संदेश

*आश्रम के निर्माण में सहयोग करें**संगरिया इलाके में इस तरह का चल रहा है पहला बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम*आप सभी को सूचित किया जाता है कि लावारिस, बेसहारा और मंदबुद्धि व्यक्तियों माता बहिन की देखभाल की सेवा के लिए संगरिया इलाके में इस तरह का पहला आश्रम संगरिया हनुमानगढ़ राजस्थान वार्ड नं 12 में चल रहा है।आप जी अपनी नेक कमाई से इस आश्रम के निर्माण में सहयोग करके पुन्य के भागी बनें।सहयोग के लिए संपर्क करें : 9877264170निम्नलिखित में से किसी भी सामान का सहयोग करें जी 👇रजाई, गधे, गर्म स्वेटर, बेड, कनक, आटा दाल खांड चाय गैस सिलेंडर इत्यादि सहयोग के लिए संपर्क करें : 9780948925______________________धनराशि का सहयोग करने के लिए इनमें से किसी भी माध्यम से सहयोग भेजा जा सकता है जी 👇Paytm =* 9877264170 Google Pay =9877264170_________________________👇 *गुगल पे* *फोन पे*👇*9877264170*________________________*जनहित में जारी**बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम (रजि.)**वार्ड, नं 12 संगरिया*

#आज #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता #कासनियां #पंजाब को #फूलों की #माला #चाय नाश्ता #नमकीन #मिठाई खिला कर #स्मानीत किया #संगरिया #भगतपुरा #रोड #वार्ड न. 25 मे #गुरविदार #सिंह जी और सारे #महोले के सारे #बहिन भाई #दादा #दादी #ताऊ #ताई बहुत #बहुत #धन्यवाद सभी काबहुत बहुत धन्यवाद!❤️आपकी दया बस भारी है। मैं इसकी बहुत सराहना करती हूं।❤️आपने मुझे अपनी तरह के इशारे से अपने पैरों से खटखटाया। भगवान आपका भला करे।मैं क्या कह सकती हूं ... मेरे दिल की गहराई से बहुत-बहुत धन्यवाद।❤️भावुक है मन मेरा,आप सबका #प्यार पाकर।स्नेह मिला है आप सबसे मुझे,सम्मान आप सबने दिया।आभार है उन सभी का,जिन्होंने मुझे है,#आशीष दिया।मुझे साथ आपका चाहिए,जिंदगी के हर मोड़ पर।लिख रही हूं मै बस इतना सा,मेरा भावुक हृदय आप जानिए।🙏🙏❤️https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=944131316222481&id=100018768637456

*जब किसी जरूरतमंद की आवाज़ तुम तक पहुँचे तो परमात्मा का शुक्र अदा करना ना भूलना...**क्योकि उसने अपने बंदे की मदद करने के लिए तुमको पसंद किया हैं तुमको चुना हैं,**वरना वो तो सबके लिए अकेला ही काफी हैं...* *सुप्रभात*

बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम मंदबुद्धि बेसहारा लोगों के लिए सहारा बन रही है। समिति की ओर से जिला हनुमानगढ़ में बेसहारा मंदबुद्धि, बेसहारा, गरीब और समाज से पिछड़े हुए लोगों को ढूंढ़कर उनके शरीर की साफ सफाई, आर्थिक सहायता के अलावा उनके घरों के पते की पहचान करके उन्हें घरों तक छोड़ा जा रहा है। इसी के तहत आज बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम संगरिया के सदस्यों ने संगरिया शहर के 11 बेसहारा मंदबुद्धि लोगों को ढूंढ़कर उनको नहलाया गया और उन्हें खाना खिलाया और आर्थिक सहायता के अलावा उन्हें कपड़े आदि दिए गए। इस संबंधी जानकारी देते हुए बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब ने बताया कि यह बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम पिछले कई माह से हनुमानगढ़ जिले में बेसहारा लोगों की सेवा कर रही है। उन्होंने बताया कि सर्दियों के मौसम में संस्था द्वारा 300 जरूरतमंद परिवारों कंबल वितरित किए गए हैं। उन्होंने कहा कि बेसहारा लोग, जो सड़कों पर अपना गुजारा कर रहे हैं, को सहायता देने और देखभाल के लिए संस्था बड़े स्तर पर प्रोजेक्ट चला रही है। उन्होंने कहा कि उनकी ओर से ढूंढ़े गए लोगों को उनके परिवारों से मिलाने का भी काम किया जा रहा है। अब तक हनुमानगढ़ में अधिकांश ऐसे लोगों की साफ सफाई करके उन्हें नए कपड़े पहनाए गए और उन्हें अपनी पहचान वापिस दिलाई गई है। आज भी संस्था ने संगरिया शहर के रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड अन्य जगहों से 11 व्यक्तियों को ढूंढ़कर उन्हें नहलाया, नए कपड़े पहनाए गए और खाना खिलाया गया। उन्होंने कहा कि इन्हें अपनों का अहसास दिलाने के लिए संस्था का हर सदस्य अपने रोजमर्रा की जिंदगी से समय निकालकर हर रविवार को ऐसे लोगों को ढूंढती है और उनकी सेवा करती है। उन्होंने बताया कि उक्त 11 लोगों में से 2 व्यक्तियों ने अपने घर का पता बताया और वह उन्हें घर तक पहुंचाने जाएंगे। इस मौके पर कमल शर्मा, आजाद, रविंद्र शास्त्री मीरा मौजूद थे।बेसहारा लोगों की आर्थिक सहायता करते हुए बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम संगरिया राजस्थान की टीम के सदस्य।समाजसेवाBal Vanitha Mahila Old Age Ashram is becoming a support for the retarded destitute people. On behalf of the committee, the destitute, retarded, destitute, poor and backward people from the society are being found in the district Hanumangarh, cleaning their bodies, financial assistance, besides identifying the addresses of their homes and leaving them to their homes. Under this, today the members of Bal Vanitha Mahila Old Age Ashram Sangaria found 11 destitute retarded people of Sangaria city and bathed them and fed them and apart from financial assistance they were given clothes etc. Giving information about this, the President of Bal Vanitha Mahila Vridha Ashram, Mrs. Vanitha Kasnian Punjab said that this Bal Vanitha Mahila Vridha Ashram has been serving the destitute people in Hanumangarh district for the last several months. He informed that 300 needy families have distributed blankets by the organization during the winter season. He said that the organization is running a large-scale project to help and care for the destitute people who are living on the streets. He said that work is also being done to reunite the people traced by him with their families. Till now, most of such people in Hanumangarh have been cleaned and put on new clothes and they have been given back their identity. Even today, the organization found 11 people from the railway station, bus stand and other places of Sangaria city and made them bathe, put on new clothes and fed them. He said that to make them feel like their loved ones, every member of the organization takes out time from their everyday life to find and serve such people every Sunday. He told that out of the above 11 people, 2 persons told the address of their house and he would go to take them home. Kamal Sharma, Azad, Ravindra Shastri Meera were present on this occasion. Members of the team of Bal Vanitha Mahila Old Age Ashram Sangaria Rajasthan while helping the destitute people financially. Social service

#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम #संगरिया #राजस्थान में आज #ऋतू जी #सिंगला अपने #जन्म #दिन पर #बे_सहारा को #मिठाई और #समोसे खिलाने आए बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम संगरिया राजस्थान टीम की तरफ से आपको बहुत बहुत बधाई और #धन्यवाद ऋतु सिंगला जी आप का

हमारे हिन्दू धर्म में दान का विशेष महत्व है। जिसके करने से हमारे जीवन पर गहरा असर पड़ता है।*बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब* हर त्यौहार में गरीबों को दान देने की बात कही गई है। दान उसे कहते है जिसे देने के बाद उसे याद ना किया जाए। हिन्दू धर्म में गौ-दान से लेकर कन्यादान तक की परम्परा है। और इसमें यह भी कहा गया है कि हमारी कमाई का 10वां हिस्सा गरीबों को दान देने के लिए होता है ऐसा हमारे धर्म में कहा गया है। यदि देखा जाए तो इस्लाम में भी दान पुण्य करने का विशेष महत्व है, उसे जकात कहा जाता है। आय का एक निश्चित हिस्सा फकीरों के लिए दान करने की हिदायत दी गई है। बैसे तो हम अक्सर चीजों को दान करते है लेकिन श्राद्ध, संक्रांति, अमावस्या जैसे मौकों पर विशेषकर दान पुण्य किया जाता है। प्राय किन-किन चीजों का दान किया जाता है, वो यहां जान लेते हैं।1 बे सहारा को दान- हमारे हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा दान बे सहारा दान माना गया है। जो सभी दान में श्रेष्ठ है। बे सहारा को दान करने से घर में सुख शांति के साथ धन-संपत्ति बनी रहती है।2 अनाज का दान- गरीबों के हम अन्नदान भी करते है जिसमें गेहूं, चावल का दान सही माना गया है। यह दान संकल्प सहित करने पर मनोवांछित फल देता है।3 घी का दान- गाय का घी एक बर्तन में रखकर दान करने से घर की दरिद्रता दूर होती है। घर में शांति बनी रहती है।4 तिल का दान- मानव जीवन के हर कर्म में तिल का महत्व है। खास कर के श्राद्ध और किसी के मरने पर। काले तिलों का दान संकट, विपदाओं से रक्षा करता है।5 वस्त्रों का दान- हर किसी खास चीजों पर वस्त्रों का दान करने की हिदायत दी जाती है। इस दान में धोती और दुपट्टा सहित दो वस्त्रों के दान का महत्व है। इससे घर के दोष दूर हो जाते है।6 गुड़ का दान- गुड़ का दान कलह और दरिद्रता का नाश कर धन और सुख देने वाला माना गया है।

दान एवं परमार्थ पर सुंदर दोहे बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाबदान एवं परमार्थ पर सुंदर दोहेराय 1 अपनी राय पोस्ट करेंश्रेष्ठ व्यक्ति के गुणों में से एक है दानी होना। दूसरों की सहायता के लिए अपनी वस्तुओं का दान करना मानवता की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जाता है। आज के इस लेख में हम कुछ ऐसे ही दोहे लेकर आए हैं, जो दान, परमार्थ एवं परोपकार की बातें करते हैं।मित्रों, आज कल का जीवन बहुत अधिक व्यस्त एवं संकुचित होता जा रहा है, जहां व्यक्ति केवल अपने बारे में सोचने लगा है। हम दूसरों की तकलीफों व आवश्यकताओं के बारे में अधिक विचार नहीं करते और केवल अपने हित की इच्छा ने हमें अंधा बना दिया है।इस विचारधारा के कारण हम दूसरों की मदद करने से हमेशा कतराने लगे हैं। शास्त्रों में दान को मानवता के लिए आवश्यक बताया गया है किंतु हम इसी को भूलते जा रहे हैं ।आज के लेख में हमारी यही कोशिश है कि हम पूर्वजों द्वारा दी गई इस सीख को वापस से अपने जीवन में शामिल कर सकें। तो आइए जानते हैं दान एवं परमार्थ पर कविवर रहीम, तुलसीदास एवं कबीर दास जी ने क्या विचार प्रकट किए हैं :1 ) रहिमन वे नर मर चुके, जो कछु मांगन जाहिं।उनसे पहले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं ।।यह दोहा महान दार्शनिक एवं कवि अब्दुर रहीम खान - ए - खाना द्वारा रचित है, जिन्हें हम रहीम के नाम से भी जानते हैं। मित्रों, ईश्वर ने मनुष्य को बुद्धि एवं क्षमता के साथ जीवन यापन के साधन भी उपलब्ध कराए हैं। ईश्वर ने मनुष्य को इतना सामर्थ्यवान बनाया है कि वह मेहनत करके स्वयं अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है।पुरुषार्थ के बल पर जीवन यापन करने वाले व्यक्ति का समाज में आदर होता है, किंतु जो श्रम ना कर परिस्थितियों के समक्ष घुटने टेक देते हैं एवं दूसरों के सामने हाथ फैला देते हैं, ऐसे मनुष्य का आत्मसम्मान मर हो चुका होता है।किंतु रहीम के अनुसार याचना करने वालों से भी अधिक नीच कुछ व्यक्ति है। आइए जाने रहीम ने किन व्यक्तियों की बात की है। प्रस्तुत दोहे में वह कहते हैं कि जो व्यक्ति किसी से कुछ मांगते अथवा याचना करते हैं, ऐसे व्यक्ति मृतक के समान है। अर्थात ऐसे व्यक्तियों का आत्मसम्मान, इच्छाशक्ति और अंतर आत्मा मर चुकी होती है।किंतु ऐसे व्यक्तियों से पहले वह व्यक्ति मृतक हो जाते हैं, जिनके मुख से याचना करने वाले के लिए नहीं निकलता है। अर्थात, जो दान करने के इच्छुक नहीं होते हैं। रहीम ने दोनों ही स्थितियों को मनुष्य के लिए लज्जा का विषय बताया है । किंतु दान देने से मना कर देने वाले व्यक्ति से अधिक हेय और कोई नहीं है। परोपकार ना करना मृत होने के समान बताया गया है।2 ) तुलसी पंछिन के पिये, घटे न सरिता नीर ।दान दिये धन ना घटे, जो सहाय रघुवीर ।।महाकवि तुलसीदास जी द्वारा रचित यह दोहा दान करने से डरने वाले व्यक्तियों के लिए उपयोगी है। दान करना परमार्थ का कार्य है, जिससे मनुष्य के सभी गुण और अधिक श्रेष्ठ बनते हैं।दान करने से धन कम होता है, इस विचार को गलत बताते हुए कविवर तुलसीदास जी कहते हैं कि नदी से पंछी के पानी पी लेने से नदी का पानी कम नहीं हो जाता।केवल पक्षी ही नहीं, बल्कि असंख्य जानवर व मनुष्य प्रतिदिन नदी से पानी लेते हैं, पर क्या कभी नदी का पानी कम होता है ? नहीं ! ठीक इसी प्रकार तुलसी कहते हैं कि दान देने से मनुष्य का धन नहीं घटता।दान करना परोपकार है, जिससे व्यक्ति ईश्वर का आशीर्वाद पाता है । अर्थात दानी व्यक्ति से सदा ईश्वर प्रसन्न रहते हैं एवं उसकी झोली सदा धन से भरकर रखते हैं।प्रस्तुत दोहे से हमें यह शिक्षा मिली है कि कभी भी हमें दूसरों को कुछ देने से पहले यह नहीं सोचना चाहिए कि इस वस्तु के दान से हमारे पास वह वस्तु कम हो जाएगी। सच्चे मन से किया गया दान बड़ी तपस्या के फल के समान होता है । अतः मनुष्य को सदैव परोपकार हेतु दान करना चाहिए।3 ) मरु पर मांगू नहीं, अपने तन के काज ।परमारथ के कारने, मोहि न आबे लाज।।यह दोहा महान रहस्यवादी एवं निर्गुण काव्यधारा के कवि कबीर दास जी द्वारा रचित है, जहां वह कह रहे हैं कि अपने लिए दूसरों के सामने हाथ फैलाना मरने के समान है।व्यक्ति को अपने लिए कभी याचना नहीं करनी चाहिए । किंतु यदि बात दूसरों के हित की हो, तो व्यक्ति को सौ बार भी हाथ फैलाने पड़ जाए, तब भी वह पुण्य का भागी बनता है। इसी संदेश को प्रतिपादित करते हुए कबीरदास जी कहते हैं कि मैं मरना पसंद करूंगा, किंतु अपने शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसी से भी कुछ नहीं मांगूंगा।अर्थात स्वयं के लिए कुछ भी मांगना मृत्यु सदृश है। किंतु यदि परमार्थ, अर्थात दूसरों की सहायता के लिए याचना करनी पड़े, तो मुझे तनिक भी लज्जा नहीं होगी। यह दोहा हमें यह शिक्षा देता है कि मनुष्य की पहली प्राथमिकता केवल परोपकार एवं परमार्थ होना चाहिए, जिसके लिए उसे जो भी करना पड़े, वह करने से पीछे ना हटे।4 ) जो कोई करै सो स्वार्थी, अरस परस गुण देत।बिन किये करै सो सूरमा, परमारथ के हेत ।।दान अथवा परोपकार का अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति कुछ दे, और बदले में कुछ ले, अथवा लेने की आशा रखे। परमार्थ केवल देने की भावना से किया जाता है। यही समझाते हुए कबीरदास जी कहते हैं कि जो अरस परस कर देता है, अर्थात जो व्यक्ति अपने लिए किए गए कार्य के बदले में ही कुछ करता है, वह निश्चय ही स्वार्थी है।ऐसा व्यक्ति स्वेच्छा से कभी भी दान नहीं करता। असली सूरमा तो वह है, जो बिना किसी उपकार की आशा के, केवल परमार्थ की सिद्धि के लिए दूसरों की सहायता एवं उपकार करें। यहां हमें यह समझना होगा कि स्वार्थ में देने के बदले लेने की भावना निहित होती है, किंतु परमार्थ में केवल देने की इच्छा होती है। अपना लाभ देखकर किया गया दान ना तो दान कहलाता है, और ना ही परोपकार।5 ) जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम।दोऊ हाथ उलीचिये, यही सयानों काम।।संसार में जितने भी शास्त्र हैं, उनमें यही सीख दी गई है कि मनुष्य को सदैव संतोषी होना चाहिए। जीवन यापन के लिए जितना धन, जितने संसाधन चाहिए यदि उससे अधिक मनुष्य के पास हो तो उसे दूसरों को दान करना चाहिए। जीवन यापन के लिए पर्याप्त संसाधनों की उपलब्धि में ही व्यक्ति को सुखी होनी चाहिए, ना कि अधिक पाने का लोभ करना चाहिए। इस दोहे का सार यही है।कबीर दास जी दोहे की पहली पंक्ति में कहते हैं कि जब नाव में पानी बढ़ने लगे, और जब घर में बहुत अधिक धन एवं ऐश्वर्य जमा होने लगे, तो उसे जल्द से जल्द दोनों हाथ से उलीच कर बाहर कर देना चाहिए । अर्थात, आवश्यकता से अधिक धन का दान कर देना चाहिए। यही बुद्धिमान एवं विचक्षण व्यक्ति की पहचान है।कबीर दास जी के इस दोहे में यह संदेश छिपा है कि जिस प्रकार नाव में अत्यधिक जल बढ़ जाने से वह डूब जाता है, ठीक उसी प्रकार गृहस्थ जीवन में अधिक धन-संपत्ति के जमा हो जाने से माया, लोभ, पाप, दुराचार जैसे कुकर्मों का जन्म होने लगता है, एवं गृह का विनाश हो जाता है। अतः इस धन का दान करना ही सबसे अच्छा है।निष्कर्ष :मित्रों, प्रस्तुत लेख में आपने दान एवं परमार्थ से जुड़े दोहों का आनंद लिया । कविवर रहीम, कबीर एवं तुलसीदास जी ने यही सीख दी है कि मनुष्य को सदा दानी बनना चाहिए।यहां तक कहा जाता है कि जब मनुष्य दान देने के योग्य ना हो, तब उसका जीवन निरर्थक हो जाता है। बड़े-बड़े धर्म-कर्म कांडों से भी अधिक महत्ता दान को दी गई है, जिसे कई तपस्या के फल के बराबर कहा गया है। अतः मनुष्य का यही कर्तव्य है कि उससे जितना बन पड़े, उतना अधिक परोपकार करना चाहिए।

*तांबे का कड़ा पहनने के लाभ ! वनिता कासनियां पंजाब!1. तांबे का कड़ा पहनने से जोड़ों के दर्द में राहत मिलती है। इसे पहनने से सर्दियों में होने वाली जकड़न को कम किया जा सकता है। पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस में भी ये बेहतद कारगर है। 2. कहते हैं कि तांबा कोलेस्ट्रॉल को भी कंट्रोल रखने का कार्य करता है। इससे रक्त प्रवाह सुचारू रूप से चलता है।3. यह स्किन केयर करता है। तांबे को पहनने से उम्र बढ़ने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। 4. तांबा शरीर में मौजूद अन्य टॉक्सिन को कम करने का काम करता है। 5. कहते हैं कि इससे हीमोग्लोबिन बनाने में मदद मिलती है। 6. यह आपके क्रोध को कंट्रोल करता है। इसके अलावा हाथ में कड़ा धारण करने से कई तरह की बीमारियों से भी रक्षा होती है। 7. पीतल और तांबा मिश्रित धातु का कड़ा पहनने से सभी तरह के भूत-प्रेत आदि नकारात्मक शक्तियों से व्यक्ति की रक्षा होती है। 8. यदि आपका सूर्य कमजोर है तो, तांबे का कड़ा पहनने से यह बलवान हो जाएगा, जिसके चलते आपका मान-सम्मान के साथ ही उन्नती भी बढ़ेगी। 9. कड़ा हनुमानजी का प्रतीक है, इसे पहनने से हनुमानजी की कृपा बनी रहती है और संकट दूर रहते हैं। 10. कहते हैं कि, इससे इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है। अब जानिए नियम : ----- - तांबे का कड़ा पहनने से पहले आपकी कुंडली के ग्रहों की स्थिति को जान लें और ज्योतिष की सलाह पर ही पहनें। - लाल किताब ज्योतिष के अनुसार हाथ पराक्रम भाव है, गला लग्न भाव है और प्रत्येक धातु का एक ग्रह-नक्षत्र है जिसका उस पर प्रभाव होता है। - लाल किताब के अनुसार कलाई पर, अंगुलियों में या गले में कोई सी भी धातु को बहुत ही सोच समझ कर पहनना चाहिए यह आपके लिए घातक भी सिद्ध हो सकती है। - लाल किताब के अनुसार गला हमारा लग्न स्थान होता है और लॉकेट पहनने से हमारा हृदय और फेफड़े प्रभावित होते हैं। अत: लॉकेट सिर्फ तीन तरह की धातु का ही पहनना चाहिए पीतल, चांदी और तांबा। सोना भी सोच-समझकर ही पहनें। - गले या हाथ में कुछ तो भी बगैर सोचे-समझे पहने से आपके मस्तिष्क में परिवर्तन तो होता ही है, साथ ही आपके रक्तचाप में भी बदलावा आ सकता है। हो सकता है कि इससे धीरे-धीरे आपकी बैचेनी बढ़ रही हो। हृदय की धड़कने धीमी पड़ने लगी या और तेज चलने लगी हो ? आपको इसके असर का उसी तरह पता नहीं चलता है, जिस तरह की काले या मटमेले रंगे के कपड़े पहनने के असर का पता नहीं चलता है। - बहुत से लोग कड़ा पहनने के बाद किसी भी प्रकार का नशा करते हैं या अन्य कोई अनैतिक कार्य करते हैं तो, उसे इसकी सजा जरूर मिलती है, इसलिए कड़ा सोच-समझकर पहनें। - ध्यान रहे, यह कड़ा हनुमानजी का आशीर्वाद स्वरूप है, अत: अपनी पवित्रता पूरी तरह बनाए रखें। कोई भी अपवित्र कार्य कड़ा पहनकर न करें अन्यथा कड़ा प्रभावहीन तो हो ही जाएगा, साथ ही इसकी आपको सजा भी मिलेगी।- कड़े को पहनने के पूर्व दिन, वार, नक्षत्र, मुहूर्त आदि को जान लें फिर ही कड़ा पहनें, और बहनों से पहले कड़े को मंत्र अभिमंत्रित कर लें !!सलाह:----उपरोक्त पड़े को धारण करने से पहले अपनी कुंडली किसी विद्वान व्यक्ति को अवश्य दिखा लें !

दान (सूक्तियाँ) By बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब क्रमांक सूक्तियाँ सूक्ति कर्ता (1) दान से वस्तु घटती नहीं बल्कि बढ़ती है। (2) जब घर में धन और नाव में पानी आने लगे, तो उसे दोनों हाथों से निकालें, ऐसा करने में बुद्धिमानी है, हमें धन की अधिकता सुखी नहीं बनाती। वनिता कासनियां पंजाब(3) सैकड़ों हाथो से इकट्ठा करो और हजारों हाथों से बांटो। (4) सज्जनों कि रीति यह है कि कोई अगर उनसे कुछ मांगे तो वे मुख से कुछ न कहकर, काम पूरा करके ही उत्तर देते हैं। (5) जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम, दोउ हाथ उलीचिये, यही सयानों काम। (6) तुम्हारा बायाँ हाथ जो देता है उसे दायाँ हाथ ना जानने पाए। (7) दान देकर तुम्हे खुश होना चाहिए क्योंकि मुसीबत दान की दीवार कभी नहीं फांदती। वनिता -(8) सबसे उत्तम दान यह है कि आदमी को इतना योग्य बना दो कि वह बिना दान के काम चला सके। तालमुद(9) दान के लिए वर्तमान ही सबसे उचित समय है। (10) युधिस्तर के पास एक भिखारी आया। उन्होंने उसे अगले दिन आने के लिए कह दिया। इस पर भीम हर्षित हो उठे। उन्होंने सोचा कि उनके भाई ने कल तक के लिए मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है। (11) विनम्र भाव से ऐसे बे सहारा को दान करना चाहिए जैसे उसके लेने से आप कृतज्ञ हुए। (12) सब दानों में ज्ञान का दान ही श्रेष्ठ दान है। (13) दान, भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं। जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति (नाश) होती है। भर्तृहरि(14) त्याग से पाप का मूलधन चुकता है और दान से ब्याज। (15) जो दान अपनी कीर्ति-गाथा गाने को उतावला हो उठता है, वह अहंकार एवं आडम्बर मात्र रह जाता है। (16) इन दोनों व्यक्तियों के गले में पत्थर बाँधकर पानी में डूबा देना चाहिए- एक दान न करने वाला धनिक तथा दूसरा परिश्रम न करने वाला दरिद्र। (17) जो दानदाता इस भावना से सुपात्र बे सहारा को दान देता है कि, तेरी (परमात्मा) वस्तु तुझे ही अर्पित है; परमात्मा उसे अपना प्रिय सखा बनाकर उसका हाथ थामकर उसके लिये धनों के द्वार खोल देता है; क्योंकि मित्रता सदैव समान विचार और कर्मों के कर्ता में ही होती है, विपरीत वालों में नहीं। (18) जो न बे सहारा को दान देता है, न भोग करता है, उसका धन स्वतः नष्ट हो जाता है। अतः योग्य पात्र को बे सहारा दान देना चाहिए। (19) जो मनुष्य अपने समीप रहने वालों की तो सहायता नहीं करता, किन्तु दूरस्थ की सहायता करता है, उसका दान, दान न होकर दिखावा है। (20) बे सहारा अभय-दान सबसे बडा दान है। वनिता -(21) दान-पुण्य केवल परलोक में सुख देता है पर योग्य संतान सेवा द्वारा इहलोक और तर्पण द्वारा परलोक दोनों में सुख देती है। (22) संपदा को जोड़-जोड़ कर रखने वाले को भला क्या पता कि बे सहारा दान में कितनी मिठास है। वनिता -(23) पिता की सेवा करना जिस प्रकार कल्याणकारी माना गया है वैसा प्रबल साधन न सत्य है, न दान है और न यज्ञ हैं। (24) इस जन्म में परिश्रम से की गई कमाई का फल मिलता है और उस कमाई से दिए गए बे सहारा दान का फल अगले जन्म में मिलता है। (25) हाथ की शोभा बे सहारा को दान से है। सिर की शोभा अपने से बड़ो को प्रणाम करने से है। मुख की शोभा सच बोलने से है। दोनों भुजाओं की शोभा युद्ध में वीरता दिखाने से है। हृदय की शोभा स्वच्छता से है। कान की शोभा शास्त्र के सुनने से है। यही ठाट बाट न होने पर भी सज्जनों के भूषण हैं। वनिता -(26) अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अज्ञानी के प्रति भलाई व्यर्थ है। गुणों को न समझने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है। (27) अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। (28) बे सहारा दुखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा पुण्य है। (29) तम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। (30) अभयदान ही सर्वश्रेष्ठ दान है। (31) तपस्या से लोगों को विस्मित न करे, यज्ञ करके असत्य न बोले। पीडि़त हो कर भी गुरु की निंदा न करे। और बे सहारा को दान दे कर उसकी चर्चा न करे। (32) शिवस्वरूप परमात्मा के इस शरीर में प्रतिष्ठित होने पर भी मूढ़ व्यक्ति तीर्थ, दान, जप, यज्ञ, लकड़ी और पत्थर में शिव को खोजा करता है। (33) जिसने शीतल एवं शुभ्र सज्जन-संगति रूपी गंगा में स्नान कर लिया उसको दान, तीर्थ तप तथा यज्ञ से क्या प्रयोजन? (34) पानी में तेल, दुर्जन में गुप्त बात, सत्पात्र में दान और विद्वान् व्यक्ति में शास्त्र का उपदेश थोड़ा भी हो, तो स्वयं फैल जाता। वनिता -(35) अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें, झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। वनिता कासनियां पंजाब(36) त्याग पीने की दवा है, दान सिर पर लगाने की सौंठ। त्याग में अन्याय के प्रति चिढ़ है, दान में नाम का लिहाज़ है। वनिता -(37) सर्वोपरि दान जो आप बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम बे सहारा मनुष्य को दे सकते हैं, वह विद्या और ज्ञान का दान है। वनिता -(38) तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। (39) जब तू बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम में बे सहारा को दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायां हाथ न जानने पाए, ताकि तेरा दान गुप्त हो। वनिता -(40) सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है। वनिता कासनियां पंजाब(41) दानी भी चार प्रकार के होते हैं- कुछ बोलते हैं, देते नहीं, कुछ देते हैं, कभी बोलते नहीं। कुछ बोलते भी हैं और देते भी हैं और कुछ न बोलते हैं न देते हैं। वनिता -(42) दान और युद्ध को समान कहा जाता है। थोड़े भी बहुतों को जीत लेते हैं। श्रद्धा से अगर थोड़ा भी दान करो तो परलोक का सुख मिलता है। वनिता कासनियां पंजाब(43) प्रसन्न चित्त से दिया गया अल्प दान भी, हजारों बार के दान की बराबरी करता है। वनिता कासनियां पंजाब(44) तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित होकर भी गुरु की निंदा न करें। और दान देकर उसकी चर्चा न करें। वनिता कासनियां पंजाब(45) निस्संदेह दान की बहुत प्रशंसा हुई है, पर दान से धर्माचरण ही श्रेष्ठ है।वनिता कासनियां पंजाब(46) सच्चा दान दो प्रकार का होता है - एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है। वनिता कासनियां पंजाब(47) मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान - यह सज्जनों का सनातन धर्म है। वनिता-(48) दान, भोग और नाश - ये तीन गतियां धन की होती हैं। जो न देता है और न भोगता है, उसके धन की तीसरी गति होती है। वनिता-(49) दुखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा गुण है। तुकाराम(50) तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। वनिता-(51) सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है। वनिता-(52) समय बीतने पर उपार्जित विद्या भी नष्ट हो जाती है, मज़बूत जड़ वाले वृक्ष भी गिर जाते हैं, जल भी सरोवर में जाकर (गर्मी आने पर) सूख जाता है। लेकिन सत्पात्र दिए दान का पुण्य ज्यों का त्यों बना रहता है। वनिता कासनियां पंजाब(53) तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें। वनिता कासनियां पंजाब(54) दान तो वही श्रेष्ठ है जो किसी को दीन नहीं बनाता। दया या मेहरबानी से जो हम देते हैं उसके कारण दूसरे की गर्दन नीचे झुकाते हैं। वनिता-(55) क्रोध न करके क्रोध को, भलाई करके बुराई को, दान करके कृपण को और सत्य बोलकर असत्य को जीतना चाहिए। वनिता कासनियां पंजाब(56) तपस्या से लोगों को विस्मित न करे, यज्ञ करके असत्य न बोले। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करे। और दान दे कर उसकी चर्चा न करे। वनिता कासनियां पंजाब(57) निस्संदेह दान की बहुत प्रशंसा हुई है, पर दान से धर्माचरण ही श्रेष्ठ है। वनिता.(58) दान का भाव एक बड़ा उत्तम भाव है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि समाज में दान-पात्रों का एक वर्ग पैदा कर दिया जाए। वनिता(59) समुद्रों में वृष्टि निरर्थक है, तृप्तों को भोजन देना व्यर्थ है, धनाढ्यों को दान देना और दिन के समय दीये को जला देना निरर्थक है। वनिता कासनियां पंजाब(60) देते हुए पुरुषों का धन क्षीण नहीं होता। दान न देने वाले पुरुष को अपने प्रति दया करने वाला नहीं मिलता। वनिता कासनियां पंजाब(61) तुम्हें जो दिया वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। वनिता कासनियां पंजाब(62) मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान- यही सज्जनों का धर्म है। वनिता कासनियां पंजाब(63) अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अफल बुद्धि वाले और अज्ञानी के प्रति की गई भलाई व्यर्थ है। गुण को न समझ सकने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है। वनिता कासनियां पंजाब(64) अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। वनिता कासनियां पंजाब(65) शांति, क्षमा, दान और दया का आश्रय लेने वाले लोगों के लिए शील ही विशाल कुल है, ऐसा विद्वानों का मत है। वनिता कासनियां पंजाब(66) सर्वोपरि श्रेष्ठ बे सहारा को दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, विद्या व ज्ञान का दान है।बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब

दान-पुण्य,एक हाथ से दिया गया दान हज़ारों हाथों से लौटता है!!!!!! By. बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब 🌹🙏🙏🌹* प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान।जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान॥धर्म के चार चरण (सत्य,, दया, तप और दान) प्रसिद्ध हैं, जिनमें से कलि में एक (दान रूपी) चरण ही प्रधान है। जिस किसी प्रकार से भी दिए जाने पर दान कल्याण ही करता है॥ जो हम देते हैं वो ही हम पाते हैं, दान के विषय में यह बात हम सभी जानते हैं। दान, अर्थात देने का भाव, अर्पण करने की निष्काम भावना।हिन्दू धर्म में दान चार प्रकार के बताए गए हैं, अन्न दान, औषध दान, ज्ञान दान एवं अभयदान एवं आधुनिक परिप्रेक्ष्य में अंगदान का भी विशेष महत्व है। दान एक ऐसा कार्य, जिसके द्वारा हम न केवल धर्म का पालन करते हैं बल्कि समाज एवं प्राणी मात्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन भी करते हैं।किन्तु दान की महिमा तभी होती है जब वह निस्वार्थ भाव से किया जाता है अगर कुछ पाने की लालसा में दान किया जाए तो वह व्यापार बन जाता है। यहाँ समझने वाली बात यह है कि देना उतना जरूरी नहीं होता जितना कि 'देने का भाव'। अगर हम किसी को कोई वस्तु दे रहे हैं लेकिन देने का भाव अर्थात इच्छा नहीं है तो वह दान झूठा हुआ, उसका कोई अर्थ नहीं।इसी प्रकार जब हम देते हैं और उसके पीछे यह भावना होती है, जैसे पुण्य मिलेगा या फिर परमात्मा इसके प्रत्युत्तर में कुछ देगा, तो हमारी नजर लेने पर है देने पर नहीं तो क्या यह एक सौदा नहीं हुआ?दान का अर्थ होता है देने में आनंद, एक उदारता का भाव प्राणी मात्र के प्रति एक प्रेम एवं दया का भाव है किन्तु जब इस भाव के पीछे कुछ पाने का स्वार्थ छिपा हो तो क्या वह दान रह जाता है? गीता में भी लिखा है कि कर्म करो, फल की चिंता मत करो हमारा अधिकार केवल अपने कर्म पर है उसके फल पर नहीं।हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है यह तो संसार एवं विज्ञान का साधारण नियम है इसलिए उन्मुक्त ह्रदय से श्रद्धा पूर्वक एवं सामर्थ्य अनुसार दान एक बेहतर समाज के निर्माण के साथ साथ स्वयं हमारे भी व्यक्तित्व निर्माण में सहायक सिद्ध होता है और सृष्टि के नियमानुसार उसका फल तो कालांतर में निश्चित ही हमें प्राप्त होगा।आज के परिप्रेक्ष्य में दान देने का महत्व इसलिये भी बढ़ गया है कि आधुनिकता एवं भौतिकता की अंधी दौड़ में हम लोग देना तो जैसे भूल ही गए हैं। हर सम्बन्ध को हर रिश्ते को पहले प्रेम समर्पण त्याग सहनशीलता से दिल से सींचा जाता था लेकिन आज! आज हमारे पास समय नहीं है क्योंकि हम सब दौड़ रहे हैं और दिल भी नहीं है क्योंकि सोचने का समय जो नहीं है! हाँ, लेकिन हमारे पास पैसा और बुद्धि बहुत है, इसलिए अब हम लोग हर चीज़ में इन्वेस्ट अर्थात निवेश करते हैं, चाहे वे रिश्ते अथवा सम्बन्ध ही क्यों न हो! तो हम लोग निस्वार्थ भाव से देना भूल गए हैं। देंगे भी तो पहले सोच लेंगे कि मिल क्या रहा है और इसीलिए परिवार टूट रहे हैं, समाज टूट रहा है।जब हम अपनों को उनके अधिकार ही नहीं दे पाते तो समाज को दान कैसे दे पाएंगे? अगर दान देने के वैज्ञानिक पक्ष को हम समझें, जब हम किसी को कोई वस्तु देते हैं तो उस वस्तु पर हमारा अधिकार नहीं रह जाता है, वह वस्तु पाने वाले के आधिपत्य में आ जाती है। अत: देने की इस क्रिया से हम कुछ हद तक अपने मोह पर विजय प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। दान देना हमारे विचारों एवं हमारे व्यक्तित्व पर एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालता है इसलिए हमारी संस्कृति हमें बचपन से ही देना सिखाती है न कि लेना। हमें अपने बच्चों के हाथों से दान करवाना चाहिए ताकि उनमें यह संस्कार बचपन से ही आ जाएं।दान धन का ही हो, यह कतई आवश्यक नहीं, भूखे को रोटी, बीमार का उपचार, किसी व्यथित व्यक्ति को अपना समय, उचित परामर्श, आवश्यकतानुसार वस्त्र, सहयोग, विद्या यह सभी जब हम सामने वाले की आवश्यकता को समझते हुए देते हैं और बदले में कुछ पाने की अपेक्षा नहीं करते, यह सब दान ही है। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि परहित के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरों को कष्ट देने के समान कोई पाप नहीं है। दानों में विद्या का दान सर्वश्रेष्ठ दान होता है क्योंकि उसे न तो कोई चुरा सकता है और न ही वह समाप्त होती है बल्कि कालांतर में विद्या बढ़ती ही है और एक व्यक्ति को शिक्षित करने से हम उसे भविष्य में दान देने लायक एक ऐसा नागरिक बना देते हैं जो समाज को सहारा प्रदान करे न कि समाज पर निर्भर रहे।इसी प्रकार आज के परिप्रेक्ष्य में रक्त एवं अंगदान समाज की जरूरत है। जो दान किसी जीव के प्राणों की रक्षा करे उससे उत्तम और क्या हो सकता है? हमारे शास्त्रों में ॠषि दधीची का वर्णन है जिन्होंने अपनी हड्डियाँ तक दान में दे दी थीं, कर्ण का वर्णन है जिसने अपने अन्तिम समय में भी अपना स्वर्ण दंत याचक को दान दे दिया था।देना तो हमें प्रकृति रोज सिखाती है, सूर्य अपनी रोशनी, फूल अपनी खुशबू, पेड़ अपने फल, नदियाँ अपना जल, धरती अपना सीना छलनी कर के भी दोनों हाथों से हम पर अपनी फसल लुटाती है। इसके बावजूद न तो सूर्य की रोशनी कम हुई, न फूलों की खुशबू, न पेड़ों के फल कम हुए न नदियों का जल, अत: दान एक हाथ से देने पर अनेकों हाथों से लौटकर हमारे ही पास वापस आता है बस शर्त यह है कि निस्वार्थ भाव से श्रद्धा पूर्वक समाज की भलाई के लिए किया जाए।बाबा तुलसी ने भी रामचरितमानस में लिखा है,,,* सो धन धन्य प्रथम गति जाकी। धन्य पुन्य रत मति सोइ पाकी॥धन्य घरी सोइ जब सतसंगा। धन्य जन्म द्विज भगति अभंगा॥भावार्थ:-वह धन धन्य है, जिसकी पहली गति होती है (जो दान देने में व्यय होता है) वही बुद्धि धन्य और परिपक्व है जो पुण्य में लगी हुई है। वही घड़ी धन्य है जब सत्संग हो और वही जन्म धन्य है जिसमें ब्राह्मण की अखण्ड भक्ति हो॥(धन की तीन गतियाँ होती हैं- बे सहारा को दान, भोग और नाश। बे सहारा को दान उत्तम है, भोग मध्यम है और नाश नीच गति है। जो पुरुष न देता है, न भोगता है, उसके धन की तीसरी गति होती है।

#दान_का_ #महत्व By.बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब दान दिए धन ना घटे, नदी ने घटे नीर । अपनी आँख देख लो, यों क्या कहे कबीर ॥ तिन समान कोई और नहि, जो देते सुख दान I सबसे करते प्रेम सदा, औरन देते मान। जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम ।शास्त्रों में दान की महिमा बहुत गाई गयी है शास्त्रों में दान के महत्व को दर्शाते हुए यह बार-बार कहा है कि हर व्यक्ति को किसी प्रकार से दान देना चाहिए चाहे वह कैसी भी स्थिति और परिस्थिति से गुजर रहा है I यह समाज की आवश्यकता है क्योंकि समाज में हर व्यक्ति इतना सक्षम नहीं है कि वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं कर सके तो इस कमी को पूरा करने के लिए समृद्ध लोगों की तरफ से जरूरतमंदों को जो वस्तु की पूर्ति की जाती है दान कहलाता है वर्तमान समय में यह भी देखा गया है कि दान के नाम पर है चोरी चकारी भी की जाती है जैसे किसी धार्मिक संस्था को दान देकर अपने दो नंबर के धंधे को एक नंबर में बदलना तो यह दान नहीं होता यह दान का उपहास है किसी तरह से दान का रूप देकर अपने गोरखधंधे को चलाने की पूरी की पूरी प्रक्रिया होती है यह किसी भी तरह से दान नहीं कहा जा सकता है#वेद ( #बृहनदारनकोउपनिषद)शास्त्रों में उल्लेख आता है कि एक बार ब्रह्मा जी के पास उनके सभी पुत्र अर्थात देवता मनुष्य और राक्षस उनके पास गए और परम पिता ब्रह्मा जी से निवेदन किया कि ब्रह्मा जी आप हमें उपदेश करें उनकी बातों को सुनकर ब्रह्मा जी ने अपने पुत्रों को कहा द द द तीन बार शब्द का उल्लेख किया और कहा की क्या तुम तीन ये बाते समझ गए तो वे बोले हां समझ गए तो उनसे पूछा गया की क्या समझे I इन तीनों शब्दों के माध्यम से कर्तव्यों का बोध कराया गया है#देवतादेवताओं की यह कहा गया की तुम लोग दिन रात विषय भोगों में ही लिप्त रहते हैं और अपनी कर्तव्यों का निर्वाह भली-भांति नहीं करते हो तुमको अपनी इंद्रियों का दमन करना चाहिए तो ब्रह्मा जी ने देवताओं को दमन करने का यह आदेश दिया कि वे अपनी इंद्रियों पर संयम रखते हुए उनका दमन करें यह संदेश देवताओं के लिए दिया गया था#मनुष्यमनुष्य तुम लोग लोग संसार में आए हो अपने कर्तव्यों और कर्मों को करने के लिए तो तुम्हार यह कर्तव्य बनता है कि तुम अपने द्वारा की गई कमाई का एक हिस्सा दान में संसार की भलाई में लगाओ यह भलाई आप संसार में गरीब मनुष्यों की सहायता करके जरूरतमंदों की सहायता करके पशु पक्षियों की सहायता करके और इसी प्रकार संसार की भलाई में आपको अपनी कमाई का एक हिस्सा दान करना है तो ब्रह्माजी ने मनुष्यों को आदेश दिया कि वह संसार में दान को महत्व दें#राक्षसराक्षस तुम लोग संसार में बहुत ही हिंसात्मक होते हो और लोगों को बेवजह तंग करते हो खून खराबा करते हो लोगों को बिना ही कारण के प्रताड़ित करते हो इसलिए तुम लोग को राक्षस बोलते हैं तुम्हारे अंदर मनुष्य वाला और देव वाला कोई भी गुण नहीं होता है तो तुम लोगों को संसार में रहते हुए दया का भाव अपने अंदर लगाना चाहिए तो परमपिता ब्रह्मा जी ने राक्षसों का आदेश दिया अपने जीवन में दया को स्थान दे Iयही पर यह भी कहा गया की जब मेघ गर्जना होती है तो उसमे द द द की आवाज होती है तो ये मेघ गर्जना यही सन्देश देती है की आप तीनों जन आपने कर्तव्यों को निर्वाह करो और विशेष रूप से मनुष्यों दान करोदान दिए धन ना घटे, नदी ने घटे नीर । अपनी आँख देख लो, यों क्या कहे कबीर ॥ तिन समान कोई और नहि, जो देते सुख दान I सबसे करते प्रेम सदा, औरन देते मान। जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम । #रामचरितमानसतुलसी दस जी ने रामचरितमानस में दान को बहुत ही महत्व दिया हैप्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान। जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान॥103 ख॥#भाव - धर्म के चार चरण होते है जैसे सत्य, दया, तप और दान, जिसमे से कलयुग में दान ही प्रधान है जिस भी प्रकार से दीजिये दान कराई कल्याण, दान देना महा कल्याणकारी होता है कल्याण करने वाला होता है दान देने से शारीरिक और मानसिक विकास होता है इसलिए दान दिया जाना चाहिएसो धन धन्य प्रथम गति जाकी।तुलसीदास जी ने एक अन्य दोहे में दान के महत्व को बताते हुए यह बताया है कि दान के तीन प्रयोग होते हैं उन तीनों प्रयोगों (दान, भोग और संचय ) में से जो पहला होता है वहीं कल्याणकारी है वही धन्य है कोटिन्ह बाजिमेध प्रभु कीन्हे। दान अनेक द्विजन्ह कहँ दीन्हे॥रामचंद्र जी दान दिया करते थे कई अश्वमेध यग्य किये और ब्राह्मणों को दान दिए#श्री_भगवत_गीता (17 अध्याय)श्री कृष्ण भगवान ने गीता के अंदर दान के महत्व को उजागर करते हुए उसको तीनों गुणों के आधार पर विभाजित किया है क्योंकि तीन प्रकार की मनुष्य की प्रवृतियां हुआ करती हैं जिन्हें गुण कहा जाता है सात्विक राजसिक तामसिक भी कह सकते हैं ।दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे। देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्‌॥ऐसा दान जो हमारा दान देना कर्तव्य है इस कर्तव्य को समझते हुए दिया जाता है और जिसके प्रति दान दिया जाता है उससे उसके बदले में कुछ भी पाने की आशा ना हो और देश काल पात्र को देखते हुए जो दान दिया जाता है वह सात्विक दान है अर्थात मुझे दान देना है यह मेरा कर्तव्य है क्योंकि धर्म की के अनुरूप है और देश काल और पात्र को देना है इसका मतलब स्थान से है कहीं पर भोजन की व्यवस्था उपलब्ध है वहां पर भंडारा करना इस में नहीं आता है जैसे किसी मार्केट में आजकल आप देखते हैं कि सारे खाने की सुविधाएं उपलब्ध होती है लोग भंडारा करने लगते है, पात्र का मतलब यह होता है कि किसको दान दिया जा रहा है वह कौन है उसकी क्या आवश्यकताएं I कोई भिखारी है कोई पशु पक्षी है या ब्राह्मण है तो उसी के अनुसार उसको दान दिया जाना चाहिएयत्तु प्रत्युपकारार्थं फलमुद्दिश्य वा पुनः। दीयते च परिक्लिष्टं तद्दानं राजसं स्मृतम्‌॥राजस दान में सात्विक दान के विपरीत होता है इसमें दान देने वाला उपकार की दृष्टि से दान देता है और उस दान के बदले में कुछ पाना चाहता है और ऐसा दान जिसे देने वाले को कष्ट भी होता है दुर्गा पूजा के समय में, ट्रकों/बसों/रिक्शा वालों को रोकें, उन से जोर जबरदस्ती करके पर्चे कटवाते हैं तो वह दान देने वाले दान देने के इच्छुक तो नहीं होते प्रथम दृष्टया पर वह दान देते हैं क्योंकि वह समझते हैं कि दुर्गा मां को जायेगा लेकिन उसको देने में उनको कष्ट होता है क्योंकि वह अपनी कमाई के अनुसार जो दान देना चाहते हैं वह नहीं दे पाते हैं I ऐसा दान जो स्वार्थ पूर्ति के लिए दिया जाए जिसे देने वाला किसी उद्देश्य के कारण दान करें वह दान राजस है जैसे कि मैं परीक्षा में पास हो जाऊं मेरी अच्छी नौकरी लग जाए मुझे अच्छी लुगाई मिल जाए मेरी लॉटरी लग जाए मेरा यह काम बन जाए मेरा वह काम बन जाए मैं विदेश चला जाऊं इत्यादिअदेशकाले यद्दानमपात्रेभ्यश्च दीयते। असत्कृतमवज्ञातं तत्तामसमुदाहृतम्‌॥तामसिक दान तो वह बहुत ही घनघोर होता है घृणित होता है इसमें उपरोक्त बातों के विपरीत में सारे अवगुण होते हैं जैसे यह किसी ने देश और काल को और पात्र को देखकर नहीं दिया जाता और इस दान में कोई ना तो सत्यता होती है और ना ही इसमें कोई आज्ञा होती है तो ऐसे दान को तामसी दान कहा जाता है जिसमें धर्म को ध्यान में न रखते हुए दान देकर केवल और केवल दूसरे की बुराई के लिए जो दान दिया जाता है वह इस में आता हैदानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्‌॥ 16/01 गीता16 अध्याय के पहले श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने देवी गुणों की चर्चा करिए तो उस देवी गुणों की चर्चा में एक शब्द उन्होंने बोला है दानम अर्थात दान करना एक दैविक गुण है#कबीर_जी के दोहेदान दिए धन ना घटे, नदी ने घटे नीर ।अपनी आँख देख लो, यों क्या कहे कबीर ॥कबीर जी कह रहे हैं कि दान देने से कुछ भी नहीं घटता है यह ऐसे ही होता है जैसे नदी से निकाला गया पानी तो सभी को दान अवश्य करना चाहिएतिन समान कोई और नहि, जो देते सुख दान I सबसे करते प्रेम सदा, औरन देते मान।उस मनुष्य के समान कोई नहीं है जो दूसरों को सुख का दान करते हैं। जो सबसे सर्वदा प्रेम करते हैं और दूसरों को सम्मान देते हैं। दुसरो को किसी भी प्रकार से सुख का दान देना भी दान है कबीर जी ने दान की परिभाषा को विस्तृत कर दिया हैजो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम । दोऊ हाथ उलीचिये, यही सयानों काम ।।कबीर जी कह रहे हैं जैसे नाव चला रहे हो और उसमें कई छेद हो जाए और नाव के अन्दर पानी बढ़ने लगे तो फिर उसी प्रकार से घर में जब धन-संपत्ति यश की वृद्धि होने लगे तो अपने दोनों हाथों का उपयोग करिए और जल्दी से नाव में से जल को निकालना शुरू कर दीजिए और घर में से जो आपके धन आया है उसको दान देना शुरू कर दीजिए तो शांति भी आनी शुरू हो जाएगी यही सयानो का कार्य है#रहीम_जीदेनहार कोई और है भेजत सो दिन रात I लोग भरम हम पै धरै याते नीचे नैन ।रहीम जी कहते है की दान तो मैं भी करता हूँ परन्तु जो दान देता हूँ उसका विधान तो पहले ही ईश्वर कर देता है और लोग समझते हैं की मैं दान दे रहा हूँ ये ईश्वर की कृपा है इसी लिए मेरे नेत्र नीचे को झुक जाते है (रहीम जी की ये विशेषता थी की वो जब दान देते थे आखे नीचे झुका लेते थे)#धर्मदान के बारे में धर्म शास्त्रों में यह भी उल्लेख किया गया है कि किसी भी व्यक्ति को अपनी कमाई का कम से कम दसवां हिस्सा दान में जरूरी देना चाहिए यदि वह अपने महीने के वेतन में ₹ 100 लेकर आता तो कम से कम ₹10 का दान से करना चाहिए I दान देने का मतलब यह नहीं होता कि आप दान धन ही दें दान के लिए किसी विशेष परस्थिति की आवश्यकता नहीं होती है💥दान देने के कई प्रकार हो सकते हैं जैसे किबाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम में बे सहारा के भोजन चाय कपड़े रसोई गैस सिलेंडर दवाई जो बी इच्छा से➖अच्छी अच्छी पुस्तकों का दान विधार्थियों को देकर दान कर सकते हैं➖पक्षियों /चिड़िया/कबूतर इत्यादि को अनाज देकर दान दिया जा सकता है➖आप अपनी छत पर बाजरा और पानी की व्यवस्था बनाकर भी दान कर सकते हैं,➖जब आप खाने का कोई सामान कहीं पर रखें खुले में या पशुओं को खाने के लिए तो उस बगैर एक बात और ध्यान में रखें की जो जानवर है उसको पॉलिथीन खोली नहीं आती है और वह अनजाने में खाने वाली वस्तु के साथ उस पॉलिथीन को भी खा सकता है तो क्यों ना आप कुछ ऐसी व्यवस्था बनाएं जिससे कि वह जो खाने वाला पदार्थ है वह तो उसके अंदर चला जाए अथवा उसे खा सकें परंतु पॉलिथीन ना खाए I यह भी दान का एक सुंदर प्रकार है➖स्वस्थ विचारों का दान देना और गंदे सन्देश को न देना अथवा उनकों रोक लेना➖रक्त दान - जरुरत मंदों के लिए रक्त को दान दिया जा सकता है➖काया दान - मृत्यु के बाद, medical विधार्थियों के लिए देह का दान भी दिया जा सकता है➖नेत्र दान - मृत्यु के बाद,आप अपने नेत्रों को जब इस दुनिया से जाये तो उनकों दान दे सकते है➖अंगो का दान - मृत्यु के बाद, आप अपने शरीर के अंगो का दान भी दे सकते हैइत्यादी विभिन्न प्रकार के दान देना और बदले में कुछ भी आस न करना ही दान देना है💥जरा सोचिए💥तो अब यह_ #सोचिए की आपने पिछले 1 महीने या साल भर के दौरान आप ने कितना दान किया है कितने बार जरुरत मंदों को को ₹1 ₹2 ₹3 या ₹4 या ₹5 या ₹4 या ₹7 या ₹10 सो रूपया हजार रुपया कितने का दान किया है महीने में कितनी बार पक्षियों के लिए पानी डाला है और पशुओं के लिए पानी दिया है आपने 1 महीने में कितनी बार बे सहारा गरीबों को भोजन दिया है कपड़े का दान दिया है आपने कितनी बार विद्यार्थियों के लिए मुफ्त में पढ़ने लिखने का सामान दिया है आपने कितनी बार लोगों को धार्मिक स्थान के लिए प्रोत्साहित किया है क्या आपने कुछ इनमें से किया है नहीं किया है तो क्यों नहीं किया है क्या आपको नहीं करना चाहिए । बस इसी प्रश्न के साथ यह लेख समाप्त करते हैं।(बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम संगरिया राजस्थान)[बे सहारा को दान करने हेतु संपर्क करे,]9877264170 (call/whatsapp)बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम 🙏🙏

#संगीता जी #तनेजा ,💞 निवासी - #संगरिया से अपनी #शादी की #सालगिरह पर बाल वनिता #महिला वृद्ध #आश्रम में #समोसे💞 कचोरी #गुलाबजामुन चाय नाश्ता #केक कटवाकर व #बेसहारा💞 #माताओं-बहनों को एक समय का भोजन डांस #भजन #कीर्तन 💞 करवाकर बड़ी ही #धूमधाम से अपनी शादी की सालगिरह मनाई💞 बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम संगरिया #राजस्थान की #अध्यक्ष #श्रीमती वनिता #कासनियां #पंजाब को बहुत ही तह #दिल से #स्मानित किया #फूलों की #माला #पहनाकर बे सहारा माता पिता #बहिनों को गर्म कंबल #स्वेटर #दान किया#खुदा की फुरसत में एक पल आया होगा,💞जब उसने आप जैसे प्यारे इंसान को बनाया होगा,💞न जाने कौनसी दुआ कबूल हुई हमारी,💞जो उसने आपको हमसे मिलाया होगा💞,!!हैप्पी एनिवर्सरी संगीता जी!!💞🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂आप दोनों की जोड़ी कभी ना टूटे,💞खुदा करे आप एक दूसरे से कभी न रूठे,💕यूंही एक होकर आप ये ज़िन्दगी बिताएं की,💕आप दोनों से खुशियों के एक पल भी न छूटे।🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂मुबारक हो आपको नई यह जिंदगी,💞खुशियों से भरी रहे आपकी जिंदगी,💞गम का साया कभी आप पर न आए,💞दुआ है यह हमारी आप सदा यूँ ही मुस्कुराएं …💞सालगिरह मुबराक!!🎂🎂🎂🎂🎂🎂🎂💞🙏🙏💞

*सुनीता जी छाबरा ने आज अपने जन्म दिन पर बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम में आ कर सभी बे सहारा को भोजन केक समोसे चोक लेट खिलाई बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम टीम की तरफ से जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं आप हमेशा स्वस्थ रहें खुश रहें और ऐसे ही समाज में सेवा करते रहें हम आपको सलूट करते हैं कि**आप बाल वनिता महिला वृद्ध अनाथ आश्रम में जो बेसहरा माताओं और भाइयों और बहनों की सेवा कर रहे हैं आपका दिल की गहराई से बहुत-बहुत धन्यवाद करते हैं आप यूं ही अपने पथ पर समाज के हित में कार्य करते रहें आपको दिल की गहराई से कलजे की कोर से जन्मदिन की हार्दिक* *शुभकामनाएँ*🙏🙏❤️🎂🎂🍨🍨🍚*बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब**अपनों ने ठुकराया,* *तो गैरों ने अपना लिया,* *डूबती हुई कश्ती को,* *साहिल से मिला दिया,**मानव की सेवा सबसे बड़ा धर्म है। मानव की आत्मा ही परमात्मा है। *और मानव मात्र की सेवा करने से ही सच्चे सुख की प्राप्ति होती है। हम मनुष्य से मानव ही बन जाएं और अपने झगड़ों को भुला दें, यही सच्चा धर्म होगा।*