सव में शामिल किया जाता है। कौआ, कुत्ता (ऊपर), गाय और बैल को अपने त्योहार तिहार के दौरान खिलाया और सजाया भी जाता है।[42][43]दीपावली को "तिहार" या "स्वन्ति" के रूप में जाना जाता है। यह भारत में दीपावली के साथ ही पांच दिन की अवधि तक मनाया जाता है। परन्तु परम्पराओं में भारत से भिन्नता पायी जाती है। पहले दिन 'काग तिहार' पर, कौए को परमात्मा का दूत होने की मान्यता के कारण प्रसाद दिया जाता है। दूसरे दिन 'कुकुर तिहार' पर, कुत्तों को अपनी ईमानदारी के लिए भोजन दिया जाता है। काग और कुकुर तिहार के बाद 'गाय तिहार' और 'गोरु तिहार' में, गाय और बैल को सजाया जाता है। तीसरे दिन लक्ष्मी पूजा की जाती है। इस नेपाल संवत् अनुसार यह साल का आखिरी दिन है, इस दिन व्यापारी अपने सारे खातों को साफ कर उन्हें समाप्त कर देते हैं। लक्ष्मी पूजा से पहले, मकान साफ ​​किया और सजाया जाता है; लक्ष्मी पूजा के दिन, तेल के दीयों को दरवाजे और खिड़कियों के पास जलाया जाता है। चौथे दिन को नए वर्ष के रूप में मनाया जाता है। सांस्कृतिक जुलूस और अन्य समारोहों को भी इसी दिन मनाया जाता है।पांचवे और अंतिम दिन को "भाई टीका" (भाई दूज देखें) कहा जाता, भाई बहनों से मिलते हैं, एक दूसरे को माला पहनाते व भलाई के लिए प्रार्थना करते हैं। माथे पर टीका लगाया जाता है। भाई अपनी बहनों को उपहार देते हैं और बहने उन्हें भोजन करवाती हैं। [43]मलेशियादीपावली मलेशिया में एक संघीय सार्वजनिक अवकाश है। यहां भी यह काफी हद तक भारतीय उपमहाद्वीप की परंपराओं के साथ ही मनाया जाता है। 'ओपन हाउसेस' मलेशियाई हिन्दू (तमिल,तेलुगू और मलयाली)द्वारा आयोजित किये जाते हैं जिसमें भोजन के लिए अपने घर में अलग अलग जातियों और धर्मों के साथी मलेशियाई लोगों का स्वागत किया जाता है। मलेशिया में दीपावली का त्यौहार धार्मिक सद्भावना और मलेशिया के धार्मिक और जातीय समूहों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों के लिए एक अवसर बन गया है।सिंगापुरलिटल इंडिया में दीवाली की सजावट, सिंगापुर में हिंदुओं के लिए यह एक वार्षिक उत्सव है।[44]दीपावली एक राजपत्रित सार्वजनिक अवकाश है। अल्पसंख्यक भारतीय समुदाय (तमिल) द्वारा इसे मुख्य रूप से मनाया जाता है, यह आम तौर पर छोटे भारतीय जिलों में, भारतीय समुदाय द्वारा लाइट-अप द्वारा चिह्नित किया जाता है। इसके अलावा बाजारों, प्रदर्शनियों, परेड और संगीत के रूप में अन्य गतिविधियों को भी लिटिल इंडिया के इलाके में इस दौरान शामिल किया जाता है। सिंगापुर की सरकार के साथ-साथ सिंगापुर के हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड इस उत्सव के दौरान कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन करता है।[45]श्री लंकायह त्यौहार इस द्वीप देश में एक सार्वजनिक अवकाश के रूप में तमिल समुदाय द्वारा मनाया जाता है। इस दिन पर लोग द्वारा सामान्यतः सुबह के समय तेल से स्नान करा जाता है , नए कपड़े पहने जाते हैं, उपहार दिए जाते है, पुसै (पूजा) के लिए कोइल (हिंदू मंदिर) जाते हैं। त्योहार की शाम को पटाखे जलना एक आम बात है। हिंदुओं द्वारा आशीर्वाद के लिए व घर से सभी बुराइयों को सदा के लिए दूर करने के लिए धन की देवी लक्ष्मी को तेल के दिए जलाकर आमंत्रित किया जाता है। श्रीलंका में जश्न के अलावा खेल, आतिशबाजी, गायन और नृत्य, व भोज आदि का अयोजन किया जाता है।एशिया के परेमेलबोर्न में दीवाली आतिशबाजी।[46]ऑस्ट्रेलियाऑस्ट्रेलिया के मेलबॉर्न में, दीपावली को भारतीय मूल के लोगों और स्थानीय लोगों के बीच सार्वजनिक रूप से मनाया जाता है। फेडरेशन स्क्वायर पर दीपावली को विक्टोरियन आबादी और मुख्यधारा द्वारा गर्मजोशी से अपनाया गया है। सेलिब्रेट इंडिया इंकॉर्पोरेशन ने 2006 में मेलबोर्न में प्रतिष्ठित फेडरेशन स्क्वायर पर दीपावली समारोह शुरू किया था। अब यह समारोह मेलबॉर्न के कला कैलेंडर का हिस्सा बन गया है और शहर में इस समारोह को एक सप्ताह से अधिक तक मनाया जाता है।पिछले वर्ष 56,000 से अधिक लोगों ने समारोह के अंतिम दिन पर फेडरेशन स्क्वायर का दौरा किया था और मनोरंजक लाइव संगीत, पारंपरिक कला, शिल्प और नृत्य और यारा नदी (en:yarra river) पर शानदार आतिशबाज़ीे के साथ ही भारतीय व्यंजनों की विविधता का आनंद लिया।विक्टोरियन संसद, मेलबोर्न संग्रहालय, फेडरेशन स्क्वायर, मेलबोर्न हवाई अड्डे और भारतीय वाणिज्य दूतावास सहित कई प्रतिष्ठित इमारतों को इस सप्ताह अधिक सजाया जाता है। इसके साथ ही, कई बाहरी नृत्य का प्रदर्शन होता हैं। दीपावली की यह घटना नियमित रूप से राष्ट्रीय संगठनों एएफएल, क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया, व्हाइट रिबन, मेलबोर्न हवाई अड्डे जैसे संगठनों और कलाकारों को आकर्षित करती है। स्वयंसेवकों की एक टीम व उनकी भागीदारी और योगदान से यह एक विशाल आयोजन के रूप में भारतीय समुदाय को प्रदर्शित करता है।अकेले इस त्योहार के दौरान एक सप्ताह की अवधि में भाग लेने आये लोगों की संख्या के कारण फेडरेशन स्क्वायर पर दिवाली को ऑस्ट्रेलिया में सबसे बड़े उत्सव के रूप में पहचाना जाता है।ऑस्ट्रेलियाई बाहरी राज्य क्षेत्र, क्रिसमस द्वीप पर, दीपावली के अवसर पर ऑस्ट्रेलिया और मलेशिया के कई द्वीपों में आम अन्य स्थानीय समारोहों के साथ, एक सार्वजनिक अवकाश के रूप में मान्यता प्राप्त है।[47][48]संयुक्त राज्य अमेरिकासंयुक्त राज्य अमेरिका में कई शहरों में दीवाली की घटनाओं और समारोहों का आयोजन किया जाता है। ऊपर: सैन एन्टोनियो, टेक्सास की एक घटना।[49]2003 में दीपावली को व्हाइट हाउस में पहली बार मनाया गया और पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज वॉकर बुश द्वारा 2007 में संयुक्त राज्य अमेरिका कांग्रेस द्वारा इसे आधिकारिक दर्जा दिया गया।[50][51] 2009 में बराक ओबामा, व्हाइट हाउस में व्यक्तिगत रूप से दीपावली में भाग लेने वाले पहले राष्ट्रपति बने। संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में भारत की अपनी पहली यात्रा की पूर्व संध्या पर, ओबामा ने दीवाली की शुभकामनाएं बांटने के लिए एक आधिकारिक बयान जारी किया।[52]2009 में काउबॉय स्टेडियम में, दीपावली मेला में 100,000 लोगों की उपस्थिति का दावा किया था। 2009 में, सैन एन्टोनियो आतिशबाजी प्रदर्शन सहित एक अधिकारिक दीपावली उत्सव को प्रायोजित करने वाला पहला अमेरिकी शहर बन गया; जिसमे 2012 में, 15,000 से अधिक लोगों ने भाग लिया था।[53] वर्ष 2011 में न्यूयॉर्क शहर, पियरे में, जोकि अब टाटा समूह के ताज होटल द्वारा संचालित हैं, ने अपनी पहली दीपावली उत्सव का आयोजन किया।[54] संयुक्त राज्य अमेरिका में लगभग 3 लाख हिंदू हैं।[55]ब्रिटेनलीसेस्टर, यूनाइटेड किंगडम में दीवाली की सजावट।[56]ब्रिटेन में भारतीय लोग बड़े उत्साह के साथ दिपावली मनाते हैं। लोग अपने घरों को दीपक और मोमबत्तियों के साथ सजाते और स्वच्छ करते हैं। दीया एक प्रकार का प्रसिद्ध मोमबत्ति हैं। लोग लड्डू और बर्फी जैसी मिठाइयो को भी एक दूसरे में बाटते है, और विभिन्न समुदायों के लोग एक धार्मिक समारोह के लिए इकट्ठा होते है और उसमे भाग लेते हैं। भारत में परिवार से संपर्क करने और संभवतः उपहार के आदान प्रदान के लिए भी यह एक बहुत अच्छा अवसर है।व्यापक ब्रिटिश के अधिक गैर-हिंदु नागरिकों को सराहना चेतना के रूप में दीपावली के त्योहार की स्वीकृति मिलना शुरू हो गया है और इस अवसर पर वो हिंदू धर्म का जश्न मानते है। हिंदुओ के इस त्यौहार को पूरे ब्रिटेन भर में मनाना समुदाय के बाकी लोगों के लिए विभिन्न संस्कृतियों को समझने का अवसर लाता है।[57][58] पिछले दशक के दौरान प्रिंस चार्ल्स (en:Charles, Prince of Wales) जैसे राष्ट्रीय और नागरिक नेताओं ने ब्रिटेन के Neasden में स्थित स्वामीनारायण मंदिर जैसे कुछ प्रमुख हिंदू मंदिरों में दीपावली समारोह में भाग लिया है, और ब्रिटिश जीवन के लिए हिंदू समुदाय के योगदान की प्रशंसा करने के लिए इस अवसर का उपयोग किया।[59][60][61] वर्ष 2013 में प्रधानमंत्री डेविड कैमरन और उनकी पत्नी, दीपावली और हिंदू नववर्ष अंकन Annakut त्योहार मनाने के लिए Neasden में बीएपीएस स्वामीनारायण मंदिर में हजारों भक्तों के साथ शामिल हो गए।[62] 2009 के बाद से, दीपावली हर साल ब्रिटिश प्रधानमंत्री के निवास स्थान, 10 डाउनिंग स्ट्रीट, पर मनाया जा रहा है। [63] वार्षिक उत्सव, गॉर्डन ब्राउन द्वारा शुरू करना और डेविड कैमरन द्वारा जारी रखना, ब्रिटिश प्रधानमंत्री द्वारा की मेजबानी की सबसे प्रत्याशित घटनाओं में से एक है।[57]लीसेस्टर (en:Leicester) भारत के बाहर कुछ सबसे बड़ी दिपावली समारोह के लिए मेजबान की भूमिका निभाता है।[64]न्यूज़ीलैंडन्यूजीलैंड में, दीपावली दक्षिण एशियाई प्रवासी के सांस्कृतिक समूहों में से कई के बीच सार्वजनिक रूप से मनाया जाता है। न्यूजीलैंड में एक बड़े समूह दिपावली मानते हैं जो भारत-फ़ीजी समुदायों के सदस्य हैं जोकि प्रवासित हैं और वहाँ बसे हैं। दिवाली 2003 में, एक अधिकारिक स्वागत के बाद न्यूजीलैंड की संसद पर आयोजित किया गया था।[65] दीपावली हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है। त्योहार अंधकार पर प्रकाश, अन्याय पर न्याय, अज्ञान से अधिक बुराई और खुफिया पर अच्छाई, की विजय का प्रतीक हैं। लक्ष्मी माता को पूजा जाता है। लक्ष्मी माता प्रकाश, धन और सौंदर्य की देवी हैं। बर्फी और प्रसाद दिपावली के विशेष खाद्य पदार्थ हैं।फिजीफिजी में, दीपावली एक सार्वजनिक अवकाश है और इस धार्मिक त्यौहार को हिंदुओं (जो फिजी की आबादी का करीब एक तिहाई भाग का गठन करते है) द्वारा एक साथ मनाया जाता है, और सांस्कृतिक रूप से फिजी के दौड़ के सदस्यों के बीच हिस्सा लेते है और यह बहुत समय इंतजार करने के बाद साल में एक बार आता है। यह मूल रूप से 19 वीं सदी के दौरान फिजी के तत्कालीन कालोनी में ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप से आयातित गिरमिटिया मजदूरों द्वारा मनाया है, सरकार की कामना के रूप में फिजी के तीन सबसे बड़े धर्मों, यानि, ईसाई धर्म, हिंदू धर्म और इस्लाम के प्रत्येक की एक अलग से धार्मिक सार्वजनिक छुट्टी करने की स्थापना के लिए यह 1970 में स्वतंत्रता पर एक छुट्टी के रूप में स्थापित किया गया था।फिजी में, भारत में दिपावली समारोह से एक बड़े पैमाने पर मनाया जाने के रूप में दीपावली पर अक्सर भारतीय समुदाय के लोगों द्वारा विरोध किया जाता है, आतिशबाजी और दीपावली से संबंधित घटनाओं को वास्तविक दिन से कम से कम एक सप्ताह शुरू पहले किया जाता है। इसकी एक और विशेषता है कि दीपावली का सांस्कृतिक उत्सव (अपने पारंपरिक रूप से धार्मिक उत्सव से अलग), जहां फिजीवासियों भारतीय मूल या भारत-फिजीवासियों, हिंदू, ईसाई, सिख या अन्य सांस्कृतिक समूहों के साथ मुस्लिम भी फिजी में एक समय पर दोस्तों और परिवार के साथ मिलने और फिजी में छुट्टियों के मौसम की शुरुआत का संकेत के रूप में दीपावली का जश्न मनाते है। व्यावसायिक पक्ष पर, दीपावली कई छोटे बिक्री और मुफ्त विज्ञापन वस्तुएँ के लिए एक सही समय है। फिजी में दीपावली समारोह ने, उपमहाद्वीप पर समारोह से स्पष्ट रूप से अलग, अपने खुद के एक स्वभाव पर ले लिया है।समारोह के लिए कुछ दिन पहले नए और विशेष कपड़े, साथ साड़ी और अन्य भारतीय कपड़ों में ड्रेसिंग के साथ सांस्कृतिक समूहों के बीच खरीदना, और सफाई करना, दीपावली इस समय का प्रतिक होता है। घरों को साफ करते हैं और तेल के लैंप या दीये जलाते हैं। सजावट को रंगीन रोशनी, मोमबत्तियाँ और कागज लालटेन, साथ ही धार्मिक प्रतीकों का उपयोग कर रंग के चावल और चाक से बाहर का एक रंगीन सरणी साथ गठन कर के घर के आसपास बनाते है। परिवार, दोस्तों और पड़ोसियों और घरों के लिए बनाए गये निमंत्रण पत्र खुल जाते है। उपहार बनते हैं और प्रार्थना या पूजा हिन्दुओं द्वारा किया जाता है। मिठाई और सब्जियों के व्यंजन अक्सर इस समय के दौरान खाया जाता है और आतिशबाजी दिपावली से दो दिन पहले और बाद तक में जलाए जाते है।अफ्रीकामॉरिशसअफ्रीकी हिंदू बहुसंख्यक देश मॉरिशस में यह एक अधिकारिक सार्वजनिक अवकाश है।रीयूनियनरियूनियन में, कुल जनसंख्या का एक चौथाई भाग भारतीय मूल का है और हिंदुओं द्वारा इसे मनाया जाता है।पर्वों का समूह दीपावलीरंगोलीदीपावली के दिन भारत में विभिन्न स्थानों पर मेले लगते हैं।[66] दीपावली एक दिन का पर्व नहीं अपितु पर्वों का समूह है। दशहरे के पश्चात ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती है। लोग नए-नए वस्त्र सिलवाते हैं। दीपावली से दो दिन पूर्व धनतेरस का त्योहार आता है। इस दिन बाज़ारों में चारों तरफ़ जनसमूह उमड़ पड़ता है। बरतनों की दुकानों पर विशेष साज-सज्जा व भीड़ दिखाई देती है। धनतेरस के दिन बरतन खरीदना शुभ माना जाता है अतैव प्रत्येक परिवार अपनी-अपनी आवश्यकता अनुसार कुछ न कुछ खरीदारी करता है। इस दिन तुलसी या घर के द्वार पर एक दीपक जलाया जाता है। इससे अगले दिन नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली होती है। इस दिन यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं। अगले दिन दीपावली आती है। इस दिन घरों में सुबह से ही तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। बाज़ारों में खील-बताशे, मिठाइयाँ, खांड़ के खिलौने, लक्ष्मी-गणेश आदि की मूर्तियाँ बिकने लगती हैं। स्थान-स्थान पर आतिशबाजी और पटाखों की दूकानें सजी होती हैं। सुबह से ही लोग रिश्तेदारों, मित्रों, सगे-संबंधियों के घर मिठाइयाँ व उपहार बाँटने लगते हैं। दीपावली की शाम लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा की जाती है। पूजा के बाद लोग अपने-अपने घरों के बाहर दीपक व मोमबत्तियाँ जलाकर रखते हैं। चारों ओर चमकते दीपक अत्यंत सुंदर दिखाई देते हैं। रंग-बिरंगे बिजली के बल्बों से बाज़ार व गलियाँ जगमगा उठते हैं। बच्चे तरह-तरह के पटाखों व आतिशबाज़ियों का आनंद लेते हैं। रंग-बिरंगी फुलझड़ियाँ, आतिशबाज़ियाँ व अनारों के जलने का आनंद प्रत्येक आयु के लोग लेते हैं। देर रात तक कार्तिक की अँधेरी रात पूर्णिमा से भी से भी अधिक प्रकाशयुक्त दिखाई पड़ती है। दीपावली से अगले दिन गोवर्धन पर्वत अपनी अँगुली पर उठाकर इंद्र के कोप से डूबते ब्रजवासियों को बनाया था। इसी दिन लोग अपने गाय-बैलों को सजाते हैं तथा गोबर का पर्वत बनाकर पूजा करते हैं। अगले दिन भाई दूज का पर्व होता है।भाई दूज या भैया द्वीज को यम द्वितीय भी कहते हैं। इस दिन भाई और बहिन गांठ जोड़ कर यमुना नदी में स्नान करने की परंपरा है। इस दिन बहिन अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगा कर उसके मंगल की कामना करती है और भाई भी प्रत्युत्तर में उसे भेंट देता है। दीपावली के दूसरे दिन व्यापारी अपने पुराने बहीखाते बदल देते हैं। वे दूकानों पर लक्ष्मी पूजन करते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से धन की देवी लक्ष्मी की उन पर विशेष अनुकंपा रहेगी। कृषक वर्ग के लिये इस पर्व का विशेष महत्त्व है। खरीफ़ की फसल पक कर तैयार हो जाने से कृषकों के खलिहान समृद्ध हो जाते हैं। कृषक समाज अपनी समृद्धि का यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाता हैं।परम्पराअंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है। यह पर्व सामूहिक व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाए जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक, सांस्कृतिक व सामाजिक विशिष्टता रखता है। हर प्रांत या क्षेत्र में दीपावली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढ़ियों से यह त्योहार चला आ रहा है। लोगों में दीपावली की बहुत उमंग होती है। लोग अपने घरों का कोना-कोना साफ़ करते हैं, नये कपड़े पहनते हैं। मिठाइयों के उपहार एक दूसरे को बाँटते हैं, एक दूसरे से मिलते हैं। घर-घर में सुन्दर रंगोली बनायी जाती है, दिये जलाए जाते हैं और आतिशबाजी की जाती है। बड़े छोटे सभी इस त्योहार में भाग लेते हैं। अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास, भाई-चारे व प्रेम का संदेश फैलाता है। हर प्रांत या क्षेत्र में दीपावली मनाने के कारण एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढ़ियों से यह त्योहार चला आ रहा है। लोगों में दीपावली की बहुत उमंग होती है।दिपावली पूजा की सम्पूर्ण विधि[मृत कड़ियाँ]सबसे पहले चौकी पर लाल कपड़ा बिछाये लाल कपडे के बीच में गणेश जी और लक्ष्मी माता की मूर्तियां रखे. लक्ष्मी जी को ध्यान से गणेश जी के दाहिने तरफ ही बिढाये और दोनों मूर्तियों का चेहरा पूरब ौ पश्चिम दिशा की तरफ रखे. अब दोनों मूर्तियों के आगे थोड़े रुपए इच्छा अनुसार सोने चांदी के आभुश्ण और चांदी के 5 सिक्के भी रख दे. यह चांदी के सिक्के ही कुबेर जी का रूप है. लक्ष्मी जी की मूर्ति के दाहिनी ओर अछत से अष्टदल बनाएं यानी कि आठ दिशाएं उंगली से बनाए बीच से बाहर की ओर फिर जल से भरे कलश को उस पर रख दे . कलश के अंदर थोड़ा चंदन दुर्व पंचरत्न सुपारी आम के या केले के पत्ते डालकर मौली से बंधा हुआ नारियल उसमें रखें. पानी के बर्तन यानि जल पात्र में साफ पानी भरकर उसमें मौली बांधे और थोड़ा सा गंगाजल उसमें मिलाएं. इसके बाद चौकी के सामने बाकी पूजा सामग्री कि थालीया रखे. दो बडे दिये मे देसी घी डालकर और ग्यारह छोटे दिये मे सरसो का तेल भर तैयार करके रखे. घर के सभी लोगों के बैठ्ने के लिए चौकी के बगल आसन बना ले. ध्यान रखें ये सभी काम शुभ मुहुरत शुरू होने से पहले ही करने होंगे. शुभ मुहुरत शुरू होने से पहले घर के सभी लोग नहा कर नए कपड़े पहन कर तैयार हो जाएं और आसन ग्रह्ण करें.दीपावली त्यौहारवायु प्रदूषण एवं अन्य चिन्तनीय पक्षदुनिया के अन्य प्रमुख त्योहारों के साथ ही दीपावली का पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव चिंता योग्य है।वायु प्रदूषणविद्वानों के अनुसार आतिशबाजी के दौरान इतना वायु प्रदूषण नहीं होता जितना आतिशबाजी के बाद। जो प्रत्येक बार पूर्व दीपावली के स्तर से करीब चार गुना बदतर और सामान्य दिनों के औसत स्तर से दो गुना बुरा पाया जाता है। इस अध्ययन की वजह से पता चलता है कि आतिशबाज़ी के बाद हवा में धूल के महीन कण (en:PM2.5) हवा में उपस्थित रहते हैं। यह प्रदूषण स्तर एक दिन के लिए रहता है, और प्रदूषक सांद्रता 24 घंटे के बाद वास्तविक स्तर पर लौटने लगती है।[67] अत्री एट अल की रिपोर्ट अनुसार नए साल की पूर्व संध्या या संबंधित राष्ट्रीय के स्वतंत्रता दिवस पर दुनिया भर आतिशबाजी समारोह होते हैं जो ओजोन परत में छेद के कारक हैं। [68]जलने की घटनाएंदीपावली की आतिशबाजी के दौरान भारत में जलने की चोटों में वृद्धि पायी गयी है। अनार नामक एक आतशबाज़ी को 65% चोटों का कारण पाया गया है। अधिकांशतः वयस्क इसका शिकार होते हैं। समाचार पत्र, घाव पर समुचित नर्सिंग के साथ प्रभावों को कम करने में मदद करने के लिए जले हुए हिस्से पर तुरंत ठंडे पानी को छिड़कने की सलाह देते हैं अधिकांश चोटें छोटी ही होती हैं जो प्राथमिक उपचार के बाद भर जाती हैं।[69][70]दीपावली की प्रार्थनाएंप्रार्थनाएंक्षेत्र अनुसार प्रार्थनाएं अगला-अलग होती हैं। उदाहरण के लिए बृहदारण्यक उपनिषद की ये प्रार्थना जिसमें प्रकाश उत्सव चित्रित है:[71][72][73][74]असतो मा सद्गमय।तमसो मा ज्योतिर्गमय।मृत्योर्मा अमृतं गमय।ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥अनुवाद:[75][76]असत्य से सत्य की ओर।अंधकार से प्रकाश की ओर।मृत्यु से अमरता की ओर।(हमें ले जाओ)ॐ शांति शांति शांति।।चित्रमेलबर्न में दिपावली मनानेपर भारतीय तिरंगा लहराया जाता है दीपावली के दिन सांस्कृतिक कार्यकर्मों का आयोजन किया जाता है मेलबोर्न में दीपावली आतिशबाजी लीसेस्टर, यूनाइटेड किंगडम में दीपावली की सजावट।सन्दर्भ↑ Charles M Townsend, The Oxford Handbook of Sikh Studies, Oxford University Press, ISBN 978-0199699308, page 440↑ The New Oxford Dictionary of English (1998) ISBN 0-19-861263-X – p.540 "Diwali /dɪwɑːli/ (also Divali) noun a Hindu festival with lights...".↑ Diwali Archived 2015-05-01 at the Wayback Machine Encyclopedia Britannica (2009)↑ अ आ Diwali – Celebrating the triumph of goodness Archived 2015-09-24 at the Wayback Machine Hinduism Today (2012)↑ Jean Mead, How and why Do Hindus Celebrate Divali?, ISBN 978-0-237-534-127↑ Vera, Zak (February 2010). 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[...] Beyond the senses there are the objects, beyond the objects there is the mind, beyond the mind there is the intellect, the Self is beyond the intellect. Beyond the Self is the Undeveloped, beyond the Undeveloped is the Purusha. Beyond the Purusha there is nothing, this is the goal, the highest road. A wise man should keep down speech and (impulses of) mind, he should keep them within the Self which is knowledge."↑ "दीवाली 2020 [Hindi]: दीपावली पर जानिए हमें किसकी भक्ति करनी चाहिए?". S A NEWS(अंग्रेज़ी में). 2020-11-10. अभिगमन तिथि 2020-11-13.↑ अ आ BN Sharma, Festivals of India, South Asia Books, ISBN 978-0836402834, pp. 9–35↑ Varadpande, Manohar Laxman (1987). History of Indian Theatre, Volume 1. Abhinav Publications. पृ॰ 159. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788170172215. |access-date= दिए जाने पर |url= भी दिया जाना चाहिए (मदद)↑ R.N. Nandi (2009), in A Social History of Early India (Editor: B. 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