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. गरीब का झोंपड़ागरीब आदमी की झोपड़ी पर…एक रात बहुत जोर की वर्षा हो रही थी। साधु था; छोटी—सी झोपड़ी थी। स्वयं और उसकी पत्नी, दोनों सोए थे। आधी रात किसी ने द्वार पर दस्तक दी। साधु ने अपनी पत्नी से कहा: उठ, द्वार खोल दे। पत्नी द्वार के करीब सो रही थी। पत्नी ने कहा: इस आधी रात में जगह कहां है? कोई अगर शरण मांगेगा तो तुम मना न कर सकोगे। वर्षा जोर की हो रही है। कोई शरण मांगने के लिए ही द्वार आया होगा। जगह कहां है? उस साधु ने कहा: जगह? दो के सोने के लायक काफी है, तीन के बैठने के लायक काफी होगी। तू दरवाजा खोल! लेकिन द्वार आए आदमी को वापिस तो नहीं लौटाना है। दरवाजा खोला। कोई शरण ही मांग रहा था; भटक गया था और वर्षा मूसलाधार थी। तीनों बैठकर गपशप करने लगे। सोने लायक तो जगह न थी।थोड़ी देर बाद किसी और आदमी ने दस्तक दी। फिर साधु ने अपनी पत्नी से कहा: खोल। पत्नी ने कहा: अब करोगे क्या, जगह कहां है? अगर किसी ने शरण मांगी? उस साधु ने कहा: अभी बैठने लायक जगह है, फिर खड़े रहेंगे; मगर दरवाजा खोल। फिर दरवाजा खोला। फिर कोई आ गया। अब वे खड़े होकर बातचीत करने लगे। इतना छोटा झोपड़ा!और तब अंततः एक गधे ने आकर जोर से आवाज की, दरवाजे को हिलाया। साधु ने कहा: दरवाजा खोलो। पत्नी ने कहा: अब तुम पागल हुए हो, यह गधा है, आदमी भी नहीं! साधु ने कहा: हमने आदमियों के कारण दरवाजा नहीं खोला था, अपने हृदय के कारण खोला था। हमें गधे और आदमी में क्या फर्क? हमने मेहमानों के लिए दरवाजा खोला था। उसने भी आवाज दी है। उसने भी द्वार हिलाया है। उसने अपना काम पूरा कर दिया, अब हमें अपना काम पूरा करना है। दरवाजा खोलो! उसकी औरत ने कहा: अब तो खड़े होने की भी जगह नहीं है! उसने कहा: अभी हम जरा आराम से खड़े हैं, फिर सटकर खड़े होंगे। और याद रख एक बात कि यह कोई अमीर का महल नहीं है कि जिसमें जगह की कमी हो! यह गरीब का झोपड़ा है, इसमें खूब जगह है!यह कहानी मैंने पढ़ी, तो मैं हैरान हुआ। उसने कहा: यह कोई अमीर का महल नहीं है जिसमें जगह न हो। यह गरीब का झोपड़ा है, इसमें खूब जगह है। जगह महलों में और झोपड़ों में नहीं होती, जगह हृदयों में होती है। अक्सर तुम पाओगे, गरीब कंजूस नहीं होता। कंजूस होने योग्य उसके पास कुछ है ही नहीं। पकड़े तो पकड़े क्या? जैसे—जैसे आदमी अमीर होता है, वैसे वैसे कंजूस होने लगता है; क्योंकि जैसे—जैसे पकड़ने को होता है, वैसे—वैसे पकड़ने का मोह बढ़ता है, लोभ बढ़ता है।.................................ऐसी ही और अच्छी कहानियों के लिए फेसबुक ऐप पर ग्रुप ज्वाइन करें *बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम*🙏🙏❤️Telegram link👇🏻बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम संगरिया राजस्थान भावनात्मक, प्रेरणादायक व धार्मिक पोस्टों से संबंधित है। पोस्ट को आगे भी शेयर करें जी।आप सभी का दिन शुभ हो 🙏🏻😊

जादुई नुस्खा बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाबअपने पैरों के तलवों में तेल लगाएं*_विभिन्न लोगों के अपने अपने अनुभव_1. एक महिला ने लिखा कि मेरे दादा का 87 साल की उम्र में निधन हो गया, पीठ में दर्द नहीं, जोड़ों का दर्द नहीं, सिर दर्द नहीं, दांतों का नुकसान नहीं। उन्होंने बताया कि उन्हें कलकत्ता में एक बूढ़े व्यक्ति ने, जो कि रेलवे लाइन पर पत्थर बिछाने का काम करता था, सलाह दी कि सोते समय अपने पैरों के तलवों पर तेल लगाये। यह मेरे उपचार और फिटनेस का एकमात्र स्रोत है।2. एक छात्रा ने कहा कि मेरी मां ने उसी तरह तेल लगाने पर जोर दिया। एक बच्चे के रूप में, उसकी दृष्टि कमजोर हो गई थी। जब उसने इस प्रक्रिया को जारी रखा, तो आंखों की रोशनी धीरे-धीरे पूरी तरह से स्वस्थ हो गई।3. एक व्यापारी अवकाश के लिए चित्राल गया था। वहाँ एक होटल में सो नही पा रहा था तो बाहर घूमने लगा। बाहर बैठे पुराने चौकीदार ने पूछा कि, "क्या बात है?" उसने कहा नींद नहीं आ रही है! वह मुस्कुराया और कहा, "क्या आपके पास कोई तेल है?" उसने कहा, नहीं, वह गया और तेल लाया और कहा, "कि कुछ मिनट के लिए अपने पैरों के तलवों की मालिश करें।" उसने वैसा ही किया फिर वह खर्राटे लेना शुरू कर दिया।4. मैंने रात में सोने से पहले अपने पैरों के तलवों पर तेल की मालिश की कोशिश की। इससे मुझे बेहतर नींद आती है और थकान दूर होती है।5. मुझे पेट की समस्या थी। अपने तलवों पर तेल से मालिश करने के बाद, 2 दिनों में मेरे पेट की समस्या ठीक हो गई।6. वास्तव में! इस प्रक्रिया का एक जादुई प्रभाव है। रात को पैरों के तलवों की तेल से मालिश ने मुझे बहुत सुकून की नींद दी।7. मैं इस ट्रिक को पिछले 15 सालों से कर रहा हूं। इससे मुझे बहुत ही चैन की नींद आती है। मैं अपने छोटे बच्चों के पैरों के तलवों की भी तेल से मालिश करता हूं, जिससे वे बहुत खुश और स्वस्थ रहते हैं। 8. मेरे पैरों में दर्द हुआ करता था। मैंने रात को अपने पैरों के तलवों को 2 मिनट तक रोजाना जैतून के तेल से मालिश करना शुरू किया। इस प्रक्रिया से मेरे पैरों में दर्द से राहत मिली।9. मेरे पैरों में हमेशा सूजन रहती थी और जब मैं चलता था, मैं थक जाता था। अपने पैरों के तलवों पर तेल मालिश की इस प्रक्रिया को शुरू किया। सिर्फ 2 दिनों में, मेरे पैरों की सूजन गायब हो गई।10. रात में, बिस्तर पर जाने से पहले, मैंने अपने पैरों के तलवों पर तेल की मालिश का एक टिप देखा और उसे करना शुरू कर दिया। इससे मुझे बहुत ही चैन की नींद मिली।11. बड़ी अदभुत बात है। यह टिप आरामदायक नींद के लिए नींद की गोलियों से बेहतर है। मैं अब हर रात अपने पैरों के तलवों की तेल से मालिश करके सोता हूं।12. मुझे थायरॉइड की बीमारी थी। मेरे पैर में हर समय दर्द हो रहा था। पिछले साल किसी ने मुझे रात में पैरों के तलवों पर तेल की मालिश का यह सुझाव दिया था। मैं इसे स्थायी रूप से कर रहा हूं। अब मैं आम तौर पर शांत हूं।13. मेरे पैर सुन्न हो रहे थे। मैं रात को बिस्तर पर जाने से पहले चार दिनों तक अपने पैरों के तलवों की तेल से मालिश कर रहा हूं। अब एक बड़ा अंतर है।14. बारह या तेरह साल पहले मुझे बवासीर हुआ था। मेरा दोस्त मुझे एक ऋषि के पास ले गया जो 90 साल का था। उन्होंने हाथ की हथेलियों पर, उँगलियों के बीच, नाखूनों के बीच और नाखूनों पर तेल रगड़ने का सुझाव दिया और कहा: नाभि में चार-पाँच बूँद तेल डालें और सो जाएँ। मैं हकीम साहब की सलाह मानने लगा। मुझे बहुत राहत मिली। इस टिप ने मेरी कब्ज की समस्या को भी हल कर दिया। मेरे शरीर की थकान भी दूर हो जाती है और मुझे चैन की नींद आती है। खर्राटों को रोकता है।15. पैरों के तलवों पर तेल की मालिश एक आजमाई हुई और परखी हुई टिप है। 16. तेल से मेरे पैरों के तलवों की मालिश करने से मुझे चैन की नींद मिली।17. मेरे पैरों और घुटनों में दर्द था। जब से मैंने अपने पैरों के तलवों पर तेल की मालिश की टिप पढ़ी है, अब मैं इसे रोजाना करता हूं, इससे मुझे चैन की नींद आती है।18. जब से मैंने रात को बिस्तर पर जाने से पहले अपने पैरों के तलवों पर तेल की मालिश के इस नुस्खे का उपयोग करना शुरू किया है, तब से मुझे कमर दर्द ठीक हो गया है। मेरी पीठ का दर्द कम हो गया है और भगवान का शुक्र है कि मुझे बहुत अच्छी नींद आई है।*रहस्य इस प्रकार है:* रहस्य बहुत ही सरल, बहुत छोटा, हर जगह और हर किसी के लिए बहुत आसान है।*किसी भी तेल, सरसों या जैतून, आदि को पैरों के तलवों और पूरे पैर पर लगायें, विशेषकर दोनो तलवों पर तीन मिनट के लिए।* रात को सोते समय पैरों के तलवों की मालिश करना कभी न भूलें, और बच्चों की मालिश भी इसी तरह करें। इसे अपने जीवन के बाकी हिस्सों के लिए एक दिनचर्या बना लें। फिर प्रकृति की पूर्णता को देखें। आप अपने पूरे जीवन में कंघी करते हैं। क्यों न पैरों के तलवों पर तेल लगाया जाए। *प्राचीन चिकित्सा के अनुसार, पैरों के नीचे लगभग 100 एक्यूप्रेशर बिंदु हैं। उन्हें दबाने और मालिश करने से मानव अंगों को भी ठीक किया जाता है। उसे फुट रिफ्लेक्सोलॉजी कहा जाता है। दुनिया भर में पैरों की मालिश चिकित्सा का उपयोग किया जाता है।*शेयर न करें बिल्कुल भीपर स्वयम पर इस्तेमाल करके अवश्य देखें। जो महसूस होगा वही असल है।

आज हम सब अपने बचपन की एक कथा को याद करते है।*मेहनत का फ़ल* लघुकथाप्रेषक: *बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम*🌹🙏🙏🌹 *(ग्रुप एडमिन🌟)*पिंकी चिड़िया अपने घोंसले के पास एक खेत मे दाना चुगने जाती थी। कुछ दिनों से भोलू कौवा भी वहां दाना चुगने आने लगा । दोनों में दोस्ती हो गई। एक दिन कौवा बोला," हम कितने परेशान होते हैं यहां दाना चुनने में , कभी रखवाला आ जाता है वह हमें भगाता है तो कभी बड़े पक्षी आकर परेशान करते हैं ।क्यों ना हम एक खेत में अपना दाना बोये। चिड़िया भी खुशी से मान गई । दोनों ने जंगल के पास एक खेत ढूंढा और फैसला किया कि कल से इस पर खेती करनी शुरू कर देंगे। अगले दिन चिड़िया सुबह सवेरे उठी, बच्चों को दाना खिलाया और कौवे के घर पहुंचकर बोली," कौवे भैया चलो खेत में हल जोतते है।"कौवा बोला,चल चिड़िये , मैं आया, सोने चोंच बनवाया, पैरी मोजे पाया मैं ठुम ठुम करताआया ।" चिड़िया चली जाती है। पूरा खेत जोत लेती है। शाम हो जाती है पर कौवा नहीं आता । अगले दिन चिड़िया फिर कौवे को कहती है, "कौवा भैया चलो बीज बोते हैं।" कौवा फिर कहता है," चल चिड़िए मैं आया सोने चोंच बनवाया, पैरी मोजे पाया। मैं ठुम ठुम करता आया।" चिड़िया फिर चली जाती है। पूरे खेत में बीज बो देती है पर कौवा फिर नहीं आता। चिड़िया काम में लगी रहती है। हफ्ते बाद चिड़िया कौवे के पास जाती है और कहती है ,"कौवा भैया चलो ,खेत में पानी लगाना है।" कौवा फिर वही कहता है," चल चिड़िये , मैंआया । सोने की चोंच बनवाया , पैरी मोजे पाया। मैं ठुम ठुम करता आया।" चिड़िया फिर चली जाती है पूरे खेत को पानी लगाती है और शाम को घर आ जाती है । कुछ दिन बाद फसल पकनी शुरू हो जाती है चिड़िया कहती है," कौवे भैया चलो, खेत की रखवाली करें, नहीं तो सारी फसल उजड़ जाएगी। कौवा फिर वही कहता है, "चल चिड़िये .........। चिड़िया रोज फसल की निगरानी करती है अंत में फसल काटने का समय आ जाता है । चिड़िया कौवे को कहती है," चलो फसल काटते हैं। फसल पक कर पूरी तरह तैयार हो गई।" कौवे का फिर वही जवाब होता है। चिड़िया फसल काट लेती है। दाने और भूसा अलग अलग कर देती है।दोनों की अलग अलग ढेरियां लगा देती । फिर चिड़िया कौवे को बुलाने जाती है ।"कौवे भैया चलो फसल बांट लेते है"। कौवा उड़कर उससे आगे खेत में पहुंच जाता है और जाकर दानों की ढेरी पर बैठ जाता है कहता है," यह मेरी है और वह भूसे वाली तुम्हारी।" चिड़िया कुछ नहीं कहती चुप रहती है। इतने में बादल घुमड़ घुमड़ कर आ जाते है बहुत तेज बारिश होने लगती है। फिर ओले भी पड़ने शुरू हो जाते है। चिड़िया भूसे के अंदर घुस जाती है ।कौवा जितना दानों के अंदर घुसकर अपने को बचाने की कोशिश करता दाने उतने ही फिसलते जाते। ओलों से उसका शरीर बुरी तरह जख्मी हो गया और वह वही दानों की ढेरी पर ही दम तोड़ देता है । बारिश रुकने पर चिड़िया भूसे से बाहर निकलती है तो कौवे को मरा देखती है। उसे बहुत दुख होता है । चिड़िया आसमा की तरफ देखती है उसे लगता है भगवान कह रहे है सोच क्या रही है दाने भी तेरे और भूसा भी तेरा जो मेहनत करता है उसी को सब मिलता है। चिड़िया अब खुश खुश अपने घोंसले की तरफ उड़ चली।🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

*आश्रम के निर्माण में सहयोग करें**संगरिया इलाके में इस तरह का चल रहा है पहला बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम*आप सभी को सूचित किया जाता है कि लावारिस, बेसहारा और मंदबुद्धि व्यक्तियों माता बहिन की देखभाल की सेवा के लिए संगरिया इलाके में इस तरह का पहला आश्रम संगरिया हनुमानगढ़ राजस्थान वार्ड नं 12 में चल रहा है।आप जी अपनी नेक कमाई से इस आश्रम के निर्माण में सहयोग करके पुन्य के भागी बनें।सहयोग के लिए संपर्क करें : 9877264170निम्नलिखित में से किसी भी सामान का सहयोग करें जी 👇रजाई, गधे, गर्म स्वेटर, बेड, कनक, आटा दाल खांड चाय गैस सिलेंडर इत्यादि सहयोग के लिए संपर्क करें : 9780948925______________________धनराशि का सहयोग करने के लिए इनमें से किसी भी माध्यम से सहयोग भेजा जा सकता है जी 👇Paytm =* 9877264170 Google Pay =9877264170_________________________👇 *गुगल पे* *फोन पे*👇*9877264170*________________________*जनहित में जारी**बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम (रजि.)**वार्ड, नं 12 संगरिया*

#आज #बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम की #अध्यक्ष #श्रीमती #वनिता #कासनियां #पंजाब को #फूलों की #माला #चाय नाश्ता #नमकीन #मिठाई खिला कर #स्मानीत किया #संगरिया #भगतपुरा #रोड #वार्ड न. 25 मे #गुरविदार #सिंह जी और सारे #महोले के सारे #बहिन भाई #दादा #दादी #ताऊ #ताई बहुत #बहुत #धन्यवाद सभी काबहुत बहुत धन्यवाद!❤️आपकी दया बस भारी है। मैं इसकी बहुत सराहना करती हूं।❤️आपने मुझे अपनी तरह के इशारे से अपने पैरों से खटखटाया। भगवान आपका भला करे।मैं क्या कह सकती हूं ... मेरे दिल की गहराई से बहुत-बहुत धन्यवाद।❤️भावुक है मन मेरा,आप सबका #प्यार पाकर।स्नेह मिला है आप सबसे मुझे,सम्मान आप सबने दिया।आभार है उन सभी का,जिन्होंने मुझे है,#आशीष दिया।मुझे साथ आपका चाहिए,जिंदगी के हर मोड़ पर।लिख रही हूं मै बस इतना सा,मेरा भावुक हृदय आप जानिए।🙏🙏❤️https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=944131316222481&id=100018768637456

*जब किसी जरूरतमंद की आवाज़ तुम तक पहुँचे तो परमात्मा का शुक्र अदा करना ना भूलना...**क्योकि उसने अपने बंदे की मदद करने के लिए तुमको पसंद किया हैं तुमको चुना हैं,**वरना वो तो सबके लिए अकेला ही काफी हैं...* *सुप्रभात*

बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम मंदबुद्धि बेसहारा लोगों के लिए सहारा बन रही है। समिति की ओर से जिला हनुमानगढ़ में बेसहारा मंदबुद्धि, बेसहारा, गरीब और समाज से पिछड़े हुए लोगों को ढूंढ़कर उनके शरीर की साफ सफाई, आर्थिक सहायता के अलावा उनके घरों के पते की पहचान करके उन्हें घरों तक छोड़ा जा रहा है। इसी के तहत आज बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम संगरिया के सदस्यों ने संगरिया शहर के 11 बेसहारा मंदबुद्धि लोगों को ढूंढ़कर उनको नहलाया गया और उन्हें खाना खिलाया और आर्थिक सहायता के अलावा उन्हें कपड़े आदि दिए गए। इस संबंधी जानकारी देते हुए बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब ने बताया कि यह बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम पिछले कई माह से हनुमानगढ़ जिले में बेसहारा लोगों की सेवा कर रही है। उन्होंने बताया कि सर्दियों के मौसम में संस्था द्वारा 300 जरूरतमंद परिवारों कंबल वितरित किए गए हैं। उन्होंने कहा कि बेसहारा लोग, जो सड़कों पर अपना गुजारा कर रहे हैं, को सहायता देने और देखभाल के लिए संस्था बड़े स्तर पर प्रोजेक्ट चला रही है। उन्होंने कहा कि उनकी ओर से ढूंढ़े गए लोगों को उनके परिवारों से मिलाने का भी काम किया जा रहा है। अब तक हनुमानगढ़ में अधिकांश ऐसे लोगों की साफ सफाई करके उन्हें नए कपड़े पहनाए गए और उन्हें अपनी पहचान वापिस दिलाई गई है। आज भी संस्था ने संगरिया शहर के रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड अन्य जगहों से 11 व्यक्तियों को ढूंढ़कर उन्हें नहलाया, नए कपड़े पहनाए गए और खाना खिलाया गया। उन्होंने कहा कि इन्हें अपनों का अहसास दिलाने के लिए संस्था का हर सदस्य अपने रोजमर्रा की जिंदगी से समय निकालकर हर रविवार को ऐसे लोगों को ढूंढती है और उनकी सेवा करती है। उन्होंने बताया कि उक्त 11 लोगों में से 2 व्यक्तियों ने अपने घर का पता बताया और वह उन्हें घर तक पहुंचाने जाएंगे। इस मौके पर कमल शर्मा, आजाद, रविंद्र शास्त्री मीरा मौजूद थे।बेसहारा लोगों की आर्थिक सहायता करते हुए बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम संगरिया राजस्थान की टीम के सदस्य।समाजसेवाBal Vanitha Mahila Old Age Ashram is becoming a support for the retarded destitute people. On behalf of the committee, the destitute, retarded, destitute, poor and backward people from the society are being found in the district Hanumangarh, cleaning their bodies, financial assistance, besides identifying the addresses of their homes and leaving them to their homes. Under this, today the members of Bal Vanitha Mahila Old Age Ashram Sangaria found 11 destitute retarded people of Sangaria city and bathed them and fed them and apart from financial assistance they were given clothes etc. Giving information about this, the President of Bal Vanitha Mahila Vridha Ashram, Mrs. Vanitha Kasnian Punjab said that this Bal Vanitha Mahila Vridha Ashram has been serving the destitute people in Hanumangarh district for the last several months. He informed that 300 needy families have distributed blankets by the organization during the winter season. He said that the organization is running a large-scale project to help and care for the destitute people who are living on the streets. He said that work is also being done to reunite the people traced by him with their families. Till now, most of such people in Hanumangarh have been cleaned and put on new clothes and they have been given back their identity. Even today, the organization found 11 people from the railway station, bus stand and other places of Sangaria city and made them bathe, put on new clothes and fed them. He said that to make them feel like their loved ones, every member of the organization takes out time from their everyday life to find and serve such people every Sunday. He told that out of the above 11 people, 2 persons told the address of their house and he would go to take them home. Kamal Sharma, Azad, Ravindra Shastri Meera were present on this occasion. Members of the team of Bal Vanitha Mahila Old Age Ashram Sangaria Rajasthan while helping the destitute people financially. Social service

#बाल #वनिता #महिला #वृद्ध #आश्रम #संगरिया #राजस्थान में आज #ऋतू जी #सिंगला अपने #जन्म #दिन पर #बे_सहारा को #मिठाई और #समोसे खिलाने आए बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम संगरिया राजस्थान टीम की तरफ से आपको बहुत बहुत बधाई और #धन्यवाद ऋतु सिंगला जी आप का

हमारे हिन्दू धर्म में दान का विशेष महत्व है। जिसके करने से हमारे जीवन पर गहरा असर पड़ता है।*बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब* हर त्यौहार में गरीबों को दान देने की बात कही गई है। दान उसे कहते है जिसे देने के बाद उसे याद ना किया जाए। हिन्दू धर्म में गौ-दान से लेकर कन्यादान तक की परम्परा है। और इसमें यह भी कहा गया है कि हमारी कमाई का 10वां हिस्सा गरीबों को दान देने के लिए होता है ऐसा हमारे धर्म में कहा गया है। यदि देखा जाए तो इस्लाम में भी दान पुण्य करने का विशेष महत्व है, उसे जकात कहा जाता है। आय का एक निश्चित हिस्सा फकीरों के लिए दान करने की हिदायत दी गई है। बैसे तो हम अक्सर चीजों को दान करते है लेकिन श्राद्ध, संक्रांति, अमावस्या जैसे मौकों पर विशेषकर दान पुण्य किया जाता है। प्राय किन-किन चीजों का दान किया जाता है, वो यहां जान लेते हैं।1 बे सहारा को दान- हमारे हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा दान बे सहारा दान माना गया है। जो सभी दान में श्रेष्ठ है। बे सहारा को दान करने से घर में सुख शांति के साथ धन-संपत्ति बनी रहती है।2 अनाज का दान- गरीबों के हम अन्नदान भी करते है जिसमें गेहूं, चावल का दान सही माना गया है। यह दान संकल्प सहित करने पर मनोवांछित फल देता है।3 घी का दान- गाय का घी एक बर्तन में रखकर दान करने से घर की दरिद्रता दूर होती है। घर में शांति बनी रहती है।4 तिल का दान- मानव जीवन के हर कर्म में तिल का महत्व है। खास कर के श्राद्ध और किसी के मरने पर। काले तिलों का दान संकट, विपदाओं से रक्षा करता है।5 वस्त्रों का दान- हर किसी खास चीजों पर वस्त्रों का दान करने की हिदायत दी जाती है। इस दान में धोती और दुपट्टा सहित दो वस्त्रों के दान का महत्व है। इससे घर के दोष दूर हो जाते है।6 गुड़ का दान- गुड़ का दान कलह और दरिद्रता का नाश कर धन और सुख देने वाला माना गया है।

दान एवं परमार्थ पर सुंदर दोहे बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाबदान एवं परमार्थ पर सुंदर दोहेराय 1 अपनी राय पोस्ट करेंश्रेष्ठ व्यक्ति के गुणों में से एक है दानी होना। दूसरों की सहायता के लिए अपनी वस्तुओं का दान करना मानवता की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जाता है। आज के इस लेख में हम कुछ ऐसे ही दोहे लेकर आए हैं, जो दान, परमार्थ एवं परोपकार की बातें करते हैं।मित्रों, आज कल का जीवन बहुत अधिक व्यस्त एवं संकुचित होता जा रहा है, जहां व्यक्ति केवल अपने बारे में सोचने लगा है। हम दूसरों की तकलीफों व आवश्यकताओं के बारे में अधिक विचार नहीं करते और केवल अपने हित की इच्छा ने हमें अंधा बना दिया है।इस विचारधारा के कारण हम दूसरों की मदद करने से हमेशा कतराने लगे हैं। शास्त्रों में दान को मानवता के लिए आवश्यक बताया गया है किंतु हम इसी को भूलते जा रहे हैं ।आज के लेख में हमारी यही कोशिश है कि हम पूर्वजों द्वारा दी गई इस सीख को वापस से अपने जीवन में शामिल कर सकें। तो आइए जानते हैं दान एवं परमार्थ पर कविवर रहीम, तुलसीदास एवं कबीर दास जी ने क्या विचार प्रकट किए हैं :1 ) रहिमन वे नर मर चुके, जो कछु मांगन जाहिं।उनसे पहले वे मुए, जिन मुख निकसत नाहिं ।।यह दोहा महान दार्शनिक एवं कवि अब्दुर रहीम खान - ए - खाना द्वारा रचित है, जिन्हें हम रहीम के नाम से भी जानते हैं। मित्रों, ईश्वर ने मनुष्य को बुद्धि एवं क्षमता के साथ जीवन यापन के साधन भी उपलब्ध कराए हैं। ईश्वर ने मनुष्य को इतना सामर्थ्यवान बनाया है कि वह मेहनत करके स्वयं अपनी आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है।पुरुषार्थ के बल पर जीवन यापन करने वाले व्यक्ति का समाज में आदर होता है, किंतु जो श्रम ना कर परिस्थितियों के समक्ष घुटने टेक देते हैं एवं दूसरों के सामने हाथ फैला देते हैं, ऐसे मनुष्य का आत्मसम्मान मर हो चुका होता है।किंतु रहीम के अनुसार याचना करने वालों से भी अधिक नीच कुछ व्यक्ति है। आइए जाने रहीम ने किन व्यक्तियों की बात की है। प्रस्तुत दोहे में वह कहते हैं कि जो व्यक्ति किसी से कुछ मांगते अथवा याचना करते हैं, ऐसे व्यक्ति मृतक के समान है। अर्थात ऐसे व्यक्तियों का आत्मसम्मान, इच्छाशक्ति और अंतर आत्मा मर चुकी होती है।किंतु ऐसे व्यक्तियों से पहले वह व्यक्ति मृतक हो जाते हैं, जिनके मुख से याचना करने वाले के लिए नहीं निकलता है। अर्थात, जो दान करने के इच्छुक नहीं होते हैं। रहीम ने दोनों ही स्थितियों को मनुष्य के लिए लज्जा का विषय बताया है । किंतु दान देने से मना कर देने वाले व्यक्ति से अधिक हेय और कोई नहीं है। परोपकार ना करना मृत होने के समान बताया गया है।2 ) तुलसी पंछिन के पिये, घटे न सरिता नीर ।दान दिये धन ना घटे, जो सहाय रघुवीर ।।महाकवि तुलसीदास जी द्वारा रचित यह दोहा दान करने से डरने वाले व्यक्तियों के लिए उपयोगी है। दान करना परमार्थ का कार्य है, जिससे मनुष्य के सभी गुण और अधिक श्रेष्ठ बनते हैं।दान करने से धन कम होता है, इस विचार को गलत बताते हुए कविवर तुलसीदास जी कहते हैं कि नदी से पंछी के पानी पी लेने से नदी का पानी कम नहीं हो जाता।केवल पक्षी ही नहीं, बल्कि असंख्य जानवर व मनुष्य प्रतिदिन नदी से पानी लेते हैं, पर क्या कभी नदी का पानी कम होता है ? नहीं ! ठीक इसी प्रकार तुलसी कहते हैं कि दान देने से मनुष्य का धन नहीं घटता।दान करना परोपकार है, जिससे व्यक्ति ईश्वर का आशीर्वाद पाता है । अर्थात दानी व्यक्ति से सदा ईश्वर प्रसन्न रहते हैं एवं उसकी झोली सदा धन से भरकर रखते हैं।प्रस्तुत दोहे से हमें यह शिक्षा मिली है कि कभी भी हमें दूसरों को कुछ देने से पहले यह नहीं सोचना चाहिए कि इस वस्तु के दान से हमारे पास वह वस्तु कम हो जाएगी। सच्चे मन से किया गया दान बड़ी तपस्या के फल के समान होता है । अतः मनुष्य को सदैव परोपकार हेतु दान करना चाहिए।3 ) मरु पर मांगू नहीं, अपने तन के काज ।परमारथ के कारने, मोहि न आबे लाज।।यह दोहा महान रहस्यवादी एवं निर्गुण काव्यधारा के कवि कबीर दास जी द्वारा रचित है, जहां वह कह रहे हैं कि अपने लिए दूसरों के सामने हाथ फैलाना मरने के समान है।व्यक्ति को अपने लिए कभी याचना नहीं करनी चाहिए । किंतु यदि बात दूसरों के हित की हो, तो व्यक्ति को सौ बार भी हाथ फैलाने पड़ जाए, तब भी वह पुण्य का भागी बनता है। इसी संदेश को प्रतिपादित करते हुए कबीरदास जी कहते हैं कि मैं मरना पसंद करूंगा, किंतु अपने शरीर की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किसी से भी कुछ नहीं मांगूंगा।अर्थात स्वयं के लिए कुछ भी मांगना मृत्यु सदृश है। किंतु यदि परमार्थ, अर्थात दूसरों की सहायता के लिए याचना करनी पड़े, तो मुझे तनिक भी लज्जा नहीं होगी। यह दोहा हमें यह शिक्षा देता है कि मनुष्य की पहली प्राथमिकता केवल परोपकार एवं परमार्थ होना चाहिए, जिसके लिए उसे जो भी करना पड़े, वह करने से पीछे ना हटे।4 ) जो कोई करै सो स्वार्थी, अरस परस गुण देत।बिन किये करै सो सूरमा, परमारथ के हेत ।।दान अथवा परोपकार का अर्थ यह नहीं है कि व्यक्ति कुछ दे, और बदले में कुछ ले, अथवा लेने की आशा रखे। परमार्थ केवल देने की भावना से किया जाता है। यही समझाते हुए कबीरदास जी कहते हैं कि जो अरस परस कर देता है, अर्थात जो व्यक्ति अपने लिए किए गए कार्य के बदले में ही कुछ करता है, वह निश्चय ही स्वार्थी है।ऐसा व्यक्ति स्वेच्छा से कभी भी दान नहीं करता। असली सूरमा तो वह है, जो बिना किसी उपकार की आशा के, केवल परमार्थ की सिद्धि के लिए दूसरों की सहायता एवं उपकार करें। यहां हमें यह समझना होगा कि स्वार्थ में देने के बदले लेने की भावना निहित होती है, किंतु परमार्थ में केवल देने की इच्छा होती है। अपना लाभ देखकर किया गया दान ना तो दान कहलाता है, और ना ही परोपकार।5 ) जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम।दोऊ हाथ उलीचिये, यही सयानों काम।।संसार में जितने भी शास्त्र हैं, उनमें यही सीख दी गई है कि मनुष्य को सदैव संतोषी होना चाहिए। जीवन यापन के लिए जितना धन, जितने संसाधन चाहिए यदि उससे अधिक मनुष्य के पास हो तो उसे दूसरों को दान करना चाहिए। जीवन यापन के लिए पर्याप्त संसाधनों की उपलब्धि में ही व्यक्ति को सुखी होनी चाहिए, ना कि अधिक पाने का लोभ करना चाहिए। इस दोहे का सार यही है।कबीर दास जी दोहे की पहली पंक्ति में कहते हैं कि जब नाव में पानी बढ़ने लगे, और जब घर में बहुत अधिक धन एवं ऐश्वर्य जमा होने लगे, तो उसे जल्द से जल्द दोनों हाथ से उलीच कर बाहर कर देना चाहिए । अर्थात, आवश्यकता से अधिक धन का दान कर देना चाहिए। यही बुद्धिमान एवं विचक्षण व्यक्ति की पहचान है।कबीर दास जी के इस दोहे में यह संदेश छिपा है कि जिस प्रकार नाव में अत्यधिक जल बढ़ जाने से वह डूब जाता है, ठीक उसी प्रकार गृहस्थ जीवन में अधिक धन-संपत्ति के जमा हो जाने से माया, लोभ, पाप, दुराचार जैसे कुकर्मों का जन्म होने लगता है, एवं गृह का विनाश हो जाता है। अतः इस धन का दान करना ही सबसे अच्छा है।निष्कर्ष :मित्रों, प्रस्तुत लेख में आपने दान एवं परमार्थ से जुड़े दोहों का आनंद लिया । कविवर रहीम, कबीर एवं तुलसीदास जी ने यही सीख दी है कि मनुष्य को सदा दानी बनना चाहिए।यहां तक कहा जाता है कि जब मनुष्य दान देने के योग्य ना हो, तब उसका जीवन निरर्थक हो जाता है। बड़े-बड़े धर्म-कर्म कांडों से भी अधिक महत्ता दान को दी गई है, जिसे कई तपस्या के फल के बराबर कहा गया है। अतः मनुष्य का यही कर्तव्य है कि उससे जितना बन पड़े, उतना अधिक परोपकार करना चाहिए।

*तांबे का कड़ा पहनने के लाभ ! वनिता कासनियां पंजाब!1. तांबे का कड़ा पहनने से जोड़ों के दर्द में राहत मिलती है। इसे पहनने से सर्दियों में होने वाली जकड़न को कम किया जा सकता है। पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस में भी ये बेहतद कारगर है। 2. कहते हैं कि तांबा कोलेस्ट्रॉल को भी कंट्रोल रखने का कार्य करता है। इससे रक्त प्रवाह सुचारू रूप से चलता है।3. यह स्किन केयर करता है। तांबे को पहनने से उम्र बढ़ने की प्रक्रिया धीमी हो जाती है। 4. तांबा शरीर में मौजूद अन्य टॉक्सिन को कम करने का काम करता है। 5. कहते हैं कि इससे हीमोग्लोबिन बनाने में मदद मिलती है। 6. यह आपके क्रोध को कंट्रोल करता है। इसके अलावा हाथ में कड़ा धारण करने से कई तरह की बीमारियों से भी रक्षा होती है। 7. पीतल और तांबा मिश्रित धातु का कड़ा पहनने से सभी तरह के भूत-प्रेत आदि नकारात्मक शक्तियों से व्यक्ति की रक्षा होती है। 8. यदि आपका सूर्य कमजोर है तो, तांबे का कड़ा पहनने से यह बलवान हो जाएगा, जिसके चलते आपका मान-सम्मान के साथ ही उन्नती भी बढ़ेगी। 9. कड़ा हनुमानजी का प्रतीक है, इसे पहनने से हनुमानजी की कृपा बनी रहती है और संकट दूर रहते हैं। 10. कहते हैं कि, इससे इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है। अब जानिए नियम : ----- - तांबे का कड़ा पहनने से पहले आपकी कुंडली के ग्रहों की स्थिति को जान लें और ज्योतिष की सलाह पर ही पहनें। - लाल किताब ज्योतिष के अनुसार हाथ पराक्रम भाव है, गला लग्न भाव है और प्रत्येक धातु का एक ग्रह-नक्षत्र है जिसका उस पर प्रभाव होता है। - लाल किताब के अनुसार कलाई पर, अंगुलियों में या गले में कोई सी भी धातु को बहुत ही सोच समझ कर पहनना चाहिए यह आपके लिए घातक भी सिद्ध हो सकती है। - लाल किताब के अनुसार गला हमारा लग्न स्थान होता है और लॉकेट पहनने से हमारा हृदय और फेफड़े प्रभावित होते हैं। अत: लॉकेट सिर्फ तीन तरह की धातु का ही पहनना चाहिए पीतल, चांदी और तांबा। सोना भी सोच-समझकर ही पहनें। - गले या हाथ में कुछ तो भी बगैर सोचे-समझे पहने से आपके मस्तिष्क में परिवर्तन तो होता ही है, साथ ही आपके रक्तचाप में भी बदलावा आ सकता है। हो सकता है कि इससे धीरे-धीरे आपकी बैचेनी बढ़ रही हो। हृदय की धड़कने धीमी पड़ने लगी या और तेज चलने लगी हो ? आपको इसके असर का उसी तरह पता नहीं चलता है, जिस तरह की काले या मटमेले रंगे के कपड़े पहनने के असर का पता नहीं चलता है। - बहुत से लोग कड़ा पहनने के बाद किसी भी प्रकार का नशा करते हैं या अन्य कोई अनैतिक कार्य करते हैं तो, उसे इसकी सजा जरूर मिलती है, इसलिए कड़ा सोच-समझकर पहनें। - ध्यान रहे, यह कड़ा हनुमानजी का आशीर्वाद स्वरूप है, अत: अपनी पवित्रता पूरी तरह बनाए रखें। कोई भी अपवित्र कार्य कड़ा पहनकर न करें अन्यथा कड़ा प्रभावहीन तो हो ही जाएगा, साथ ही इसकी आपको सजा भी मिलेगी।- कड़े को पहनने के पूर्व दिन, वार, नक्षत्र, मुहूर्त आदि को जान लें फिर ही कड़ा पहनें, और बहनों से पहले कड़े को मंत्र अभिमंत्रित कर लें !!सलाह:----उपरोक्त पड़े को धारण करने से पहले अपनी कुंडली किसी विद्वान व्यक्ति को अवश्य दिखा लें !

दान (सूक्तियाँ) By बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब क्रमांक सूक्तियाँ सूक्ति कर्ता (1) दान से वस्तु घटती नहीं बल्कि बढ़ती है। (2) जब घर में धन और नाव में पानी आने लगे, तो उसे दोनों हाथों से निकालें, ऐसा करने में बुद्धिमानी है, हमें धन की अधिकता सुखी नहीं बनाती। वनिता कासनियां पंजाब(3) सैकड़ों हाथो से इकट्ठा करो और हजारों हाथों से बांटो। (4) सज्जनों कि रीति यह है कि कोई अगर उनसे कुछ मांगे तो वे मुख से कुछ न कहकर, काम पूरा करके ही उत्तर देते हैं। (5) जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम, दोउ हाथ उलीचिये, यही सयानों काम। (6) तुम्हारा बायाँ हाथ जो देता है उसे दायाँ हाथ ना जानने पाए। (7) दान देकर तुम्हे खुश होना चाहिए क्योंकि मुसीबत दान की दीवार कभी नहीं फांदती। वनिता -(8) सबसे उत्तम दान यह है कि आदमी को इतना योग्य बना दो कि वह बिना दान के काम चला सके। तालमुद(9) दान के लिए वर्तमान ही सबसे उचित समय है। (10) युधिस्तर के पास एक भिखारी आया। उन्होंने उसे अगले दिन आने के लिए कह दिया। इस पर भीम हर्षित हो उठे। उन्होंने सोचा कि उनके भाई ने कल तक के लिए मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है। (11) विनम्र भाव से ऐसे बे सहारा को दान करना चाहिए जैसे उसके लेने से आप कृतज्ञ हुए। (12) सब दानों में ज्ञान का दान ही श्रेष्ठ दान है। (13) दान, भोग और नाश ये धन की तीन गतियाँ हैं। जो न देता है और न ही भोगता है, उसके धन की तृतीय गति (नाश) होती है। भर्तृहरि(14) त्याग से पाप का मूलधन चुकता है और दान से ब्याज। (15) जो दान अपनी कीर्ति-गाथा गाने को उतावला हो उठता है, वह अहंकार एवं आडम्बर मात्र रह जाता है। (16) इन दोनों व्यक्तियों के गले में पत्थर बाँधकर पानी में डूबा देना चाहिए- एक दान न करने वाला धनिक तथा दूसरा परिश्रम न करने वाला दरिद्र। (17) जो दानदाता इस भावना से सुपात्र बे सहारा को दान देता है कि, तेरी (परमात्मा) वस्तु तुझे ही अर्पित है; परमात्मा उसे अपना प्रिय सखा बनाकर उसका हाथ थामकर उसके लिये धनों के द्वार खोल देता है; क्योंकि मित्रता सदैव समान विचार और कर्मों के कर्ता में ही होती है, विपरीत वालों में नहीं। (18) जो न बे सहारा को दान देता है, न भोग करता है, उसका धन स्वतः नष्ट हो जाता है। अतः योग्य पात्र को बे सहारा दान देना चाहिए। (19) जो मनुष्य अपने समीप रहने वालों की तो सहायता नहीं करता, किन्तु दूरस्थ की सहायता करता है, उसका दान, दान न होकर दिखावा है। (20) बे सहारा अभय-दान सबसे बडा दान है। वनिता -(21) दान-पुण्य केवल परलोक में सुख देता है पर योग्य संतान सेवा द्वारा इहलोक और तर्पण द्वारा परलोक दोनों में सुख देती है। (22) संपदा को जोड़-जोड़ कर रखने वाले को भला क्या पता कि बे सहारा दान में कितनी मिठास है। वनिता -(23) पिता की सेवा करना जिस प्रकार कल्याणकारी माना गया है वैसा प्रबल साधन न सत्य है, न दान है और न यज्ञ हैं। (24) इस जन्म में परिश्रम से की गई कमाई का फल मिलता है और उस कमाई से दिए गए बे सहारा दान का फल अगले जन्म में मिलता है। (25) हाथ की शोभा बे सहारा को दान से है। सिर की शोभा अपने से बड़ो को प्रणाम करने से है। मुख की शोभा सच बोलने से है। दोनों भुजाओं की शोभा युद्ध में वीरता दिखाने से है। हृदय की शोभा स्वच्छता से है। कान की शोभा शास्त्र के सुनने से है। यही ठाट बाट न होने पर भी सज्जनों के भूषण हैं। वनिता -(26) अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अज्ञानी के प्रति भलाई व्यर्थ है। गुणों को न समझने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है। (27) अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। (28) बे सहारा दुखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा पुण्य है। (29) तम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। (30) अभयदान ही सर्वश्रेष्ठ दान है। (31) तपस्या से लोगों को विस्मित न करे, यज्ञ करके असत्य न बोले। पीडि़त हो कर भी गुरु की निंदा न करे। और बे सहारा को दान दे कर उसकी चर्चा न करे। (32) शिवस्वरूप परमात्मा के इस शरीर में प्रतिष्ठित होने पर भी मूढ़ व्यक्ति तीर्थ, दान, जप, यज्ञ, लकड़ी और पत्थर में शिव को खोजा करता है। (33) जिसने शीतल एवं शुभ्र सज्जन-संगति रूपी गंगा में स्नान कर लिया उसको दान, तीर्थ तप तथा यज्ञ से क्या प्रयोजन? (34) पानी में तेल, दुर्जन में गुप्त बात, सत्पात्र में दान और विद्वान् व्यक्ति में शास्त्र का उपदेश थोड़ा भी हो, तो स्वयं फैल जाता। वनिता -(35) अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें, झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। वनिता कासनियां पंजाब(36) त्याग पीने की दवा है, दान सिर पर लगाने की सौंठ। त्याग में अन्याय के प्रति चिढ़ है, दान में नाम का लिहाज़ है। वनिता -(37) सर्वोपरि दान जो आप बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम बे सहारा मनुष्य को दे सकते हैं, वह विद्या और ज्ञान का दान है। वनिता -(38) तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। (39) जब तू बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम में बे सहारा को दान करे, तो जो तेरा दाहिना हाथ करता है, उसे तेरा बायां हाथ न जानने पाए, ताकि तेरा दान गुप्त हो। वनिता -(40) सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है। वनिता कासनियां पंजाब(41) दानी भी चार प्रकार के होते हैं- कुछ बोलते हैं, देते नहीं, कुछ देते हैं, कभी बोलते नहीं। कुछ बोलते भी हैं और देते भी हैं और कुछ न बोलते हैं न देते हैं। वनिता -(42) दान और युद्ध को समान कहा जाता है। थोड़े भी बहुतों को जीत लेते हैं। श्रद्धा से अगर थोड़ा भी दान करो तो परलोक का सुख मिलता है। वनिता कासनियां पंजाब(43) प्रसन्न चित्त से दिया गया अल्प दान भी, हजारों बार के दान की बराबरी करता है। वनिता कासनियां पंजाब(44) तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित होकर भी गुरु की निंदा न करें। और दान देकर उसकी चर्चा न करें। वनिता कासनियां पंजाब(45) निस्संदेह दान की बहुत प्रशंसा हुई है, पर दान से धर्माचरण ही श्रेष्ठ है।वनिता कासनियां पंजाब(46) सच्चा दान दो प्रकार का होता है - एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है। वनिता कासनियां पंजाब(47) मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान - यह सज्जनों का सनातन धर्म है। वनिता-(48) दान, भोग और नाश - ये तीन गतियां धन की होती हैं। जो न देता है और न भोगता है, उसके धन की तीसरी गति होती है। वनिता-(49) दुखकातर व्यक्तियों को दान देना ही सच्चा गुण है। तुकाराम(50) तुम्हें जो दिया था वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया है, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। वनिता-(51) सच्चा दान दो प्रकार का होता है- एक वह जो श्रद्धावश दिया जाता है, दूसरा वह जो दयावश दिया जाता है। वनिता-(52) समय बीतने पर उपार्जित विद्या भी नष्ट हो जाती है, मज़बूत जड़ वाले वृक्ष भी गिर जाते हैं, जल भी सरोवर में जाकर (गर्मी आने पर) सूख जाता है। लेकिन सत्पात्र दिए दान का पुण्य ज्यों का त्यों बना रहता है। वनिता कासनियां पंजाब(53) तपस्या से लोगों को विस्मित न करें, यज्ञ करके असत्य न बोलें। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करें। और दान दे कर उसकी चर्चा न करें। वनिता कासनियां पंजाब(54) दान तो वही श्रेष्ठ है जो किसी को दीन नहीं बनाता। दया या मेहरबानी से जो हम देते हैं उसके कारण दूसरे की गर्दन नीचे झुकाते हैं। वनिता-(55) क्रोध न करके क्रोध को, भलाई करके बुराई को, दान करके कृपण को और सत्य बोलकर असत्य को जीतना चाहिए। वनिता कासनियां पंजाब(56) तपस्या से लोगों को विस्मित न करे, यज्ञ करके असत्य न बोले। पीड़ित हो कर भी गुरु की निंदा न करे। और दान दे कर उसकी चर्चा न करे। वनिता कासनियां पंजाब(57) निस्संदेह दान की बहुत प्रशंसा हुई है, पर दान से धर्माचरण ही श्रेष्ठ है। वनिता.(58) दान का भाव एक बड़ा उत्तम भाव है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि समाज में दान-पात्रों का एक वर्ग पैदा कर दिया जाए। वनिता(59) समुद्रों में वृष्टि निरर्थक है, तृप्तों को भोजन देना व्यर्थ है, धनाढ्यों को दान देना और दिन के समय दीये को जला देना निरर्थक है। वनिता कासनियां पंजाब(60) देते हुए पुरुषों का धन क्षीण नहीं होता। दान न देने वाले पुरुष को अपने प्रति दया करने वाला नहीं मिलता। वनिता कासनियां पंजाब(61) तुम्हें जो दिया वह तो तुम्हारा ही दिया दान था। जितना ही तुमने ग्रहण किया, उतना ही मुझे ऋणी बनाया है। वनिता कासनियां पंजाब(62) मन, वचन और कर्म से सब प्राणियों के प्रति अदोह, अनुग्रह और दान- यही सज्जनों का धर्म है। वनिता कासनियां पंजाब(63) अपात्र को दिया गया दान व्यर्थ है। अफल बुद्धि वाले और अज्ञानी के प्रति की गई भलाई व्यर्थ है। गुण को न समझ सकने वाले के लिए गुण व्यर्थ है। कृतघ्न के लिए उदारता व्यर्थ है। वनिता कासनियां पंजाब(64) अक्रोध से क्रोध को जीतें, दुष्ट को भलाई से जीतें, कृपण को दान से जीतें और झूठ बोलने वाले को सत्य से जीतें। वनिता कासनियां पंजाब(65) शांति, क्षमा, दान और दया का आश्रय लेने वाले लोगों के लिए शील ही विशाल कुल है, ऐसा विद्वानों का मत है। वनिता कासनियां पंजाब(66) सर्वोपरि श्रेष्ठ बे सहारा को दान जो आप किसी मनुष्य को दे सकते हैं, विद्या व ज्ञान का दान है।बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब

दान-पुण्य,एक हाथ से दिया गया दान हज़ारों हाथों से लौटता है!!!!!! By. बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम की अध्यक्ष श्रीमती वनिता कासनियां पंजाब 🌹🙏🙏🌹* प्रगट चारि पद धर्म के कलि महुँ एक प्रधान।जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान॥धर्म के चार चरण (सत्य,, दया, तप और दान) प्रसिद्ध हैं, जिनमें से कलि में एक (दान रूपी) चरण ही प्रधान है। जिस किसी प्रकार से भी दिए जाने पर दान कल्याण ही करता है॥ जो हम देते हैं वो ही हम पाते हैं, दान के विषय में यह बात हम सभी जानते हैं। दान, अर्थात देने का भाव, अर्पण करने की निष्काम भावना।हिन्दू धर्म में दान चार प्रकार के बताए गए हैं, अन्न दान, औषध दान, ज्ञान दान एवं अभयदान एवं आधुनिक परिप्रेक्ष्य में अंगदान का भी विशेष महत्व है। दान एक ऐसा कार्य, जिसके द्वारा हम न केवल धर्म का पालन करते हैं बल्कि समाज एवं प्राणी मात्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन भी करते हैं।किन्तु दान की महिमा तभी होती है जब वह निस्वार्थ भाव से किया जाता है अगर कुछ पाने की लालसा में दान किया जाए तो वह व्यापार बन जाता है। यहाँ समझने वाली बात यह है कि देना उतना जरूरी नहीं होता जितना कि 'देने का भाव'। अगर हम किसी को कोई वस्तु दे रहे हैं लेकिन देने का भाव अर्थात इच्छा नहीं है तो वह दान झूठा हुआ, उसका कोई अर्थ नहीं।इसी प्रकार जब हम देते हैं और उसके पीछे यह भावना होती है, जैसे पुण्य मिलेगा या फिर परमात्मा इसके प्रत्युत्तर में कुछ देगा, तो हमारी नजर लेने पर है देने पर नहीं तो क्या यह एक सौदा नहीं हुआ?दान का अर्थ होता है देने में आनंद, एक उदारता का भाव प्राणी मात्र के प्रति एक प्रेम एवं दया का भाव है किन्तु जब इस भाव के पीछे कुछ पाने का स्वार्थ छिपा हो तो क्या वह दान रह जाता है? गीता में भी लिखा है कि कर्म करो, फल की चिंता मत करो हमारा अधिकार केवल अपने कर्म पर है उसके फल पर नहीं।हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है यह तो संसार एवं विज्ञान का साधारण नियम है इसलिए उन्मुक्त ह्रदय से श्रद्धा पूर्वक एवं सामर्थ्य अनुसार दान एक बेहतर समाज के निर्माण के साथ साथ स्वयं हमारे भी व्यक्तित्व निर्माण में सहायक सिद्ध होता है और सृष्टि के नियमानुसार उसका फल तो कालांतर में निश्चित ही हमें प्राप्त होगा।आज के परिप्रेक्ष्य में दान देने का महत्व इसलिये भी बढ़ गया है कि आधुनिकता एवं भौतिकता की अंधी दौड़ में हम लोग देना तो जैसे भूल ही गए हैं। हर सम्बन्ध को हर रिश्ते को पहले प्रेम समर्पण त्याग सहनशीलता से दिल से सींचा जाता था लेकिन आज! आज हमारे पास समय नहीं है क्योंकि हम सब दौड़ रहे हैं और दिल भी नहीं है क्योंकि सोचने का समय जो नहीं है! हाँ, लेकिन हमारे पास पैसा और बुद्धि बहुत है, इसलिए अब हम लोग हर चीज़ में इन्वेस्ट अर्थात निवेश करते हैं, चाहे वे रिश्ते अथवा सम्बन्ध ही क्यों न हो! तो हम लोग निस्वार्थ भाव से देना भूल गए हैं। देंगे भी तो पहले सोच लेंगे कि मिल क्या रहा है और इसीलिए परिवार टूट रहे हैं, समाज टूट रहा है।जब हम अपनों को उनके अधिकार ही नहीं दे पाते तो समाज को दान कैसे दे पाएंगे? अगर दान देने के वैज्ञानिक पक्ष को हम समझें, जब हम किसी को कोई वस्तु देते हैं तो उस वस्तु पर हमारा अधिकार नहीं रह जाता है, वह वस्तु पाने वाले के आधिपत्य में आ जाती है। अत: देने की इस क्रिया से हम कुछ हद तक अपने मोह पर विजय प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। दान देना हमारे विचारों एवं हमारे व्यक्तित्व पर एक मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालता है इसलिए हमारी संस्कृति हमें बचपन से ही देना सिखाती है न कि लेना। हमें अपने बच्चों के हाथों से दान करवाना चाहिए ताकि उनमें यह संस्कार बचपन से ही आ जाएं।दान धन का ही हो, यह कतई आवश्यक नहीं, भूखे को रोटी, बीमार का उपचार, किसी व्यथित व्यक्ति को अपना समय, उचित परामर्श, आवश्यकतानुसार वस्त्र, सहयोग, विद्या यह सभी जब हम सामने वाले की आवश्यकता को समझते हुए देते हैं और बदले में कुछ पाने की अपेक्षा नहीं करते, यह सब दान ही है। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि परहित के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरों को कष्ट देने के समान कोई पाप नहीं है। दानों में विद्या का दान सर्वश्रेष्ठ दान होता है क्योंकि उसे न तो कोई चुरा सकता है और न ही वह समाप्त होती है बल्कि कालांतर में विद्या बढ़ती ही है और एक व्यक्ति को शिक्षित करने से हम उसे भविष्य में दान देने लायक एक ऐसा नागरिक बना देते हैं जो समाज को सहारा प्रदान करे न कि समाज पर निर्भर रहे।इसी प्रकार आज के परिप्रेक्ष्य में रक्त एवं अंगदान समाज की जरूरत है। जो दान किसी जीव के प्राणों की रक्षा करे उससे उत्तम और क्या हो सकता है? हमारे शास्त्रों में ॠषि दधीची का वर्णन है जिन्होंने अपनी हड्डियाँ तक दान में दे दी थीं, कर्ण का वर्णन है जिसने अपने अन्तिम समय में भी अपना स्वर्ण दंत याचक को दान दे दिया था।देना तो हमें प्रकृति रोज सिखाती है, सूर्य अपनी रोशनी, फूल अपनी खुशबू, पेड़ अपने फल, नदियाँ अपना जल, धरती अपना सीना छलनी कर के भी दोनों हाथों से हम पर अपनी फसल लुटाती है। इसके बावजूद न तो सूर्य की रोशनी कम हुई, न फूलों की खुशबू, न पेड़ों के फल कम हुए न नदियों का जल, अत: दान एक हाथ से देने पर अनेकों हाथों से लौटकर हमारे ही पास वापस आता है बस शर्त यह है कि निस्वार्थ भाव से श्रद्धा पूर्वक समाज की भलाई के लिए किया जाए।बाबा तुलसी ने भी रामचरितमानस में लिखा है,,,* सो धन धन्य प्रथम गति जाकी। धन्य पुन्य रत मति सोइ पाकी॥धन्य घरी सोइ जब सतसंगा। धन्य जन्म द्विज भगति अभंगा॥भावार्थ:-वह धन धन्य है, जिसकी पहली गति होती है (जो दान देने में व्यय होता है) वही बुद्धि धन्य और परिपक्व है जो पुण्य में लगी हुई है। वही घड़ी धन्य है जब सत्संग हो और वही जन्म धन्य है जिसमें ब्राह्मण की अखण्ड भक्ति हो॥(धन की तीन गतियाँ होती हैं- बे सहारा को दान, भोग और नाश। बे सहारा को दान उत्तम है, भोग मध्यम है और नाश नीच गति है। जो पुरुष न देता है, न भोगता है, उसके धन की तीसरी गति होती है।